Chapter 5

                                                संस्कृतस्य महिमा


40 प्रश्न और उत्तर (लंबा उत्तर सहित)

1-10

  1. प्रश्न: लकार कितने प्रकार के होते हैं?
    उत्तर: 
    संस्कृत में कुल दस प्रकार के लकार होते हैं। लकार क्रिया के समय (काल) और रूप को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए –

    • लट् → वर्तमान काल,

    • लङ् → भूतकाल,

    • लृट् → भविष्यत् काल,

    • लोट् → आज्ञा,

    • लिङ् → संभाव्यता आदि।

    इन लकारों का सही उपयोग वाक्य में क्रिया के समय और अर्थ को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के लिए जरूरी है।

  1. प्रश्न: आत्मनेपदी धातु का उदाहरण दीजिए और उसका अर्थ समझाइए।
    उत्तर: 
    आत्मनेपदी धातु वह धातु है जिससे होने वाली क्रिया का फल स्वयं करने वाले को मिलता है। उदाहरण के लिए, "लभते" – इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति स्वयं कुछ प्राप्त करता है। ऐसे धातु का प्रयोग मुख्य रूप से उन क्रियाओं में होता है जहाँ व्यक्ति स्वयं लाभान्वित होता है और दूसरों के लिए नहीं करता।

  2. प्रश्न: परस्मैपदी धातु का उदाहरण दीजिए और उसका अर्थ बताइए।
    उत्तर: 
    परस्मैपदी धातु वह धातु है, जिसका क्रियाफल किसी और को प्राप्त होता है, न कि क्रिया करने वाले को। उदाहरण के लिए, "पठति" – इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति किसी को शिक्षा देता है या किसी विषय का अध्ययन कराता है। यानी इस तरह की धातु में क्रिया का लाभ स्वयं नहीं, बल्कि दूसरों के लिए होता है।

  3. प्रश्न: उभयपदी धातु क्या है?
    उत्तर: 
    उभयपदी धातु वह धातु है जिसे कभी आत्मनेपदी (स्वयं के लिए क्रिया करने वाली) और कभी परस्मैपदी (दूसरों के लिए क्रिया करने वाली) रूप में प्रयोग किया जा सकता है। अर्थात्, इसका क्रियाफल कभी कर्ता स्वयं को लाभ पहुंचाता है और कभी किसी अन्य को। यह धातु संस्कृत भाषा की बहुमुखी क्षमता को दिखाती है।

  4. प्रश्न: संस्कृत को देवभाषा क्यों कहा जाता है?
    उत्तर: 
    संस्कृत को देवभाषा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अत्यंत शुद्ध, नियमबद्ध और सूक्ष्म भाषा है। इसी भाषा में ऋषियों ने वेद, उपनिषद, पुराण और अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। यह भाषा ज्ञान, धर्म और संस्कृति का अद्भुत स्रोत मानी जाती है और इसे ईश्वर की वाणी के समान सम्मान प्राप्त है।

  5. प्रश्न: संस्कृत में कितने पुराण हैं और उनका महत्व क्या है?
    उत्तर: 
    संस्कृत में कुल अठारह (18) प्रमुख पुराण हैं। ये पुराण धार्मिक, नैतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों का विस्तृत वर्णन करते हैं। इनमें देवताओं और देवी-देवियों की कथाएँ, जीवन के आदर्श, मानव धर्म के नियम और संस्कृति का ज्ञान समाहित है, जिससे समाज और व्यक्तियों को नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन मिलता है।

  6. प्रश्न: 'संगीतरत्नाकर' किस शास्त्र का ग्रंथ है और इसका महत्व क्या है?
    उत्तर: 
    'संगीतरत्नाकर' भारतीय संगीत शास्त्र का प्रमुख ग्रंथ है। इसमें रागों, तालों और गायन-वादन की विधियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ के माध्यम से संगीत के सिद्धांतों को समझना और उनका व्यावहारिक उपयोग करना संभव होता है, इसलिए यह संगीतविदों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

  7. प्रश्न: आर्यभट किस शास्त्र के ग्रंथकार थे और उनका योगदान क्या है?
    उत्तर: 
    आर्यभट गणित और खगोल शास्त्र के महान विद्वान थे। उनके प्रमुख ग्रंथ 'आर्यभटीयम्' में गणितीय सूत्र, शून्य और दशमलव पद्धति के सिद्धांत, तथा खगोलशास्त्र में ग्रहों और नक्षत्रों की गति का विवेचन किया गया है। उनके इन योगदानों ने भारतीय और विश्व विज्ञान को महत्वपूर्ण दिशा दी।

  8. प्रश्न: संस्कृत भाषा किसे कहते हैं और इसकी विशेषताएँ क्या हैं?
    उत्तर: 
    संस्कृत वह प्राचीन भाषा है जो अत्यंत व्यवस्थित, स्पष्ट और वैज्ञानिक है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं – सही व्याकरण, सुव्यवस्थित शब्द निर्माण, ध्वनि-संयोजन में शुद्धता और ज्ञान व्यक्त करने की समृद्ध क्षमता। संस्कृत केवल धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथों की भाषा नहीं, बल्कि गणित, विज्ञान और दार्शनिक विचारों को व्यक्त करने में भी सक्षम है।

