Chapter 9
शरद जोशी
प्रश्न 1.मनुष्य की प्रगति और भारतीय रेल की प्रगति में लेखक क्या देखता है?
उत्तर-लेखक का मानना है कि जैसे मनुष्य और देश की उन्नति के मार्ग में अनेक राजनीतिक अड़चनें सामने आती हैं, वैसे ही भारतीय रेल की गति में भी कई प्रकार की समस्याएँ बाधा डालती हैं। रेल की कठिनाइयों और उसकी वास्तविक स्थिति को समझना तभी संभव है जब कोई यात्री उसके डिब्बों में बैठकर स्वयं अनुभव करे।
प्रश्न 2.“आप रेल की प्रगति देखना चाहते हैं तो किसी डिब्बे में घुस जाइए”-लेखक यह कहकर क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर-लेखक यह बताना चाहता है कि भारतीय रेल की असली स्थिति और उसकी प्रगति को केवल बाहर से देखकर नहीं समझा जा सकता। जब कोई यात्री स्वयं डिब्बे में बैठकर यात्रा करता है, तभी उसे रेल की वास्तविक कठिनाइयों और उपलब्धियों का अनुभव होता है।
प्रश्न 3.भारतीय रेलें हमें किस तरह का जीवन जीना सिखाती हैं?
उत्तर-भारतीय रेलें हमें संघर्ष और धैर्य से भरा जीवन जीना सिखाती हैं। यदि हमारे भीतर आत्मविश्वास की कमी है तो हम यात्रा में पीछे छूट जाते हैं, लेकिन साहस और आत्मबल से हम अपनी जगह बना सकते हैं। जिस प्रकार रेल में चढ़ने, सीट पाने या बर्थ हासिल करने के लिए धैर्य और प्रयास जरूरी है, उसी प्रकार जीवन में भी सफलता पाने के लिए हिम्मत और लगन की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 4.‘ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें।’ इस कथन से लेखक पाठकों को भारतीय रेल की किस अव्यवस्था से परिचित कराना चाहता है?
उत्तर-इस कथन के माध्यम से लेखक यह दिखाना चाहता है कि भारतीय रेल की यात्रा केवल टिकट या साधनों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि भाग्य और परिस्थिति पर भी टिकी रहती है। यदि यात्री के पास टिकट है, सामान कम है और पैसे पर्याप्त हैं तो वह गंतव्य तक पहुँच सकता है, अन्यथा उसे स्टेशन पर ही प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। इस प्रकार लेखक ने रेल की अव्यवस्थित व्यवस्था का व्यंग्यपूर्ण चित्र प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 5.“जिसमें मनोबल है, आत्मबल, शारीरिक बल और दूसरे किस्म के बल हैं उसे यात्रा करने से कोई नहीं रोक सकता। वे जो शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं वे क्यू में खड़े रहते हैं, वेटिंग लिस्ट में पड़े रहते हैं। यहाँ पर लेखक ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था के एक बहुत बड़े सत्य को उद्घाटित किया हैं “जिसकी लाठी उसकी भैंस’। इस पर अपने विचार संक्षेप में व्यक्त कीजिए।
उत्तर-लेखक ने इस कथन द्वारा समाज की उस कटु सच्चाई को उजागर किया है जिसमें शक्तिशाली और प्रभावशाली लोग हमेशा आगे बढ़ जाते हैं, जबकि कमजोर और संकोची लोग पीछे रह जाते हैं। समाज में अधिकार और अवसर अक्सर बल और साहस से ही मिलते हैं। जो दबंग होते हैं वे हर सुविधा पर कब्जा कर लेते हैं और जो कमजोर होते हैं उन्हें वंचित होना पड़ता है। इस प्रकार लेखक ने व्यंग्यपूर्ण शैली में शोषण और अन्यायपूर्ण प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है।
व्याख्याएँ
प्रश्न 6.निम्नलिखित पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें-
