Lesson 9

            सूरदास के पद


1. सूरदास ने कृष्ण के बाल रूप का कैसा वर्णन प्रस्तुत किया है?

उत्तर: सूरदास ने कृष्ण के बाल रूप का वर्णन मनमोहक एवं मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने काव्य में वात्सल्य रस का मार्मिक चित्रण क्या है। वात्सल्य के अंतर्गत सूरदास जी ने कृष्ण की विभिन्न चेष्टाओं और क्रीड़ाओं का विशद वर्णन किया है। उनके पदों में माता यशोदा द्वारा कृष्ण को पालने में झूलाना, कृष्ण का घुटनों के बल चलना, किलकारी मारना, माखन चुराना, चालाकी एवं चतुराई पूर्ण बातों से सबका मन जीतना आदि विविध एवं विभिन्न प्रसंगों को सूरदास ने अत्यंत रोचकतापूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है। अतः हिंदी साहित्य में सूरदास जी ने कृष्ण के वात्सल्य रूप को लेकर जिस प्रकार काव्य की रचना की है शायद ही किसी और ने किया है।


2. पुत्र के मुंँह को देखकर यशोदा की प्रतिक्रिया कैसी हुई?

उत्तर: जब कृष्ण अपनी यशोदा मैया की गोदी में खेल रहा होता है तब कृष्ण अपना मुंँह खोल कर मैया को तीनों लोकों का दर्शन करा देता है। जिसे देख यशोदा आश्चर्यचकित हो जाती है। यशोदा विस्मय में पड़ जाती है कि कहीं कृष्ण के ऊपर किसी का नजर दोष तो नहीं लग गया। इसलिए यशोदा अपनी आशंका दूर करने के उद्देश्य से बालक कृष्ण के गले में बाघनियाँ अर्थात ताबीज बांध देती है।


3. 'तीन लोक' का तात्पर्य क्या है?

उत्तर: तीन लोक का तात्पर्य पृथ्वीलोक, स्वर्गलोक और पाताललोक से है।


4.'बाल लीला' विषयक सूर के पदों का भावार्थ प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: बाल लीला विषयक सूर के पदों में सूरदास जी ने वात्सल्य रस का मार्मिक चित्रण किया है। उन्होंनेे प्रस्तुत पदों में कृष्ण का वात्सल्य काल का वर्णन बड़े ही मनोग्राही एवं मनमोहक तरीके से किया है। प्रथम पद में मांँ यशोदा अपने लाल को निहारती हुई कल्पना की सागर में खोई हुई दिखाई देती है। मांँ यशोदा  चाहती है कि उसका कृष्ण घुटनों के बल चले, उसके दूध के दो दांँत निकले तथा अपने पिता नंद और उसे मांँ-बाबा कहकर पुकारे। इस प्रकार पहले पद में यशोदा मैया शिशु कृष्ण को लेकर कल्पना की सागर खोई हुई दिखाई देती है।

     दूसरे पद में मांँ यशोदा को लगता है कि अब कृष्ण थोड़े बड़े हो गए हैं। उनके दूध के दो दांँत निकल आई है। इसी दृश्य को देख यशोदा फूले नहीं समा रही है और इस दृश्य को दिखाने के लिए यशोदा नंद को भी बुलाती है।

     तीसरे पद में मांँ अपने लाल को अपनी गोदी में लिए लाल को खिला रही होती है कि तभी लाल अपना मुंँह खोल मैया को ब्रह्मांड का दर्शन करा देता है। जिसे देख यशोदा आश्चर्यचकित हो जाती है। यशोदा चिंता में पड़ जाती है और सोचने लगती है कि लाल को कुछ हो न जाए। इसीलिए वह निवारण के लिए ज्योतिषियों से संपर्क कर उसे बधनियाँ अर्थात ताबीज बांध देती है। अंत में सूरदास कहते हैं कि बड़े-बड़े ज्योतिषी भी कृष्ण की लीला को जान न सके, तो भला यशोदा कैसे समझ पाती। 


5. बालक कृष्ण को लेकर माता यशोदा के मन में कैसी अभिलाषा थी?

