Chapter 8
1. प्रश्न: प्रथम पद्य में अज्ञ व्यक्ति का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर: प्रथम पद्य में उन व्यक्तियों की आलोचना की गई है जो ज्ञान से वंचित हैं या जिनका ज्ञान अधूरा है। कहा गया है कि यदि किसी के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न ही धर्म का आचरण है, तो ऐसे लोग केवल रूप से मनुष्य कहलाते हैं। वास्तविकता में उनका आचरण पशुओं जैसा होता है। वे न अनुशासन को जानते हैं, न अनुभव से सीखते हैं, और न ही समाज के लिए किसी प्रकार से हितकारी सिद्ध होते हैं।
2. प्रश्न: ‘अज्ञः सुखमाराध्यः’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस वाक्य का आशय यह है कि अज्ञानी व्यक्ति के लिए वास्तविक सुख की प्राप्ति संभव नहीं होती। क्योंकि उसके पास न तो सही विचारशक्ति होती है और न ही विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता। फलस्वरूप वह सुख के साधनों को पाकर भी उसका लाभ नहीं उठा पाता। स्थायी और सच्चा सुख केवल वही व्यक्ति भोग सकता है जो ज्ञान, समझ और विवेक से संपन्न हो।
3. प्रश्न: अधजल गगरी छलकत जाय लोकोक्ति का क्या संदेश है?
उत्तर: इस लोकोक्ति का आशय है कि जिस प्रकार आधा भरा घड़ा हिलने पर बार-बार छलकता है, उसी प्रकार जिन व्यक्तियों के पास अधूरा ज्ञान होता है, वे हर जगह अपनी अल्प जानकारी का दिखावा करते हैं। लेकिन यह दिखावा उन्हें कोई स्थायी लाभ नहीं पहुँचाता। वास्तव में सच्चा और गहरा ज्ञान ही व्यक्ति को स्थिरता और उपयोगिता प्रदान करता है।
4. प्रश्न: नीम-हकीम खतरे जान का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस कहावत का तात्पर्य है कि अधूरी विद्या और अपर्याप्त अनुभव रखने वाला व्यक्ति, विशेषकर चिकित्सक, दूसरों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। जैसे अधकचरे ज्ञान वाला वैद्य रोग को ठीक करने के बजाय उसे और बढ़ा देता है, वैसे ही अधूरा ज्ञान प्रायः नुकसान और संकट का कारण बनता है। इसलिए किसी भी कार्य में पूर्ण ज्ञान और अनुभव आवश्यक है।
5. प्रश्न: मानव के आवश्यक गुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर: द्वितीय पद्य में मनुष्य के जीवन के लिए जिन गुणों को अनिवार्य बताया गया है, वे हैं – विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म। ये सभी गुण मिलकर ही मनुष्य को सच्चे अर्थों में श्रेष्ठ बनाते हैं। यदि मनुष्य में ये विशेषताएँ नहीं हों, तो उसका जीवन केवल शरीर तक सीमित रह जाता है और उसका स्तर पशुओं जैसा हो जाता है।
6. प्रश्न: भर्तृहरि ने मानव के गुणों की तुलना पशु से क्यों की?
उत्तर: भर्तृहरि ने यह तुलना इसलिए की ताकि यह बताया जा सके कि मनुष्य का असली मूल्य उसके गुणों और संस्कारों से होता है, केवल शरीर से नहीं। यदि किसी व्यक्ति में विद्या, धर्म और सद्गुणों का अभाव है, तो उसका जीवन पशुओं से अलग नहीं रहता। इस प्रकार यह उपमा मनुष्य को उसके वास्तविक कर्तव्य और मूल्य की याद दिलाने के लिए दी गई है।
7. प्रश्न: सत्संगति का महत्व क्या है?
