Lesson:7

(झांँसी की रानी)


1. रानी लक्ष्मीबाई ने सागर सिंह से कौन सा वचन लिया? और उसे किस नाम का उपाधि दिया गया?

उत्तर: लक्ष्मीबाई ने सागर सिंह को मृत्युदंड न देकर वचन दिलवाई कि वह झांँसी राज्यों के प्रति सच्ची निष्ठा रखेगा और बुंदेलखण्ड एवं सीमावर्ती जिले में जितने डाकू दल है उनको इकट्ठा कर सेना में भर्ती होगा। रानी ने साथ ही साथ उसे कुंँवर की उपाधि भी दी।


2. घोड़े में से कौन गिर पड़ा था? और वह किस प्रकार अपने महल तक पहुंँचा?

उत्तर: नाना घोड़े में से गिर पड़ा था। उसे सिर पर चोट आई थी। लकड़ी के एक टुकड़े से उसका सर जाके टकराया। जिसके कारण उसके सर से काफी खून बह रहा था। इस अवस्था को देख मनु ने अपने घोड़े पर नाना को बिठाया और बड़ी फुर्ती के साथ घोड़े को दौड़ाती हुई नाना को महल ले आई।


3. राजा ने नाटकशाला के प्रहरी को कैद में क्यों डलवाया था?

उत्तर: राजा ने नाटकशाला के प्रहरी को कैद में इसलिए डलवाया था क्योंकि खुदाबख्श नामक सरदार को राजा ने देश से बाहर निकाल दिया था। जब खुदाबख्श को नाटकशाला में राजा ने देख लिया तब राजा ने प्रहरी को पूछा कि वह यहांँ कैसे आया तो उस प्रहरी के पास कोई उत्तर न था। जिसके कारण उसे कैद में डलवाया गया और अगले ही दिन पेशी में उसे दंड स्वरूप बिच्छू से डँसवाया गया।


4. रानी लक्ष्मीबाई का जन्म कहांँ हुआ था और बचपन में उनका नाम क्या था?

उत्तर: रानी लक्ष्मीबाई का जन्म काशी में हुआ था। बचपन में उनका नाम मनुबाई था।


5. गंगाधरराव ने किसे गोद लिया था? गोद लेने के उपरांत उसका नाम क्या रखा गया?

उत्तर: गंगाधरराव ने आनंदराव नामक बच्चे को गोद लिया था। गोद लेने के बाद उसका नाम दामोदरराव रखा गया।


6. रानी लक्ष्मीबाई हिंदू मुस्लिम एकता की प्रस्तोता थी। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: रानी लक्ष्मीबाई की धर्म विषयक सहिष्णुता ही थी जो, हिंदू और मुस्लिम एकता को बांधे हुए थे। रानी लक्ष्मीबाई अपने प्रजा से अपार प्रेम करती थी। वह किसी धर्म के खिलाफ नहीं थी। जो जिसका धर्म है वह बिना किसी दबाव के अपने-अपने त्योहारों तथा वर्गों का पालन कर सकता था। यहांँ तक कि दीपाली हो या ईद सभी झांँसी वासी एक साथ त्योहारों का उत्सव मनाते। रानी लक्ष्मीबाई भी उन सब उत्सव में भाग लेने का प्रयत्न करती थी। यही कारण है कि झांँसी की धरा पर आज तक हिंदू मुस्लिम के दंगे नहीं हुए। रानी लक्ष्मीबाई खुद कहा करती है कि हिंदू मुस्लिम दोनों ने मिलकर झांँसी को बनाया है। तथा उन लोगों के कला संस्कृतियों के कारण ही झांँसी गौरव के पात्र बना है। इस विषय में रानी स्वयं कहती है कि मेरी "झांँसी के गौरव है वजीर खांँ जो असिविद्या में बेहद निपुण है। उसी तरह अमीर खाँ का अश्वारोहन में जवाब नहीं और गोलंदाजी में गौस खाँ, सैन्य संचालन में जवाहिर सिंह और रघुनाथ सिंह, शस्त्र बनाने में भाऊबख्शी, गायन में मुगल खाँ, नृत्यकला में दुर्गाबाई तो कपड़ा सिलाने में बल्देव दर्जी, यह सब झांँसी के गौरव है।"

