मणि-कांचन सहयोग

(1) सही विकल्प का चयन करो:
अ. धुवाहाता-बेलगुरि नामक पवित्र स्थान कहांँ स्थित है?
उत्तर: माजुलि में।

आ. शंकरदेव के साथ शास्त्रार्थ से पहले मधवदेव थे-
उत्तर: शाक्त थे।

इ. सांसारिक जीवन में शंकरदेव और मधवदेव का कैसा संबंध था?
उत्तर: मामा भांजे का।

ई. शंकरदेव के मुंँह से किस ग्रंथ का श्लोक सुनकर माधवदेव निरुत्तर हो गए थे?
उत्तर: 'भागवत' का।

2. किसने किससे कहा, बताओ:

(क) 'मांँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।'
उत्तर: यह वाक्य माधवदेव ने देवी गोसानी से कहा।

(ख) 'बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है।'
उत्तर: यह वाक्य बहनोई रामदास ने माधवदेव से कहा।

(ग) 'अब तक मैंने कितने ही धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है।'
उत्तर: यह वाक्य माधवदेव ने बहनोई रामदास से कहा।

(घ) 'वह एक ही बात से तुम्हें निरुत्तर कर देंगे।'
उत्तर: यह वाक्य रामदास ने माधवदेव से कहा।

(ङ) 'यह दीघल-पूरीया गिरि का पुत्र माधव है।'
उत्तर: यह वाक्य रामदास ने शंकरदेव से कहा।

3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुलि कहांँ बसा हुआ है?
उत्तर: विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुलि महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गोद में बसा हुआ है।

(ख) श्रीमंत शंकरदेव का जीवन-काल किस ई. से किस ई. तक व्याप्त है?
उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव का जीवन काल 1449 ई. से 1568 ई. तक व्याप्त है।

(ग) शंकर-माधव का मिलना असम-भूमि के लिए कैसा साबित हुआ?
उत्तर: शंकर-माधव का मिलन असम-भूमि के लिए सोने में सुगंध जैसा साबित हुआ।

(घ) महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र क्या देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था?
उत्तर: महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद में मामा-भांजे को गुरु-शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था।

(ङ) माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव क्या बोले?
उत्तर: माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद संकरदेव बोले-'तुम्हें पाकर आज मैं पूरा हुआ।'

(च) इस घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था?
उत्तर: पवित्र स्थान धुवाहाता-बेलगुरि में हुए दोनों महापुरुषों के महामिलन से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था।

4. अति संक्षिप्त उत्तर दो:

(क) ब्रह्मपुत्र नदी किस प्रकार शंकरदेव-माधवदेव के महामिलन का साक्षी बना था?
उत्तर: महाबहू ब्रह्मपुत्र नद की गोद में बसा विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है माजुलि। इसी दीप में धुवाहाता बेलगुरि नामक पवित्र स्थान है, जहांँ भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम शाक्त माधव देव का महामिलन हुआ था। इस कारण ब्रह्मपुत्र इस महामिलन का साक्षी बना।

(ख) धुवाहाता-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव किस महान प्रयास में जुटे हुए थे?
उत्तर:- धुवाहाता-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव उस समय हो रहे शक्ति की उपासना, तंत्र-मंत्र, बलि विधान एवं अनेकानेक कठोर धार्मिक बाह्याचारों से जकड़े हुए असमीया समाज को मुक्ति का नया पथ दिखाने तथा उसे आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलने के महान प्रयास में जुटे हुए थे।

(ग) माधवदेव ने कब और क्या मनौती मानी थी?
उत्तर: माधवदेव जब अपनी सारी पैत्रिक संपत्ति बांडुका में बसे बड़े भाई दामोदर को सौंपकर भांडारीडुबि की ओर वापस आ रहे थे तो उनको खबर मिली कि उनके मांँ सख्त बीमार है। यह खबर सुनकर माधवदेव अपनी विधवा मांँ के स्वास्थ्य को लेकर अत्यंत चिंतित हो उठे। तो उन्होंने तुरंत मनौती मानी की 'हे देवी गोसानी! तुम्हें सफेद बकरों का एक जोड़ा भेट करूंँगा। मांँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।'

