चरैवेति
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1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो:
(क) कवि ने 'चलते चलो' का संदेश कवि ने किसे दिया है?
उत्तर: कवि ने चलते चलो का संदेश हमें यानी मनुष्य को दिया है।
(ख) कवि ने वसुधा को रत्नमयी क्यों कहा है?
उत्तर: कवि ने वसुधा को रत्नमयी इसलिए कहा है क्योंकि पृथ्वी ने हमें आश्रय और जीवन धारण करने के लिए सब कुछ दिया है। अर्थात पृथ्वी से ही हमें वे सारे उपकरण एवं साधन प्राप्त हो जाते हैं जिससे हमें आश्रय और जीवन निर्वाह करने में आसानी होती है।
(ग) कवि ने किस-किस के साथ निरंतर चलने का संदेश दिया है?
उत्तर: कवि ने सूरज, ऋतु, तारे, चंदा नदी और मेघों के साथ निरंतर चलने का संदेश दिया है।
(घ) किन पंक्तियों में कवि ने मनुष्य की सामर्थ्य और अजेयता का उल्लेख किया है?
उत्तर: रत्नमयी वसुधा पर
चलने को चरन दिए
बैठी उस क्षितिज पार
लक्ष्मी सृंगार किए,
आज तुम्हें मुक्ति मिली, कौन तुम्हें दास कहे?
(ङ) निरंतर प्रयत्नशील मनुष्य को कौन-कौन से सुख प्राप्त होते हैं?
उत्तर: निरंतर प्रयत्नशील मनुष्य को स्वाधीनता, प्रगति, विकास तथा सुख शांति सब कुछ प्राप्त जाता है।
(च) 'रुकने को मरण' कहना कहांँ तक उचित है?
उत्तर: कवि ने रुकने को मरण कहा है।यह बात ठीक भी है क्योंकि जीवन में अगर परिस्थितियों के साथ न लड़के यूंँ ही बैठे रहे तो वह एक प्रकार से मृत्यु ही कहलाएगा। वास्तव में चलते रहने का नाम ही है जीवन। और रुक जाने का नाम है मृत्यु।
(छ) कवि ने मनुष्य को 'तुमसे है कौन बड़ा' क्यों कहा है?
उत्तर: कवि ने तुमसे है कौन बड़ा इसलिए कहा है क्योंकि संसार में मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है जिसने अपने कदम जहांँ-जहांँ रखें वहांँ-वहांँ उसने नगर बनवाएंँ और तीर्थ स्थल बनवाएंँ, जो कि संसार का कोई दूसरा प्राणी नहीं कर सकता।
(ज) 'युग के ही संग-संग चले चलो'- कथन का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर: समय परिवर्तनशील होता है। समय हमेशा एक जैसा नहीं होता। वह आगे बढ़ता ही रहता है। जिस प्रकार समय बदलता रहता है ठीक उसके साथ-साथ मनुष्य का जीवन शैली भी बदलता है। पुराने संस्कार के बदले नए संस्कार अपना स्थान लेता है। नई सोच और नई उमंग के साथ समाज प्रगति की ओर अग्रसर होता है। इसलिए हमें भी नए युग को अपनाकर पुराने संस्कार एवं रूढ़ियों को त्याग कर आगे बढ़ना चाहिए।
2. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखो:
(क) जो दूसरों के अधीर हो।
उत्तर: गुलाम।
(ख) जो दूसरों के उपकार को मानता हो।
उत्तर: कृतज्ञ।
(ग) जो बच्चों को पढ़ाते हैं।
उत्तर: शिक्षक।
(घ) जो गीत की रचना करते हैं।
उत्तर: गीतकार।
(ङ) जो खेती-वारी का काम करता हो।
उत्तर: किसान।
3. निम्नलिखित समस्त-पदों के विग्रह कर समास का नाम लिखो:
उत्तर:
पितांबर - पीत है अंबर जिसका (बहुव्रीहि समास)
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार (अव्ययीभाव समास)
धनी-निर्धन - धनी और निर्धन (द्वंद्व समास)
कलम-नयन - कलम के समान नयन (कर्मधारय समास)
त्रिफला - तीन फल का समाहार (द्विगु समास)
4. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग करो:
(i) अपना उल्लू सीधा करना-(अपना काम निकालना) अपना उल्लू सीधा करने के लिए राजू ने ठेकेदार को पैसे दिए।
(ii) आंँखों का तारा-(अति प्रिय) हर मांँ के लिए उसका बच्चा आंँखों का तारा होता है।
(iii) उन्नीस-बीस का अंतर है-(बहुत कम अंतर) दौड़ के प्रतियोगिता में रमेश और दीपक के बीच समय का अंतर उन्नीस-बीस का था।
(iv) घी के दिए जलाना (बहुत खुशी मनाना) आज परीक्षा में अव्वल आने के कारण रमेश के माता पिता के मन में घी के दिए जल रहे हैं।
(v) जान पर खेलना (साहसी कार्य करना) जान पर खेलकर रमेश ने दीपक को डूबने से बचाया।
(vi) बाएंँ हाथ का खेल (अति आसान काम) पेड़ से अमरूद तोड़ लाना मेरे लिए बाएंँ हाथ का
Additional Questions And Previous Paper Solve
संक्षिप्त प्रश्न (Short type questions):
1. नरेश मेहता का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: नरेश मेहता का जन्म 1922 ई. में मध्य प्रदेश के शाजापुर कस्बे में हुआ था।
2. मेहता जी किस राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के साप्ताहिक पत्र का संपादन किया था?
