Chapter 12


1. ध्वनि क्या है और यह कैसे उत्पन्न होती है?

उत्तर:ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है जो वायु या किसी अन्य माध्यम (जैसे जल, ठोस पदार्थ) के कणों के कंपन से उत्पन्न होती है। जब कोई वस्तु, जैसे कोई वाद्ययंत्र या मानव गला, कंपन करती है, तो इसके कारण आस-पास के कणों में संपीडन और विरलन (compression and rarefaction) होते हैं। इन संपीडनों और विरलनों के कारण ध्वनि की तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो माध्यम के कणों के माध्यम से फैलती हैं।

ध्वनि का प्रसार एक माध्यम (वायु, जल, आदि) में होता है, और यह अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में संचरित होती है। ध्वनि की यह तरंगें कणों के बीच गति करती हैं, लेकिन कण खुद स्थिर रहते हैं, केवल विक्षोभ (disturbance) उत्पन्न करते हैं। जब यह तरंगें कान तक पहुँचती हैं, तो वे कान के माध्यम से विद्युत संकेतों में बदलकर मस्तिष्क तक पहुँचती हैं, जहाँ इन्हें हम ध्वनि के रूप में सुनते हैं।

ध्वनि का गति (velocity) उस माध्यम की घनत्व और तापमान पर निर्भर करती है।

3. किस प्रयोग से यह दर्शाया जा सकता है कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है।

उत्तर:यह दर्शाने के लिए कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है, आप वैक्यूम बॉक्स या ग्लास बेल जार का प्रयोग कर सकते हैं। यह एक सरल और प्रभावी प्रयोग है।

प्रयोग की विधि:

  1. सामग्री:

    • एक घंटी (bell)

    • एक ग्लास बेल जार

    • एक वैक्यूम पंप

    • ध्वनि को सुनने के लिए किसी प्रकार का श्रवण यंत्र (जैसे, हेडफोन)

  2. प्रयोग:

    • पहले घंटी को जार के भीतर रखें।

    • घंटी को बजाने के बाद, उसकी ध्वनि को सामान्य परिस्थितियों में सुनें।

    • फिर वैक्यूम पंप का प्रयोग कर जार के अंदर से हवा को निकालें, जिससे यह वैक्यूम (निर्वात) बन जाए।

    • अब घंटी को फिर से बजाएं, और ध्यान दें कि ध्वनि सुनाई नहीं देती है।

परिणाम और व्याख्या:

  • जब जार में हवा थी, तब घंटी की ध्वनि सामान्य रूप से सुनाई दे रही थी, क्योंकि ध्वनि का संचरण हवा के माध्यम से हो रहा था।

  • जब जार का अंदर का वायु दबाव कम किया गया (वैक्यूम बनाया गया), तो ध्वनि सुनाई नहीं दी, क्योंकि ध्वनि तरंगों के संचरण के लिए द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है।

यह प्रयोग सिद्ध करता है कि ध्वनि तरंगों का संचरण एक माध्यम (जैसे, हवा, पानी, आदि) के बिना नहीं हो सकता 

4. ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्ध्य क्यों है?

उत्तर:ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्ध्य (Longitudinal) इसलिए होती है, क्योंकि ध्वनि तरंगों में कणों की गति और विक्षोभ (oscillation) तरंग की दिशा में ही होती है।

यहाँ पर समझाने के लिए प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. कणों की गति:

    • ध्वनि तरंगों में कण अपनी स्थिति से आगे-पीछे (आगे और पीछे) जाते हैं, यानी कणों का संपीडन और विरलन तरंग की दिशा में होता है।

    • जब कोई वस्तु कंपन करती है (जैसे किसी ध्वनि का स्रोत), तो वह आसपास के कणों को संपीडित (compress) और विरलित (rarefy) करती है, और इस प्रक्रिया में कणों की गति भी समान दिशा में होती है, जो ध्वनि की संचरण दिशा है।

  2. संपीडन और विरलन:

    • जब कण आपस में टकराते हैं, तो उनके बीच का दाब बढ़ जाता है (संपीडन), और जब कण एक दूसरे से दूर होते हैं, तो दाब घट जाता है (विरलन)।

    • इस तरह की संपीडन और विरलन की प्रक्रिया तरंग के रूप में फैलती है, और यही कारण है कि ध्वनि तरंगों में कणों की गति और विक्षोभ उसी दिशा में होते हैं, जिससे यह अनुदैर्ध्य तरंग बन जाती है।

  3. तरंगों का संचरण:

    • अनुदैर्ध्य तरंगों में कण अपनी स्थिति से आगे और पीछे जाते हैं, लेकिन वे स्थानांतरित नहीं होते। केवल उनकी स्थिति में बदलाव आता है, जिससे ऊर्जा तरंग के रूप में आगे बढ़ती है।

निष्कर्ष:
ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्ध्य होती है, क्योंकि ध्वनि तरंगों का संचरण कणों के संपीडन और विरलन के रूप में होता है, और कणों का विक्षोभ और गति भी उस दिशा में होती है जिसमें तरंग फैल रही होती है 

 आपकी सहायता करता है?