(घ) 'इसके लिए आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।'-प्रस्तुत पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट करो।
उत्तर: माधवदेव ने देवी गोसानी से मनौती मांगी थी कि उनकी मांँ की बीमारी को वे शीघ्र स्वस्थ कर दे। स्वस्थ होने पर वे उनको सफेद बकरों का एक जोड़ा भेज करेगा। देवी गोसानी की कृपा से उनकी मांँ स्वस्थ होने लगी थी। तो माधवदेव ने मनौती के अनुसार सफेद बकरी का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए बहनोई रामदास से अनुरोध किया और आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।

(ङ) 'माधवदेव आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आया है।'-किसने किससे और किस परिस्थिति में ऐसा कहा था?
उत्तर: यह पंक्ति रामदास ने गुरु शंकरदेव से कहा था। जब माधवदेव और रामदास के बीच में बलि विधान के प्रसंग को लेकर वाद विवाद शुरू हुआ तो रामदास ने अपने गुरु शंकरदेव का जिक्र किया। और कहा की शंकरदेव उन्हें शास्त्रार्थ में निरुत्तर कर सकते हैं। तो दोनों गुरु शंकरदेव के पास शास्त्रार्थ करने पहुंचे।

5. संक्षेप में उत्तर दो:

(क) शंकर-माधव के महामिलन के संदर्भ में 'मणि-कांचन सहयोग' आख्या की सार्थकता स्पष्ट करो।
उत्तर: महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गोद में बसा विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है माजुलि। इसी में स्थित है धुवाहाता बेलगुरि नामक वह पवित्र स्थान जहांँ एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम शाक्त माधवदेव का महामिलन हुआ था। यह महामिलन मध्ययुगीन असम की ही नहीं, बल्कि असम-भूमि के संपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास की संभवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। दोनों ने मिलकर वैष्णव धर्म का प्रचार किया और असमिया समाज को तंत्र-मंत्र, बलि विधान आदि धार्मिक बाह्याचारों से समाज को मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। 
           शंकर-महादेव का मिलन पावन असम भूमि के लिए सोने में सुगंध-जैसा साबित हुआ। मिलन से भारतवर्ष के इस पूर्वोत्तरी भूखंड में भागवती वैष्णव-धर्म अथवा एकशरण नाम-धर्म के प्रचार-प्रचार कार्य में एक अद्भुत गति आ गई थी।

(ख) बहनोई रामदास के घर पहुंँचने पर  माधवदेव ने क्या पाया और उन्होंने क्या किया?
उत्तर: माधवदेव ने अपने बहनोई रामदास के घर पहुंँचने पर पाया कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी मांँ स्वस्थ होने लगी थी। यह देखकर माधवदेव की जान में जान आई और अपने मन ही मन देवी माता को प्रणाम करके उनके प्रति अकृत्रिम कृतज्ञता प्रकट की।थोड़ी ही दिनों में मांँ पूरी तरह स्वस्थ हो उठी तो माधवदेव ने मनौती के अनुसार सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए बहनोई रामदास से अनुरोध किया।

(ग) रामदास ने बलि-विधान के विरोध में माधवदेव से क्या-क्या कहा?
उत्तर: माधवदेव ने अपने मनौती के अनुसार रामदास को सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीदने को कहा था। माधवदेव देवी पूजा के दिन उन बकरों की बलि चढ़ाना चाहते थे। परंतु रामदास ने मोल-भाव करके बकरों को मालिक के पास ही रख आए थे। लेकिन माधव देव ने बकरों को ले आने का प्रस्ताव रखा। इसके उत्तर में रामदास ने कहा कि 'बकरे लाकर क्या करोगे? इस लोक में बकरा काटने वाले को उस लोक में बकरे के हाथों करना पड़ता है।'साथ-साथ यह भी कहा कि बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। उससे किसकी प्राप्ति होगी? दूसरी जीव की हत्या बेकार ही तुम क्यों करोगे? 'गुरु शंकरदेव से मिली ज्ञान ज्योति के बल पर रामदास ने माधवदेव को बहुत समझाया पर उन बातों से माधवदेव जरा भी प्रभावित नहीं हुए।

