नींव की ईंट


पूर्ण वाकय् में उत्तर दो : (1 marks)

(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गांव में हुआ था।

(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएं क्यों करनी पड़ी थी?
उत्तर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में जुड़े होने और अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने के जुर्म में जेल की यात्राएं करनी पड़ी थी।

(ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था?
उत्तर: 1968 मैं।

(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः किस पर टिकी होती है?
उत्तर: अपनी नींव पर टिकी होती है।

(ड॰) दुनिया का ध्यान सामान्यतः किस पर जाता है?
उत्तर: दुनिया का ध्यान सामान्यतः ऊपरी आवरण और चमक पर जाता है।

(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा?
उत्तर: इसका परिणाम नींव के ऊपर जितने भी इमारते हैं वें सभी धारा शाही होकर गिर पड़ेंगे।

(छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है?
उत्तर: बलिदान खोजती है।

(ज) लेखक के अनुसार गिरिजाघरों के कलश वस्तुतः किनकी शहादत से चमकते हैं?
उत्तर: उन अनेक अनाम लोगों की शहादत से चमकते हैं, जिन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार में खुद को समर्पित कर दिया।

(झ) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है?
उत्तर: आज इमारत का कंगूरा बनने, यानी अपने आपको प्रसिद्ध करने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है।

(‌‌‍‍‌ ) पठित निबंध में 'सुंदर इमारत' का आशय क्या है?
उत्तर: नया सुंदर समाज।

अति संक्षिप्त उत्तर दो: 2-3 marks
(क) मनुष्य  सत्य से क्यों भागता है?
उत्तर: सत्य हमेशा कठोर अर्थात कड़वा होता है। अक्सर सत्य झूठ का पर्दाफाश कर देता है। कठोरता और भद्दापन एक साथ पनपते हैं। इसी कारण मनुष्य कठोरता से बचने और भद्देपन से मुख मोड़ने के लिए सत्य से भागता है।

(ख) लेखक के अनुसार कौन सी ईंट अधिक धन्य है?
उत्तर: लेखक के अनुसार वह ईंट जो इमारत को मजबूत करने और बाकी ईंटो को आसमान छूने का मौका देते हुए  खुद जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ जाती है और खुद को दूसरों के लिए बलिदान कर देती है, वह ईंट धन्य है।

(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है?
उत्तर: नींव की ईंट ही वह ईंट है, जो इमारत की मजबूती और दृढ़ता को  बनाएं रखती है। बाकी सभी ईंट नींव की ईंट पर ही निर्भर करती है। इसीलिए हम यह कह सकते हैं कि नींव की ईंट की भूमिका ही सबसे  महत्वपूर्ण होती है।

(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।
उत्तर: कंगूरे की ईंट इमारत की ऊपरी खूबसूरती को दर्शाती है, तथा वह अपनी बनावट एवं खूबसूरती से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होती है।

(ड॰) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?
उत्तर: शहादत का लाल सेहरा वे लोग पहनते हैं, जो देश के लिए अपना अस्तित्व निछावर कर देते हैं। ताकि बाकी लोग इस संसार का लुफ्त अच्छी तरह उठा सके।

(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे?
उत्तर: लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन लोगों ने अमर बनाया जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में स्वयं को बलिदान कर दिया। बिना स्वार्थ के वे हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गए, कई तो जंगलों में भटकते हुए जंगली जानवरों का शिकार बन गए। अपने बलिदान के बल पर उन्होंने ईसाई धर्म को अमर बनाया। उन्होंने कभी नाम कमाने या प्रसिद्ध होने की चाहत नहीं रखी। आज इसाई धर्म उन्हीं की देन है।

(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?
उत्तर: आज हमारे देश के नौजवानों के सामने यह चुनौती है कि वे समाज का नव-निर्माण करें और निर्माण करते वक्त इमारत का कंगूरा बनने की बजाएं नीव की ईट बनने का इरादा एवं साहस रखें। ताकि उनके हाथों एक सुंदर भविष्य का निर्माण हो।

संक्षिप्त उत्तर दो: 4-5 marks
(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता?
उत्तर: सुंदरता हमेशा दूसरों को अपनी और आकर्षित करता है। इमारत के कंगूरे भी देखने में सुंदर लगते हैं। क्योंकि वह सबसे ऊपर रहकर अपनी आकृति, बनावट और खूबसूरती से सब का ध्यान खींचने में कामयाब होता है।लेकिन नींव की ईंट जो सुंदर कंगूरे के नीचे गड़ा होता हैं उसे कोई नहीं देखता अतः वह खुद भी नहीं चाहता की उसे कोई देखें, उसकी प्रशंसा करें। यही कारण है कि मनुष्य का ध्यान नींव की ईंट की ओर नहीं बल्कि कंगूरे की ओर जाता है।

(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्यों आह्वान किया है?
उत्तर: कोई भी इमारत हो उसकी मजबूती नींव की ईंट पर निर्भर करती है। नींव की ईंट जितना मजबूत होगा इमारत भी उतनी ही मजबूती से खड़ा रहेगा। लेकिन विडंबना यह है कि जिस ईंट के ऊपर वह सुंदर आलीशान भवन खड़ा है उसकी कोई भी प्रशंसा नहीं करता, बल्कि इमारत की कंगूरे को खूबसूरती से निहार कर सब उसकी तारीफ करते हैं। असलियत में नींव की ईंट की भूमिका से ही आज  कंगूरे का वजूद है।यही कारण है कि लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए सभी को आह्वान किया है।

