Lesson-7
दिल्ली की आपबीती
1. दिल्ली का नामकरण किसने किया था?
उत्तर: दिल्ली का नामकरण राजा अनंगपाल ने किया था।
2. संयुक्ता की शादी किससे हुई थी?
उत्तर: संयुक्ता की शादी पृथ्वीराज चौहान से हुई थी।
3. दिल्ली को बनाने और बिगाड़ने में बाहरी शक्तियों का क्या योगदान रहा है?
उत्तर: दिल्ली को बनाने और बिगाड़ने में बाहरी शक्तियों का काफी योगदान रहा है। सर्वप्रथम दिल्ली की स्थापना तोमरों ने 993 में ही कर दिया था।पहली बार मोहम्मद गौरी ने राजपूतों के शहर पर कब्जा कर दिल्ली सल्तनत की नींव रखी। फिर खिलजी आए और उन्होंने दिल्ली को 'सिरी' के नाम से नामकरण किया। ऐसे ही तुगलक और मुगल भी आए और अपना अधिपत्य स्थापित कर दिल्ली पर राज किया। मुगल शासकों में अकबर ही एक ऐसे शासक बने जिन्होंने धर्म निरपेक्ष नीति बदलकर लंबे समय तक दिल्ली पर शासन किया। इस प्रकार जहांँगीर ने आगरे में ताजमहल का निर्माण कर अपने कलाप्रेमी होने का प्रमाण दिया। फिर अंग्रेज आए उन्होंने भारत की राजधानी को दिल्ली से कोलकाता स्थानांतरण कर दिया। आगे चलकर फिर से दिल्ली को भारत का राजधानी बनाया गया और सर एडविन ने पुरानी दिल्ली को 'नई दिल्ली' के रूप में प्रतिष्ठित किया।
इस प्रकार मुसलमान शासकों से लेकर अंग्रेजों तक दिल्ली का शासन एक शासक से दूसरे शासक के हाथ जाता रहा और दिल्ली इन्हीं शासकों के हाथ कभी बनती तो कभी बिगड़ती चली गई।
4. दिल्ली की नीव किसने और कब रखी थी?
उत्तर: दिल्ली की नीव तोमरों ने 993 ई में रखी थी।
5. मुगल शासन के समय दिल्ली का उत्कर्ष किस प्रकार हुआ है?
उत्तर: मुगल शासन के दौरान दिल्ली का उत्कर्ष सबसे ज्यादा हुआ है। मुगलों ने लगभग 200 वर्ष तक भारत में शासन किया। मुगल सम्राटों ने जितने विशाल साम्राज्य पर सफलतापूर्वक शासन किया उतना अन्य किसी मुस्लिम राज-वंश ने नहीं किया था।
सबसे ज्यादा अकबर के शासन काल में मुगलो ने काफी उन्नति की थी। क्योंकि वह एक धर्म निरपेक्ष शासक थे। उसने दीन-ए-इलाही धर्म का प्रचार प्रसार किया। उन दिनों मुगल सम्राटों का दरबार अपने वैभव तथा अपने गौरव के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। शाहजहांँ ने अपनी बेगम की याद में ताजमहल बनवाया, जो कि विश्व विख्यात है। तथा हम यह कह सकते हैं कि दिल्ली, आगरा तथा फतेहपुर सीकरी में जो भव्य भवनों, मस्जिदों एवं मकबरे का निर्माण किया गया है वह मुगलों के ही देन है। उन्हीं के काल में ललित कलाओं की उन्नति हुई, जिनका विकास केवल शांतिपूर्ण वातावरण में ही हो सकता था।
6. 'हजार साल की अपनी जिंदगी में बराबर-बनती बिगड़ती रही हूंँ।'- 'दिल्ली' के इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर: लेखक ने दिल्ली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए दिल्ली के द्वारा दिल्ली की आत्मकथा को सुनाने का प्रयास किया है। प्रस्तुत व्याक्य के जरिए दिल्ली बताती है कि इन हजार सालों में उसने खुद को बराबर बनते और बिगड़ते देखा है। क्योंकि हजार सालों से कई राजवंशों ने उस पर राज किया है। दिल्ली का तख्त हासिल करने के लिए एक दूसरे को