(घ) शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव द्वारा उद्धृत 'भागवत' के श्लोक का अर्थ सरल हिंदी में प्रस्तुत करो।
उत्तर: "यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कंधभुजोपशाखा:।
प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वोर्च्चनमच्युतेभ्य:।।' इस श्लोक का हिंदी में अर्थ है जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से टहनियांँ, पत्ते, फूल, फल सब संजीवित होते हैं अथवा अन्न- ग्रहण के जरिए प्राण का पोषण करने से मानव-शरीर की सारी इंद्रियांँ तृप्त होती है, उसी प्रकार परब्रह्म कृष्ण की उपासना करने से सारे देवी-देवता अपने-आप संतुष्ट हो जाते हैं।

(ङ) शंकरदेव की साहित्यिक दिन को स्पष्ट करो।
उत्तर: शंकरदेव की साहित्यिक देन असमीया समाज में ही नहीं अपितु असम भूमि के संपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास की संभवत: सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव ने वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया और उन्होंने अधिक उन्मुक्त भाग से साहित्य-सृष्टि, संगीत-रचना आदि के जरिए असमीया भाषा-साहित्य-संस्कृत को परिपुष्ट बनाने में सक्षम हुए। उन्होंने कीर्तन-घुषा, गुणमाला, भक्ति-प्रदीप, हरिचंद्र उपाख्यान, रुक्मिणी-हरण काव्य, बलिछलन, कुरुक्षेत्र आदि काव्य रचनाएंँ की है। उनके द्वारा रचित अंकिया नाट जिसमें पत्नीप्रसाद, कालियदमन,  केलिगोपाल, रुक्मिणी-हरण  पारिजात-हरण और रामविजय प्रसिद्ध है।कहा जाता है कि उन्होंने 12 कोडी बरगीत भी रखे थे। जिनमें से लगभग 35 वर्गी थी आज उपलब्ध है।

(च) माधवदेव की साहित्यिक दिन को स्पष्ट करो।
उत्तर: माधवदेवी भी शंकरदेव की तरह अपनी अनमोल देन से असमीया समाज को हमेशा के लिए गौरव के अधिकारी बनाने के काम में सफल प्रमाणित हुए।आप की काव्य रचनाओं में नामघोषा, जन्मरहस्य, राजसूर्य, भक्ति रत्नावली आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आपने चोर-धरा, पिंपरा-गुचोवा, भोजन-बिहार, भूमि-लेटोवा, दधि-मंथन आदि नाटक भी रखे हैं। अपने गुरु की आज्ञा से आपने नौ कोड़ी ग्यारह बरगीत भी रचे, जिनमें से लगभग एक सौ इक्यासी बरगीत आज उपलब्ध है।

6. सम्यक उत्तर दो:

(क) माधवदेव की मांँ की बीमारी के प्रसंग को सरल हिंदी में वर्णन करो।
उत्तर: माधवदेव अपनी सारी संपत्ति अपने बड़े भाई दामोदर को सौंप कर टेंबुवानि की ओर वापस आ रहे थे तो उन्हें खबर मिली कि उनकी मांँ बहुत बीमार है। बीमार की खबर पाते ही वह अत्यंत चिंतित हो गए। उन्होंने तुरंत देवी गोसानी से प्रार्थना की और मनौती मांगी की उन्हें शीघ्र स्वस्थ कर दे। ऐसा करने पर वे उन्हें सफेद बकरों का एक जोड़ा भेंट में देंगे।
      माधवदेव जब बहनोई रामदास के घर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी मांँ स्वस्थ हो गई है। मांँ को स्वस्थ देख उन्होंने चैन की सांस ली। जब कुछ दिन बाद मांँ संपूर्ण स्वस्थ हो चली तो माधवदेव ने अपने बहनोई रामदास को सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए अनुरोध किया।