(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते?
उत्तर: इमारत पर लगे कंगूरे को देखकर लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी प्रशंसा करने लगते हैं। अर्थात यहां कहने का तात्पर्य यह है कि लोग प्रसिद्ध होने या प्रशंसा पाने या अन्य किसी स्वार्थ के लिए समाज में लालच में आकर अपना योगदान बनाए रखना चाहता है। लेकिन समाज के लिए वह त्याग या बलिदान  देने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसे पता है नींव की ईंट बनने पर उसका कोई लाभ या वजूद नहीं रहेगा। इसीलिए लोग नींव की ईंट की बजाय कंगूरे की ईंट बनना पसंद करते हैं।

(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हे देना चाहता है और क्यों?
उत्तर: लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन अनजान, बेनाम लोगों को देना चाहते हैं जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बिना किसी स्वार्थ के खुद को बलिदान कर दिया।
        लेखक उन्हें इसलिए श्रेय देना चाहते है, क्योंकि उनके बलिदान हेतु आज ईसाई धर्म का वजूद है। उन्होंने बिना किसी लालच और स्वार्थ के अपने को ईसाई धर्म के  प्रचार-प्रसार में इस कदर सौंप दिया कि उनमें से कई लोग तो सूली पर भी चढ़ गए और कई लोग तो जंगल में जंगली जानवरों का शिकार बन गए। उन्होंने ऐसा सिर्फ धर्म के प्रचार तथा धर्म को अमर बनाने के लिए क्या।

(ड•) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ?
उत्तर: हमारा देश उन बलिदानों के कारण आजाद हुआ जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ एवं लोभ के अपने देश के नाम खुद को सौंप दिया। उनमें से  कईयों के नाम आज इतिहास में दर्ज है, परंतु हमारे भारत के कोने कोने में हजारों ऐसे भी लोग थे, जिनका ना ही समाज में नाम आया ना ही उन्होंने समाज में खुद को प्रसिद्ध करने की चाह रखी। वें हजारों तो बेनाम रहकर भी देश के लिए मर मिटे। उन्हीं अनाम  लोगों के बलिदानों के कारण आज हमारा देश आजाद है।

(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर: भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने नौजवानों को आह्वान किया  है कि वे अपने सच्चे मन से देश की तरक्की के लिए अपना सहयोग एवं योगदान दें।आज हमारे देश में लाखों गांव, हजारों सेहरो और कारखानों का नव-निर्माण करना जरूरी है, तभी भारत प्रगति की राह पर चल पाएगा। लेखक यह भी कहते हैं कि इस तरक्की में वे शासकों से कोई उम्मीद भी नहीं रखते। क्योंकि वे शासक देश की नहीं बल्कि अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु काम करते हैं। इसलिए लेखक सिर्फ उन्हीं नौजवानों पर विश्वास रखते हैं जो खुद को इस कार्य में अपने आप को सौंप दें। लोभ, प्रशंसा नाम के चक्कर में ना फंसे अपने लक्ष्य पर ही ध्यान दें तब जाकर हमारा देश प्रगति की राह पर चल पाएगा।
     इसीलिए लेखक ने इस पाठ के जरिए नवयुवकों को कंगूरा बनने के बजाय नींव की ईंट बनकर देश का नाम रोशन करने की सलाह दी है।

Important for 2021
:वाख्या
(क)" हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी आते हैं"।
उत्तर: 
संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्य-पुस्तक 'आलोक भाग -2' के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' पाठ से लिया गया है।
प्रसंग-इन पंक्तियों के जरिए लेखक ने सत्य की कठोरता और मनुष्य क्यों सच्चाई से भागता है उसका जिक्र किया गया है।
वाख्या- मनुष्य का स्वभाव रहा है कि, वह सब कुछ आसानी से पाना चाहता है। कठोरता से पलायन करने की आदत उसे हमेशा से ही रही है। विडंबना यह है कि आज आसान रास्ता अपनाने के चक्कर में सत्य का मार्ग छोड़ झूठ, ठग आदि का सहारा लिया जा रहा है। सभी को पता है कि सत्य कठोर होता है। सत्य का सामना करना चुनौती भरा है। इसीलिए वे सत्य से भागने का मौका ढूंढा करते हैं। यहां तक कि मनुष्य कुत्सित एवं बदसूरत चीजों से भी अपना मुंह मोड़ लेते हैं। उन्हें यह सब पसंद नहीं। उन्हें तो सिर्फ सुंदर चीजों की कदर है। पर सच्चाई यही है कि सच अक्सर कड़वा होता है। इसीलिए मनुष्य कड़वेपन से बचने के लिए  सच से भी भागते हैं।

व्याख्या: 
(ख) "सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।"
उत्तर: 
संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग -2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' नामक निबंध से लिया गया है।
प्रसंग-इन पंक्तियों में सुंदर सृष्टि के पीछे किस प्रकार बलिदानों की आवश्यकता होती है इसका जिक्र किया गया है।
व्याख्या- यहां सुंदर सृष्टि का आशय सुंदर समाज से है। जिस प्रकार एक सुंदर मकान बनने के पीछे जमीन के नीचे गड़े ठोस ईंटो का अहम भूमिका होता है। ठीक उसी प्रकार एक सुंदर समाज गढ़ने के पीछे उन महान व्यक्तियों का हाथ होता है जिन्होंने अपना बलिदान हंसते-हंसते दे दिया। बलिदान देकर जिस ईंट ने सुंदर महल का निर्माण किया उसका सारा श्रेय ऊपरी मंजिलें अपने नाम कर लेती है। अतः सुंदर इमारत हो या सुंदर समाज वह हमेशा बलिदान मांगती है। चाहे वह कोई ईंट हो या कोई व्यक्ति। अगर हम अपने स्वार्थ के बारे में सोचकर बलिदान से दूर भागेंगे तो सुंदर सृष्टि का निर्माण असंभव है।

