महाभारत की एक सांझ  | Lesson 14 | Class 8 Hindi Answer Jatiya Bidyalay | Class 8 Hindi Question answer | Assam Jatiya Bidyalay | Assamese Medium | Assam Board | অষ্টম শ্ৰেণীৰ হিন্দীৰ উত্তৰ | অসম জাতীয় বিদ্যালয় 


Lesson 14


महाभारत की एक सांझ


1. संपूर्ण वाक्य में उत्तर लिखो:

(क) 'महाभारत की एक सांझ' एकांकी का एकांकीकार कौन है?

उत्तर: महाभारत की एक सांझ एकांकी का एकांकीकार है भारतभूषण अग्रवाल।


(ख) धृतराष्ट्र को कौन युद्धवार्ता सुना रहे थे?

उत्तर: धृतराष्ट्र को संजय युद्ध मारता सुना रहे थे।


(ग) पंच पाण्डव कौन कौन थे?

उत्तर: पंच पाण्डव थे युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव।


(घ) द्रोणाचार्य कौन थे?

उत्तर: द्रोणाचार्य कौरव और पाण्डवों के गुरु थे।


(ङ) कौरवों और पाण्डवों के पितामह कौन थे?

उत्तर: कौरवों और पण्डवों के पितामह भीष्म थे।


(च) दुर्योधन कहांँ छिपे हुए थे?

उत्तर: दुर्योधन द्वैतवन के सरोवर में छिपे हुए थे।


(छ) प्रस्तुत एकांकी के पात्र कितने हैं? यहांँ मुख्य पात्र कौन है?

उत्तर: प्रस्तुत एकांकी के कुल पात्र पांँच है। दुर्योधन इस एकांकी का मुख्य पात्र है।


(ज) 'केवल एक दुःख मेरे साथ जाएगा'। यहांँ दुर्योधन के साथ जाने वाला दुःख क्या है?

उत्तर: यहांँ दुर्योधन के साथ जाने वाला दुख एक ही था, वह था अपने पिता धृतराष्ट्र का अंधा होना।


2. सही उत्तर चुनकर लिखो:

(क) धृतराष्ट्र के कितने बेटे थे?

उत्तर: सौ।


(ख) पाण्डवों के पिता कौन थे?

उत्तर: पाण्डु।


(ग) दुर्योधन की मृत्यु किसके हाथ हुई?

उत्तर: भीम के हाथ में।


(घ) कौरवों और पांडवों में से किसको धर्मराज कहा जाता है?

उत्तर: युधिष्ठिर को।


(ङ) श्रीकृष्ण किस के रथ के सारथी थे?

उत्तर: अर्जुन के।


(च) द्रौपदी को किस खेल में युधिष्ठिर ने दांँव पर लगाया था?

उत्तर: पासाखेल में।


3. किसने किससे कहा था?

(क) " मेरे इतने उत्कट स्नेह का ऐसा अंत! ओह! मैं नहीं जा सकता! मैं नहीं जा सकता...."

उत्तर: धृतराष्ट्र ने संजय से कहा था।


(ख) "पहले वीरता का दंभ और अंत में करुणा की भीख। कायरों का यही नियम है।"

उत्तर: युधिष्ठिर ने दुर्योधन को कहा था।


(ग) "मेरे मन में कोई पश्चाताप नहीं है। मैंने कोई भूल नहीं की। मैंने भय से तुम्हारी शरण नहीं मांगी।"

उत्तर: दुर्योधन ने युधिष्ठिर को कहा था।


(घ) "जो अपने भाइयों को जीवित जलवा देने में भी नहीं हिचकिचाता, जो अपनी भाभी को भी हरी सभा में अपमानित करने में आनंद ले सकता है, उसका लज्जा से क्या परिचय!"

