Lesson- 13

     गांँधी और कबीर

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1. गांँधी और कबीर की विचारधाराओं में कहांँ-कहांँ समानताएंँ हैं?

उत्तर: गांँधी और कबीर की विचारधाराओं में कई समानताएँ है जैसे- अध्यात्मिक प्रणाम में, राम नाम की महिमा में, कथनी और करनी में, सर्वाग्रही प्रेम आदि में।

2. गांँधी के अनुसार एकमात्र परमात्मा कौन है?

उत्तर: 'सत्य' ही गांँधी के अनुसार एकमात्र परमात्मा है।

3. कबीर और गांँधी के राम कौन है?

उत्तर: कबीर और गांँधी के राम परब्रह्म सत्य राम है। न कि दशरथि  राम।

4.'अन्न त्यागने से गोपाल नहीं मिल सकते, अध्यात्मिक सिद्धि नहीं हो सकती।'- यह किसका मत है?

उत्तर:'अन्न त्यागने से गोपाल नहीं मिल सकते, अध्यात्मिक सिद्धि नहीं हो सकती। यह मत कबीर जी का है।

5. गांँधी के धार्मिक मतों की समीक्षा कीजिए।

उत्तर: गांँधीजी सब धर्मों के आवरण की और दृष्टिपात न करके मानव धर्म को ही अपना परम धर्म समझते थे।परमात्मा के प्रति सच्ची लगन और सभी प्राणी-मात्र के साथ शुद्ध व्यवहार ही गांधी का मूल धर्म था। जिसके कारण सब धर्मों के लोगों तथा प्रवर्तकों में उनकी श्रद्धा थी।

6. 'सर्वग्राही प्रेम कबीर का बल था, यही गांँधी का बल है।'- कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर: कबीर सर्वग्राही प्रेम को अपना आत्मशक्ति मानते थे। कबीर अपने में ही नहीं प्रत्येक जीव में, चर अचर में, अणु-परमाणु में, यहांँ तक कि खून की प्यासी तलवार, प्राणों की ग्राहक गोली तथा इनका प्रयोग करने वाले विरोधियों में भी परमात्मा को देखते थे। सब में परमात्मा के दर्शन हो पाना ही मानवता की सबसे बड़ी विजय है।  गांँधी भी कबीर की भांति समाज के सभी वर्गों में सर्वाग्रही प्रेम लाना चाहते थे। गांँधी ने ऐसा किया भी। इसीलिए कहा गया है कि सर्वग्राही प्रेम कबीर का बल था और यही गांधी का बल है।

7.'अछूत अछूत नहीं है। उन्हें अछूत मानकर हम स्वयं अछूत बन रहे हैं।'- लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर: लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि मनुष्य ने ही अपने अनुसार धर्म जात का निर्माण किया है। परमात्मा के लिए मानव से मानव का कोई भेदभाव नहीं है। सिद्धांतिक रूप में तो लोग मानते हैं कि सब में परमात्मा का अंश बराबर रूप में है। पर जब सिद्धांतों को कार्य में लाने की बात आती है तब मनुष्य के बीच अहंकार आ जाता है। और तभी मनुष्य ऊंँच-नीच तथा छुआ-छूत की भावना अपने अनुसार बना लेता है। जो कि गलत है। तथा लेखक का कहना है कि हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। अगर हम ऐसी सोच रखकर दूसरों को अछूत मानते हैं तो स्वयं अछूत कहलाएंगे। बल्कि असल में अछूत-अछूत है ही नहीं। उसे तो हमने  स्वयं बनाया है। न कि परमात्मा ने।

8. व्याख्या कीजिए-

(क)बुराई का नाश करने के लिए बुरे का शत्रु होना जरूरी नहीं है। बुरे का मित्र होकर भी बुराई का नाश किया जा सकता है।

उत्तर:

संदर्भ- प्रस्तु गद्यांश हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत पीतांबर दत्त बड़थ्वाल जी द्वारा रचित निबंध 'गांँधी और कबीर'  से लिया गया है।

