Chapter 14

                                                                   मंझन


 प्रश्न 1.कवि ने प्रेम को संसार में अँगूठी के नगीने के समान अमूल्य माना है। इस पंक्ति को ध्यान में रखते हुए कवि के अनुसार प्रेम स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर-
कवि मंझन के अनुसार प्रेम इस संसार का सबसे अनमोल रत्न है। उन्होंने इसकी उपमा अंगूठी के नगीने से दी है। जिस प्रकार नगीने के बिना अंगूठी का मूल्य शून्य हो जाता है, उसी प्रकार प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन भी निरर्थक हो जाता है। प्रेम से ही जीवन में माधुर्य और पूर्णता आती है। यह कोई साधारण वस्तु नहीं बल्कि दैवीय और अद्भुत अनुभूति है। इसे वही प्राप्त कर सकता है जो असाधारण त्याग और समर्पण की भावना रखता है। इसीलिए कवि का कहना है कि प्रेम मानव जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है जो आत्मा को महान और जीवन को सार्थक बनाती है।

प्रश्न 2.कवि ने सच्चे प्रेम की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर-
कवि के अनुसार सच्चे प्रेम की पहचान यही है कि मनुष्य अपने स्वार्थ, मोह-माया और भौतिक इच्छाओं को त्याग दे। जब तक मनुष्य अपनी वासनाओं और तृष्णाओं से ऊपर नहीं उठता, तब तक वह सच्चे प्रेम को प्राप्त नहीं कर सकता। कवि कहते हैं कि प्रेम पाने के लिए अपने अहंकार का बलिदान करना पड़ता है। यही प्रेम की असली कसौटी है। जो इस मार्ग में त्याग और समर्पण करता है वही सच्चे अर्थों में प्रेम का अधिकारी बनता है। प्रेम दुर्लभ और शाश्वत है, और केवल भाग्यशाली तथा हृदय से निर्मल व्यक्ति ही इसकी प्राप्ति कर पाता है।

प्रश्न 3.‘पेम गहा बिधि परगट आवा’ से कवि ने मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है?
उत्तर-
‘पेम गहा बिधि परगट आवा’ पंक्ति में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम मनुष्य के जीवन की मूल प्रेरणा है। संसार की सृष्टि भी ईश्वर ने प्रेम की शक्ति से ही की थी। कवि का आशय यह है कि मनुष्य स्वभाव से ही वासनाओं और भौतिक आकर्षणों में उलझा रहता है, परंतु सच्चा मार्ग वही है जहाँ प्रेम प्रधान हो। प्रेम से ही जीवन अमरत्व को छू सकता है और ईश्वर की निकटता प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार कवि ने मनुष्य की उस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है जिसमें वह सांसारिक तृष्णाओं में फँस जाता है, जबकि उसे अपनी आत्मा को निर्मल कर प्रेम को आधार बनाना चाहिए।

प्रश्न 4.आज मनुष्य ईश्वर को इधर-उधर खोजता-फिरता है लेकिन कवि मंझन का मानना है कि जिस मनुष्य ने भी प्रेम को गहराई से जान लिया स्वयं ईश्वर वहाँ प्रकट हो जाते हैं। यह भाव किन पंक्तियों से व्यंजित होता है।
उत्तर-
यह भाव कवि मंझन की इन पंक्तियों से प्रकट होता है—

“प्रेम के आगि सही जेइ आंचा।
सो जग जनमि काल सेउं बांचा।।’’

इन पंक्तियों में कवि का कहना है कि जो मनुष्य प्रेम की तपिश और उसकी परीक्षा सहन कर लेता है, वही वास्तव में अमरत्व प्राप्त करता है। उसके जीवन पर काल का प्रभाव नहीं पड़ता। जिसने प्रेम के सार को समझ लिया और उसे हृदय से स्वीकार कर लिया, वहाँ स्वयं ईश्वर का साक्षात्कार हो जाता है। इस प्रकार कवि का विश्वास है कि सच्चे प्रेम में ईश्वर का वास है और प्रेम को जान लेने वाला मनुष्य ईश्वर को भी पा लेता है।

 प्रश्न 5.कवि की मान्यता है कि प्रेम के पथ पर जिसने भी अपना सिर दे दिया वह राजा हो गया। यहाँ ‘सिर’ देना का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि मंझन ने लिखा है—

“सबद ऊँच चारिहुं जुग बाजा।
पेम पंथ सिर देई सो राजा।।’’