(ग)"अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है!"
उत्तर:
संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' नामक निबंध से लिया गया है।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में शासक बनने की चाह और समाज सेवक बनने की कामना किस प्रकार लुप्त होती जा रही है उसका वर्णन है।
व्याख्या- आज समाज की स्थिति ऐसी है कि लोग अपने आप को सबसे ऊंचे पायदान पर पाना चाहता है। चारों ओर एक दूसरे से बेहतर बढ़ने की भागदौड़ मची हुई है।यहां कंगूरे का आशय उन्हीं लोभी और शासकों से है, जो अपने स्वार्थ के लिए समाज का काम करना चाहता है। उन्हें समाज से कोई लेना देना नहीं है, वे तो अपनी पूर्ति हेतु समाज से जुड़े होने का ढोंग रचा करते हैं। लेकिन जिस समाज में रहकर वह आज प्रसिद्ध हुए, उस समाज को बनाने में उन महान कार्यकर्त्ताओं और अनाम व्यक्तियों का हाथ है जिन्होंने स्वार्थ को त्यागकर समाज के लिए अपना बलिदान दे दिया। अतः हम यह कह सकते हैं कि वह लोग ही नींव की ईंट है जिसके कारण समाज टिका हुआ है।पर आज कोई भी उस नींव की ईंट बनने की ख्वाहिश नहीं रखता। वह कार्यकर्ता जो पहले अपना बलिदान देने में संकोच नहीं किया करते थे, आज उन जैसे कार्यकर्ता बनने की चाह लुप्त हो रही है।

Additional question and previous paper solve:

अति संक्षिप्त प्रश्नः


1. डूबने से डरने वाला व्यत्कि कहाँ बैठा रहता है ?              [HSLC'18]


उत्तरः डूबने से डरने वाला व्यक्ति किनारे पर बैठा रहता है।


B. संक्षिप्त प्रश्न : अंक 2/3


1. आज हम नींव की ईट बनने की अपेक्षा कँगूरे की ईट बनने के लिए क्यों उतावले दिखाई देते हैं ?      .HSLC'11]


उत्तरः आज हम कंगूरे की ईट बनने के लिए उतावले हैं क्योंकि हम यश, प्रसिद्धि और प्रशंसा की लालसा रखते हैं। समाज में दिखावा और शोहरत के पीछे भागने की प्रवृत्ति ने हमें वास्तविकता से दूर कर दिया है। इसके बजाय, नींव की ईट बनने का संकल्प, जो चुपचाप समाज के निर्माण में योगदान देने के लिए है, लुप्त हो गया है।


2 नींव की ईंट और कंगूरे की ईंट किस-किस का प्रतिनिधित्व करती हैं ?          [HSLC '12]


उत्तरः नींव की ईंट समाज के अनाम शहीदों और बलिदान देने वाले व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है, जो बिना किसी स्वार्थ के समाज के उत्थान के लिए तैयार हैं। वहीं, कंगूरे की ईंट उन व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है जो यश-लोभ के लिए काम करते हैं और प्रसिद्धि की चाह रखते हैं।


3. आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है ?           [HSLC'16]


उत्तरः आज के नौजवानों के समक्ष चुनौती यह है कि वे नींव की ईंट बनने की मानसिकता को अपनाएँ और समाज के नव-निर्माण में चुपचाप योगदान दें। उन्हें कंगूरे की ईंट बनने की प्रवृत्ति से बचना होगा और समाज की भलाई के लिए स्वयं को समर्पित करना होगा।


4. लेखक के अनुसार कौन-सी इट अधिक धन्य है ?          [HSLC'16]


उत्तरः
लेखक के अनुसार, नींव की ईंट अधिक धन्य है। यह वह ईंट है जो अपने अस्तित्व को मिटाकर समाज के उत्थान के लिए भूमि में गड़ जाती है, जबकि कंगूरे की ईंट केवल शोभा बढ़ाने के लिए होती है। नींव की ईंट की मजबूती पर ही सम्पूर्ण इमारत निर्भर करती है।

IC. विवरणात्मक प्रश्न :


अंक 4/5


1. सप्रसंग व्याख्या करोः


(क) उदय के लिए आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है। । हमारी नींव की ईटें किधर हैं? देश के नौजवानों को । यह चुनौती है।            [HSLC'11]


उत्तरः प्रसंग- इय वाक्य को हमारे किताब से रामवृक्ष बेनीपुरी द्बारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गयाी हैं।

व्याख्या- इस वाक्य में लेखक समाज की प्रगति के लिए आवश्यक नींव की ईंटों की कमी की बात कर रहे हैं। समाज का उदय तभी संभव है जब उसमें ऐसे लोग हों, जो बिना किसी स्वार्थ के अपने बलिदान के लिए तैयार हों। लेखक ने यहाँ नौजवानों को इस चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया है कि वे अपने को नींव की ईंट बनने के लिए प्रेरित करें, ताकि समाज का पुनर्निर्माण किया जा सके। यह एक आह्वान है कि युवा अपनी जिम्मेदारियों को समझें और समाज के उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाएं।


(ख) सुन्दर सृष्टि । सुन्दर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का । [HSLC'12]


उत्तरः प्रसंग- इय वाक्य को हमारे किताब से रामवृक्ष बेनीपुरी द्बारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गयाी हैं।

व्याख्या- इस वाक्य में लेखक यह दर्शाते हैं कि हर सुंदरता, चाहे वह सृष्टि हो या समाज, बलिदान की मांग करती है। बलिदान का अर्थ है अपनी इच्छाओं और स्वार्थों को छोड़कर किसी बड़े उद्देश्य के लिए कार्य करना। यह बलिदान किसी ईंट का हो, जो चुपचाप नींव में लगी हो, या किसी व्यक्ति का, जो समाज के लिए अपने को अर्पित करता है। लेखक इस विचार से यह दर्शाना चाहते हैं कि सुंदर समाज के निर्माण के लिए हमें बलिदान की भावना को अपनाना होगा।


