" दोहा-दशक"

1. सही विकल्प का चयन करो:
(क) कवि बिहारीलाल किस काल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं?
उत्तर: रीतीकाल के।

(ख) कविवर बिहारी की काव्य-प्रतिभा से प्रसन्न होने वाले मुगल सम्राट थे-
उत्तर: शाहजहांँ।

(ग) कवि बिहारी का देहावसान कब हुआ?
उत्तर: 1663 ई को।

(घ) श्रीकृष्ण के सिर पर क्या शोभित है?
उत्तर: मुकुट।

(ङ) कवि बिहारी ने किन्हें सदा साथ रहने वाली संपत्ति माना है?
उत्तर: यदुपति कृष्ण को।

2. निम्नलिखित कथन शुद्ध हैं या अशुद्ध, बताओं:

(क) हिंदी के समस्त कवियों में भी बिहारीलाल अग्रिम पंक्ति के अधिकारी है।
उत्तर: शुद्ध

(ख) कविवर बिहारी को संस्कृत और प्राकृत के प्रसिद्ध काव्य- ग्रंथों के अध्ययन का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था।
उत्तर: अशुद्ध

(ग)1645 ई. के आस-पास कवि बिहारी वृत्ति लेने जयपुर पहुंचे थे।
उत्तर: शुद्ध

(घ) कवि बिहारी के अनुसार ओछा व्यक्ति भी बड़ा बन सकता है।
उत्तर: अशुद्ध

(ङ) कवि बिहारी का कहना है कि दुर्दशाग्रस्त होने पर भी धन का संचय करते रहना कोई नीति नहीं है।
उत्तर: शुद्ध

3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) कवि बिहारी ने मुख्य रूप से कैसे दोहों की रचना की है?
उत्तर: कवि बिहारी ने मुख्य रूप से प्रेम-सृंगार और गौण रूप से भक्ति एवं नीतिपरक दोहों की रचना की है।

(ख) कविवर बिहारी किन के आग्रह पर जयपुर में ही रुक गए?
उत्तर: कविवर बिहारी महाराज जयसिंह और चौहानी रानी के आग्रह पर जयपुर में ही रुक गए।

(ग) कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार-ग्रंथ किस नाम से प्रसिद्ध है।
उत्तर: कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार ग्रंथ "बिहारी सतसई"नाम से प्रसिद्ध है।

(घ) किसमें किससे सौ गुनी अधिक मादकता होती है?
उत्तर: सोने में धतूरे से सौ गुनी अधिक मादकता होती है।

(ङ) कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से क्या-क्या न गिनने की प्रार्थना की है?
उत्तर: कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से गुण और अवगुण को न गिनने की प्रार्थना की है।

4. अति संक्षेप में उत्तर दो:

(क) किस परिस्थिति में कविवर बिहारी काव्य-रचना के लिए जयपुर में ही रुक गए थे?
उत्तर: बिहारी की काव्य-प्रतिभा चारों ओर फैल गई थी। जयपुर के महाराज जयसिंह और चौहानी रानी के आग्रह पर कवि बिहारी जयपुर में ही रुक गए तथा प्रत्येक दोहे के लिए एक अशर्फी की शर्त पर काव्य-रचना करने लगे।

(ख) 'यहि बानक मो बसौ, सदा बिहारीलाल' - का भाव क्या है?
उत्तर: इसका भाव यह है कि सर पर मोर का मुकुट पहने, कमर में पीला वस्त्र धारण किए, हाथ में मुरली लिए तथा गले में माला पहने श्रीकृष्ण को देख कवि मोहित हो जाते हैं और श्री कृष्ण का यही रूप उनके मन में हमेशा बसता है।

(ग) 'ज्यों-ज्यों बूड़ै श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु  होई'-  का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर: इसका आशय यह है कि जैसे-जैसे कवि श्री कृष्ण के भक्ति भावना में विलीन हो जाते है वैसे-वैसे उनका प्रेम उनके प्रति बढ़ने लगता है।

(घ) 'आँटे पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय'-  के जरिए कवि क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: इसके जरिए कवि यह कहना चाहते हैं कि नम्रता दिखाने पर भी दुष्ट प्रकृति के लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। समय आने पर वे लोक प्राण का हरण भी कर सकते हैं। यानी कष्ट पहुंचा सकते हैं। जिस तरह कांटे के चुभने से हमें कष्ट पहुंँचता है, ठीक वैसे ही दुष्ट प्रकृति के लोग हमेशा दुख  पहुंँचाते हैं।

(ङ) 'मन काँचैं  नाचै बृथा, सांँचै रांँचै राम'- का तात्पर्य बताओ।
उत्तर: इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपने अंतर्मन से भक्ति भावना नहीं करेगा तो वह भक्ति बेकार है। चाहे वह बाहर से दिखावा करने के लिए माला जपे या माथे पर तिलक लगाएं। ऐसे भक्ति भावना से कोई भी काम सिद्ध नहीं होता। अर्थात सच्ची भक्ति करनी है तो चंचल मन को त्याग पवित्र मान तथा सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करनी होगी, तब जाकर हमें सफलता मिलेगी।

