Chapter 18

                                                      हरिवंश राय बच्चन


 प्रश्न 1.‘आ रही रवि की सवारी’ कविता का केंद्रीय भाव क्या है? .
उत्तर-
‘आ रही रवि की सवारी’ कविता में महाकवि हरिवंशराय बच्चन ने आशा और नवजागरण के भाव को व्यक्त किया है। कविता के माध्यम से वे जीवन में निराशा के बाद आशा और उत्साह के प्रकट होने का संदेश देते हैं। कवि अपने निजी जीवन में कठिनाई और शोक का सामना कर चुके हैं, लेकिन अंततः जीवन में नई किरणें फूटीं और उन्होंने उत्साह के साथ काव्य-सृजन और जीवन की ओर अग्रसर होने का मार्ग अपनाया।

“आ रही रवि की सवारी” में सूर्य का आगमन प्रतीकात्मक रूप से नई चेतना, ऊर्जा और उमंग का सूचक है। यह केवल कवि के व्यक्तिगत अनुभवों तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्र में स्वाधीनता संग्राम, राष्ट्रीय नवनिर्माण और जन जीवन में नई आशा के प्रतीक के रूप में भी देखा जा सकता है। इस प्रकार कविता का केंद्रीय भाव आशा, नवजागरण और स्वाधीनता के प्रति उत्साह है, जो व्यक्तिगत जीवन और राष्ट्रीय जीवन दोनों पर लागू होता है।

प्रश्न 2.कवि ने किन-किन प्राकृतिक वस्तुओं का मानवीकरण किया है?
उत्तर-
‘आ रही रवि की सवारी’ कविता में कवि ने कई प्राकृतिक वस्तुओं का मानवीकरण किया है। उन्होंने ‘रवि’ को जीवंत व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया है, जैसे वह सवारी लेकर आ रहा हो। इसके साथ ही बादलों को भी मानवीय भाव और क्रियाओं से सजाया गया है। पक्षियों, तारों और रात के राजा चाँद को भी मानवीकरण देकर कवि ने कविता में जीवन और सौंदर्य का नया आयाम जोड़ा है। नव किरण और खिलते हुए कलि-कुसुम को भी मानवीय अनुभूति से चित्रित किया गया है, जिससे कविता में प्रकृति जीवंत प्रतीत होती है।

 प्रश्न 3.‘आ रही रवि की सवारी’ कविता में चित्रित सवारी का वर्णन करें।
उत्तर-
‘आ रही रवि की सवारी’ कविता में कवि ने सूर्य के आगमन का मनोहारी और प्रतीकात्मक चित्र प्रस्तुत किया है। रवि यानी सूर्य अपनी सवारी पर पृथ्वी पर अवतरित हो रहा है, उसका रथ नव किरणों से युक्त है। रास्ता कलियों और फूलों से सुसज्जित एवं सुवासित है। बादल स्वर्णमयी वस्त्र धारण कर सूर्य के अनुचर बनकर उसका स्वागत कर रहे हैं। पक्षी, तारों और अन्य प्राकृतिक तत्व जैसे कि चारण, कीर्ति का गायन करते हुए इस दृश्य को जीवंत बना रहे हैं।

रवि के आगमन से रात का चाँद, जो अंधकार का प्रतीक है, पीछे हटकर निष्क्रिय हो जाता है। इस तरह कवि ने सूर्य की सवारी को प्रकृति और मानवीय भावनाओं के समन्वय से चित्रित किया है। इसके माध्यम से कवि न केवल प्राकृतिक सौंदर्य को प्रस्तुत करता है, बल्कि राष्ट्रीय जीवन और स्वतंत्रता के प्रतीक रूप में नवजागरण एवं आशा का संदेश भी देता है।

प्रश्न 4.भाव स्पष्ट कीजिए

चाहता उछलूँ विजय कह
पर ठिठकता देखकर यह
रात का राजा खड़ा है राह में बनकर भिखारी!
उत्तर-
उपरोक्त पंक्तियों में महाकवि बच्चन ने अपने हृदय की भावनाओं और प्रकृति के दृश्य को संयोजित करते हुए व्यक्त किया है कि उनके मन में विजयोल्लास का भाव उत्पन्न हुआ है। कवि चाहता है कि वह रवि की सवारी के आगमन पर खुशी-उल्लास से उछले, वंदना करे और हर्ष प्रकट करे।