उत्तर:ध्वनि का गुणता (Timbre) वह अभिलक्षण है जो किसी अन्य अंधेरे कमरे में बैठे आपके मित्र की आवाज को पहचानने में आपकी सहायता करता है।

गुणता या ध्वनि का रंग वह विशेषता है, जो एक ही आवृत्ति (frequency) और तीव्रता (intensity) की ध्वनियों को अलग-अलग पहचानने में मदद करती है। यह ध्वनि स्रोत की संरचना और गुणात्मक विशेषताओं पर निर्भर करती है, जैसे कि उसके उपकरण या व्यक्ति का स्वर, आवाज़ की स्वरूप, और विभिन्न उच्च-निम्न ध्वनियों के मिश्रण से उत्पन्न होने वाली ध्वनियाँ।

जब आप किसी अंधेरे कमरे में बैठकर अपने मित्र की आवाज़ सुनते हैं, तो आप उसकी आवाज़ को पहचानने में गुणता का उपयोग करते हैं, क्योंकि हर व्यक्ति की आवाज़ का गुणता अलग होता है, चाहे वे समान ध्वनि स्तर या समान शब्द बोल रहे हों।

सारांश:
गुणता (Timbre) वह विशेषता है जो हमें किसी व्यक्ति या स्रोत की आवाज़ को पहचानने में मदद करती है, जैसे कि आपके मित्र की आवाज़ को एक अंधेरे कमरे में बैठकर पहचानना।

6. तड़ित की चमक तथा गर्जन साथ-साथ उत्पन्न होते हैं। लेकिन चमक दिखाई देने के कुछ सेकंड पश्चात् गर्जन सुनाई देती है। ऐसा क्यों होता है?

उत्तर:तड़ित (आकाशीय बिजली) की चमक और गर्जन (आतिशबाजी या गरज) एक साथ उत्पन्न होते हैं, लेकिन चमक तुरंत दिखाई देती है, जबकि गर्जन कुछ सेकंड बाद सुनाई देती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ध्वनि और प्रकाश की चाल में अंतर है:

  1. प्रकाश की गति: प्रकाश की गति अत्यधिक अधिक होती है, लगभग 3 × 10^8 मीटर/सेकंड। इसलिए, तड़ित की चमक हमें लगभग तुरंत दिखाई देती है, क्योंकि यह प्रकाश हमें बहुत तेजी से पहुँचता है।

  2. ध्वनि की गति: ध्वनि की गति बहुत कम होती है, लगभग 343 मीटर/सेकंड (समुद्र तल पर और 20°C तापमान पर)। इसका मतलब है कि ध्वनि को उत्पन्न होने के बाद हमें पहुँचने में अधिक समय लगता है।

चूंकि तड़ित की चमक और गर्जन एक साथ उत्पन्न होते हैं, लेकिन ध्वनि की गति प्रकाश की तुलना में बहुत कम होती है, इसलिए हमें पहले चमक दिखाई देती है और फिर कुछ सेकंड बाद गर्जन सुनाई देती है।

सारांश:
चमक और गर्जन एक साथ उत्पन्न होते हैं, लेकिन क्योंकि प्रकाश की गति ध्वनि की गति से कहीं अधिक होती है, इसलिए चमक पहले दिखाई देती है और गर्जन बाद में सुनाई देती है।

7. किसी व्यक्ति का औसत श्रव्य परास 20 Hz से 20 kHz है। इन दो आवृत्तियों के लिए ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए। वायु में ध्वनि का वेग 344 m s-¹ लीजिए।

उत्तर:वायु में ध्वनि का वेग 344 m/s होने पर, 20 Hz और 20 kHz आवृत्तियों के लिए ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्ध्य निम्नलिखित हैं:

  • 20 Hz के लिए तरंगदैर्ध्य = 17.2 मीटर

  • 20 kHz के लिए तरंगदैर्ध्य = 0.0172 मीटर (या 1.72 सेंटीमीटर) 

8. दो बालक किसी ऐलुमिनियम पाइप के दो सिरों पर हैं। एक बालक पाइप के एक सिरे पर पत्थर से आघात करता है। दूसरे सिरे पर स्थित बालक तक वायु तथा ऐलुमिनियम से होकर जाने वाली ध्वनि तरंगों द्वारा लिए गए समय का अनुपात ज्ञात कीजिए।

उत्तर:यह प्रश्न हमें यह बताने को कह रहा है कि ध्वनि तरंगें वायु और ऐलुमिनियम दोनों से होकर किस समय में जाएंगी, और इन दोनों माध्यमों में ध्वनि की गति अलग-अलग होगी।

ध्वनि की गति वायु में vवायु=344m/sv_{\text{वायु}} = 344 \, \text{m/s} होती है, और ऐलुमिनियम में ध्वनि की गति vऐलुमिनियम=5000m/sv_{\text{ऐलुमिनियम}} = 5000 \, \text{m/s} होती है।

ध्वनि द्वारा यात्रा किए गए समय का अनुपात tवायुt_{\text{वायु}} और tऐलुमिनियमt_{\text{ऐलुमिनियम}} का अनुपात है।

ध्वनि यात्रा का समय (वायु और ऐलुमिनियम में) निम्नलिखित रूप से ज्ञात किया जा सकता है:

t=dvt = \frac{d}{v}

जहां dd यात्रा की दूरी है और vv ध्वनि की गति है।

मान लीजिए, पाइप की लंबाई LL है।

  • वायु में यात्रा किए गए समय = tवायु=Lvवायु=L344t_{\text{वायु}} = \frac{L}{v_{\text{वायु}}} = \frac{L}{344}

  • ऐलुमिनियम में यात्रा किए गए समय = tऐलुमिनियम=Lvऐलुमिनियम=L5000t_{\text{ऐलुमिनियम}} = \frac{L}{v_{\text{ऐलुमिनियम}}} = \frac{L}{5000}

समय का अनुपात tवायु:tऐलुमिनियमt_{\text{वायु}} : t_{\text{ऐलुमिनियम}} होगा:

tवायुtऐलुमिनियम=L344L5000=500034414.53\frac{t_{\text{वायु}}}{t_{\text{ऐलुमिनियम}}} = \frac{\frac{L}{344}}{\frac{L}{5000}} = \frac{5000}{344} \approx 14.53

इसलिए, वायु से ऐलुमिनियम के माध्यम में यात्रा किए गए समय का अनुपात लगभग 14.53:1 है।

9. किसी ध्वनि स्त्रोत की आवृत्ति 100 Hz है। एक मिनट में यह कितनी बार कंपन करेगा?