(क) “दुर्दशा तब भी थी, दुर्दशा आज भी है। ये रेलें, ये हवाई जहाज, यह सब विदेशी हैं। ये न हमारा चरित्र बदल सकती हैं और न भाग्या’ ।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ शरद जोशी की व्यंग्य रचना ‘रेल-यात्रा’ से ली गई हैं। यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि साधन और तकनीक चाहे कितने ही आधुनिक क्यों न हों, उनसे न तो हमारा स्वभाव बदलता है और न ही हमारी किस्मत। पहले भी लोगों को कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती थीं और आज भी परिस्थितियाँ वैसी ही हैं। रेल और हवाई जहाज जैसे साधन केवल बाहरी सुविधा देते हैं, वे मनुष्य के चरित्र या समाज की मूल प्रवृत्ति को नहीं बदल सकते। इस प्रकार लेखक ने व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्था की कमियों और सामाजिक यथार्थ पर प्रकाश डाला है।
(ख) “भारतीय रेलें हमें सहिष्णु बनाती हैं। उत्तेजना के क्षणों में शांत रहना सिखाती हैं। मनुष्य की यही प्रगति है।”
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ शरद जोशी की व्यंग्य रचना ‘रेल यात्रा’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारतीय रेल यात्रा केवल एक साधारण यात्रा नहीं, बल्कि सहनशीलता और धैर्य का पाठ भी है। जब रेल समय पर न पहुँचे, अनपेक्षित जगह रुक जाए या यात्री को असुविधा हो, तब व्यक्ति यदि उत्तेजित होकर क्रोधित न हो और धैर्यपूर्वक परिस्थिति को स्वीकार कर ले, तो यही उसका सच्चा विकास है। लेखक के अनुसार ऐसी स्थितियों में शांत रहना और सहन करना ही मनुष्य की प्रगति का प्रतीक है।
(ग) ‘भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन-समझाती हैं और अक्सर पटरी से उत्तरकर उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती हैं।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ शरद जोशी की व्यंग्य रचना ‘रेल यात्रा’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से यह संकेत किया है कि रेल यात्रा कभी–कभी जीवन की अनिश्चितता और मृत्यु के दर्शन कराती है। भीड़, धक्का–मुक्की और असुविधाओं के बीच यात्री को ऐसा अनुभव होता है मानो आत्मा ही यात्रा कर रही हो। रेल दुर्घटना या पटरियों से उतर जाने की घटनाएँ व्यक्ति को यह एहसास दिलाती हैं कि जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु कभी भी सामने आ सकती है। इस प्रकार लेखक ने रेल यात्रा को दार्शनिक दृष्टिकोण से जोड़कर मृत्यु के सत्य और उसकी महत्ता का व्यंग्यपूर्ण चित्रण किया है।
(घ) ‘कई बार मुझे लगता है भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे है। आगे-आगे मनुष्य बढ़ रहा है, पीछे-पीछे रेल आ रही है।’
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ शरद जोशी की व्यंग्य रचना ‘रेल यात्रा’ से उद्धृत हैं। यहाँ लेखक ने रेल और मनुष्य की प्रगति की तुलना करते हुए बड़ा ही रोचक व्यंग्य किया है। उनका कहना है कि भारतीय मनुष्य रेल से भी तेज प्रगति करता हुआ दिखाई देता है। यात्री पायदानों पर लटकते हैं, छतों पर बैठते हैं और तरह-तरह की कठिनाइयों के बीच भी सफर जारी रखते हैं। ऐसे दृश्य देखकर लगता है कि रेल तो पीछे छूट रही है और मनुष्य अपनी जिजीविषा और संघर्ष के बल पर आगे बढ़ रहा है। इस प्रकार लेखक ने भारतीय रेल यात्रा के माध्यम से मनुष्य की जुझारूपन और उसकी निरंतर प्रगति को व्यंग्यात्मक शैली में व्यक्त किया है।
प्रश्न 7.रेल-यात्रा के दौरान किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है? पठित पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर-रेल-यात्रा में यात्री अनेक प्रकार की कठिनाइयों से जूझते हैं। सबसे पहले गाड़ी में चढ़ने के समय ही भीड़ और धक्का-मुक्की का सामना करना पड़ता है। यदि किसी तरह डिब्बे में प्रवेश मिल भी जाए तो सीट मिलना मुश्किल हो जाता है और खड़े-खड़े ही सफर करना पड़ता है। सामान रखने की जगह नहीं मिलती, जिससे और असुविधा बढ़ती है। गाली-गलौज, शोर-शराबा और अव्यवस्था जैसी परेशानियाँ भी आम तौर पर झेलनी पड़ती हैं। लेखक ने इन सब स्थितियों का चित्रण बड़े ही व्यंग्यपूर्ण और यथार्थ तरीके से किया है।