5. संक्षेप में उत्तर दो:

(क) कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव कैसा होता है?
उत्तर: कवि के अनुसार अनुरागी चित्त यानी जो ईश्वर से प्रेम तथा भक्ति करता है उसका स्वभाव कोई नहीं समझ पाता। वह अपने कृष्ण भक्ति में इतना खो जाता है कि जैसे-जैसे वह अपने ईश्वर की भक्ति भावना में डूबता जाता है वैसे-वैसे उसका मन पवित्र हो जाता है। अतः अनुरागी का ह्रदय प्रेम की भावनाओं में विलीन हो जाता है।

(ख) सज्जन का स्नेह कैसा होता है?
उत्तर: सज्जन का स्नेह गंभीरता से भरा हुआ होता है। सज्जन की स्नेह की गंभीरता कभी कम नहीं होती। जिस तरह मंजीठ के रंग से बना कपड़ा भले ही पुराना भोकर फट जाए उसका रंग कभी भी फीका नहीं पड़ता। ठीक उसी तरह सज्जन का स्नेह भी कभी फीका नहीं पड़ता।

(ग) धन के संचय के संदर्भ में कवि ने कौन-सा उद्देश दिया है?
उत्तर: धन के संचय के संदर्भ में कवि ने उपदेश दिया है कि वह धन किस काम का जो विपत्ति के समय काम ही न आए। अर्थात धन संचय करना चाहिए लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने बुरे परिस्थितियों या  दुर्दशा ग्रस्त होने पर भी ध्यान का प्रयोग नहीं करते। यहांँ तक कि बेकार पड़े धन को मदद के लिए दूसरों को भी नहीं देते। इसीलिए कवि का उपदेश है कि उतना ही धन संचय करो जितना जीवन जीने के काम आए। बिना किसी काम आए धन की संचय से हमें क्या मिलेगा। इससे अच्छा उस धन को विपत्ति में पड़े लोगों की सहायता में लगाएं।

(घ) दुर्जन के स्वभाव के बारे में कवि ने क्या कहा है?
उत्तर: कवि ने हमें दुर्जन व्यक्ति से सावधान रहने को कहा है। उन पर तुरंत विश्वास न करने की सलाह दी है। क्योंकि वह दुर्जन व्यक्ति हमेशा ही दूसरों को कष्ट पहुंचाते हैं। यहांँ तक कि अवसर पाते ही प्राण भी हरण कर सकते हैं। अतः कवि ने दुर्जन व्यक्ति को कांटे के समान माना है। जिस तरह कांटा चुभने पर कष्ट पहुंचता है, वैसे ही दुर्जन व्यक्ति हमेशा कष्ट ही पहुंचाते हैं।

(ङ) कवि बिहारी इस वेश में अपने आराध्य कृष्ण को मन में बसा लेना चाहते हैं?
उत्तर: कवि को आराध्य कृष्ण का वह रूप मनमोहक लगता है जब श्री कृष्ण अपने सर पर मोर का मुकुट तथा कमर में पीला वस्त्र धारण कर, गले में माला और हाथ में मुरली पकड़े हुए होते हैं। तब उन्हें देख उनका मन मोहित हो जाता है, तथा कवि कृष्ण के इसी वेश को अपने मन में बसा लेना चाहते हैं।

(च) अपने उद्धार के प्रसंग में कवि ने गोपीनाथ कृष्णजी से क्या निवेदन किया है?
उत्तर: कवि बिहारी अपने को उद्धार करने के लिए गोपीनाथ कृष्णजी से यह निवेदन करते हैं कि जिस तरह उन्होंने महा पापियों को उद्धार किया है, उसी प्रकार उन्हें भी उद्धार करें। उनके द्वारा किए गए सब गुण-अवगुण यानी पाप-पुण्य को क्षम कर दे। तथा कवि का निवेदन है कि वह कवि के गुण और अवगुणों की गणना न करके दूसरों की तरह उनका भी उद्धार करें।

(छ) कवि बिहारी की लोकप्रियता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत करो।
उत्तर: कवि बिहारीलाल हिंदी साहित्य के अंतर्गत रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उन्होंने मुख्य रूप से प्रेम श्रृंगार और भक्ति एवं नीति के दोहों की रचना करके अपार लोकप्रियता प्राप्त की है। उनकी दोहे की विशेषता यह रही  हैं कि छोटे से चंद में लंबी चौड़ी बात भी संक्षेप में कह देते थे। तथा वे अपने दोहे में गागर में सागर भरने का काम करते है। उनकी ख्याति का आधार उनका एकमात्र 'सतसई' ग्रंथ है। जो 'बिहारी सतसई' नाम से प्रसिद्ध है, जो कि लगभग 700 दोहों का अनुपम संग्रह है।