किन्तु तभी वह ठिठक जाता है, क्योंकि रात का राजा, अर्थात् चाँद, राह में भिखारी बनकर खड़ा है। इसका अर्थ यह है कि आजादी मिली है, किन्तु राष्ट्र में राष्ट्रीय जीवन का पूर्ण नवनिर्माण अभी बाकी है। कवि प्रतीकात्मक रूप में यह बताता है कि स्वतंत्रता केवल प्राप्ति का नाम नहीं, बल्कि उसके साथ समाज और राष्ट्र की समग्र प्रगति भी आवश्यक है।

इन पंक्तियों में कवि की व्यक्तिगत पीड़ा और जीवन के संघर्ष की झलक भी है। पहली पत्नी के असामयिक निधन के कारण उनके जीवन में निराशा और शोक था, परंतु धीरे-धीरे जीवन में नई आशा की किरणें फूटीं और सृजन का नया अध्याय आरंभ हुआ। इस प्रकार पंक्तियों में व्यक्तिगत भावनाओं के साथ-साथ सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन का भी संकेत है।

 प्रश्न 5.रवि की सवारी निकलने के पश्चात् प्रकृति उसका स्वागत किस प्रकार से करती है?
उत्तर-
महाकवि बच्चन ने अपनी कविता में रवि के आगमन पर प्रकृति के स्वागत को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। सूर्य नव किरणों से युक्त रथ पर सवार होकर आ रहा है। मार्ग फूलों और कलियों से सुसज्जित और सुवासित है। बादल स्वर्णिम वस्त्र धारण करके अनुचर बन गए हैं, जैसे सूर्य का स्वागत कर रहे हों। पक्षियों का समूह बंदी और चारण की भांति कीर्ति-गायन कर रहा है, उनके गीत और नाद सूर्य के स्वागत का प्रतीक हैं। इस प्रकार कवि ने प्रकृति को सक्रिय, उल्लासित और श्रद्धाभाव से भरा हुआ चित्रित किया है, जो रवि की सवारी के आदान-प्रदान का हिस्सा बन गया है।

 प्रश्न 6.रात का राजा भिखारी कैसे बन गया?
उत्तर-
‘रात का राजा’ यानि चंद्रमा इस समय भिखारी की भांति प्रतीत होता है क्योंकि उसका अपना प्रकाश नहीं है। वह केवल सूर्य-प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। जैसे ही सूर्योदय होता है, रात पीछे हटती है और तारों का समूह भी आकाश से विदा हो जाता है। चंद्रमा सूर्य के प्रकाश के अभाव में निस्तेज पड़ जाता है, प्रभाहीन और निर्बल प्रतीत होता है। कवि ने इसे भिखारी से तुलना कर अद्भुत प्रतीकात्मक मानवीकरण किया है। इस दृश्य में केवल प्राकृतिक परिवर्तन नहीं बल्कि राष्ट्रीय जीवन, गुलामी से मुक्ति और नवनिर्माण का सूक्ष्म संकेत भी निहित है। साथ ही यह प्रसंग कवि के व्यक्तिगत जीवन की असहायता और उसकी प्रतीक्षा भावनाओं से भी जुड़ा हुआ है।

 प्रश्न 7.इस कविता में ‘रवि को राजा’ के रूप में चित्रित किया गया है। अपने शब्दों में यह चित्र पुनः स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कविता में महाकवि बच्चन ने ‘रवि को राजा’ के रूप में सूर्य का प्रतीकात्मक चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ ‘रवि को राजा’ का अर्थ दो स्तरों पर समझा जा सकता है। एक ओर यह कवि के व्यक्तिगत जीवन का प्रतीक है, तो दूसरी ओर यह राष्ट्रीय जीवन और स्वाधीनता का प्रतीक भी है।

