Chapter- 11 स्वामी विवेकानंदांची भारतवात्रा
1. स्वामी विवेकानंद का ध्यान सागर के बीच स्थित शिलाखंड पर क्यों गया?
उ. सागर के बीच लगभग डेढ़ फ़रलांग दूरी पर दो ऊँचे शिलाखंड दिखाई दिए, जो पानी से काफी ऊपर थे। स्वामीजी ने समझा कि भारत का वास्तविक अंतिम भू–भाग वही है और वहाँ जाकर भारतयात्रा को समर्पित करना चाहिए, इसलिए उनका ध्यान वहाँ गया।
2. नावाडों ने शिलाखंड के बारे में क्या बताया?
उ. नावाडों ने स्वामीजी से कहा कि उस शिलाखंड को “श्रीपादशिला” कहा जाता है और वह कन्याकुमारी के तट से दूर समुद्र के बीच स्थित पवित्र स्थान है।
3. स्वामी विवेकानंद शिलाखंड तक नाव से क्यों नहीं जा सके?
उ. स्वामीजी ने नाव माँगी, लेकिन नावाडों ने पाँच पैसे माँगे। स्वामीजी संन्यासी थे और उनके पास कोई धन नहीं था, इसलिए नावाडों ने उन्हें ले जाने से मना कर दिया।
4. स्वामी विवेकानंद ने नाव ना मिलने पर क्या निर्णय लिया?
उ. नाव ना मिलने पर उन्होंने बिना संकोच समुद्र में छलांग लगाई और तैरते हुए शिलाखंड तक पहुँच गए।
5. समुद्र पार करते समय स्वामी विवेकानंद को किस खतरे की जानकारी नहीं थी?
उ. उन्हें उस समय यह मालूम नहीं था कि कन्याकुमारी के समुद्र में शार्क मछलियाँ होती हैं और उनके जबड़े बहुत खतरनाक और शक्तिशाली होते हैं।
6. नावाडों को बाद में कैसा लगा?
उ. नावाडों को बहुत दुख हुआ कि उन्होंने पाँच पैसों के लिए महान संन्यासी को मना कर दिया। वे बार-बार खाने का सामान लेकर पुकारने जाते, लेकिन स्वामीजी भावसमाधि में डूबे रहने के कारण सुन नहीं पाते थे।
7. स्वामी विवेकानंद के अनुसार प्रतिकूलता मनुष्य के लिए कैसे लाभदायक है?
उ. वे कहते हैं कि जितना विरोध और संघर्ष होगा, उतना ही मनुष्य का अंतःस्थ अग्नि और चेतना प्रज्वलित होती है। अनुकूलता मनुष्य को कोमल और कमजोर बना देती है, जबकि संघर्ष से जीवन में क्षमता विकसित होती है।
8. स्वामी विवेकानंद शिलाखंड पर कितने समय तक रहे?
उ. वे तीन दिन और तीन रातों तक शिलाखंड पर रहे।
9. शिलाखंड पर रहते हुए स्वामी विवेकानंद किसका चिंतन करते रहे?
उ. वे लगातार भारतमाता और देश की गरीब, दुःखी और पीड़ित जनता के बारे में चिंतन कर रहे थे।
10. स्वामी विवेकानंद को भारत की जनता के बारे में क्या अनुभूति हुई?
उ. उन्हें स्पष्ट समझ में आया कि देश में बहुत से लोग भूखे हैं और उन्हें भोजन तक नहीं मिलता। ऐसे लोगों को केवल वेदांत का उपदेश देना व्यर्थ है।
11. ‘भाकरीची भ्रांत असताना वेदान्त सांगणे धादांत खोटे आहे’ इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उ. जब मनुष्य भूखा है और भोजन की चिंता में है, तब दर्शन, अध्यात्म या ऊँची बातें सुनाना बेकार है। पहले उसकी मूल ज़रूरत—भोजन—पूरी होनी चाहिए।
12. स्वामी विवेकानंद के मत में वास्तविक धर्म कैसा होना चाहिए?
उ. वास्तविक धर्म सूर्य की तरह होना चाहिए, जो बिना भेदभाव के सभी पर प्रकाश और कल्याण बरसाता है।
13. स्वामीजी के समुद्र में कूदने की घटना उनके व्यक्तित्व के कौन-से गुण दर्शाती है?
उ. साहस, निडरता, दृढ़ निश्चय, तपस्या और लक्ष्य के प्रति समर्पण।
14. नावाडों का व्यवहार स्वामीजी के मन में नकारात्मक भाव पैदा कर सकता था, लेकिन इसके विपरीत क्या हुआ?
