chapter 12 

 

1.भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?

उत्तर-जब लेखक अपने भाई के बुलाने पर घर लौट रहा था, तो उसके मन में यह डर था कि बड़े भाई उसे झरबेरी से बेर तोड़ने के कारण डाँटेंगे और शायद मार भी पड़ेगी। यही सोचकर वह घबराया हुआ था।

 2.मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?

उत्तर-मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले एक गहरे कुएँ में ढेला इसलिए फेंकती थी ताकि उसमें गिरे हुए साँप की फुफकार सुन सकें। वे बच्चे यह जानबूझकर करते थे क्योंकि उन्हें उस साँप की फुफकार सुनने में मज़ा आता था।

3.‘साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’–यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?

उत्तर-इस कथन से लेखक की घबराहट और बेचैनी की मनोदशा प्रकट होती है। जब उसने कुएँ में ढेला फेंकने के लिए टोपी उतारी, तब उसमें रखी ज़रूरी चिट्ठियाँ भी कुएँ में गिर गईं। यह देखकर वह इतना हक्का-बक्का रह गया कि उसे याद ही नहीं रहा कि साँप ने फुफकार मारी या नहीं, या ढेला उसे लगा भी था या नहीं। उसका पूरा ध्यान सिर्फ चिट्ठियों पर केंद्रित हो गया था।

4.किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?

उत्तर-लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि वह अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार था और झूठ बोलना उसे नहीं आता था। उसे डर था कि यदि चिट्ठियाँ न पहुँचीं, तो उसे अपने भाई की सख्त डाँट और मार सहनी पड़ेगी। साथ ही, लेखक को यह भी लगता था कि साँप को हटाना कोई बड़ी बात नहीं, बल्कि उससे ज़रूरी काम है चिट्ठियों को बाहर निकालना।

 5.साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाईं?

उत्तर-लेखक ने साँप का ध्यान भटकाने के लिए पहले कुएँ में मुट्ठीभर मिट्टी फेंकी, जिससे साँप का ध्यान उस ओर चला जाए। फिर उसने सीधे हाथ से प्रहार करने के बजाय एक डंडा उसकी ओर बढ़ाया, ताकि साँप उसी डंडे पर हमला करे और अपना सारा विष उसी पर निकाल दे। इस चालाकी से लेखक ने साँप को चकमा देकर चिट्ठियाँ निकालने की कोशिश की।

 6.कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर –जब चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गईं, तब लेखक ने घबराना छोड़कर साहसी निर्णय लिया। उसने अपनी और छोटे भाई की पाँचों धोतियों को जोड़कर एक लंबी रस्सी बनाई। एक सिरे पर डंडा बाँधा और दूसरे सिरे को कुएँ की डेंग से बाँधकर भाई को पकड़ा दिया। फिर वही धोती का सहारा लेकर लेखक धीरे-धीरे कुएँ में उतर गया और साँप से कुछ ऊपर लटक गया।

साँप फन फैलाकर उसकी तरफ देख रहा था, लेकिन लेखक ने डरने के बजाय चालाकी से कुएँ की दीवार से थोड़ी मिट्टी गिराई, जिससे साँप का ध्यान उधर चला गया। तभी लेखक ने डंडे से चिट्ठियों को सरकाने की कोशिश की। साँप ने डंडे पर प्रहार किया और उस पर ज़हर भी उगला। इससे लेखक का आत्मविश्वास बढ़ा। उसने फिर चिट्ठियाँ उठाईं, लेकिन साँप ने डंडे से लिपटकर हमला किया और उसका पिछला हिस्सा लेखक को छू गया। लेखक ने झटपट डंडा पटका, चिट्ठियाँ समेटीं और ऊपर खींचने को कहा।

फिर एक बार मिट्टी फेंककर साँप को दूसरी ओर ध्यान भटकाया और डंडा वापस खींच लिया। जैसे ही सही मौका मिला, लेखक हाथों के सहारे सरकता हुआ कुएँ की 36 फीट गहराई से सुरक्षित बाहर निकल आया।

7.इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है?

