Chapter 5

                                                      अमृतलाल नागर


प्रश्न 1.उन्नीसवीं और बीसवीं शती ने दुनिया को कई करिश्मे दिखाए। लेखक ने किस करिश्मे का वर्णन विस्तार से किया है?
उत्तर-
लेखक ने उन्नीसवीं और बीसवीं शती के करिश्मों में गैस की रोशनी, बिजली का अद्भुत प्रयोग, टेलीग्राम, टेलीनकोण, जादुई खेल, रेलगाड़ी और मोटर जैसी आश्चर्यजनक उपलब्धियों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।

 प्रश्न 2.भारतीय चित्रपट में मूक से सवाक् फिल्मों तक के इतिहास को रेखांकित करते हुए दादा साहब फालके का महत्व बताइए।

उत्तर-भारत में चलचित्र का आरंभ 6 जुलाई 1896 को हुआ जब बम्बई में पहली बार फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद 1913 में दादा साहब फालके ने अपनी प्रसिद्ध फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाकर भारतीय फिल्म जगत को नई दिशा दी। इससे पहले ‘भक्त पुंडलीक’ नामक फिल्म बनी थी, किन्तु वह तकनीकी दृष्टि से पूर्ण भारतीय फिल्म नहीं मानी गई। दादा साहब फालके को ही भारतीय सिनेमा का जनक कहा गया है, क्योंकि उन्होंने न केवल पहली पूर्ण भारतीय फीचर फिल्म बनाई, बल्कि आगे चलकर कई ऐतिहासिक व पौराणिक विषयों पर फिल्में भी प्रस्तुत कीं। भारतीय सरकार ने उनके योगदान को अमर बनाने के लिए सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार का नाम ‘दादा साहब फालके पुरस्कार’ रखा।

प्रश्न 3.भारतीय चित्रपट में मूक से सवाक् फिल्मों तक के इतिहास को रेखांकित करते हुए दादा साहब फालके का महत्व बताइए।

उत्तर भारतीय फिल्मों की शुरुआत में सावे दादा का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। उन्होंने शालिनी स्टूडियो की स्थापना की और फिल्मों के उपकरण जैसे प्रोजेक्टर तथा फोटो डेवेलपिंग मशीनें भारत लाकर इस कला को एक नया रूप दिया। इंग्लैंड की यात्रा के दौरान उन्होंने कैमरा खरीदा और वहाँ तथा फ्रांस के विशेषज्ञों से फिल्म निर्माण की तकनीक सीखी। उनके प्रयासों से भारत में फिल्म उद्योग की नींव पड़ी, परंतु इतिहास ने भारतीय सिनेमा के वास्तविक जनक के रूप में दादा साहब फालके को मान्यता दी, जिन्होंने ‘राजा हरिश्चंद्र’ जैसी पहली पूर्ण भारतीय फीचर फिल्म बनाकर सिनेमा जगत में अमर योगदान दिया।

 प्रश्न 3.सावे दादा कौन थे? भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को पाठ के माध्यम से समझाइ

 प्रश्न 4.लेखक ने सावे दादा की तुलना में दादा साहब फालके को क्यों भारतीय सिनेमा का जनक माना? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सावे दादा ने डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाकर भारतीय सिनेमा की नींव अवश्य रखी और उस समय के महान नेताओं जैसे तिलक और गोखले पर भी फिल्में प्रस्तुत कीं। लेकिन दादा साहब फालके ने पहली पूर्ण लंबी फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ का निर्माण किया, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई। ‘भक्त पुंडलीक’ उनसे पहले बनी थी, किंतु उसे पूर्णत: भारतीय फिल्म नहीं माना गया। इसी कारण से दादा साहब फालके को भारतीय सिनेमा का जनक कहा गया और उनके योगदान को स्मरणीय बनाने के लिए भारत सरकार ने सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा।

प्रश्न 5.भारतीय सिनेमा के विकास में पश्चिमी तकनीक के महत्व को रेखांकित कीजिए।
उत्तर-
भारतीय सिनेमा की प्रगति में पश्चिमी तकनीक का विशेष योगदान रहा है। फ्रांस के ल्युमीयेर ब्रदर्स ने भारत में आकर पहली बार चलचित्र का जादू दिखाया। उस समय परदे पर छोटे-छोटे दृश्य जैसे समुद्र स्नान, कारखाने से निकलते मजदूर या साधारण जीवन की झलकियां प्रस्तुत की जाती थीं। यह तकनीक अमेरिका और यूरोप में पहले से लोकप्रिय थी, और वहीं से प्रेरणा लेकर भारत में भी सिनेमा का विकास शुरू हुआ। पश्चिम से आई यही तकनीकी जानकारी आगे चलकर भारतीय फिल्म उद्योग की बुनियाद बनी।

