Chapter 17
महादेवी वर्मा
प्रश्न 1.महादेवी अपने को ‘नीर भरी दुख की बदली’ क्यों कहती हैं?
उत्तर-महादेवी वर्मा अपने आप को “नीर भरी दुख की बदली” इसलिए कहती हैं क्योंकि उनका जीवन हमेशा वेदनाओं और कष्टों से भरा रहा है। उनके व्यक्तिगत दुःख में ही विश्व की पीड़ा और जन जीवन के दुख भी निहित हैं। कवियित्री ने अपनी काव्य प्रतिभा के माध्यम से इस असह्य वेदना को व्यक्त किया है।
प्रश्न 2.निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें:
(क) मैं क्षितिज-भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का. भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव-जीवन अंकुर बन निकली।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा की काव्यकृति ‘यामा’ से ली गई हैं, जिसका शीर्षक ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ है। इन पंक्तियों में कवयित्री ने प्रकृति के माध्यम से जीवन की वेदना, पीड़ा और नवजीवन के अंकुरण का भाव व्यक्त किया है।
(ख) सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिरहन हो अंत खिली!
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा की काव्यकृति ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री अपने आगमन की अनुभूति और जगत में उसके प्रभाव का वर्णन कर रही हैं। वह कहती हैं कि उनके जन्म के समय जग में खुशी और आनंद का वातावरण था, परंतु उस सुख में भीतर ही भीतर एक सिहरन और विषाद भी समाहित था।
प्रश्न 3.‘क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने समग्र विश्व की वेदना पर प्रकाश डाला है। उनका तात्पर्य यह है कि संसार में सभी प्राणी आहत हैं, पीड़ा में हैं, वे रोते और तड़पते हैं, परंतु इसी क्रंदन के बीच किसी न किसी रूप में हँसी या जीवन की गूढ़ अनुभूति भी छिपी रहती है।
प्रश्न 4.कवयित्री किसे मलिन नहीं करने की बात करती है?
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा अपने आंतरिक भाव को व्यक्त करते हुए कहती हैं कि वह जिस पथ पर चलती हैं, वह मलिन न हो। इसका अर्थ यह है कि कवयित्री चाहती हैं कि उनका जीवन और मार्ग शुद्ध, निर्मल और पवित्र बना रहे। उनका यह पथ राग-द्वेष, स्वार्थ और सांसारिक लालसा से रहित है।
प्रश्न 5.सप्रसंग व्याख्या करें:
“विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही।
उमड़ी कल थी मिट आज चली।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा अपने जीवन के अनुभवों को अभिव्यक्त कर रही हैं। वह कहती हैं कि इस व्यापक जगत में मेरा कोई अपना नहीं है। मेरी पहचान और इतिहास केवल इतना ही है कि मैं कल थी और आज नहीं हूँ। इन पंक्तियों में कवयित्री ने जीवन की नश्वरता और क्षणभंगुरता पर ध्यान आकर्षित किया है।
प्रश्न 6.‘नयनों में दीपक से जलते में ‘दीपक’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियों में ‘दीपक’ महादेवी वर्मा की अंतर्मन की पीड़ा और उत्कट प्रतीक्षा का प्रतीक है। जैसे दीपक निरंतर जलता रहता है लेकिन उसकी गर्मी और जलन का अनुभव केवल स्वयं दीपक को होता है, उसी प्रकार महादेवी जी की वेदना, तड़पन और बेचैनी भी केवल उनके हृदय में अनुभव होती है।
प्रश्न 7.कविता के अनुसार कवियित्री अपना परिचय किस रूप में दे रही हैं?
उत्तर-‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काव्य में महादेवी वर्मा अपने जीवन का परिचय प्रतीकात्मक रूप में दे रही हैं। वह अपने जीवन की वेदना, पीड़ा और अंतर्मन के भावों को बादल की तरह अभिव्यक्त कर रही हैं। जैसे जल-कणों से भरा बादल सघन होकर वर्षा करता है, उसी प्रकार उनका जीवन भी दुःख और संवेदनाओं से भरा हुआ है। उनके भीतर की बेचैनी और सिहरन, आंखों में जलते दीपक की तरह प्रकट होती है, जो उनके भीतर की असंख्य भावनाओं का संकेत है।
प्रश्न 8.‘मेरा न कभी अपना होना’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-उपरोक्त पंक्तियों में महादेवी वर्मा इस संसार की नश्वरता पर प्रकाश डालते हुए अपने व्यक्तिगत जीवन की अस्थिरता को व्यक्त कर रही हैं। वह सरलता और निष्कपट भाव से कहती हैं कि इस व्यापक जगत में उनका कोई अपना नहीं है; किसी भी कोने में उनका वास्तविक संबंध नहीं है। इसका सूक्ष्म भाव यह है कि संसार क्षणभंगुर और माया-बद्ध है; कोई भी स्थायी नहीं है। सभी को एक न एक दिन नष्ट होना है। इसलिए जीवन में सर्वोत्तम मार्ग सुकर्म और सत्कर्मों का पालन करना है। इन पंक्तियों में महादेवी जी ने अपनी व्यक्तिगत नश्वरता को विश्व जीवन के धर्म से जोड़ते हुए रहस्यवादी दृष्टि से प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 9.कवियित्री ने अपने जीवन में आँसू को अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण साधन माना है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत काव्य में महादेवी वर्मा ने अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए आँसुओं को प्रमुख साधन के रूप में अपनाया है। आँसू इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जब वे बहते हैं, तो यह स्पष्ट करता है कि हृदय में कोई गहन पीड़ा या वेदना समाहित है।
प्रश्न 10.इस कविता में ‘दख’ और ‘आँसू’ कहाँ-कहाँ, किन-किन रूपों में आते हैं? उनकी सार्थकता क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत काव्य-पाठ में महादेवी वर्मा ने दुख और आँसुओं को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। “स्पंदन में चिर निस्पंद” पंक्ति में उन्होंने जीवन की गहरी वेदना और दुःख को अभिव्यक्त किया है। “क्रंदन में आहत विश्व” में अपने व्यक्तिगत दुख के साथ-साथ विश्वव्यापी पीड़ा का प्रतिबिंब दिखाते हुए आँसुओं के महत्व को उजागर किया है। यहाँ कवियित्री के आँसू केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समस्त जगत के दुःख के प्रतीक हैं।