उत्तर: बालक कृष्ण को लेकर माता यशोदा के मन में तरह-तरह की अभिलाषाएंँ थी। यशोदा चाहती थी कि उसका लाल जल्द से जल्द बड़ा हो जाए। और बड़ा होकर कृष्ण अपने घुटनों के बल यहांँ वहांँ घूमता फिरे, उसके दूध के दांँत जल्द से जल्द निकल आए और वह तोतलाते हुए अपने पिता नंद को बाबा-बाबा कहकर पुकारे, उसके आंँचल को पकड़ रूठने का भाव कर अपनी मांँ के साथ झगड़े, अपने हाथों से लाल को खाना खिलाएंँ आदि आदि।


6. व्याख्या कीजिए-

(क) हरि किलकत जसुमति की कनियाँ।

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सूर श्याम की अदभुत  लीला नहिं जानत मुनि जनिया।।


उत्तर:

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत 'सूरदास के पद' से लिया गया है।


प्रसंग: प्रस्तुत पंक्ति में सूरदास जी ने कृष्ण की बाललीला का अति सुंदर समावेश प्रस्तुत किया है।


व्याख्या: यशोदा मैया अपने लाल को गोदी में उठाएंँ खेल रही है। कृष्ण भी खेल का आनंद लिए किलकारी मारते हुए अपना मुंँह खोलता है और यशोदा को तीनों लोगों का दर्शन करा देता है। जिसे देख यशोदा भयभीत हो जाती है। बालक के इस अनहोनी एवं अनोखे कार्य को देखकर मांँ यशोदा आश्चर्यचकित हो जाती है तथा चिंता करने लगती है कि कहीं कृष्ण को कुछ हो न जाए। इस उद्देश्य से वह घर घर जाकर ज्योतिषियों से संपर्क करती है और उसके लिए एक बधनियाँ ले आती है। अतः अपनी आशंका दूर करने के उद्देश्य से कृष्ण के गले में वह बधनियाँ अर्थात ताबीज बांध देती है। इसे देख सूरदास जी कहते हैं कि वे ऋषि मुनि प्रभु की इस अद्भुत लीला को कहा समझ सकते हैं।


(ख)जसुमति मान अभिलाष करै।

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सूरदास ब्रज-लोग सुनत धुनि, जो जहँ-तहँ सब अतिहिं डरै।। 


उत्तर:

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत 'सूरदास के पद' से लिया गया है।


प्रसन्न: यहांँ यशोदा मैया की अभिलाषाओं के बारे में वर्णन किया गया है।


व्याख्या: यहांँ यशोदा मैया अपने लाल के साथ आंगन में बैठी उसके बारे में सोच रही होती है। लाल के प्रति नाना प्रकार की लालसा लिए मन ही मन कहने लगती है कि कब उसका लाल घुटनों के बल आंगन में यहांँ-वहांँ घूमेगा, कब उसके पैर धरती पर डगमगाएँगे, कब उसके दूध के दांँत दिखेंगे, कब उसके मुंँह से तोतली बोलियो को सुन पाएगी। तथा यशोदा चाहती है कि लाल अपने पिता नंद को बाबा-बाबा कहकर पुकारे, मांँ का आंँचल पकड़ रूठते हुए उसके साथ झगड़े। तथा वह हंँस-हंँस कर अपना मनोहर सूरत उसे दिखाकर उसकी सारी थकान एवं दुख दर्द दूर करा दे। इस प्रकार लाल के प्रति कल्पना करते-करते लाल को आंँगन में अकेला छोड़कर यशोदा घर के कामों में लग जाती है, कि तभी एक भयानक गर्जन आकाश में गरजता है और एक भयंकर तूफान उठने लगता है। अतः इस स्थिति को देख सूरदास कहते हैं कि इस अंधकारमय तूफान को देख ब्रजवासी भयभीत हो जाते हैं और जो जहांँ थे वह सभी वहीं खड़े रह जाते हैं।


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Reetesh Das

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