उत्तर-इस पाठ को पढ़ने के बाद बच्चों की कई बाल-सुलभ शरारतों का पता चलता है। बच्चे स्वभाव से चंचल और जिज्ञासु होते हैं। वे रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में जानबूझकर ढेले फेंकते हैं ताकि साँप फुफकारे और वे उसका मज़ा लें। यह उनके खेलने और मज़े लेने का एक तरीका होता है।

इसके अलावा, वे झाड़ियों से बेर तोड़कर खाते हैं, आम के पेड़ों पर चढ़ते हैं और डंडे से आम गिराकर खाते हैं। प्रकृति की गोद में इस प्रकार की शरारतें और खेलकूद उन्हें बहुत आनंद देती हैं। इन सभी बातों से उनके सरल, निष्कपट और उत्साही स्वभाव का परिचय मिलता है।


 8.मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उलटी निकलती हैं’–का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-इस कथन का आशय यह है कि मनुष्य जब किसी कार्य को करने की ठान लेता है, तो पहले वह अपनी बुद्धि और कल्पना से उसके लिए कई योजनाएँ बना लेता है। लेकिन जब वह वास्तव में उस स्थिति का सामना करता है, तब उसे एहसास होता है कि उसकी बनाई योजनाएँ व्यर्थ थीं।

इस पाठ में भी लेखक ने पहले से सोच रखा था कि वह कुएँ में उतरकर आसानी से डंडे से साँप को मार देगा और चिट्ठियाँ उठा लाएगा। लेकिन जब वह वास्तव में कुएँ में उतरा, तो देखा कि कुएँ का व्यास बहुत छोटा है, जिससे डंडा चलाना मुश्किल है। ऊपर से साँप भी फन फैलाकर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। तब उसे समझ में आया कि उसका अनुमान और योजना पूरी तरह गलत थी। इसलिए, यह कहा गया है कि मनुष्य की बनाई हुई योजनाएँ कई बार वास्तविकता के सामने गलत साबित हो जाती हैं।

9.‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’-पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर पाठ में "फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है" का मतलब है कि लेखक ने जो साहसिक कदम उठाया, उसके परिणाम पर उसका नियंत्रण नहीं था। उसने ठान लिया था कि वह कुएँ में उतरकर चिट्ठियाँ निकालेगा, चाहे परिणाम कुछ भी हो। फल की चिंता छोड़कर उसने पूरी लगन से काम किया, क्योंकि जो भी नतीजा होगा, वह किसी उच्च शक्ति या ईश्वर की इच्छा से होगा। इसलिए उसने नतीजे की चिंता किए बिना अपना कर्तव्य निभाने का फैसला किया।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 1.बड़े भाई द्वारा बुलाए जाने की बात सुनकर लेखक की क्या दशा हुई और क्यों ?

उत्तर-जब बड़े भाई ने लेखक को बुलाया, तो लेखक बहुत डर गया। उसे डर था कि बेर तोड़ने की वजह से बड़े भाई उसे डांटेंगे और मारेंगे। उस समय वह अपने छोटे भाई के साथ ठंडी हवा में झरबेरी के बेर तोड़कर खा रहा था, इसलिए उसे लगा कि इसी गलती के कारण उसे बुलाया गया होगा।

 2.लेखक को अपने पिटने का भय कब दूर हुआ?

उत्तर-जब लेखक बड़े भाई के बुलाने पर डरते हुए घर पहुँचा, तो उसने देखा कि उसका बड़ा भाई चिट्ठियाँ लिख रहा है। यह देखकर उसे समझ में आया कि उसे चिट्ठियाँ डाकखाने में डालने के लिए ही बुलाया गया है। इस बात का पता चलते ही उसका डर और पिटाई का भय धीरे-धीरे दूर हो गया।

3.डाकखाने में पत्र डालने जाते समय लेखक ने क्या-क्या तैयारियाँ कीं और क्यों?

