Chapter 5.2 गुरुबानी
प्र.1. ‘मसु’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर: ‘मसु’ का अर्थ है स्याही।
प्र.2. गुरु जी ने मोह को किससे तुलना की है?
उत्तर: मोह को जलाकर उसकी राख को स्याही के समान माना है।
प्र.3. "मति कागदु करि सारु" का क्या भाव है?
उत्तर: यहाँ बुद्धि (मति) को कागज़ के समान माना गया है।
प्र.4. "भाउ कलम करि" का क्या अर्थ है?
उत्तर: प्रेम को कलम बनाना।
प्र.5. किसके स्मरण से मनुष्य हिंसा और अहंकार से मुक्त होता है?
उत्तर: प्रभु-नाम (हरि-नाम) के स्मरण से।
प्र.6. प्रभु की शक्ति और मर्यादा को कौन जान सकता है?
उत्तर: केवल प्रभु स्वयं।
प्र.7. गुरु नानक जी ने आकाश को किससे तुलना की है?
उत्तर: आकाश को आरती की थाली माना है।
प्र.8. सूर्य और चन्द्र को किस प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर: दीपक (दीप/प्रकाश) के रूप में।
प्र.9. पवन को किससे तुलना दी गई है?
उत्तर: पवन को चंवर झलने वाला बताया गया है।
प्र.10. ‘अनहता सबद वाजंत भेरी’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: अनहद नाद (शब्द) प्रभु की महिमा का ढोल बजा रहा है।
प्र.11. गुरु नानक जी ने जीवन को लिखने की उपमा कैसे दी है?
उत्तर: गुरु नानक जी कहते हैं कि मोह को जलाकर राख की स्याही बनाओ, बुद्धि को कागज़, प्रेम को कलम और मन को लेखक बनाओ। गुरु की शरण में चलकर सच्चे विचार लिखो। यह उपमा सिखाती है कि जीवन का सही लेखन तभी होगा जब मोह का त्याग कर गुरु की राह अपनाएँ।
प्र.12. गुरु जी ने नाम-स्मरण का महत्व क्यों बताया है?
उत्तर: गुरु नानक जी कहते हैं कि संसार में वही विरले लोग महान हैं, जो क्षण-क्षण प्रभु-नाम का स्मरण करते हैं। नाम-स्मरण से हिंसा और अहंकार मिट जाते हैं और शांति प्राप्त होती है।
प्र.13. ‘तेरी गति मिति तूहै जाणहि’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रभु की महिमा और शक्ति को केवल वही जान सकता है। कोई अन्य मनुष्य अथवा साधु उसकी पूर्ण सीमा का वर्णन नहीं कर सकता। प्रभु स्वयं गुप्त भी है और प्रकट भी है।
प्र.14. गुरु नानक जी ने साधक और सिद्धों के विषय में क्या कहा है?
उत्तर: उन्होंने कहा कि साधक और सिद्ध प्रभु को ढूँढते फिरते हैं, परंतु प्रभु नाम के बिना कोई पूर्णता नहीं पा सकता। प्रभु-नाम ही सबसे बड़ा खजाना है।
प्र.15. "गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने" पंक्ति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति में गुरु नानक जी ने सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रभु की आरती करते हुए दिखाया है। आकाश थाल है, सूर्य और चन्द्र दीपक हैं, तारकाएँ मोती हैं, पवन चंवर झल रहा है और वन-फूल प्रभु की ज्योति से खिल रहे हैं। यह एक ब्रह्मांडीय आरती का अद्भुत चित्र है।
प्र.16. गुरु नानक जी ने अहंकार और हिंसा से मुक्ति का मार्ग क्या बताया है?
उत्तर: उन्होंने प्रभु-नाम के स्मरण और गुरु की शरण को अहंकार व हिंसा से मुक्ति का मार्ग बताया। नाम-स्मरण से मन शुद्ध होता है और शांति मिलती है।
प्र.17. गुरु नानक देव जी ने प्रभु को गुप्त और प्रकट कैसे बताया है?
उत्तर: वे कहते हैं कि प्रभु स्वयं गुप्त भी है और प्रकट भी। वह अपने ही बनाये विविध रूपों और रंगों में प्रकट होकर खेल करता है।
प्र.18. "अनहता सबद वाजंत भेरी" का आध्यात्मिक भाव क्या है?
उत्तर: इसका भाव यह है कि ब्रह्मांड में अनहद नाद निरंतर गूँज रहा है। यह नाद प्रभु की महिमा का प्रतीक है। इसे केवल आत्मिक साधना द्वारा ही सुना जा सकता है।
प्र.19. इस पाठ में गुरु नानक जी ने किस प्रकार की आरती का चित्रण किया है?
उत्तर: उन्होंने प्राकृतिक और ब्रह्मांडीय आरती का चित्रण किया है। यहाँ आरती दीपकों और थाल से नहीं, बल्कि सूर्य, चन्द्र, तारकाओं, पवन और फूलों के माध्यम से हो रही है।
प्र.20. इस वाणी से हमें कौन-सा मुख्य संदेश मिलता है?
उत्तर: हमें सिखाया जाता है कि –
मोह और अहंकार त्यागें,
प्रभु-नाम का स्मरण करें,
गुरु की शरण में चलें,
और प्रकृति को प्रभु की महिमा मानकर जीवन में विनम्रता और शांति लाएँ।
Answer by Dimpee Bora