उत्तर: तीसरे पद्य में यह स्पष्ट किया गया है कि अच्छे संगति और सत्संग का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सही संगति व्यक्ति के विचारों, आचार और जीवन मूल्यों को उन्नत करती है। सज्जन मित्र और संत समाज में रहने से व्यक्ति धर्म, ज्ञान और सदाचार की ओर अग्रसर होता है और जीवन में स्थायी लाभ प्राप्त करता है।
8. प्रश्न: आरम्भ किए गए कार्य को बीच में न छोड़ने का उपदेश क्यों दिया गया?
उत्तर: चौथे पद्य में यह शिक्षा दी गई है कि किसी भी कार्य को अधूरा छोड़ देना, चाहे कारण डर हो या आलस्य, उचित नहीं है। जो व्यक्ति आरंभ किए गए कार्य को दृढ़ता और धैर्य के साथ पूरा करता है, वही वास्तविक सफलता प्राप्त करता है। पूर्णता और लगातार प्रयास ही जीवन में स्थायी उपलब्धि की कुंजी हैं।
9. प्रश्न: बुद्धिमान लोग संसार की आलोचना से क्यों नहीं विचलित होते?
उत्तर: पाँचवे पद्य में यह बताया गया है कि बुद्धिमान व्यक्ति अपने मार्ग पर स्थिर रहते हैं और दूसरों की निन्दा या आलोचना उन्हें प्रभावित नहीं कर पाती। उनका विवेक और आत्मसंतुलन उन्हें सही निर्णय लेने और अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाता है। इस कारण वे बाहरी नकारात्मकता से विचलित नहीं होते और निरंतर प्रगति करते हैं।
10. प्रश्न: सिंह के बच्चे का उदाहरण किस संदेश के लिए दिया गया?
उत्तर:छठे पद्य में सिंह के बच्चे का उदाहरण यह दर्शाने के लिए दिया गया है कि तेजस्वी व्यक्ति को अपनी आयु या अनुभव की परवाह किए बिना उत्साह और साहस के साथ कार्य करना चाहिए। जैसे सिंह का बच्चा जन्मते ही अपनी शक्ति और सक्रियता दिखाता है, वैसे ही सक्षम और ऊर्जावान व्यक्ति को भी कार्य में निडर और तत्पर रहना चाहिए।
11. प्रश्न: दिन के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध की छाया से मैत्री का क्या संबंध है?
उत्तर: सातवें पद्य में दिन के पहले और बाद की छाया की उपमा से यह बताया गया है कि मैत्री भी परिस्थितियों और समय के अनुसार भिन्न प्रतीत हो सकती है। किन्तु सच्चा मित्र वही है जो हर परिस्थिति में साथ निभाए। यह उपमा मित्रता की स्थिरता और सच्चाई को समझाने के लिए दी गई है।
12. प्रश्न: महापुरुषों के स्वभाव का चित्रण अंतिम पद्य में कैसे किया गया है?
उत्तर: अंतिम पद्य में यह दर्शाया गया है कि महापुरुषों का स्वभाव धर्म, ज्ञान, धैर्य और विवेक के प्रति दृढ़ निष्ठा वाला होता है। उनका जीवन उदार, संतुलित और समाज के लिए लाभकारी होता है। ऐसे व्यक्तियों का आचरण दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है और समाज में स्थायी योगदान देता है।
13. प्रश्न: ‘ज्ञानलवदुर्विदग्धम्’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस शब्द का अर्थ है कि जिसे कम ज्ञान होता है, उसमें अहंकार अधिक होता है। ऐसे व्यक्ति अपने ज्ञान को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं और दूसरों पर प्रभाव डालने का प्रयास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अनुभवहीन और मूर्ख ही होते हैं। यह वाक्य अल्पज्ञानी व्यक्तियों के स्वाभाव और उनके दिखावे की आलोचना करता है।
14. प्रश्न: ‘मृगाश्चरन्ति’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस वाक्य का तात्पर्य है कि जिन व्यक्तियों में गुण, धर्म और विद्या का अभाव होता है, वे केवल शरीर के आधार पर मनुष्य कहलाते हैं, लेकिन उनका व्यवहार पशु के समान होता है। उनके कर्म और जीवन केवल भौतिकता और अनुशासनहीनता से भरे रहते हैं। इस प्रकार यह कहावत अज्ञान और गुणहीनता की गंभीरता को दर्शाती है।
15. प्रश्न: जाड्यं धियो हरति का क्या संदेश है?
