Chapter 7

                                                        ज्ञानं भारः क्रियां विना


1. प्रश्न: ‘वरं बुद्धिर्न सा विद्या’ कथन का क्या अर्थ है?

उत्तर: इसका तात्पर्य यह है कि ज्ञान प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, किन्तु उससे भी अधिक मूल्यवान है वह बुद्धि जो उस ज्ञान को समझकर सही तरीके से लागू कर सके। विद्या अकेले उपयोगी नहीं होती यदि बुद्धि का मार्गदर्शन न हो, इसलिए बुद्धि को सर्वोच्च माना गया है।

2. प्रश्न: बुद्धिहीन व्यक्ति का जीवन कैसा होता है?

उत्तर: बुद्धिहीन व्यक्ति अपने इन्द्रिय और मन के अधीन नहीं रहता। वह किसी भी परिस्थिति में विवेकपूर्ण निर्णय नहीं ले पाता, उसके ज्ञान और विद्या का उपयोग व्यर्थ होता है, और जीवन में अस्थिरता और असुरक्षा रहती है। ऐसे व्यक्ति का व्यवहार समाज और स्वयं के लिए हानिकारक बन सकता है।

3. प्रश्न: ‘अयं निजः परो वेति’ कथन का अर्थ क्या है?

उत्तर: इस कथन का अर्थ है कि संकुचित विचार रखने वाले लोग हर चीज़ को केवल अपने और पराए के रूप में देखकर सीमित दृष्टि अपनाते हैं। उनके मन में उदारता और व्यापक सोच का अभाव होता है, जबकि विवेकवान व्यक्ति सबको समान दृष्टि से देखता है और समग्र हित को महत्व देता है।

4. प्रश्न: उदार और परदर्शी सोच का महत्व क्या है?

उत्तर:उदार और दूरदर्शी विचार रखने वाला व्यक्ति समाज और प्रकृति को अपने परिवार के समान मानकर कार्य करता है। वह छोटी सोच में नहीं फँसता, व्यापक दृष्टिकोण अपनाता है और जीवन में संतुलित, न्यायपूर्ण एवं सही निर्णय लेने में सक्षम होता है।

5. प्रश्न: हाथी के स्नान का उदाहरण किस लिए प्रस्तुत किया गया है?

उत्तर: हाथी का स्नान यह समझाने के लिए है कि केवल बाहरी शिक्षा या विद्या देना पर्याप्त नहीं है। यदि किसी व्यक्ति के मन और इन्द्रिय वश में नहीं हैं, तो ज्ञान भी व्यर्थ रहेगा, ठीक वैसे ही जैसे हाथी स्नान के बाद भी धूल में लोटता है और साफ़ नहीं रहता।

6. प्रश्न: ज्ञान और व्यवहार में अंतर क्या है?

उत्तर: ज्ञान वह है जिसे व्यक्ति अध्ययन और सीखने से प्राप्त करता है, जबकि व्यवहार वह है जिसे व्यक्ति अपने जीवन में लागू करता है। यदि व्यक्ति के पास ज्ञान है लेकिन वह विवेक और बुद्धि से उसे प्रयोग नहीं करता, तो वह व्यर्थ है।

7. प्रश्न: ‘अवशेन्द्रियचित्तानाम्’ का क्या अर्थ है?

उत्तर: ‘अवशेन्द्रियचित्तानाम्’ का अर्थ है ऐसे व्यक्ति जिनके इन्द्रिय और मन अपने नियंत्रण में नहीं हैं। वे अपनी इच्छाओं और वासनाओं के अनुसार चलते हैं, इसलिए उनका ज्ञान और बुद्धि सही दिशा में काम नहीं करती और वे सही निर्णय नहीं ले पाते।

8. प्रश्न: हाथी और अवशेन्द्रियचित्तानां का क्या संबंध है?

उत्तर:हाथी स्नान के बाद भी धूल में लोट जाता है, ठीक उसी प्रकार अवशेन्द्रियचित्तानां लोगों का ज्ञान और शिक्षा भी तब तक व्यर्थ रहती है जब तक उनके मन और इन्द्रिय अनुशासित नहीं होते। यह उदाहरण यह दर्शाता है कि अनुशासन और आत्म-नियंत्रण के बिना ज्ञान का सही उपयोग संभव नहीं।

9. प्रश्न: ‘दुर्भगाभरणप्रायः’ का अर्थ क्या है?

