नींव की ईंट

पूर्ण वाकय् में उत्तर दो : (1 marks)

(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गांव में हुआ था।

(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएं क्यों करनी पड़ी थी?
उत्तर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में जुड़े होने और अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने के जुर्म में जेल की यात्राएं करनी पड़ी थी।

(ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था?
उत्तर: 1968 मैं।

(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः किस पर टिकी होती है?
उत्तर: अपनी नींव पर टिकी होती है।

(ड॰) दुनिया का ध्यान सामान्यतः किस पर जाता है?
उत्तर: दुनिया का ध्यान सामान्यतः ऊपरी आवरण और चमक पर जाता है।

(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा?
उत्तर: इसका परिणाम नींव के ऊपर जितने भी इमारते हैं वें सभी धारा शाही होकर गिर पड़ेंगे।

(छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है?
उत्तर: बलिदान खोजती है।

(ज) लेखक के अनुसार गिरिजाघरों के कलश वस्तुतः किनकी शहादत से चमकते हैं?
उत्तर: उन अनेक अनाम लोगों की शहादत से चमकते हैं, जिन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार में खुद को समर्पित कर दिया।

(झ) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है?
उत्तर: आज इमारत का कंगूरा बनने, यानी अपने आपको प्रसिद्ध करने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है।

(‌‌‍‍‌ ) पठित निबंध में 'सुंदर इमारत' का आशय क्या है?
उत्तर: नया सुंदर समाज।

अति संक्षिप्त उत्तर दो: 2-3 marks
(क) मनुष्य  सत्य से क्यों भागता है?
उत्तर: सत्य हमेशा कठोर अर्थात कड़वा होता है। अक्सर सत्य झूठ का पर्दाफाश कर देता है। कठोरता और भद्दापन एक साथ पनपते हैं। इसी कारण मनुष्य कठोरता से बचने और भद्देपन से मुख मोड़ने के लिए सत्य से भागता है।

(ख) लेखक के अनुसार कौन सी ईंट अधिक धन्य है?
उत्तर: लेखक के अनुसार वह ईंट जो इमारत को मजबूत करने और बाकी ईंटो को आसमान छूने का मौका देते हुए  खुद जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ जाती है और खुद को दूसरों के लिए बलिदान कर देती है, वह ईंट धन्य है।

(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है?
उत्तर: नींव की ईंट ही वह ईंट है, जो इमारत की मजबूती और दृढ़ता को  बनाएं रखती है। बाकी सभी ईंट नींव की ईंट पर ही निर्भर करती है। इसीलिए हम यह कह सकते हैं कि नींव की ईंट की भूमिका ही सबसे  महत्वपूर्ण होती है।

(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।
उत्तर: कंगूरे की ईंट इमारत की ऊपरी खूबसूरती को दर्शाती है, तथा वह अपनी बनावट एवं खूबसूरती से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होती है।

(ड॰) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?
उत्तर: शहादत का लाल सेहरा वे लोग पहनते हैं, जो देश के लिए अपना अस्तित्व निछावर कर देते हैं। ताकि बाकी लोग इस संसार का लुफ्त अच्छी तरह उठा सके।

(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे?
उत्तर: लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन लोगों ने अमर बनाया जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में स्वयं को बलिदान कर दिया। बिना स्वार्थ के वे हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गए, कई तो जंगलों में भटकते हुए जंगली जानवरों का शिकार बन गए। अपने बलिदान के बल पर उन्होंने ईसाई धर्म को अमर बनाया। उन्होंने कभी नाम कमाने या प्रसिद्ध होने की चाहत नहीं रखी। आज इसाई धर्म उन्हीं की देन है।

(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?
उत्तर: आज हमारे देश के नौजवानों के सामने यह चुनौती है कि वे समाज का नव-निर्माण करें और निर्माण करते वक्त इमारत का कंगूरा बनने की बजाएं नीव की ईट बनने का इरादा एवं साहस रखें। ताकि उनके हाथों एक सुंदर भविष्य का निर्माण हो।

संक्षिप्त उत्तर दो: 4-5 marks
(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता?
उत्तर: सुंदरता हमेशा दूसरों को अपनी और आकर्षित करता है। इमारत के कंगूरे भी देखने में सुंदर लगते हैं। क्योंकि वह सबसे ऊपर रहकर अपनी आकृति, बनावट और खूबसूरती से सब का ध्यान खींचने में कामयाब होता है।लेकिन नींव की ईंट जो सुंदर कंगूरे के नीचे गड़ा होता हैं उसे कोई नहीं देखता अतः वह खुद भी नहीं चाहता की उसे कोई देखें, उसकी प्रशंसा करें। यही कारण है कि मनुष्य का ध्यान नींव की ईंट की ओर नहीं बल्कि कंगूरे की ओर जाता है।

