Chapter 6

                                                      विष्णु प्रभाकर


प्रश्न 1.कोठरियाँ कहाँ बनी हुई थी?
उत्तर-
खजांचियों की विशाल अट्टालिका तक पहुँचने वाले मार्ग पर कई छोटी-छोटी, अंधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं, जो किसी प्रकार से चिरसंगी दुर्भाग्य का प्रतीक थीं।

 प्रश्न 2.अष्टावक्र कहाँ रहता था?
उत्तर-अष्टावक्र कुएँ की जगत पर रहता था।

प्रश्न: 3.अष्टावक्र के पिता कब चल बसे थे?

उत्तर-अष्टावक्र के पिता से परिचय होने से पहले ही उसके पिता चल बसे थे।

प्रश्न 4.चिड़चिड़ापन अष्टावक्र की मां का चिरसंगी क्यों बन गया?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां का चिड़चिड़ापन इसलिए चिरसंगी बन गया क्योंकि असमय आए बुढ़ापे के कारण उनका शरीर पहले ही शिथिल हो चुका था और वह मुश्किल से चल पाती थीं। लगातार कठिनाइयों और अभावों का सामना करते-करते उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया।


प्रश्न 5.अष्टावक्र: क्या-क्या बेचा करता था?

उत्तर-अष्टावक्र कचालू की चाट, मूंग की दाल की पकौड़ियाँ, दही वाले आलू और पानी के बतासे बेचता था।


प्रश्न 6.चार की संख्या अष्टावक्र के स्मृति पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित क्यों हो गई थी?
उत्तर-
माँ ने अष्टावक्र को आदेश दिया था कि वह चार बतासे, चार पकौड़ियाँ और चार चम्मच आलू दे। इस कारण चार की संख्या उसके मन में पत्थर की रेखा की तरह गहराई से अंकित हो गई थी।

 प्रश्न 7.माँ माथा क्यों ठोका करती थी?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां अपने माथे पर स्थान दिखाकर कहती थीं, “देखो तो।” अष्टावक्र गंभीर भाव से इधर-उधर देखने के बाद जवाब देता, “माँ, यहाँ बाल है, तोड़ दूँ?” तब मां उसे हल्के से माथा ठोक देती थीं।

 प्रश 8.गर्मी के दिनों में माँ-बेटा कहाँ सोया करते थे?
उत्तर-गर्मी के दिनों में माँ-बेटा कुएँ की जगत पर सोया करते थे।

प्रश्न 9.अष्टावक्र ‘हाय माँ’ कहकर वहीं क्यों लुढक गया?
उत्तर-
अष्टावक्र ने डर के कारण ऊँचाई से मुट्ठी भर आलू बेसन कड़ाही में डाले, जिससे गरम तेल सीधे उसकी छाती पर गिर गया। दर्द से वह चिल्लाया, “हाय माँ!” और वहीं लुढ़क गया।


प्रश्न 10.माँ के शुष्क नयन सजल क्यों हो उठे?
उत्तर-
अष्टावक्र ने डर के कारण ऊँचाई से मुट्ठी भर आलू बेसन कड़ाही में डाले, जिससे गरम तेल सीधे उसकी छाती पर गिर गया। दर्द से वह चिल्लाया, “हाय माँ!” और वहीं लुढ़क गया।


प्रश्न 11.अष्टावक्र विमूढ़ सा क्यों बैठा था?
उत्तर-
अष्टावक्र तब विमूढ़ सा बैठ गया जब उसकी मां के प्राण-पखेरू चले जाने के बाद भी वह यकीन नहीं कर सका और फिर एक डाक्टर ने उसे बताया कि उसकी मां मर गई है।

प्रश्न 12.कुलफीवाले ने ईश्वर को धन्यवाद क्यों दिया?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां के निधन और अष्टावक्र के अस्पताल में कराहते हुए मर जाने के बाद, कुलफीवाले ने ईश्वर का धन्यवाद किया कि उन्होंने अष्टावक्र को अपने पास बुलाकर शांति और सुख की नींद पाने का अवसर दिया।