उत्तर:यदि किसी ध्वनि स्रोत की आवृत्ति 100 Hz है, तो इसका मतलब है कि वह ध्वनि स्रोत एक सेकंड में 100 बार कंपन करेगा।

अब, हमें एक मिनट में कंपन की संख्या ज्ञात करनी है, और एक मिनट में 60 सेकंड होते हैं।

इसलिए, एक मिनट में कंपन की कुल संख्या होगी:

कुल कंपन=100Hz×60सेकंड=6000कंपन\text{कुल कंपन} = 100 \, \text{Hz} \times 60 \, \text{सेकंड} = 6000 \, \text{कंपन}

तो, इस ध्वनि स्रोत के द्वारा एक मिनट में 6000 बार कंपन होगा।

10. क्या ध्वनि परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका कि प्रकाश की तरंगें करती हैं? इन नियमों को बताइए।

उत्तर:जी हां, ध्वनि परावर्तन भी उसी तरह के नियमों का पालन करता है जिनका पालन प्रकाश की तरंगें करती हैं। दोनों के परावर्तन के नियम एक जैसे होते हैं। ध्वनि परावर्तन के नियम निम्नलिखित हैं:

  1. आपतन कोण और परावर्तन कोण समान होते हैं:

    • ध्वनि तरंगों का परावर्तन भी उसी तरह होता है जैसे प्रकाश तरंगों का। यानी जब ध्वनि किसी सतह से टकराती है, तो आपतन कोण और परावर्तन कोण समान होते हैं। यह दोनों कोण सतह के समानांतर होते हैं। आपतन कोण (angle of incidence) और परावर्तन कोण (angle of reflection) अभिलंब (normal) से मापे जाते हैं।

  2. आपतन, परावर्तन, और अभिलंब एक ही तल में होते हैं:

    • ध्वनि का परावर्तन उसी तल में होता है जिस तल में आपतन (incident wave) और परावर्तित तरंगें (reflected wave) स्थित होती हैं। यह नियम प्रकाश की परावर्तन के समान है।

इस प्रकार, ध्वनि और प्रकाश दोनों ही परावर्तन के समान नियमों का पालन करते हैं, जिसमें आपतन और परावर्तन कोणों का समान होना और सभी तीन (आपतन, परावर्तन और अभिलंब) एक ही तल में होना शामिल है।

11. ध्वनि का एक स्रोत किसी परावर्तक सतह के सामने रखने पर उसके द्वारा प्रदत्त ध्वनि तरंग की प्रतिध्वनि सुनाई देती है। यदि स्रोत तथा परावर्तक सतह की दूरी स्थिर रहे तो किस दिन प्रतिध्वनि अधिक शीघ्र सुनाई देगी (1) जिस दिन तापमान अधिक हो? (11) जिस दिन तापमान कम हो?

उत्तर:ध्वनि की गति तापमान पर निर्भर करती है। जब तापमान बढ़ता है, तो वायु में कणों की गति बढ़ जाती है, जिससे ध्वनि की गति भी बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप, जब तापमान अधिक होता है, ध्वनि की तरंगें परावर्तक सतह से शीघ्र वापस लौटती हैं, और प्रतिध्वनि अधिक शीघ्र सुनाई देती है।

इसलिए:

  1. जिस दिन तापमान अधिक हो: उस दिन प्रतिध्वनि अधिक शीघ्र सुनाई देगी।

  2. जिस दिन तापमान कम हो: उस दिन प्रतिध्वनि धीरे सुनाई देगी, क्योंकि कम तापमान में ध्वनि की गति कम होती है।

तापमान अधिक होने पर ध्वनि का वेग अधिक होता है, जिससे परावर्तित ध्वनि तरंगों को वापस आने में कम समय लगता है।

12. ध्वनि तरंगों के परावर्तन के दो व्यावहारिक उपयोग लिखिए।

उत्तर:ध्वनि तरंगों के परावर्तन के दो व्यावहारिक उपयोग:

  1. सोनार (SONAR) तकनीक: सोनार में ध्वनि के परावर्तन का उपयोग जल के भीतर स्थित पिंडों की दूरी, दिशा और चाल को मापने के लिए किया जाता है। जैसे कि पनडुब्बी द्वारा पानी में ध्वनि तरंगें प्रेषित की जाती हैं और जब ये तरंगें किसी पिंड से टकराकर परावर्तित होती हैं, तो संसूचक उन परावर्तित तरंगों को प्राप्त करता है। इस तकनीक का उपयोग समुद्र के तल का पता लगाने और डूबे हुए जहाजों या चट्टानों का पता लगाने में किया जाता है।