(ग) देश का शायद कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हों, जिनकी हड्डियों के दान ने ही विदेशी वृत्रासुर का नाश किया।                         [HSLC '12]


उत्तरः प्रसंग- इय वाक्य को हमारे किताब से रामवृक्ष बेनीपुरी द्बारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गयाी हैं।

व्याख्या- यहाँ लेखक यह कहना चाहते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे अनाम नायक हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी। "दधीचि" एक पौराणिक पात्र है, जिसने अपनी हड्डियाँ दान कर दीं, जिससे समाज की रक्षा हो सकी। लेखक यह बताते हैं कि हमारी स्वतंत्रता के लिए अनगिनत ऐसे बलिदान हुए हैं, जिनका नाम इतिहास में नहीं मिलता, फिर भी उनके बलिदान ने देश को स्वतंत्रता दिलाई। यह दर्शाता है कि असली नायक अक्सर अनाम होते हैं, लेकिन उनका योगदान अमूल्य होता है।


(घ) सत्य कठोर होता है कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते है, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं।


उत्तरः प्रसंग- इय वाक्य को हमारे किताब से रामवृक्ष बेनीपुरी द्बारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गयाी हैं।

व्याख्या- इस वाक्य में लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि सत्य हमेशा कठोर होता है और इसके साथ भद्दापन भी जुड़ा होता है। जब हम सत्य का सामना करते हैं, तो हमें कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि, मानव स्वभाव है कि वह इन कठोरताओं और भद्देपन से भागता है। इस प्रकार, लेखक यह बताना चाहते हैं कि समाज को इन कठिन सचाइयों का सामना करने की आवश्यकता है, ताकि हम सच्चाई की गहराइयों तक पहुँच सकें।


(ङ) हम जिसे देख नहीं सके, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारण ! दूँढ़ने से हो सत्य मिलता है।         [HSLC'13]


उत्तरः प्रसंग- इय वाक्य को हमारे किताब से रामवृक्ष बेनीपुरी द्बारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गयाी हैं।

व्याख्या- लेखक इस वाक्य के माध्यम से यह स्पष्ट करते हैं कि केवल जो चीज़ें हमारी आँखों के सामने हैं, वही सत्य नहीं हैं। कई बार सत्य को देखने के लिए हमें उसे खोजने और समझने की आवश्यकता होती है। यह एक मूढ़ धारणा है कि जो दिखाई नहीं देता, वह सत्य नहीं हो सकता। सत्य को जानने के लिए हमें गहराई में जाना होगा और विचारशीलता से काम लेना होगा।


2. 'शहादत और मौन-मूक! समाज की आधारशिला यही होती है' – लेखक के इस विचार को स्पष्ट करो।     [HSLC '14,'20]


उत्तरः इस विचार में लेखक शहादत और मौन बलिदान के महत्व को समाज की नींव के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। शहादत वह बलिदान है जो व्यक्ति अपनी जान देकर करता है, जबकि मौन बलिदान वह है जो बिना किसी शोहरत या पहचान के किया जाता है। लेखक के अनुसार, समाज की सच्ची आधारशिला ऐसे व्यक्तियों की होती है, जो अपने स्वार्थों को त्याग कर समाज के उत्थान के लिए चुपचाप अपने को समर्पित करते हैं। ये लोग बिना किसी अपेक्षा के अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। जैसे ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया, उसी तरह कई अनाम व्यक्तियों के बलिदानों ने समाज को मजबूत किया है। समाज का निर्माण ऐसे ही बलिदानों से होता है, जहाँ लोग अपने व्यक्तिगत लाभ को छोड़कर सामूहिक भलाई के लिए कार्य करते हैं। इस तरह, लेखक यह समझाना चाहते हैं कि समाज की वास्तविक शक्ति और स्थिरता उन मौन बलिदानों में निहित है, जो अनाम रहते हैं लेकिन समाज को ठोस आधार प्रदान करते हैं।


3. 'देश के नौजपानों को यह चुनौती है'

- इसमें लेखक ने किस चुनौती की ओर संकेत किया है स्पष्ट करो।            [HSLC'14]


उत्तरः
लेखक इस वाक्य में युवा पीढ़ी को यह चुनौती देता है कि वे 'नींव की ईंट' बनें, जो समाज के निर्माण में चुपचाप योगदान करें। वह इस बात पर जोर देता है कि आज के समाज में केवल प्रसिद्धि और यश के लिए काम करने वाले लोग अधिक हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि समाज को बलिदान देने वाले, अनाम कर्मियों की जरूरत है। लेखक चाहता है कि युवा अपने कर्तव्यों को समझें और बिना दिखावे के समाज के नव-निर्माण में जुटें।

4.'ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य-प्रताप से फल-फूल रहा हैं' स्पष्ट करो।            [HSLC'15]


उत्तरः इस वाक्य में लेखक यह कहना चाहता है कि ईसाई धर्म की स्थिरता और विकास उन अनाम बलिदानियों के कारण है जिन्होंने अपने जीवन को इस धर्म के प्रचार में समर्पित किया। वे लोग, जो नामी नहीं थे, जिन्होंने कठिनाइयों का सामना किया और अपनी शहादत के माध्यम से धर्म को फैलाया, वास्तव में धर्म के स्थायित्व का कारण बने। उनका बलिदान ईसाई धर्म के विकास की नींव है, और उनके कार्यों का सम्मान किया जाना चाहिए।


5.'नींव की ईट' के सन्देश को अपने शब्दों में लिखो।           [HSLC'15,'19] |


उत्तरः 'नींव की ईट' का सन्देश यह है कि समाज के वास्तविक निर्माण में उन व्यक्तियों का योगदान सबसे महत्वपूर्ण होता है जो बिना किसी प्रसिद्धि की चाह के अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। यह हमें बताता है कि समाज को मजबूत बनाने के लिए हमें बलिदान देने वाले, अनाम लोगों की आवश्यकता है। कंगूरा बनने की इच्छा रखने वालों के बजाय, हमें नींव की ईंट बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि हम एक सुंदर और स्थायी समाज का निर्माण कर सकें।


