Chapter 6

प्र.1. यह अंश किस निबंध-संग्रह से लिया गया है?

 उत्तर: 'बाजे पायलिया के घुँघरू' निबंध-संग्रह से।


प्र.2. सुधारक का सत्य कैसा होता है?

उत्तर: सुधारक का सत्य लोकोत्तर होता है।


प्र.3. सुधारक किसके करने में जुटा रहता है?

उत्तर: सत्य के सूक्ष्म-से-सूक्ष्म अर्थों और फलितार्थों के करने में।


प्र.4. समय बीतने पर लोग सुधारक के क्या बनाने लगते हैं?

 उत्तर: लोग सुधारक के स्मारक और मंदिर बनाने लगते हैं।


प्र.5. सुधारक के सत्य के साथ लोग क्या करते हैं?

 उत्तर: लोग उसके सत्य के ग्रंथ और भाष्य लिखने लगते हैं।


प्र.6. लेखक के अनुसार, सुधारक और उसके सत्य की पराजय कब होती है?

उत्तर: जब उसके सत्य को भूलकर केवल स्मारक और भाष्य बना दिए जाते हैं।


प्र.7. ‘पाप का ब्रह्मास्त्र’ किसे कहा गया है?

 उत्तर: सुधारक के सत्य को परंपराओं और स्मारकों में बदल देना।


प्र.8. यह पाप का ब्रह्मास्त्र अतीत में कैसा रहा है?

 उत्तर: अजेय रहा है।


प्र.9. वर्तमान में यह पाप का ब्रह्मास्त्र कैसा है?

 उत्तर: वर्तमान में भी अजेय है।


प्र.10. भविष्य के बारे में लेखक क्या शंका व्यक्त करता है?

उत्तर: भविष्य में भी इसकी अजेयता टूट पाएगी या नहीं, कोई नहीं कह सकता।


प्र.11. ‘लोकोत्तरता’ का क्या अर्थ है?

 उत्तर: लोक या परंपरा से ऊपर, उच्च और गहन भाव।


प्र.12. सुधारक की पराजय का कारण क्या बताया गया है?

 उत्तर: उसके सत्य को छोड़कर केवल प्रतीकों और स्मारकों में उलझ जाना।


प्र.13. सत्य के ग्रंथ और भाष्य बनने का क्या परिणाम होता है?

 उत्तर: मूल सत्य दब जाता है और उसका सार खो जाता है।


प्र.14. सुधारक का काम क्या होता है?

 उत्तर: समाज को सही दिशा देना और सत्य के सूक्ष्म अर्थ स्पष्ट करना।


प्र.15. लेखक किस प्रवृत्ति की आलोचना कर रहा है?

 उत्तर: सुधारकों के विचारों को भूलकर केवल उनकी पूजा और स्मारक बनाने की।

प्र.16. लेखक के अनुसार सुधारक का सत्य कैसा होता है?

 उत्तर: सुधारक का सत्य लोकोत्तर और गहन होता है। वह सतही नहीं, बल्कि सूक्ष्म-से-सूक्ष्म अर्थों और फलितार्थों में छिपा रहता है। सुधारक का जीवन और कर्म उसी सत्य को साकार करने में बीतता है।


प्र.17. सुधारक के स्मारक और मंदिर बनने का क्या परिणाम होता है?

 उत्तर: जब सुधारक के विचारों को लोग त्यागकर केवल स्मारक और मंदिर बनाने लगते हैं, तो उसका मूल संदेश खो जाता है। समाज केवल बाहरी रूप में उलझकर सुधारक और उसके सत्य की पराजय कर देता है।


प्र.18. सुधारक के सत्य के ग्रंथ और भाष्य बनने से उसका पराभव कैसे होता है?

 उत्तर: ग्रंथ और भाष्य बनने पर लोग केवल परंपरागत व्याख्या तक सीमित हो जाते हैं। मूल सत्य जीवित न रहकर बंधा-बंधाया रूप ले लेता है और उसका क्रांतिकारी स्वरूप समाप्त हो जाता है।


प्र.19. लेखक ने ‘पाप का ब्रह्मास्त्र’ किसे कहा और क्यों?