 प्रश्न 13.इस पाठ का सबसे मार्मिक प्रसंग कौन है और क्यों?
उत्तर-
इस पाठ का सबसे मार्मिक प्रसंग दो अवसरों पर दिखाई देता है। पहला तब जब अष्टावक्र की मां का निधन हो जाता है और अष्टावक्र इतना व्यथित होता है कि वह मान ही नहीं पाता कि मां लौटकर नहीं आएगी। दूसरा तब होता है जब अष्टावक्र स्वयं दर्द में कराहते हुए अस्पताल पहुँचता है, जहाँ उसका कोई अपना नहीं होता और वह वहीं दम तोड़ देता है। ये दोनों प्रसंग अत्यंत करुणामय और हृदयस्पर्शी हैं।


प्रश्न 14.इस रेखाचित्र का सारांश लिखें।
उत्तर-पाठ का सारांश देखें।

 प्रश्न 15.माँ की मृत्यु के पश्चात् अष्टावक्र की मानसिक स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
माँ के निधन के बाद अष्टावक्र की मानसिक स्थिति पूरी तरह बदल गई। वह स्तब्ध और हतप्रभ हो गया। कभी-कभी उसकी बुद्धि जाग्रत होती है, पर जल्दी ही शांत हो जाती है और वह पागलपन जैसी अवस्था में पहुँच जाता है।


नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

1. खजांचियों की विशाल अट्टालिका को जानेवाले मार्ग पर सौभाग्य के
चिरसंगी दुर्भाग्य की तरह अनेक छोटी-छोटी, अँधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं। उन्हीं में से एक में विचित्र व्यक्ति रहता था जिसे संस्कृत पढ़े-लिखे लोग अष्टावक्र कहा करते थे। उसके पैर कवि की नायिका की तरह बलखाते थे और उसका शरीर हिंडोले की तरह झूलता था। बोलने में वह साधारण आदमी के अनुपात से तिगुना समय लेता। वर्ण श्याम, नयन निरीह, शरीर एक शाश्वत खाज से पूर्ण, मुख लंबा
और वक्र, वस्त्र कीट से चिकटे, यह था उसका व्यक्तित्व और इसमें यदि कुछ कमी रह जाती तो उसे शीनके-शडाके पूरा कर देते। इस आखिरी बात के लिए उसकी माँ अक्सर उसकी लानत-मलामत करती थी।

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-अष्टावक्र, लेखक-विष्णु प्रभाकर।

(ख) ‘अष्टावक्र’ किस भाषा का शब्द है? उसका अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-  ‘अष्टावक्र’ संस्कृत भाषा का शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ है विकलांग या टेढ़ा-मेढ़ा शरीर वाला। अर्थात् जिसके शरीर के अंग असामान्य या टेढ़े-मेढ़े हों, उसे अष्टावक्र कहा जाता है। इसी नाम से एक प्रसिद्ध और बुद्धिमान ऋषिपुत्र भी विख्यात हुए हैं।

(ग) अष्टावक्र कहाँ रहता था?
उत्तर-अष्टावक्र अपनी मां के साथ उस मार्ग पर बनी एक छोटी, अंधेरी और बदबूदार कोठरी में रहता था, जो शहर की अट्टालिकाओं तक जाने वाले रास्ते पर थी।

(घ) अष्टावक्र के शारीरिक स्वरूप का परिचय दें।
उत्तर-अष्टावक्र विकलांग था। उसके पैर कमजोर और असमान्य थे, शरीर झूलते हुए हिंडोले की तरह हिलता था। उसका रंग श्याम था, आंखें उदासीन और मुख लंबा तथा टेढ़ा था। पूरे शरीर पर खाज के दाग़ थे। बोलने में वह सामान्य व्यक्ति की तुलना में तीन गुना समय लेता था।

(ङ) अष्टावक्र की माँ किस बात के लिए उसकी लानत-मलामत ।किया करती थी?
उत्तर-अष्टावक्र का सम्पूर्ण व्यक्तित्व पूरी तरह असामान्य था। यदि उसमें कोई कमी रह जाती, तो उसे पूरी तरह पूरा कर देने के लिए अष्टावक्र की माँ अक्सर उसकी लानत-मलामत किया करती थीं।

2. यद्यपि असमय से आ-जानेवाले बुढ़ापे के कारण उसकी माँ का शरीर प्रायः शिथिल हो चुका था, वह बहुत लंगड़ाकर भी चलती थी और निरंतर अभावों से जूझते-जूझते चिड़चिड़ापन भी उसका चिरसंगी बन चुका था, पर बेटे से मुक्ति पाने की बात उसके मन में कभी नहीं उठी। वह विधवा थी इसलिए उसके वस्त्र काले-किष्ट ही नहीं थे, कटे हुए भी थे जिनमें गरीबी ने पैबंद लगाने के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ा था। उसके सिर के बाल सदा उलझे रहते थे। कभी-कभी खुजलाने से तंग आकर जब वह अष्टावक्र को जूं दिखाने के लिए बैठाती तो अच्छा-खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता था।

