Chapter 16

                                                         हरिऔध


अति लघु उत्तरीय प्रश्न                                                                                     

1. इस कविता के रचयिता का नाम बतायें |

उत्तर: इस कविता के रचयिता “ अयोध्या सिंह उपाध्याय “'हरिऔध' है|


2. निम्न का विलोम शब्द लिखिए |

तिनका, खड़ा

उत्तर: 

तिनका - ढेर

खड़ा - बैठा


3. निम्न शब्दों का शब्दार्थ लिखिए |

झिझक, तिनका

उत्तर: झिझक - हिचकिचाहट

तिनका - बहुत ही छोटा 


4. निम्न शब्दों का पर्यायवाची लिखिए।

आँख, पॉव

उत्तर: आँख - नेत्र ,नयन, लोचन |

पॉव - पैर, चरण, पद |


5. मैं .............. , हुआ बेचैन-सा , । रिक्त स्थान को पूरा करो।

उत्तर: मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,।


लघु उत्तरीय प्रश्न                                                                                                 (2 अंक)

1. कौन ,घंमड से भरा हुआ था ?

उत्तर: कवि ,अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' घमंड से भरे और मुंडेर पर खड़े थे।


2. कवि के आँख में क्या पड़ गया था ?

उत्तर: कवि के आँख में एक तिनका पड़ गया था ,जब वह मुंडेर पर खड़े थे।


3. कवि कि आँख लाल क्‍यों हो गयी थी ?

उत्तर: कवि के आँख में एक तिनका पड़ गया था, जिसके कारण उनकी आँख लाल हो गयी थी।


4. कवि के बेचैनी का क्या कारण था ?

उत्तर: कवि के बेचैनी का कारण एक तिनका था, जो उनके आँख में पड़ गया था।


5. कवि का घमंड किसने तोड़ा ?

उत्तर: कवि का घमंड एक तिनके ने तोड़ा था ,जो उनके आँख में पड़ गया था।


लघु उत्तरीय प्रश्न                                                                                                   

1. “एक तिनका कविता” कवि को किस बात की सीख दी है?

उत्तर: “एक तिनका कविता” में कवि हरिऔध जी ने यह शिक्षा दी है कि घमंड और अहंकार कभी भी टिकाऊ नहीं होते। उन्होंने उदाहरण के माध्यम से बताया कि चाहे घमंड कितना बड़ा क्यों न हो, कभी-कभी एक छोटे से तिनके या मामूली कारण से भी वह टूट सकता है। इसी प्रकार, अहंकार का पतन भी छोटे से कारण से संभव है। इस प्रकार यह कविता हमें विनम्र और सतर्क रहने की प्रेरणा देती है।


2. आंख में तिनके के पड़ने बाद घमंडी का क्‍या हुआ ?

उत्तर: जब घमंडी की आंख में तिनका चुभा, तो उसकी आंख में तीव्र पीड़ा होने लगी। आंख लाल हो गई और वह दर्द से कराह उठने लगा। उसे असहनीय बेचैनी महसूस हुई और उसका घमंड तुरंत टूट गया।


3. कवि की आँख लाल क्‍यों हो गयी थी ? उनके आँख से

तिनका किसने निकला ?

उत्तर: कवि की आंख में एक तिनका चुभ गया, जिससे उनकी आंख लाल हो गई और उसमें जलन होने लगी। यह तिनका उनके आंख से निकालने में आसपास मौजूद लोगों ने मदद की।


4. कवि क्‍यों बेचैन हो गए थे ? कवि का घमंड किसने तोड़ा ?

उत्तर: कवि बेचैन हो गए क्योंकि उनकी आंख में एक तिनका चुभ गया था, जिससे उन्हें तीव्र दर्द और असहजता महसूस हुई। उनका घमंड उसी तिनके ने तोड़ा, जो आंख में जाकर उन्हें पीड़ा दे रहा था।


5.आँख से तिनका किसने निकाला ?

उत्तर: आंख से तिनका निकालने के लिए आसपास मौजूद लोगों ने एक कपड़े का इस्तेमाल किया और धीरे-धीरे प्रयास करके तिनका निकाल दिया।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न                                                                                               

1. अयोध्या सिंह उपाध्याय. 'हरिऔध' का जीवन परिचय दीजिये

उत्तर: महान हिंदी साहित्यकार और कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 15 अप्रैल 1865 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के निज़ामाबाद में हुआ था। उन्होंने ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया, लेकिन बाद में सिख धर्म अपना लिया और अपना नाम भोला सिंह रख लिया। हरिऔध जी की रचनाएँ समाज, संस्कृति और भावनाओं पर केंद्रित हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में प्रिय प्रवास, कवि सम्राट, वैदेही वनवास, बाल विभव, फूल पत्ते आदि शामिल हैं। माना जाता है कि उनका देहांत भी 1947 में निज़ामाबाद में हुआ।


2. कवि को सरल जीवन जीने का महत्व कैसे समझ आ जाता है?