 प्रश्न 6.अपने शुरुआती दिनों में सिनेमा आज की तरह किसी कहानी पर आधारित नहीं होती थी, क्यों?
उत्तर-
सिनेमा के आरंभिक दौर में यह किसी कहानी पर आधारित नहीं होता था, क्योंकि उस समय तकनीक पूरी तरह विकसित नहीं हुई थी। शुरुआती फिल्मों में केवल छोटे-छोटे दृश्य जैसे साधारण गतिविधियाँ या झलकियाँ दिखायी जाती थीं। इन्हें मनोरंजन और कौतूहल के लिए प्रस्तुत किया जाता था, न कि किसी कथानक को सामने लाने के लिए। यही कारण था कि प्रारंभिक सिनेमा कहानी आधारित न होकर केवल दृश्य-प्रदर्शन तक ही सीमित रहा।


प्रश्न 7.भारत में पहली बार सिनेमा कब और कहाँ दिखाया गया?
उत्तर-
भारत में पहली बार सिनेमा का प्रदर्शन 1897 ईस्वी में मुंबई में किया गया, जहाँ जनता ने रूपहले परदे पर भारतीय दृश्यों को देखा।

 प्रश्न 8.सिनेमा दिखलाने के लिए अखबारों में क्या विज्ञापन निकला? इस विज्ञापन का बम्बई की जनता पर क्या असर हुआ था?
उत्तर-
सिनेमा के प्रदर्शन हेतु अखबारों में विज्ञापन छपा था—“जिंदा तिलस्म देखिए, तस्वीरें आपको चलते-फिरते नज़र आएंगी। टिकट केवल एक रुपया।” इस विज्ञापन ने बंबई के लोगों में भारी उत्सुकता पैदा कर दी और वहाँ सनसनी मच गई।

 प्रश्न 9.1897 में पहली बार बम्बई की जनता को रुपहले पर्दे पर कुछ भारतीय दृश्य देखने को मिले। उन दृश्यों को लिखें।
उत्तर-
1897 में बम्बई की जनता को जो दृश्य परदे पर दिखाए गए, उनमें नारली पूर्णिमा अथवा राखी के त्योहार के दृश्य, दिल्ली के लाल किले और अशोक स्तंभ की झलकियाँ तथा लखनऊ के इमामबाड़ों के दृश्य विशेष रूप से सम्मिलित थे।


 प्रश्न 10.कलकत्ते में स्टार थियेटर की स्थापना किसने की? ।
उत्तर-मिस्टर स्टीवेंसन नामक एक अंग्रेज सज्जन ने स्टार थियेटर की स्थापना की।

 प्रश्न 11.भारत में फिल्म उद्योग किस तरह स्थापित हुआ? इसकी स्थापना में किन-किन व्यक्तियों ने योगदान दिया।
उत्तर-
भारत में फिल्म उद्योग का आरंभ धीरे-धीरे एक अद्भुत प्रक्रिया के रूप में हुआ। इसकी नींव रखने में कई व्यक्तियों का योगदान रहा। सावे दादा ने सबसे पहले डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण किया, मिस्टर स्टीवेंशन ने तकनीकी सहयोग दिया और दादा साहब फालके ने ‘राजा हरिश्चंद्र’ जैसी पहली पूर्ण फीचर फिल्म बनाकर इसे सुदृढ़ आधार प्रदान किया। इन्हीं प्रयासों से भारतीय सिनेमा का उद्योग स्थापित हो सका।


प्रश्न 12.पहली फीचर फिल्म कौन थी?
उत्तर-पहली फीचर फिल्म भक्त पुंडलीक’ थी।

 प्रश्न 13.भारत की पहली बॉक्स-ऑफिस हिट फिल्म किसे कहा जाता है?
उत्तर-‘लंकादहन’ पहली बॉक्स आफिस हीट फिल्म थी।