उत्तर: इसका आशय है कि जिन लोगों के मन और इन्द्रिय अपने वश में नहीं हैं, उनके ऊपर ज्ञान और विद्या लादना उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे कुरूप वस्तु पर आभूषण सजाया जाए; इसका कोई सही प्रभाव या उपयोग नहीं होता।

10. प्रश्न: ज्ञान का सही उपयोग कैसे किया जा सकता है?

उत्तर: ज्ञान तभी सार्थक होता है जब व्यक्ति अपने मन और इन्द्रियों को नियंत्रित कर सके, विवेकपूर्वक सोचकर निर्णय ले और जो कुछ सीखा है उसे जीवन में व्यवहार में उतारे।

11. प्रश्न: बुद्धिमान और शास्त्रपारंगत में अंतर क्या है?

उत्तर: बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो अपने ज्ञान को व्यावहारिक रूप से समझदारी और विवेक के साथ लागू करता है, जबकि शास्त्रपारंगत केवल शास्त्रों में निपुण होता है, परंतु उसका अनुशासन और नियंत्रण कमजोर हो सकता है, जिससे वह वास्तविक जीवन में सही निर्णय नहीं ले पाता।

12. प्रश्न: ‘शास्त्रपराङ्मुखः’ का अर्थ क्या है?

उत्तर: शास्त्रपराङ्मुखः वह व्यक्ति है जो शास्त्रों का अध्ययन तो करता है, परन्तु उनके अनुसार आचरण नहीं करता और ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग नहीं करता; इस कारण उसका अध्ययन और विद्या जीवन में व्यर्थ सिद्ध होती है।

13. प्रश्न: व्यवहारिक बुद्धि क्यों आवश्यक है?

उत्तर: व्यवहारिक बुद्धि इसलिए आवश्यक है क्योंकि केवल शास्त्रों या पुस्तकों का ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं होता; व्यक्ति को सीख को सही दिशा में लागू करना, विवेकपूर्ण निर्णय लेना और अपने तथा समाज के कल्याण में उसका उपयोग करना आता है।

14. प्रश्न: ‘देशान्तरम्’ का प्रयोग क्यों किया गया है?

उत्तर: ‘देशान्तरम्’ का प्रयोग यह दर्शाने के लिए किया गया है कि व्यक्ति अपने लाभ, अध्ययन या अर्थोपार्जन हेतु अपने मूल स्थान से दूसरे देश या स्थान की ओर जाता है। यह उसकी सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत गतिविधियों की आवश्यकता और प्रयास को उजागर करता है।

15. प्रश्न: मित्रभाव का महत्व क्या है?

उत्तर: मित्रभाव का अर्थ है परस्पर सहयोग, समझ और अपनापन रखना। यह न केवल व्यक्तिगत संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि समाज में सौहार्द, सहकार्य और संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मित्रभाव से व्यक्ति अपनी और दूसरों की भलाई के लिए सही निर्णय ले पाता है।

16. प्रश्न: ज्ञान और बुद्धि में मुख्य अंतर क्या है?

उत्तर: ज्ञान वह सामग्री या सूचना है जिसे व्यक्ति अध्ययन या अनुभव से प्राप्त करता है, जबकि बुद्धि वह मानसिक क्षमता है जो उस ज्ञान का विवेकपूर्ण, व्यावहारिक और सही समय पर उपयोग करने में सहायक होती है। अर्थात्, ज्ञान सीखना है और बुद्धि उसे जीवन में कार्यान्वित करने की क्षमता।

17. प्रश्न: मानव जीवन में अनुशासन का क्या महत्व है?

उत्तर: अनुशासन व्यक्ति को अपने इन्द्रिय और मन को नियंत्रित रखने की क्षमता देता है। यह सुनिश्चित करता है कि ज्ञान और विद्या केवल संग्रहित न रहकर सही समय, स्थान और परिस्थिति में उपयोग हो, जिससे जीवन संतुलित, सुरक्षित और सफल बनता है।

18. प्रश्न: ‘कृतस्तावत्ते’ का क्या अर्थ है?

उत्तर: ‘कृतस्तावत्ते’ का तात्पर्य है कि प्रत्येक कार्य का फल उसके अनुसार ही प्राप्त होता है। यदि किसी ने ज्ञान, बुद्धि और प्रयास का सही उपयोग किया, तो उसे उचित परिणाम मिलता है, अन्यथा उसका प्रयास व्यर्थ जाता है।

19. प्रश्न: हाथी का उदाहरण जीवन में किस संदेश को दर्शाता है?