व्यक्तिगत स्तर पर, पहली पत्नी की असामयिक मृत्यु के बाद कवि गहरी निराशा और अवसाद में डूब गया था। कुछ समय बाद, जीवन में नए सूरज का आगमन होता है—नव किरणों का स्वागत और प्रकृति की प्रसन्नता कवि को नवोन्मेष और सृजन की ओर प्रेरित करती है। इस दृष्टि से कवि खुद अपने जीवन में रवि रूपी राजा है, जो आशा और उत्साह का प्रकाश फैलाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर, रवि का राजा रूप भारत के उदय और स्वाधीनता का प्रतीक है। सूर्य की नई किरणें जैसे राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता की रोशनी के रूप में पूरे राष्ट्र को आलोकित कर रही हैं। इसका अर्थ है कि भारत अब स्वतंत्र और नवनिर्मित राष्ट्र के रूप में उभरा है और उसके भविष्य में उज्जवल संभावनाएँ हैं।

इस प्रकार, ‘रवि को राजा’ का चित्र कवि के व्यक्तिगत जीवन और राष्ट्र के जीवन—दोनों में आशा, नवजागरण और प्रगतिशील ऊर्जा का प्रतीक है।

 प्रश्न 8.कवि क्या देखकर ठिठक जाता है और क्यों?
उत्तर-
कविता में कवि आजादी की खुशी मनाने और विजय गान करने के लिए तैयार है, वह उछलना, कूदना चाहता है, लेकिन अचानक ठिठक जाता है। इसका कारण है ‘रात का राजा’ यानी चंद्रमा का दृश्य। चंद्रमा, जो सूर्य की किरणों से आलोकित होता है, अब प्रभाहीन और निस्तेज दिखाई देता है। इसे कवि ने भिखारी के रूप में चित्रित किया है।

यह प्रतीकात्मक है। व्यक्तिगत जीवन में, कवि अपनी पहली पत्नी की असामयिक मृत्यु के कारण अधूरापन और व्यथा अनुभव करता है। राष्ट्रीय दृष्टि से भी, जन जीवन नवनिर्माण और पूर्ण स्वतंत्रता की प्रतीक्षा में है; जब तक समाज में वास्तविक परिवर्तन और सुधार नहीं आते, तब तक स्वतंत्रता की खुशी अधूरी है।

इस प्रकार, कवि का ठिठकना द्वि-आर्थक है—व्यक्तिगत पीड़ा और राष्ट्रीय जीवन की अधूरी स्वाधीनता दोनों को व्यक्त करता है। रात का राजा भिखारी रूपी प्रतीक के माध्यम से कवि ने जीवन और राष्ट्र के असंतुलन की स्थिति को दर्शाया है।

 प्रश्न 9.सूर्योदय के समय आकाश का रंग कैसा होता है-पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर-
पाठ के अनुसार प्रात:काल में जब सूर्य पूरब दिशा में क्षितिज पर प्रकट होता है, तब आकाश लालिमा और सौंदर्य से विभूषित दिखाई देता है। सूर्य की पहली किरणें बादलों को स्वर्णिम रूप प्रदान करती हैं, मानो बादल स्वर्णवर्ण के वस्त्र धारण करके सूर्य की सवारी में अनुचर बन रहे हों। कलियाँ और पुष्प सूर्य का स्वागत करते हुए पथ को सजाते हैं और सुगंधित वातावरण बनाते हैं।

इस प्रकार, सूर्योदय के समय प्रात:कालीन आकाश लालिमा-युक्त, मनोहारी और हर्षोल्लासपूर्ण दिखाई देता है।

 प्रश्न 10.‘चाहता उछलूँ विजय. कह’ में कवि की कौन-सी आकांक्षा व्यक्त होती है?
उत्तर-
पाठ के अनुसार, इन पंक्तियों में कवि अपने हृदय में उमड़ रहे उत्साह और उल्लास को प्रकट कर रहा है। कवि की आकांक्षा है कि वह नई चेतना और आशा की किरणों से प्रकाशित जीवन में अपने हर्ष और विजय भाव को व्यक्त करे। वह चाहता है कि उछलते-कूदते हुए नयी सुबह और नए सूरज का गान करे। जीवन में निराशा और निष्क्रियता का बादल छंट गया है और अब कवि सृजन-कर्म और सक्रियता की ओर अग्रसर है।

साथ ही, इन पंक्तियों में राष्ट्रीय जीवन का प्रतीकात्मक संकेत भी है। जैसे कवि व्यक्तिगत जीवन में नई ऊर्जा महसूस कर रहा है, वैसे ही राष्ट्र में स्वतंत्रता रूपी सूर्य का आगमन हुआ है और जन-जीवन नवनिर्माण में व्यस्त है। इस प्रकार, कवि के भीतर का उत्साह, उमंग और विजय का भाव व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यक्त हुआ है।