उत्तर: इस वाक्य का संदेश यह है कि आलस्य और सुस्ती से बुद्धि और विवेक का नाश हो जाता है। जो व्यक्ति निष्क्रिय और जड़चित्त होता है, वह सही निर्णय लेने और समझदारी दिखाने में असमर्थ हो जाता है। सक्रियता और परिश्रम ही मनुष्य की बुद्धिमत्ता को जीवित रखते हैं।
16. प्रश्न: वाक्पटुता का महत्व क्या है?
उत्तर: वाक्पटुता का अर्थ है स्पष्ट, सटीक और प्रभावशाली वाणी। इसका महत्व इसलिए है कि यह सत्य और ज्ञान का प्रचार करती है, लोगों को सही दिशा दिखाती है और समाज में न्याय, धर्म तथा विद्या के प्रसार में मददगार साबित होती है। वाक्पटु व्यक्ति अपने शब्दों से दूसरों को प्रभावित और प्रेरित कर सकता है।
17. प्रश्न: धीर और न्यायसंगत व्यक्ति का व्यवहार कैसा होता है?
उत्तर: धीर और न्यायप्रिय व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में जल्दबाजी नहीं करता। वह समय और हालात का सही आकलन करके निर्णय लेता है। उसका आचरण संतुलित, स्थिर और दूसरों के लिए प्रेरक होता है। ऐसे व्यक्ति अपने व्यवहार से समाज में न्याय और अनुशासन का उदाहरण स्थापित करते हैं।
18. प्रश्न: प्रारब्धमुत्तमजना का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस शब्द का तात्पर्य है कि श्रेष्ठ और गुणवान व्यक्ति अपने नियति या प्रारब्ध से प्राप्त कार्यों को बीच में नहीं छोड़ते। वे कठिनाइयों और बाधाओं के बावजूद अपने प्रयासों को पूर्ण करते हैं और धैर्यपूर्वक सफलता प्राप्त करते हैं। उनके यह गुण उन्हें समाज में आदर्श बनाते हैं।
19. प्रश्न: विप्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः का क्या संदेश है?
उत्तर: इस वाक्य का संदेश यह है कि जो लोग नीच, अशक्त या अनुभवहीन होते हैं, वे किसी भी कार्य में बार-बार असफल होते हैं। उनके प्रयास लगातार विफलताओं और बाधाओं के प्रभाव में रहते हैं, और उन्हें सफलता प्राप्त करने में कठिनाई होती है। यह उन्हें सतत प्रयास और धैर्य की आवश्यकता की ओर इंगित करता है।
20. प्रश्न: सत्संगति और उसका परिणाम क्या है?
उत्तर: सत्संगति का प्रभाव यह होता है कि व्यक्ति सद्गुण, ज्ञान और विवेक के मार्ग पर अग्रसर होता है। अच्छे संगति में रहने से उसका जीवन अनुशासित, स्थिर और समाज के लिए लाभकारी बनता है। सही संगति व्यक्ति को नैतिक और बौद्धिक रूप से उन्नत करती है।
21. प्रश्न: विप्रैः साधुभिः मन्वितम् का अर्थ क्या है?
उत्तर:इस वाक्य का तात्पर्य यह है कि ज्ञानी और सद्गुणी व्यक्तियों के मार्गदर्शन के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सही दिशा और निर्णय नहीं ले सकता। उनके परामर्श से ही व्यक्ति सत्कर्म करता है और अपने जीवन को नैतिक और ज्ञानपूर्ण बना सकता है।
22. प्रश्न: ज्ञान का उपयोग क्यों आवश्यक है?
