Lesson 8 


   पद-त्रय (कविता)  


1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) कवयित्री मीराँबाई का जन्म कहांँ हुआ था?
उत्तर: कवयित्री मीराँबाई का जन्म सन 1498 में प्राचीन राजपूताने के अंतर्गत 'मेड़ता' प्रांत के 'कुंडकी' नामक स्थान में हुआ था।

(ख) भक्त कवयित्री मीराँबाई को कौन- सी आख्या मिली है?
उत्तर: भक्त कवयित्री मीरांँबाई को 'कृष्ण प्रेम-दीवानी' की आख्या मिली है।

(ग) मीरांँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद किस नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर: मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद 'मीराँबाई की पदावली' के नाम से प्रसिद्ध है।

(घ) मीराबाई के पिता कौन थे?
उत्तर: मीराँबाई के पिता राव रत्न सिंह थे।

(ङ) कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्य से किस नाम का रस पीने का आह्वान किया है?
उत्तर: कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्य से राम अर्थात (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान किया है।


2. अति संक्षिप्त उत्तर दो:

(क) मीराँ-भजनों की लोकप्रियता पर प्रकार डालो।
उत्तर: हिंदी की कृष्ण-भक्ति काव्य धारा में कवयित्री मीराँबाई को महाकवि सूरदास जी के बाद ही स्थान प्राप्त है।भारतीय जन-साधारण के बीच कबीरदास, सूरदास और तुलसीदास के भजनों की तरह मीरा- भजन भी समान रूप से प्रिय रहे हैं। मीराँबाई के भजन सहज संतुलन के कारण उनके गीत-पद आज अनूठे बन चुके हैं। उनके भजनों को आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति भाव से गाया जाता है। इसी से उनके भजनों की लोकप्रियता का पता चलता है।

(ख) मीराँबाई का बचपन किस प्रकार बीता था?
उत्तर: बचपन में ही माता पिता के निधन होने के कारण उनका लालन- पालन उनके दादा राव दुदाजी की देखभाल में हुआ। उनके दादाजी भी कृष्ण के बड़े भक्त थे। इसी कारण दादा जी के साथ रहते-रहते बालिका मीराँ के कोमल हृदय में भी कृष्ण भक्ति का बीज अंकुरित होकर बढ़ने लगा और कृष्ण को ही अपना आराध्य प्रभु एवं पति मानने लगी।

(ग) मीरांँबाई का देहावसान किस प्रकार हुआ था?
उत्तर: मीराबाई कृष्ण के प्रेम भक्ति में इतनी खो गई कि साधु-संतों के साथ घूमते घूमते और अपने प्रभु को रिझाने के लिए नाचते-गाते वे अंत में द्वारकाधाम पहुंँच गई। वहीं रणछोड़ जी के मंदिर में अपने प्रभु गिरिधर गोपाल का भजन कीर्तन करते-करते सन 1546 के आसपास उनका देहावसान हो गया।

3. संक्षिप्त में उत्तर दो:

(क) प्रभु कृष्ण के चरण-कमलों पर अपने को न्योछावर करने वाली मीराँबाई ने अपने आराध्य से क्या-क्या निवेदन किया है?
उत्तर: प्रभु कृष्ण के चरण कमलो पर अपने को न्योछावर करने वाली मीराँबाई ने कृष्ण से निवेदन किया है कि वह आकर मीराँबाई पर कृपा करें। वह कृष्ण की कितनी बड़ी भक्त है  यह बात पहले किसी को मालूम नहीं था पर आज पूरा संसार इस बात से ज्ञात है। अतः मीराँबाई प्रभु से प्रार्थना करती हुई कहती है कि अब प्रभु जी ही उनकी आस है। कृपा करके मुझे दर्शन देखकर मेरी मान रख लो। इसी प्रकार मीराँबाई कृष्ण से निवेदन कर रही है।

(ख) सुंदर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण देते हुए कवयित्री ने उनसे क्या-क्या कहा है?
उत्तर: सुंदर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण देते हो कवयित्री रहती है कि वह श्याम के इंतजार में बैठी बैठी अपनी सुध-बुध खो चुकी है। उनके विरह में पके पान की तरह पीली पड़ चुकी है। उनका ध्यान तो केवल उन्हीं पर है। उसे और कोई दूसरे की आस नहीं। इसीलिए मीराँबाई का निवेदन है कि हे प्रभु गिरिधर आप जल्दी आकर मुझसे मिले और मेरी मान की रक्षा करें।