6. देश के नौजवानों के सामने आज क्या चुनौती है ? 'नींव की |इट' लेख के आधार पर स्पष्ट करो। [HSLC'17,'20]


उत्तरः 'नींव की ईट' के अनुसार, आज के नौजवानों के सामने यह चुनौती है कि वे खुद को समाज के निर्माण में संलग्न करें। लेखक यह स्पष्ट करता है कि वर्तमान में अधिकतर लोग केवल प्रसिद्धि और दिखावे की ओर अग्रसर हैं, जबकि असली जरूरत उन लोगों की है जो चुपचाप, बिना किसी श्रेय की कामना किए, समाज के लिए बलिदान देने को तैयार हों। युवा पीढ़ी को चाहिए कि वे अपनी ऊर्जा और समर्पण को इस दिशा में लगाएं ताकि समाज को एक नई नींव मिल सके।


7.'सुन्दर सृष्टि हमेशा बलिदान खोजती है'। - आशय स्पष्ट करो। [HSLC'17]


उत्तरः इस वाक्य का आशय यह है कि एक सुंदर और समृद्ध समाज का निर्माण केवल बलिदानों से ही संभव है। सुंदरता की चाह में, चाहे वह सृष्टि हो या समाज, हमें उन बलिदानों को स्वीकार करना होगा जो हमें आगे बढ़ाते हैं। ये बलिदान कभी व्यक्ति के हो सकते हैं, जैसे कि किसी के जीवन का त्याग, या फिर ईंटों का, जो नींव में लगते हैं। बिना बलिदान के, सुंदरता और प्रगति की कल्पना करना व्यर्थ है।

8.नींव की ईंट की क्या भूमिका होती हौ ? [HSLC'18]

उत्तरः
नींव की ईंट की भूमिका समाज के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह वह आधार है जिस पर पूरी इमारत या समाज टिका होता है। नींव की ईंटें उन व्यक्तियों का प्रतीक हैं जो बिना किसी दिखावे के, अपने कार्य में समर्पित रहते हैं। ये लोग समाज के लिए बलिदान देते हैं और अपनी मेहनत से एक स्थायी संरचना का निर्माण करते हैं। अगर नींव मजबूत होती है, तो इमारत भी स्थिर और सुंदर होती है। इस प्रकार, नींव की ईंटों की भूमिका समाज को मजबूती और स्थायित्व प्रदान करना है।

9. भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है ?   [HSLC'18]


उत्तरः लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने भारत के नव-निर्माण की प्रक्रिया में "नींव की ईंट" के महत्व को रेखांकित किया है। उनका कहना है कि स्वतंत्रता के बाद भारत के विकास के लिए आवश्यक है कि लोग बिना किसी यश-लोभ के, समाज के भले के लिए बलिदान देने के लिए तैयार हों। वह बताते हैं कि हमारे समाज को ऐसे लोगों की जरूरत है, जो चुपचाप अपने कार्य में लगे रहें, बिना किसी प्रशंसा या मान्यता की इच्छा किए। लेखक ने यह भी बताया है कि आज के युवा को "कंगूरे की ईंट" बनने की बजाय "नींव की ईंट" बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए, क्योंकि तभी ही समाज का सही और स्थायी नव-निर्माण संभव हो सकेगा।


10. 'नींव की ईट' और 'कंगूरे की ईट' के प्रतीकार्थों को स्पष्ट करो। [HSLC'19]


उत्तरः नींव की ईंट: यह प्रतीक समाज के अनाम शहीदों का है, जो बिना किसी यश या पहचान के अपने बलिदान के लिए तैयार होते हैं। ये वे लोग हैं जो समाज के वास्तविक विकास के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका योगदान अक्सर अदृश्य रहता है, लेकिन वही समाज की नींव बनाते हैं। कंगूरे की ईंट: इसका प्रतीकार्थ उन लोगों से है, जो प्रसिद्धि और मान्यता की चाह में काम करते हैं। ये लोग समाज के काम करने का दिखावा करते हैं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य यश और प्रशंसा प्राप्त करना होता है। बेनीपुरी जी के अनुसार, ऐसे लोग केवल बाहरी आडंबर की प्रतीक होते हैं, जबकि सच्चा विकास "नींव की ईंट" के बलिदान से ही संभव है।


अतिरिक्त आवश्यकीय प्रश्न


A. अति संक्षिप्त प्रश्न :


अंक :1


1 . नींव की ईंट एक निबंध / कहानी / संस्मरण है।


उत्तरः नींव की ईंट एक निबंध है।


2. रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा संपादित तीन पत्रिकाओं के नाम लिखो।।


उत्तरः तरुण भारत', 'किसान मित्र', 'बालक'


3. बेनीपुरी की तीन प्रमुख रचनाओं के नाम लिखो।


उत्तरः 'गेहूँ और गुलाब', 'पतितों के देश में', 'चिता के फूल'


4. बेनीपुरी की समस्त रचनाएँ किस नाम से प्रकाशित हुई है ?


उत्तरः बेनीपुरी की समस्त रचनाएँ 'बेनीपुरी ग्रंथावली' नाम से प्रकाशित हुई हैं।


5. लोगों को कौन-सी ईंट सबसे ज्यादा आकर्षित करती है ?


उत्तरः लोगों को कंगूरे की ईंट सबसे ज्यादा आकर्षित करती है।


6. निबंधकार किस ईंट को ज्यादा महत्व देता है ?