प्रश्न 8.लेखक अपने व्यंग्य में भारतीय रेल की अव्यवस्था का एक पूरा चित्र हमारे सामने प्रस्तुत करता है। पठित पाठ के आधार पर भारतीय रेल की कुछ अवस्थाओं का जिक्र करें।
उत्तर-लेखक ने भारतीय रेल की अव्यवस्था को व्यंग्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करते हुए उसकी कई कठिनाइयों का उल्लेख किया है। इसमें समय पर गाड़ी न चलना, टिकट कटाने में दिक्कत, डिब्बे में चढ़ने की मुश्किलें, सीट न मिलना और भीड़-भाड़ जैसी परेशानियाँ शामिल हैं। इन सबके माध्यम से लेखक ने रेल व्यवस्था की खामियों और असुविधाओं का वास्तविक चित्र सामने रखा है।
प्रश्न 9.“रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। ठीक कहते हैं। रेलें हमेशा प्रगति करती हैं।’ इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक भारतीय राजनीति व राजनेताओं का कौन-सा पक्ष दिखाना चाहता है। अपने शब्दों में बताइए।
उत्तर-लेखक इस व्यंग्य के माध्यम से यह दिखाना चाहते हैं कि राजनेता और सरकारी घोषणाएँ अक्सर वास्तविकता से मेल नहीं खातीं। मंत्री कहते हैं कि रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं, लेकिन वास्तविक स्थिति डिब्बे में बैठकर अनुभव करने पर ही समझ में आती है—भीड़, परेशानी और अव्यवस्था देखकर। लेखक के अनुसार, राजनीति में दिखावा और वास्तविकता में अंतर है; देश की प्रगति के नाम पर जनता परेशान होती है, लेकिन सत्ता में बैठे लोग केवल प्रगति की बातें करते रहते हैं। यही विरोधाभास लेखक ने व्यंग्य के जरिए सामने रखा है।
प्रश्न 10.इस पाठ में व्यंग्य की दोहरी धार है-एक विभिन्न वस्तुओं और विषयों की ओर तो दूसरी अपनी अर्थात् भारतीय जनता की ओर। पाठ से उदाहरण देते हुए प्रमाणित कीजिए।
उत्तर-पाठ में व्यंग्य की दोहरी धार स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। पहली धार, विभिन्न वस्तुओं और विषयों की ओर, तब दिखाई देती है जब मंत्रीजी कहते हैं कि रेल प्रगति कर रही है। दूसरी धार, जनता की ओर, तब दिखाई देती है जब लेखक यह दिखाते हैं कि भारतीय रेल में जो अव्यवस्था है, उसकी सबसे अधिक मार आम जनता पर पड़ती है। लेखक व्यंग्यात्मक ढंग से कहता है कि यदि आप स्वयं डिब्बे में जाकर देखें तो रेल की वास्तविक स्थिति और उसमें आने वाली परेशानियाँ स्वतः समझ में आ जाएँगी। इस प्रकार पाठ में मंत्री और व्यवस्था के दिखावे और जनता की वास्तविक स्थिति दोनों पर व्यंग्य की दोहरी धार मौजूद है।
प्रश्न 11.भारतीय रेलें चिंतन के विकास में सहयोग देती हैं। कैसे? व्यंग्यकार की दृष्टि से विचार कीजिए।
उत्तर-लेखक व्यंग्य के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि भारतीय रेल यात्रा व्यक्ति को सोचने और चिंतन करने के लिए मजबूर करती है। यात्रा के दौरान भीड़, सीट और सामान की व्यवस्था जैसी समस्याएँ मन को ध्यानपूर्वक सोचने पर विवश करती हैं। व्यक्ति यह सोचता है कि अगर सामान रखें तो बैठने की जगह कहाँ, बैठ जाएँ तो सामान कहाँ रखें। इस तरह की परिस्थितियाँ यात्री को चिंतनशील बनाती हैं और अंततः उसे दार्शनिक दृष्टिकोण से सोचने पर मजबूर कर देती हैं। रेल की असुविधाएँ व्यंग्य के साथ सोचने की प्रक्रिया को विकसित करती हैं।
प्रश्न 12.टिकिट को लेखक ने ‘देह धरे को दंड’ क्यों कहा है?
