Chapter 8

                                                           अनुपम मिश्र


प्रश्न 1.‘हाकड़ो’ राजस्थानी समाज के हृदय में आज भी क्यों रचा-बसा है?
उत्तर-
‘हाकड़ो’ शब्द आज भी राजस्थानी समाज के हृदय में इस लिए जीवित है क्योंकि यह हजारों वर्ष पुरानी डिंगल भाषा से आया है और उस समय से लेकर आज तक राजस्थानी पीढ़ियों में लगातार बहता रहा है, जिनके पूर्वज कभी समुद्र नहीं देख सके थे।


 प्रश्न 2.हेल’ नाम समुद्र के साथ-साथ अन्य कौन से अर्थ को दर्शाता है?
उत्तर-इसका अर्थ समुद्र के साथ-साथ विशालता और उदारता भी है।

 प्रश्न 3.किस रेगिस्तान का वर्णन कलेजा सुखा देता है?
उत्तर-थार रेगिस्तान का वर्णन कुछ ऐसा है कि कलेजा सूख जाता है।

प्रश्न 4.भूगोल की किताबें किनके ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती है और क्यों?
उत्तर-
भूगोल की किताबें वर्षा और प्राकृतिक संसाधनों को एक ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह प्रस्तुत करती हैं और राज्य के पश्चिमी भाग को इस महाजन की सबसे अधिक पीड़ित और दुर्भाग्यपूर्ण भूमि के रूप में दिखाती हैं।


प्रश्न 5.राजस्थानी समाज ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना क्यों नहीं रोया?
उत्तर-
राजस्थानी समाज ने प्रकृति से मिलने वाले सीमित जल के लिए शिकवा नहीं किया। उन्होंने इसे कठिन परिश्रम और साहस की चुनौती के रूप में स्वीकार किया और अपने जीवन-व्यवहार में ऐसा ढाल लिया कि पानी का प्रवाह उनके समाज और जीवन शैली में सहज और सरल रूप से घुल-मिल गया।

प्रश्न 6.“यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ से समुद्र के इतने नाम मिलते हैं?” इस कथन का क्या अभिप्राय है।

उत्तर-इन पंक्तियों में लेखक यह बताना चाहते हैं कि राजस्थान के लोगों के मन में उदारता और व्यापक सोच है। विशाल और शुष्क मरुभूमि में रहते हुए भी उनके भाषा-भंडार में समुद्र के इतने अलग-अलग नाम मौजूद हैं। यह उनके मन की विशालता, कल्पनाशीलता और सांस्कृतिक गहराई को दर्शाता है।

प्रश्न 7.जल संग्रह कैसे करना चाहिए?

उत्तर-राजस्थान के लोग पानी संग्रह के लिए राँको, कुड-कुडियाँ, बेरियाँ, जोहड़, नाड़ियाँ, तालाब, बावड़ियाँ और कुएँ आदि का उपयोग करते हैं। वे इन स्रोतों से पानी को संभालकर रखने के लिए एक विशेष और पारंपरिक प्रणाली विकसित कर चुके हैं, जिससे पानी की कमी के समय भी इसका प्रभावी उपयोग हो सके।


 प्रश्न 8.त्रिकूट पर्वत कहाँ है?
उत्तर-आज के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत है।

प्रश्न 9.‘धरती धोरां री’ किसे कहा गया है और क्यों?

