Chapter 2
वन एवं वन्य जीव संसाधन
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(1) इनमें से कौन-सी टिप्पणी प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास का सही कारण नहीं है?
उत्तर;प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास का सही कारण निम्नलिखित में से नहीं है:
अवर्गीकृत वन - अवर्गीकृत वन, जो सरकारी, व्यक्तियों या समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, उन्हें प्रकृति की सुरक्षा में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के वनों का विनाश और उनके बारे में गलत प्रबंधन, जैव विविधता के नुकसान का कारण बन सकता है, लेकिन यह प्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक वनस्पतियों और प्राणियों के समाप्त होने का मुख्य कारण नहीं होता।सही कारणों में, अधिकतर प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के नुकसान का कारण होते हैं -वनों की अंधाधुंध कटाई,
प्राकृतिक आवासों का सिकुड़ना,
प्रदूषण और
वैश्विक जलवायु परिवर्तन।
ये कारण प्राकृतिक जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
(2) कृषि प्रसार
उत्तर;कृषि के विस्तार के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई और भूमि का अतिक्रमण किया जाता है, जिससे जैव विविधता का विनाश होता है।
(3) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना
उत्तर: ज्यादा मवेशी और लकड़ी के लिए वनस्पति और वन्य जीवों पर अत्यधिक दबाव बनता है, जिससे उनका अस्तित्व संकट में आता है।
(4) वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएँ
उत्तर; बड़ी विकास परियोजनाएँ, जैसे जलविद्युत योजनाएं और सड़क निर्माण, वनों के विनाश और पारिस्थितिकी तंत्र के बिगाड़ का कारण बनती हैं।
(5) तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण
उत्तर; औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से वनों का अतिक्रमण बढ़ता है और प्रदूषण के कारण वन्य जीवन पर असर पड़ता है।
उत्तर; यह तरीका समुदायों को वनों के संरक्षण में शामिल करता है, जिससे वन उत्पादों का स्थायी उपयोग और जैव विविधता का संरक्षण सुनिश्चित होता है।
(6) बीज बचाओ आंदोलन
उत्तर; यह आंदोलन पारंपरिक बीजों के संरक्षण और जैव विविधता को बचाने का कार्य करता है।
(7) चिपको आंदोलन
उत्तर;और इसने वन यह आंदोलन वृक्षों के कटाव को रोकने के लिए लोकप्रिय था संरक्षण को प्रेरित किया।
(8) वन्य जीव पशुविहार (santuary) का परिसीमन
उत्तर;यह तरीका वन्य जीवों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करता है और उनके संरक्षण में सहायक होता है।
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए|
उत्तर;जैव विविधता पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, प्राणियों और सूक्ष्मजीवों का एक समग्र रूप है। यह जीवन के सभी रूपों के बीच पारिस्थितिकी तंत्र की संतुलन बनाए रखने में सहायक है। मानव जीवन के लिए यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा, चिकित्सा, जलवायु संतुलन, और पर्यावरणीय संतुलन के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करता है। जैव विविधता की कमी से जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
(2) जैव विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर;मानव क्रियाएँ जैसे कृषि प्रसार, वृहत विकास परियोजनाएँ, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, और मवेशी पालन प्राकृतिक वनस्पतियों और प्राणियों के आवास को नष्ट करती हैं। इन गतिविधियों से वन और उनके पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन होता है, जिससे वन्य जीवन की प्रजातियाँ समाप्त हो जाती हैं और पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश होता है। इसके अलावा प्रदूषण, अवैध शिकार और जंगलों की कटाई के कारण जैव विविधता पर गंभीर संकट आ जाता है।
(3) विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पत्तिजात और प्राणिजात के हास के कारक हैं?
