मणि-कांचन सहयोग

(1) सही विकल्प का चयन करो:
अ. धुवाहाता-बेलगुरि नामक पवित्र स्थान कहांँ स्थित है?
उत्तर: माजुलि में।

आ. शंकरदेव के साथ शास्त्रार्थ से पहले मधवदेव थे-
उत्तर: शाक्त थे।

इ. सांसारिक जीवन में शंकरदेव और मधवदेव का कैसा संबंध था?
उत्तर: मामा भांजे का।

ई. शंकरदेव के मुंँह से किस ग्रंथ का श्लोक सुनकर माधवदेव निरुत्तर हो गए थे?
उत्तर: 'भागवत' का।

2. किसने किससे कहा, बताओ:

(क) 'मांँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।'
उत्तर: यह वाक्य माधवदेव ने देवी गोसानी से कहा।

(ख) 'बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है।'
उत्तर: यह वाक्य बहनोई रामदास ने माधवदेव से कहा।

(ग) 'अब तक मैंने कितने ही धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है।'
उत्तर: यह वाक्य माधवदेव ने बहनोई रामदास से कहा।

(घ) 'वह एक ही बात से तुम्हें निरुत्तर कर देंगे।'
उत्तर: यह वाक्य रामदास ने माधवदेव से कहा।

(ङ) 'यह दीघल-पूरीया गिरि का पुत्र माधव है।'
उत्तर: यह वाक्य रामदास ने शंकरदेव से कहा।

3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुलि कहांँ बसा हुआ है?
उत्तर: विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुलि महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गोद में बसा हुआ है।

(ख) श्रीमंत शंकरदेव का जीवन-काल किस ई. से किस ई. तक व्याप्त है?
उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव का जीवन काल 1449 ई. से 1568 ई. तक व्याप्त है।

(ग) शंकर-माधव का मिलना असम-भूमि के लिए कैसा साबित हुआ?
उत्तर: शंकर-माधव का मिलन असम-भूमि के लिए सोने में सुगंध जैसा साबित हुआ।

(घ) महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र क्या देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था?
उत्तर: महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद में मामा-भांजे को गुरु-शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था।

(ङ) माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव क्या बोले?
उत्तर: माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद संकरदेव बोले-'तुम्हें पाकर आज मैं पूरा हुआ।'

(च) इस घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था?
उत्तर: पवित्र स्थान धुवाहाता-बेलगुरि में हुए दोनों महापुरुषों के महामिलन से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था।

4. अति संक्षिप्त उत्तर दो:

(क) ब्रह्मपुत्र नदी किस प्रकार शंकरदेव-माधवदेव के महामिलन का साक्षी बना था?
उत्तर: महाबहू ब्रह्मपुत्र नद की गोद में बसा विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है माजुलि। इसी दीप में धुवाहाता बेलगुरि नामक पवित्र स्थान है, जहांँ भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम शाक्त माधव देव का महामिलन हुआ था। इस कारण ब्रह्मपुत्र इस महामिलन का साक्षी बना।

(ख) धुवाहाता-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव किस महान प्रयास में जुटे हुए थे?
उत्तर:- धुवाहाता-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव उस समय हो रहे शक्ति की उपासना, तंत्र-मंत्र, बलि विधान एवं अनेकानेक कठोर धार्मिक बाह्याचारों से जकड़े हुए असमीया समाज को मुक्ति का नया पथ दिखाने तथा उसे आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलने के महान प्रयास में जुटे हुए थे।

(ग) माधवदेव ने कब और क्या मनौती मानी थी?
उत्तर: माधवदेव जब अपनी सारी पैत्रिक संपत्ति बांडुका में बसे बड़े भाई दामोदर को सौंपकर भांडारीडुबि की ओर वापस आ रहे थे तो उनको खबर मिली कि उनके मांँ सख्त बीमार है। यह खबर सुनकर माधवदेव अपनी विधवा मांँ के स्वास्थ्य को लेकर अत्यंत चिंतित हो उठे। तो उन्होंने तुरंत मनौती मानी की 'हे देवी गोसानी! तुम्हें सफेद बकरों का एक जोड़ा भेट करूंँगा। मांँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।'

(घ) 'इसके लिए आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।'-प्रस्तुत पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट करो।
उत्तर: माधवदेव ने देवी गोसानी से मनौती मांगी थी कि उनकी मांँ की बीमारी को वे शीघ्र स्वस्थ कर दे। स्वस्थ होने पर वे उनको सफेद बकरों का एक जोड़ा भेज करेगा। देवी गोसानी की कृपा से उनकी मांँ स्वस्थ होने लगी थी। तो माधवदेव ने मनौती के अनुसार सफेद बकरी का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए बहनोई रामदास से अनुरोध किया और आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।