उत्तरः निबंधकार नींव की ईंट को ज्यादा महत्व देता है।


7. लेखक के अनुसार इमारत की मजबुती किस पर निर्भर करती है


उत्तरः लेखक के अनुसार इमारत की मजबूती नींव की ईंट पर निर्भर करती है।


8. देश की नींव मजबुत करने की क्षमता किसमें है ?


उत्तरः देश की नींव मजबूत करने की क्षमता समाज के अनाम शहीदों में है, जो चुपचाप बलिदान देने के लिए तैयार हैं।


9. दुनिया सदा क्या देखती है ?


उत्तरः दुनिया सदा चमकीली, सुंदर इमारत को देखती है।


10. 'नींव की ईट' ने अपने लिए अंधकुप को क्यों कबुल किया है।


उत्तरः 'नींव की ईट' ने अपने लिए अंधकूप को कबूल किया है ताकि ऊपर के उसके साथियों को स्वच्छ हवा और सुनहली रोशनी मिलती रहे।


11. बेनापुरी जी ने समाज की आधारशिला किसे माना है ?


उत्तरः बेनापुरी जी ने समाज की आधारशिला शहादत और मौन-मूक बलिदान को माना है।


12. बेनापुरी जी ने सत्य से भागने के क्या कारण दिए है ?


उत्तरः बेनापुरी जी ने सत्य से भागने के कारण दिए हैं:

1.सत्य कठोर होता है, और लोग कठोरता से भागते हैं। 

2.भद्देपन से मुंह मोड़ने के कारण लोग सत्य से दूर हो जाते हैं।


B. संक्षिप्त प्रश्न :


अंक : 2


1. 'नींव की ईंट' निबंध के माध्यम से निबंधकार क्या संदेश देना चाहता है ?


उत्तरः निबंधकार का संदेश है कि समाज का विकास और निर्माण अनाम बलिदानियों पर निर्भर करता है, जो बिना किसी यश और प्रसिद्धि की इच्छा के समाज के लिए बलिदान देते हैं। वह युवा पीढ़ी को नींव की ईंट बनने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि एक मजबूत और सुंदर समाज का निर्माण हो सके।


2.'उस ईट को दिला दीजिए,कंगुरा बेहताश जमीन पर आ रहेगा।’यहाँ किस ईट की और इशारा किया गया है?

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उत्तरः यहाँ उस नींव की ईंट की ओर इशारा किया गया है, जो समाज के अनाम शहीदों का प्रतिनिधित्व करती है। यदि नींव की ईंट को हिलाया जाए, तो पूरी इमारत (समाज) ढह जाएगी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नींव की ईंट का महत्व कितना अधिक है।


13. निबंधकार किस ईट को सबसे महत्वपूर्ण मानता है और क्यों ?


उत्तरः निबंधकार नींव की ईंट को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि वही ईंट समाज के स्थायित्व और मजबूती की आधारशिला होती है। नींव की ईंट बिना किसी दिखावे के समाज के लिए बलिदान देती है, जिससे पूरी इमारत स्थिर रहती है।


14. निबंधकार ने मौन बलिदान को समाज की आधारशिला क्यों माना है ?


उत्तरः मौन बलिदान को समाज की आधारशिला माना गया है क्योंकि ये बलिदान समाज की प्रगति के लिए अनाम रूप से दिए जाते हैं। ऐसे बलिदान की कोई प्रशंसा नहीं होती, लेकिन वे समाज को स्थायित्व और मजबूती प्रदान करते हैं।


15. सुंदर समाज बनने के लिए किसकी जरूरत है और क्यों ?


उत्तरः सुंदर समाज बनने के लिए नींव की ईंटों (अनाम बलिदानियों) की जरूरत है। क्योंकि एक मजबूत और स्थिर समाज का निर्माण ऐसे लोगों के योगदान पर निर्भर करता है, जो बिना किसी स्वार्थ के कार्य करते हैं।


16. हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ क्यों नहीं करते हैं ?


उत्तरः हम इमारत के गीत नींव के गीत से इसलिए नहीं प्रारंभ करते क्योंकि लोग केवल ऊपरी दिखावे और सफलता की चमक पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे कठिनाई और बलिदान की वास्तविकता से भागते हैं।



17. लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहते है और क्यों ?


उत्तरः लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन अनाम बलिदानियों को देना चाहते हैं, जिन्होंने धर्म के प्रचार में अपने जीवन का बलिदान दिया। उनके बलिदान के कारण ही ईसाई धर्म फल-फूल रहा है, जबकि उनके नाम शायद ही किसी को ज्ञात हों।


IC. विवरणात्मक प्रश्न :


अंक : 4/5


1. लेखक क्यों इमारत के कंगुरे से नींव की ईंट को ज्यादा महत्व देता है ?

उत्तरः लेखक नींव की ईंट को इसलिए अधिक महत्व देता है क्योंकि वही समाज की मजबूती और स्थिरता का आधार होती है। जबकि कंगुरे की ईंट केवल बाहरी चमक और दिखावे का प्रतिनिधित्व करती है। नींव की ईंट का बलिदान समाज के विकास के लिए आवश्यक है। 


2 देश की नींव मजबुत करने के लिए निबंधकार किसकी जरूरत मानता है और क्यों ?

उत्तरः निबंधकार देश की नींव मजबूत करने के लिए उन अनाम बलिदानियों की जरूरत मानते हैं, जो बिना किसी यश की इच्छा के समाज के लिए बलिदान देते हैं। ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो चुपचाप अपने कार्य में लगे रहें और समाज के विकास में योगदान दें।


3. 'कंगुरे के गीत गानेवेले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ'- इससे निबंधकार का अभिप्राय क्या है ?

