अध्याय 10

                                                    कबीर की वाणी

पहला सेट: 1–10 दीर्घ उत्तर

1. सच्चे गुरु का महत्व क्या है?
उत्तर: सच्चा गुरु जीवन में मार्गदर्शक होता है। वह हमें धर्म, सत्य और मोक्ष का रास्ता दिखाता है। कबीर दास के अनुसार, “सच्चे गुरु को पा लेने से जीवन में अनेक फल प्राप्त होते हैं।” गुरु हमें ज्ञान, विवेक और सद्गुणों की प्राप्ति कराते हैं। उनके बिना जीवन में भ्रम और अधर्म का प्रभाव अधिक होता है। गुरु के आशीर्वाद से व्यक्ति आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों स्तरों पर सफल होता है।

2. क्रोध का परिणाम क्या होता है?
उत्तर: क्रोध जीवन में विनाशकारी होता है। यह हमारे मन, स्वास्थ्य और संबंधों को प्रभावित करता है। कबीर दास कहते हैं – “जहाँ क्रोध वहाँ काल।” क्रोध से व्यक्ति विवेकहीन बन जाता है और दूसरों को हानि पहुँचाता है। अतः क्रोध का नियंत्रण करना और धैर्य रखना आवश्यक है।

3. क्षमा क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: क्षमा का अर्थ दूसरों की गलतियों को माफ करना है। कबीर दास कहते हैं – “जहाँ क्षमा वहाँ आप।” क्षमा करने से मन में शांति आती है और द्वेष समाप्त होता है। क्षमा रखने वाला व्यक्ति समाज में सम्मान और प्रेम प्राप्त करता है। यह एक दिव्य गुण है जो व्यक्ति को मानवता के करीब ले जाता है।

4. दया और धर्म के बीच संबंध क्या है?
उत्तर: दया और धर्म का गहरा संबंध है। कबीर दास के अनुसार – “जहाँ दया वहाँ धर्म है।” दया का मतलब है दूसरों के प्रति करुणा रखना। दया रखने वाला व्यक्ति समाज में नैतिकता और मानवता को बढ़ावा देता है। दयालु व्यक्ति अपने कर्मों से धर्म का पालन करता है।

5. हंस और ज्ञानी का समान महत्व क्यों है?
उत्तर: हंस केवल मूल्यवान वस्तुओं का चयन करता है। वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति केवल सत्य और ज्ञान को स्वीकार करता है। कबीर दास के अनुसार, वास्तविक वस्तु या मूल्य केवल ज्ञानी ही पहचान सकता है। अज्ञानियों को इसका महत्व नहीं पता होता।

6. समुद्र में मोतियों का उदाहरण क्या सिखाता है?
उत्तर: समुद्र की लहरों से मोती तट पर आते हैं। बगुला उन्हें पहचान नहीं पाता, लेकिन हंस उनका चयन करता है। यह बताता है कि वास्तविक मूल्य को केवल ज्ञानी ही पहचान सकते हैं। मूल्यवान वस्तु का महत्व समझने के लिए विवेक और ज्ञान आवश्यक है।

7. लोभ क्यों पाप का कारण है?
उत्तर: लोभ व्यक्ति में अतृप्त इच्छा उत्पन्न करता है। यह असत्य, चोरी और अन्याय की ओर ले जाता है। कबीर दास कहते हैं – “जहाँ लोभ वहाँ पाप।” लोभ से व्यक्ति अपने और समाज के लिए हानिकारक कार्य करता है। अतः लोभ त्यागना आवश्यक है।

8. हंस की विशेषता क्या है?
उत्तर: हंस केवल सर्वोत्तम और मूल्यवान वस्तु का चयन करता है। यह सूक्ष्म और ज्ञानवान दृष्टि का प्रतीक है। कबीर दास के अनुसार, हंस की तरह हमें सत्य, धर्म और ज्ञान को पहचानना चाहिए। हंस की यह विशेषता ज्ञानी व्यक्ति की पहचान है।

9. सच्चे गुरु जीवन में मोक्ष का मार्गदर्शन क्यों करता है?
उत्तर: सच्चा गुरु जीवन के भ्रम और अज्ञान को दूर कर ज्ञान प्रदान करता है। गुरु हमें सही और गलत के बीच अंतर करना सिखाता है। उनके मार्गदर्शन से जीवन साकारात्मक और सफल बनता है। सच्चे गुरु की उपस्थिति से व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति करता है।

10. कबीर दास के दोहों का महत्व क्या है?
उत्तर: कबीर दास के दोहे सरल भाषा में गहरे सत्य बताते हैं। ये हमें लोभ, क्रोध और द्वेष से दूर रहना, दया, क्षमा और सत्य का पालन करना सिखाते हैं। उनके दोहे समाजिक, आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।

1. सतगुरु को पाने से क्या होता है?