प्रश्न 14.जे. एफ० मादन का भारतीय फिल्म में योगदान रेखांकित करें।
उत्तर-
भारतीय सिनेमा के विकास में जे. एफ. मादन का योगदान उल्लेखनीय रहा। उन्होंने 1917 में ‘एलफिंस्टन बायोस्कोप कंपनी’ की स्थापना की और दादा साहब फालके की परंपरा का अनुसरण करते हुए फीचर फिल्मों का निर्माण आरंभ किया। उनके प्रयासों से फिल्म निर्माण को संगठित रूप मिला और भारतीय सिनेमा के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ।


प्रश्न 15.शुरुआती दौर की फिल्म को लोग क्या कहते थे?
उत्तर-
शुरुआती समय की फिल्मों को लोग जादू या जीवंत तिलस्म की तरह देखते थे और उसी नाम से पुकारते थे।

प्रश्न 16.‘राजा हरिश्चन्द्र फिल्म’ में स्त्रियों का पार्ट भी पुरुषों ने ही किया था। क्यों?
उत्तर-
दादा साहब फालके जब ‘राजा हरिश्चंद्र’ बना रहे थे, तब उन्होंने पहले कुछ स्त्रियों को अभिनय के लिए तैयार किया, परंतु कैमरे के सामने आने पर वे झिझक गईं और कई तो अपने संरक्षकों के साथ वापस चली गईं। उस समय समाज में स्त्रियों का फिल्मों में काम करना उचित नहीं माना जाता था। परिणामस्वरूप स्त्री पात्रों की भूमिकाएँ भी पुरुष कलाकारों ने निभाईं और रानी का किरदार मास्टर सांडके को करना पड़ा।

नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखें।

1. उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों ने दुनिया को ऐसे-ऐसे करिश्मे दिखलाए कि लोग बस दाँतों तले उँगली दबा-दबा के ही रह गए। आँखें अचम्भे से फट-फट पड़ीं। गपोड़ियों की गप्पों का बाजार ठप पड़ गया, क्योंकि वे लोग जो झूठे बयान करते थे, वह देर-सबेर साइंस का । करिश्मा बनकर सच साबित हो जाता था। गैस की रोशनी, बिजली का चमत्कार, टेलीग्राम, टेलीफोन के जादू, रेल, मोटर वगैरह-वगैरह जो पहले किसी ने देखे सने तक न थे, जिंदगी की असलियत बनकर हमारे सामने आ गए थे। सिनेमा का आविष्कार भी उन्नीसवीं सदी के बीतते न बीतते जादू बनकर जमाने के लिए सिर पर चढ़कर बोलने लगा। 6 टी. जुलाई 1896 का दिन हिंदुस्तान और खासकर बंबई के लिए एक अनोखा दिन था जब पहली बार भारत में सिनेमा दिखलाया गया।
(क) लेखक और पाठ के नाम लिखें।
उत्तर-लेखक-अमृतलाल नागर, पाठ-भारतीय चित्रपटः मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक।

(ख) उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों के करिश्मों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों में हुए करिश्मों का प्रभाव अत्यंत चमत्कारी रहा। इन शताब्दियों में वैज्ञानिक आविष्कारों ने लोगों को अचंभित कर दिया। गैस की रोशनी, बिजली, टेलीग्राम, रेल और मोटर जैसी उपलब्धियों ने आमजन को विस्मय से भर दिया और हर कोई इन्हें देखकर आश्चर्यचकित रह गया।

(ग) विज्ञान के कौन-कौन से आविष्कार हमारे सामने असलियत बनकर आए?
उत्तर-उस दौर में विज्ञान के अनेक आविष्कार प्रत्यक्ष रूप से सामने आए। इनमें गैस की रोशनी, बिजली का उपयोग, टेलीग्राम और टेलीफोन जैसी संचार सुविधाएँ, रेलगाड़ी और मोटरगाड़ी जैसी यातायात की साधन प्रमुख थे। ये सभी आविष्कार केवल कल्पना भर न रहकर वास्तविक जीवन का हिस्सा बने और मानव समाज को नई दिशा दी।