उत्तर;भारत में कई समुदायों ने पारंपरिक रूप से वनों और वन्य जीवों के संरक्षण में योगदान किया है। उदाहरण स्वरूप, विश्नोई समुदाय राजस्थान में काले हिरण और अन्य वन्य जीवों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। चिपको आंदोलन ने हिमालय में वृक्षों की कटाई रोकने के लिए महिलाओं को अग्रणी भूमिका में लाया। इसके अलावा, संयुक्त वन प्रबंधन और पवित्र पेड़ों के झुरमुट जैसे समुदाय आधारित उपायों से वनों और वन्य जीवों के संरक्षण में मदद मिली है। इन आंदोलनों और प्रयासों ने यह सिद्ध किया कि समुदायों का सक्रिय सहयोग वन्य जीवन संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
उत्तर;भारत में विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के बीच प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए कई रीति-रिवाज और परंपराएँ विकसित हुई हैं। इनमें से कुछ ऐसे रीति-रिवाज हैं जो वन और वन्य जीवों के संरक्षण में सहायक रहे हैं। उदाहरण स्वरूप, विश्नोई समुदाय ने काले हिरण और अन्य जीवों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। चिपको आंदोलन में महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाई। इसके अलावा, पवित्र पेड़ों का संरक्षण, जैसे महुआ और कदंब के पेड़, जिनकी पूजा की जाती है, भी जैव विविधता के संरक्षण में मदद करता है। इस प्रकार के रीति-रिवाज न केवल प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करते हैं, बल्कि वे सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। इन रीति-रिवाजों के माध्यम से स्थानीय समुदायों का पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय योगदान सुनिश्चित होता है।
(5) भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में योगदान किया है?
विस्तारपूर्वक विवेचना करें।
उत्तर;भारत में विभिन्न समुदायों ने वनों और वन्य जीवों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह योगदान पारंपरिक ज्ञान, संस्कृतियों और रीति-रिवाजों पर आधारित है। कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:विश्नोई समुदाय:
राजस्थान में विश्नोई समुदाय के लोग प्रकृति और जीवों के संरक्षण के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा रखते हैं। उन्होंने 18वीं शताबदी में अपने प्राणों की आहुति देकर काले हिरण और अन्य वन्य जीवों की रक्षा की। इनकी मान्यता है कि "पशु और पेड़ सभी के जीवन का हिस्सा हैं।" विश्नोई समुदाय ने वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए नियम बनाये थे और अपने जीवन को इसके संरक्षण में समर्पित किया।
चिपको आंदोलन:
हिमालय क्षेत्र में 1970 के दशक में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन में महिलाओं ने अपने हाथों में वृक्षों को पकड़कर वनों की कटाई को रोका। चिपको आंदोलन ने यह सिद्ध किया कि समुदायों का सक्रिय समर्थन वन्य जीवों और वनों के संरक्षण के लिए जरूरी है। यह आंदोलन वैश्विक स्तर पर एक प्रेरणा बन गया और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर किया।
संयुक्त वन प्रबंधन:
1988 में ओडिशा राज्य में पहली बार संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management, JFM) का प्रारंभ हुआ। इस व्यवस्था के तहत, स्थानीय समुदायों को वनों के संरक्षण और पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी दी गई। बदले में इन समुदायों को वन उत्पादों का लाभ मिलता है। यह मॉडल भारत के अन्य हिस्सों में भी अपनाया गया है और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर वनों की रक्षा में सफलता मिली है।
पवित्र पेड़ और वन:
भारत में विभिन्न जनजातियाँ और समुदाय पारंपरिक रूप से वन्य जीवों और पेड़ों को पवित्र मानते हैं और उनका संरक्षण करते हैं। उदाहरण स्वरूप, मुंडा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदंब के पेड़ों की पूजा करती हैं। इनकी पूजा और संरक्षण की परंपरा ने इन पेड़ों और उनके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखा। ओडिशा और बिहार में भी कुछ जनजातियाँ शादी जैसे सामाजिक अवसरों पर पेड़ों की पूजा करती हैं, जिससे इन पेड़ों का संरक्षण होता है।
