Chapter 3
1. संस्कृत भाषया उत्तराणि वदत- (संस्कृत में उत्तर दीजिए)
(क) केनस्वित् आवृतो लोक (दुनिया को क्या ढकता है)
उत्तर: अज्ञानेन आवृतो लोकः। (दुनिया अज्ञान से ढकी हुई है।)
(ख) किं ज्ञानम् (ज्ञान क्या है)
उत्तर: तत्त्वार्थसम्बोधः ज्ञानम्। (ज्ञान सत्य को समझना है।)
(ग) पुंसां दुर्जयः शत्रुः कः (मनुष्य का कौन सा शत्रु अजेय है)
उत्तर: क्रोधः पुंसां दुर्जयः शत्रुः। (क्रोध मनुष्य का अजेय शत्रु है।)
(घ) कः अनन्तक व्याधिः (कौन सा रोग अंतहीन है)
उत्तर: लोभः अनन्तकः व्याधिः। (लोभ अंतहीन रोग है।)
(ङ) कः साधुः (साधु कौन है)
उत्तर: सर्वभूतहितः साधुः। (जो सभी प्राणियों के हित की सोचता है, वह साधु है।)
(च) कुतः मित्राणि त्यजति (कोई मित्रों को क्यों छोड़ता है)
उत्तर: लोभात् मित्राणि त्यजति। (लोभ के कारण मित्रों को छोड़ता है।)
(छ) केन स्वर्गं न गच्छति (किसके कारण स्वर्ग नहीं जाता)
उत्तर: सङ्गात् स्वर्गं न गच्छति। (बुरे संगति के कारण स्वर्ग नहीं जाता।)
(ज) का दया (दया क्या है)
उत्तर: सर्वसुखैषित्वं दया। (सभी के सुख की इच्छा करना दया है।)
(झ) किं ज्ञानम् (ज्ञान क्या है)
उत्तर: तत्त्वार्थसम्बोधः ज्ञानम्। (ज्ञान सत्य को समझना है।)
(ज) किं स्थैर्यम् (स्थिरता क्या है)
उत्तर: स्वधर्मे स्थिरता स्थैर्यम्। (अपने धर्म में दृढ़ता ही स्थिरता है।)
अभ्यासः (लिखितः)
1. एकवाक्येन संस्कृतभाषया उत्तराणि लिखत- (एक वाक्य में संस्कृत में उत्तर लिखिए)
(क) किं धैर्यमुदाहृतम (धैर्य क्या कहा गया है)
उत्तर: इन्द्रियनिग्रहः धैर्यम् अस्ति। (इंद्रियों पर नियंत्रण धैर्य है।)
(ख) स्नानं किमुच्यते (स्नान क्या कहलाता है)
उत्तर: मनोमलत्यागः स्नानम् उच्यते। (मन की गंदगी को त्यागना स्नान कहलाता है।)
(ग) भूतानां लक्षणं किमस्ति (प्राणियों का लक्षण क्या है)
उत्तर: भूतानां रक्षणं दानम् अस्ति। (प्राणियों की रक्षा करना दान है।)
(घ) कः पुमान् पण्डितः ज्ञेयः (कौन पुरुष पंडित माना जाता है)
उत्तर: धर्मज्ञः पुमान् पण्डितः ज्ञेयः। (धर्म को जानने वाला पुरुष पंडित माना जाता है।)
(ङ) संसारहेतुः कोऽस्ति (संसार का कारण क्या है)
उत्तर: कामः संसारहेतुः अस्ति। (कामना संसार का कारण है।)
2. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखित वाक्येषु रेखाङ्गितपदानि आधृत्य प्रश्नान् विरचयत- (उदाहरण के अनुसार नीचे दिए वाक्यों में रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाइए)
उदाहरण: सूर्योदयेन अन्धकारः नश्यति।
प्रश्न: केन अन्धकारः नश्यति (किसके द्वारा अंधकार नष्ट होता है)
(क) तमसा लोक न प्रकाशते। (अंधेरे से दुनिया प्रकाशित नहीं होती।)
उत्तर: केन लोकः न प्रकाशते (किसके कारण दुनिया प्रकाशित नहीं होती)
(ख) ज्ञानं तत्त्वार्थसम्बोधः। (ज्ञान सत्य को समझना है।)
उत्तर: किं ज्ञानम् (ज्ञान क्या है)
(ग) क्रोधः सुदुर्जयः शत्रुः। (क्रोध अजेय शत्रु है।)
