Lesson 14

                       (ताज)


1. 'ताज' कविता के कवि कौन है?

उत्तर: 'ताज' कविता के कवि सुमित्रानंदन पंत जी है।


2. मृत्यु का अमर और अपार्थिव पूजन क्या है?

उत्तर: मृत्यु का अमर और अपार्थिव पूजन वह बड़े-बड़े स्मारक भवने हैं जहांँ मृतकों के शव को रखकर उसे अमर बनाया जाता है। तथा उसे पूजा  जाता है। जैसे कि ताजमहल। जहांँ ममताज महल का मकबरा अवस्थित है।


3. कवि पंतजी ताज के निर्माण से नाखुश क्यों है?

उत्तर: कवि के अनुसार मुर्दा लोगों के लिए बड़े-बड़े स्मारक बनाकर उन्हें सजाना तथा उन्हें पूजना उचित नहीं है। मृतकों को अमर बनाकर बेकार ही उन पर खर्च किया जा रहा है। जबकि संसार के जीवित लोगों का जीवन दुखों से भरा पड़ा है। यहांँ किसी को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती और वहांँ मरे हुए व्यक्ति के लिए यूंँ ही पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। इसीलिए कवि उन लोगों पर व्यंग करते है जो ताजमहल जैसे स्मारकों की पूजा करते हैं। जहांँ लोग भूख से मर रहे हैं, तो ऐसे में मुर्दा लोगों के प्रति ताजमहल जैसा स्मारक महल बनाकर आस्था और श्रद्धा व्यक्त करना कहांँ तक उचित है। इसी कारण पंतजी नाखुश है।


4. कवि के अनुसार ताज किसका प्रतीक है?

उत्तर: कवि के अनुसार ताज मृतक की पूजा आराधना का प्रतीक है। जहांँ लाश को जिंदा मनुष्य की तरह संवारा और सजाया जाता है।


5. 'ताज' कविता का सारांश प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा रचित 'ताज' कविता मानवतावादी भावना से संबंधित एक उत्कृष्ट कविता है। ताज कविता के जरिए कवि ने उन लोगों पर व्यंग किया है जो मृतकों को अमर बनाने हेतु उनकी आस्था एवं पूजा करते हैं। कवि ताजमहल को एक सुंदर महल के रूप में नहीं बल्कि रूढ़िवादी स्मारक के रूप में देखते हैं। जिसे शोषित वर्गों के शोषण पर बनाया गया है।

     प्रस्तुत कविता में पंत जी का कहना है कि वे ताजमहल को एक ऐसे भवन या एक ऐसे स्मारक के रूप में देखते हैं जो अमर और अलौकिक सौंदर्य के कारण विश्व विख्यात है। परंतु शोक की बात याह है की यह भवन मुर्दा लोगों के प्रति अपना आस्था व्यक्त करता है, उन्हें महत्व देता है, जो कि उचित नहीं है। कवि कहते हैं कि जब संसार के जीवित लोगों का जीवन दुख और गरीबी से भरा पड़ा है, तो ऐसे में मुर्दा लोगों के प्रति ताजमहल जैसा स्मारक बनाकर उनकी पूजा करना क्या ठीक है। उन मुर्दों को जीवित लोगों की तरह बड़ी सुंदरता से उनका सृंगार किया जा रहा है। जबकि दूसरी और लोग भूख से मर रहे हैं। जीवित लोग नंगे हैं, भूख और प्यास से व्याकुल हो रहे हैं, उनके पास रहने को घर नहीं है। कवि कहते हैं कि जब जिंदा लोगों के पास जिंदा रहने के लिए सुविधाएंँ नहीं है, तो ऐसे में मुर्दा लोगों के लिए ताजमहल जैसा भवन बनाना कहांँ तक उचित है। कवि के अनुसार यह एक प्रकार से जीवित लोगों पर शोषण है। कवि ने उन लोगों पर भी व्यंग किया है जो आज भी ताजमहल जैसे रूढ़िवादी स्मारक को अपने दिल में समाए उनकी पूजा करते आए हैं। वे भ्रम के साए में जी रहे हैं। उनका ह्रदय यह तय नहीं कर पा रहा है कि किसे अपने मन में स्थान दे और किसे नहीं। अतः कवि कहते हैं कि ताज एक पूर्व घटना का प्रतीक है जो बीते दिनों की स्मृति का द्योतक मात्र है। लेकिन हमें आज उचित विकल्प अपनाकर सही रास्ते पर आना है। और जो मर गए हैं उनकी जिम्मेदारी मृतकों को  लेने दे  और जो जीवित लोग है वह ईश्वर को साक्षी मानकर कर्म करते जाए। अर्थात जीवित लोगों की सेवा करना ही जीवन का सार एवं आवश्यक तत्व है।



6.व्याख्या कीजिए-

(क)

'मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?

आत्मा का अपमान, प्रेत औ' छाया से रति?'


उत्तर:

संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा रचित 'ताज' कविता से लिया गया है।


प्रसंग- मानव जाति किस प्रकार मृतकों के प्रति प्यार और लगाव प्रदर्शित कर रहे हैं उसका वर्णन किया गया है।


व्याख्या- कवि मानव जाति को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि है मानव! जीवन के प्रति तुम्हें ऐसी भी क्या विरक्ति है जो तुम जीवित लोगों का अपमान कर मृतकों की पूजा कर रहे हो। वे लोग जो मारकर छाया मात्र रह गए हैं अब केवल उनकी स्मृतियांँ शेष रह गई है। क्या उनकी पूजा कर तुम जीवित लोगों का अपमान नहीं कर रहे हो। अतः कवि का कहना है कि जो मरकर प्रेत हो गए हैं, उनकी छाया से प्यार और लगाव करना कोई समझदारी का काम नहीं है। इससे अच्छा है कि जीवित लोगों की सहायता की जाए।


(ख)

'भूल गये हम जीवन का संदेश अनश्वर

मृतकों के है मृतक, जीवितों का है ईश्वर।'


उत्तर:

संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा रचित 'ताज' कविता से लिया गया है।


प्रसंग- कवि मानव जाति को जीवन का मूल सार याद दिला रहे हैं।


व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों के जरिए कवि मानव जाति को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि मनुष्य जीवन के प्रति इतने लापरवाह हो गए हैं कि वे यह अमर संदेश या अमर नियम भी भूल गए हैं कि मृतकों के हैं मृतक, जीवितों का है ईश्वर। अर्थात जो मृतक है उनकी जिम्मेदारी मृतक ही उठाते हैं और जो जीवित लोग हैं वह ईश्वर को साक्षी मानकर अपना कर्म करते हैं। अर्थात इसका भावार्थ यह है कि हम मृतकों को उसके हाल पर ही छोड़ देना चाहिए और जो जीवित है उनको महत्व देकर जीवन को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए।


7. अतिरिक्त प्रश्न उत्तर:

(क) कवि सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म कब और कहांँ हुआ था?

उत्तर: कवि सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 1900 ई. में अल्मोड़ा के समीप कौशानी नामक ग्राम में हुआ था।


(ख) कवि पंत जी की प्रथम काव्य रचना क्या है?

उत्तर: वीणा।


(ग) पंत जी द्वारा रचित गांधीजी के जीवन चरित्र पर आधारित प्रबंध काव्य कौन सी है?

उत्तर: उत्तरायन।


(घ) हिंदी काव्य जगत में पंत जी किस कवि के रूप में जाने जाते है?

उत्तर: प्रकृति प्रेमी।


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