(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर: कवि प्रभु (ईश्वर) से प्रार्थना करता है कि वह उसे विपत्तियों से न बचाए, बल्कि विपत्तियों में डर न लगे और वह उन्हें आत्मबल से जीत सके। कवि ईश्वर से शक्ति और साहस की याचना करता है, न कि संकटनिवारण की।
2. 'विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं' – कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि वह ईश्वर से यह नहीं चाहता कि उसे विपत्तियों से बचाया जाए, बल्कि वह विपत्तियों का सामना करने की शक्ति और भयमुक्त मन चाहता है।
3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर: कवि प्रार्थना करता है कि अगर उसे कोई सहायक न मिले तो भी उसका आत्मबल और पौरुष कभी न डगमगाए। वह अकेले संघर्ष करने के लिए भी तैयार है।
4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर: कवि अंत में ईश्वर से यह अनुनय करता है कि जब वह जीवन का भार वहन करे, तब ईश्वर उसे साहस और निर्भयता दे। वह चाहता है कि दुख में भी उसका विश्वास ईश्वर पर बना रहे।
5. 'आत्मत्राण' शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 'आत्मत्राण' का अर्थ है – स्वयं की रक्षा करना। इस कविता में कवि यही प्रार्थना करता है कि वह आत्मबल से विपत्तियों का सामना कर सके। वह ईश्वर से बाहरी सहायता नहीं बल्कि आंतरिक शक्ति की याचना करता है। इसलिए यह शीर्षक पूर्णतः सार्थक है।
6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
उत्तर:
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मैं नियमित अध्ययन करता/करती हूँ।
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समय का सदुपयोग करता/करती हूँ।
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आत्मविश्वास बनाए रखता/रखती हूँ।
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सकारात्मक सोच रखता/रखती हूँ।
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कठिन परिश्रम से लक्ष्य पाने का प्रयास करता/करती हूँ।
7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर: हाँ, यह प्रार्थना गीत अन्य प्रार्थना गीतों से अलग है क्योंकि इसमें कवि ईश्वर से मदद नहीं, बल्कि आत्मबल और साहस की याचना करता है। यह आत्मनिर्भरता का संदेश देता है, जो इसे विशेष और प्रेरणादायक बनाता है।
(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए—
1. नत शिर होकर सुख के दिन में तव मुख पहचानूँ छिन छिन में।
भाव: कवि कहता है कि जब जीवन में सुख हो, तब वह अभिमान में न डूबे, बल्कि विनम्रता से ईश्वर का स्मरण करता रहे।
2. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
भाव: कवि कहता है कि यदि उसे संसार में हानि उठानी पड़े और लाभ से वंचित रहना पड़े, तो भी उसका मनोबल और आत्मविश्वास कभी न टूटे।
3. तरने की हो शक्ति अनामय, मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
भाव: कवि कहता है कि ईश्वर उसका भार हल्का न करे, बल्कि उसे इतना बल दे कि वह स्वयं ही उसे ढो सके और विपत्तियों को पार कर सके।
📘 योग्यता विस्तार—
1. रवींद्रनाथ ठाकुर के गीत संग्रह से दो गीत:
(उदाहरण)
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गीतांजलि – "यदि तोर डाक सुने केउ ना आसे, तोबे एकला चलो रे"
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"हे नूतन, देखा दिखा…"
2. अन्य प्रार्थना गीत (कविता का पठन/पठन अभ्यास के लिए):
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महादेवी वर्मा – "क्या पूजा क्या अर्चन रे!"
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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' – "दलित जन पर करो करुणा"
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पुष्पा पगारे – "इतनी शक्ति हमें देना दाता"
❤स्पर्श - पृष्ठ 40 : चर्चात्मक प्रश्न व परियोजना कार्य
प्रार्थना पंक्ती –
"हम चलें नेक रस्ते पर हम से भूल कर भी कोई भूल हो न"
❤ ही पंक्ती सुप्रसिद्ध प्रार्थना गीत "इतनी शक्ति हमें देना दाता..." मधून घेतली आहे. ही एक प्रेरणादायी प्रार्थना आहे जी नैतिकता, आत्मबल, संयम आणि सन्मार्गावर चालण्याची शिकवण देते.
