Lesson 5
(मत बांँटो इन्सान को)
1. निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर लिखो:
(क) कवि के अनुसार भगवान को किसने बांँटा है?
उत्तर: कवि के अनुसार धर्म के नाम पर भगवान को मंदिर, मस्जिद गिरजाघरों ने बांँटा है।
(ख) किसके बिना यह जग सूना है?
उत्तर: एक दूसरे के प्यार के बिना यह जग सूना है।
(ग) प्यासी चट्टान को हमें क्या देना है?
उत्तर: प्यासी चट्टान को हमें प्यार का जल देना है।
(घ) किसकी मुस्कान को कोई रौंद न पाएगा?
उत्तर: मौसम की मुस्कान को कोई रौंद न पाएगा।
2. निम्नलिखित प्रश्नों का विस्तार से उत्तर लिखो:
(क) मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर ने भगवान को किस प्रकार से बाँटा है?
उत्तर: मनुष्य ने धर्म के नाम पर मंदिर, मस्जिद और गिरजाघर आदि बनाकर भगवान को बांँट लिया है। जात पात की भावना लिए हिंदुओं ने मंदिर बनवाकर भगवान को कैद किया है तो मुसलमानों ने मस्जिद बनवाकर तो ईशाइयों ने गिरजा घर बनवाकर भगवान को कैद कर रखा है। इसी प्रकार सभी धर्म के लोगों ने अपने अपने धर्म के अनुसार भगवानों को बांँट लिया है।
(ख) 'उजियाली महलों में बंदी हर दीपक मजबूर है।'- इसमें कवि का अभिप्राय बताओ।
उत्तर: यहांँ कवि का अभिप्राय यह है कि उजाला तो अमीरों के घरों में टिमटिमाते हैं परंतु गरीबों को तो तेल के दीये से काम चलाना पड़ता है। अर्थात अमीरों को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है तो गरीबों को दुःख और तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इसलिए कवि इस दीवार को तोड़कर सबमें समानता का भाव जगाना चाहते हैं।
(ग) 'धरती बांँटी सागर बांँटामत बांँटो इन्सान को।'-इससे कवि का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर: कवि का कहना है कि मनुष्य ने धर्म के नाम पर भगवान को तो बांँट ही लिया है। ठीक उसी प्रकार अपने स्वास्थ्य और मतलब के लिए धरती का भी बंँटवारा कर लिया है। यहांँ तक की सागर में भी सीमा तय कर उसका भी बंँटवारा कर लिया है। कवि इन्हीं बातों पर अपना दुख प्रकट करते हुए हमें यह आह्वान करते हैं कि कम से कम साधारण इंसानों के मन में बैंर भाव का बीज मत बोओ। इंसानों को धरती और सागर की तरह बांँटने की बजाय एकता की दूरी मे बांँधकर रखो, तभी जाकर हम एक ही मंजिल पर सवार हो पाएंगे।
3. इस कविता का सारांश लिखो।
उत्तर: 'मत बांँटो इंसान को' नामक कविता के माध्यम से कवि विनय महाजन जी ने मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। कवि का कहना है कि हम मनुष्य को भेद-भाव की भावना भुलाकर एकता की दूरी में बंधकर रहना चाहिए। कवि अपना दुख प्रकट करते हुए कहते हैं कि आज लोगों ने मंदिर मस्जिद और गिरजाघर बनाकर भगवान को बांट लिया है। उसी प्रकार अपने स्वार्थ के लिए भिन्न-भिन्न देश बनाकर धरती और सागर का भी बंँटवारा कर लिया है। इस प्रकार कवि इंसानों को बांँटने से मना कर रहे हैं। आगे कवि कहते हैं कि समानता का भाव हम सबमें जगाने की शुरुआत अभी शुरू हुई है, सच्चाई की तक अब हमें और दूर तक जाना।
Author- Reetesh Das
MA in Hindi
Check By - Mukesh Borah
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