Chapter- 7                        दुपार


1. प्रश्न : दुपहर की रोशनी किस पर्वतरांग को तेज से नहलाती है?

उत्तर : दुपहर की तेज रोशनी हिमालय और आल्प्स जैसे विश्वप्रसिद्ध पर्वतरंगों पर पड़ते ही वहाँ की बर्फ चमक उठती है। धूप की चमक इतनी प्रखर होती है कि दूर से देखने पर लगता है मानो पूरी पर्वतरांग सोने-चाँदी की तरह आभा बिखेर रही हो। दुपहर का प्रकाश इन बर्फाच्छादित चोटियों को अपने तेज से धोकर और अधिक उज्ज्वल और भव्य बना देता है।


2. प्रश्न : दुपहर की गर्मी से कौन-सी प्रक्रिया शुरू होती है?

उत्तर : दुपहर की गर्मी बढ़ते ही पर्वतों पर जमी बर्फ पिघलने लगती है। जैसे-जैसे सूर्य ऊँचाई पर पहुँचता है, उसकी तीव्र किरणें बर्फ को नरम बनाती हैं और वह धीरे-धीरे जल में बदलने लगती है। यही पिघलने की प्रक्रिया आगे जाकर प्राकृतिक जल–चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनती है।


3. प्रश्न : बर्फ दुपहर के रौद्ररूप से क्यों चकित होती है?

उत्तर : दुपहर के रौद्ररूप का अर्थ है उसकी तपती, तीखी और अत्यधिक गर्म किरणें। जब यह प्रखर गर्मी अचानक ठंडी और कठोर बर्फ पर पड़ती है, तब बर्फ तुरंत प्रतिक्रिया करती है और तेजी से पिघलने लगती है। इस अचानक परिवर्तन को देखकर बर्फ के ‘चकित’ होने का रूपक प्रयोग किया गया है।


4. प्रश्न : पिघली हुई बर्फ का पानी पहले कहाँ जाता है?

उत्तर : बर्फ पिघलकर सबसे पहले पहाड़ी ढलानों पर छोटे-छोटे रास्तों से नीचे की ओर बहने लगता है। यह पानी पतली धाराओं के रूप में एकत्र होकर ओहलों में परिवर्तित होता है। ओहले ही इस पिघले पानी का पहला विश्राम–स्थल होता है।


5. प्रश्न : ओहले का पानी आगे कहाँ मिलता है?

उत्तर : ओहले में बहता पानी धीरे-धीरे नीचे उतरते हुए बड़े जलप्रवाहों की ओर बढ़ता है। कई ओहलों का पानी मिलकर एक बड़े बहाव का रूप ले लेता है और अंततः वह नदी में जाकर समाहित हो जाता है।


6. प्रश्न : बिना बारिश के नदी कैसे उफान पर आती है?

उत्तर : बारिश न होने के बावजूद पहाड़ों पर मौजूद विशाल बर्फ दुपहर की गर्मी में लगातार पिघलती रहती है। यह पिघला हुआ पानी बड़ी मात्रा में नीचे बहकर नदी को भर देता है। इस प्रकार, केवल दुपहर की गर्मी ही नदी को उफान पर लाने के लिए पर्याप्त सिद्ध होती है।


7. प्रश्न : किसान क्यों खुश होता है?

उत्तर : नदी के पानी से खेतों को सिंचाई मिलती है। जब किसान देखता है कि नदी में पर्याप्त जल है और खेतों में पानी की कमी नहीं पड़ेगी, तब वह खुशी से भर उठता है। वह विश्वास करता है कि उसके गेहूं, धान और अन्य फसलों की उपज इस वर्ष दाणेदार और भरपूर होगी।


8. प्रश्न : लेखक दुपहर को कर्तृत्ववान क्यों कहता है?

उत्तर : लेखक ने दुपहर को कर्तृत्ववान इसलिए कहा है क्योंकि वह प्रकृति में गति भर देती है। दुपहर गतिविधि का समय है, जब मनुष्य, पशु, वनस्पति और प्राकृतिक तत्व सभी अपने कार्य में लगे रहते हैं। दुपहर अपने तेज और ऊर्जा से काम करने की प्रेरणा देती है, इसलिए वह कर्तृत्वशील मानी गई है।


9. प्रश्न : दुपहर मनुष्य के लिए कौन-सी दो भूमिकाएँ निभाती है?