(ङ) 'माधवदेव आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आया है।'-किसने किससे और किस परिस्थिति में ऐसा कहा था?
उत्तर: यह पंक्ति रामदास ने गुरु शंकरदेव से कहा था। जब माधवदेव और रामदास के बीच में बलि विधान के प्रसंग को लेकर वाद विवाद शुरू हुआ तो रामदास ने अपने गुरु शंकरदेव का जिक्र किया। और कहा की शंकरदेव उन्हें शास्त्रार्थ में निरुत्तर कर सकते हैं। तो दोनों गुरु शंकरदेव के पास शास्त्रार्थ करने पहुंचे।

5. संक्षेप में उत्तर दो:

(क) शंकर-माधव के महामिलन के संदर्भ में 'मणि-कांचन सहयोग' आख्या की सार्थकता स्पष्ट करो।
उत्तर: महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गोद में बसा विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है माजुलि। इसी में स्थित है धुवाहाता बेलगुरि नामक वह पवित्र स्थान जहांँ एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम शाक्त माधवदेव का महामिलन हुआ था। यह महामिलन मध्ययुगीन असम की ही नहीं, बल्कि असम-भूमि के संपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास की संभवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। दोनों ने मिलकर वैष्णव धर्म का प्रचार किया और असमिया समाज को तंत्र-मंत्र, बलि विधान आदि धार्मिक बाह्याचारों से समाज को मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। 
           शंकर-महादेव का मिलन पावन असम भूमि के लिए सोने में सुगंध-जैसा साबित हुआ। मिलन से भारतवर्ष के इस पूर्वोत्तरी भूखंड में भागवती वैष्णव-धर्म अथवा एकशरण नाम-धर्म के प्रचार-प्रचार कार्य में एक अद्भुत गति आ गई थी।

(ख) बहनोई रामदास के घर पहुंँचने पर  माधवदेव ने क्या पाया और उन्होंने क्या किया?
उत्तर: माधवदेव ने अपने बहनोई रामदास के घर पहुंँचने पर पाया कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी मांँ स्वस्थ होने लगी थी। यह देखकर माधवदेव की जान में जान आई और अपने मन ही मन देवी माता को प्रणाम करके उनके प्रति अकृत्रिम कृतज्ञता प्रकट की।थोड़ी ही दिनों में मांँ पूरी तरह स्वस्थ हो उठी तो माधवदेव ने मनौती के अनुसार सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए बहनोई रामदास से अनुरोध किया।

(ग) रामदास ने बलि-विधान के विरोध में माधवदेव से क्या-क्या कहा?
उत्तर: माधवदेव ने अपने मनौती के अनुसार रामदास को सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीदने को कहा था। माधवदेव देवी पूजा के दिन उन बकरों की बलि चढ़ाना चाहते थे। परंतु रामदास ने मोल-भाव करके बकरों को मालिक के पास ही रख आए थे। लेकिन माधव देव ने बकरों को ले आने का प्रस्ताव रखा। इसके उत्तर में रामदास ने कहा कि 'बकरे लाकर क्या करोगे? इस लोक में बकरा काटने वाले को उस लोक में बकरे के हाथों करना पड़ता है।'साथ-साथ यह भी कहा कि बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। उससे किसकी प्राप्ति होगी? दूसरी जीव की हत्या बेकार ही तुम क्यों करोगे? 'गुरु शंकरदेव से मिली ज्ञान ज्योति के बल पर रामदास ने माधवदेव को बहुत समझाया पर उन बातों से माधवदेव जरा भी प्रभावित नहीं हुए।

(घ) शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव द्वारा उद्धृत 'भागवत' के श्लोक का अर्थ सरल हिंदी में प्रस्तुत करो।
उत्तर: "यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कंधभुजोपशाखा:।
प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वोर्च्चनमच्युतेभ्य:।।' इस श्लोक का हिंदी में अर्थ है जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से टहनियांँ, पत्ते, फूल, फल सब संजीवित होते हैं अथवा अन्न- ग्रहण के जरिए प्राण का पोषण करने से मानव-शरीर की सारी इंद्रियांँ तृप्त होती है, उसी प्रकार परब्रह्म कृष्ण की उपासना करने से सारे देवी-देवता अपने-आप संतुष्ट हो जाते हैं।