उत्तर-राजस्थान के लोग अपने मरुभूमि क्षेत्र को ‘धरती धोरां री’ कहते हैं। इसे इसलिए कहा गया क्योंकि यहाँ के निवासी और सांस्कृतिक समुदाय—गृहस्थ, जोगी, कवि, मांगणियार और अन्य—इस भूमि की कठिनाइयों और अकालों के बावजूद इसे अपने साहस, धैर्य और जीवन-शैली के अनुरूप अपनाकर देखते थे। यही कारण है कि सूखी और चुनौतीपूर्ण भूमि को उन्होंने अपनत्व और सम्मान के साथ ‘धरती धोरां री’ कहा।

 प्रश्न 10.मरुनायकजी कहकर किसे पुकारा गया है? उनकी भूमिका स्पष्ट करें।

उत्तर-मरुनायकजी शब्द से श्रीकृष्ण को पुकारा गया है। उनकी भूमिका यह है कि उनके वरदान और समाज के नायकों के सामर्थ्य के मिलन से एक ऐसा अनोखा तरीका विकसित हुआ, जिसे बाजलतो-ओजतो कहा गया—अर्थात् एक सरल और सुंदर रीति, जिसे समाज के हर व्यक्ति द्वारा अपनाया जा सकता है।


प्रश्न 11.राजस्थान में वर्षा का स्वरूप क्या है?
उत्तर-
राजस्थान में वर्षा का स्वरूप असमान और बँटा-बँटा है। राज्य के एक छोर पर वर्षा 100 सेंटीमीटर से अधिक हो सकती है, वहीं कहीं-कहीं यह 25 सेंटीमीटर से भी कम होती है। औसत आंकड़े भी यहाँ के वास्तविक वर्षा चित्र को पूरी तरह नहीं दर्शा पाते।


प्रश्न 12.‘रीति’ के लिए राजस्थान में ‘वोज’ शब्द है। यह क्या-क्या अर्थ रखता है?
उत्तर-
राजस्थान में ‘रीति’ के लिए प्रयुक्त ‘वोज’ शब्द के अर्थ अनेक हैं। यह रचना, युक्ति और उपाय को दर्शाता है। इसके साथ ही, सामर्थ्य, विवेक और विनम्रता के भाव को व्यक्त करने के लिए भी ‘वोज’ शब्द का उपयोग किया जाता रहा है।


प्रश्न 13.लेखक ने ‘जसढोल’ शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया है और क्यों?
उत्तर-
लेखक ने ‘जसढोल’ शब्द का अर्थ प्रशंसा करने के रूप में लिया है। राजस्थान के लोगों ने वर्षा के जल को संचित करने की अपनी अनोखी परंपरा विकसित की, परंतु उसकी इस उपलब्धि की खूब प्रशंसा कभी नहीं हुई; यही कारण है कि लेखक ने इसे ‘जसढोल’ न बजने के रूप में व्यक्त किया है।


प्रश्न 14.इस फीचर को पढ़कर आपको क्या शिक्षा मिली है? आप, इसका उपयोग कैसे करेंगे?
उत्तर 
इस फीचर को पढ़कर मुझे यह शिक्षा मिली कि कठिन प्राकृतिक परिस्थितियों में भी मानवीय प्रयास और परंपराएँ समाधान का मार्ग सुझा सकती हैं। हमें अपने पर्यावरण की रक्षा और जल-संकट जैसी समस्याओं का सामना करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों के साथ-साथ स्थानीय और पारंपरिक उपायों से सीख लेनी चाहिए और उनका सही उपयोग करना चाहिए।


प्रश्न 15.लेखक क्यों ‘पधारो म्हारे देस’ कहते हैं?
उत्तर-
लेखक ‘पधारो म्हारे देस’ इसलिए कहते हैं क्योंकि राजस्थान, जहाँ वर्षा कम होती है और मरुभूमि फैली हुई है, वहाँ के लोगों ने पानी संग्राह की अद्भुत और भव्य परंपरा विकसित की है। इस उपलब्धि और जीवनदायिनी परंपरा के कारण लेखक अपने सम्मान और प्रेम के साथ पाठकों को राजस्थान में आने का आमंत्रण देता है।