उ. नकारात्मकता के बजाय उस विरोध ने स्वामीजी के संकल्प और अंतःस्थ शक्ति को और प्रज्वलित किया, जिससे वे और अधिक दृढ़ बने।
15. पाठ के अनुसार कठिनाई और संघर्ष का मनुष्य के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उ. कठिनाइयाँ और संघर्ष व्यक्ति को मजबूत, परिश्रमी और भविष्य के लिए सक्षम बनाते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियाँ उसकी आंतरिक शक्ति को जगाती हैं।
16. स्वामी विवेकानंद के मन में भारत के भविष्य को लेकर कौन-सी दृष्टि बनी?
उ. उन्होंने समझा कि देश को केवल आध्यात्मिक उपदेश नहीं, बल्कि भूख से छुटकारा, सामाजिक उत्थान और जनकल्याण की आवश्यकता है।
17. स्वामी विवेकानंद कौन-सा महान संदेश देकर उभरे?
उ. उन्होंने कहा कि मनुष्य की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के बिना आध्यात्मिकता को लागू नहीं किया जा सकता — पहले अन्न, फिर अध्यात्म।
18. नावाडों की गलती से कौन-सा नैतिक संदेश मिलता है?
उ. लालच मनुष्य से सद्भाव छीन लेता है। छोटी-सी स्वार्थप्रेरणा हमें महान व्यक्तियों की पहचान करने से भी रोक देती है।
19. शिलाखंड पर स्वामी विवेकानंद की साधना भारतीय इतिहास में क्यों महत्वपूर्ण है?
उ. इसी साधना के दौरान भारत के उत्थान की संकल्पना आकार में आई और आगे चलकर विश्वप्रसिद्ध शिकागो भाषण और रामकृष्ण मिशन की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।
20. स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारतीय समाज की सबसे बड़ी समस्या क्या थी?
उ. गरीबी और भूख — जिससे लाखों लोग भोजन के लिए संघर्ष कर रहे थे।
21. स्वामीजी के चिंतन से यह सिद्ध होता है कि वे किस प्रकार के नेता थे?
उ. वे केवल आध्यात्मिक गुरु नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारक, मानवतावादी और राष्ट्रनिर्माण के प्रेरक थे।
22. स्वामीजी के कार्य सिद्धांत में आध्यात्म और समाजसेवा का कैसा समन्वय देखा जाता है?
उ. उन्होंने माना कि आध्यात्म तभी सार्थक है जब वह मनुष्य के दुख और गरीबी को दूर करने के कार्य से जुड़ा हो।
23. शिलाखंड पर तीन दिन की मौन साधना ने स्वामी विवेकानंद को किस निर्णय तक पहुँचाया?
उ. मानव कल्याण, सेवा और राष्ट्रोत्थान के लिए जीवन समर्पित करने के निर्णय तक।
24. विरोध और उपेक्षा ने स्वामी विवेकानंद के जीवन में क्या भूमिका निभाई?
उ. उन्होंने हर विरोध को प्रेरणा में बदलकर अपनी ताकत बनाई और समाज को संघर्ष से न घबराने की शिक्षा दी।
25. पाठ से क्या प्रमाण मिलता है कि स्वामी विवेकानंद त्याग और सेवा की मूर्ति थे?
उ. धन नहीं होते हुए भी उन्होंने जिद या क्रोध नहीं किया; बल्कि भूखे-गरीबों की पीड़ा के लिए मन समर्पित किया और उनके उत्थान को अपना लक्ष्य बनाया।
26. स्वामी विवेकानंद की कन्याकुमारी साधना का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उ. इससे राष्ट्रीय चेतना को नई दिशा मिली और भारतीय युवाओं तथा समाज में सेवा, संघर्ष और आत्मबल की भावना प्रज्वलित हुई।
27. स्वामीजी की यह घटना आज के युवाओं को क्या शिक्षा देती है?
उ. संघर्ष से नहीं घबराना चाहिए; लक्ष्य के लिए पूरी ताकत से प्रयास करना चाहिए; और सफलता के लिए बलिदान की भावना जरूरी है।
28. ‘संघर्ष अंतःस्थ चेतना को जगाता है’ — उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उ. नावाडों के मना करने से स्वामीजी को संघर्ष करना पड़ा, लेकिन उसी संघर्ष ने उनकी आंतरिक शक्ति को जागृत किया और वे समुद्र में कूदकर लक्ष्य तक पहुँचे। संघर्ष ने उनके संकल्प को और दृढ़ किया।
29. स्वामीजी की कन्याकुमारी साधना आज के समाज के लिए क्यों प्रासंगिक है?
उ. आज भी लोगों को आध्यात्म, धर्म और उपदेश देने से पहले जीवन की मूल आवश्यकताएँ — भोजन, शिक्षा, और सम्मान — सुनिश्चित करनी चाहिए।
30. इस पाठ का मुख्य संदेश क्या है?
उ. जहाँ संघर्ष होता है, वहाँ शक्ति जन्म लेती है; और सच्चा धर्म वही है जो मानव सेवा, मानव उत्थान और सार्वभौमिक कल्याण का मार्ग दिखाए।