(ग) मनुष्य मात्र से राम (कृष्णा) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराँबाई ने उन्हें कौन सा उपदेश दिया है?
उत्तर: मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराबाई कहती है कि प्रत्येक मनुष्य को राम नाम का रस का पान करना चाहिए। मनुष्य गलत संगतो को छोड़ सत्संगो को अपनाकर कृष्ण का कीर्तन सुनना चाहिए। मोह माया से दूर अर्थात अपने मन से काम, क्रोध मद, लोभ, मोह तथा लालच आदि को छोड़ ईश्वर की वाणी एवं भजन सुनने में लीन हो जाना चाहिए। अर्थात प्रभु कृष्णा के प्रेम-रंग-रस मैं स्वयं को सराबोर कर लेना चाहिए।


4. वाख्या:

(क) "मैं तो चरण लगी....... चरण- कमल बलिहार।"
उत्तर
संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत मीराँबाई द्वारा रचित 'पद-त्रय' नामक कविता से लिया गया है।

प्रसंग- इन पंक्तियों में कृष्ण के प्रति कवयित्री का जो अपार प्रेम है उसका वर्णन है।

वाख्या- कवयित्री मीराँबाई अपने आराध्य प्रभु कृष्णा गोपाल के चरण में आ गई है। पहले जब कृष्ण के प्रेम में पड़ी थी तब उसे कोई नहीं जानता था। पर आज सारे संसार को इस बात का पता चल गया है। इसलिए वह अपने प्रभु कृष्ण से निवेदन कर रही है कि कृपा करके उन्हें दर्शन दे। उनकी लाज रखें। वह तो गिरिधर के चरण-कमलों में अपने को न्योछावर कर चुकी है।

(ख) "म्हारे घर आवौ...... राषो जी मेरे माण।"
उत्तर:
संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत मीराँबाई द्वारा रचित 'पद-त्रय' नामक कविता से लिया गया है।

प्रसंग- इन पंक्तियों में किस प्रकार कवयित्री कृष्णा को अपने घर पर आमंत्रित करती है उसका वर्णन है।

वाख्या- कवयित्री कह रही है कि हे सुंदर श्याम प्रभु तुम मेरे घर आओ, अब तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता। वह श्री कृष्ण के बिना अधूरी है अब उनके बिना उसका होश नहीं रहा। उनके बिना वह पके पान की तरह पीली पड़ गई है। अब तो बस कृष्ण के प्रति उनका ध्यान है और दूसरा कोई नहीं। इसलिए कवयित्री चाहती है कि वह जल्द से जल्द आकर उनसे मिले और उसका लाज रखें।



(ग) "राम नाम रस पीजै....... ताहि के रंग में भीजै।"
उत्तर:
संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत मीराँबाई द्वारा रचित 'पद-त्रय' कविता से लिया गया है।

प्रसंग- इन पंक्तियों के जरिए मनुष्य को अपनी मोह माया से मुक्त होकर ईश्वर के चरणों में न्योछावर होने की बात कही गई है।

वाख्या- कवयित्री मनुष्य मात्र से रामकृष्ण नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि सभी मनुष्य अपने कुसंगत को छोड़ सतसंगत में बैठ ईश्वर कृष्ण पर रचित कीर्तन भजनों को सुनना चाहिए। अपने काम, क्रोध, माया, लोभ आदि को अपने ह्रदय से निकाल फेंकना चाहिए। अर्थात प्रभु कृष्ण के प्रेम-रंग-रस में स्वयं को न्योछावर कर लेना चाहिए।

Additional question and previous paper solve: 

A. अति संक्षिप्त प्रश्नः

1. प्रश्नों के नीचे दिए गए उत्तरों में से एक-एक उत्तर सही हैं। सही उत्तरों का चयन करोः

 (i) कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्यों को किसके नाम का रस पीने का आह्बान किया है?

(अ) माया नाम के 

(आ) पिता नाम के

(इ) गुरु नाम के

(ई) राम नाम के

उत्तरः (ई) राम नाम के

(ii) 'ताहि के संग में भीजै' - यहाँ ताहि शब्द का अर्थ है [HSLC '15]


(अ) गिरिधर (गिरधर) नागर


(आ) भोजराज


(इ) महादेव


(ई) नारद


उत्तरः (अ) गिरिधर (गिरधर) नागर


B. संक्षिप्त प्रश्न :


अंक : 2/3


1. श्याम को अपने घर आने का आमन्त्रण देते हुए मीराँबाई ने उनसे क्या-क्या कहा है ?