नीचे लिखें गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर

1. यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ में समुद्र के इतने नाम मिलते हैं। इसकी दृष्टि भी , बड़ी विचित्र रही होगी। सृष्टि की जिसको घठे हुए ही लाखों वर्ष हो चुके, जिसे घटने में भी हजारों वर्ष लगे, उस सबका जमा-घाटा करने कोई बैठे तो आँकड़ों के अनंत विस्तार के अंधेरे में खो जाने के सिवा और क्या हाथ लगेगा। खगोलशास्त्री लाखों, करोड़ों मील की दरियों को ‘प्रकाश-वर्ष’ से मापते हैं। लेकिन सजस्थान के मन चे तो युगों की भारी-भरकम गुना-भाग को पलक झपक कर निपटा दिया। इस बड़ी घटना को वह ‘पलक दरियाव की तसा याद रखे हैं-पलक झपकते ही दरिया का सुख जाना भी इसमें शामिल है और भविष्य में इस सूखे स्थल का क्षणभर में फिर से दरिया बन जाना भी।

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्र।

(ख) राजस्थान के मन की क्या उदारता है?

उत्तर-राजस्थान के मन की उदारता यह है कि भले ही आज वहाँ विशाल मरुभूमि और तपती रेत फैली हो, इसके बावजूद लोग समुद्र की महिमा और उसके विविध नामों को नहीं भूले हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने उस जलराशि का स्मरण रखा और उसके नामों का उच्चारण करते हुए अपनी स्मृति और संस्कार की उदारता दिखाई।

(ग) राजस्थान में किस घटना को घटे लाखों बरस हो चुके? स्पष्ट करें।
उत्तर-राजस्थान में समुद्र के पलायन की घटना लाखों वर्ष पहले हुई थी। उस समय यह क्षेत्र जलमय था और समुद्र की लहरें यहाँ तक पहुँचती थीं। लेकिन समय के साथ भूगोलिक परिवर्तन हुए और यह क्षेत्र सूखी रेत और मरुभूमि में बदल गया, जिससे यहाँ का भौगोलिक स्वरूप पूरी तरह बदल गया।

(घ) खगोलशास्त्री क्या करते हैं? राजस्थान के मन ने क्या निपटा दिया। स्पष्ट करें।
उत्तर-खगोलशास्त्री विशाल अंतरिक्ष में मीलों की दूरी को प्रकाश-वर्ष के रूप में मापते हैं। इसके विपरीत, राजस्थान के लोगों की दृष्टि इतनी तीक्ष्ण और व्यवहारिक है कि वे इतने बड़े गणितीय और दूरी-संबंधी सवालों को पलक झपकते ही हल कर देते हैं।

(ङ) ‘पलक दरियाव’ के अर्थ को राजस्थानी जीवन के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-‘पलक दरियाव’ का अर्थ है–पलक झपकते ही नदी या जल का सूख जाना। राजस्थान के संदर्भ में यह दर्शाता है कि कभी वहाँ समुद्र की अपार जलराशि थी, लेकिन समय के साथ वह जलराशि अचानक और तेजी से सूख गई, जैसे पलक झपकते ही दरिया गायब हो गया हो।

2. भूगोल की किताबें प्रकृति को, वर्षा को यहाँ ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती हैं और राज्य के पश्चिमी क्षेत्र को इस महाजन का सबसे
दयनीय शिकार बताती हैं। इस क्षेत्र में जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, जोधपुर और श्रीगंगानगर आते हैं। लेकिन, यहाँ कंजूसी में भी कंजूसी मिलेगी। वर्षा का ‘वितरण’ बहुत असमान है। पूर्वी हिस्से से पश्चिमी हिस्से की तरफ आते-आते वर्षा कम-से-कम होती जाती है। पश्चिम तक जाते-जाते वर्षा सूरज की तरह ‘डूबने लगती है। यहाँ पहुँचकर वर्षा सिर्फ 16 सेंटीमीटर रह जाती है। इस यात्रा की तुलना कीजिए दिल्ली से, जहाँ 150 सेंटीमीटर से ज्यादा पानी गिरता है, तुलना कीजिए उस गोवा से, कोंकण से, चेरापूँजी से, जहाँ यह आँकड़ा 500 से 1000 सेंटीमीटर तक जाता है। 