प्रसंग- यहांँ गांँधी द्वारा यह संदेश दिया गया है कि हमें बुरे लोगों के साथ शत्रु जैसा व्यवहार न कर उसके साथ मित्रता कर बुराई का नाश करना चाहिए।

व्याख्या- लेखक कहते हैं कि गांँधी सत्य में निष्ठा और असत्य का बहिष्कार करने में विश्वास करते थे। गांँधी का संदेश है कि अगर हम सत्य पर सदैव दृष्टि रखेंगे तो कभी एक दूसरे के खिलाफ लड़ाई-झगड़ा नहीं करेंगे। अगर कभी एक दूसरे के खिलाफ कोई गलतफहमी भी हो जाए, तो सत्य के न्यायालय में उसका निराकरण आसानी से हो सकता है। गांँधी कहते हैं कि किसी बुरे आदमी को शत्रु की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। अगर शत्रु बनकर बुराई का नाश करने जाएंगे तो हम खुद बुरे बन जाएंगे। इसलिए बुराई का नाश करने के लिए बुरे का शत्रु होना जरूरी नहीं है, बुरे का मित्र होकर भी बुराई का नाश किया जा सकता है।

(ख)यदि कबीर अपनी ही कविता के समान, सीधी-सादी भाषा में उल्लिखित आदर्श है, तो गांँधी उसकी और भी सुबोध क्रियात्मक व्याख्या।

उत्तर:

संदर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत पीतांबर दत्त बड़थ्वाल जी द्वारा रचित निबंध 'गांधी और कबीर' से लिया गया है।

प्रसंग- यहांँ लेखक ने भिन्न युगों में जन्मे महापुरुषों की महानता का बखान करते हुए कहा है कि जगत में कल्याण तभी होगा जब हम उनके दिखाए गए पद चिन्हों पर चलेंगे।


व्याख्या- कबीर और गांँधी ने अपने आदर्श और व्यवहार से सब का हृदय जीता था। कबीर ने अपनी कविता के माध्यम से लोगों को जागृत किया और अपने आदर्शों को जन-जन तक पहुंँचाया। दूसरी ओर गांँधी जी ने व्यवहारिक व्यक्ति के रूप में जन-जन के बीच जाकर आध्यात्मिकता के बल पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को सुधारा और समाज को एक नई दिशा दिखलाइए। अतः लेखक का कहना है कि अगर हम इन दों महापुरुषों का प्रतिलिपि भी बन सके अर्थात उनके द्वारा दिखाए गए राह पर भी चल चले तो जगत का अपार कल्याण होगा।

(ग)'केवल आचरण का भेद है, तथ्य का नहीं।'

उत्तर:

संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत पीतांबर दत्त बड़थ्वाल जी द्वारा रचित निबंध 'गांँधी और कबीर' से लिया गया है।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में कबीर और गांधी की आध्यात्मिकता के बारे में चर्चा की गई है। जो कि दोनों के बीच पांँच शताब्दी का अंतर है फिर भी उन दोनों के विचारधाराओं एवं सिद्धांतों में कोई अंतर नहीं है।

व्याख्या- लेखक के अनुसार कबीर और गांँधी में काफी समानताएंँ देखने को मिलते हैं। दोनों ही अपने-अपने युगों के महानायक है। दोनों ही आध्यात्मिकता के इतने सच्चे प्रतिनिधि थे कि दोनों के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा थी। प्रन्दहवीं शताब्दी में कबीर ने मानव कल्याण हेतु जो शिक्षा दी, वहीं शिक्षा बीसवीं शताब्दी में गांँधीजी ने दिया। फर्क सिर्फ इतना है कि शारीरिक रूप से दोनों में आवरण और आचरण का भेद है, पर दोनों का उद्देश्य एवं आध्यात्मिक तथ्य समान है। दोनों महापुरुषों के विचार धाराओं से समाज को एक नई चेतना मिली है।

9. गांँधी जी कब हरिजन-यात्रा में निकले थे?

उत्तर- सन 1935 में गांधीजी हरिजन-यात्रा में निकले थे।

10. गांँधी की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?

उत्तर: गांँधी की सबसे बड़ी विशेषता आध्यात्मिक प्रेरणा है।


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Reetesh Das

(M.A in Hindi )