उत्तर: युधिष्ठिर ने भीम से कहा था।


4. सप्रसंग व्याख्या करो:

(क) "सच है कायर और पराजित ही अंत में धर्म का स्मरण कर लेते हैं।"

उत्तर:

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'आओ हिंदी सीखें' के चौथे भाग के अंतर्गत भारतभूषण अग्रवाल जी द्वारा रचित एकांकी  'महाभारत की एक सांझ' से ली गई है।


प्रसंग: धर्म और अधर्म को लेकर भीम प्रस्तुत पंक्ति दुर्योधन को सुना रहा है।


व्याख्या: जब दुर्योधन अपनी आत्मरक्षा हेतु धर्म का सहारा लेते हुए युधिष्ठिर से कहता है कि वह थका हुआ है, उसका कवच भी फट चुका है तथा वे निहत्थे पर वार न करें, उसे समय दे। साथ ही साथ यह भी कहता है कि युधिष्ठिर तो धर्मराज है, उसके रहते अधर्म नहीं हो सकता। तो उसके रहते निहत्थे पर वार करना कहा का धर्म है। इस धर्म और अधर्म की बात पर भीम हंँसते हुए दुर्योधन से कहता है कि उसे अब जाकर धर्म का स्मरण हुआ है। ऐसी बातें तो कायर और पराजित ही करते हैं। जब उनके सामने मृत्यु मंडराने लगती है, उन्हें यह स्मरण हो जाता है कि उसकी अंतिम घड़ी आ चुकी है। तब उनके मुंँह से इस प्रकार के धर्म और अधर्म की बातें निकलने लगती है।


(ख) "विफलता के इस मरुस्थल में अब एक बूंद आवेगी भी तो सुखकर खो जाएगी! यदि तुम्हें इसमें संतोष हो कि तुम्हारी महत्वाकांक्षा मेरी मृत देह पर ही अपना जय स्तंभ उठाए तो फिर यही सही।


उत्तर:

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'आओ हिंदी सीखें' के चौथे भाग के अंतर्गत भारतभूषण अग्रवाल जी द्वारा रचित एकांकी  'महाभारत की एक सांझ' से ली गई है।


प्रसंग: जब दुर्योधन का प्रस्ताव युधिष्ठिर ने ठुकरा दिया तब दुर्योधन ने युधिष्ठिर से यह वाक्य का कहा था।


व्याख्या: दुर्योधन समझ चुका था कि अब उसका बचना संभव नहीं है। उसने अपनी रक्षा के लिए धर्म और अधर्म का सहारा लेना चाहा, लेकिन उसमें भी वह विफल रहा। अंत में युधिष्ठिर का न्योता स्वीकार कर युधिष्ठिर से कहता है कि रणभूमि में उसके सारे सैनिक विफल रहे, अब मात्र उसी का रक्त इस मरुस्थल में  सूखना बाकी है। यदि युधिष्ठिर की महत्वाकांक्षा उसकी मृतक शरीर पर जयस्तंभ उठाना है तो यही होगा। यह कहकर दुर्योधन एक गदा की मांग करता है और लड़ने को तैयार हो जाता है।


(ग) "यही तो मुझे दुःख है युधिष्ठिर कि तथ्य तक पहुंँचने की किसी ने भी चेष्टा  नहीं की। एक अन्याय की प्रतिष्ठा के लिए इतना ध्वंस किया गया, और सब अंधों की भांति उसे स्वीकार करते गए।"


उत्तर: 

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक 'आओ हिंदी सीखें' के चौथे भाग के अंतर्गत भारतभूषण अग्रवाल जी द्वारा रचित एकांकी  'महाभारत की एक सांझ' से ली गई है।