यहाँ ‘सिर देना’ का आशय वास्तविक सिर काटना नहीं है, बल्कि अपने अहंकार, स्वार्थ और भौतिक मोह का त्याग करना है। कवि का मानना है कि प्रेम का मार्ग बहुत कठिन है, इसमें वही सफल हो सकता है जो अपने संपूर्ण अस्तित्व को प्रेम के हवाले कर दे। अर्थात् जिसने अपने अहं और इच्छाओं को बलिवेदी पर अर्पित कर दिया, वही सच्चे प्रेम का अधिकारी है। इस त्याग और समर्पण के कारण वह व्यक्ति राजा की तरह महान और पूजनीय बन जाता है। प्रेम का सत्य स्वरूप तभी प्राप्त होता है जब मनुष्य स्वयं को पूर्णत: अर्पित कर दे।

 प्रश्न 6.प्रेम से व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? पठित पदों के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रेम मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा सहारा है। कवि मंझन के पदों से स्पष्ट होता है कि जैसे अंगूठी का मूल्य उसके नग से होता है, वैसे ही जीवन का मूल्य प्रेम से है। प्रेम के बिना जीवन शुष्क और निरर्थक हो जाता है।

जब मनुष्य प्रेम से संपन्न होता है, तो उसके व्यक्तित्व में प्रकाश, ऊँचाई और गंभीरता झलकती है। ऐसा व्यक्ति साधारण नहीं रह जाता, बल्कि उसे अवतारी पुरुष की तरह देखा जाता है। प्रेम उसे आत्मिक शक्ति देता है और उसका जीवन महानता से भर जाता है।

कवि मानते हैं कि प्रेम इतना प्रभावशाली है कि चारों युगों में उसकी महत्ता बनी रहती है। प्रेम के प्रभाव से मनुष्य काल पर भी विजय पा सकता है और अमरत्व प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि ईश्वर भी प्रेम के वशीभूत होकर संसार की सृष्टि करने के लिए प्रेरित हुए।

अतः तर्कसंगत रूप से कहा जा सकता है कि प्रेम मनुष्य के जीवन को अमर, अर्थपूर्ण और महान बनाता है, जिससे वह कालजयी आत्मा के रूप में पूजनीय हो उठता है।

 प्रश्न 7.(क) एक बार जौ मरि जीउ पावै।

काल बहुरि तेहि नियर न आवै।
उत्तर-
उपर्युक्त पंक्तियाँ कवि मंझन के पद से ली गई हैं। इनका भाव यह है कि जो मनुष्य अपने भीतर के स्वार्थ, मोह-माया और अहंकार को एक बार समाप्त कर देता है, वही वास्तविक जीवन की सार्थकता को प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है और काल भी उसके समीप नहीं पहुँच पाता।

कवि का कहना है कि संसार के भोग-विलास और तृष्णाओं में फँसे रहने से मनुष्य कभी भी अमरत्व नहीं पा सकता। जब वह अपने अस्तित्व को मिटाकर सत्य और ईश्वर में पूरी तरह समर्पित हो जाता है, तभी उसे अमर जीवन की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार इन पंक्तियों में यह शिक्षा निहित है कि मृत्यु पर विजय पाने का मार्ग त्याग और आत्मबलिदान से होकर जाता है। जिसने अपने भीतर की वासनाओं को मार डाला, वही अमरत्व और परम सत्य के निकट पहुँच सकता है।

 प्रश्न 8.(ख) मिरितुक फल अंब्रित होइ गया। निहचै अमर ताहि के कया।
उत्तर-
यह पंक्तियाँ कवि मंझन के पद से ली गई हैं। यहाँ कवि कहते हैं कि जिसने सांसारिक वासनाओं और तृष्णाओं को त्याग दिया, जिसने मोह-माया के बंधनों को मृत वस्तु समझकर छोड़ दिया, वही अमरत्व का फल प्राप्त करता है। उसके जीवन की काया अमृतमयी हो जाती है और मृत्यु भी उस पर प्रभाव नहीं डाल पाती।

कवि का अभिप्राय है कि अमरता का मार्ग भौतिक सुखों से नहीं, बल्कि प्रेम और त्याग से होकर जाता है। जब मनुष्य सांसारिक आकर्षणों को छोड़कर सत्य और प्रेम के मार्ग पर चलता है, तभी उसे मुक्ति मिलती है।

इस प्रकार इन पंक्तियों में यह संदेश निहित है कि प्रेम और भक्ति के सहारे ही मृत्यु से छुटकारा और अमर जीवन संभव है। यही जीवन का परम सत्य है।