 प्रश्न 11.‘राह में खड़ा भिखारी’ किसे कहा गया है?
उत्तर-
इस कविता में ‘राह में खड़ा भिखारी’ चंद्रमा का प्रतीकात्मक रूप है। जब सूर्य उदय होता है, तो चंद्रमा अपनी पूरी प्रभा खो देता है और निस्तेज, कमजोर और हीन-भिखारी की तरह प्रतीत होता है। कवि इसके माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि जैसे चंद्रमा सूर्य-प्रकाश से हीन होकर शून्य पड़ जाता है, वैसे ही भारतीय जनता लंबे समय तक गुलामी और शोषण की जंजीरों में बंधी रही है।

इसके अलावा, कवि का व्यक्तिगत जीवन भी इस चित्रण में जुड़ा हुआ है। पहली पत्नी के असामयिक देहावसान से कवि दुखी और पीड़ित था। उसका जीवन अभावग्रस्त और अकेला प्रतीत होता था। यही कारण है कि कवि ने इस प्रतीक का प्रयोग अपनी व्यक्तिगत पीड़ा और राष्ट्रीय जीवन दोनों के संदर्भ में किया है। इन पंक्तियों में छिपे भावों को समझने के लिए संवेदनशीलता और गहरी सोच आवश्यक है।

प्रश्न 12.‘छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी’ का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
इन पंक्तियों में हरिवंश राय बच्चन ने अपनी कविता कौशल का अद्भुत प्रदर्शन किया है। जब सूर्य अपनी सवारी लेकर आ रहा है, तो आकाश में चमकते तारों का समूह अर्थात् ‘तारकों की फौज’ मैदान छोड़कर भाग जाती है। यहाँ कवि ने रूपक अलंकार का उपयोग करते हुए सूर्य के आगमन को युद्ध के मैदान के दृश्य के समान प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया है।

काव्य-सौंदर्य इस बात में है कि सूर्य का आगमन शक्ति, तेजस्विता और विजय का प्रतीक है, जबकि तारों का पलायन उसके प्रभाव को और अधिक प्रबल बनाता है। अलंकार, रूपक और प्रतीकात्मक चित्रण के माध्यम से कवि ने सूर्य के शौर्य और प्रभुत्व को उजागर किया है। शब्द चयन और भावाभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से यह पंक्तियाँ अत्यंत प्रभावकारी हैं।

नीचे लिखे पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।

1. नव किरण का रथ सजा है
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी
आ रही रवि की सवारी
विहगबंदी और चारण,
गा रहे हैं कीर्तिगायन,
छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी
आ रही रवि की सवारी

(क) कवि और कविता के नाम लिखें।
उत्तर- कवि-हरिवंश राय बच्चन’, कविता-आ रही रवि की सवारी

(ख) यहाँ किस राजा की सवारी का किस रूप में वर्णन किया गया
उत्तर- उपरोक्त पंक्तियों में रवि-राजा की सवारी का वर्णन किया गया है। यह सवारी सूर्य की नई किरणों से सुसज्जित रथ पर निकल रही है। प्रातःकाल में खिली कलियाँ और रंग-बिरंगे फूल उसके मार्ग को सजाते हैं। आकाश में तैरते बादल अनुचर की भाँति स्वर्णमयी पोशाक में सजे हुए प्रतीत होते हैं। कलरव करते पक्षी यशगान कर, बंदी और चारण की भांति सूर्य का स्वागत करते हैं।

(ग) ‘नव किरण का रथ सजा है’ कथन का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-‘नव किरण का रथ सजा है’ का अर्थ यह है कि जब राजा की सवारी निकाली जाती है, तब उसका रथ सुशोभित और सज-धजकर तैयार किया जाता है। यहाँ राजा के रूप में सूर्य को दर्शाया गया है और कवि ने सूर्य की निकलती किरणों को रथ की भाँति प्रस्तुत किया है। अर्थात् रवि-राजा की सवारी में यह रथ नव किरणों से अलंकृत है और सूर्य के आगमन का संकेत दे रहा है।