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-अष्टावक्र, लेखक का नाम-विष्णु प्रभाकर।

(ख) अष्टावक्र की माँ का चिरसंगी कौन था और वह किस परिस्थिति में बना हुआ था?
उत्तर- अष्टावक्र की मां का चिरसंगी उनके बुढ़ापे, शरीर की शिथिलता और चिड़चिड़े स्वभाव के रूप में था। यह चिरसंगी उनके बुढ़ापे में स्थायी रूप से स्थापित हो गया था, अर्थात् जब तक उनका प्रिय बेटा उनके सामने जीवित रहेगा, तब तक यह चिरसंगी बनी रहेगी।

(ग) अष्टावक्र की माँ असमय में ही बूढ़ी हो गई थी। उसके क्या लक्षण प्रकट थे?
उत्तर-अष्टावक्र की मां असमय बूढ़ी हो गई थीं। इसके लक्षण उनके शारीरिक और मानसिक स्वरूप तथा वस्त्रों की स्थिति से स्पष्ट थे। उनके वस्त्र काले और फटे हुए थे, सिर के बाल सूखे, कड़े और उलझे हुए थे।

(घ) अष्टावक्र की माँ के वैधव्य का पता कैसे चलता था?
उत्तर-अष्टावक्र की मां के वैधव्य का पता इस बात से चलता था कि जब वह अष्टावक्र को खोज-खोजकर परेशान होकर उसे नहीं दिखाना चाहती थीं, तब उँगली से किसी स्थान की ओर इशारा करके वहां देखने के लिए कहतीं। इस समय मां और बेटे के बीच एक मनोरंजक दृश्य बन जाता था।

(ङ) अष्टावक्र और उसकी माँ के बीच कब अच्छा-खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता था?
उत्तर-अष्टावक्र और उसकी मां के बीच तब अच्छा-खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता था, जब मां उसे खोज-खोजकर तंग आ जाती और उसे नहीं दिखाना चाहती। तब वह उँगली से किसी स्थान की ओर इशारा करती और अष्टावक्र से वहां देखने के लिए कहती।

(ग) अष्टावक्र की माँ की असामायिक वद्धा हो जाने का लक्षण यह था कि उसका शरीर करीब-करीब शिथिल और सुस्त हो चुका था। पैर के रुग्न होने के कारण वह कुछ लंगड़ा कर चलती थी और वह बराबर अभावों से जूझते रहने के कारण चिड़चिड़ापन का शिकार हो गई थी

3. तब माँ माथा ठोक लेती है और अष्टावक्र महाराज अपने वक्रमुख को ‘ और भी वक्र करके या तो कुएँ की जगत पर जा बैठते या फिर वहीं
बैठकर आने-जाने वालों को ताकने लगते। उस समय उसे देखकर जड़ भरत या मलूकदास की याद आ जाना स्वाभाविक था। वास्तव में वह उसी अवतार-परंपरा का रत्न था। नींद खुलते ही वह पैरों को नीचे लटकाकर और हाथों को गोदी में रखकर कुछ इस प्रकार बैठ जाता था, जिस प्रकार एक शिशु जननी के अंक में लेट जाता है। माँ आकर उसे नित्यकर्म की याद दिलाती और जब कई बार के कहने पर भी वह न उठता तो तंग आकर उसका मुँह ऐसे रगड़-रगड़ धोती जैसे वह कोई अबोध शिशु हो। उसके बाद उसे कलेउ मिला था जिसमें प्रायः रात की बची हुई रोटी या खोमचे की बची हुई चाट रहती थी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-अष्टावक्र, लेखक-विष्णु प्रभाकर।

(ख) माँ के माथा ठोक लेने के उपरांत अष्टावक्र क्या करने लगता?
 उत्तर- जब अष्टावक्र की मां उसकी शारीरिक और मानसिक हरकतों से तंग होकर माथा ठोक देतीं, तब अष्टावक्र अपने टेढ़े मुख को और भी अधिक टेढ़ा कर लेता और या तो कुएँ की तरफ जाकर बैठ जाता या वहीं बैठकर उस रास्ते से गुजरने वाले लोगों को असामान्य ढंग से देखने लगता।