[HSLC'14,18]


उत्तरः मीराबाई श्याम से कहती हैं कि उनके विरह में वह पकी पान की तरह पीली पड़ गई हैं। वह यह बताती हैं कि श्याम जी के बिना वह सुध-बुध खो बैठी हैं और केवल उन्हीं पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। मीराबाई उनसे अनुरोध करती हैं कि वह जल्दी आएं और उनके मान की रक्षा करें।


2. मीराबाई संसार के लोगों को क्या सलाह देती हैं ? (पद संख्या | तीन के आधार पर उत्तर दो)। [HSLC'15] |


उत्तरः 
मीराबाई लोगों को सलाह देती हैं कि वे कुसंग को छोड़कर सत्संग में बैठें और कृष्ण का कीर्तन सुनें। वह यह बताती हैं कि इस तरह वे काम, क्रोध आदि छह रिपुओं से मुक्त हो सकते हैं और कृष्ण प्रेम में सराबोर हो सकते हैं।

3. मीराँबाई ने मनुष्य को क्या उपदेश दिया है ? [HSLC'17]


उत्तरः मीराबाई मनुष्यों को उपदेश देती हैं कि वे प्रभु की भक्ति में लीन रहें और सच्चे प्रेम का अनुभव करें। वह कहती हैं कि केवल बाहरी संसार की भक्ति या पूजा करने से नहीं, बल्कि मन में सच्चे प्रेम का रस भरे बिना कोई भी आत्मिक उन्नति नहीं कर सकता।


4. मीराबाई ने 'ताहि के रंग में भीजै' के जरिए क्या उपदेश दिया है? [HSLC'19] |


उत्तरः मीराबाई 'ताहि के रंग में भीजै' के जरिए यह उपदेश देती हैं कि सभी को अपने जीवन में भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम और भक्ति में रंग जाना चाहिए। वह कहती हैं कि जब व्यक्ति कृष्ण की भक्ति में लीन होता है, तो उसे सभी दुःख और संकटों से मुक्ति मिलती है। इस प्रकार, कृष्ण के रंग में डूबकर मनुष्य अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकता है और सच्चे सुख का अनुभव कर सकता है।


5. राम नाम के रस पीने के लिए मीराबाई ने क्यों कहा है? | [HSLC'20]


उत्तरः मीराबाई ने राम नाम के रस पीने के लिए कहा है क्योंकि वह मानती हैं कि राम (कृष्ण) का नाम ही सभी दुखों का नाशक है। जब लोग इस नाम का जाप करते हैं, तो वे बुराइयों, जैसे काम, क्रोध आदि से मुक्त हो सकते हैं। उनका यह संदेश है कि सभी को कुसंग से दूर रहकर सत्संग में बैठकर कृष्ण का कीर्तन करना चाहिए, ताकि वे आत्मिक शांति और प्रेम का अनुभव कर सकें।


C. विवरणात्मक प्रश्न :


अंक 4/5


1.सप्रसंग व्याख्या करो : [HSLC'16]


मैं तो चरण लगी गोपाल ।। जब लागी तव कोऊँ न जाने, अब जानी संसार । किरपा कीजै, दरसन दीजै, सुध लीजै तत्काल । मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर चरण-कमल बलिहार।।


उत्तरः पद- "मैं तो चरण लगी गोपाल ।। जब लागी तव कोऊँ न जाने, अब जानी संसार । किरपा कीजै, दरसन दीजै, सुध लीजै तत्काल । मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर चरण-कमल बलिहार।।"

व्याख्या- इस पद में मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति अपने पूर्ण समर्पण को व्यक्त कर रही हैं। वह कहती हैं कि उन्होंने गोपाल जी के चरणों में अपनी अटूट भक्ति लगा दी है। पहले जब उनका यह प्रेम गुप्त था, तब किसी को पता नहीं था, लेकिन अब यह बात संसार में फैल चुकी है। मीराबाई प्रभु से विनती कर रही हैं कि वह अपनी कृपा करें, उन्हें दर्शन दें और उनकी सुध लें। इस भाव में भक्ति, आत्म-समर्पण और भगवान के प्रति तीव्र आकांक्षा का अद्भुत मेल है।