उत्तर:कवि हरिऔध जी जब घमंड से भरे हुए अपने अहंकारी मन के साथ खड़े थे, तभी उनकी आंख में एक तिनका चुभ गया। इस छोटी सी घटना ने उन्हें पीड़ा दी और बेचैन कर दिया। जब तिनका निकाल दिया गया, तो उनका घमंड भी टूट गया। इसी अनुभव के माध्यम से उन्हें यह समझ में आया कि घमंड और अहंकार के बजाय सरल और विनम्र जीवन जीना अधिक मूल्यवान है।


3. “मैं घमण्डों में भरा ऐँठा हुआ ।

एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा |

आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ।

एक तिनका आँख में मेरी पड़ा “।॥॥

उत्तर:‘एक तिनका कविता’ की इन पंक्तियों में कवि हरिऔध जी बता रहे हैं कि वे घमंड और अहंकार से भरे हुए मुंडेर पर खड़े थे। तभी अचानक कहीं से उड़ता हुआ एक तिनका उनकी आंख में गिर गया, जिससे उन्हें तीव्र पीड़ा हुई और वे तिलमिला उठे।


4 “. मैं झिजक उठा, हुआ बेचैन-सा ।

लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।

मूँठ देने लोग कपड़े की लगे |

ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी” || 

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि हरिऔध जी अपनी आंख में तिनका चुभने के बाद की स्थिति का वर्णन कर रहे हैं। उनका कहना है कि तिनके के कारण वे बेचैन हो गए, आंख लाल हो गई और दर्द महसूस हुआ। आसपास मौजूद लोगों ने कपड़े का उपयोग कर धीरे-धीरे तिनका निकाला। इस घटना के दौरान उनका दुःख और अहंकार दोनों दूर हो गए।


5.”जब किसी ढब से निकल तिनका गया |

तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए ।

ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ।

एक तिनका है बहुत तेरे लिए” ॥3॥

उत्तर: कवि हरिऔध जी इन पंक्तियों में तिनका निकलने के बाद अपने अनुभव का वर्णन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जैसे ही आंख से तिनका निकला, उन्हें यह समझ में आया कि उनका घमंड कितना निरर्थक था। एक छोटे से तिनके ने ही उनका अहंकार तोड़ दिया, जिससे उन्हें सीख मिली कि अभिमान को त्यागकर विनम्र और सरल जीवन जीना चाहिए।


 6.कवि को भोर क्यों भा रहा है?

उत्तर-कवि को भोर इसलिए भा रही है क्योंकि यह स्वतंत्र भारत का पहला सूर्योदय है। आजादी की इस पावन घड़ी में कवि अत्यंत प्रसन्न है। भोर की सुंदरता उसके हृदय को आनंदित कर रही है और मन को उत्साह से भर रही है। वह स्वतंत्रता के इस शुभ अवसर पर अपने और समस्त राष्ट्र की खुशहाली और गौरव का अनुभव कर रहा है। 

7.‘रोली भरी थाली’ का क्या आशय है?

उत्तर-‘रोली भरी थाली’ से कवि ने प्रात:कालीन सूर्योदय का रूपक प्रस्तुत किया है। जैसे सूरज पूरब दिशा में उगता है, आकाश लालिमा से भर जाता है और ऐसा प्रतीत होता है जैसे आकाश एक थाली हो जिसमें रोली भरी हो। इस रूपक के माध्यम से कवि ने प्रकृति की सुंदरता और भोर की सुषमा को जीवंत रूप में दर्शाया है। इस प्रतीक प्रयोग से छायावादी भाव भी स्पष्ट होते हैं और कवि ने प्रकृति-वर्णन में अपनी सफलता दिखाई है।

8.कवि को प्रकृति में हो रहे परिवर्तन किस रूप में अर्थपूर्ण जान पड़ते हैं?

उत्तर-कवि हरिऔध जी अपने पदों में प्रकृति के माध्यम से जीवन में हो रहे परिवर्तनों को अर्थपूर्ण रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। भोर के समय आसमान की लालिमा, सूरज की किरणों से आकाश का रोली भरी थाली जैसा रूप, पेड़ों पर खिलते फूल और पक्षियों का कलरव, ओस से सजी पत्तियाँ—all ये परिवर्तन जीवन में आनंद, उत्साह और नवीनता का संदेश देते हैं।

प्रकृति की हर छोटी-बड़ी घटना, जैसे हवाओं का बहना, मलय-बयार की महक, झील-तालाब का सुनहरी चादर जैसी दिखना, कवि के हृदय को उमंग से भर देती है। यह सब बदलाव भारतीय नवजागरण और स्वतंत्र भारत की पावन अवस्था का प्रतीक बनकर सामने आते हैं।

कवि इन परिवर्तनों को देखकर अपने भीतर उत्सुकता और उत्साह का अनुभव करता है। वह आज़ाद भारत के आगमन की प्रतीक्षा में व्यग्र है, उसकी आँखें पथरा गई हैं, लेकिन हृदय उत्साहित और बेचैन है। ये प्राकृतिक दृश्य उसे नए युग, नवजागरण और स्वतंत्रता की प्रतीक्षा में जागृत भाव से भर देते हैं।

9.हवा के कौन-कौन से कार्य-व्यापार कविता में बताए गए हैं?