प्रसंग: यहांँ राज नियम को लेकर दुर्योधन अपना पक्ष युधिष्ठिर को सुना रहा है।


व्याख्या: राज नियम को लेकर दुर्योधन युधिष्ठिर से कहता है कि युधिष्ठिर के पिता के उपरांत राज्य पर मूल अधिकार दुर्योधन के पिता का ही था। वे जिसे चाहे उसे सत्ता सौंप सकते थे। इस बात पर युधिष्ठिर ने कहा कि आज तक पितामह भीष्म, महात्मा विदुर, कृपाचार्य अथवा स्वयं महाराज धृतराष्ट्र ने भी कभी ऐसी कोई बात नहीं कही है। तथा इसी बात को लेकर ही तो दुर्योधन को खेद है  कि किसी ने भी तथ्य तक पहुंँचने की कोशिश भी नहीं की, बल्कि एक अन्याय की प्रतिष्ठा के लिए इतना ध्वंस किया गया। सब अंधे की भांति उसे स्वीकार करते गए। इस प्रकार राज नियम को लेकर दुर्योधन ने अपना पक्ष युधिष्ठिर के सामने रखा।


5. उत्तर लिखो;

(क) श्री कृष्ण कौन थे? उन्होंने पांडवों का पक्ष क्यों लिया?

उत्तर: श्री कृष्ण मथुरा के राजा थे। उन्होंने पांडवों का पक्ष इसलिए लिया क्योंकि पांडवों ने धर्म का रास्ता अपनाया था।


(ख) दुर्योधन के पतन का क्या कारण था? सम्यक आप उत्तर दो।

उत्तर: दुर्योधन के पतन का मुख्य कारण उसका अहंकार ही था। राज्य लोगों ने उसे अंधा बना दिया था। वह और शकुनी मामा मिलकर पांडवों के खिलाफ षड्यंत्र रचा करते ताकि पांडवों को राज्य से हटाया जाए। तथा पांडवों के प्रति नफरत ने दुर्योधन को अधर्मी बना दिया था। जिसके चलते महाभारत जैसे युद्ध का विस्तार हुआ।


(ग) संजय ने धृतराष्ट्र के समक्ष दुर्योधन की मृत्यु का वर्णन इस तरह पेश किया? संक्षेप में लिखो।

उत्तर: संजय ने धृतराष्ट्र के समक्ष दुर्योधन की मृत्यु का वर्णन करते हुए कहा कि पहले तो पांडवों ने दुर्योधन को कवच और अस्त्र देकर युद्ध के लिए विवश किया। फिर पांडवों की ओर से भीम गदा लेकर रन में उतरे और दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। दुर्योधन का पराक्रम भीम पर भारी पड़ रहा था, ऐसा लगा लगता था मानो अंत में विजय दुर्योधन की ही  होगी। पर तभी कृष्ण के संकेत पर भीम ने दुर्योधन की जंघा में गदा का भीषण प्रहार किया। उसी वार के चलते दुर्योधन आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पड़े।


(घ) मृत्यु के समय युधिष्ठिर ने दुर्योधन को क्या सलाह दी? वर्णन करो।

उत्तर: युधिष्ठिर ने दुर्योधन को धैर्य रखने को कहा और कहा कि तुम्हें भ्रांति हो गई है। तुम सत्य और मिथ्या में भेद करने में असमर्थ हो। तुम्हारे मस्तिष्क की यह दशा सचमुच दयनीय है।


(ङ) दुर्योधन ने युधिष्ठिर की सलाह का जवाब कैसे दिया? संक्षेप में लिखो।

उत्तर: जब युधिष्ठिर ने दुर्योधन को भ्रांति होने की बात कही, तब दुर्योधन ने युधिष्ठिर से कहा कि उसे इसी प्रकार का कोई पश्चाताप नहीं है। उसने कोई भूल नहीं की है। उसने तो भय के कारण चरणों पर गिरकर भीख भी नहीं मांगी है। अंत तक उसने युधिष्ठिर से टक्कर ली और अब वीर-गति को पाकर वह स्वर्ग सुधारने को तैयार है। उसे न तो ग्लानि है और न ही पश्चाताप। उसे तो सिर्फ एक ही दुःख है कि उसके पिता अंधे हैं और यही दुख वह अपने साथ लेकर जाएगा।

Reetesh Das

(M.A in Hindi)