2.म्हारे घर आवौ सुंदर श्याम । तुम आया बिन सुध नहीं मेरो, पीरी परी जैसे पाण। म्हारे आसा और ण स्वामी, एक तिहारो ध्याण ।मीराँ के प्रभु वेग मिलो अब, राषो जी मेरो माण ।। [HSLC'16]


उत्तरः पद: "म्हारे घर आवौ सुंदर श्याम । तुम आया बिन सुध नहीं मेरो, पीरी परी जैसे पाण। म्हारे आसा और ण स्वामी, एक तिहारो ध्याण । मीराँ के प्रभु वेग मिलो अब, राषो जी मेरो माण। 


व्याख्या- इस पद में मीराबाई अपने प्रिय कृष्ण को अपने घर आने का आमंत्रण दे रही हैं। वह कहती हैं कि बिना उनके, उन्हें कोई ध्यान नहीं है और वह विरह में पके पाण की तरह पीली पड़ गई हैं। मीराबाई ने अपने जीवन का आधार कृष्ण को मान लिया है और उनके अलावा किसी और पर उनकी आशा नहीं है। वह चाहती हैं कि कृष्ण जल्दी आएं और उनके मान की रक्षा करें। इस पद में प्रेम, विरह, और आराध्य के प्रति भक्ति की गहराई को दर्शाया गया है।


|A. अति संक्षिप्त प्रश्न :


1. सही विकल्प का चयन करो :


(i) मीराँबाई किस भक्ति धारा की प्रमुख कवयित्री थी ?


(a) कृष्णभक्ति


(b) रामभक्ति


(c) ज्ञानमार्गी


(d) प्रेममार्गी


उत्तरः (a) कृष्णभक्ति


(ii) मीराँबाई का जन्म कब हुआ था ?


(a) सन 1546 मे


(b) सन 1498 मे


(c) सन 1516 मे


(d) सन 1449 मे


उत्तरः (b) सन 1498 में


(iii) मीराँबाई को कौन सी आख्या मिली ?


(a) दीवानी


(b) भक्तिन


(c) कृष्ण प्रेम दिवानी


(d) प्रेमी


उत्तरः (c) कृष्ण प्रेम दिवानी


(iv) मीराँबाई किसके चरणों में अपने आपको न्योछावर करना चाहती थी ?


(a) कृष्ण के


(b) राम के


(c) शिवजी के


(d) राधा के


उत्तरः (a) कृष्ण के


12. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :


(i) कवयित्री मीराँबाई का जन्म कहाँ हुआ था ?


उत्तरः मीराँबाई का जन्म कुड़की, मेड़ता प्रांत, राजपूताने में हुआ था।


(ii) मीराँबाई की शादी किसके साथ हुई थी ?


उत्तरः मीराँबाई की शादी मेवाड़ के महाराजा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज के साथ हुई थी।


(iii) मीराँबाई के नाना कौन थे ?


उत्तरः मीराँबाई के नाना राव दूदाजी थे।


(iv) किस मंदिर में मीराँबाई ने प्राण गँवा दिए ?


उत्तरः मीराँबाई ने द्वारका के श्री रणछोड़ जी के मंदिर में प्राण गँवा दिए।


(v) मीराँबाई के भक्तिपरक फुटकर पद किस नाम से प्रसिद्ध है ?


उत्तरः मीराबाई के भक्तिपरक फुटकर पद 'पदावली' नाम से प्रसिद्ध हैं।


(vi) मीराँबाई की काव्य भाषा मुख्यतः क्या थी ?


उत्तरः मीराँबाई की काव्य भाषा मुख्यतः राजस्थानी थी।


(vii) मीराँबाई किसका दर्शन चाहती थी ?


उत्तरः मीराँबाई भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन चाहती थी।


(viii) मीराँबाई का जीवनाधार कौन है ?


उत्तरः मीराँबाई का जीवनाधार भगवान श्रीकृष्ण है।


(ix) मीराँबाई के पिता कौन थे ?


उत्तरः मीराँबाई के पिता रत्न सिंह थे।


(x) मीराँबाई ने मनुष्यों से किस नाम का रस पीने का आह्वान किया है ?