लड़ते देखा है। शासनकाल के दौरान दिल्ली ने खुद को कभी सिरी, तो कभी तुगलकाबाद तो कभी फिरोजाबाद नाम से अपने को जाना है। अतः दिल्ली का कहना है कि वह किसी शासक वंश के द्वारा बनती ही है कि दूसरा शासक आकर उसे बिगाड़ देता है। इसीलिए दिल्ली आज भी नई दुल्हन की तरह सज धज कर खड़ी है। उसे पता है कि यह अंत नहीं है और जो हो रहा है, जो होने वाला है उससे वह दुखी भी नहीं है। क्योंकि उसने हजार सालों से खुद को बनते और बिगड़ते ही तो देखा है।
7.व्याख्या कीजिए।
(क) 'मेरी हवा में इतनी कराह कभी न उठी थी, मेरी जमीन आंँसुओं से इतनी गिली कभी न हुई थी, जितनी आज हुई। मेरा कभी हताश न होने वाला दिल भी एक बार बैठ गया। सूरज जो दूसरे दिन मेरे महलों के पीछे से निकला तो बोला, जैसा कल था, वैसा आज नहीं।
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत भगवतशरण उपाध्याय जी द्वारा रचित निबंध 'दिल्ली की आपबीती' से लिया गया है।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियों में राष्ट्रपति महात्मा गांधी के मारे जाने पर किस प्रकार दिल्ली के हर एक कोने-कोने में गम का माहौल छाने लगता है उसका वर्णन स्वयं दिल्ली दे रही है।
व्याख्या: महात्मा गांधी ने भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाई थी। सभी गांधी को राष्ट्रपिता मानते थे। उन दिनों उनके द्वारा दिलाई गई स्वतंत्रता की खुशी चारों ओर मनाई जा रही थी। स्वाधीन भारत को 6 महीने ही नहीं हुए कि तभी नाथूराम गोडसे ने गांँधी को गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना से समस्त जगत हिल गया था। दिल्ली में तो लोगों ने गम के आंँसू इतने बहाए की दिल्ली की सड़कें आंँसुओं में बदल गए। हमेशा से चहल पहल करती दिल्ली थम सी गई। तथा दिल्ली स्वयं कहती है कि उसने इतनी पीड़ा कभी नहीं देखी थी। अगले दिन जब सूरज निकला, तब दिल्ली सूरज को कहता है कि पिछले दिनों की तरह दिल्ली में जो चमक थी, वह चमक आज इस दिल्ली में नहीं है। अतः समस्त दिल्ली गम के आंँसू रो रहा है।
(ख) 'जमुना के तीर खड़ी जब-जब मैंने अंगड़ाई ली है, तख्त उलट गए हैं, जमाने ने करवट ली है।'
उत्तर:
संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत भगवतशरण उपाध्याय जी द्वारा रचित निबंध 'दिल्ली की आपबीती' से लिया गया है।
प्रसंग- यहांँ दिल्ली अपनी आत्मकथा बजाती हुई कहती है कि उसने कई राजवंशों के शासन को बनते और बिगड़ते हुए देखा है।
व्याख्या- दिल्ली का स्वयं कहना है कि वह यमुना के किनारे स्थित एक नवयुवती की भांति है। उसने जब-जब अपनी अंगड़ाई ली है तब-तब बड़े से बड़े शासकों के सिंहासन उलट-पुलट हो गए। उसके करवत से जमाना बदल गया। कहने का भाव यह है कि दिल्ली ने अनेक राजवंशों के शासन को देखा और भोगा है। उन शासकों की राख आज भी दिल्ली के रेत में झिलमिला रही है। एक-एक करते कई शासक वर्ग आए और दिल्ली पर राज कर दिल्ली के रेट में इतिहास बनकर समा गए। लेकिन दिल्ली आज भी वही जमुना के तीर खड़ी सब कुछ देख रही है।
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Reetesh Das
(M.A in hindi)