 प्रश्न 9.प्रेम के सर्वस्व समर्पण से व्यक्ति के निजी जीवन में आत्मिक सुंदरता आ जाती है, यह परिपक्वता कवि के विचारों में किस प्रकार आती है, स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि मंझन के विचारों में प्रेम मनुष्य के जीवन का सबसे उच्च और शाश्वत तत्व है। जब कोई व्यक्ति प्रेम को पूरी निष्ठा और समर्पण से अपनाता है, तो उसके जीवन में आत्मिक सौंदर्य स्वतः प्रकट हो जाता है। ऐसा व्यक्ति साधारण नहीं रहता, उसका व्यक्तित्व दिव्य और महान हो उठता है।

कवि बताते हैं कि सृष्टि का आरंभ भी प्रेम की शक्ति से हुआ है। यह तत्व इतना अनमोल है कि इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है। प्रेम जिस मनुष्य के जीवन में प्रवेश करता है, उसका जीवन सार्थक और आलोकित हो जाता है। वह अमरत्व की ओर अग्रसर होता है और काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता।

इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं—बुद्ध, महावीर, राम और कृष्ण—जिन्होंने प्रेम और करुणा के बल पर मृत्यु को भी जीत लिया और कालजयी हो गए। प्रेम ही वह शक्ति है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाती है, उसकी आत्मा को आलोकित करती है और उसके जीवन को संपूर्ण बनाती है।

इस प्रकार कवि के विचारों में प्रेम के सर्वस्व समर्पण से ही मनुष्य के जीवन में वह आत्मिक परिपक्वता और सुंदरता आती है जो उसे इतिहास पुरुष और अमर बना देती है।

 प्रश्न 10.प्रेम की शरण में जाने पर जीव की क्या स्थिति होती है?
उत्तर-
कवि मंझन के अनुसार जब मनुष्य प्रेम की शरण में जाता है, तब उसका जीवन पूरी तरह बदल जाता है। वह सांसारिक मोह-माया, लोभ, वासनाओं और तृष्णाओं से मुक्त हो जाता है। प्रेम की शरण लेने पर मनुष्य के हृदय में शांति, निर्मलता और दिव्यता का संचार होता है।

प्रेम उसे मोक्ष का मार्ग दिखाता है और मृत्यु के भय से परे कर देता है। ऐसा व्यक्ति कालजयी बन जाता है क्योंकि काल भी उसकी आत्मिक शक्ति के सामने हार जाता है। जिसने प्रेम को पा लिया, उसने ईश्वर और सत्य दोनों को पा लिया। उसका जीवन सार्थक और अमर हो जाता है।

सूफी परंपरा में कहा गया है कि प्रेम की शरण लेने वाला ही वास्तविक ‘जिन’ है—जो भौतिक जगत से ऊपर उठकर आत्मिक जगत में प्रवेश करता है। इस अवस्था में मनुष्य अमरत्व का अनुभव करता है और उसका व्यक्तित्व कालातीत हो जाता है।

इस प्रकार प्रेम की शरण में जाने पर जीव न केवल सांसारिक बंधनों से मुक्त होता है, बल्कि अमरत्व और मोक्ष की प्राप्ति भी करता है।

नीचे लिखे पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।

1. पेम अमोलिक नग संयसारा। जेहि जिअं पेम सो धनि औतारा।
पेम लागि संसार उपावा। पेम गहा बिधि परगट आवा।
पेम जोति सम सिस्टि अंजोरा। दोसर न पाव पेम कर जोरा।
बिरुला कोई जाके सिर भागू। सो पावै यह पेम सोहागू।।
सबद ऊँच चारिहुं जुग बाजा। पेम पंथ सिर देइ सो राजा।

(क) पाठ और कवि का नाम लिखें।
उत्तर-पाठ-कड़बक, कवि-मंझन

(ख) कवि ने अमूल्य प्रेम की उपमा किससे दी है, और क्यों?
उत्तर-कवि मंझन ने प्रेम की उपमा अंगूठी के नगीने से दी है। उनका तात्पर्य यह है कि जैसे अंगूठी अपने नगीने से ही मूल्यवान बनती है, वैसे ही जीवन भी प्रेम के बिना अधूरा और निरर्थक है। प्रेम अत्यंत अमूल्य और दिव्य भावना है, जो जीवन को सार्थक और उच्चतर बनाती है। इसकी महत्ता इतनी महान है कि इसका कोई तुलनात्मक मूल्य नहीं लगाया जा सकता। प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन खाली और निस्तेज प्रतीत होता है।