  9. प्रश्न: संस्कृत के महत्त्व को विस्तार से समझाइए।
    उत्तर: 
    संस्कृत का महत्त्व बहुआयामी है। यह भाषा न केवल वेद, उपनिषद और पुराणों जैसी धार्मिक तथा साहित्यिक कृतियों की वाहक है, बल्कि गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, योग और दर्शन के क्षेत्र में भी इसका विशेष योगदान रहा है। संस्कृत का अध्ययन व्यक्ति के ज्ञान, संस्कृति और परंपरा की गहरी समझ प्रदान करता है। साथ ही, यह भाषा मन की एकाग्रता, तार्किक सोच और विश्लेषण क्षमता को भी विकसित करती है।


11-20

  1. प्रश्न: 'नेयम्' का सन्धिविच्छेद कीजिए और अर्थ बताइए।
    उत्तर: 
    'नेयम्' का सन्धिविच्छेद है – न + अयम्। इसका अर्थ है – जिसे अपनाना या अनुसरण करना उचित हो। यह शब्द प्रायः नियम, नीति या सही मार्गदर्शन के संदर्भ में उपयोग किया जाता है।

  1. प्रश्न: 'अत्रैव' का सन्धिविच्छेद और अर्थ लिखिए।
    उत्तर: 
    'अत्रैव' का सन्धिविच्छेद है – अत्र + एव। इसका अर्थ है – यहीं पर या इस स्थान पर ही। यह शब्द विशेष रूप से किसी कार्य या घटना के स्थान को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है।

  2. प्रश्न: 'ज्ञानहीनाः' का अर्थ क्या है?
    उत्तर: 
    'ज्ञानहीनाः' का अर्थ है – जो अज्ञानी हैं या जिनके पास पर्याप्त ज्ञान नहीं है। यह शब्द उन लोगों के लिए उपयोग किया जाता है जिन्होंने अध्ययन, अनुभव या शिक्षा से ज्ञान अर्जित नहीं किया है।

  3. प्रश्न: 'विधिरपि' का अर्थ और प्रयोग समझाइए।
    उत्तर: 
    'विधिरपि' का अर्थ है – नियम या कानून भी। इसका प्रयोग तब किया जाता है जब किसी कार्य या घटना में अतिरिक्त नियम, कारण या शर्त को जोड़कर इसे स्पष्ट करना हो।

  4. प्रश्न: 'जीवनम्' का अर्थ और महत्व बताइए।
    उत्तर: 
    'जीवनम्' का अर्थ है – जीवन या प्राणीत्व। यह शब्द व्यक्ति के अस्तित्व, अनुभव और जीवन की गति को व्यक्त करता है। संस्कृत में जीवन का अध्ययन धर्म, नैतिकता और दर्शन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह मानव के उद्देश्य और कर्तव्यों की समझ प्रदान करता है।

  5. प्रश्न: 'पिपासाकूलितः' का अर्थ लिखिए और प्रयोग बताइए।
    उत्तर: 
    'पिपासाकूलितः' का अर्थ है – प्यास से ग्रस्त या प्यासा। यह शब्द किसी व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकता या प्राकृतिक स्थिति को व्यक्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। उदाहरण: "सः पिपासाकूलितः जलं पीतवान्।"

  6. प्रश्न: पाणिनि का प्रसिद्ध ग्रंथ कौन सा है और उसका महत्व क्या है?
    उत्तर: 
    पाणिनि का प्रमुख ग्रंथ 'अष्टाध्यायी' है। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा के सभी व्याकरणिक नियमों का संपूर्ण वर्णन करता है और भाषा की संरचना तथा शब्द निर्माण की प्रक्रिया को समझने के लिए आधार प्रदान करता है। इसलिए इसे संस्कृत व्याकरण का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

  7. प्रश्न: 'सर्वज्ञान' किसे कहते हैं और इसका महत्व क्या है?
    उत्तर: 
    'सर्वज्ञान' का अर्थ है – वह ज्ञान जो सभी क्षेत्रों और विषयों में पूर्ण दक्षता प्रदर्शित करता हो। संस्कृत में इसे महत्वपूर्ण इसलिए माना जाता है क्योंकि शिक्षा का सर्वोच्च लक्ष्य समग्र और सर्वांगीण ज्ञान प्राप्त करना तथा उसे सही रूप में उपयोग करना है।

  8. प्रश्न: संस्कृत किस प्रकार की भाषा है और इसकी विशेषताएँ बताइए।
    उत्तर:
    संस्कृत एक व्यवस्थित, वैज्ञानिक और साहित्यिक भाषा है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं – स्पष्ट और कठोर व्याकरण, धातु और लकारों का सुव्यवस्थित स्वरूप, शब्दों के अर्थ और रूप का सटीक नियमन, और ज्ञान, विज्ञान तथा साहित्य के क्षेत्र में इसका उपयोग।

Answer by Mrinmoee