Chapter 2
1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरम् एकपदेन दत्त- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए)
(क) गृहं परित्यज्य ब्राह्मणपुत्राः प्रथमं कुत्र गताः? (घर छोड़कर ब्राह्मण पुत्र सबसे पहले कहाँ गए?)
उत्तर: अवन्ती (अवन्ती)
(ख) योगी भैरवानन्दः तान् किम् आर्पयत्? (योगी भैरवानंद ने उन्हें क्या दिया?)
उत्तर: सिद्धिवर्ति (सिद्धिवर्ति)
(ग) ताम्रस्य अनन्तरं तेन किं प्राप्तम्? (ताँबे के बाद उन्हें क्या मिला?)
उत्तर: रूप्यम् (चाँदी)
(घ) तृतीयः ब्राह्मणः खनित्वा किम् अपश्यत्? (तीसरे ब्राह्मण ने खोदकर क्या देखा?)
उत्तर: सुवर्णम् (सोना)
(ङ) अतिलोभाभिभूतस्य जनस्य मस्तके किं भ्रमति? (अधिक लोभ से ग्रस्त व्यक्ति के सिर पर क्या घूमता है?)
उत्तर: चक्रम् (चक्र)
2. संधिविच्छेदं कुरुत- (संधि-विच्छेद कीजिए)
उत्तर:
- इतश्चेतश्च = इतः + च + इतः + च
- किञ्चन्मात्रम् = किञ्चित् + मात्रम्
- त्रयोऽप्यग्रे = त्रयः + अपि + अग्रे
- समुद्रादन्यः = समुद्रात् + अन्यः
- तयोरपि = तयोः + अपि
3. समास विग्रहं कुरुत- (समास का विग्रह कीजिए)
उत्तर:
- पिपासाकुलितः = पिपासया आकुलितः (तृतीया तत्पुरुष) (प्यास से व्याकुल)
- स्वेच्छया = स्वस्य इच्छया (षष्ठी तत्पुरुष) (अपनी इच्छा से)
- कृतस्नानाः = कृतं स्नानं यैः ते (बहुव्रीहि) (जिन्होंने स्नान किया)
- बन्धुमध्ये = बन्धुनां मध्ये (षष्ठी तत्पुरुष) (रिश्तेदारों के बीच)
- धनाप्तिः = धनस्य आप्तिः (षष्ठी तत्पुरुष) (धन की प्राप्ति)
4. प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत- (प्रकृति-प्रत्यय विभाग कीजिए)
उत्तर:
- प्रणम्य = प्र + नम् + ल्यप् (प्रणाम करके)
- परित्यज्य = परि + त्यज् + ल्यप् (छोड़कर)
- आदाय = आ + दा + ल्यप् (लेकर)
- उक्त्वा = वच् + क्त्वा (बोलकर)
- प्रस्थितः = प्र + स्था + क्तः (प्रस्थान किया हुआ)
5. विपरीतार्थकान् शब्दान् वदत- (विपरीत अर्थ वाले शब्द बताइए)
उत्तर:
- बंधुः = शत्रुः (मित्र = शत्रु)
- निश्चयः = अनिश्चयः (निश्चित = अनिश्चित)
- क्षितिः = आकाशः (पृथ्वी = आकाश)
- आदाय = परित्यज्य (लेना = छोड़ना)
- अस्माकम् = युष्माकम् (हमारा = तुम्हारा)
अभ्यासः (लिखितः)
1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए)
(क) कस्मिंश्चिदधिष्ठाने के वसन्ति स्म? (किसी स्थान पर कौन रहते तेज?)
उत्तर: कस्मिंश्चिदधिष्ठाने चत्वारः ब्राह्मणपुत्राः वसन्ति स्म। (किसी स्थान पर चार ब्राह्मण पुत्र रहते थे।)
(ख) ‘गृह्यतां स्वेच्छया ताम्रम्’-एतत् कस्य वचनमस्ति? (‘स्वेच्छा से ताँबा लो’-यह किसका कथन है?)
उत्तर: ‘गृह्यतां स्वेच्छया ताम्रम्’–एतत् प्रथमस्य ब्राह्मणपुत्रस्य वचनमस्ति। (यह प्रथम ब्राह्मण पुत्र का कथन है।)
(ग) ते किं संमन्त्र्य स्वदेशं परित्यज्य प्रस्थिताः? (उन्होंने क्या सलाह करके स्वदेश छोड़कर प्रस्थान किया?)
उत्तर: ते ‘कुत्रचिद् धनाय गच्छामः’ इति संमन्त्र्य स्वदेशं परित्यज्य प्रस्थिताः। (उन्होंने ‘कहीं धन के लिए जाएँ’ ऐसा सलाह करके स्वदेश छोड़कर प्रस्थान किया।)
(घ) स्वर्णभूमिं दृष्ट्वा तृतीयः ब्राह्मणपुत्रः किम् अवदत्? (सोने की भूमि देखकर तीसरे ब्राह्मण पुत्र ने क्या कहा?)