(ग) लेखक को कब और क्यों जड़ भरत या मलूक दास की याद आ जाती?
उत्तर-जब अष्टावक्र की मां उसकी मानसिक स्थिति देखकर माथा ठोक देतीं, तब अष्टावक्र की उस समय की शारीरिक मुद्रा और हरकतों को देखकर लेखक को जड़ भरत या मलूक दास की याद आ जाती। इसका कारण यह था कि अष्टावक्र की मुद्रा और हाव-भाव उस समय जड़ भरत या मलूक दास की शारीरिक मुद्रा से मेल खा रहे थे।

(घ) नींद खुल जाने पर अष्टावक्र कौन-सी शारीरिक क्रिया करता?
उत्तर-अष्टावक्र की नींद खुलने पर वह पैरों को नीचे लटकाए और हाथों को गोदी में रखकर इस तरह बैठ जाता जैसे कोई शिशु अपनी मां की गोद में पड़ा हो।

(ङ) अष्टावक्र की माँ क्यों तंग आ जाती थी और उस मानसिक स्थिति में वह कौन-सा कार्य करने लगती?
उत्तर- जब अष्टावक्र नींद खुलने के बाद अपने पैरों और हाथों को समेटकर मां की गोद में शिशु की तरह लेटता, तो उसकी मां उसे बार-बार नित्यकर्म के लिए उठने को कहती। अष्टावक्र कई बार मां की बात नहीं मानता, तब मां तंग हो जातीं और उस मानसिक स्थिति में अष्टावक्र का मुँह खूब रगड़-रगड़कर धोतीं, जैसे वह कोई अबोध शिशु हो।

4. संध्या को उसके लौटने के समय माँ उसकी बाट जोहती बैठी रहती। उसपर निगाह पड़ते ही वह ललककर उठती। पहले उसका थाल सँभालती। फिर पानी भरे लोटे में से पैसे निकालकर गिनती। उस समय माथा ठोक लेना उसका नित्य का धर्म बन गया था। लगभग डेढ़ रुपये की बिक्री का समान ले जाकर वह सदा दस-बारह आने के पैसे लेकर लौटता था। माँ की डाँट-डपट या सिखावन उसके अटल नियम को कभी भंग नहीं कर सकी। वैसे कभी-कभी उसकी बुद्धि जाग्रत हो उठती थी। उदाहरण के लिए, एक दिन उसने माँ से कहा-“माँ! चाट तू बेचा कर। मुझे लड़के मारते हैं।”

(क) पाठ तथा लेखक के नाम लिखें।
उत्तर-पाठ का नाम-अष्टावक्र, लेखक का नाप-विष्णु प्रभाकर

(ख) अष्टावक्र की माँ संध्या के समय अपने पुत्र की बाट किस रूप में जोहती और क्यों जोहती?
उत्तर-अष्टावक्र दिनभर चाट बेचकर और मां द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुसार संध्या के समय अपने काम और पैसे समेटकर मां के पास लौटता। उसकी शारीरिक और मानसिक अवस्था ऐसी थी कि मां हर गतिविधि पर ध्यान देती और सुनिश्चित होने के लिए संध्या के समय उत्सुकता से उसके लौटने का इंतजार करती।

(ग) अष्टावक्र के लौटने के समय उसकी माँ का माथा ठोक लेना, उसका नित्य का धर्म क्यों बन गया था?
उत्तर-अष्टावक्र की मां उसे डेढ़ रुपये की पूँजी देकर चाट बेचने के लिए घर से बाहर भेजती, लेकिन अष्टावक्र अपने भोलेपन से रोज दस-बारह आने लेकर शाम में लौटता। मां उसे रोज समझाती और डांटती, लेकिन बिक्री के पैसे लौटाने के नियम में कोई बदलाव नहीं आता। इसी कारण वह हर दिन उसे माथा ठोकती, और यह उसकी नित्य की आदत बन गई।

(घ) यहाँ लेखक ने अष्टावक्र के किस नियम को अटल नियम की संज्ञा दी है और क्यों दी है?
उत्तर-लेखक ने अष्टावक्र द्वारा डेढ़ रुपये की पूँजी के बदले हमेशा दस-बारह आने लौटाने के नियम को अटल नियम कहा है। इसे अटल इसलिए कहा गया क्योंकि मां की डांट-डपट के बावजूद इस नियम में कभी कोई बदलाव नहीं आया।