(ख) बलि हेतु बकरे खरीदने को लेकर रामदास और माधवदेव के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में प्रस्तुत करो।
उत्तर: परम शाक्त माधवदेव बलि विधान पर विश्वास करते थे। इसीलिए मनौती के अनुसार देवी पूजा के दिन सफेद बकरों के जोड़े को बलि देना चाहते थे। दूसरी ओर उनके बहनोई रामदास शंकरदेव के शिष्य होने के कारण वैष्णव धर्म को अपना आधार मानते थे। रामदास बलि विधान के विरोधी थे। इसीलिए उन्होंने माधवदेव के अनुरोध से जो सफेद बकरों का जोड़ा खरीदा था उसे मालिक के पास ही छोड़ आए थे। तो माधवदेव ने  इसका कारण पूछा तो रामदास ने उत्तर में कहा कि 'बकरे लाकर क्या करोगे? इस लोक में बकरा काटनेवाले को उस लोग में बकरे के हाथों काटना पड़ता है।'साथ में यह भी कहा कि बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। इसलिए तुम दूसरी जीव की हत्या बेकार में मत करो। अगर ऐसा करोगे तो इसका परिणाम तुम्हें अवश्य मिलेगा। परंतु रामदास की बातों से माधवदेव पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उल्टा क्रोधित होकर बहनोई से कहने लगे कि उन्होंने जितनी धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है उनमें उसके द्वारा कहे गए बातों का कहीं भी जिक्र नहीं है। और कहा कि वे जानना चाहते हैं कि उसे किस शास्त्र में ऐसी बातें मिली है। रामदास अपने गुरु शंकरदेव के पास माधवदेव को ले जाते हैं। ताकि माधवदेव को अपना सही उत्तर शंकरदेव से मिल सके।

Additional Questions And Previous Paper Solve

लघुत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1. उन दिनों शंकरदेव किस प्रयास में जुटे हुए थे?

उत्तर: शंकरदेव उन दिनों असमीया समाज को शक्ति की उपासना, तंत्र-मंत्र, बलि-विधान और अन्य कठोर धार्मिक बाह्याचारों से मुक्ति का नया मार्ग दिखाने और उसे आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले जाने के प्रयास में जुटे हुए थे।

2. शंकर-माधव के मिलन से किस कार्य में अद्भुत गति आ गई थी?

उत्तर: शंकर-माधव के मिलन से भागवती वैष्णव धर्म या एकशरण नाम-धर्म के प्रचार-प्रसार में अद्भुत गति आ गई थी।

3. माधवदेव ने क्या मनौती मानी और क्यों?

उत्तर: माधवदेव ने अपनी बीमार मां के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए देवी गोसानी से सफेद बकरों का एक जोड़ा भेंट करने की मनौती मानी थी।

4. बाजार से वापस आकर रामदास ने क्या कहा?

उत्तर: रामदास ने कहा कि बकरों को मालिक के पास रख छोड़ा है, लेकिन वह बलि चढ़ाने के खिलाफ हैं क्योंकि इससे कोई लाभ नहीं होता और इससे विनाशकारी परिणाम होते हैं।

5. बलि न चढ़ाने के समर्थन में रामदास ने माधवदेव से क्या कहा?

उत्तर: रामदास ने कहा कि बलि चढ़ाने से किसी का भला नहीं होता, बल्कि यह विनाशकारी कार्य है। उन्होंने यह भी बताया कि दूसरे जीव की हत्या करके कोई लाभ नहीं होता।

6. माधवदेव को क्या कहकर रामदास ने शंकरदेव के पास ले चला?

उत्तर: रामदास ने कहा कि वह शास्त्रार्थ के लिए योग्य नहीं हैं, इसलिए वे शंकरदेव के पास चलें, जिन्होंने यह ज्ञान दिया है।

7. माधवदेव को शिष्य के रूप में पाकर शंकरदेव ने क्या कहा?

उत्तर: शंकरदेव ने कहा, "तुम्हें पाकर आज मैं पूरा हुआ।"

8. ब्रह्मपुत्र नद किस प्रकार शंकरदेव-माधवदेव के महामिलन का साक्षी बना था?

उत्तर: ब्रह्मपुत्र नद इस महामिलन का साक्षी बना था, जब उसने मामा-भांजे को गुरु-शिष्य बनते देखा और इस मिलन की खुशी में अपनी जलधारा को बंगाल की खाड़ी से होते हुए हिंद महासागर तक ले जाने का आदेश दिया।

9. धुवाहाटा-बेलगुरि सत्र में रहते समय शंकरदेव किस महान प्रयास में जुटे हुए थे?