उत्तरः मीराँबाई ने मनुष्यों से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान किया है।


अंक : 2/3


B. संक्षिप्त प्रश्न :


1.मीराँ भजन की लोकप्रियता पर प्रकाश डालो।


उत्तरः मीराँबाई के भजन भारतीय जनसाधारण के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं। कबीरदास, सूरदास और तुलसीदास के भजनों की तरह मीरा के भजन भी लोग पसंद करते हैं। उनकी भक्ति-भावना और काव्यत्व के कारण उनके गीत-पद अनूठे बन पड़े हैं।


2. मीराँबाई के वंश का परिचय दो।


उत्तरः मीराँबाई राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा से थीं। उनका जन्म राजपूताने के कुड़की स्थान में हुआ था।


3. मीराँ के हृदय में कृष्ण भक्ति का बीज कैसे अंकुरित हुआ ?


उत्तरः मीराँबाई का लालन-पालन उनके दादा राव दूदाजी ने किया, जो परम कृष्ण भक्त थे। उनके साथ रहकर मीराँ के हृदय में कृष्ण भक्ति का बीज अंकुरित हुआ।


4. मीराँबाई का देख-रेख किसने क्या था और क्यों ?


उत्तरः मीराँबाई का देख-रेख उनके दादा राव दूदाजी ने किया, क्योंकि उनकी माता का निधन बचपन में हो गया था और पिता युद्धों में व्यस्त थे।


5. मीराँबाई ने आविस्कार राजप्रासाद क्यों त्याग दिया ?


उत्तरः मीराँबाई ने राजप्रासाद त्याग दिया क्योंकि उन्हें प्रभु कृष्ण की आराधना और साधुओं की संगति में अधिक रुचि थी। उन्होंने राजघराने की यातनाओं का सामना किया लेकिन अपने भक्ति मार्ग से नहीं हटीं।


6.मीराँबाई का बचपन किस प्रकार बीता था ?


उत्तरः मीराँबाई का बचपन संघर्षपूर्ण रहा। माता के निधन के बाद दादा की देखरेख में वह बड़े हुईं, जहाँ उनके हृदय में कृष्ण भक्ति की प्रेरणा मिली।


7.मीरा का देहावसान किस प्रकार हुआ था ?


उत्तरः मीराँबाई का देहावसान द्वारका के श्री रणछोड़ जी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते-करते हुआ, जहाँ वह भगवान की मूर्ति में विलीन हो गईं।


8. कवयित्री मीराबाई की काव्य भाषा पर प्रकाश डाली।


उत्तरः मीराँबाई ने मुख्यतः राजस्थानी में काव्य रचना की है, लेकिन उनके पदों में ब्रज, खड़ी बोली, पंजाबी, और गुजराती के शब्द भी मिलते हैं।


9. मीराँबाई के पदक्यों अनूठे बन पड़े है ?


उत्तरः मीराँबाई के पद कृष्ण प्रेम-माधुरी, सहज अभिव्यक्ति, और सांगीतिक लय के मिलन के कारण अनूठे और महत्वपूर्ण बन पड़े हैं।


10.मीराँबाई किसे सत्य किसे झुठा मानती थी ?


उत्तरः मीराबाई जग सुहाग को मिथ्या मानती थीं और अविनाशी प्रभु कृष्ण को सत्य मानती थीं।


11. मीराबाई किसके श्रीचरणों में अपने आपको न्योचावर कना चाहती है और क्यों ?

उत्तरः मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण के श्रीचरणों में अपने आपको न्योछावर करना चाहती थीं, क्योंकि वह उन्हें अपना आराध्य और पति मानती थीं।


12.मीराँबाई ने अपने आराध्य से क्या-क्या निवेदन किया ?


उत्तरः मीराबाई ने अपने आराध्य से कृपा, दर्शन और जल्दी मिलने की प्रार्थना की है।


13. मीराँबाई ने ऐसा क्यों कहा है कि जब उनके हृदय मे कृष्ण भक्ति का उदय हुआ था, तब उसे कोई नही जानता था, पर अब सब जानते हैं?


उत्तरः मीराबाई का यह कथन उनके गहन प्रेम और समर्पण को दर्शाता है, जो पहले छिपा था लेकिन अब उनके भजनों और भक्तिमय जीवन के कारण सबको ज्ञात हो गया है।


14.मीराबाई के पद त्रिवेणी संगम के समान पावन एवं महत्वपूर्ण क्यों बन पड़े ?