उत्तर-डाकखाने में पत्र डालने जाते समय लेखक और उसके छोटे भाई ने अपनी सुरक्षा के लिए कुछ विशेष तैयारी की। उन्होंने अपने कानों को धोती से बाँधा ताकि ठंडी हवा से बच सकें। लेखक ने साथ में एक मजबूत बबूल का डंडा भी लिया। उनकी माँ ने उन्हें भुने हुए चने दिए ताकी रास्ते में भूख न लगे। इसके अलावा, वे दोनों सिर पर टोपियाँ भी पहने थे। ये सब तैयारी उन्होंने सर्दियों की तेज ठंडी हवा और मौसम की कड़वाहट से बचने के लिए की थी।

 4.लेखक को अपने डंडे से इतना मोह क्यों था?

उत्तर-लेखक को अपने डंडे से इतना लगाव इसलिए था क्योंकि उसने उससे कई साँप मारे थे और यह उसके लिए एक ताकत का प्रतीक था। साथ ही, वह हर साल इस डंडे से आम के पेड़ों पर चढ़कर आम तोड़ता था, इसलिए यह उसके लिए एक खास चीज़ बन गया था। उसके लिए यह डंडा जिंदा और सजीव सा लगता था, जिससे उसका गहरा नाता बन गया था।

 5.कुएँ में साँप होने का पता लेखक एवं अन्य बच्चों को कैसे चला?

उत्तर-लेखक और अन्य बच्चे मक्खनपुर स्कूल जाते समय रास्ते में पड़ने वाले एक गहरे, सूखे कुएँ के पास से गुज़रते थे। एक दिन लेखक ने उस कुएँ में झांककर देखा और उसमें एक ढेला फेंका ताकि आवाज़ सुन सके। जैसे ही ढेला गिरा, कुएँ से एक फुसफुसाहट की आवाज़ आई। इस आवाज़ से उन्हें पता चल गया कि उस कुएँ में साँप है।

6.लेखक पर बिजली-सी कब गिर पड़ी?

उत्तर-लेखक अपने छोटे भाई के साथ मक्खनपुर डाकखाने चिट्ठियाँ डालने जा रहा था। रास्ते में एक कुआँ था, जिसमें साँप गिरा हुआ था। लेखक ने साँप की फुसफुसाहट सुनने की इच्छा से एक हाथ से टोपी उतारी और उसी समय दूसरे हाथ से ढेला कुएँ में फेंका। लेकिन टोपी उतारते ही उसमें रखी चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गईं। यह देखकर लेखक को अचानक बहुत बड़ा सदमा लगा, जैसे बिजली गिर गई हो।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

 1.लेखक को माँ की याद कब और क्यों आई?

उत्तर-लेखक अपने भाई की चिट्ठियाँ डाक में डालने के लिए जा रहा था, तभी उसने कुएँ में गिरे साँप की फुसफुसाहट सुनने की जिज्ञासा से अपने सिर से टोपी उतारी। लेकिन टोपी में रखी चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गईं। यह देख वह निराश और भयभीत हो गया और रोने लगा। उस समय उसे अपनी माँ की ममता और सहारा याद आया। वह चाहता था कि माँ आकर उसे गले लगाए, प्यार से समझाए और कहे कि चिंता मत करो, चिट्ठियाँ फिर से लिखी जा सकती हैं। उसे लगता था कि इसी माँ की दुलार से उसे सच्चा सांत्वन मिलेगा।

 2.‘लेखक चिट्ठियों के बारे में घर जाकर झूठ भी बोल सकता था, पर उसने ऐसा नहीं किया’ इसके आलोक में लेखक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताइए कि आप लेखक के चरित्र से किन-किन विशेषताओं को अपनाना चाहेंगे?