उत्तर: कः सुदुर्जयः शत्रुः (कौन सा शत्रु अजेय है)
(घ) अनन्तकः व्याधिः लोभः। (लोभ अंतहीन रोग है।)
उत्तर: कीदृशः व्याधिः लोभः (लोभ कैसा रोग है)
(ङ) स्वधर्मे स्थिरता स्थैर्यम्। (अपने धर्म में दृढ़ता स्थिरता है।)
उत्तर: कस्मिन् स्थिरता स्थैर्यम् (किसमें दृढ़ता स्थिरता है)
3. अधोलिखित वाक्येषु कोष्ठात् समुचितं पदमादाय रिक्तस्थानानि पूरयत- (नीचे दिए वाक्यों में कोष्ठक से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थान भरिए)
(क) लोकः …….आवृतः। (अज्ञानेन, ज्ञानेन)
उत्तर: अज्ञानेन (दुनिया अज्ञान से ढकी है।)
(ख) …… सुदुर्जयः शत्रुः (लोभः, क्रोधः)
उत्तर: क्रोधः (क्रोध अजेय शत्रु है।)
(ग) अनन्तकः व्याधिः …….। (लोभः, क्रोधः)
उत्तर: लोभः (अंतहीन रोग लोभ है।)
(घ) साधु ……… स्मृतः। (सदयः, निर्दयः)
उत्तर: सदयः (साधु दयालु माना जाता है।)
(ङ) इन्द्रियनिग्रहः ……। (अधैर्यम्, धैर्यम्)
उत्तर: धैर्यम् (इंद्रियों पर नियंत्रण धैर्य है।)
4. संधिविच्छेदं कुरुत- (संधि-विच्छेद कीजिए)
उत्तर:
(क) केनस्विदावृतः = केनस्वित् + आवृतः
(ख) केनस्विन्न = केनस्वित् + न
(ग) सुखैषित्वम् = सुख + एषित्वम्
(घ) व्याधिरनन्तकः = व्याधिः + अनन्तकः
(ङ) प्रोच्यते = प्र + उच्यते
1. प्रश्न: केनस्थितः आश्रित्तो लोकः?
उत्तर: लोक अज्ञान से ढका हुआ है। अर्थात्, लोग अपने अज्ञान के कारण वास्तविकता को नहीं देख पाते और उनके जीवन में अंधकार और भ्रम का वास होता है।
2. प्रश्न: किं ज्ञानम्?
उत्तर: ज्ञान का मतलब है तत्त्व और सत्य का बोध। यानी असली ज्ञान वह है जो व्यक्ति को धर्म, जीवन के उद्देश्य और वास्तविकता को समझने में सक्षम बनाता है, न कि केवल किताबों या शब्दों तक सीमित।
3. प्रश्न: पुंसां दुर्जयः शत्रुः कः?
उत्तर: किसी व्यक्ति का दुर्जय शत्रु वह है जो अत्यधिक लोभी होता है। ऐसा व्यक्ति अपने स्वार्थ में अंधा हो जाता है और दूसरों के लिए हानिकारक बन सकता है।
4. प्रश्न: कः अनन्तकः व्याधिः?
उत्तर: अनन्तक व्याधि वे हैं जो अनंत कष्ट और दुःख लाती हैं, जैसे क्रोध और रोग। ये न केवल शरीर को, बल्कि मन और चेतना को भी हानि पहुँचाते हैं।
5. प्रश्न: कः साधुः?
उत्तर: साधु वह व्यक्ति है जिसे निर्दय और सर्वभूतहितैषी माना गया है। वह दयालु, संयमी और सभी जीवों के कल्याण की चिंता करने वाला होता है तथा लोभ, क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाओं से मुक्त रहता है।
6. प्रश्न: कुतः मित्राणि त्यजति?
उत्तर: व्यक्ति अपने मित्रों को त्यागता है अत्यधिक लोभ के कारण। यानी जब कोई बहुत स्वार्थी और लोभी हो जाता है, तो वह अपने मित्रों के साथ संबंध नहीं निभा पाता।
7. प्रश्न: केन स्वर्ग न गच्छति?
उत्तर: वह व्यक्ति स्वर्ग नहीं प्राप्त करता जो अपने मित्रों को छोड़ देता है। अर्थात्, केवल स्वार्थ की वजह से सामाजिक और मित्र संबंधों को त्यागना स्वर्ग की प्राप्ति में अवरोधक है।
8. प्रश्न: का दया?