उत्तर: स्वर्णभूमिं दृष्ट्वा तृतीयः ब्राह्मणपुत्रः अवदत्–‘भोः, स्वेच्छया सुवर्णं गृह्यताम्। सुवर्णात् अन्यत् न किञ्चिद् उत्तमम्।’ (सोने की भूमि देखकर तीसरे ब्राह्मण पुत्र ने कहा–‘अरे, अपनी इच्छा से सोना लो। सोने से बढ़कर कुछ नहीं।’)
(ङ) भैरवानन्दः किम् अपृच्छत्? (भैरवानंद ने क्या पूछा?)
उत्तर: भैरवानन्दः अपृच्छत्–‘भवन्तः कुतः समायाताः? किम् प्रयोजनम्?’ (भैरवानंद ने पूछा–‘आप कहाँ से आए हैं? और क्या उद्देश्य है?’)
2. अधोलिखित वाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधारीकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- (निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाइए)
(क) ते चापि दारिद्योपहता मन्त्रं चकः । (वे भी दरिद्रता से पीड़ित होकर सलाह की।)
उत्तर: ते चापि दारिद्योपहता किं चक्रुः? (वे भी दरिद्रता से पीड़ित होकर क्या की?)
(ख) बन्धुमध्ये धनहीनजीवितं न वरम् । (रिश्तेदारों के बीच धनहीन जीवन अच्छा नहीं।)
उत्तर: कस्मिन् धनहीनजीवितं न वरम्? (कहाँ धनहीन जीवन अच्छा नहीं?)
(ग) अथ किञ्चिन्मात्र गतस्य अग्रेसरस्य वर्ति: निपपात । (थोड़ा आगे जाने पर पहले चलने वाले की मशाल गिर गई।)
उत्तर: कस्य अग्रेसरस्य कः निपपात? (किसके पहले चलने वाले की क्या गिर गई?)
(घ) सिद्धिमार्गच्युतः सः इतश्चेतश्च बभ्राम । (सिद्धि के मार्ग से भटककर वह इधर-उधर भटका।)
उत्तर: सिद्धिमार्गच्युतः सः कुत्र बभ्राम? (सिद्धि के मार्ग से भटककर वह कहाँ भटका?)
(ङ) सः यावत् खनति तावत् सुवर्णभूमि दृष्ट्वा प्राह। (वह जितना खोदता, उतना सोने की भूमि देखकर बोला।)
उत्तर: सः यावत् खनति तावत् किं दृष्ट्वा प्राह? (वह जितना खोदता, उतना क्या देखकर बोला?)
3. अधोलिखित क्रियापदानां स्ववाक्येषु संस्कृते प्रयोगं कुरुत- (निम्नलिखित क्रिया-पदों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए)
- गच्छामः = वयं गृहं गच्छामः। (हम घर जाते हैं।)
- अभिहितम = गुरुणा सर्वं अभिहितम्। (गुरु ने सब कुछ बताया।)
- प्राक् = प्राक् सूर्योदयात् स्नानं करोमि। (सूर्योदय से पहले मैं स्नान करता हूँ।)
- तिष्ठसि = त्वं विद्यालये कदा तिष्ठसि? (तुम स्कूल में कब रहते हो?)
- उक्त्वा = सः सत्यं उक्त्वा निःशब्दः अभवत्। (उसने सच बोलकर चुप हो गया।)
4. कोष्ठान्तर्गतानां शब्दानां साहाय्येन रिक्त स्थानानि पूरयत- (कोष्ठक में दिए शब्दों की सहायता से रिक्त स्थान भरिए)
(प्रदेशं, नाहमग्र, वेत्सि, रत्नानि, स्वर्णम्)
(क) सोऽब्रवीत्- यान्तु भवन्तः ………. यास्मि।
उत्तर: नाहमग्रे (मैं आगे नहीं)
(ख) स प्राह- ‘मूढ! न किञ्चिद् ……….।
उत्तर: वेत्सि (जानता)
(ग) अथासौ यावन्तं ………. खनति तावत्ताम्रमयी भूमिः।
उत्तर: प्रदेशं (स्थान)
(घ) तृतीयः यथेच्छया ………. गृहीत्वा निवृत्तः।
उत्तर: स्वर्णम् (सोना)
(ङ) नूनम् अत:परं ………. भविष्यन्ति।
उत्तर: रत्नानि (रत्न)
5. रेखाङ्कितपदेषु प्रयुक्तां विभक्तिं लिखत- (रेखांकित शब्दों में प्रयुक्त विभक्ति लिखिए)
(क) भो मूढ! किम् अनेन क्रियते? (अरे मूर्ख! इससे क्या किया जाता है?)
उत्तर: तृतीया-एकवचन (तृतीया-एकवचन)
(ख) रामस्य भ्राता कुत्र गतः? (राम का भाई कहाँ गया?)