  2. इकोकार्डियोग्राफ़ी (Echo Cardiography): ध्वनि तरंगों के परावर्तन का उपयोग हृदय के कार्य और संरचना का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। इसमें पराध्वनि तरंगों का उपयोग हृदय के विभिन्न भागों से परावर्तित होकर हृदय की स्थिति का प्रतिबिंब बनाने के लिए किया जाता है, जिससे चिकित्सक हृदय की कार्यप्रणाली और किसी भी संभावित दोष का पता लगा सकते हैं।

13. 500 मीटर ऊँची किसी मीनार की चोटी से एक पत्थर मीनार के आधार पर स्थित एक पानी के तालाब में गिराया जाता है। पानी में इसके गिरने की ध्वनि चोटी पर कब सुनाई देगी? (g = 10 m s² तथा ध्वनि की चाल = 340 m s¹)

उत्तर:यह समस्या दो चरणों में हल की जा सकती है। पहले हमें पत्थर के गिरने का समय और फिर ध्वनि के यात्रा करने का समय निकालना होगा।

चरण 1: पत्थर के गिरने का समय (t1)

पत्थर को गिरने में समय निकालने के लिए हम नीचे दिए गए काग्रेशन के सूत्र का उपयोग करेंगे:

s=12gt2s = \frac{1}{2} g t^2

जहाँ:

  • ss = 500 मीटर (मीनार की ऊँचाई)

  • gg = 10 m/s² (गुरुत्वाकर्षण का त्वरित दर)

समीकरण को हल करते हैं:

500=12×10×t2500 = \frac{1}{2} \times 10 \times t^2 t2=500×210=100t^2 = \frac{500 \times 2}{10} = 100 t=100=10 सेकंडt = \sqrt{100} = 10 \text{ सेकंड}

इसलिए, पत्थर को गिरने में 10 सेकंड लगेंगे।

चरण 2: ध्वनि के यात्रा करने का समय (t2)

अब, हमें ध्वनि के यात्रा करने का समय निकालना है। ध्वनि की चाल 340 मीटर/सेकंड है और मीनार की ऊँचाई 500 मीटर है, तो ध्वनि को मीनार के नीचे तालाब तक पहुँचने में समय होगा:

t2=500340=1.47 सेकंडt_2 = \frac{500}{340} = 1.47 \text{ सेकंड}

कुल समय (t_total):

अब, कुल समय पत्थर के गिरने और ध्वनि के यात्रा करने का जोड़ होगा:

ttotal=t1+t2=10+1.47=11.47 सेकंडt_{\text{total}} = t_1 + t_2 = 10 + 1.47 = 11.47 \text{ सेकंड}

तो, चोटी से मीनार के आधार तक पानी में पत्थर के गिरने की ध्वनि चोटी पर 11.47 सेकंड में 

उत्तर:ध्वनि की आवृत्ति (

vv) को निम्नलिखित सूत्र से निकाला जा सकता है:

v=vλv = \frac{v}{\lambda}

जहाँ:

  • vv = ध्वनि की चाल = 339 m/s

  • λ\lambda = तरंगदैर्ध्य = 1.5 cm = 0.015 m (चूँकि 1 cm = 0.01 m)

अब, आवृत्ति (ff) निकालते हैं:

f=vλ=3390.015=22,600Hzf = \frac{v}{\lambda} = \frac{339}{0.015} = 22,600 \, \text{Hz}

इस प्रकार, ध्वनि तरंग की आवृत्ति 22,600 Hz होगी।

क्या यह श्रव्य है?

मानव कान के लिए श्रव्य आवृत्ति की सीमा 20 Hz से 20,000 Hz तक होती है। चूँकि यह आवृत्ति (22,600 Hz) 20,000 Hz से अधिक है, यह ध्वनि अवश्रव्य (ultrasonic) होगी, अर्थात् यह मानव कान से सुनाई नहीं देगी।

15. अनुरणन क्या है? इसे कैसे कम किया जा सकता है?

उत्तर:अनुरणन (Resonance) वह अवस्था होती है जब कोई प्रणाली (जैसे, ध्वनि, धातु, या अन्य वस्तु) एक विशिष्ट आवृत्ति पर कंपन करती है, और बाहरी बल या उत्तेजना भी उसी आवृत्ति पर कार्य करती है। जब बाहरी बल की आवृत्ति और प्रणाली की स्वाभाविक आवृत्ति मेल खाती है, तो वह प्रणाली अधिकतम कंपन करती है, और इसे अनुरणन कहा जाता है।

अनुरणन के उदाहरण:

  1. ध्वनि प्रणाली में: जब एक विशिष्ट आवृत्ति वाली ध्वनि तरंग किसी बर्तन या तार पर काम करती है और उसका आवृत्ति उसी के अनुरूप होती है, तो बर्तन या तार तीव्र कंपन करते हैं।

  2. पुल या इमारत में: जब कोई बाहरी बल (जैसे ट्रक का गुजरना) पुल की स्वाभाविक आवृत्ति से मेल खाता है, तो पुल अधिकतम कंपन करेगा, जिससे वह नुकसान भी पहुंचा सकता है। इस घटना को "अनुरणन" कहा जाता है।

अनुरणन को कैसे कम किया जा सकता है?

