आदिकाल

विषय: जैन साहित्य


1. आदिकालीन जैन साहित्य का वर्गीकरण करते हुए कवियों एवं कार्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: जिस प्रकार हिंदी के पूर्वी क्षेत्र में सिद्धों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यम से किया उसी प्रकार पश्चिमी क्षेत्र में जैन साधुओं ने अपने मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यम से किया। इन कवियों के रचनाएँ आचार, रास, फागु चरित आदि विभिन्न शैलियों में मिलती है। जैन साहित्य का महत्व केवल जैन धर्म के प्रतिपादन की दृष्टि से ही नहीं अपितु भाषा-विज्ञान की दृष्टि से भी है। जैन धर्म से अहिंसा, त्याग, करुणा आदि का महत्वपूर्ण स्थान रहा है, अतः इस दृष्टि से यह हिंदू धर्म के अधिक समीप थे। इन्होंने जीवन के प्रति आस्था जगाए और कर्मकाण्ड की जटिलता को हटाकर ब्राह्मण और शूद्र दोनों की मुक्ति का समान रूप से अधिकारी ठहराया। जैन कवियों ने जैन धर्म के सिद्धांत निरूपण के लिए ही कार्य रचना की है। जैन महापुरुषों के चरित्र-कार्यों के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोग-प्रचलित आख्यान जैन धर्म के रंग में प्रस्तुत किए गए। जैन कवियों ने राम-कृष्ण को भी अपनी कथाओं का आधार बनाया है। कवियों ने अलंकारों की ओर विशेष रुचि नहीं दिखाई। उन्होंने धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण शांत रस का प्रयोग करते हुए दोहा, कवित्त, रास छंद का अधिक प्रयोग क्या है। जैन कवियों में प्रमुख है- स्वयंभू, पुष्पदंत, देवसेन, जोइन्दु, धनपाल, हरिभद्र सूरि, शालिभद्र आदि।


(i) स्वयंभू:- इनका समय आठवीं शती मानी गई है। स्वयंभू अपभ्रंश भाषा के साथ-साथ छंद शास्त्र और व्याकरण के भी आचार्य थे। पउम चरिउ अट्ठनेमि चरिउ, तथा स्वयंभू छंदस उनकी प्रसिद्ध ग्रंथ है।


(ii) देवसेन:- देवसेन एक अच्छे कवि तथा उच्च कोटि के चिंतक थे। इन्होंने अपभ्रंश में भी 'दष्य-सहाब-पयास' नामक का जो लिखा था। उन्होंने 'श्रावकाचार' नामक ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें 250 दोहे में श्रावक धर्म का प्रतिपादन किया गया है।


(iii) पुष्पदंत:- इनका समय 10वीं शती मानी गई है। ये पहले शैव थे, परंतु बाद में इन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था। उन्होंने महापुराण, नाग कुमार चरित्र, जसहर चरउ नामक ग्रंथों की रचना की है। इन्हें अपभ्रंश भाषा का व्यास कहा जाता है,क्योंकि इन्होंने 63 महापुरुषों के जीवन की घटनाओं का वर्णन महापुराण के अंतर्गत किया है। साथ ही साथ इन्होंने प्रकृति सौंदर्य का निरूपण भी अपने ग्रंथ में किया है।


(iv) जोइन्दु:- यह आदिकाल के जैन रहस्यवादी कवि थे। 'परमात्म प्रकाश'और 'योगसार' इन की प्रसिद्ध रचनाएं हैं। आत्मा परमात्मा, द्रव्य, गुण, मोक्ष आदि के अलावा इन रचनाओं में रूढ़ियों एवं आडंबर का विरोध मिलता है।


(v)शालिभद्र:- इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ है भरतेश्वर-बाहुबली रास। वे अपने समय के प्रसिद्ध जैन आचार्य तथा अच्छे कवि थे। इस ग्रंथ में भारतेश्वर तथा बाहुबली का चरित्र वर्णन किया गया है। कवि ने दोनों राजाओ की वीरता, युद्ध आदि का विस्तार से वर्णन किया है, किंतु हिंसा और वीरता के पश्चात विरक्ति और मोक्ष के भाग प्रतिपादित करना कवि का मुख्यालय चल रहा है। इस कविता का एक उदाहरण इस प्रकार है-


बोलह बाहुबली बलवन्त। लोह खण्डि    तउ गरवीउ हंत।।

चक्र सरीसउ चूनउ करिउं। सयलहं गोत्रह कुल संहरउ।।


(vi) आचार्य हेमचंद्र:- आचार्य हेमचंद्र गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह के आश्रित थे। इनकी 'शब्दानुशासन' में वीरता, श्रृंगार, धर्म, नीति आदि से संबंधित दोहे संग्रहित है। इन दोनों के रचनाओं के नाम अज्ञात है। इनसे श्रृंगार विषयक दोहे हिंदी के परिवर्ती श्रृंगारी कवियों के मूल स्रोत है। बिहारी, मतिराम आदि पर इनके प्रभाव स्पष्ट है। इनके द्वारा रचित शौर्य तथा श्रृंगार विषयक दोहे इस प्रकार हैं-


शौर्य-

खग्न विसाहित जहिं लहउँ, पिय तहिं देसहिं जाहु।

रण दुब्भिक्खे भग्गाइं, विणु बुज्झे नवलाहुँ।।


श्रृंगार-

बिम्बाहरि तणु रयण-वणु, कहि ठिउ सिरि आणन्द।

निरुबम-रसु पिएँ पिअवि जण, सेसहोदिण्णी मुँछ।।


अतः अपने धर्म का प्रचार करने के लिए जैन कवियों ने अनेक चरित्र-काव्य लिखे हैं। जिसमें अलौकिकता का आवरण भी है और प्रेम कथाएंँ भी।