 उत्तर: लेखक ने सुधारक के सत्य को प्रतीकों, ग्रंथों और स्मारकों में बाँध देने को ‘पाप का ब्रह्मास्त्र’ कहा है। क्योंकि इससे सुधारक का जीवंत संदेश नष्ट हो जाता है और समाज फिर से जड़ता में लौट जाता है।


प्र.20. लेखक के अनुसार अतीत में यह ब्रह्मास्त्र कैसा रहा है?

 उत्तर: अतीत में यह पाप का ब्रह्मास्त्र हमेशा अजेय रहा है। हर युग में सुधारकों के विचार धीरे-धीरे परंपराओं और संस्थानों में बदलकर निष्प्रभावी हो गए।


प्र.21. वर्तमान समय में इस ब्रह्मास्त्र की स्थिति कैसी है?

 उत्तर: वर्तमान में भी यह ब्रह्मास्त्र अजेय है। आज भी सुधारकों के विचारों की बजाय उनके स्मारक, मूर्तियाँ और संस्थाएँ अधिक महत्व पा रही हैं।


प्र.22. भविष्य के बारे में लेखक ने क्या कहा है?

 उत्तर: लेखक कहता है कि भविष्य में भी यह निश्चित नहीं है कि कोई इस अजेयता को तोड़ सकेगा या नहीं। यह शंका बनी रहती है।


प्र.23. इस अंश में समाज की कौन-सी प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है?

 उत्तर: समाज की उस प्रवृत्ति पर व्यंग्य है जिसमें लोग सुधारक के मूल विचारों को भूलकर केवल उनकी पूजा और प्रतीकात्मक स्मारकों में उलझ जाते हैं।


प्र.24. ‘लोकोत्तरता में समाया रहता है’ – इसका भाव स्पष्ट कीजिए।

 उत्तर: इसका भाव यह है कि सुधारक का सत्य सामान्य जनजीवन की परंपराओं में नहीं, बल्कि उनसे ऊपर और गहनता में छिपा होता है।

प्र.25. लेखक सुधारक और सत्य की पराजय को कैसे परिभाषित करता है?


उत्तर: सुधारक और उसके सत्य की पूरी पराजय हो जाती है।


प्र.26. अतीत में सुधारकों के सत्य के साथ क्या हुआ?


 उत्तर: अतीत में सभी सुधारकों के सत्य धीरे-धीरे परंपरा और संस्थागत रूप में बदल गए। उनके मूल विचार खो गए और समाज फिर से रूढ़ियों में बँध गया।


प्र.27. इस अंश से लेखक का दृष्टिकोण क्या झलकता है?

 उत्तर: लेखक का दृष्टिकोण आलोचनात्मक और यथार्थवादी है। वह समाज की जड़ता और पाखंडी प्रवृत्ति की निंदा करता है।


प्र.28. इस अंश में लेखक का निराशा भाव किस प्रकार प्रकट होता है?

 उत्तर: लेखक को लगता है कि यह पाप का ब्रह्मास्त्र अतीत और वर्तमान में अजेय रहा है, और शायद भविष्य में भी अजेय ही रहेगा। इससे लेखक की निराशा झलकती है।


प्र.29. सुधारक के सत्य की मृत्यु कैसे होती है?

 उत्तर: जब समाज सत्य को समझने और जीने की बजाय केवल परंपरागत स्मारकों और संस्थाओं में बाँध देता है, तब सुधारक का सत्य मृतप्राय हो जाता है।


प्र.30. इस अंश का मुख्य संदेश लिखिए।

उत्तर: मुख्य संदेश यह है कि हमें सुधारक के विचारों और सत्य को जीवित रखना चाहिए, न कि केवल स्मारक और मंदिर बनाकर उन्हें औपचारिकता में बदल देना चाहिए।

Answer by Dimpee Bora