बुनकर,लोहा बनाने वाले और फैक्ट्ररी मालिक

Chapter 6

 फिर से याद करें

1. यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी?

उत्तरः 1) मलमल (मलमल)

2) केलिको (सूती कपड़ा)

3) शिंट्ज़ (चिंट्ज़)

4) जामदानी (बारीक कटी हुई)

2. जामदानी क्या है?

उत्तरः 1)जामदानी एक प्रकार की महीन मलमल होती है, जिस पर करघे पर सजावटी निशान बुना जाता है।

2)इसका रंग आमतौर पर स्लेटी और सफेद होता है। आमतौर पर सूती और सोने के धागों का उपयोग किया जाता है।

3)बंगाल में ढाका और संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में लखनऊ जामदानी बुनाई के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र थे।

3. बंडाना क्या है?

उत्तरः 

4. अगरिया कौन होते हैं?

उत्तरः 

5. रिक्त स्थान भरेंः

(क) अंग्रेज़ी का शिंट्ज़ शब्द हिंदी के छींट शब्द से निकला है।

(ख) टीपू की तलवार वुट्ज स्टील से बनी थी।

(ग) भारत का कपड़ा निर्यात उन्नीसवीं सदी में गिरने लगा।

आइए विचार करें

6. विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता हैं?

उत्तरः 1) अंग्रेजी का शिट्ज़ शब्द 'छींक के हिंदी' शब्द से बना है। हमारे पास रंग-बिरंगे फूलों और पत्तियों वाले छोटे मुद्रित कपड़े हैं।

2)विद्रोही! इस शब्द का उपयोग गर्दन या सिर पर बंधे चमकीले रंग के मुद्रित गुलदस्ते के लिए किया जाता है। हिन्दी शब्द की उत्पत्ति 'बंधन' शब्द से हुई है।

3) 'मस्लिन' (मलमल) शब्द का प्रयोग इराक के मोसुल शहर के आधार पर किया जाता है। यूरोपीय व्यापारियों ने इराक के मोसुल में अरब व्यापारियों के पास एक बारीक बुना हुआ कपड़ा देखा और उसे 'मस्लिन' कहना शुरू कर दिया।

7.इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों को शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था?

उत्तरः  1) इंग्लैंड में नई कपड़ा फ़ैक्टरियाँ खुल रही थीं। ब्रिटिश कपड़ा निर्माता अपने देश में केवल अपना कपड़ा ही बेचना चाहते थे।

2) इंग्लैंड के ऊन और रेशम निर्माता भारतीय कपड़े की लोकप्रियता से परेशान थे।

3) अब इंग्लैंड में सफेद मलमल या गैर-सफेद भारतीय कपड़ों पर भारतीय डिजाइन छापे जाने लगे।

8. बिट्रेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े?

उत्तरः 1) अब भारतीय कपड़ों को यूरोप और अमेरिका के बाजारों में ब्रिटिश उद्योगों में बने कपड़ों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।

2) भारत से इंग्लैंड को कपड़े का निर्यात कठिन हो गया, क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने भारत से आने वाले कपड़ों पर भारी सीमा शुल्क लगा दिया था।

3) ब्रिटिश और यूरोपीय कंपनियों ने भारतीय सामान खरीदना बंद कर दिया और उनके एजेंटों ने बुनकरों को निश्चित आपूर्ति के लिए पैसे देना बंद कर दिया।

4) उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक इंग्लैंड में बने सूती कपड़े ने भारतीय कपड़े को अफ्रीका, अमेरिका और यूरोप के पारंपरिक बाजारों से बाहर कर दिया। इनके कारण हजारों बुनकर, लाखों कपास काटने वाली ग्रामीण महिलाएँ बेरोजगार हो गईं।

9. उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ? 

उत्तरः  1) औपनिवेशिक सरकार के नए वन कानूनों ने वनों को आरक्षित घोषित कर दिया। जंगलों में लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध के कारण लोहा पिघलाने वालों को कोयला बनाने के लिए लकड़ी मिलनी बंद हो गई।

2) उन्नीसवीं सदी के अंत तक ब्रिटेन से लोहा और इस्पात का आयात किया जाने लगा, जिसके कारण स्थानीय प्रोसेसर द्वारा बनाए गए लोहे की मांग कम होने लगी।

3) कुछ क्षेत्रों में, सरकार ने जंगलों में प्रवेश की अनुमति दी, लेकिन उत्पादकों को अपनी प्रत्येक भट्टी के लिए वन विभाग को बहुत भारी कर देना पड़ता था, जिससे उनकी आय कम हो गई।

10 भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किन समस्याओं से जूझना पड़ा?

उत्तरः 1) इस उद्योग को ब्रिटेन के सस्ते कपड़ों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।

2) अधिकांश देशों में सरकारें आयातित वस्तुओं पर सीमा शुल्क लगाकर अपने उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से बचा रही थीं, लेकिन भारत में औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय स्थानीय उद्योगों को ऐसी सुरक्षा नहीं दी।

3)1880 तक, भारत के लगभग दो-तिहाई सूती कपड़े पहनने वाले ब्रिटिश निर्मित कपड़े पहनने लगे थे, जिससे हजारों बुनकर और लाखों सूती काटने वाली ग्रामीण महिलाएँ बेरोजगार हो गईं।

 11 पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली?

उत्तरः

आइए करके देखें

12. जहाँ आप रहते हैं उसके आस-पास प्रचलित किसी हस्तकला का इतिहास पता लगाएँ। इसके लिए आप दस्तकारों के समुदाय, उनको तकनीक में आए बदलावों और उनके बाजारों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठा कर सकते हैं। देखें कि पिछले 50 साल के दौरान इन चीज़ों में किस तरह बदलाव आए हैं?

उत्तरः

13 भारत के नक्शे पर विभिन्न हस्तकलाओं के अलग-अलग केंद्रों को चिह्नित करें। पहलगाएँ कि ये केंद्र कब पैदा हुए?

उत्तरः



Type- Dikha Bora

Answer type by-Mandira Saha