🔍 चर्चा – ‘आत्मत्राण’ व ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ प्रार्थना गीतों की समानता व भिन्नता
❤समानता –
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दोन्ही प्रार्थना आत्मबलावर भर देतात – ईश्वराकडे संकटांपासून सुटका न मागता, त्यांच्याशी लढण्याची ताकद मागितली आहे.
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दोन्ही प्रार्थनांमध्ये नैतिकतेचे पालन आणि सत्याचा मार्ग सोडू नये, ही भावना आहे.
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ईश्वरावरील नितांत श्रद्धा – दोघंही भक्त विपरीत परिस्थितीतही ईश्वरावर विश्वास ठेवतात.
.भिन्नता –
'आत्मत्राण' (रवींद्रनाथ ठाकुर) | 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' (पुष्पा पगारे / अविनाश व्यास) |
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अधिक दार्शनिक आणि आंतरिक संघर्षावर लक्ष | अधिक व्यवहारिक जीवनातील नैतिक मार्गदर्शन |
कविता के स्वरूप में | गीत के रूप में, भावनात्मक शैली |
कवि ईश्वराला केवळ आत्मबल मागतो | भक्त ईश्वराकडे मार्गदर्शन, संयम, आणि विवेक मागतो |
❤परियोजना कार्याचे मार्गदर्शन
1️⃣ रवींद्रनाथ ठाकुर – अधिक माहिती (परियोजना पुस्तिका साठी):
❤रवींद्रनाथ ठाकुर (1861–1941)
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जन्म: 7 मे 1861, कोलकाता
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नोबेल पुरस्कार: 1913 साली 'गीतांजलि' या काव्यसंग्रहासाठी साहित्य क्षेत्रात नोबेल पुरस्कार मिळवणारे पहिले आशियाई.
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योगदान: कवी, लेखक, संगीतकार, शिक्षणतज्ज्ञ, चित्रकार
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त्यांची अनेक काव्यसंग्रह, नाटकं, लघुकथा, उपन्यास विख्यात आहेत.
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भारताचा राष्ट्रगीत ‘जन-गण-मन’ हे त्यांचेच रचना आहे.
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समाजसुधारणेवर भर, स्त्रीशिक्षण आणि नवशिक्षण चळवळीत सहभाग.
2️⃣ ‘गीतांजलि’ वाचन:
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'गीतांजलि' म्हणजे ‘ईश्वराशी संवाद’ या स्वरूपातील ध्यानपर कविता.
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यातून मानवतेचा, विनम्रतेचा, आत्मशोधाचा गूढ अनुभव मांडलेला आहे.
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काव्यभाषा: गूढ, प्रतीकात्मक व आध्यात्मिक.
3️⃣ शांती निकेतन – शिक्षणसंस्थेची माहिती:
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स्थापना: 1901, कोलकात्याजवळ 'बोलपूर' येथे
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संस्थेचे नाव: 'विश्वभारती'
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उद्दिष्ट: पारंपरिक भारतीय शिक्षण आणि पाश्चिमात्य आधुनिक शिक्षण यांचा समन्वय
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वैशिष्ट्य: मुक्त शिक्षणपद्धती, कलाविकास, साधेपणा
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नंतर 1951 मध्ये ही केंद्रीय विद्यापीठ म्हणून घोषित झाली.
4️⃣ रवींद्र संगीत – ऐकण्याची शिफारस:
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रवींद्रनाथ यांनी सुमारे 2000 हून अधिक गीते लिहिली आहेत.
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यामध्ये भक्तिगीत, देशभक्तिपर, प्रेमगीत, प्रकृतीवर्णन, तात्त्विक गीतांचा समावेश आहे.
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काही प्रसिद्ध गीते:
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"एकला चलो रे"
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"आमार सोनार बांग्ला"
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"जोधी तोर डाक शुने केउ ना आसे..."
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