उत्तरः मीराबाई के पदों में कृष्ण प्रेम, भक्ति, और काव्यात्मकता का त्रिवेणी संगम है, जिससे वे पावन एवं महत्वपूर्ण बन गए हैं।


15.मीराँ ने मनुष्य मात्र से क्या अनुरोध किया था और क्यों ?


उत्तरः मीराँ ने मनुष्यों से कुसंग छोड़कर सत्संग में बैठकर कृष्ण का कीर्तन सुनने का अनुरोध किया, ताकि वे भक्ति में लीन हो सकें।


16.सुन्दर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण देते हुए कवयित्री ने उनसे क्या-क्या कहा है ?


उत्तरः मीराँ ने सुंदर श्याम से कहा है कि वह उनके विरह में पीली पड़ गई हैं और उनके बिना उन्हें सुध-बुध नहीं है, अतः वह जल्दी आएं और उनके मान की रक्षा करें।


17.मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराँबाई ने कौन-सा उपदेश दिया ?


उत्तरः मीराँबाई ने कहा कि सभी मनुष्य कुसंग छोड़ें और सत्संग में बैठकर कृष्ण का कीर्तन सुनें, ताकि वे अपने अंदर प्रेम और भक्ति का अनुभव कर सकें।


18. मीराँबाई अपने आराध्य से कया-कया निवेदन करती है?


उत्तरः मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण से कृपा, दर्शन, और जल्द मिलने की निवेदन करती हैं।


आशय स्पष्ट करो :


(i) मैं तो चरण लागी गोपाल ॥ जब लागी तब कोऊँ न जाने, अब जानी संसार।


उत्तरः इस पंक्ति में मीराबाई अपने आराध्य गोपाल के प्रति अपने पूर्ण समर्पण को व्यक्त कर रही हैं। वे कहती हैं कि जब उन्होंने गोपाल के चरणों में श्रद्धा और भक्ति अर्पित की, तब किसी को इसका ज्ञान नहीं था। लेकिन अब, उनके इस समर्पण का संसार को पता चल गया है। यह संकेत करता है कि उनकी भक्ति अब केवल निजी अनुभव नहीं, बल्कि सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। मीराबाई का यह भाव दर्शाता है कि वे अपने आराध्य के प्रति इतनी समर्पित हैं कि अब उन्हें अन्य किसी चीज़ की परवाह नहीं है।


(ii) म्हारे आसा और ण स्वामी, एक तिहारो थ्याण। मीराँ के प्रभु वेग मिलो अब, राषी जी मेरी प्राण।


उत्तरः इस पद में मीराबाई अपने जीवन की संपूर्ण आशा को अपने प्रभु श्रीकृष्ण के साथ जोड़ती हैं। वे प्रकट करती हैं कि उनके लिए केवल श्रीकृष्ण का आना ही महत्वपूर्ण है, जो उनकी आत्मा और जीवन का आधार है। "राषी जी मेरी प्राण" कहकर वे यह स्पष्ट करती हैं कि उनका जीवन प्रभु की कृपा पर निर्भर है। उनका यह आग्रह भक्तिरस और प्रगाढ़ प्रेम को दर्शाता है, जिसमें वे अपने प्रभु से त्वरित मिलन की कामना कर रही हैं।


(iii) राम नाम रस पीजै मनुआँ, राम नाम रस पीजै ॥ तज कुसंग सतसंग बैठ णित हरि चरचा सुण लीजै।


उत्तरः इस पद में मीराबाई सभी मनुष्यों को राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान कर रही हैं। वे कहती हैं कि सभी को कुसंग (बुरे संग) को त्यागकर सत्संग (अच्छे संग) में बैठकर भगवान का कीर्तन करना चाहिए। "हरि चरचा सुण लीजै" का अर्थ है कि प्रभु के गुणों का गुणगान सुनना चाहिए। यह पंक्ति भक्ति की महत्ता और कृष्ण नाम के जप से मिलने वाले आध्यात्मिक आनंद को दर्शाती है, जिसमें वे समाज को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रही हैं।


अंक 4/5


C. विवरणात्मक प्रश्न :


1.पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मीराबाई कृष्ण के प्रेम की दीवानी थी।