कौन-कौन अन्य उदाहरण:
भारत में अन्य समुदाय भी स्थानीय पारंपरिक उपायों के तहत वन और वन्य जीवों का संरक्षण करते हैं, जैसे कि मांझी और गुर्जर जनजातियाँ अपनी भूमि पर वन्य जीवन की रक्षा करने के लिए सक्रिय हैं। नदी संरक्षण और झरने की पूजा के रीति-रिवाजों ने भी पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में योगदान किया है।
इस प्रकार, विभिन्न भारतीय समुदायों ने पारंपरिक ज्ञान और संस्कृतियों का पालन करते हुए वनों और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन प्रयासों से यह साबित होता है कि समुदायों का वन और वन्य जीव संरक्षण में सक्रिय सहयोग आवश्यक है और स्थानीय स्तर पर इस तरह की पहलें वैश्विक पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार सिद्ध हो सकती हैं।
(6) वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर;भारत में विभिन्न समुदायों के बीच प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अनेक रीति-रिवाज और परंपराएँ प्रचलित हैं। इन रीति-रिवाजों ने न केवल जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की है, बल्कि वे समुदायों को भी अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनाने में सहायक रहे हैं। वन और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कुछ प्रमुख सहयोगी रीति-रिवाजों का उल्लेख किया गया है:
विश्नोई समुदाय और पवित्र वृक्ष:
राजस्थान के विश्नोई समुदाय ने अपनी धार्मिक मान्यताओं के तहत पेड़ों और वन्य जीवों को पवित्र माना है। इनकी मान्यता है कि "प्रकृति का प्रत्येक रूप जीवन का अभिन्न हिस्सा है"। विश्नोई समुदाय ने 18वीं शताबदी में अपने जीवन को बलिदान करके पेड़ों और वन्य जीवों की रक्षा की थी। इस समुदाय ने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए एक नियम और विधि बनाई थी, जो आज भी इन क्षेत्रों में प्रभावी रूप से लागू है।
चिपको आंदोलन:
हिमालय क्षेत्र में 1970 के दशक में चिपको आंदोलन का प्रारंभ हुआ। इस आंदोलन में महिलाओं ने अपनी जान की बाजी लगाकर वनों की कटाई को रोकने के लिए वृक्षों को गले लगाया। इस आंदोलन के तहत लोगों ने यह समझाया कि वनों के संरक्षण से ही पारिस्थितिकी तंत्र को बचाया जा सकता है। चिपको आंदोलन ने यह साबित किया कि रीति-रिवाजों और पारंपरिक उपायों के माध्यम से भी पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है।
पवित्र पेड़ों का संरक्षण:
भारत में अनेक जनजातियाँ और समुदाय अपने स्थानीय पेड़ों की पूजा करते हैं और उनका संरक्षण करते हैं। उदाहरण स्वरूप, मुंडा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदंब के पेड़ों की पूजा करती हैं। ये पेड़ न केवल इन समुदायों के लिए धार्मिक महत्त्व रखते हैं, बल्कि इनके आसपास का पारिस्थितिकी तंत्र भी सुरक्षित रहता है।
संयुक्त वन प्रबंधन:
भारत में संयुक्त वन प्रबंधन की प्रक्रिया ने दिखाया है कि यदि समुदायों को वनों के संरक्षण में शामिल किया जाए तो उनका सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। ग्रामीण समुदायों और वन विभाग के अधिकारियों के बीच सहयोग से वनों की रक्षा की जाती है। इस कार्यक्रम के तहत, स्थानीय समुदायों को वन उत्पादों का लाभ मिलता है, जिससे वे वनों के संरक्षण में सक्रिय रहते हैं।
सांस्कृतिक रीति-रिवाज और पर्यावरण संरक्षण:
भारत में अनेक ऐसे सांस्कृतिक रीति-रिवाज हैं जो पर्यावरण संरक्षण में सहायक हैं। कुछ जनजातियाँ झरनों और पहाड़ियों को पवित्र मानती हैं और इन स्थानों को नष्ट होने से बचाती हैं। मंदिरों के आसपास के बंदर और लंगूरों को पालने और उन्हें भोजन देने की परंपरा भी पर्यावरण के संरक्षण में मदद करती है।
इस प्रकार, विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराएँ भारतीय समाज में वन और वन्य जीव संरक्षण के लिए अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हुई हैं। इन रीति-रिवाजों के माध्यम से स्थानीय समुदायों ने न केवल पर्यावरण का संरक्षण किया है, बल्कि इनकी संस्कृति और पहचान भी मजबूत हुई है। इस प्रकार के उपायों से यह साबित होता है कि पारंपरिक ज्ञान और विश्वास भी पर्यावरण संरक्षण में योगदान कर सकते हैं।