उत्तर लेखक जानता था कि कुएँ में साँप है और चिट्ठियाँ निकालना कितना खतरनाक है। फिर भी उसने झूठ बोलकर बचने की बजाय, सच्चाई स्वीकार करते हुए खतरे को सामना किया। इससे पता चलता है कि वह सच्चाई और ईमानदारी का पालन करता था। साथ ही वह बहुत साहसी और बुद्धिमान था, जो अपने अनुभव से जानता था कि कैसे साँप से निपटना है। उसका दृढ़ निश्चय और आत्मबल इतना मजबूत था कि उसने असंभव को भी संभव बना दिया। मैं लेखक की ये विशेषताएँ – सत्यनिष्ठा, साहस, बुद्धिमत्ता, और मजबूत संकल्प – अपने जीवन में अपनाना चाहूंगा क्योंकि ये गुण हमें मुश्किल हालातों में भी सही रास्ता दिखाते हैं।

 3.कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने में उसके भाई का कितना योगदान था? इससे लेखक के चरित्र में किन-किन जीवन मूल्यों की झलक मिलती है?

उत्तर यदि लेखक को अपने छोटे भाई का सहयोग न मिलता, तो शायद वह कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का साहस भी नहीं कर पाता। उसने अपनी और भाई की धोतियाँ मिलाकर रस्सी बनाई, जिससे डंडा कुएँ में लटका सके और भाई उसे मजबूती से पकड़ सके। इस सहयोग से ही लेखक ने कुएँ में उतरकर चिट्ठियाँ सुरक्षित निकालने में सफलता पाई। इससे पता चलता है कि लेखक में साहस, बुद्धिमत्ता, अच्छी योजना बनाने की क्षमता और परिवार के प्रति गहरा प्रेम था। उसकी ये विशेषताएँ जीवन के उच्च मूल्य—साहस, समझदारी, समन्वय और भाईचारे—को दर्शाती हैं।

 4.लेखक ने किस तरह अत्यंत सूझ-बूझ से अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया? ‘स्मृति’ पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए। इससे आपको क्या सीख मिलती है?

उत्तर-स्मृति’ पाठ में लेखक को अपने भाई द्वारा दी गई चिट्ठियाँ गलती से कुएँ में गिर गईं, जिसमें एक जहरीला साँप था। चिट्ठियाँ निकालना एक बहुत ही जोखिम भरा काम था, जहाँ थोड़ी सी लापरवाही जानलेवा हो सकती थी। फिर भी, लेखक ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए साहस, धैर्य और बुद्धिमत्ता से काम लिया। उसने सोच-समझकर अपनी और भाई की धोती बाँधकर डंडा कुएँ में उतारा और योजनाबद्ध तरीके से चिट्ठियाँ निकालने में सफल रहा। यह दिखाता है कि वह न केवल ज़िम्मेदार था, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारा।

इससे हमें यह सीख मिलती है कि कठिनाइयों के सामने साहस और सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए। साथ ही, ऐसी जोखिम भरी परिस्थिति में हम अपने से बड़े या अनुभवी लोगों की सलाह जरूर लें, ताकि हम सुरक्षित और सही निर्णय ले सकें।


 5.‘स्मृति’ कहानी हमें बच्चों की दुनिया से सच्चा परिचय कराती है तथा बाल मनोविज्ञान का सफल चित्रण करती है। इससे आप कितना सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-‘स्मृति’ कहानी पूरी तरह बच्चों की दुनिया को दर्शाती है। इसमें बच्चों के मनोभाव, उनकी सहजता, जिज्ञासा और शरारतों का बहुत ही जीवंत चित्रण है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे बच्चे कड़ाके की ठंड में भी झरबेरी तोड़कर खाने में आनंद लेते हैं, लेकिन भाई के बुलाने पर उनके मन में डर भी आ जाता है। इसके बाद उनका साहस, बुद्धिमत्ता और जिम्मेदारी निभाने की भावना भी उभरती है।

कहानी में बच्चों की नादानी, उत्साह, खेल-तमाशा, डर और साहस के साथ-साथ उनकी जिम्मेदारी का भाव भी साफ झलकता है। वे कभी गलती करते हैं, तो उससे बचने के लिए बहाने भी बनाते हैं, लेकिन जब ज़रूरत होती है, तो अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी दिखाते हैं। इस प्रकार ‘स्मृति’ बाल मनोविज्ञान को समझने और बच्चों की असली दुनिया से परिचित होने का एक सफल माध्यम है।

Answer by Mrinmoee