(घ) कौन-सा दिन हिंदुस्तान खासकर बंबई के लिए एक अनोखा दिन था और क्यों?
उत्तर-हिंदुस्तान, विशेषकर बंबई के लिए 6 जुलाई 1896 का दिन ऐतिहासिक और विलक्षण साबित हुआ। इस दिन पहली बार रूपहले परदे पर सिनेमा का प्रदर्शन किया गया। सिनेमा के इस अद्भुत आविष्कार को देखकर लोग आश्चर्यचकित रह गए, इसलिए यह दिन बंबई और भारत दोनों के लिए स्मरणीय बन गया।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-इस गद्यांश का आशय यह है कि उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में हुए वैज्ञानिक आविष्कारों ने संसार को चमत्कृत कर दिया। गैस की रोशनी, बिजली, रेल, मोटर और टेलीफोन जैसे साधनों ने मानव जीवन को नया रूप दिया। इन्हीं आविष्कारों में सिनेमा का जन्म सबसे अद्भुत सिद्ध हुआ। 6 जुलाई 1896 को बंबई में जब पहली बार सिनेमा प्रदर्शित किया गया, तब वह दिन इतिहास में एक अविस्मरणीय तिथि के रूप में दर्ज हो गया।

2. भारत में इस काम को शुरू करनेवाले पहले व्यक्ति एक सावे दादा थे।
दुर्भाग्यवश उनका असली नाम मैं भूल गया हूँ। मैं 1941 में जब स्वर्गीय मास्टर विनायक की एक फिल्म ‘संगम’ लिखने के लिए कोल्हापुर गया था तब शालिनी स्टूडियोज में उनके दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य मुझे मिला था। मॅझोले कद के गोरे-चिट्टे, दुबली-पतली कायावाले सावे दादा को देखकर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि ये अपने जमाने के बहुत बड़े कैमरामैन और भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदिपुरुष रहे होंगे। मुझे तो अब याद नहीं कि सावे दादा कोल्हापुर ही के निवासी थे या बंबई, पुणे के, पर बंबइया मार्का हिंदी वे मजे में बोल लेते थे। उन्होंने ल्यूमीयेर ब्रदर्स के प्रोटेक्टर, फोटो डेवलप करने की मशीन या मशीनें खरीद कर भारत में इस धंधे का एक तरह से राष्ट्रीयकरण कर लिया था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्तों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) लेखक, किनका असली नाम भूल रहा था? लेखक को उनके प्रथम दर्शन कब और किस संदर्भ में हुए थे।
उत्तर-लेखक भारत में फिल्म निर्माण कार्य की शुरुआत करने वाले पहले व्यक्ति सावे दादा का वास्तविक नाम याद नहीं कर पा रहा था। उन्हें सावे दादा के दर्शन पहली बार 1941 में हुए, जब लेखक स्वर्गीय मास्टर विनायक की फिल्म ‘संगम’ लिखने के उद्देश्य से कोल्हापुर गया था। उसी समय शालिनी स्टूडियो में उनकी मुलाकात सावे दादा से हुई।

(ग) लेखक द्वारा चर्चित व्यक्ति के कायिक स्वरूप का चित्रांकन करें।
उत्तर- लेखक जिनका उल्लेख करते हैं, वे सावे दादा थे। उनका कद औसत था, रंग गोरा और शरीर दुबला-पतला। उनका व्यक्तित्व देखने में अत्यंत साधारण प्रतीत होता था। उनके रूप-रंग या शरीर-रचना में कोई ऐसी विशेषता नहीं थी, जिससे उनकी विलक्षणता का अनुमान लगाया जा सके।

(घ) वह व्यक्ति किस धंधे से किस रूप में जुड़ा हुआ था?
उत्तर- (घ) वह व्यक्ति, अर्थात् सावे दादा अपने जमाने के बहुत बड़े कैमरामैन थे और भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदिपुरूष के रूप में भी मान्य थे। वे बंबइया मार्का हिंदी मजे में बोल लेते थे। उन्होंने ल्युमीयेर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर, फोटो को डेवलप करने की मशीन खरीदी थी और भारत में इस कार्य, अर्थात् धंधे को एक राष्ट्रीय रूप दे डाला था।

(ङ) उसकी कार्यगत उपलब्धि की संक्षिप्त चर्चा करें।
उत्तर-
सावे दादा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखने में अग्रणी भूमिका निभाई। वे कुशल कैमरामैन थे और मशीन द्वारा फोटोग्राफी एवं डेवेलपिंग का कार्य बड़े कौशल से करते थे। उन्होंने ल्युमीयेर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर तथा अन्य उपकरण खरीदकर फिल्मों के क्षेत्र में प्रयोग किए और इस नए माध्यम को भारत में आश्चर्यजनक रूप से प्रस्तुत किया।