उत्तर-लेखक व्यंग्यपूर्ण ढंग से यह बताना चाहते हैं कि रेल यात्रा में टिकट भी कभी-कभी यात्री के लिए बोझ बन जाता है। लोकल ट्रेन में भीड़-भाड़, कोने में सिमटे यात्री जब अपने शरीर की भारीपन और असुविधा महसूस करता है, तब उसे लगता है कि यदि शरीर न होता और केवल आत्मा होती, तो कितनी आराम से यात्रा की जा सकती थी। इसी कारण लेखक ने टिकट को ‘देह धरे को दंड’ कहकर यात्रा की कठिनाइयों और यात्री पर पड़ने वाले बोझ का व्यंग्यात्मक चित्रण किया है।
प्रश्न 13.किस अर्थ में रेलें मनुष्य को मनुष्य के करीब लाती हैं?
उत्तर-जब यात्री रेल में चढ़ने के लिए धक्का-मुक्की और असुविधाओं का सामना करता है और आखिरकार डिब्बे में पहुँच जाता है, तब वह दूसरों के निकटता में होता है। भीड़-भाड़ में एक-दूसरे के शरीर के पास बैठना या खड़ा होना, कभी-कभी एक-दूसरे के साथ झगड़ना या सहन करना, यही अनुभव मनुष्य को दूसरों के करीब लाता है और आपसी समझ और सहनशीलता विकसित करता है।
प्रश्न 14.“जब तक एक्सीडेंट न हो हमें जागते रहना है” लेखक ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-लेखक रेल यात्रा के अनुभव से यह सिखाते हैं कि सावधानी और सतर्कता बहुत जरूरी है। यात्रा के दौरान दिनभर की कठिनाइयाँ झेलने और रात भर जागते रहने की आदत हमें सतर्क बनाती है। लेखक व्यंग्यात्मक रूप में कहता है कि जब तक कोई अप्रत्याशित घटना या एक्सीडेंट न हो, तब तक जागते रहना चाहिए, ताकि किसी भी परिस्थिति का सामना धैर्य और सजगता के साथ किया जा सके।
नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।
1. रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही
हैं। ठीक कहते हैं। रेलें हमेशा प्रगति कराती हैं। वे मुंबई से प्रगति करती हुई दिल्ली तक चली जाती हैं और वहाँ से प्रगति करती हुई मुंबई तक
आ जाती हैं। अब यह दूसरी बात है कि वे बीच में कहीं भी रुक जाती हैं और लेट पहुँचती हैं। पर अब देखिए ना, प्रगति की राह में रोड़े कहाँ नहीं आते? राजनीतिक पार्टियों के रास्ते में आते हैं, देश के रास्ते में आते हैं, तो यह तो बिचारी रेल है। आप रेल की प्रगति देखना चाहते हैं, तो . किसी डिब्बे में घुस जाइए। बिना गहराई में घुसे आप सच्चाई को महसूस नहीं कर सकते।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-रेल-यात्रा, लेखक-शरद जोशी
(ख) रेलमंत्री का भारतीय रेल के संबंध में क्या कथन है? उसकी प्रतिक्रिया में लेखक का क्या कथन है?
उत्तर-रेलमंत्री का कथन है कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। इस पर लेखक व्यंग्यात्मक ढंग से प्रतिक्रिया देते हैं और कहते हैं कि रेलमंत्री सही ही कहते हैं। लेखक की व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी यह दर्शाती है कि रेल की “प्रगति” इतनी स्पष्ट है कि वह दिल्ली से चलकर मुम्बई तक पहुँच जाती है, लेकिन वास्तविक अनुभव देखें तो यात्रियों को यात्रा में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस तरह लेखक मंत्री के दावे की व्यंग्यपूर्ण समीक्षा प्रस्तुत करते हैं।
(ग) प्रगति की राह के संबंध में लेखक क्या कहता है?