उत्तर: केवल ज्ञान का होना ही पर्याप्त नहीं है; इसे विवेक और समझ के साथ सही ढंग से लागू करना आवश्यक है। ज्ञान का उपयोग व्यक्ति को जीवन में सफलता दिलाता है और समाज के कल्याण तथा उन्नति में सहायक होता है।
23. प्रश्न: अहंकार और अल्पज्ञान का संबंध क्या है?
उत्तर: अहंकार और अल्पज्ञान व्यक्ति के व्यवहार और कार्यों को प्रभावित करते हैं। अल्पज्ञान वाला व्यक्ति अपने ज्ञान को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता है और अहंकार के कारण दूसरों की राय को नहीं मानता। परिणामस्वरूप उसके निर्णय और कार्य विकृत हो जाते हैं और वह दूसरों के लिए उपयोगी नहीं रह पाता।
24. प्रश्न: प्रारब्धमुत्तमजनाः का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस शब्द का अर्थ है कि श्रेष्ठ और गुणवान व्यक्ति अपने प्रारब्ध या नियति द्वारा निर्धारित कर्मों को बीच में नहीं छोड़ता। वे कठिनाइयों का सामना करते हुए लगातार प्रयास और धैर्य के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने परिश्रम और स्थिरता से समाज में आदर्श बनते हैं।
25. प्रश्न: सत्संगति और धर्म का आपस में क्या संबंध है?
उत्तर:सत्संगति का प्रभाव यह होता है कि व्यक्ति नैतिक और धार्मिक गुणों को अपनाने में सक्षम होता है। अच्छे संगति में रहने से वह धर्म और सत्कर्मों की ओर प्रेरित होता है और अपने जीवन को सही दिशा में ढाल पाता है।
26. प्रश्न: महात्मनाम् के गुण क्या हैं?
उत्तर: महात्माओं का स्वभाव शांत, दयालु, विवेकी और न्यायप्रिय होता है। वे अपने ज्ञान, अनुभव और सद्गुणों के माध्यम से समाज और मानवता के लिए सदैव उपयोगी रहते हैं। उनके आचरण और विचार दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होते हैं।
27. प्रश्न: “अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते” कथन का अर्थ क्या है?
उत्तर: इस श्लोक का आशय यह है कि अज्ञ व्यक्ति केवल सांसारिक और अस्थायी सुखों की खोज में रहता है और कभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं होता। उसकी अज्ञानता और विवेकहीनता के कारण वह वास्तविक और स्थायी सुख प्राप्त नहीं कर पाता। इस प्रकार अज्ञानता उसके जीवन को भ्रम, असफलता और असंतोष से भर देती है।
28. प्रश्न: जो लोग विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म में निष्क्रिया हैं, उनका स्वरूप क्या है?
उत्तर: पाठ में बताया गया है कि जिन व्यक्तियों में विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म नहीं होते, वे केवल रूप से ही मनुष्य कहलाते हैं। व्यवहार और कर्मों में वे मृगों जैसे होते हैं। उनका जीवन भौतिक और साधारण अनुभवों तक सीमित रहता है, और उनके कार्य तथा आचरण समाज में अनुशासनहीन और उद्देश्यहीन प्रतीत होते हैं।
29. प्रश्न: जाड्यं धियो हरति का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस श्लोक का अर्थ यह है कि आलस्य और सुस्ती से बुद्धि नष्ट हो जाती है। जब व्यक्ति जड़ और निष्क्रिय होता है, तो वह सत्य और धर्म का पालन नहीं कर पाता। ऐसे व्यक्ति के विचार और कर्म निष्फल हो जाते हैं, और उसका जीवन अधूरी उपलब्धियों और असफलताओं से भरा रहता है।
30. प्रश्न: सत्संगति का महत्व क्या है?
उत्तर: सत्संगति का महत्व यह है कि यह व्यक्ति को सही दिशा में मार्गदर्शन देती है, अच्छे विचारों को अपनाने में सहायता करती है और जीवन में नैतिक एवं वैचारिक स्थिरता स्थापित करती है। अच्छे संगति में रहने से व्यक्ति की बुद्धि, विवेक और सदाचार में वृद्धि होती है। यह उसे गलत रास्तों से रोकती है और सफलता की ओर अग्रसर करती है।
31. प्रश्न: आरम्भ किये गये कार्य को बीच में न छोड़ने का उपदेश क्यों दिया गया है?