(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्यों आह्वान किया है?
उत्तर: कोई भी इमारत हो उसकी मजबूती नींव की ईंट पर निर्भर करती है। नींव की ईंट जितना मजबूत होगा इमारत भी उतनी ही मजबूती से खड़ा रहेगा। लेकिन विडंबना यह है कि जिस ईंट के ऊपर वह सुंदर आलीशान भवन खड़ा है उसकी कोई भी प्रशंसा नहीं करता, बल्कि इमारत की कंगूरे को खूबसूरती से निहार कर सब उसकी तारीफ करते हैं। असलियत में नींव की ईंट की भूमिका से ही आज  कंगूरे का वजूद है।यही कारण है कि लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए सभी को आह्वान किया है।

(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते?
उत्तर: इमारत पर लगे कंगूरे को देखकर लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी प्रशंसा करने लगते हैं। अर्थात यहां कहने का तात्पर्य यह है कि लोग प्रसिद्ध होने या प्रशंसा पाने या अन्य किसी स्वार्थ के लिए समाज में लालच में आकर अपना योगदान बनाए रखना चाहता है। लेकिन समाज के लिए वह त्याग या बलिदान  देने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसे पता है नींव की ईंट बनने पर उसका कोई लाभ या वजूद नहीं रहेगा। इसीलिए लोग नींव की ईंट की बजाय कंगूरे की ईंट बनना पसंद करते हैं।

(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हे देना चाहता है और क्यों?
उत्तर: लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन अनजान, बेनाम लोगों को देना चाहते हैं जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बिना किसी स्वार्थ के खुद को बलिदान कर दिया।
        लेखक उन्हें इसलिए श्रेय देना चाहते है, क्योंकि उनके बलिदान हेतु आज ईसाई धर्म का वजूद है। उन्होंने बिना किसी लालच और स्वार्थ के अपने को ईसाई धर्म के  प्रचार-प्रसार में इस कदर सौंप दिया कि उनमें से कई लोग तो सूली पर भी चढ़ गए और कई लोग तो जंगल में जंगली जानवरों का शिकार बन गए। उन्होंने ऐसा सिर्फ धर्म के प्रचार तथा धर्म को अमर बनाने के लिए क्या।

(ड•) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ?
उत्तर: हमारा देश उन बलिदानों के कारण आजाद हुआ जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ एवं लोभ के अपने देश के नाम खुद को सौंप दिया। उनमें से  कईयों के नाम आज इतिहास में दर्ज है, परंतु हमारे भारत के कोने कोने में हजारों ऐसे भी लोग थे, जिनका ना ही समाज में नाम आया ना ही उन्होंने समाज में खुद को प्रसिद्ध करने की चाह रखी। वें हजारों तो बेनाम रहकर भी देश के लिए मर मिटे। उन्हीं अनाम  लोगों के बलिदानों के कारण आज हमारा देश आजाद है।

(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर: भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने नौजवानों को आह्वान किया  है कि वे अपने सच्चे मन से देश की तरक्की के लिए अपना सहयोग एवं योगदान दें।आज हमारे देश में लाखों गांव, हजारों सेहरो और कारखानों का नव-निर्माण करना जरूरी है, तभी भारत प्रगति की राह पर चल पाएगा। लेखक यह भी कहते हैं कि इस तरक्की में वे शासकों से कोई उम्मीद भी नहीं रखते। क्योंकि वे शासक देश की नहीं बल्कि अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु काम करते हैं। इसलिए लेखक सिर्फ उन्हीं नौजवानों पर विश्वास रखते हैं जो खुद को इस कार्य में अपने आप को सौंप दें। लोभ, प्रशंसा नाम के चक्कर में ना फंसे अपने लक्ष्य पर ही ध्यान दें तब जाकर हमारा देश प्रगति की राह पर चल पाएगा।
     इसीलिए लेखक ने इस पाठ के जरिए नवयुवकों को कंगूरा बनने के बजाय नींव की ईंट बनकर देश का नाम रोशन करने की सलाह दी है।