उत्तर: शंकरदेव वैष्णव धर्म या एकशरण नाम-धर्म के प्रचार-प्रसार के महान कार्य में जुटे हुए थे।

10. माधवदेव ने किसे और क्या मनौती मानी थी?

उत्तर: माधवदेव ने देवी गोसानी से अपनी मां के स्वास्थ्य के लिए सफेद बकरों का जोड़ा भेंट करने की मनौती मानी थी।

'11. इसके लिए आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।' - प्रस्तुत पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट करो।

उत्तर: यह पंक्ति उस समय की है जब माधवदेव ने अपनी मां के स्वस्थ होने के बाद देवी गोसानी को सफेद बकरों का जोड़ा भेंट करने के लिए बकरे खरीदने की जिम्मेदारी बहनोई रामदास को दी और उसके लिए आवश्यक धन देकर स्वयं व्यापार के लिए निकल पड़े।

12. माधवदेव आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आया है। किसने, किससे और किस परिस्थिति में ऐसा कहा था?

उत्तर: रामदास ने यह बात शंकरदेव से कही थी, जब वे माधवदेव को लेकर उनके पास आए थे और माधवदेव शास्त्रार्थ के लिए तैयार थे।

13. मणि-कांचन संयोग किसे कहा गया है?

उत्तर: शंकरदेव और माधवदेव के महामिलन को 'मणि-कांचन संयोग' कहा गया है, क्योंकि इस मिलन ने असम के सांस्कृतिक इतिहास को नया दिशा दी थी।

14. शंकरदेव का साहित्यिक देन को उल्लेख करो।

उत्तर: शंकरदेव ने 'कीर्तन-घोषा', 'गुणमाला', 'भक्ति-प्रदीप', 'हरिश्चंद्र उपाख्यान', 'रुक्मिणी-हरण काव्य', 'बलिछलन', 'कुरुक्षेत्र' जैसे काव्य और 'पत्नीप्रसाद', 'कालियदमन', 'केलिगोपाल', 'रुक्मिणी-हरण', 'पारिजात-हरण', 'रामविजय' जैसे नाट्य रचनाएँ की हैं। इनके अलावा उन्होंने बरगीत भी रचे, जिनमें से लगभग पैंतीस बरगीत आज उपलब्ध हैं।

विवरणात्मक प्रश्न (Essay Type Questions):

1. शंकर-माधव के महामिलन के संदर्भ में 'मणि-कांचन संयोग' की सार्थकता स्पष्ट करो।

उत्तर: 'मणि-कांचन संयोग' की संज्ञा शंकरदेव और माधवदेव के मिलन को दी गई है, क्योंकि इनके मिलन से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ। शंकरदेव और माधवदेव का संयुक्त प्रयास असम की वैष्णव धर्म की नींव को मजबूत बनाने में निर्णायक रहा। शंकरदेव के उपदेश और माधवदेव के समर्पण से असमीया समाज को भक्ति की एक नई दिशा मिली।

2. बहनोई रामदास के घर पहुँचने पर माधवदेव ने क्या पाया और उन्होंने क्या किया?

उत्तर: माधवदेव ने पाया कि उनकी माँ देवी गोसानी की कृपा से स्वस्थ हो रही थीं। उन्होंने माँ के स्वस्थ होने पर देवी के प्रति आभार प्रकट किया और वचन दिया कि वे बकरों की बलि चढ़ाएंगे।

3. रामदास ने बलि-विधान के विरोध में क्या कहा?