(घ) इस पद्यांश में पथ के अनुचरों की, और बंदी चारणों की उपमा किससे किस रूप में दी गई है?
उत्तर-इस पद्यांश में कवि ने पथ, अनुचर और बंदी-चारण की उपमा प्राकृतिक वस्तुओं से दी है। पथ के रूप में कलि-कुसुम सजाए गए हैं, अनुचरों के रूप में बादलों को प्रस्तुत किया गया है, और बंदी-चारणों के रूप में पक्षी-वृंद को चित्रित किया गया है। सूर्य-राजा की निकलती सवारी के समय यह सब उसके स्वागत और उत्सव के प्रतीक के रूप में खड़े हैं।

(ङ) ‘छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी’ कथन का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-इस कथन का अर्थ है कि सूर्य-राजा की सवारी निकलते ही आकाश में खड़े तारों का पूरा समूह, जो रात के अंधकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, भयभीत होकर अपनी स्थिति छोड़कर दूर भाग जाता है। यह सूर्य के प्रभा और शक्ति का प्रतीकात्मक चित्रण है।

(च) सूर्य राजा की सवारी आ रही है। वह सवारी रवि की नवकिरणों से सजे रथ पर निकली है। उस रथ का पथ कलियों-फूलों से सजा हुआ है। बादल अनुचर के रूप में उसमें शामिल हैं जो स्वर्णवर्णी पोशाक पहने हुए हैं। उस समय पक्षियों का कलरव-गान बंदियों और चारणों के यशोगान के रूप में गूंज रहा है। रवि की निकली सवारी के स्वरूप का वर्णन कवि ने इसी रूप में किया है।

2. चाहता, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह
रात का राजा खड़ा है राह में बनकर भिखारी
आ रही रवि की सवारी

(क) कवि और कविता के नाम लिखिए।
उत्तर- कवि-हरिवंश राय बच्चन’, कविता-आ रही रवि की सवारी

(ख) ‘चाहता, उछा विजय कह’ कथन में कवि की क्या आकांक्षा व्यक्त हुई है?
उत्तर-इस कथन में कवि की आकांक्षा यह व्यक्त हुई है कि जैसे रवि की सवारी के आगमन से अंधकार पर प्रकाश की विजय हो रही है, उसी प्रकार उसके हृदय में भी निराशा और उदासी का अंधकार छंटकर आनंद, उत्साह और उमंग की भावना फूट रही है। कवि इस हर्षोल्लास में उछलकर विजय का उत्सव मनाना चाहता है।

(ग) कवि क्या देखकर ठिठक जाता है और क्यों?
उत्तर-कवि अपने हर्ष और उत्साह में उछलकर विजय का उत्सव मनाने को तैयार था, लेकिन तभी उसने देखा कि रात का राजा चंद्रमा सूर्य के प्रकाश के अभाव में निस्तेज और निर्बल होकर भिखारी की तरह खड़ा है। यह दृश्य देखकर कवि ठिठक जाता है, यानी आश्चर्य और गंभीरता की भावना उसे रोके रखती है।

(घ) यहाँ रात का राजा किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर-यहाँ ‘रात का राजा’ चंद्रमा को कहा गया है। जब सूर्य अस्त होता है, तो अंधकार फैल जाता है और रात्रि छा जाती है। उस समय चंद्रमा अपनी निर्मल और उज्ज्वल किरणों के साथ आकाश में चमकता है और रात को आलोकित करता है। उसकी यह दीप्ति, प्रभा और सौंदर्य सबको मंत्रमुग्ध कर देता है, इसलिए कवि उसे ‘रात का राजा’ कहता है।

(ङ) राह में कौन भिखारी बनकर खड़ा है? स्पष्ट करें।
उत्तर-उषा के समय जब सूर्य की किरणें क्षितिज पर प्रकट होती हैं, तो रात का राजा चंद्रमा अपनी पूर्ण दीप्ति खोकर पथ पर भिखारी के रूप में खड़ा दिखाई देता है। कवि इसे इसलिए भिखारी कहता है क्योंकि उस समय चंद्रमा के पास अपना तेज और प्रकाश नहीं रहता; वह केवल सूर्य के प्रकाश पर निर्भर रहता है। इस प्रकार वह प्रकाश की भीख मांगता हुआ प्रतीत होता है।


Answer by Mrinmoee