उत्तर: षष्ठी-एकवचन (षष्ठी-एकवचन)
(ग) मयं फलं रोचते। (मुझे फल अच्छा लगता है।)
उत्तर: चतुर्थी-एकवचन (चतुर्थी-एकवचन)
(घ) सः गृहात् बहिः अगच्छत्। (वह घर से बाहर गया।)
उत्तर: पञ्चमी-एकवचन (पञ्चमी-एकवचन)
(ङ) एकस्मिन् नगरे एकः नृपः आसीत्। (एक नगर में एक राजा था।)
उत्तर: सप्तमी-एकवचन (सप्तमी-एकवचन)
प्रश्न और उत्तर
1. प्रश्न: भैरवानन्द और उनके साथियों ने क्या किया जब उन्होंने सिद्धवर्तिचतुष्टय प्राप्त किया?
उत्तर: भैरवानन्द और उनके साथी चार सिद्ध वस्तुएँ प्राप्त करके उन्हें हिमालय की ओर ले जाने की योजना बनाने लगे।
2. प्रश्न: तेषां गच्छतानेकतमस्य हस्तात् वर्तिः निषपात का क्या अर्थ है?
उत्तर:यात्रा के दौरान उनके किसी एक व्यक्ति का कार्य गिर गया, यानी उसकी गति में अवरोध उत्पन्न हुआ।
3. प्रश्न: पिपासाकूलितः का अर्थ क्या है?
उत्तर: पिपासाकूलितः का अर्थ है वह जो प्यास से पीड़ित हो या जिसे प्यास लगी हो।
4. प्रश्न: अभासी यावन्तं प्रदेशं खनति का क्या तात्पर्य है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि जितनी मेहनत या प्रयास व्यक्ति करता है, उतना ही फल या परिणाम उसे मिलता है।
5. प्रश्न: निधानमन्दिर किसके लिए उपयोग किया गया है?
उत्तर: निधानमन्दिर वह स्थान है जहाँ कीमती वस्तुएँ, खजाने या संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए रखा जाता है।
6. प्रश्न: सोऽब्रवीत् चान्तु भवन्तः नाहनां यास्यामि का भावार्थ क्या है?
उत्तर: सोऽब्रवीत् चान्तु भवन्तः नाहनां यास्यामि का भावार्थ क्या है?
7. प्रश्न: सिद्धवर्तिचतुष्टय क्या हैं?
उत्तर: सिद्धवर्तिचतुष्टय वे चार महत्वपूर्ण सिद्धियाँ हैं जो साधक या प्रयासरत व्यक्ति को मिलती हैं और उसके लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करती हैं।
8. प्रश्न: अभिहितम् का अर्थ क्या है?
उत्तर: अभिहितम् का मतलब है ‘जो बताया गया हो’, ‘जिसका उल्लेख किया गया हो’ या ‘जिसे निर्दिष्ट किया गया हो’।
9. प्रश्न: स्वेच्छया ताम्रम् का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका मतलब है कि उसने अपने मन की इच्छा से तांबे को स्वीकार किया।
10. प्रश्न: अपरि अकथयताम् आषाको मास्यावः का भावार्थ क्या है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि उन्होंने अपनी आशा या मनसा को व्यक्त नहीं किया।
11. प्रश्न: धनाप्तिर्मृत्युर्वा भविष्यतीति का अर्थ बताइए।
उत्तर: इसका मतलब है कि भविष्य में या तो धन मिलेगा या मृत्यु का सामना होगा।
12. प्रश्न: सोऽप्यदृष्टाख्यः का अर्थ क्या है?
उत्तर: इसका मतलब है कि वह भी अदृष्ट नाम का व्यक्ति है, यानी उसे कोई पूर्वज्ञान या दर्शन नहीं मिला।
13. प्रश्न: कश्चिद्धनोपायः का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका मतलब है कि किसी ने धन कमाने या प्राप्त करने का तरीका अपनाया।
14. प्रश्न: वयमपि अतिसाहसिकाः का भावार्थ क्या है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि “हम भी बहुत साहसी हैं।”
15. प्रश्न: समुद्रादन्यः का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका मतलब है “समुद्र के अलावा कोई और” या “समुद्र से अलग कोई स्थान से।”
16. प्रश्न: अभिमतमिद्धिः का तात्पर्य क्या है?
उत्तर: इसका मतलब है “इच्छित फल की प्राप्ति” या “लक्ष्य की सिद्धि।”
17. प्रश्न: ततस्तेनाभिहितम् अहो का भावार्थ क्या है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि “फिर उसे वही बताया गया।”
18. प्रश्न: गच्छन्नेकाकी का अर्थ बताइए।
उत्तर: इसका मतलब है “एकान्त में चलना” या “अकेले यात्रा करना।”
19. प्रश्न: मार्गच्युतः किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर: इसका मतलब है “रास्ते से भटका हुआ”, यानी वह व्यक्ति सही मार्ग नहीं पकड़ सका।
20. प्रश्न: अतिलोभो न कर्तव्यो लोभ नैव परित्यजेत् का संदेश क्या है?
उत्तर: : इसका संदेश है कि अत्यधिक लोभ नहीं करना चाहिए, लेकिन साधारण लोभ त्यागना भी उचित नहीं है। अधिक लोभ व्यक्ति को भ्रमित और असमझदार बना देता है।
Answer by Mrinmoee