उत्तर- लेखक के अनुसार प्रगति की राह पर हमेशा बाधाएँ आती हैं। व्यंग्यात्मक शैली में वे बताते हैं कि इसी कारण भारतीय रेल अक्सर बीच में रुक जाती है और अपने गंतव्य तक समय पर नहीं पहुँचती। प्रगति के मार्ग में यह अवरोध केवल रेल तक सीमित नहीं हैं, बल्कि देश की उन्नति या राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियों के कारण भी कई अड़चनें सामने आती हैं। लेखक इन कठिनाइयों को बड़ी चालाकी और व्यंग्य के साथ प्रस्तुत करते हैं।
(घ) लेखक के अनुसार हमें रेल की प्रगति देखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर- लेखक के अनुसार रेल की असली प्रगति देखने के लिए किसी रिपोर्ट, बजट या मंत्री के भाषण पर भरोसा करना पर्याप्त नहीं है। वास्तविक अनुभव पाने के लिए हमें खुद रेल के सवारी डिब्बे में बैठकर यात्रा करनी चाहिए। व्यंग्यपूर्ण अंदाज में लेखक बताते हैं कि केवल डिब्बे में जाकर ही हम रेल की सही गति, उसकी परेशानियाँ और असली स्थिति का अनुभव कर सकते हैं।
(ङ) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय रेल की कथित प्रगति पर व्यंग्य किया है। रेलमंत्री के दावे के विपरीत, लेखक बताते हैं कि रेल की असली प्रगति केवल दिखावे में है। वास्तविक स्थिति यह है कि रेल दिल्ली से मुंबई और फिर मुंबई से दिल्ली चलती रहती है, लेकिन यात्रियों को यात्रा में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लेखक के अनुसार, रेल की वास्तविक प्रगति का अनुभव केवल डिब्बे में बैठकर और यात्रा के समय की परेशानियों को देखकर ही समझा जा सकता है।
2. हमारे यहाँ कहा जाता है-ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें। आप पूछ सकते हैं कि इस छोटी-सी रोजमर्रा की बात में ईश्वर को क्यों घसीटा जाता है? पर जरा सोचिए, रेल की यात्रा में ईश्वर के सिवा आपका है कौन? एक वही तो है, जिसका नाम लेकर आप भीड़ में जगह बनाते हैं। भारतीय रेलों में तो यह आत्मा सो परमात्मा और परमात्मा सो आत्मा। अगर ईश्वर आपके साथ है, टिकट आपके हाथ है, पास में सामान कम और जेब में ज्यादा पैसा है, तो आप मंजिल तक पहुँच जाएँगे, फिर चाहे बर्थ मिले या न मिले। अरे, भारतीय रेलों को काम तो कर्म करना है। फल की चिंता वह नहीं करती। रेलों का काम एक जगह से दूसरी जगह जाना है। यात्री की जो दशा हो। जिंदा रहे या मुर्दा, भारतीय रेलों का काम उसे पहुँचा भर देना है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-रेल-यात्रा, लेखक-शरद जोशी
(ख) रेल-यात्रा करने के समय लोग क्या कहकर शुभकामना व्यक्त
करते हैं? इस कथन की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर- रेल यात्रा शुरू करने से पहले लोग एक-दूसरे को यही शुभकामना देते हैं: “ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें।” लेखक इस कथन को पूरी तरह सार्थक मानते हैं। आज की रेल-यात्रा में अनेक कठिनाइयाँ और संभावित खतरें मौजूद हैं, और इनसे बचाव के लिए रेल विभाग के प्रबंध भी हमेशा पर्याप्त नहीं होते। ऐसी स्थिति में यात्री को केवल ईश्वर की सुरक्षा पर भरोसा करना पड़ता है, इसलिए यह वाक्य वास्तविकता और अनुभव दोनों के दृष्टिकोण से सही और अर्थपूर्ण है।
(ग) लेखक के अनुसार रेल-यात्रा में मंजिल तक पहुँचने में क्या शर्ते
उत्तर- लेखक व्यंग्यपूर्ण अंदाज में बताते हैं कि रेल यात्रा में मंजिल तक पहुँचने के लिए कुछ शर्तें जरूरी हैं। यदि ईश्वर आपकी रक्षा कर रहे हैं, आपके पास टिकट है, सामान कम है और जेब में पर्याप्त पैसा है, तो आप आसानी से अपने गंतव्य तक पहुँच सकते हैं, चाहे आपको बर्थ मिले या न मिले। लेखक यह भी व्यंग्य करते हैं कि भारतीय रेल अपने कर्तव्य में मेहनती है, लेकिन असली निर्भरता और सफलता यात्री की तैयारी और परिस्थितियों पर भी टिकी है।
(घ) भारतीय रेलों का क्या काम है?