          मुसलमान सहेलियांँ द्वारा दीपावली मनाना, मंदिरों में नित्य गान करना, लक्ष्मीबाई द्वारा भी ईद बनाने को लेकर भी किसी भी मुसलमान ने उन पर रोक नहीं लगाया। तथा इसी से प्रमाण होता है की रानी लक्ष्मीबाई हिंदू मुस्लिम एकता की प्रस्तोता थी।


7. मेरे भाग्य में एक नहीं, दस हाथी  लिखे हैं। मनु ने किस प्रसंग में यह कहा था?

उत्तर: जब मनु को हाथी की सवारी के लिए नहीं बिठाया गया तब मनु ने मोरोपंत से हाथी रुकवाने को कहाँ। पर मोरोपंत ने ऐसा नहीं किया क्योंकि नाना नहीं चाहते थे कि मनु उसके साथ हाथी पर बैठे। मनु ने काफी हठ किया। अंत में मोरोपंत क्रोधित होकर मनु को डांटने लगे कि "तेरे भाग्य में हाथी नहीं लिखा है। वह ऐसे हठ न करें?" यह सुनकर मनु तूनकर सीधी खड़ी हो गई। मोरोपंत शांत होकर मनु को समझाने का प्रयास किया कि हमेशा समय को देखकर चलना चाहिए। क्योंकि वह न तो छत्रधारी है और न ही सामंत-सरदार । साधारण गृहस्थों की तरह संसार में रहन-सहन करना ही उसके भाग्य में है। इसलिए वह हाथी की सवारी की हठ न करें। क्योंकि उसके भाग्य में हाथ नहीं लिखा है। यह सुनते ही मनु ने अपने होंठ सिकूड़े और चुनौती सी देती हुई बोली ' मेरे भाग्य में एक नहीं दस हाथी लिखे हैं।'


8. डाकू सागर सिंह जेल से कैसे भागा?

उत्तर: एक दिन स्क्रीन और गार्डन सागरसिंह को देखने जेल आए। उस जेल का दरोगा बख्शिशअली था। स्कीन और गार्डन ने उस तगड़े फुर्तीले सागरसिंह को देखा, जिसने कई कारनामे किए थे। तब स्कीन ने सागरसिंह को बताया कि उसे कल या परसों मुकदमा करके उसी दिन उसे फांँसी दे दी जाएगी। यह सुनकर सागरसिंह ने कहा कि केवल अकेले कुंँवर सागरसिंह को ही फांँसी दी जाएगी। यह सुनकर स्कीन ने कहा कि तुम्हारे साथ और कौन-कौन है उनके नाम बताओं। सागर सिंह ने कहा कि वह बताएगा परंतु उसे बताकर क्या फायदा होगा। इस बात पर स्कीन ने कहा कि सच-सच कहोगे तो सरकारी गवाह बना दिए जाओगे और छोड़ दिए जाओगे। बस क्या था सागर सिंह यही चाहता था। उसका विचार जेल से भागने का था। उसने अपनी चाल चली और कहा कि आज उसकी हथकड़ियों और बेड़ियों को खोल दिया जाए और अच्छे भोजन का इंतजाम किया जाए। वह आराम करके कल सब कुछ बता देगा। कथा अनुसार उसे अच्छे भोजन खिलाने का आदेश देते हुए स्कीन और गार्डन वहांँ से चले गए। फिर क्या सागरसिंह ने बख्शिशअली से ब्राह्मण के हाथों से बने भोजन मंगवाए। भोजन कर वह आराम करने लगा। शाम होते होते रात हुई। पहरेवाले जागते-जागते सो भी गए। बख्शिशअली को भी नींद आ गई। सागरसिंह इसी पल का तो इंतजार कर रहा था। वह सुअवसर पाते ही चुपचाप दीवार लाँघकर जंगल की ओर नौ-दो-ग्यारह हो गया। इस प्रकार सागर सिंह जेल से भागने में कामयाब हो पाया।