उत्तर: सतगुरु को पाने से जीवन में अंधकार दूर होता है। जब सच्चा गुरु मिलता है तब हमें सही और गलत की पहचान होती है। सतगुरु अपने शिष्य को ज्ञान रूपी प्रकाश देता है और उसके मन का अज्ञान रूपी अंधकार मिटा देता है। गुरु के मार्गदर्शन से जीवन में सही दिशा मिलती है, धर्म और नैतिकता की रक्षा होती है। इसीलिए कबीरदास कहते हैं कि सतगुरु को पाने से जीवन के अनेक फल प्राप्त होते हैं।


2. क्रोध का परिणाम क्या होता है?

उत्तर: क्रोध को शास्त्रों में मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु बताया गया है। क्रोध आने पर मनुष्य अपने विवेक को खो देता है और गलत कार्य कर बैठता है। क्रोध के परिणामस्वरूप मनुष्य का परिवार, समाज और मित्र सभी उससे दूर हो जाते हैं। कबीरदास ने कहा कि जहाँ क्रोध है, वहाँ काल है अर्थात् मृत्यु और विनाश है। इसलिए क्रोध से बचना चाहिए और क्षमा का गुण अपनाना चाहिए।


3. हंस की विशेषता क्या है?

उत्तर: हंस को भारतीय संस्कृति में पवित्रता और विवेक का प्रतीक माना गया है। कबीरदास ने कहा कि जैसे हंस मोती का महत्व जानकर उसे चुन-चुनकर खाता है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति ही सच्चे ज्ञान का महत्व समझता है। साधारण बगुला उस मोती का महत्व नहीं जानता। हंस विवेकशील और चयन करने की क्षमता वाला पक्षी माना जाता है।


4. दया का महत्व समझाइए।

उत्तर: जहाँ दया है वहाँ धर्म है। दया मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण है। दया के बिना धर्म अधूरा है। यदि किसी व्यक्ति के हृदय में दया नहीं है तो वह चाहे कितनी भी पूजा-पाठ करे, उसका कोई महत्व नहीं है। दया से समाज में शांति, प्रेम और भाईचारे की भावना बनी रहती है।


5. क्षमा का महत्व बताइए।

उत्तर: क्षमा करने वाला मनुष्य सबसे महान माना जाता है। क्षमा से मनुष्य के भीतर का क्रोध और द्वेष समाप्त हो जाता है। कबीरदास कहते हैं कि जहाँ क्षमा है वहाँ स्वयं भगवान का वास है। क्षमा मनुष्य को सच्चा धर्मात्मा बनाती है और उसे सम्मान दिलाती है। क्षमा से ही समाज में सद्भाव और शांति बनी रहती है।


6. कबीर के अनुसार लोभ का परिणाम क्या है?

उत्तर: लोभ मनुष्य को पाप की ओर ले जाता है। लोभी मनुष्य कभी संतुष्ट नहीं होता और हमेशा दूसरों का हक छीनने की कोशिश करता है। जहाँ लोभ है वहाँ पाप है और जहाँ पाप है वहाँ दुःख और बुराई अवश्य होती है। कबीर ने लोभ से बचने की सीख दी है।


7. समुद्र और मोती की उपमा से क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर: कबीरदास ने समुद्र की लहरों से मोती तट पर आने की उपमा दी है। मोती का मूल्य केवल हंस समझता है, बगुला नहीं। इसका अर्थ है कि असली वस्तु का महत्व केवल ज्ञानी ही जानता है। मूर्ख व्यक्ति उसके महत्व को नहीं पहचान पाता। इससे शिक्षा मिलती है कि हमें विवेकशील और ज्ञानवान बनने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हम असली मूल्य को पहचान सकें।


8. कबीरदास की वाणी का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: कबीरदास की वाणी का उद्देश्य समाज को सही मार्ग दिखाना है। उन्होंने धर्म, भक्ति, दया, क्षमा और लोभ-मोह से मुक्ति का संदेश दिया है। कबीर ने दोहों के माध्यम से साधारण और सरल भाषा में गहरी बातें समझाई हैं। उनका उद्देश्य लोगों को सच्चे धर्म की ओर ले जाना और ढोंग, पाखंड और लालच से दूर रखना है।


9. "मन का मैल" कब दूर होता है?

उत्तर: मन का मैल केवल नहाने-धोने से नहीं जाता। यह मैल हमारे भीतर के लोभ, मोह, क्रोध और पाप से उत्पन्न होता है। इसे दूर करने के लिए हमें सच्चे गुरु की शरण लेनी चाहिए, दया, क्षमा और धर्म का पालन करना चाहिए। बाहरी शुद्धि से अधिक महत्त्व आंतरिक शुद्धि का है।


10. "ज्ञानी ही असली वस्तु का महत्व जानता है" – इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: असली वस्तु का महत्व केवल ज्ञानी व्यक्ति ही जान सकता है। मूर्ख व्यक्ति उसके महत्व को नहीं समझ पाता। जैसे समुद्र से निकले मोती को केवल हंस ही चुनता है और बगुला नहीं, उसी प्रकार सच्चे ज्ञान, भक्ति और धर्म का महत्व केवल विवेकशील और साधक ही समझ सकता है। यह कथन हमें ज्ञानी और विवेकशील बनने की प्रेरणा देता है।


Answer by Mrinmoee