  1. द्रव्यमान (Mass) बढ़ाना: प्रणाली का द्रव्यमान बढ़ाने से स्वाभाविक आवृत्ति में कमी आती है, जिससे अनुरणन की संभावना घटती है। उदाहरण के लिए, एक पुल में द्रव्यमान बढ़ाकर उसकी स्वाभाविक आवृत्ति को कम किया जा सकता है।

  2. घर्षण या प्रतिरोध बढ़ाना: जब प्रणाली में प्रतिरोध (जैसे घर्षण या दमन) बढ़ाया जाता है, तो कंपन की तीव्रता को नियंत्रित किया जा सकता है। इसे "दमन" (Damping) कहा जाता है। जैसे, वाहन के सस्पेंशन में दमन को बढ़ाने से कंपन को कम किया जाता है।

  3. स्वाभाविक आवृत्ति में बदलाव करना: प्रणाली के आकार या संरचना में बदलाव कर हम उसकी स्वाभाविक आवृत्ति को बदल सकते हैं, ताकि वह बाहरी बल के अनुरूप न हो। उदाहरण के लिए, पुल के डिजाइन में बदलाव करके हम उसकी स्वाभाविक आवृत्ति को बाहर की आवृत्तियों से मेल नहीं खाने दे सकते हैं।

  4. विभिन्न प्रकार के बफर या डंपर्स का उपयोग: बफर या डंपर्स का उपयोग करके हम बाहरी उत्तेजनाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं, जिससे अनुरणन को नियंत्रित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इमारतों या ब्रिजों में डंपिंग सिस्टम लगाए जाते हैं ताकि वे भूकंप या अन्य कंपन से बच सकें।

16. ध्वनि की प्रबलता से क्या अभिप्राय है? यह किन कारकों पर निर्भर करती है?

उत्तर:ध्वनि की प्रबलता (Sound Intensity) से अभिप्राय है किसी विशेष क्षेत्र में एक निर्धारित समय में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा की मात्रा। इसे सामान्यतः ध्वनि की तीव्रता (loudness) के रूप में समझा जाता है, और यह उस ध्वनि के द्वारा उत्पन्न दबाव के परिवर्तनों से संबंधित होती है। ध्वनि की प्रबलता एक भौतिक राशि है, और यह अधिकतम ध्वनि दबाव के हिसाब से मापी जाती है।

ध्वनि की प्रबलता के निर्धारण वाले प्रमुख कारक:

  1. ध्वनि की शक्ति (Sound Power): यह वह ऊर्जा है जो ध्वनि स्रोत से प्रति समय उत्पन्न होती है। ध्वनि की प्रबलता सीधे इस पर निर्भर करती है। यदि ध्वनि स्रोत अधिक शक्ति उत्पन्न करता है, तो प्रबलता भी अधिक होगी।

  2. दूरी (Distance): ध्वनि की प्रबलता दूरी पर निर्भर करती है। जैसे-जैसे आप ध्वनि स्रोत से दूर जाते हैं, ध्वनि की प्रबलता घटने लगती है। यह "ध्वनि का फैलाव" (sound dispersion) के कारण होता है, क्योंकि ध्वनि ऊर्जा का प्रसार एक बड़े क्षेत्र में हो जाता है, जिससे ऊर्जा की घनता घट जाती है।

  3. माध्यम (Medium): ध्वनि का संचरण किस माध्यम (वायु, जल, ठोस) से हो रहा है, यह भी प्रबलता को प्रभावित करता है। ठोस माध्यम में ध्वनि अधिक तेज़ और प्रबल होती है, जबकि गैस (जैसे वायु) में ध्वनि की प्रबलता कम होती है। इसके अलावा, माध्यम की घनता और तापमान भी प्रबलता को प्रभावित करते हैं।

  4. ध्वनि स्रोत का प्रकार (Type of Sound Source): ध्वनि स्रोत की प्रकृति जैसे उसकी आवृत्ति और कंपन, प्रबलता पर प्रभाव डालती है। उच्च शक्ति वाले और बड़े ध्वनि स्रोत (जैसे, हॉर्न, तेज़ शोर) अधिक प्रबलता उत्पन्न करते हैं।

  5. वायु का तापमान (Temperature of Air): ध्वनि की प्रबलता वायु के तापमान पर भी निर्भर करती है। उच्च तापमान पर ध्वनि की गति बढ़ जाती है, जिससे प्रबलता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए, गर्म मौसम में ध्वनि अधिक दूर तक पहुंच सकती है।

संक्षेप में:

ध्वनि की प्रबलता का संबंध ध्वनि स्रोत से उत्पन्न ऊर्जा, उसके प्रसार की दूरी, माध्यम की गुणात्मकता (घनत्व, तापमान आदि), और अन्य कारकों से होता है। अधिक ऊर्जा और सही माध्यम में ध्वनि अधिक प्रबल होती है।

17. चमगादड़ अपना शिकार पकड़ने के लिए पराध्वनि का उपयोग किस प्रकार करता है? वर्णन कीजिए।

उत्तर:चमगादड़ अपना शिकार पकड़ने के लिए पराध्वनि (Echolocation) का उपयोग करता है, जो एक प्रकार की ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन और परावर्तन के माध्यम से शिकार की स्थिति का निर्धारण करने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया खासकर रात के समय या अंधेरे में काम आती है, जब चमगादड़ को अपने शिकार का दृश्य पता नहीं होता।

पराध्वनि का उपयोग करने का तरीका:

  1. ध्वनि उत्सर्जन: चमगादड़ अपने मुख से उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों (जो आमतौर पर मानव के श्रव्य परास से बाहर होती हैं) को उत्सर्जित करता है। ये ध्वनि तरंगें बहुत ही तेज होती हैं और छोटे, तीव्र पल्स के रूप में उत्सर्जित होती हैं।