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।


उत्तर-पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्रा

(ख) भूगोल की किताब राजस्थान के संदर्भ में क्या देखती है?
उत्तर-भूगोल की किताबें राजस्थान के संदर्भ में यह बताती हैं कि यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। इसे प्रकृति का ‘कंजूस महाजन’ बताया गया है, क्योंकि राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में पानी का वितरण अत्यंत न्यून है।

(ग) “लेकिन, यहाँ कंजूसी में भी कंजूसी मिलेगी।’-इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर-राजस्थान में वर्षा बहुत कम होती है। आँकड़े बताते हैं कि यहाँ साल भर में केवल लगभग 60 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इसलिए लेखक ने कहा है कि यहाँ वर्षा में भी अत्यधिक कंजूसी देखने को मिलती है।

(घ) ‘राजस्थान में वर्षा का वितरण बहुत असमान है।’ उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर- राजस्थान में वर्षा समान रूप से नहीं होती। उदाहरण के तौर पर, राज्य के पूर्वी हिस्सों में वर्षा 100 सेंटीमीटर से अधिक हो सकती है, जबकि पश्चिमी हिस्सों में यह 25 सेंटीमीटर से भी कम रह जाती है। यही दर्शाता है कि वर्षा का वितरण बहुत असमान है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने राजस्थान की वर्षा संबंधी विशेषताओं को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में अन्य राज्यों की तुलना में वर्षा बहुत कम होती है और उसका वितरण असमान है। कुछ स्थानों पर वर्षा अपेक्षाकृत अधिक है, जबकि अन्य स्थानों पर यह अत्यंत न्यूनतम रहती है।


(ख) भूगोल की किताब यह बताती है कि राजस्थान वर्षा के मामले में अंतिम, अर्थात् सबसे कम बिंदु पर स्थित है। इस विषय की पुस्तक यह बताती है कि राजस्थान में प्रकृति, अर्थात् वर्षा सबसे कंजूस महाजन बनी हुई है अर्थात् यहाँ वर्षा बहुत कम होती है

3. मरुभूमि में सूरज, गोवा चेरापूँजी की वर्षा की तरह बरसता है। पानी कम और गरमी ज्यादा। ये दो बातें जहाँ मिल जाएँ वहाँ जीवन दूभर हो जाता है, ऐसा माना जाता है। दुनिया के बाकी मरुस्थलों में भी पानी लगभग इतना ही गिरता है, गरमी लगभग इतनी ही पड़ती है। इसलिए वहाँ । बसावट बहुत कम ही रही है। लेकिन, राजस्थान के मरुप्रदेश में दुनिया के अन्य ऐसे प्रदेशों की तुलना में न सिर्फ बसावट ज्यादा है, उस बसावट में जीवन की सुगंध भी है। यह इलाका दूसरे देशों की मरुस्थलों की तुलना में सबसे जीवंत माना गया है।

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्रा

(ख) राजस्थान में जीवन बड़ा दूभर है। क्यों और कैसे?
उत्तर-राजस्थान रेगिस्तानी प्रदेश है जहाँ पानी की कमी और अधिक गर्मी का मिश्रण रहता है। इन कठिन परिस्थितियों के कारण यहाँ का जीवन कठिन और संघर्षपूर्ण हो जाता है। इसलिए लेखक ने कहा है कि राजस्थानी जीवन अत्यंत कठिनाइयों भरा है।

(ग) सामान्य रूप से मरुस्थलों की मौसम संबंधी कौन-सी विशेषता है? राजस्थानी मरुस्थल के मौसम से उसका क्या अंतर है?
उत्तर- सामान्यत: विश्व के मरुस्थलों में पानी की कमी के कारण तापमान अधिक रहता है और वहाँ बसावट कम होती है। लेकिन राजस्थान के मरुस्थल में पानी कम होने के बावजूद लोग वहाँ घनी आबादी के साथ रहते हैं, इसलिए इसका वहां के अन्य मरुस्थलों से अंतर दिखाई देता है।