उत्तर : दुपहर मनुष्य की हितकर्ता है क्योंकि वह उसकी आवश्यकताओं, जैसे जल और प्रकाश, की पूर्ति में मदद करती है। साथ ही, वह रक्षक भी है क्योंकि अपने तेज से वातावरण में मौजूद हानिकारक कीट और जीवाणुओं का नाश कर स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करती है।


10. प्रश्न : दुपहर अपने तेज से क्या नष्ट करती है?

उत्तर : दुपहर की तीव्र धूप हवा में मौजूद अनेक हानिकारक कीट, कीड़े और सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती है। धूप की गर्मी इन जीवों के लिए प्रतिकूल होती है, जिससे वे समाप्त हो जाते हैं और वातावरण अधिक स्वच्छ एवं स्वास्थ्यकर बन जाता है।


11. प्रश्न : दुपहर उदास क्यों नहीं कहलाती?

उत्तर : दुपहर सजीवता का प्रतीक है। उसके आने से ऊर्जा का संचार होता है, प्रकृति सक्रिय हो उठती है और मनुष्य में भी काम करने का उत्साह भर जाता है। इसीलिए उसे उदास नहीं बल्कि उत्साह, उल्लास और चेतना का रूप कहा गया है।


12. प्रश्न : दुपहर को ‘सकाळनंतर येणारी दीर्घ कर्तृत्ववाहिनी’ क्यों कहा है?

उत्तर : सुबह के बाद दिन का सबसे अधिक सक्रिय और कार्यशील समय दुपहर का होता है। यही वह समय है जब संसार में अधिकांश गतिविधियाँ संचालित होती हैं। इस कारण इसे कर्तृत्व को आगे ले जाने वाली दीर्घ धाराएँ कहा गया है।


13. प्रश्न : दुपहर सृष्टि को कार्यप्रवण कैसे बनाती है?

उत्तर : दुपहर का तापमान और उजाला जीवों में आलस्य को मिटा देता है। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण में अधिक सक्रिय होते हैं, नदियाँ तेज बहती हैं, किसान खेत में मेहनत करता है और मनुष्य अपने दैनिक कार्यों में लग जाता है। इस प्रकार दुपहर संपूर्ण सृष्टि को काम करने के लिए प्रेरित करती है।


14. प्रश्न : दुपहर वैभव की राह कैसे दिखाती है?

उत्तर : दुपहर मेहनत और कर्म का समय है। जो व्यक्ति इस समय का सदुपयोग करता है, वह समृद्धि और सफलता की ओर बढ़ता है। दुपहर इसलिए वैभव का मार्ग दिखाने वाली कही गई है।


15. प्रश्न : दुपहर संध्या अच्छी जाने के लिए क्या करवाती है?

उत्तर : दिन का अच्छा परिणाम तभी संभव है जब दुपहर में पूरा परिश्रम किया जाए। इसलिए दुपहर मनुष्य को प्रेरित करती है कि वह दिन ढलने तक पूरे मन से काम करे ताकि शाम संतोषजनक हो।


16. प्रश्न : दुपहर का तेज अशुभ और अमंगल का नाश कैसे करता है?

उत्तर : दुपहर की धूप में इतनी तीव्रता होती है कि वह अंधकार और नमी से पनपने वाले सभी हानिकारक जीवों का सफाया कर देती है। कीटाणु मर जाते हैं, वातावरण स्वच्छ हो जाता है और यह स्वच्छता ही अमंगल का नाश मानी गई है।


17. प्रश्न : पर्वत की चोटियाँ दुपहर में ‘धापा टाकने’ क्यों लगती हैं?

उत्तर : दुपहर की गर्म हवा और सूर्य का ताप पर्वत पर मौजूद बर्फ को पिघला देता है। इससे चोटियों पर बदलाव दिखने लगते हैं, जैसे कि वे गर्मी की साँसों से थक रही हों। इसी दृश्य को ‘धापा टाकना’ कहा है।


18. प्रश्न : दुपहर में होने वाला ‘जादू’ क्या है?

उत्तर : दुपहर के जादू से आशय है बर्फ का पानी में बदल जाना, छोटे-छोटे ओहलों का बनना, नदियों का भरना और बिना बारिश के जल की उपलब्धता। यह प्राकृतिक क्रिया चमत्कार जैसी प्रतीत होती है।


19. प्रश्न : ओहला क्या होता है?