उत्तर-भारतीय रेलें अत्यंत कर्मठ हैं और उनका मुख्य उद्देश्य यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाना है। यह काम वे किसी लाभ या स्वार्थ की इच्छा से नहीं करतीं। इसलिए चाहे यात्री जीवित हों या मृत, किसी भी परिस्थिति में रेल उन्हें उनकी मंजिल तक पहुँचाने का कार्य पूर्ण करती है।
(ङ) इस गद्यांश का आशय लिखिए।
उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय रेलों की कथित कर्मठता और उनके नियमित कार्य-कलाप पर व्यंग्य किया है। व्यंग्य के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि रेल यात्रा में कठिनाइयाँ और परेशानियाँ इतनी अधिक होती हैं कि केवल ईश्वर ही यात्रियों का वास्तविक रक्षक है। फिर भी, भारतीय रेल हर परिस्थिति में यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने के अपने कर्तव्य में समर्पित और तत्पर रहती है।
3. भारतीय रेलें चिंतन के विकास में बड़ा योगदान देती हैं। प्राचीन मनीषियों ने कहा है कि जीवन की अंतिम यात्रा में मनुष्य खाली हाथ रहता है। क्यों भैया? पृथ्वी से स्वर्ग तक या नरक तक भी रेलें चलती हैं। जानेवालों की भीड़ बहुत ज्यादा है। भारतीय रेलें भी हमें यही सिखाती हैं। सामान रख दोगे तो बैठोगे कहाँ? बैठ जाओगे तो सम्मान कहाँ रखोगे? दोनों कर दोगे तो दूसरा वहाँ बैठेगा? वो बैठ गया तो तुम कहाँ खड़े रहोगे? खड़े हो गए तो सामान कहाँ रहेगा? इसलिए असली यात्री वो, जो खाली हाथ? टिकट का वजन उठाना भी जिसे कबूल नहीं। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने ये स्थिति मरने के बाद बताई है। भारतीय रेलें चाहती हैं, वह जीते-जी आ जाए। चरम स्थिति, परम हलकी अवस्था, खाली हाथ, बिना बिस्तर मिल जा बेटा अनंत में, सारी रेलों को अंततः ऊपर जाना है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-रेलयात्रा, लेखक-शरद जोशी
(ख) भारतीय रेलें प्राचीन मनुष्यों के किस चिंतन के विकास में योगदान दे रही हैं? क्यों और कैसे? ।
उत्तर-भारतीय रेलें इस दृष्टि से प्राचीन मनुष्यों के चिंतन को विकसित करने में मदद करती हैं कि जीवन की अंतिम यात्रा में मनुष्य सब कुछ पीछे छोड़कर खाली हाथ जाता है। व्यंग्यात्मक रूप में लेखक बताते हैं कि भीड़-भाड़ वाली रेल यात्रा में जो यात्री कम सामान लेकर चलता है, उसकी यात्रा सुखद होती है, जबकि बहुत सारा सामान साथ लाने वाला यात्री खुद परेशान होता है और दूसरों की यात्रा में भी अव्यवस्था और कठिनाइयाँ पैदा करता है। इस अनुभव से व्यक्ति चिंतनशील और सहनशील बनता है।
(ग) भारतीय रेलें हमें क्या सिखाती हैं?
उत्तर-भारतीय रेलें यह शिक्षा देती हैं कि यात्रा में सरलता और संतुलन आवश्यक है। भीड़-भाड़ वाली रेल में यदि बहुत सारा सामान साथ ले जाया जाए तो उसे रखने और बैठने की समस्या बढ़ जाती है। इसलिए सबसे सुविधाजनक और सुखद यात्रा वही है जिसमें यात्री न्यूनतम सामान लेकर, सरलता से यात्रा करता है। यह अनुभव उसे धैर्य, संयम और परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करना सिखाता है, जिससे यात्रा का आनंद भी बढ़ जाता है।
(घ) प्राचीन ऋषि-मुनियों ने मरने के बाद की क्या स्थिति बताई है?
भारतीय रेलों का इसमें क्या साम्य है?
