विद्यार्थी का कर्त्तव्य


परिचय:

            विद्यार्थी उसे कहते हैं जो विद्या का अध्ययन करता है। अर्थात जो विद्या या ज्ञान को चाहता है उसे विद्यार्थी कहा जाता है। विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का स्वर्णिम काल होता है। इस काल में विद्यार्थी जो भी सीखता है उसका असर सीधे-सीधे उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। माता-पिता एवं गुरु के द्वारा जो कुछ भी वह सीखता है उसे वह अपने दैनिक जीवन में उतारता है। छात्रों का जीवन बहुत अनमोल है। क्योंकि उनका जीवन सांसारिक सुख-दुखों तथा तनावों से मुक्त होता है। सांसारिक तनावों से मुक्त होने के बावजूद भी उसे अनेक दायित्व व कर्तव्य का पालन करना होता है। उन अहम दायित्व एवं कर्त्तव्य को हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझेंगे-


अनुशासन:

                विद्यार्थी में अनुशासन का होना अति आवश्यक है। बिना अनुशासन के एक अच्छा विद्यार्थी बन पाना असंभव है। इसलिए विद्यार्थीयों का कर्तव्य है कि वह अनुशासन के दायरे में रहकर कार्य करें। जो विद्यार्थी माता-पिता एवं शिक्षकों के मार्गदर्शन पर चलता है वह एक न एक दिन एक सफल इंसान जरूर बनता है।


बड़ों के प्रति सम्मान:

                विद्यार्थी का पहला कर्तव्य है कि वह अपने माता पिता और गुरु का सम्मान करें। माता पिता ने उनके लिए जो कष्ट एवं तकलीफें उठाई है उन पर ध्यान रखते हुए विद्यार्थी का कर्तव्य बनता है कि वे उनके दिशा-निर्देशों पर चले और पूरी लगन एवं परिश्रम से अध्ययन कर अपने माता-पिता का नाम रोशन करें।दूसरी ओर शिक्षकों के प्रति भी विशेष सम्मान का भाव रखना जरूरी है। शिक्षकों के द्वारा दिए गए कार्यों को सच्चे मन और निष्ठा के साथ संपूर्ण करना हर विद्यार्थी का कर्तव्य है। क्योंकि उनके द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन से ही विद्यार्थी आगे चलकर एक चरित्रवान इंसान बन पाता है।


 विद्यालय के प्रति दायित्व:

                   विद्यालय को स्वच्छ रखना और दूसरों को भी स्वच्छ रखने के लिए प्रेरित करना  विद्यार्थी का कर्तव्य होता है। छात्रों का यह दायित्व बनता है कि वह अपने विद्यालय को उन्नत बनाने में अपना सहयोग दें। विद्यार्थी अपने सहपाठियों के साथ मिलकर कक्षा तथा कक्षा के बाहरी परिवेश को सुंदर एवं स्वच्छ बनाए रखने में अपना योगदान देना चाहिए। 


अपने सहपाठियों के साथ मृदुल व्यवहार:

            विद्यार्थी जीवन में ही विद्यार्थी दोस्तों का चुनाव करता है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि वह अपने सहपाठियों के साथ प्यार से रहे, एक दूसरे की सहायता करें, आपस में ईर्षा, घृणा तथा कटूता जैसी भावना न रखें। अपने आप को बुरे संगत का शिकार मत बनने दें।


खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपना योगदान:

              विद्यार्थियों का कर्तव्य सिर्फ पुस्तकों का ज्ञान हासिल करना नहीं है। विद्यालयों में खेल-कूद, चित्रकारी तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना भी जरूरी है। ऐसा करके वे अपने अंदर छिपी प्रतिभा को जान पाते हैं। तथा उसी प्रतिभा के बल पर खुद की पहचान बना सकते हैं। आज बच्चे खेल, संगीत तथा नित्य के बल पर काफी नाम कमा रहे हैं और अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रहे हैं।


राष्ट्र के प्रति दायित्व:

             विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने राष्ट्र के प्रतीकों, राष्ट्रगान तथा संविधान का सम्मान करें। राष्ट्र की गरिमा को ठेस पहुंँचे, ऐसा कार्य कभी नहीं करना चाहिए। हमेशा राष्ट्र की हित की चिंता कर देश के लिए कुछ करना चाहिए। जिससे अपने देश का नाम रोशन हो सके।


उपसंहार:

         इस प्रकार विद्यार्थी को अपने जीवन में अनेक प्रकार के कर्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है। विद्यार्थियों को इस जीवन में बहुत सोच समझकर कदम उठाकर अनुशासन के दायरे में रहकर परिश्रम और लगनसील बनना है। तभी जाकर विद्यार्थियों का जीवन सफल बन सकता है।



Reetesh Kr. Das
M.A, B.ed