उत्तर: हाथी का उदाहरण यह सिखाता है कि केवल ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है; यदि व्यक्ति के इन्द्रिय और मन अनुशासित न हों, तो प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। ज्ञान और शिक्षा तभी उपयोगी और फलदायी होती हैं जब व्यक्ति उनका विवेकपूर्ण और संयमित उपयोग करे।

20. प्रश्न: ‘सजीवः’ का पाठ में क्या अर्थ है?

उत्तर: पाठ में ‘सजीवः’ का अर्थ है जीवित या जीवन के साथ उपस्थित। यह दर्शाता है कि किसी भी ज्ञान, शिक्षा या अनुभव का मूल्य तभी है जब वह व्यक्ति के जीवन में जीवंत रूप से अनुभव किया जाए और व्यवहार में लागू हो।

21. प्रश्न: लघुचेतसाम् का क्या अर्थ है?

उत्तर: लघुचेतसाम् का अर्थ है संकीर्ण सोच वाले या छोटे मन वाले व्यक्ति। ऐसे लोग ज्ञान और विद्या को प्राप्त तो कर लें, लेकिन उसका सही उपयोग नहीं कर पाते और जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में असमर्थ रहते हैं।

22. प्रश्न: उदार चरितानाम् का महत्व क्या है?

उत्तर: उदारचरितानाम् उन व्यक्तियों को कहा जाता है जिनका चरित्र व्यापक और परदर्शी है। ऐसे लोग अपने ज्ञान, बुद्धि और संसाधनों का उपयोग न केवल अपने लिए, बल्कि समाज और परिवार के भले के लिए करते हैं। उनके कार्यों से दूसरों को प्रेरणा मिलती है और समाज में संतुलन, सहयोग और न्याय कायम रहता है।

23. प्रश्न: अभिहितम् का अर्थ क्या है?

उत्तर: अभिहितम् का अर्थ है “जिसे स्पष्ट रूप से कहा या निर्दिष्ट किया गया हो।” इसका प्रयोग किसी आदेश, निर्देश, या मार्गदर्शन के सन्दर्भ में होता है, जैसे किसी गुरु द्वारा दी गई शिक्षा या किसी शास्त्र में उल्लिखित नियम को अभिहित कहा जा सकता है।

24. प्रश्न: आश्रितः का क्या अर्थ है?

उत्तर: आश्रितः का अर्थ है “जिस पर कोई निर्भर करता है” या “जो किसी अन्य के मार्गदर्शन या सहायता पर टिका हो।” पाठ में इसका उपयोग उस व्यक्ति के लिए किया गया है जो अपने ज्ञान, अनुभव या बुद्धिमान मार्गदर्शक पर भरोसा रखता है और उनके आधार पर अपने कार्य करता है।

25. प्रश्न: ‘वारितः’ का पाठ में क्या अर्थ है?

उत्तर:पाठ में ‘वारितः’ का अर्थ है “रोक दिया गया” या “नियंत्रित किया गया।” यह उन व्यक्तियों के लिए कहा गया है जिनके इन्द्रिय और मन पर नियंत्रण रखा गया है, ताकि वे अपने ज्ञान और बुद्धि का सही उपयोग कर सकें और असावधान निर्णय न लें।

 

26. प्रश्न: ‘अनुष्ठिते’ का प्रयोग क्यों किया गया है?

उत्तर: पाठ में ‘अनुष्ठिते’ का अर्थ है “सही प्रकार से किया गया कार्य” या “क्रियान्वित किया गया।” इसका उपयोग यह बताने के लिए किया गया है कि केवल ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है; उसे विवेक और अनुशासन के साथ व्यवहार में लागू करना आवश्यक है, तभी वह फलदायी होता है।

27. प्रश्न: व्यावहारिक ज्ञान का महत्व क्या है?

उत्तर: व्यावहारिक ज्ञान वह है जिसे व्यक्ति अपने जीवन में वास्तविक परिस्थितियों में लागू कर सके। केवल पुस्तकीय या शास्त्रीय ज्ञान पर्याप्त नहीं होता; जब ज्ञान को व्यवहार में सही समय और सही तरीके से उपयोग किया जाता है, तभी वह जीवन में फलदायी और समाज के लिए उपयोगी साबित होता है।

28. प्रश्न: ‘सिंहिनोत्थाय’ का क्या अर्थ है?