उत्तरः मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका थीं। उनके भजनों में कृष्ण के प्रति असीम प्रेम और भक्ति का भाव स्पष्ट झलकता है। वे अपने आराध्य को अपना पति मानती थीं और अपने जीवन का संपूर्ण समर्पण उनके चरणों में करती थीं। उनके पदों में कृष्ण के प्रति प्रेम का तीव्रता और उनके विरह का दर्द भावपूर्ण तरीके से व्यक्त किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे कृष्ण की प्रेम-दीवानी थीं।


2.पठित पदों के आधार पर मीराँ की दास्य भक्ति भावना पर प्रकाश डालो।


उत्तरः मीराबाई की दास्य भक्ति भावना उनके पदों में स्पष्ट दिखाई देती है। वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण के चरणों में आत्मसमर्पण करती हैं और उन्हें अपने जीवन का आधार मानती हैं। अपने भजनों में वे श्रीकृष्ण के प्रति अपने पूर्ण समर्पण और प्रेम का अनुभव साझा करती हैं, जिससे उनकी दास्य भावना का स्पष्ट प्रमाण मिलता है।


3. मीराँबाई के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालो।

उत्तरः मीराबाई का जन्म 1498 के आस-पास मेड़ता प्रांत के कुड़की स्थान में हुआ। उनके माता-पिता का निधन बचपन में हो गया, और उनका लालन-पालन दादा राव दूदाजी ने किया। विवाह के बाद, जब उनके पति भोजराज का निधन हुआ, तो उन्होंने समाज की परंपराओं का विरोध करते हुए सती होने से इंकार कर दिया और कृष्ण की भक्ति में लीन हो गईं। मीराबाई अंत में द्वारका पहुंची और वहीं भजन करते-करते भगवान की मूर्ति में विलीन हो गईं।


4.कवयित्री मीराँबाई का साहित्यिक परिचय प्रस्तुत करो।


उत्तरः मीराबाई की काव्य रचनाएँ हिंदी की उपभाषा राजस्थानी में हैं, जिसमें ब्रज, खड़ी बोली, पंजाबी, और गुजराती के शब्दों का समावेश है। उनकी रचनाएँ मुख्यतः कृष्ण भक्तिपरक हैं, जिनमें लगभग दो सौ फुटकर पद शामिल हैं। उनके पद प्रेम, भक्ति, और काव्यात्मकता के अद्भुत संगम को दर्शाते हैं, जो उन्हें अन्य कवियों से विशिष्ट बनाते हैं।


5.पठित पाठ के आधार पर मीराबाई की भक्ति भावना का निरूपण करो।


उत्तरः मीराबाई की भक्ति भावना उनके जीवन और रचनाओं में गहराई से समाहित है। वे भगवान श्रीकृष्ण को अपने जीवन का संपूर्ण केंद्र मानती थीं और उन्हें अपने प्रेम और समर्पण का प्रतीक मानती थीं। उनके पदों में कृष्ण के प्रति प्रेम, विरह, और भक्ति का गहरा अनुभव मिलता है, जिससे उनकी भक्ति भावना की पवित्रता और गहराई स्पष्ट होती है।


6.मीराँबाई किससे कृपा चाहती हैं ?गिरधर गोपाल की प्राप्त करने के लिए मीराँबाई को कया कया खोना पड़ा था ?


उत्तरः मीराबाई गिरधर गोपाल से कृपा चाहती हैं। अपने आराध्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपने परिवार, राजघराने की सुख-सुविधाओं, और सामाजिक मान-सम्मान को खो दिया। राजघराने की यातनाएँ सहने के बावजूद, उन्होंने अपने कृष्ण प्रेम को प्राथमिकता दी और अपनी भक्ति मार्ग पर चलते रही।


7. पठित पदों के आधार पर मीराँबाई की भक्ति-भावना पर। प्रकाश डालो।


उत्तरः मीराबाई के पदों में उनकी भक्ति-भावना की सजीव अभिव्यक्ति होती है। वे कृष्ण को अपने हृदय का स्वामी मानती हैं और उनके चरणों में पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करती हैं। उनके भजनों में कृष्ण के प्रति विरह और प्रेम का गहरा अनुभव मिलता है, जिससे यह पता चलता है कि उनकी भक्ति केवल धार्मिक नहीं, बल्कि गहन भावनात्मक भी थी। उनके पदों में उन्होंने साधकों को सत्संग की महत्ता भी बताई है।


Answer by Reetesh Das (MA in Hindi) and Dikha Bora

Edit By Dipawali Bora (23.04.2022)

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