6. सप्रसंग व्याख्या करो

(क) 'कोऊ कोरिक संग्रहो.......बिपति बिदारनहार।।'
उत्तर:

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग -1 के अंतर्गत कवि बिहारीलाल द्वारा रचित कविता शीर्षक 'दोहा दशक' से लिया गया है।

प्रसंग: प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि  ने अपना समस्त संपत्ति कृष्ण को ही माना है।

व्याख्या: कवि यह कहना चाहते हैं कि इस संसार में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने लाख तथा करोड़ों संपत्ति कमाए हैं। पर उस धन दौलत का क्या काम जो विपत्ति के समय काम ही न आए। इसलिए कवि ने कृष्ण को ही अपना संपत्ति माना है। क्योंकि कवि के हर मुसीबत में कृष्ण उनका साथ देते हैं और हर मुसीबत से छुटकारा दिलाते हैं। इसीलिए उन्हें धन दौलत से कोई मतलब नहीं है। उनकी संपत्ति विपत्तियों का नाश करने वाले श्री कृष्ण से ही है।

(ख) 'जग-माला, छापैं, तिलक........ सांचै रांँचै रामु।।'
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-1 के अंतर्गत कवि बिहारी लाल जी द्वारा रचित कविता शीर्षकदो 'दोहा दशक' से लिया गया है।

प्रसन्न: इस दोहे के माध्यम से भक्ति किस प्रकार होनी चाहिए उसका वर्णन  है।

व्याख्या: प्रस्तुत दोहों के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि वह भक्ति किस काम का जो दिखावे पन से किया जाए। ऐसे कई व्यक्ति है जो हाथ में माला जब माथे में तिलक लगाकर अपने को भगवान का भक्त बताकर दिखावा करते हैं। कवि ने इस प्रकार की भक्ति को बेकार माना है। जिस भक्ति में सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति होती है, जिसमें निस्वार्थ की भावना होती है वहीं सच्ची भक्ति कहलाता है। इसीलिए हमें अपने चंचल मन को त्यागकर सच्चे तथा शुद्ध मन से भक्ति करनी चाहिए। और जो सच्चे मन से भक्ति करता है भगवान भी उसका साथ देता है।

(ग) 'कनक कनक तैं सौ गुनी......इहिं पाएंँ बौंराइ।।'
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग -1 के अंतर्गत कवि बिहारी लाल जी द्वारा रचित कविता शीर्षक ' दोहा दशक' से लिया गया है।

प्रसंग: इस पंक्ति के जरिए कवि ने यह बताने की कोशिश की है कि किस तरह लोग संपत्तिवान होने पर अहंकारी एवं घमंडी बन जाते हैं।

व्याख्या: इस दोहे में कवि ने कनक शब्द के दो अर्थ बताएं हैं। एक कनक को धतूरा तो दूसरे को सोना कहां है। इन दोनों का उदाहरण देकर कवि हमें यह समझाने का प्रयास करते हैं कि जिस तरह धतूरा खाने से मनुष्य उन्माद या मादकता से पागल हो जाता है। ठीक उसी तरह सोने को पाते ही मनुष्य पागल हो जाता है। कवि का कहना है कि सोने में धतूरे से सौ गुनी ज्यादा नशा होता है। क्योंकि धन-संपत्ति पाते ही व्यक्ति घमंडी और स्वार्थी बन जाता हैं। हमेशा अपने धन संपत्ति में ही उन्माद रहता है। इसीलिए उन्होंने सोने में धतूरे से भी ज्यादा नशा होने की बात कही है।
(घ) 'ओछे बड़े न ह्वै सकैं.......... फारि निहारै नैन।'
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग -1 के अंतर्गत कवि बिहारी लाल जी द्वारा रचित कविता शीर्षक 'दोहा दशक' से लिया गया है।

प्रसंग: यहांँ कवि ने नीच स्वभाव के व्यक्ति का वर्णन किया है।

व्याख्या: कवि ने कहा है कि छोटे लोग कभी बड़े नहीं हो सकते। अर्थात नीच स्वभाव के व्यक्ति कभी बड़े के समान नहीं बन सकते। जिस प्रकार लाख कोशिश करने पर भी हम आकाश की सीमा का विस्तार नहीं कर सकते, जिस तरह अपने आंखों को जितना भी बड़ा करके देखें तब भी आंँख अपने स्वभाविक आकार से बड़ी नहीं हो पाती। अर्थात जो नीच स्वभाव का व्यक्ति है वह लाख कोशिश करने पर भी महान नहीं हो सकता है।



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Edit by Jyotish Kakati (24/04/2022)






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