  2. ध्वनि का परावर्तन: ये पराध्वनि तरंगें हवा में फैलती हैं और किसी वस्तु, जैसे शिकार (कीट, मच्छर, आदि), दीवार, या अन्य रुकावट से टकराती हैं। जब ये तरंगें किसी वस्तु से टकराती हैं, तो परावर्तित हो जाती हैं और वापस चमगादड़ के कानों तक पहुँचती हैं।

  3. परावर्तित ध्वनि का विश्लेषण: चमगादड़ अपनी श्रवण प्रणाली के माध्यम से परावर्तित ध्वनि को प्राप्त करता है। इससे उसे यह जानकारी मिलती है कि वस्तु कहाँ स्थित है, उसकी दूरी, आकार, गति और दिशा क्या है। परावर्तित ध्वनि के समय अंतराल और तीव्रता से उसे शिकार की स्थिति का पता चलता है।

  4. शिकार का पकड़ना: चमगादड़ इस प्राप्त जानकारी का उपयोग करते हुए अपने शिकार की दिशा में उड़ान भरता है और उसे पकड़ने में सफल होता है।

महत्वपूर्ण बातें:

  • चमगादड़ द्वारा उत्पन्न पराध्वनि तरंगें बहुत उच्च आवृत्तियों में होती हैं (30 kHz से लेकर 100 kHz तक), जो मानव श्रवण सीमा से बाहर होती हैं।

  • इन तरंगों का परावर्तन समय, ध्वनि की दिशा, और परिवर्तन से चमगादड़ को शिकार की स्थिति, आकार और गति का सटीक अनुमान हो जाता है।

  • चमगादड़ की यह क्षमता अत्यधिक सटीक होती है और उसे अपनी शिकार पकड़ने में मदद करती है, जिससे वह अंधेरे में भी बिना देखे शिकार पकड़ने में सक्षम होता है।

18. वस्तुओं को साफ़ करने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे करते हैं?

उत्तर:वस्तुओं को साफ़ करने के लिए पराध्वनि का उपयोग एक आधुनिक तकनीक है जिसे पराध्वनिक सफाई (Ultrasonic Cleaning) कहा जाता है। इस तकनीक में पराध्वनि तरंगों का उपयोग करके वस्तुओं की सतह पर जमे हुए गंदगी, धूल, तेल, जंग, या अन्य प्रदूषण को हटाया जाता है। यह प्रक्रिया बहुत प्रभावी होती है, खासकर उन वस्तुओं के लिए जो संवेदनशील होती हैं और जिन्हें सामान्य तरीकों से साफ़ नहीं किया जा सकता।

पराध्वनिक सफाई की प्रक्रिया:

  1. पराध्वनि तरंगों का उत्पादन: पराध्वनिक सफाई यंत्रों में एक विशेष ट्रांसड्यूसर (Transducer) होता है, जो उच्च आवृत्तियों की पराध्वनि तरंगों (Ultrasonic Waves) को उत्पन्न करता है। इन तरंगों की आवृत्ति आमतौर पर 20 kHz से 400 kHz के बीच होती है, जो मानव श्रवण सीमा से बाहर होती है।

  2. तरंगों का माध्यम में संचारण: जब पराध्वनि तरंगें किसी तरल माध्यम, जैसे पानी या अन्य घोल, में यात्रा करती हैं, तो वे अत्यधिक उच्च आवृत्तियों में दबाव और विरलन उत्पन्न करती हैं। यह प्रक्रिया कैविटेशन (Cavitation) कहलाती है, जिसमें छोटे बुलबुले या खाली स्थान उत्पन्न होते हैं।

  3. कैविटेशन और वस्तु की सफाई: जैसे ही ये बुलबुले एक निश्चित दबाव के तहत टूटते हैं, तो उनकी ऊर्जा बहुत तीव्र होती है। यह ऊर्जा वस्तु की सतह पर स्थित गंदगी, तेल, जंग, या अन्य प्रदूषकों को उखाड़ने के लिए काम करती है। यह प्रभाव वस्तु की सतह से गंदगी को हटाकर उसे पूरी तरह से साफ़ कर देता है।

  4. साफ़ीकरण प्रक्रिया: यह प्रक्रिया सामान्यत: पानी या किसी सफाई घोल में की जाती है। इसके अलावा, एक समय में कई वस्तुएँ सफाई के लिए रखी जा सकती हैं। पराध्वनिक सफाई का मुख्य लाभ यह है कि यह बहुत महीन और सटीक तरीके से काम करती है, और वस्तु की संरचना को नुकसान नहीं पहुँचाती।

पराध्वनिक सफाई के उपयोग:

  • जewelery: गहनों, अंगूठियों, और अन्य आभूषणों को पराध्वनि से साफ़ किया जाता है, जिससे उनकी चमक बनी रहती है और गंदगी, तेल, या धूल हट जाती है।

  • ऑटोमोटिव उद्योग: छोटे हिस्सों जैसे इंजन पार्ट्स, कार्बोरेटर, और तेल फिल्टर को पराध्वनिक सफाई द्वारा साफ़ किया जाता है।

  • इलेक्ट्रॉनिक्स: संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स और उपकरणों को सफाई में पराध्वनि का उपयोग किया जाता है, जैसे कि सर्किट बोर्ड्स, कनेक्टर्स, और इलेक्ट्रॉनिक घटक।

  • चश्मे और धूप का चश्मा: चश्मे और अन्य लेंस को पराध्वनिक सफाई द्वारा साफ़ किया जाता है ताकि वे धूल या गंदगी से मुक्त रहें और उनकी स्पष्टता बनी रहे।