(ङ) इस गद्याांश का आशय लिखिए।

उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने अष्टावक्र की मानसिक अपरिपक्वता और सोचने-समझने की असमर्थता को उजागर किया है। अष्टावक्र की मां रोज उसे डेढ़ रुपये की पूँजी देकर चाट बेचने के लिए भेजती, और अष्टावक्र संध्या के समय हमेशा पूँजी का आधा ही बिक्री के रूप में लौटाता। मां उसे रोज डांटती और विक्रय कार्य में सुधार करने की समझाती, लेकिन अष्टावक्र की पद्धति पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। इसी व्यवहार को लेखक ने अष्टावक्र का अटल नियम कहा है।

5. उसी रात को कुल्फीवाले ने सुना, अष्टावक्र बार-बार माँ-माँ पुकार रहा है। उस पुकार में सदा की तरह सरल विश्वास नहीं है, एक कराहट है। कुल्फीवाले ने करवट बदल ली, पर इस ओर कर्ण-रंध्र में वह कराहट और भी कसक उठी। वह लेट न सका। धीरे-धीरे उठा और झंझलाता हुआ वहाँ आया जहाँ अष्टावक्र छटपटा रहा था। देखकर जाना उसके पेट में तीव्र दर्द है। यहाँ तक कि देखते-देखते उसे दस्त शुरू हो गए। अब तो कुल्फीवाला घबरा उठा। दौड़ा हुआ खजाँची के पास पहुंचा। वे पहले तो चिनचिनाए, फिर अस्पताल फोन किया। कुछ देर बाद गाड़ी आई और अष्टावक्र को लाद कर ले गई। उसके दो घंटे बाद कुल्फीवाले ने फिर उसे आइसोलेशन वार्ड में दूर से देखा। वह अकेला था। उसकी कराहट बढ़ती जा रही थी। प्राण खिंच रहे थे। वह लगभग मूर्च्छित था। कभी-कभी उसकी जीभ होठों से सम्पर्क स्थापित करने की चेष्टा करती थी। शायद वह प्यासा था।

(क) पाठ तथा लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-अष्टावक्र, लेखक का नाम-विष्णु प्रभाकर।

(ख) अष्टावक्र की बार-बार माँ की पुकार में कुल्फीवाले ने क्या महसूस किया? कुल्फीवाले पर उसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-उस रात अष्टावक्र बार-बार माँ-माँ पुकार करता रहा। कुल्फीवाले ने यह सुना और महसूस किया कि अब अष्टावक्र की पुकार में पहले जैसी सरल विश्वास की भावना नहीं रही, बल्कि उसमें कराह और घबराहट झलक रही थी। इससे कुल्फीवाले की नींद उड़ गई और उसके कानों में भी कराह और कसक उठ गई।

(ग) कुल्फीवाला क्यों घबरा उठा और उसने उस घबराहट में क्या किया?
उत्तर-कुल्फीवाला नींद नहीं ले सका और वह अष्टावक्र के पास गया। वहाँ अष्टावक्र पेट दर्द और दस्त से परेशान होकर छटपटा रहा था। यह देखकर कुल्फीवाला घबरा उठा और अपनी घबराहट में दौड़कर खजांची के पास गया और उनसे अस्पताल में फोन करने को कहा।

(घ) अंतिम समय में अष्टावक्र की क्या दशा थी?
उत्तर-जीवन के अंतिम समय में अष्टावक्र की दशा अत्यंत दयनीय थी। वह अस्पताल में अकेला पड़ा था, लगातार कराह रहा था और प्राण धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे। वह अर्द्ध-मूर्छितावस्था में था और उसकी जीभ लगातार होंठों से संपर्क करने की कोशिश कर रही थी, शायद वह बहुत प्यासा था।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का सारांश/आशय लिखिए।
उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने अष्टावक्र के जीवन के अंतिम क्षणों की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है। रात के समय वह बार-बार मां को पुकार रहा था, और उसकी पुकार में दर्द और कराह झलक रही थी। पेट दर्द और दस्त की पीड़ा से वह अत्यंत कष्ट में था। कुल्फीवाले के प्रयास से उसे अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन वहां भी उसकी पीड़ा और बेचैनी बढ़ती रही। अंशतः होश में रहते हुए भी वह अबोध और प्यासा प्रतीत हो रहा था।


Answer by Mrinmoee