उत्तरः इस वाक्य से निबंधकार का अभिप्राय है कि हमें केवल बाहरी दिखावे की प्रशंसा करने के बजाय समाज के स्थायी विकास के लिए बलिदान और कड़ी मेहनत की आवश्यकता है। हमें नींव की ईंटों की अहमियत को समझना होगा।


4. आज के नौजवानों से निबंधकार क्या अपेक्षा करता है और क्यों ?


उत्तरः निबंधकार आज के नौजवानों से अपेक्षा करता है कि वे नींव की ईंट बनने की चाह रखें और समाज के निर्माण में सक्रिय रूप से योगदान दें। यह आवश्यक है ताकि समाज में स्थायित्व और प्रगति सुनिश्चित की जा सके।


5. 'सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की, और हमने पहला कदम बढ़ाया है।' - इससे निबंधकार क्या बताना चाहते है ?


उत्तरः इस वाक्य से निबंधकार यह बताना चाहते हैं कि हमारे समाज में परिवर्तन की आवश्यकता है और हमने उस दिशा में पहला कदम बढ़ाया है। यह संकेत करता है कि एक नए समाज के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।


6. देश के नौजवानों के सन्मुख कौन-सी चुनौती है ? इसकी सामना करने के लिए नौजवानों को क्या करने का सलाह निबंधकार देते हैं


उत्तरः देश के नौजवानों के सामने यह चुनौती है कि वे नींव की ईंट बनने की कोशिश करें और समाज के विकास में योगदान दें। निबंधकार सलाह देते हैं कि उन्हें यश और प्रसिद्धि के मोह से दूर रहकर, अपनी मेहनत और बलिदान के जरिए समाज को आगे बढ़ाने में सहयोग करना चाहिए।


7. नींव की ईंट के प्रति मनुष्य का व्यवहार इस सत्य को कैर प्रतिपादित करता है कि, 'मनुष्य की प्रवृत्ति कठोरता औ भद्देपन से भागने की रही है'?


उत्तरः मनुष्य अक्सर नींव की ईंट को अनदेखा करता है, क्योंकि वह कठोरता और भद्देपन से भागता है। वह केवल चमक-दमक और बाहरी शोभा को पसंद करता है, जिससे यह सत्य सामने आता है कि लोग वास्तविकता और कठिनाइयों का सामना करने से कतराते हैं।


8. नींव की ईट और समाज के अनाम शहीदों के बलिदान के


उद्येश्यों में तुम्हें क्या समानता दिखाई देती है ?


उत्तरः नींव की ईंट और समाज के अनाम शहीदों के बलिदान दोनों ही बिना किसी पहचान और प्रशंसा की इच्छा के होते हैं। दोनों का उद्देश्य समाज के लिए स्थायित्व और विकास प्रदान करना है, जिसमें वे अपने अस्तित्व को बलिदान करते हैं।


9. आज हम 'नींव की इंट' बनने की अपेक्षा कंगुरे की ईंट बन के लिए क्यों उतावले दिखाई देते हैं ?


उत्तरः आज लोग कंगुरे की ईंट बनने के लिए उतावले हैं क्योंकि वे यश, प्रसिद्धि और सामाजिक मान्यता की चाह रखते हैं। समाज की ऊपरी चमक और शोहरत को पाने की इच्छा उन्हें नींव की ईंट बनने के बलिदान से दूर रखती है।


10. इस 'नींव की इंट' पाठ में लेखक किनका आह्वान कर स है और क्यों ?


उत्तरः लेखक इस पाठ में देश के युवाओं का आह्वान कर रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि युवा वर्ग नींव की ईंट बनने की प्रेरणा ले, यानी समाज के विकास और नव-निर्माण में अपने योगदान को बिना किसी यश-लोभ के निभाए। लेखक यह बताना चाहते हैं कि समाज को मजबूत बनाने के लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो अपने बलिदान से चुपचाप काम करें, बजाय इसके कि वे केवल प्रसिद्धि की चाह में रहें।


11. नींव की ईट और कंगुरे की ईंट किस-किस का प्रतिनिधि करती है ? लेखक ने इनके माध्यम से किस सत्य को उज करने का प्रयत्न किया है ?


उत्तरः नींव की ईंट: यह समाज के अनाम शहीदों का प्रतिनिधित्व करती है, जो बिना किसी यश या पहचान के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। ये वे लोग हैं जो समाज के विकास के लिए बलिदान देते हैं और उनके कार्यों की स्थायी महत्वता होती है। कंगूरे की ईंट: यह यश-लोभी सेवकों का प्रतीक है, जो प्रसिद्धि और प्रशंसा के लिए काम करते हैं। ये लोग अक्सर दिखावे के पीछे होते हैं और उनका कार्य superficial होता है।


12. आशय स्पष्ट करो :


(i) वह ईंट, जो सब ईटों से ज्यादा पक्की थी, जौ ऊर लगी। होती तो उस कंगुरे की शोभा सौ गुनी कर देती !


उत्तरः यह वाक्य नींव की ईंट के महत्व को दर्शाता है। लेखक यह कहना चाहते हैं कि भले ही वह ईंट ऊपर कंगूरे पर नहीं है, लेकिन उसकी मजबूती और स्थिरता ही कंगूरे की शोभा और मजबूती को बढ़ा सकती है। इसका अर्थ यह है कि असली बलिदान और समर्पण हमेशा परछाई में रहता है, जबकि प्रसिद्धि की चाह रखने वाले अक्सर अधिक ध्यान आकर्षित करते हैं।


(ii) ठोस 'सत्य' सदा शिवम' होता है, किंतु वह हमेशा ही । 'सुंदरम' भी हो यह आवश्यक नहीं।


उत्तरः इस वाक्य में लेखक यह स्पष्ट कर रहे हैं कि सत्य अपने आप में एक दिव्य गुण है ('शिवम्'), लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि सत्य हमेशा खूबसूरत ('सुंदरम्') भी हो। कभी-कभी सत्य कठोर और असहज भी होता है, जिसे स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है। यह समाज की वास्तविकता और बलिदान के अनाम व्यक्तियों की स्थिति को दर्शाता है।


(iii) कुछ तपे-तपाए लोगों को मौन-मुक शहादत का लाल ।सेहरा पहनना है।


उत्तरः यह वाक्य उस विचार को व्यक्त करता है कि समाज के निर्माण के लिए कुछ लोगों को अपने बलिदान को चुपचाप स्वीकार करना होगा। ये लोग अक्सर अनाम होते हैं, लेकिन उनकी शहादत ही समाज की नींव को मजबूत बनाती है। लेखक इस प्रकार के बलिदान को सम्मानित करने का आह्वान कर रहे हैं।


(iv) उदय के लिए आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है।। हमारी नींव की ईंट किधर हैं ?