3. मुझे यह भी याद पड़ता है कि भारतीय फिल्म उद्योग के जनक माने जाने वाले दादा साहब फाल्के द्वारा बनाई गई फीचर फिल्म ‘हरिश्चंद्र’ से पहले भी एक फीचर फिल्म बनी थी उसका नाम शायद “भक्त पुंडलीक” था। दुर्भाग्यवश मैं उसके निर्माता का नाम भूल चुका हूँ। (इनका नाम था दादा साहब तोरणे-संपादक) हो सकता है वह फिल्म दादा साहब फाल्के ने ही बनाई हो। जो भी हो, इतिहास ने दादा साहब फाल्के को ही भारतीय फिल्म उद्योग का जनक माना, सावे दादा को नहीं। इसका कारण शायद यह भी हो सकता है कि दादा साहब फाल्के ने केवल एक ही नहीं, वरन् कई फीचर फिल्में एक के बाद एक बनाई और इस प्रकार उन्होंने ही इस उद्योग की नींव जमाई। सावे दादा ने छोटी-मोटी डाक्यूमेंट्री फिल्में तो बहुत बनाईं और समय को देखते हुए पैसा भी अच्छा ही कमाया और यदि पहली  फीचर फिल्म ‘भक्त पुंडलीक’ उन्हीं की बनाई सिद्ध हो तो भी उनकी अपेक्षा दादा साहब फाल्के को ही भारतीय फिल्मों का जनक मानना, मेरी समझ में उचित है। भारत सरकार ने भी फिल्म के सर्वोच्च पुरस्कार को ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ कहके ही इतिहास की रचना की है।

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) लेखक के अनुसार भारतीय फिल्म उद्योग के जनक कौन माने जाते हैं और क्यों?
उत्तर-लेखक के अनुसार भारतीय फिल्म उद्योग का जनक दादा साहब फाल्के माने जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्होंने भारत में फिल्म निर्माण की नींव रखी और इस क्षेत्र में कई फीचर फिल्में तथा डॉक्यूमेंट्री तैयार कर उद्योग को ठोस आधार प्रदान किया।

(ग) भारतीय फिल्म उद्योग के जनक माने जानेवाले किस व्यक्ति के रूप में किस दूसरे व्यक्ति का भी नाम आता है? क्या वह उचित है?
उत्तर-भारतीय फिल्म उद्योग के जनक के रूप में कभी-कभी दादा साहब तोरणे-संपादक का भी नाम लिया जाता है। कथनानुसार उन्होंने दादा साहब फालके से पहले ‘भक्त पुंडलीक’ नामक फीचर फिल्म बनाई थी। लेकिन यह तथ्य पूर्ण रूप से प्रमाणित नहीं है। इसलिए उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का निश्चयात्मक जनक नहीं माना जा सकता।

(घ) भारत सरकार द्वारा घोषित सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार का नाम क्या है और उसका यह नामकरण क्यों किया गया है?

उत्तर- भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ कहलाता है। इसका नामकरण इसलिए किया गया कि यह पुरस्कार भारतीय फिल्म उद्योग के जनक दादा साहब फाल्के की स्मृति और उनके योगदान के सम्मान में दिया जाता है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।

उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने दादा साहब फाल्के के महत्व और उनके योगदान को रेखांकित किया है। उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का जनक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम कई फीचर और डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाकर इस उद्योग की नींव रखी। इसी कारण भारत सरकार ने सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार का नाम उनके सम्मान में ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ रखा।

4. 1940 में मेरे मित्र किशोर साहू की पहली फिल्म ‘बहुरानी’ का उद्घाटन दादा साहब फाल्के के कर-कमलों द्वारा ही संपन्न हुआ था। बहूरानी के अर्थपति मेरे दूसरे मित्र स्वर्गीय द्वारका दास डागा थे। वे बड़े पढ़े-लिखे सुरुचिपूर्ण, साहित्यिक व्यक्ति थे। उन्हीं के कारण ‘बहुरानी’ के निर्माण-काल में फिल्मी दुनिया से मेरा संबंध जुड़ा। दादा साहब फाल्के से मुझे दो-तीन बार भेंट करने के सुअवसर प्राप्त हुए थे। वे बड़े दबंग, जोश में आकर बड़े झपाटे से बोलने लगते थे। वे स्वयं को बात-बात में महत्त्व देने से तो न चूकते थे, परंतु उनमें अच्छाई यह थी कि वे नई पीढ़ी के महत्त्व को एकदम नकारते न थे।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) किशोर साहू कौन थे? उनके द्वारा बनाई पहली फिल्म कौन थी और उसका उद्घाटन किसने किया था? ।
(ग) स्वर्गीय द्वारिकादास डागा कौन थे? उनकी चारित्रिक विशेषता क्या थी?
(घ) लेखक के अनुसार दादा साहेब फाल्के से भेंट होने पर उनकी कौन-सी चारित्रिक विशेषता प्रकट होती थी?
(ङ) दादा साहेब फाल्के की किसी एक खास स्वाभाविक विशेषता का उल्लेख करें।
उत्तर-
(क) पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) किशोर साहू लेखक के मित्र थे, उनके द्वारा बनाई पहली फिल्म ‘बहूरानी’ थी जिसका उद्घाटन दादा साहब फाल्के ने किया था। यह फिल्म 1940 में बनी थी।