उत्तर: ‘सिंहिनोत्थाय’ का अर्थ है सिंह के उठने या जागने का समय। पाठ में इसे उपमा के रूप में उपयोग किया गया है, यह दर्शाने के लिए कि जैसे सिंह जागते ही सक्रिय और प्रभावशाली होता है, वैसे ही किसी कार्य या प्रयास का परिणाम तभी स्पष्ट और प्रभावी होता है जब व्यक्ति अपने मन और इन्द्रियों को सही दिशा में लगाता है।

29. प्रश्न: ज्ञान का मूल्य कैसे निर्धारित होता है?

उत्तर:ज्ञान का वास्तविक मूल्य तभी होता है जब इसे व्यवहार में सही रूप से लागू किया जाए। यदि व्यक्ति अपने मन और इन्द्रिय को नियंत्रित किए बिना केवल पुस्तक या शास्त्र ज्ञान रखता है, तो वह व्यर्थ है। मूल्यवान ज्ञान वही है जो जीवन में विवेकपूर्ण निर्णय, सहायक कार्य और समाज के कल्याण में योगदान दे।

30. प्रश्न: शास्त्रपारंगत व्यक्ति किस प्रकार समाज में योगदान करता है?

उत्तर: शास्त्रपारंगत व्यक्ति वह है जो शास्त्रों और ज्ञान में निपुण होता है, और अपने अध्ययन का व्यवहारिक उपयोग करके समाज में संतुलन, न्याय और कल्याण स्थापित करता है। वह न केवल व्यक्तिगत सफलता पाता है, बल्कि दूसरों के लिए मार्गदर्शन और उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।

31. प्रश्न: हाथी और कुरूप पर आभूषण की उपमा का संदेश क्या है?

उत्तर: इस उपमा का आशय यह है कि यदि व्यक्ति का मन और इन्द्रिय अनुशासनहीन हैं, तो उसके पास कितना भी ज्ञान, विद्या या पुरस्कार क्यों न हो, उसका प्रभाव और उपयोग व्यर्थ होता है, ठीक वैसे ही जैसे कुरूप वस्तु पर सुंदर आभूषण लाद देना व्यर्थ है।

32. प्रश्न: ‘अर्थोपार्जना’ का पाठ में क्या महत्व है?

उत्तर: अर्थोपार्जना का अर्थ है धन या साधन जुटाना। पाठ में यह दिखाया गया है कि धन अर्जन जीवन में आवश्यक है, लेकिन इसका सही और संतुलित उपयोग तभी मूल्यवान है जब व्यक्ति अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखता हो और नैतिकता के मार्ग का पालन करे।

33. प्रश्न: मित्र और सहयोग का महत्व क्यों है?

उत्तर: मित्र और सहयोग जीवन में संतुलन, सुरक्षा और सामूहिक सफलता के लिए आवश्यक हैं। अच्छे मित्र व्यक्ति को कठिन समय में सहारा देते हैं, अनुभव और ज्ञान साझा करते हैं, और सामाजिक एवं व्यक्तिगत विकास में मदद करते हैं।

34. प्रश्न: व्यक्ति को अपने इन्द्रिय और मन का नियंत्रण क्यों रखना चाहिए?

उत्तर: व्यक्ति को अपने इन्द्रिय और मन का नियंत्रण इसलिये रखना चाहिए ताकि वह अपने ज्ञान और विद्या को विवेकपूर्वक लागू कर सके। अनुशासित मन और इन्द्रिय जीवन में संतुलन, सफलता और समाज के कल्याण के लिए आवश्यक निर्णय लेने में मदद करते हैं।

35. प्रश्न: ‘कृतस्तावत्ते’ का संदेश क्या है?

उत्तर: ‘कृतस्तावत्ते’ यह बताता है कि किसी भी कार्य का परिणाम उसी अनुसार मिलता है जैसा प्रयास और बुद्धिपूर्वक किया गया कार्य होता है; अर्थात् सही प्रयास और अनुशासन के बिना कोई भी फल स्थायी या उपयोगी नहीं होता।

36. प्रश्न: ज्ञान का व्यर्थ होना किस कारण होता है?

उत्तर: ज्ञान तब व्यर्थ हो जाता है जब व्यक्ति अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं रखता; ऐसे में सीख और विद्या जीवन में लागू नहीं होती और प्रयासों का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलता।


Answer by Mrinmoee