उत्तरः इस वाक्य में लेखक समाज की आवश्यकता को उजागर कर रहे हैं। समाज नए उन्नति की प्रतीक्षा कर रहा है, लेकिन उसे नींव की ईंटों की आवश्यकता है। यह युवाओं से अपील है कि वे अपने बलिदान और समर्पण के माध्यम से समाज के विकास में योगदान दें, क्योंकि बिना नींव के कोई भी इमारत खड़ी नहीं हो सकती।


13. सप्रसंग व्याख्या करोः


(i) अफसोस, कंगुरा बनने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बननेकी कामना लुप्त हो रही है!


उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे पाठ में स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गया हैं।

व्याख्या- इस वाक्य में लेखक समाज में लोकप्रियता और प्रसिद्धि की चाह को दर्शाते हैं। आज के युवाओं और समाज के लोगों में कंगूरे की ईंट बनने की होड़ मची हुई है, जबकि असली नींव की ईंट बनने की इच्छाशक्ति गायब होती जा रही है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि समाज की स्थायी और वास्तविक प्रगति के लिए बलिदान और अनाम सेवा की आवश्यकता है, जो आज के स्वार्थी दौर में कहीं खो गई है।


(ii) सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से सुख मोड़ते हैं-इसीलिए सत्य से भी भागते हैं। नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीतसे प्रारंभ करते।


उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे पाठ में स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गया हैं।

व्याख्या- इस वाक्य में लेखक सत्य की प्रकृति और उसकी स्वीकार्यता के बारे में बात कर रहे हैं। सत्य अक्सर कठोर और अप्रिय होता है, और इसी कारण लोग उससे दूर भागते हैं। अगर हम सच में जीवन की वास्तविकताओं को स्वीकार करें, तो हमें अपने समाज की नींव के महत्व को समझना होगा। लेखक यहाँ यह बताना चाहते हैं कि हमें कड़वे सत्य को स्वीकार कर, उसे अपने जीवन में अपनाना चाहिए।


(iii) शहादत और मौन-मूक जिस शहादत को शोहरत मिली, | जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह इमारत का कंगुरा है - मंदिर का कलश है।


उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे पाठ में स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गया हैं।

व्याख्या- यह वाक्य उन बलिदानों और शहादतों को दर्शाता है, जिन्हें समाज में प्रशंसा और पहचान मिली है। हालांकि, लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि ये बलिदान अक्सर उन अनाम व्यक्तियों की शहादत से अलग होते हैं, जो बिना किसी ध्यान और प्रशंसा के अपने कार्य करते हैं। यह बलिदान नींव की ईंट की तरह है, जो समाज को स्थायित्व प्रदान करती है, जबकि प्रसिद्धि का बलिदान केवल शोहरत का प्रतीक है।

(iv) वे नींव ईंट थे, गिरजाघर के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं। आज हमारा देश आजाद हुआ सिर्फ उनके | बलिदानों के कारण नहीं, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है।


उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे पाठ में स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गया हैं।

व्याख्या- इस वाक्य में लेखक यह स्पष्ट कर रहे हैं कि आजादी का संघर्ष केवल उन्हीं लोगों के बलिदानों पर नहीं टिका, जिन्होंने इतिहास में नाम कमाया, बल्कि उन अनाम लोगों के बलिदान पर भी निर्भर करता है, जिन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग किया। ये लोग नींव की ईंटों की तरह हैं, जिन्होंने बिना किसी दिखावे के समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


(v) हम जिसे देख नहीं सके, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ । धारणा ! हुँढ़ने से ही सत्य मिलता है। हमारा काम है, धर्म । है, ऐसी नींव की ईंटों की ओर ध्यान देना।


उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे पाठ में स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गया हैं।

व्याख्या- इस वाक्य में लेखक यह कहते हैं कि समाज में जो चीजें अदृश्य हैं, उन्हें अनदेखा करना हमारी मूढ़ता है। वास्तविकता यह है कि सत्य को पहचानने और समझने के लिए खोज करनी होती है। लेखक का यह भी कहना है कि हमें उन नींव की ईंटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण हैं, भले ही वे नज़र न आती हों।


(vi) सात लाख गाँवों का नव-निर्माण हजारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण ! कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता। जरूरत है ऐसे नौजवानों की, जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें।


उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे पाठ में स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईट नामक पाठ से लिया गया हैं।

व्याख्या- यह वाक्य समाज के पुनर्निर्माण की आवश्यकता को उजागर करता है। लेखक का कहना है कि केवल शासकों या सरकार के प्रयासों से ही यह संभव नहीं है। असली परिवर्तन के लिए ऐसे युवा की आवश्यकता है, जो बिना किसी स्वार्थ और ध्यान के, समाज के विकास में अपना योगदान दें। यह युवाओं से अपील है कि वे नींव की ईंट बनें और समाज के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएँ।



Answer by Reetesh Das (MA in Hindi) and Dikha Bora

Edit By Dipawali Bora (23.04.2022)

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