(ग) स्वर्गीय द्वारिकादास डागा लेखक के दूसरे मित्र थे। ये ‘बहूरानी’ फिल्म के अर्थपति थे। डागाजी की चारित्रिक विशेषता यह थी कि वे पढ़े-लिखे, सुरुचिपूर्ण इंसान और साहित्यिक व्यक्ति थे।

(घ) लेखक की मुलाकात दादा साहब से दो-तीन बार हुई जिसमें उनकी चारित्रिक विशेषता इस रूप में प्रकट हुई। वे दबंग और जोशीले स्वभाव के व्यक्ति थे। बातचीत में स्वयं को बहुत महत्त्व देते थे।

(ङ) दादा साहेब की खास स्वाभाविक विशेषता यह थी कि वे बातचीत के क्रम में अपने महत्त्व को तरजीह देते थे, किंतु नई पीढ़ी की महत्ता को भी स्वीकारते थे।

5. बंबई की तरह ही कलकत्ते में एक व्यवसायी जे. एफ० मादन जिन्होंने मादन थियेटर नामक सुप्रसिद्ध संस्था की स्थापना भी की थी। 1917 में एलफिंस्टन बाइस्कोप कंपनी नामक फिल्म संस्था चलाई और दादा साहब फाल्के की तरह ही वे भी फीचर फिल्में बनाने लगे। इस तरह 1913 से 1920 तक फिल्मों में क्रमशः पौराणिक कथानक ही अधिकतर हमारे सामने पेश हुए। तीसरे दशक की सबसे महान फिल्मी हस्ती बाबूराव पेंटर थे। साँवला रंग, दुबला-पतला शरीर, आँखों पर चश्मा, लंबी दाढ़ीयुक्त श्री बाबूराव पेंटर का व्यक्तित्व बहुत ही सौम्य और शालीन था। आज के सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक श्री व्ही शांताराम, स्वर्गीय बाबूराव पेंढारकर, भालाजी पेंढारकर तथा स्वर्गीय मास्टर विनायक आदि अनेक जानी-मानी फिल्मी हस्तियों के वे गुरु थे।

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक, लेखक-अमृतलाल नागर।

(ख) जे. एफ० मादन कौन थे? फिल्म उद्योग के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्यों की संक्षिप्त चर्चा करें।
उत्तर- जे. एफ. मादन कलकत्ता के एक पारसी व्यवसायी थे, जिन्होंने मादन थिएटर नामक प्रसिद्ध संस्था की स्थापना की। 1917 में उन्होंने एलफिंस्टन बायोस्कोप कंपनी की स्थापना कर फिल्म निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई। दादा साहब फाल्के की तरह उन्होंने कई फीचर फिल्में बनाई और भारतीय फिल्म उद्योग के विकास में योगदान दिया।

(ग) तीसरे दशक की सबसे महान भारतीय फिल्मी हस्ती के रूप में किनका नाम लिया जाता है? उनके व्यक्तित्व की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर-तीसरे दशक की सबसे प्रमुख फिल्मी हस्ती के रूप में बाबूराम पेंटर को माना जाता है। वे साँवले रंग के और दुबले-पतले कद-काठी वाले थे। उनका स्वभाव अत्यंत सौम्य और शालीन था, जो उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी।

(घ) उस समय की किन्हीं चार फिल्मी हस्तियों के नाम लिखें। (ङ) अपने समय के सुप्रसिद्ध फिल्म-निर्माता-निर्देशक के नाम लिखें
और उनकी एक विशिष्ट उपलब्धि की चर्चा करें।
उत्तर-
उस समय की चार प्रमुख फिल्मी हस्तियों में श्री वी. शांताराम, बाबूराम पेंटर, भालजी पेंटर और मास्टर विनायक के नाम शामिल हैं।


Answer by Mrinmoee