उत्तर : ओहला पहाड़ों से निकलने वाली छोटी, पतली और सरकती हुई जलधारा को कहते हैं। यह बर्फ के पिघले हुए पानी से बनती है और आगे चलकर नदी का आधार बन जाती है।


20. प्रश्न : दुपहर को ‘हितकर्ती’ क्यों कहा गया है?

उत्तर : दुपहर हित करती है क्योंकि वह जल लाती है, वातावरण को शुद्ध रखती है, प्रकृति में सक्रियता भरती है और जीवन के विकास के लिए आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध कराती है।


21. प्रश्न : दुपहर चेतना क्यों कहलाती है?

उत्तर : दुपहर का प्रकाश जीवन में जागरूकता लाता है। यह मनुष्य को सक्रिय करता है, आलस्य दूर करता है और प्रकृति की हर वस्तु को जीवंत बना देता है। इसलिए दुपहर को चेतना का प्रतीक माना गया है।


22. प्रश्न : समुद्र के जल की वाष्प किस प्रक्रिया को चलाती है?

उत्तर : समुद्र का पानी गर्म होकर वाष्पित होता है, बादल बनाता है, फिर पर्वतों पर जाकर बर्फ बनता है। इसी वाष्प-उत्सर्जन, संघनन और वर्षण की प्रक्रिया को वर्षा चक्र कहा जाता है।


23. प्रश्न : दुपहर प्रकृति में कौन-सा चक्र गतिमान रखती है?

उत्तर : दुपहर जल-चक्र को सक्रिय रखती है। वही बर्फ को पिघलाती है, वही नदी को भरती है और उसी से जल फिर समुद्र तक पहुँचकर पुनः चक्र पूरा करता है।


24. प्रश्न : किसान दुपहर का धन्यवाद क्यों देता है?

उत्तर : खेत को पानी मिलने का अर्थ है फसल का सुरक्षित होना। जब दुपहर की गर्मी से नदियाँ बहती हैं, तब किसान को अपने परिश्रम का फल मिलने की आशा होती है। इसी लिए वह दुपहर का आभारी रहता है।


25. प्रश्न : दुपहर पर्वतों को ‘प्रसव’ क्यों कराती है?

उत्तर : दुपहर की गर्मी से बर्फ के टुकड़े ऐसे पिघलते हैं जैसे कि पर्वत की गोद से पानी के थेंब उत्पन्न हो रहे हों। इस प्राकृतिक घटना को कवि ने ‘प्रसव’ का रूपक देकर और भी प्रभावी बना दिया है।


26. प्रश्न : दुपहर वातावरण को स्वच्छ कैसे बनाती है?

उत्तर : दुपहर के ताप से हवा शुष्क और गर्म होती है। इससे कीटाणु नष्ट होते हैं और वातावरण में मौजूद गीलीपन कम हो जाता है। इस प्रकार वातावरण शुद्ध और रोगमुक्त बन जाता है।


27. प्रश्न : दुपहर दैनिक जीवन में कौन-सी प्रेरक शक्ति है?

उत्तर : दुपहर मनुष्य को श्रम, दृढ़ता और लगन के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। यह समय दैनिक जीवन का सबसे उत्पादक और सक्रिय समय माना जाता है।


28. प्रश्न : दुपहर पर्वतों और प्रकृति को कैसे नहलाती है?

उत्तर : दुपहर का उज्ज्वल प्रकाश पूरे वातावरण पर फैलता है। पर्वत, बर्फ, पेड़-पौधे, नदी—सब कुछ इस प्रकाश से चमक उठते हैं, मानो प्रकृति दुपहर द्वारा स्नान कर रही हो।


29. प्रश्न : दुपहर को ‘शतशः प्रणाम’ क्यों किए गए हैं?

उत्तर : क्योंकि दुपहर अपने तेज से जीवन को दिशा देती है, प्रकृति को सक्रिय रखती है, बर्फ को पिघलाकर जल उपलब्ध कराती है और संसार को स्वच्छ तथा जीवंत बनाती है। इन उपकारों के लिए उसे सौ-सौ प्रणाम किए गए हैं।


30. प्रश्न : इस पूरे गद्यांश का मुख्य संदेश क्या है?

उत्तर : इस गद्यांश का मुख्य संदेश यह है कि दुपहर संसार में ऊर्जा, गति, कार्य और जीवन का मूल स्रोत है। वही प्रकृति को कार्यशील बनाती है और मनुष्य तथा खेती—दोनों को समृद्धि की ओर ले जाती है।

Answer by Dimpee Bora