उत्तर: रामदास ने कहा कि बलि देना विनाशकारी है और उससे कुछ भी प्राप्त नहीं होता। उन्होंने समझाया कि किसी अन्य जीव की हत्या करना अनुचित है। उनका मानना था कि बलि चढ़ाने वाले को इस लोक में कुछ नहीं मिलता और अगले लोक में बकरे द्वारा ही काटा जाएगा। इसके बजाय उन्होंने परोक्ष रूप से गुरु शंकरदेव से प्राप्त ज्ञान के आधार पर जीवन के प्रवृत्ति-मार्ग की ओर संकेत किया।

4. शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव द्वारा उद्धृत भागवत के श्लोक का अर्थ सरल हिन्दी में प्रस्तुत करो।

उत्तर: शंकरदेव ने 'भागवत' के श्लोक का उद्धरण दिया था: "यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कंधभुजोपशाखाः।प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वार्चनमच्युतेभ्यः।।"

इसका अर्थ है कि जैसे पेड़ की जड़ को पानी देने से उसकी शाखाएं, पत्ते, फल, फूल आदि सभी तृप्त होते हैं, और जैसे अन्न के सेवन से शरीर की सभी इंद्रियां संतुष्ट हो जाती हैं, वैसे ही भगवान कृष्ण की आराधना से सभी देवी-देवता स्वयं ही संतुष्ट हो जाते हैं।

5. शंकरदेव की साहित्यिक देन को स्पष्ट करो।

उत्तर: शंकरदेव ने असमीया भाषा-साहित्य-संस्कृति को समृद्ध करने के लिए कई काव्य-रचनाएं और नाटक लिखे। उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में 'कीर्तन-घोषा', 'गुणमाला', 'भक्ति-प्रदीप', 'हरिश्चंद्र उपाख्यान', 'रुक्मिणी-हरण काव्य', 'बलिछलन', 'कुरुक्षेत्र' आदि शामिल हैं। उन्होंने 'पत्नीप्रसाद', 'कालियदमन', 'केलिगोपाल', 'रुक्मिणी-हरण', 'पारिजात-हरण', 'रामविजय' नामक नाटक भी रचे। उनके द्वारा रचित 'बरगीत' असमीया समाज में महत्वपूर्ण हैं।

6. माधवदेव की मां की बीमारी के प्रसंग को सरल हिन्दी में वर्णित करो।

उत्तर: जब माधवदेव को यह खबर मिली कि उनकी मां गंभीर रूप से बीमार हैं, तो वे बहुत चिंतित हो गए। उन्होंने देवी गोसानी से मन्नत मानी कि यदि उनकी मां ठीक हो गईं, तो वे सफेद बकरों का जोड़ा भेंट करेंगे। उनकी मां धीरे-धीरे ठीक होने लगीं और जब वे पूरी तरह स्वस्थ हो गईं, तो माधवदेव ने मन्नत के अनुसार बकरों का जोड़ा खरीदने का निर्णय लिया।

7. बलि हेतु बकरे खरीदने को लेकर रामदास और माधवदेव के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में प्रस्तुत करो।

उत्तर: माधवदेव ने अपने बहनोई रामदास से बकरे खरीदने को कहा, लेकिन रामदास ने उन्हें यह समझाया कि बलि देना विनाशकारी है और इससे कुछ प्राप्त नहीं होता। उन्होंने कहा कि इस संसार में बकरा काटने वाले को अगले संसार में बकरे द्वारा मारा जाएगा। माधवदेव इस बात से सहमत नहीं थे और उन्होंने अपने अध्ययन के आधार पर बलि का समर्थन किया। उन्होंने बलि-विधान को धर्मशास्त्र के अनुरूप माना, लेकिन रामदास ने गुरु शंकरदेव के ज्ञान के आधार पर बलि के विरोध में अपने तर्क दिए।

8. रामदास और माधवदेव गुरु शंकरदेव के पास कब और क्यों गए थे?

उत्तर: रामदास और माधवदेव अगले दिन सुबह गुरु शंकरदेव के पास गए थे। रामदास ने माधवदेव को शंकरदेव के पास इसलिए ले जाने का निर्णय लिया क्योंकि माधवदेव ने बलि-विधान के संबंध में उनसे शास्त्रार्थ किया था। रामदास ने कहा कि शंकरदेव के पास जाकर शास्त्रार्थ करने से माधवदेव के सवालों का उत्तर मिल जाएगा।

9. शंकरदेव और माधवदेव के बीच किस बात पर शास्त्रार्थ हुआ था? उसका क्या परिणाम निकला?