(घ) राजस्थान का इलाका सबसे जीवंत माना गया है, क्यों और कैसे?
उत्तर- लेखक के अनुसार राजस्थान भले ही मरुभूमि है, फिर भी अत्यंत जीवंत प्रदेश है। यहाँ के लोगों ने कम वर्षा और गर्मी जैसी कठिन परिस्थितियों को चुनौती के रूप में अपनाया और अपने जीवन को कला और सृजन के रूप में ढाल लिया। वे मरुस्थल की कठिनाइयों पर रोने की बजाय उनमें जीवन का उल्लास और आनंद महसूस करते हैं, इसलिए राजस्थान का जीवन अत्यंत जीवंत माना गया है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर- इस गद्यांश का आशय यह है कि राजस्थान भले ही मरुभूमि है, जहाँ वर्षा कम और गर्मी अधिक है, फिर भी वहाँ का जीवन जीवंत और उत्साही है। कठिन परिस्थितियों के बावजूद लोग अपनी जीवन-शैली, कला और परंपराओं के माध्यम से जीवन की कठिनाइयों को सहजता से अपनाते हैं। बाहर से जीवन कठिन दिखाई देता है, लेकिन अंदर से वह ऊर्जा और जीवंतता से परिपूर्ण है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक के कथन का आशय यह है कि राजस्थान मरुभूमि का प्रदेश होकर भी जीवन की सुगंधि और जीवंतता का प्रदेश बना हुआ है। वहाँ वर्षा कम होती हैं और गरमी अधिक पड़ती है। इसलिए, वहाँ का जीवन दूभर हो गया है। लेकिन, लेखक ने बताया है कि वहाँ की जीवन-शैली और कला ने जीवन की दूभरता की पीड़ा को बड़े ही व्यावहारिक रूप से आत्मसात् कर लिया है जिससे वहाँ का जीवन बाहर से दूभर, लेकिन भीतर से जीवंत है।

4. पानी के काम में यहाँ भाग्य भी है और कर्तव्य भी। वह भाग्य ही तो था कि महाभारत युद्ध समाप्त हो जाने के बाद श्रीकृष्ण करुक्षेत्र से अर्जुन को साथ लेकर वापस द्वारका इसी रास्ते से लौटे थे। उनका रथ मरुदेश पार कर रहा था। आज के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत पर उत्तुंग ऋषि तपस्या करते हुए मिले थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रणाम किया था और उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने को कहा था। उत्तुंग का अर्थ है, ऊँचा। वे सचमुच बहुत ऊँचे थे। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं माँगा। प्रभु से प्रार्थना की कि “यदि मेरे कुछ पुण्य हैं तो भगवान वर दें कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल न रहे।” “तथास्तु”, भगवान ने वरदान दिया था।

(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्न

(ख) “पानी के काम में यहाँ भाग्य भी है और कर्तव्य भी।”-इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर- राजस्थान में पानी के मामले में भाग्य और कर्तव्य दोनों का योगदान है। भाग्य इस रूप में कि इस भूमि पर प्राकृतिक संसाधन और जल का अवसर मिला है। कर्तव्य इस रूप में कि यहाँ के लोग मेहनत और समझदारी से वर्षा जल को हर संभव तरीके से संचित करते हैं और उसका बुद्धिमत्तापूर्वक उपयोग करते हैं।

(ग) श्रीकृष्ण से राजस्थान में किस ऋषि ने कब और क्या वरदान माँगा था?
उत्तर-महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण जब अर्जुन के साथ द्वारिका लौट रहे थे, तब रास्ते में आज के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत पर तपस्या में लीन उत्तुंग ऋषि से उन्होंने यह वरदान दिया कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल नहीं होगा।