उत्तर-प्राचीन ऋषि-मुनियों के अनुसार मृत्यु के बाद व्यक्ति सब कुछ छोड़कर खाली हाथ परलोक की यात्रा करता है। इसी तरह, भारतीय रेल भी यात्रियों को यही सिखाती है कि यात्रा के दौरान न्यूनतम सामान लेकर, हल्की और सरल अवस्था में यात्रा करनी चाहिए। ऐसा करने से यात्री न केवल आरामदायक यात्रा का अनुभव करता है, बल्कि व्यंग्यात्मक रूप से इसे जीवन और मृत्यु के चिंतन के साथ जोड़कर देखा जा सकता है, जहाँ अंततः सभी को अपने गंतव्य तक पहुँचना ही है।
(ङ) इस गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय रेल की यात्रा को दार्शनिक दृष्टि से देखा है और व्यंग्यपूर्ण अंदाज में उसकी महत्ता को प्रस्तुत किया है। भारतीय चिंतन के अनुसार मानव जीवन में हम सब कुछ लेकर नहीं आते और सब कुछ पीछे छोड़कर जाते हैं। लेखक के अनुसार भारतीय रेल भी इसी दार्शनिक विचार का पालन करती है। इसलिए यात्रा के दौरान यह समझना जरूरी है कि खाली हाथ, न्यूनतम सामान लेकर सफर करना चाहिए। तभी भीड़-भाड़ और कठिनाइयों भरी रेल-यात्रा सुखद और अनुभवपूर्ण बनती है। यही नियम जीवन की यात्रा में भी सटीक रूप से लागू होते हैं।
4. टिकट क्या है? देह धरे का दंड है। मुंबई की लोकल ट्रेन में भीड़ से दबे, कोने में सिमटे यात्री को जब अपनी देह भारी लगती है तब वह सोचता है कि यह शरीर न होता, केवल आत्मा होती, तो कितने सुख से यात्रा करती। भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन समझाती हैं और अक्सर पटरी से उतरकर उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती हैं। कोई नहीं कह सकता कि रेल में चढ़ने के बाद वह कहाँ उतरेगा? अस्पताल में या श्मशान में। लोग रेलों की आलोचना करते हैं। अरे रेल चल रही है और आप उसमें जीवित बैठे हैं, यह अपने में कम उपलब्धि नहीं है।
(क) पाठ तथा लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-रेलयात्रा, लेखक-शरद जोशी,
(ख) भारतीय रेल टिकट को देह धरे का दंड कहा गया है। इसमें रेल-यात्रा का कौन-सा व्यंग्य छिपा है?
उत्तर-लेखक व्यंग्यपूर्ण रूप में यह बताते हैं कि भारतीय रेल में टिकट होना कभी-कभी यात्री के लिए बोझ बन जाता है। खासकर मुंबई की लोकल ट्रेन में भीड़ इतनी अधिक होती है कि यात्री अपने शरीर के वजन और भीड़ के दबाव से परेशान हो जाता है। ऐसी स्थिति में उसे लगता है कि अगर शरीर न होता और केवल आत्मा यात्रा कर रही होती, तो कितनी सुखद यात्रा होती। इसी कारण लेखक ने टिकट को ‘देह धरे का दंड’ कहकर यात्रा की कठिनाइयों और रेल व्यवस्था की व्यंग्यात्मक स्थिति को उजागर किया है।
(ग) भारतीय रेल हमें मृत्यु का दर्शन समझाती हैं क्यों और कैसे?
उत्तर-लेखक के अनुसार भारतीय रेल यात्रियों को जीवन और मृत्यु का अनुभव कराती है। जब रेल पटरी पर चल रही होती है, तब यात्रा सुरक्षित प्रतीत होती है और यात्री सामान्य रूप से सफर करता है। लेकिन कभी-कभी रेल दुर्घटना या पटरियों से उतर जाने जैसी घटनाएँ घटती हैं, जो सीधे जीवन के खतरे का अहसास कराती हैं। इसी कारण लेखक कहता है कि भारतीय रेल यात्रा के दौरान मृत्यु का दर्शन कराती है और जीवन की अनिश्चितता का अनुभव कराती है।
(घ) लोगों की दृष्टि में रेल-यात्रा की उपलब्धियाँ क्या हैं जो
विचारणीय हैं?