उत्तरकवि हरिऔध जी ने अपनी कविता में हवा के कई रूपों और कार्यों का वर्णन किया है। हवाएँ धीरे-धीरे बहती हैं, कहीं-कहीं रुक-रुक कर चलती हैं। वे चारों ओर फैलकर वातावरण को सुगंधित कर देती हैं, अपने सुवास से प्रकृति और वातावरण को मनोहारी बना देती हैं।

इस प्रकार हवा न केवल गति और प्रसार का प्रतीक है, बल्कि यह कविता में वातावरण को जीवंत, मनोहारी और आनंदमय बनाने का कार्य भी करती है। कवि ने हवा के माध्यम से प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन की सुगमता का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है।

10.सुनहरी चादरें कहाँ बिछी हुई हैं और क्यों?

उत्तर-कवि हरिऔध जी ने अपनी कविता में झील, तालाब और नदियों के जल का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है। प्रात:काल जब सूर्य की पहली किरणें जल पर पड़ती हैं, तब जल में सुनहरी आभा उत्पन्न होती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जल ही नहीं, बल्कि उस पर सुनहरी चादर बिछी हुई है।

कवि ने इस रूपक के माध्यम से प्रात:कालीन सूर्य की लाली और प्रकृति के सौंदर्य को मनोहर ढंग से चित्रित किया है, जिससे वातावरण में उजाला और मंगल की अनुभूति होती है।

 11.प्रकृति स्वर्ग की बराबरी कैसे करती है?

उत्तर-महाकवि हरिऔध जी ने अपने काव्य में प्रकृति के सुन्दर चित्रण द्वारा धरती को स्वर्ग के सदृश प्रस्तुत किया है। चारों ओर हरियाली फैली हुई है। फूलों से भरी हरी-भरी पत्तियों वाली लताएँ धरती की सुंदरता बढ़ा रही हैं। झील, तालाब और नदियों का जल सुनहली चादर का रूप ले चुका है। चारों ओर प्रकृति की अनोखी छटा से वातावरण मनोहारी हो गया है। जन-समुदाय इस प्राकृतिक सौंदर्य में ठाट-बाट का अनुभव कर रहा है। इस प्रकार भारत का भू-खंड सज-धजकर स्वर्ग के बराबर और सुंदर प्रतीत हो रहा है।

12.कवि को ऐसा लगता है कि सभी प्राकृतिक व्यापारों के प्रकट होने के पीछे कोई गूढ़ अभिप्राय है। यह गूढ़ अभिप्राय क्या हो सकता है? आप क्या सोचते है? अपने विचार लिखें।

उत्तर-महाकवि हरिऔध जी को ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति में हो रहे सभी घटनाओं और व्यापारों के पीछे कोई गूढ़ अभिप्राय छिपा है। उनके विचार में यह गूढ़ अभिप्राय भारत की स्वतंत्रता और गुलामी की जंजीरों से मुक्ति है। कविता में प्रथम सूर्योदय के समय प्राकृतिक सुषमा का चित्रण इस स्वतंत्रता के उल्लास और राष्ट्र की प्रसन्नता का प्रतीक है।

कवि के हृदय में अत्यंत प्रसन्नता है। वह आजाद भारत के प्रथम प्रहर पर अपने और सम्पूर्ण राष्ट्र के मनोभावों को प्रकृति के रूप में अनुभव कर रहा है। पूरे भारत में उत्साह और उमंग फैली हुई है, और जनता अपने आनंद में मग्न है। इस प्रकार कवि ने प्रकृति के माध्यम से न केवल अपने मन की अनुभूति व्यक्त की है, बल्कि समग्र भारतीय जनता की खुशी और उत्साह को भी चित्रित किया है।

13.कवि को किसकी उत्कंठित प्रतीक्षा है? इस पर विचार कीजिए।

उत्तर-महाकवि हरिऔध जी स्वतंत्र भारत के पावन अवसर की प्रतीक्षा में अत्यंत आतुर हैं। उनका हृदय स्वतंत्र भारत के आगमन की कल्पना में व्यग्र है। वह चाहते हैं कि भारत स्वतंत्र हो, सार्वभौमिक सत्ता से संपन्न हो और नवजागरण का नया सूरज इसकी पवित्र धरती पर चमके। कवि इस पावन क्षण का स्वागत पूरी श्रद्धा और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ करना चाहते हैं—राह में कुमकुम बिखेर कर, पलक पाँवड़े बिछाकर, अपलक दृष्टि से प्रतीक्षा करते हुए।

“देखते राह थक गईं आँखों
क्या हुआ क्यों तुम्हें न पाते हैं।
आ अगर आज आ रहा है तू
हम पलक पाँवड़े बिछाते हैं।”

इन पंक्तियों में कवि की उत्कंठा स्पष्ट है। वह स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रहर का बेसब्री से इंतजार कर रहा है और इसके आगमन में अपनी हृदय-प्रसन्नता को पूरी भक्ति और उत्साह के साथ व्यक्त कर रहा है।


Answer by Mrinmoee