(घ) उस ऋषिविशेष के नाम की सार्थकता स्पष्ट करें।
उत्तर-उस ऋषि का नाम ‘उत्तुंग’ था, जिसका अर्थ है ऊँचा। वास्तव में उत्तुंग ऋषि ने अपनी साधना और आत्मिक स्थिति में उच्चता प्राप्त की थी। उन्होंने श्रीकृष्ण से अपने लिए कुछ नहीं माँगा, बल्कि पूरी भूमि के कल्याण के लिए वरदान माँगा कि इस क्षेत्र में कभी जल की कमी न हो।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-इस गद्यांश में लेखक यह बताना चाहता है कि राजस्थान में पानी की उपलब्धता में भाग्य और कर्तव्य दोनों शामिल हैं। भाग्य से यह क्षेत्र कभी जल की कमी से नहीं जूझा, क्योंकि उत्तुंग ऋषि ने श्रीकृष्ण से वरदान लिया था। वहीं, कर्तव्य के तहत वहाँ के लोगों ने वर्षा के जल का हर कतरा संचित करने और उसका विवेकपूर्ण उपयोग करने की परंपरा विकसित की है।

5. जसढोल, यानी प्रशंसा करना। राजस्थान ने वर्षा के जल का संग्रह करने की अपनी अनोखी परंपरा का, उसके जस का कभी ढोल नहीं बजाया। आज देश के लगभग सभी छोटे-बड़े शहर, अनेक गाँव, प्रदेश की राजधानियाँ और तो और देश की राजधानी तक खूब अच्छी वर्षा के बाद भी पानी जुटाने के मामले में बिलकुल कंगाल हो रही है। इससे पहले कि देश पानी के मामले में बिल्कुल “ऊँचा” सुनने लगे, सूखे माने गए इस हिस्से राजस्थान में, मरुभूमि में फली-फूली जल-संग्रह की भव्य-परंपरा का जसढोल बजना ही चाहिए। पधारो म्हारे देस।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर-पाठ-पधारो म्हारे देस, लेखक-अनुपम मिश्र

(ख) राजस्थान में जल-संग्रह की अनोखी परंपरा क्या है?
उत्तर-राजस्थान में जल-संग्रह की अनोखी परंपरा यह है कि कम वर्षा के बावजूद वहाँ के लोग पानी को मूल्यवान समझते हैं। वे हर बूँद वर्षा जल की योजनाबद्ध तरीके से संचित करते हैं और इसे सहेजकर रखते हैं, जिससे कभी पानी की कमी महसूस न हो।

(ग) ‘जसढोल’ का अर्थ राजस्थानी समाज के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-‘जसढोल’ का मतलब है प्रशंसा करना। राजस्थानी समाज में लोग जल-संग्रह जैसी महान परंपरा को अपनाते हैं, पर उसके यश का ढोल नहीं पीटते। वे बिना दिखावा किए चुपचाप और निष्ठा के साथ पानी इकट्ठा करने का काम करते हैं।

(घ) आज देश के अधिकांश शहर किस मामले में बिलकुल कंगाल हो रहे हैं?
उत्तर-आज देश के ज्यादातर शहर पर्याप्त वर्षा होने के बावजूद पानी के संचय और उपयोग में बिल्कुल असमर्थ हो रहे हैं। वहाँ पानी तो मिलता है, पर लोग उसे जमा करने और सही ढंग से इस्तेमाल करने की विधि से अनभिज्ञ हैं, इसलिए पानी की कमी की समस्या बनी रहती है।

(ङ) राजस्थान में किसका जसढोल बजना चाहिए?
उत्तर-राजस्थान में पानी के संचय की अनोखी और प्रशंसनीय परंपरा का जसढोल बजना चाहिए। यानी इस परंपरा की सराहना और प्रसार होना चाहिए, ताकि अन्य लोग भी इसे अपनाएँ और जल संकट की कठिनाइयों से बच सकें। इससे जीवन अधिक समृद्ध और सजीव बन सकेगा।


Answer by Mrinmoee