9. रानी लक्ष्मीबाई ने बुंदेलखण्ड की डाकू-समस्या का उन्मूलन किस प्रकार किया? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: उन दिनों आए दिन बुंदेलखण्ड में डाकुओं की लूटपाट दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहे थे। न चरखारीवाले राजा, न दतिया के नरेश और न ही अंग्रेज डाकू उन्मूलन का कुछ कर पा रहे थे। डाकू इतने नर्दयि थे कि वे लोगों की उंगलियों में कपड़ा लपेटकर उसे तेल में भिगोकर आग लगा देते थे। प्रजा बिचारे उन जलती हुई उंगलियों को दिखाने हेतु अपने राजा के महल जाते और न्याय की मांग करते। लेकिन राजा गंगाधरराव भी कुछ नहीं कर पाते। क्योंकि डाकू अपना काम इतनी सफाई और योजना के तहत करते हैं कि वे अपने कार्य को अंजाम देकर पल भर में जंगल में कहीं गायब हो जाते थे।

           जब शासन भार रानी लक्ष्मीबाई के हाथ आया, तो रानी ने चुपचाप एक योजना बनाई। डाकुओं का व्यवहार तथा प्रजा के बीच डाकुओं का प्रभाव किस हद तक फैला हुआ है आदि जानने के लिए बड़े अधिकारियों से लेकर गांँव के चौकीदारों को भी बुलाया गया। सब कुछ जाना और समझा, डाकूओं के भेदियों का भी रहस्य जाना। इसके बाद लक्ष्मीबाई ने मोतीबाई को जासूसी का काम सौंपा। मोतीबाई ने भी जासूसी करके पाया कि बरुआसागर के आगे खिसनी के घने जंगलों में सागर सिंह डाकू का गिरोह ठहरा हुआ है। साथ में यह भी जाना कि उसके भेदिये हर जगह है। इसलिए कोई भी उसे छू भी नहीं पाता। रानी ने अवसर पाते ही अपने हथियार उठाए और घोड़े पर सवार होकर अपने अश्वारोहियों के साथ मिलकर खिसनी के जंगलों की ओर चल पड़ी। आधे घंटे में वे खिसनी के जंगलों में पहुंँच गई। डाकू पर आक्रमण करने हेतु रानी ने इशारा किया तो एक ओर से मुंदन ने, दूसरी ओर से काशीबाई ने अचानक आक्रमण कर बड़ी-बड़ी मूछें वाले राक्षसों का सिर धड़ से अलग कर दिया। जिसे देख डाकुओं का सरदार सागरसिंह घोड़े पर चढ़कर पहाड़ी के ऊपर की ओर भागा, लेकिन रानी ने उसे घेर लिया। सागर सिंह जान बचाकर मैदान की ओर भागने लगा। रानी और मुंदर ने अपने घोड़े उसके पीछे लगा दिए। देखते ही देखते रानी ने अपने सशक्त भुजाओं से उसे घोड़े से ऊपर उठा लिया और काशीबाई ने उसके सीने में इतनी जोर से ठूँसा मारा की उसके मुंँह से खून निकल आया। गर्दन में रैकला फंँसाकर उसे घसीटते हुए बुरूआसागर के किले में लाया गया। इस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई ने बुंदेलखण्ड की डाकू समस्या का उन्मूलन किया था।


10. रानी लक्ष्मीबाई को किस तरह के घोड़े पसंद थे?

उत्तर: रानी लक्ष्मीबाई को काठियावाड़ी घोड़े बहुत पसंद थे। खास तौर पर सफेद रंग के घोड़े।


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Reetesh Das

(M.A in Hindi)



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