(ग) कवि की दृष्टि में कौन अद्वितीय हैं तथा कैसे?
उत्तर-कवि मंझन के अनुसार इस संसार में प्रेम के समान कोई भी भाव उच्च और महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसलिए उन्होंने प्रेम को अद्वितीय और अनुपम कहा है—“दोसर न पाव प्रेम कर जोरा।” इसका अर्थ यह है कि प्रेम के समकक्ष कोई दूसरा भाव नहीं ठहर सकता। इसकी अनूठी शक्ति और दिव्यता के कारण कवि ने इसे विशेष और वरदानस्वरूप बताया है। प्रेम ही वह भाव है जो व्यक्ति के जीवन को सार्थक, महान और अमर बनाता है।

(घ) कवि किसको राजा मानता है? कारण-सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-कवि मंझन के अनुसार राजा वही व्यक्ति है जो प्रेम की दिव्यता और उसकी महत्ता की रक्षा में अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर देता है। अर्थात् वह अपने प्राणों या स्वार्थों का त्याग करने को तैयार होता है। कवि का मानना है कि प्रेम का मूल्य प्राणों से भी अधिक है, इसलिए इसे सुरक्षित रखना सर्वोपरि है। जिसने अपने अहं और स्वार्थ को बलि चढ़ाकर प्रेम की रक्षा की, वही सच्चे अर्थ में महान और शाही पुरुष, यानी राजा कहलाता है।

(ङ) “पेम गहा विधि परगट आवा’ पद्य-पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-“पेम गहा विधि परगट आवा” पंक्ति का अर्थ है कि जो व्यक्ति प्रेम की गहराई और वास्तविक स्वरूप को समझकर अपने जीवन में उसे पूर्ण रूप से उतार लेता है, वह व्यक्ति ईश्वर के समान हो जाता है। ऐसे मनुष्य में ईश्वर की उपस्थिति स्वतः प्रकट होती है, और उसका व्यक्तित्व दिव्यता, पवित्रता और शाश्वत गुणों से आलोकित हो जाता है।

(ग) कवि की दृष्टि में इस संसार में प्रेम के समान उच्च कोटि का अतिशय महत्त्वपूर्ण भाव और कोई दूसरा नहीं है। इसलिए कवि ने इसे अनुपम और अद्वितीय कहा है-“दोसर न पाव प्रेम कर जोरा।” प्रेम के जोड़ में इसके समकक्ष में कोई और दूसरा भाव नहीं है। इसके विलक्षण सुप्रभाव के आलोक में कवि ने वरदान रूप प्राप्त इस दिव्य भाव की प्रशंसा इस रूप में की है।

2. अमर न होत कोइ जग हारे। मरि जो मरै तेहि मींचु न मारे।
पेम के आगि सही जेई आंचा। सो जग जनमिकाल सेउं वाचा।
पेम सरनि जेई आपु उबारा। सो न मरै काहू कर मारा।
एक बार जौ मरि जीउ पावै। काल बहुरि तेहि नियर न आवै।
मिरितु क फल अंबित होइ गया। निह अंमर ताहि के कया।
उत्तर-
(क) पाठ-पद: उपरोक्त पद

कवि: मंझन

(ख) इन पंक्तियों में कवि मंझन प्रेम की महत्ता का विवेचन कर रहे हैं। प्रेम अमर और दिव्य भाव है, जो आत्मा और परमात्मा के बीच की दूरी को समाप्त करता है। जिसने प्रेम के मार्ग को समझकर अपने जीवन में उतार लिया, वही सच्चा प्रेमी है। ऐसे व्यक्ति का जीवन मृत्यु के बाद भी अमर रहता है, और उसकी यश-काया शाश्वत गरिमा से परिपूर्ण होती है।

(ग) इस प्रश्न का उत्तर ‘ख’ में दिया गया विवरण उपयुक्त है।

(घ) प्रेम में पगा हुआ व्यक्ति, यदि प्रेम की रक्षा में अपने प्राण भी बलिदान कर देता है, तो मृत्यु उसके लिए अमृत का वरदान बन जाती है। उसका जीवन पुनर्जन्म में भी सम्मानित और दिव्य गुणों से आलोकित रहता है। ऐसे प्रेमी के लिए मृत्यु विनाश नहीं, बल्कि नवजीवन और अमरत्व का माध्यम है।

(ङ) कवि मंझन इस पद में सच्चे प्रेमी और प्रेम के महत्त्व को उजागर करते हैं। सच्चा प्रेमी अपने प्रेमभाव की रक्षा के लिए प्राण की बाज़ी भी लगा देता है। प्रेम में मर-मिटना उसे अमरत्व का वरदान दिलाता है। ऐसी यशः-काया काल की शक्ति से भी अप्रभावित रहती है। कवि का संदेश यह है कि जिसने प्रेम की तपिश और उसकी आग की परीक्षा सह ली, उसका जीवन सार्थक और कालजयी बन जाता है।

Answer by Mrinmoee