  • औद्योगिक उपकरण और सर्जिकल उपकरण: यह तकनीक विभिन्न प्रकार के औद्योगिक और चिकित्सा उपकरणों को सफ़ा करने में भी उपयोगी है, जैसे सर्जिकल उपकरण, चिकित्सा उपकरण, और प्रयोगशाला उपकरण।

पराध्वनिक सफाई के लाभ:

  • मुलायम और संवेदनशील वस्तुओं पर कोई नुकसान नहीं: यह तकनीक बिना किसी नुकसान के बहुत सटीक तरीके से सफाई करती है।

  • कठिन और जटिल आकार वाली वस्तुओं पर भी सफाई: पराध्वनिक तरंगें कठिन से कठिन स्थानों तक पहुँच सकती हैं, जैसे कि मशीनों के जटिल हिस्से और छोटे-छोटे छेद।

  • समय और ऊर्जा की बचत: यह प्रक्रिया जल्दी और ऊर्जा की बचत करती है, जिससे उत्पादन के समय में भी कमी आती है।

19. सोनार की कार्यविधि तथा उपयोगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:सोनार (SONAR) का पूरा नाम Sound Navigation and Ranging है, जो एक तकनीकी उपकरण है जो ध्वनि तरंगों का उपयोग करके जल में वस्तुओं का पता लगाने, दूरी मापने और दिशा जानने के लिए किया जाता है। सोनार प्रणाली का उपयोग मुख्य रूप से समुद्री परिवहन, मछली पकड़ने, पनडुब्बियों के संचालन, और समुद्र तल का सर्वेक्षण करने के लिए किया जाता है।

सोनार की कार्यविधि:

  1. ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन: सोनार प्रणाली एक ट्रांसड्यूसर (transducer) का उपयोग करती है, जो उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों को उत्पन्न करती है। यह ध्वनि तरंगें जल में फैलती हैं और विभिन्न वस्तुओं से टकराकर परावर्तित होती हैं।

  2. तरंगों का परावर्तन: जब ध्वनि तरंगें पानी में स्थित किसी वस्तु (जैसे समुद्र तल, चट्टान, या पनडुब्बी) से टकराती हैं, तो वे परावर्तित हो जाती हैं। परावर्तित तरंगों को फिर से ट्रांसड्यूसर द्वारा संसूचित किया जाता है।

  3. समय मापना: ट्रांसड्यूसर द्वारा परावर्तित तरंगों को प्राप्त करने के बाद, सोनार प्रणाली उन तरंगों को प्राप्त करने और उत्सर्जित करने के बीच के समय का माप करती है।

  4. दूरी की गणना: सोनार प्रणाली परावर्तित तरंगों के लौटने के समय और पानी में ध्वनि की गति का उपयोग करके उस वस्तु तक की दूरी की गणना करती है।

    सूत्र:

    दूरी (d)=ध्वनि की गति (v)×समय (t)2\text{दूरी (d)} = \frac{\text{ध्वनि की गति (v)} \times \text{समय (t)}}{2}

    (यहाँ 2 का विभाजन इसलिए किया जाता है क्योंकि ध्वनि तरंगों को दोनों दिशाओं में यात्रा करनी होती है - एक बार यात्रा करने और एक बार लौटने के लिए।)

सोनार के उपयोग:

  1. समुद्री सर्वेक्षण:

    • सोनार का सबसे प्रमुख उपयोग समुद्र तल के सर्वेक्षण में होता है। यह समुद्र तल की गहराई, चट्टानों, घाटियों, और अन्य अवरोधों का पता लगाने में मदद करता है।

    • गहरी समुद्रों में पनडुब्बियों का मार्गदर्शन: पनडुब्बियों को अपनी स्थिति जानने और समुद्र के नीचे मौजूद वस्तुओं (जैसे, चट्टानें, डूबे हुए जहाज, अन्य पनडुब्बियाँ) का पता लगाने में मदद करता है।

  2. मछली पकड़ने में उपयोग:

    • मछली पकड़ने के जहाजों में सोनार का इस्तेमाल मछलियों के झुंडों का पता लगाने के लिए किया जाता है। सोनार द्वारा उत्पन्न ध्वनि तरंगें मछलियों के झुंड से टकराती हैं, और उनका परावर्तन मछली पकड़ने के जहाज तक पहुँचता है, जिससे मछली पकड़ने में मदद मिलती है।

  3. नौवहन में सहायता:

    • सोनार का इस्तेमाल समुद्र में जहाजों के सुरक्षित मार्गदर्शन के लिए किया जाता है। यह जहाजों को समुद्र के नीचे की स्थितियों के बारे में जानकारी देता है, जिससे दुर्घटनाओं से बचाव होता है।

  4. आधुनिक युद्ध में पनडुब्बियों और युद्धपोतों द्वारा उपयोग:

    • सोनार प्रणाली का प्रयोग पनडुब्बियों और युद्धपोतों द्वारा दुश्मन की पनडुब्बियों और जहाजों का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिए किया जाता है। पनडुब्बियाँ विशेष रूप से सोनार का उपयोग करके अपने आस-पास के क्षेत्रों में दुश्मन की गतिविधियों का पता लगाती हैं।

  5. नौका और समुद्री उपकरणों के निरीक्षण:

    • सोनार का उपयोग समुद्र में डूबे हुए जहाजों या अन्य समुद्री उपकरणों की तलाश करने और उनका निरीक्षण करने के लिए किया जाता है। यह उन उपकरणों के ठीक होने के लिए मददगार होता है जो समुद्र के नीचे स्थित होते हैं।