उत्तर-कुछ लोग भारतीय रेल की यात्रा को सकारात्मक रूप में देखते हैं और मानते हैं कि रेल चल रही है और यात्री उसमें सुरक्षित हैं। लेखक इस दृष्टि पर व्यंग्य करते हैं कि वास्तव में रेल यात्रा में दुर्घटनाएँ और जीवन के जोखिम आम हैं। इसलिए जब रेल सामान्य रूप से चलती है और यात्री जीवित रहते हैं, तब इसे ही असली उपलब्धि माना जा सकता है। लेखक इस व्यंग्य के माध्यम से रेल व्यवस्था की वास्तविक कठिनाइयों और यात्रियों की स्थिति को उजागर करते हैं।
(ङ) इस गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय रेल की यात्रा की कठिनाइयों और अव्यवस्था पर व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी की है। भीड़-भाड़ और असुविधाओं के कारण यात्रियों के लिए खुद का शरीर भी भारी और बोझिल महसूस होता है, इसलिए लेखक रेल टिकट को ‘देह धरे का दंड’ कहता है। साथ ही, लेखक यह बताता है कि रेल यात्रा अक्सर मृत्यु और जोखिम का अनुभव कराती है। अगर कोई यात्री जीवित रहते हुए इस यात्रा को पूरी करता है, तो यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि और सफलता मानी जा सकती है।
5. भारतीय रेलें आगे बढ़ रही हैं। भारतीय मनुष्य आगे बढ़ रहा है। अपने भारतीय मनुष्य को भारतीय रेल के पीछे भागते देखा होगा। उसे पायदान से लटके, डिब्बे की छत पर बैठे, भारतीय रेलों के साथ प्रगति करते देखा होगा। कई बार मुझे लगता है कि भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे हैं। आगे-आगे मनुष्य बढ़ रहा है, पीछे-पीछे रेल आ रही है। अगर इसी तरह रेल पीछे आती रही, तो भारतीय मनुष्य के पास सिवाये बढ़ते रहने के कोई रास्ता नहीं रहेगा। बढ़ते रहो-रेल में सफर करते, दिन-झगड़ते, रातभर जागते, बढ़ते रहो। रेल निशात सर्व भूतानां! जो संयमी होते हैं, वे रात-भर जागते हैं। भारतीय रेलों की यही प्रगति है, जब तक एक्सीडेंट न हो, हमें जागते रहना है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
उत्तर- पाठ-रेलयात्रा, लेखक-शरद जोशी
(ख) भारतीय रेलों के साथ-साथ मनुष्य भी प्रगति कर रहा है, कैसे?
उत्तर- लेखक व्यंग्यपूर्ण ढंग से यह कहते हैं कि प्रगति का अर्थ केवल आगे बढ़ना है। भारतीय रेल गतिशील होकर एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर चलती रहती है। चूँकि मनुष्य भी यात्री के रूप में इस यात्रा में शामिल है, इसलिए वह रेल के साथ-साथ आगे बढ़ रहा है। इस तरह रेल की गति और मानव की यात्रा एक साथ मिलकर प्रगति का अनुभव कराती हैं।
(ग) “कभी-कभी मनुष्य रेलों से भी आगे-आगे भांगता है।” स्पष्ट करें।
उत्तर- लेखक व्यंग्यात्मक रूप से बताते हैं कि कभी-कभी मानव रेल से भी तेज़ी से आगे बढ़ जाता है। इसका अर्थ यह है कि जीवन यात्रा में मनुष्य रेल की गति से आगे निकल जाता है। उदाहरण के लिए, रेल यात्रा के दौरान दुर्घटनाएँ होती हैं, और यात्री मृत्यु के अनुभव के रूप में पहले ही गंतव्य तक पहुँच जाता है। जबकि रेल खुद गंभीर रूप से घायल होकर भी चलती रहती है और फिर सामान्य गति पर लौट आती है। इस प्रकार मानव कभी-कभी रेल से भी पहले अपने जीवन के अनुभव में आगे निकल जाता है।
(घ) रेल निशात् सर्वभूतानां!’ कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर- यह कथन गीता के उस विचार से जुड़ा है जिसमें कहा गया है कि रात के समय सभी प्राणी सोते हैं, लेकिन संयमी योगी जागृत रहते हैं। लेखक ने इसे व्यंग्यपूर्ण रूप में रेल यात्रा पर लागू किया है। उनका कहना है कि जो यात्री संयमी और सतर्क हैं, वे रात भर जागते रहते हैं, रेल की दुर्घटना या अन्य कठिनाइयों से बचने के लिए सतर्क रहते हैं। लेखक के अनुसार, इसी सतर्कता और जागरूकता में रेल की वास्तविक प्रगति और यात्रा का अनुभव निहित है।
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