उत्तर: दया वह गुण है जिसके द्वारा व्यक्ति सभी प्राणियों के हित
9. प्रश्न: किं ज्ञानम्?
उत्तर:ज्ञान वह है जो व्यक्ति को धर्म और तत्त्व के वास्तविक अर्थ को समझने में सक्षम बनाता है। यह केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन में सही निर्णय लेने और धर्म का पालन करने की क्षमता देता है।
10. प्रश्न: किं स्थैर्यम्?
उत्तर: स्थैर्यम् का अर्थ है अपने स्वधर्म और कर्तव्यों में अडिग रहना। यानी व्यक्ति को अपने धर्म और नैतिक दायित्वों में दृढ़ता बनाए रखनी चाहिए और सही मार्ग पर स्थिर रहना चाहिए।
11. प्रश्न: कि धैर्यमुदाहतम्?
उत्तर: धैर्य का वास्तविक अर्थ है साहस और इन्द्रियों पर नियंत्रण। अर्थात्, व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों में भी शांत, संयमी और निडर बने रहना चाहिए।
12. प्रश्न: स्नानं किमुच्यते?
उत्तर: स्नान का अर्थ है मन और हृदय की अशुद्धियों का त्याग। यानी यह केवल शरीर को साफ करने तक सीमित नहीं है, बल्कि मन और भावनाओं को भी शुद्ध करना आवश्यक है।
13. प्रश्न: भूतानां लक्षण किमस्ति?
उत्तर: भूतानां लक्षण का अर्थ है सभी जीवों की रक्षा करना। यानी व्यक्ति को दया और करुणा के साथ सभी प्राणियों के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।
14. प्रश्न: कः पुमान् पण्डितः ज्ञेयः?
उत्तर:पण्डित वह पुरुष है जो धर्म और तत्त्व का ज्ञान रखता है। वह नास्तिक और मूर्खों से अलग होता है और समाज में सही मार्गदर्शन प्रदान करता है।
15. प्रश्न: संसारहेतुः कोऽस्ति?
उत्तर: संसार का कारण काम और इच्छाएँ हैं। यानि व्यक्ति की वासनाएँ ही उसे जन्म-मरण और संसार के बंधनों में बांधती हैं, इसलिए उन पर नियंत्रण आवश्यक है।
16. प्रश्न: अतिलोभो न कर्तव्यो लोभ नैव परित्यजेत् का संदेश क्या है?
उत्तर: इसका संदेश है कि अत्यधिक लोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि यह व्यक्ति को भ्रमित और असमझदार बना देता है। फिर भी सामान्य और संतुलित लोभ, जो जीवन में उपयोगी है, उसे पूरी तरह नहीं छोड़ना चाहिए।
17. प्रश्न: क्रोध, सुदुर्जयः शत्रुः का अर्थ क्या है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि क्रोध और अत्यधिक लोभ व्यक्ति को दूसरों के लिए हानिकारक बना देते हैं। युधिष्ठिर के अनुसार, क्रोध और लोभ नैतिक पतन और शत्रुता के मुख्य कारण हैं।
18. प्रश्न: स्वधर्मे स्थिरता का महत्व क्या है?
उत्तर: स्वधर्म में स्थिर रहने का अर्थ है अपने कर्तव्यों और नैतिक मूल्यों के प्रति अडिग रहना। यह व्यक्ति को जीवन में संतुलन बनाए रखने, सही निर्णय लेने और स्थायी सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
19. प्रश्न: दया और करुणा का समाज में क्या महत्व है?
उत्तर:दया और करुणा समाज में आपसी सहयोग, मित्रता और विश्वास को बढ़ावा देती हैं। जो व्यक्ति सभी प्राणियों के कल्याण की इच्छा रखता है, उसे समाज में आदर और मान्यता मिलती है।
20. प्रश्न: युधिष्ठिर के अनुसार सच्चा ज्ञान और स्थैर्य कैसे प्राप्त होते हैं?
उत्तर:युधिष्ठिर के अनुसार, सच्चा ज्ञान तत्त्व और धर्म का वास्तविक बोध है, और स्थैर्य अपने स्वधर्म और संयम में स्थिर रहने से आता है। इसके लिए व्यक्ति को इन्द्रियों पर नियंत्रण, मन की शुद्धि और सभी जीवों के कल्याण की कामना रखनी चाहिए।