(ङ) शंकरदेव की साहित्यिक दिन को स्पष्ट करो।
उत्तर: शंकरदेव की साहित्यिक देन असमीया समाज में ही नहीं अपितु असम भूमि के संपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास की संभवत: सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव ने वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया और उन्होंने अधिक उन्मुक्त भाग से साहित्य-सृष्टि, संगीत-रचना आदि के जरिए असमीया भाषा-साहित्य-संस्कृत को परिपुष्ट बनाने में सक्षम हुए। उन्होंने कीर्तन-घुषा, गुणमाला, भक्ति-प्रदीप, हरिचंद्र उपाख्यान, रुक्मिणी-हरण काव्य, बलिछलन, कुरुक्षेत्र आदि काव्य रचनाएंँ की है। उनके द्वारा रचित अंकिया नाट जिसमें पत्नीप्रसाद, कालियदमन,  केलिगोपाल, रुक्मिणी-हरण  पारिजात-हरण और रामविजय प्रसिद्ध है।कहा जाता है कि उन्होंने 12 कोडी बरगीत भी रखे थे। जिनमें से लगभग 35 वर्गी थी आज उपलब्ध है।

(च) माधवदेव की साहित्यिक दिन को स्पष्ट करो।
उत्तर: माधवदेवी भी शंकरदेव की तरह अपनी अनमोल देन से असमीया समाज को हमेशा के लिए गौरव के अधिकारी बनाने के काम में सफल प्रमाणित हुए।आप की काव्य रचनाओं में नामघोषा, जन्मरहस्य, राजसूर्य, भक्ति रत्नावली आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आपने चोर-धरा, पिंपरा-गुचोवा, भोजन-बिहार, भूमि-लेटोवा, दधि-मंथन आदि नाटक भी रखे हैं। अपने गुरु की आज्ञा से आपने नौ कोड़ी ग्यारह बरगीत भी रचे, जिनमें से लगभग एक सौ इक्यासी बरगीत आज उपलब्ध है।

6. सम्यक उत्तर दो:

(क) माधवदेव की मांँ की बीमारी के प्रसंग को सरल हिंदी में वर्णन करो।
उत्तर: माधवदेव अपनी सारी संपत्ति अपने बड़े भाई दामोदर को सौंप कर टेंबुवानि की ओर वापस आ रहे थे तो उन्हें खबर मिली कि उनकी मांँ बहुत बीमार है। बीमार की खबर पाते ही वह अत्यंत चिंतित हो गए। उन्होंने तुरंत देवी गोसानी से प्रार्थना की और मनौती मांगी की उन्हें शीघ्र स्वस्थ कर दे। ऐसा करने पर वे उन्हें सफेद बकरों का एक जोड़ा भेंट में देंगे।
      माधवदेव जब बहनोई रामदास के घर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी मांँ स्वस्थ हो गई है। मांँ को स्वस्थ देख उन्होंने चैन की सांस ली। जब कुछ दिन बाद मांँ संपूर्ण स्वस्थ हो चली तो माधवदेव ने अपने बहनोई रामदास को सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए अनुरोध किया।

(ख) बलि हेतु बकरे खरीदने को लेकर रामदास और माधवदेव के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में प्रस्तुत करो।
उत्तर: परम शाक्त माधवदेव बलि विधान पर विश्वास करते थे। इसीलिए मनौती के अनुसार देवी पूजा के दिन सफेद बकरों के जोड़े को बलि देना चाहते थे। दूसरी ओर उनके बहनोई रामदास शंकरदेव के शिष्य होने के कारण वैष्णव धर्म को अपना आधार मानते थे। रामदास बलि विधान के विरोधी थे। इसीलिए उन्होंने माधवदेव के अनुरोध से जो सफेद बकरों का जोड़ा खरीदा था उसे मालिक के पास ही छोड़ आए थे। तो माधवदेव ने  इसका कारण पूछा तो रामदास ने उत्तर में कहा कि 'बकरे लाकर क्या करोगे? इस लोक में बकरा काटनेवाले को उस लोग में बकरे के हाथों काटना पड़ता है।'साथ में यह भी कहा कि बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। इसलिए तुम दूसरी जीव की हत्या बेकार में मत करो। अगर ऐसा करोगे तो इसका परिणाम तुम्हें अवश्य मिलेगा। परंतु रामदास की बातों से माधवदेव पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उल्टा क्रोधित होकर बहनोई से कहने लगे कि उन्होंने जितनी धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है उनमें उसके द्वारा कहे गए बातों का कहीं भी जिक्र नहीं है। और कहा कि वे जानना चाहते हैं कि उसे किस शास्त्र में ऐसी बातें मिली है। रामदास अपने गुरु शंकरदेव के पास माधवदेव को ले जाते हैं। ताकि माधवदेव को अपना सही उत्तर शंकरदेव से मिल सके।

Reetesh Das

MA in Hindi(G.U.)


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