Important for 2021
:वाख्या
(क)" हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी आते हैं"।
उत्तर: 
संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्य-पुस्तक 'आलोक भाग -2' के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' पाठ से लिया गया है।
प्रसंग-इन पंक्तियों के जरिए लेखक ने सत्य की कठोरता और मनुष्य क्यों सच्चाई से भागता है उसका जिक्र किया गया है।
वाख्या- मनुष्य का स्वभाव रहा है कि, वह सब कुछ आसानी से पाना चाहता है। कठोरता से पलायन करने की आदत उसे हमेशा से ही रही है। विडंबना यह है कि आज आसान रास्ता अपनाने के चक्कर में सत्य का मार्ग छोड़ झूठ, ठग आदि का सहारा लिया जा रहा है। सभी को पता है कि सत्य कठोर होता है। सत्य का सामना करना चुनौती भरा है। इसीलिए वे सत्य से भागने का मौका ढूंढा करते हैं। यहां तक कि मनुष्य कुत्सित एवं बदसूरत चीजों से भी अपना मुंह मोड़ लेते हैं। उन्हें यह सब पसंद नहीं। उन्हें तो सिर्फ सुंदर चीजों की कदर है। पर सच्चाई यही है कि सच अक्सर कड़वा होता है। इसीलिए मनुष्य कड़वेपन से बचने के लिए  सच से भी भागते हैं।

व्याख्या: 
(ख) "सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।"
उत्तर: 
संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग -2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' नामक निबंध से लिया गया है।
प्रसंग-इन पंक्तियों में सुंदर सृष्टि के पीछे किस प्रकार बलिदानों की आवश्यकता होती है इसका जिक्र किया गया है।
व्याख्या- यहां सुंदर सृष्टि का आशय सुंदर समाज से है। जिस प्रकार एक सुंदर मकान बनने के पीछे जमीन के नीचे गड़े ठोस ईंटो का अहम भूमिका होता है। ठीक उसी प्रकार एक सुंदर समाज गढ़ने के पीछे उन महान व्यक्तियों का हाथ होता है जिन्होंने अपना बलिदान हंसते-हंसते दे दिया। बलिदान देकर जिस ईंट ने सुंदर महल का निर्माण किया उसका सारा श्रेय ऊपरी मंजिलें अपने नाम कर लेती है। अतः सुंदर इमारत हो या सुंदर समाज वह हमेशा बलिदान मांगती है। चाहे वह कोई ईंट हो या कोई व्यक्ति। अगर हम अपने स्वार्थ के बारे में सोचकर बलिदान से दूर भागेंगे तो सुंदर सृष्टि का निर्माण असंभव है।

(ग)"अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है!"
उत्तर:
संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' नामक निबंध से लिया गया है।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में शासक बनने की चाह और समाज सेवक बनने की कामना किस प्रकार लुप्त होती जा रही है उसका वर्णन है।
व्याख्या- आज समाज की स्थिति ऐसी है कि लोग अपने आप को सबसे ऊंचे पायदान पर पाना चाहता है। चारों ओर एक दूसरे से बेहतर बढ़ने की भागदौड़ मची हुई है।यहां कंगूरे का आशय उन्हीं लोभी और शासकों से है, जो अपने स्वार्थ के लिए समाज का काम करना चाहता है। उन्हें समाज से कोई लेना देना नहीं है, वे तो अपनी पूर्ति हेतु समाज से जुड़े होने का ढोंग रचा करते हैं। लेकिन जिस समाज में रहकर वह आज प्रसिद्ध हुए, उस समाज को बनाने में उन महान कार्यकर्त्ताओं और अनाम व्यक्तियों का हाथ है जिन्होंने स्वार्थ को त्यागकर समाज के लिए अपना बलिदान दे दिया। अतः हम यह कह सकते हैं कि वह लोग ही नींव की ईंट है जिसके कारण समाज टिका हुआ है।पर आज कोई भी उस नींव की ईंट बनने की ख्वाहिश नहीं रखता। वह कार्यकर्ता जो पहले अपना बलिदान देने में संकोच नहीं किया करते थे, आज उन जैसे कार्यकर्ता बनने की चाह लुप्त हो रही है।






Answer by Reetesh Das (MA in Hindi)

Edit By Dipawali Bora (23.04.2022)

-------------------------------

বেলেগ ধৰণৰ উত্তৰ পাবলৈ এই লিংক টোত ক্লিক কৰক 👇 

👉Click Here Might Learn

-------------------------------