उत्तर: शंकरदेव और माधवदेव के बीच बलि-विधान और प्रवृत्ति-मार्ग तथा निवृत्ति-मार्ग को लेकर शास्त्रार्थ हुआ था। शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव ने 'भागवत' के श्लोक का उद्धरण दिया, जिसके बाद माधवदेव को यह समझ में आया कि शंकरदेव का दृष्टिकोण सही है। इसके परिणामस्वरूप, माधवदेव का ज्ञान-दंभ समाप्त हो गया और उन्होंने शंकरदेव को अपना गुरु मान लिया।

10. शंकर-माधव के महामिलन के शुभ परिणाम किन रूपों में निकले?

उत्तर: शंकरदेव और माधवदेव के महामिलन से असम की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में एक नई दिशा मिली। इस मिलन के बाद वैष्णव धर्म का प्रचार तेजी से बढ़ा, और कृष्ण-भक्ति की धारा असम के लोगों के बीच प्रवाहित होने लगी। इसके साथ ही असमीया समाज के साहित्य, संगीत और संस्कृति में भी एक नई उन्नति आई।

11. श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव की साहित्यिक देन के बारे में लिखें।

उत्तर: शंकरदेव ने 'कीर्तन-घोषा', 'गुणमाला', 'भक्ति-प्रदीप' जैसी काव्य रचनाएं कीं। उन्होंने नाटक भी रचे, जिनमें 'पत्नीप्रसाद', 'कालियदमन', 'केलिगोपाल' आदि प्रमुख हैं। माधवदेव ने 'नामघोषा', 'जन्मरहस्य', 'भक्ति रत्नावली' जैसे काव्य लिखे। उन्होंने 'बरगीत' भी रचे, जिनमें से लगभग 181 आज भी उपलब्ध हैं।

12. असमीया साहित्य जगत में शंकरदेव की देन के बारे में एक टिप्पणी लिखो।

उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव ने असमीया साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने न केवल धार्मिक काव्य रचनाएं कीं, बल्कि नाटक और संगीत के माध्यम से भी असमीया समाज को समृद्ध किया। उनके द्वारा रचित 'कीर्तन-घोषा' और 'बरगीत' असमीया समाज के लिए आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

11. प्रसंग सहित व्याख्या करो :

(क) "ऐसी स्थिति में योग्य गुरु शंकर को योग्य शिष्य माधव मिल गए।"

उत्तर: जब शंकरदेव असम के समाज को धर्म और आध्यात्मिकता के सरल मार्ग पर लाने का प्रयास कर रहे थे, तब उन्हें माधवदेव के रूप में एक योग्य शिष्य मिले, जिनके साथ मिलकर उन्होंने वैष्णव धर्म का प्रचार और प्रसार किया।

(ख) "उसने इस महामिलन के उमंग-रस को बंगाल की खाड़ी से होकर हिंद महासागर तक पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जलधारा को आदेश दिया था।"

उत्तर: यह वाक्य ब्रह्मपुत्र नदी के प्रतीकात्मक हर्ष को दर्शाता है, जब उसने शंकरदेव और माधवदेव के महामिलन का उत्सव मनाते हुए उसकी खबर बंगाल की खाड़ी से होते हुए हिंद महासागर तक पहुंचाने का संदेश दिया।

(ग) "उत्तर भारतीय समाज में रामचरितमानस का आदर जितना है, असमीया समाज में कीर्तनघोषा-नामघोषा का भी आदर उतना ही है।"

उत्तर: यह तुलना दर्शाती है कि जिस प्रकार रामचरितमानस का महत्व उत्तर भारतीय समाज में है, उसी प्रकार 'कीर्तन-घोषा' और 'नाम-घोषा' असमीया समाज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ हैं।

(घ) "परब्रह्म कृष्ण की उपासना करने से सारे देवी-देवता अपने-आप संतुष्ट हो जाते हैं।"

उत्तर: इस वाक्य का तात्पर्य है कि यदि व्यक्ति कृष्ण की उपासना करता है, तो उसे अन्य देवी-देवताओं की उपासना करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि कृष्ण की उपासना से सभी देवता संतुष्ट हो जाते हैं।


Answer by - Reetesh Das and Suman Saikia

MA in Hindi(G.U.)

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