  6. समुद्र जीवविज्ञान में उपयोग:

    • समुद्र में रहने वाले जीवों का अध्ययन करने के लिए भी सोनार का उपयोग किया जाता है। वैज्ञानिक समुद्र में रहने वाले जीवों की गतिविधियों और उनके स्थानों का पता लगाने के लिए सोनार तरंगों का उपयोग करते हैं।

सोनार के प्रकार:

  1. एकल बिंब सोनार (Single Beam Sonar):

    • यह सोनार प्रणाली एकल ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन करती है और केवल एक दिशा में ध्वनि को प्राप्त करती है। यह समुद्र की गहराई मापने के लिए उपयोगी है।

  2. मल्टी बिंब सोनार (Multi-beam Sonar):

    • यह प्रणाली कई ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन करती है और विभिन्न दिशाओं से प्राप्त ध्वनि को मापती है। यह समुद्र तल के विस्तृत क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिए उपयोगी होती है।

  3. पानी के नीचे ध्वनि का पता लगाने वाला सोनार (Side-scan Sonar):

    • यह सोनार प्रणाली समुद्र तल के किनारे के पार्श्व का निरीक्षण करती है और वस्तुओं का विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती है, जैसे डूबे हुए जहाज, पत्थर, या अन्य अवरोध।


अतिरिक्त प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: सोनार क्या है और यह कैसे काम करता है?

उत्तर: सोनार का पूरा नाम Sound Navigation and Ranging है। यह एक तकनीक है जो ध्वनि तरंगों का उपयोग करके जल में वस्तुओं का पता लगाने, दूरी मापने और दिशा जानने के लिए की जाती है। सोनार में ट्रांसड्यूसर ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन करता है, जो किसी वस्तु से टकराकर परावर्तित होती हैं। फिर, परावर्तित ध्वनि तरंगों के लौटने के समय का माप लिया जाता है, और उस समय के आधार पर वस्तु की दूरी का पता चलता है।

प्रश्न 2: सोनार के क्या उपयोग हैं?

उत्तर: सोनार के कई महत्वपूर्ण उपयोग हैं:

  1. समुद्र तल का सर्वेक्षण: सोनार का उपयोग समुद्र तल की गहराई, चट्टानों, और अन्य अवरोधों का पता लगाने के लिए किया जाता है।

  2. मछली पकड़ने में: मछली पकड़ने के जहाजों में सोनार का इस्तेमाल मछलियों के झुंडों का पता लगाने के लिए किया जाता है।

  3. पनडुब्बियों और युद्धपोतों द्वारा उपयोग: पनडुब्बियाँ और युद्धपोत सोनार का इस्तेमाल दुश्मन की गतिविधियों का पता लगाने के लिए करती हैं।

  4. नौवहन में सहायता: सोनार का उपयोग जहाजों के मार्गदर्शन के लिए किया जाता है ताकि वे समुद्र में सुरक्षित रूप से यात्रा कर सकें।

  5. समुद्र जीवविज्ञान: समुद्री जीवों का अध्ययन करने के लिए भी सोनार का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 3: सोनार द्वारा प्राप्त ध्वनि तरंगों के लौटने के समय से दूरी कैसे मापी जाती है?

उत्तर: सोनार प्रणाली ध्वनि तरंगों के लौटने के समय और पानी में ध्वनि की गति का उपयोग करके उस वस्तु तक की दूरी की गणना करती है। यह सूत्र द्वारा किया जाता है:

दूरी (d)=ध्वनि की गति (v)×समय (t)2\text{दूरी (d)} = \frac{\text{ध्वनि की गति (v)} \times \text{समय (t)}}{2}

यहाँ 2 का विभाजन इसलिए किया जाता है क्योंकि ध्वनि तरंगों को दोनों दिशाओं में यात्रा करनी होती है - एक बार यात्रा करने और एक बार लौटने के लिए।

प्रश्न 4: सोनार के प्रकार क्या हैं?

उत्तर: सोनार के मुख्य प्रकार हैं:

  1. एकल बिंब सोनार (Single Beam Sonar): यह प्रणाली एकल ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन करती है और एक दिशा में ध्वनि को प्राप्त करती है। यह समुद्र की गहराई मापने के लिए उपयोगी है।

  2. मल्टी बिंब सोनार (Multi-beam Sonar): यह प्रणाली कई ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन करती है और विभिन्न दिशाओं से प्राप्त ध्वनि को मापती है। यह समुद्र तल के विस्तृत क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिए उपयोगी होती है।

  3. साइड-स्कैन सोनार (Side-scan Sonar): यह प्रणाली समुद्र तल के किनारे के पार्श्व का निरीक्षण करती है और वस्तुओं का विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती है, जैसे डूबे हुए जहाज, पत्थर, या अन्य अवरोध।

प्रश्न 5: सोनार का उपयोग समुद्र में युद्ध संचालन में कैसे किया जाता है?

उत्तर: सोनार का उपयोग पनडुब्बियाँ और युद्धपोत दुश्मन के पनडुब्बियों और जहाजों का पता लगाने, उनकी गतिविधियों पर नजर रखने और उनका मुकाबला करने के लिए करते हैं। यह ध्वनि तरंगों के माध्यम से दुश्मन की स्थिति को पहचानने में मदद करता है, जिससे सुरक्षा और रणनीतिक निर्णयों में सहूलत मिलती है।