उत्तर: मेहता जी ने राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के साप्ताहिक पत्र "भारतीय श्रमिक" का संपादन किया था।
3. मेहता को किस सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया है?
उत्तर: नरेश मेहता को मध्यप्रदेश शासन सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
4. मेहता जी की किस नाम के काव्य से प्रकाशित हुआ था?
उत्तर: नरेश मेहता का संपूर्ण काव्य "समिधा" नाम से दो खंडों में प्रकाशित हुआ है।
5. निरंतर प्रयत्नशील मनुष्य को कौन-कौन से सुख प्राप्त होते हैं?
उत्तर: निरंतर प्रयत्नशील मनुष्य को जीवन में प्रगति, समृद्धि, और विकास के सुख प्राप्त होते हैं। ऐसे मनुष्य को लक्ष्मी (धन-संपत्ति) और जीवन में विजय मिलती है।
6. 'रुकने को मरण' कहना कहाँ तक उचित है?
उत्तर: 'रुकने को मरण' कहना इसलिए उचित है क्योंकि जीवन और प्रगति का नियम निरंतर आगे बढ़ते रहना है। रुक जाना जड़ता और समाप्ति का प्रतीक होता है, जबकि चलते रहना जीवन का प्रतीक है।
7. कवि ने मनुष्य को "तुमसे है कौन बड़ा" क्यों कहा है?
उत्तर: कवि ने मनुष्य को "तुमसे है कौन बड़ा" इसलिए कहा है क्योंकि मनुष्य अपनी निरंतर यात्रा और प्रयत्न से नगरों और तीर्थों का निर्माण करता है। उसकी रचनात्मकता और कर्मशीलता उसे सबसे महान बनाती है।
8. 'युग के ही संग-संग चले चलो' कथन का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि व्यक्ति को समय और युग के साथ कदम मिलाकर चलना चाहिए। निरंतर परिवर्तन और प्रगति के साथ जीवन में आगे बढ़ते रहना ही सफलता का मार्ग है।
9. नरेश मेहता 'आस्था और जागृति' के कवि हैं, कविता के आधार पर सिद्ध करो।
उत्तर: नरेश मेहता की कविता 'चरैवेति' में आस्था और जागृति के भाव प्रकट होते हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में मनुष्य को निरंतर प्रयास करने और जीवन में आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है। वे स्वाधीनता, प्रगति और विश्वबंधुत्व के समर्थक हैं, जो उनके आस्था और जागृति के कवि होने को सिद्ध करते हैं।
विवरणात्मक प्रश्न (Essay type questions):
1. मेहता जी के कुछ काव्य का नाम लिखो।
उत्तर: नरेश मेहता की प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं:
(i) महाप्रस्थान
(ii) संशय की एक रात
(iii) प्रवाद पर्व
(iv) मेरा समर्पित एकांत
(v) वनपाखी सुनो
(vi)प्रार्थना पुरुष
संपूर्ण काव्य "समिधा" नाम से दो खंडों में प्रकाशित है।
2. मेहता जी ने किस साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया था?
उत्तर: मेहता जी ने प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "कृति" का संपादन किया था।
3. 'चरैवेति' कविता का मूलभाव लिखो।
उत्तर: 'चरैवेति' कविता का मूलभाव यह है कि जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन में प्रगति और विकास का मूलमंत्र है कि रुकने का नाम मृत्यु है, जबकि चलते रहने का नाम जीवन और विजय है। इस कविता में सूर्य, तारे, नदी, और मेघ जैसे प्राकृतिक बिंबों का प्रयोग कर स्वाधीनता, प्रगति और समृद्धि की प्रेरणा दी गई है।
4. 'चरैवेति' कविता का सारांश लिखो।
उत्तर: 'चरैवेति' कविता में कवि मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने का संदेश देता है। सूर्य, तारे, नदी और मेघ जैसे प्राकृतिक तत्वों के माध्यम से कवि यह बताता है कि जीवन में स्थिरता मृत्यु के समान है, और जो आगे बढ़ता रहता है, वही विजय प्राप्त करता है। नदियों ने चलकर सागर का रूप लिया, और मेघों ने धरती को गर्भ दिया। इसलिए मनुष्य को भी अपने कर्मों में निरंतरता बनाए रखनी चाहिए, जिससे उसे लक्ष्मी (समृद्धि) प्राप्त होगी। युग के साथ कदम मिलाकर चलते हुए वह विकास और सुखों का आनंद ले सकता है।
5. व्याख्या करो:
उत्तर: रत्नमयी वसुधा पर चलने को चरन दिए बैठी उस क्षितिज पार लक्ष्मी श्रृंगार किए।
इस पंक्ति का आशय यह है कि प्रकृति ने मनुष्य को धरती पर चलते रहने के लिए पैर दिए हैं, जिससे वह अपने प्रयासों से समृद्धि प्राप्त कर सके। लक्ष्मी (समृद्धि) क्षितिज के उस पार बैठी है, जो प्रतीक है कि निरंतर प्रयत्नशील मनुष्य को एक दिन सफलता और समृद्धि का वरदान अवश्य मिलता है।
Reetesh Das and Suman Saikia
MA in Hindi (G.U.)
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