उत्तर: पाठ में यह शिक्षा इसलिए दी गई है कि अधूरा या बीच में छोड़ा गया कार्य अक्सर बेकार हो जाता है। जो कार्य शुरू किया गया है, उसे पूरा करने के लिए धैर्य, लगातार प्रयास और अनुशासन आवश्यक हैं। किसी कार्य को आरंभ करके बीच में न छोड़ना ही सफलता और संतोषजनक परिणाम की कुंजी है।
32. प्रश्न: बुद्धिमान व्यक्ति अपने मार्ग से क्यों नहीं हटता?
उत्तर: बुद्धिमान व्यक्ति अपने विवेक और समझ के अनुसार ही कार्य करता है। वह संसार की भ्रमपूर्ण और नकारात्मक टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होता। उसकी सोच स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण होती है, इसलिए वह अपने मार्ग पर स्थिर रहता है और अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अडिग रहता है।
33. प्रश्न: सिंह के बच्चे का उदाहरण किस लिए प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर:सिंह के बच्चे का उदाहरण उन व्यक्तियों के लिए दिया गया है जो तेजस्वी और शक्तिशाली हैं। यह दर्शाता है कि केवल शक्ति और क्षमता होना पर्याप्त नहीं है; व्यक्ति को अनुशासन, विवेक और सही मार्गदर्शन के साथ अपनी शक्ति का सदुपयोग करना चाहिए। ऐसा करने से ही उसकी शक्ति फलदायक और समाजोपयोगी बनती है।
34. प्रश्न: दिन के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध की छाया का क्या अर्थ है?
उत्तर: पाठ में इसे मैत्री के दो रूपों को समझाने के लिए प्रस्तुत किया गया है। जैसे दिन का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध भिन्न होते हैं, वैसे ही मित्रता भी अलग-अलग परिस्थितियों में विभिन्न रूप धारण कर सकती है। यह उपमा यह स्पष्ट करती है कि सच्चा मित्र हर समय और परिस्थिति में स्थिर और भरोसेमंद रहता है।
35. प्रश्न: महापुरुषों के स्वभाव का पाठ में चित्रण कैसे किया गया है?
उत्तर: अंतिम पद्य में महापुरुषों का स्वभाव इस प्रकार चित्रित किया गया है कि वे अपने गुण, सत्कर्म और अनुशासन के माध्यम से दूसरों के लिए प्रेरणा बनते हैं। उनका जीवन न केवल अपने लिए बल्कि समाज और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित होता है। ऐसे महापुरुष अपने आचरण और विचारों से समाज में स्थायी प्रभाव डालते हैं।
36. प्रश्न: “ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति” का अर्थ क्या है?
उत्तर: इस श्लोक का अर्थ यह है कि अल्पज्ञान और अहंकार से युक्त विद्वान व्यक्ति दूसरों को प्रभावित या प्रसन्न नहीं कर सकता। वास्तविक सम्मान और प्रभाव केवल सही ज्ञान, समझदारी और विनम्रता के माध्यम से ही प्राप्त होता है। ज्ञान के साथ विनम्रता ही उसे सार्थक बनाती है।
37. प्रश्न: मूर्ख और ज्ञानी में अंतर क्या है?
उत्तर: मूर्ख व्यक्ति केवल अपनी इच्छाओं और वासनाओं के अनुसार चलता है और ज्ञान का सही उपयोग नहीं करता। इसके विपरीत, ज्ञानी व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर ज्ञान को जीवन में सही ढंग से लागू करता है और अपने कर्मों तथा ज्ञान से दूसरों के लिए भी उपयोगी बनता है।
38. प्रश्न: सत्संगति से मिलने वाले लाभ क्या हैं?
उत्तर: सत्संगति से व्यक्ति की बुद्धि, विवेक और आचरण में सुधार आता है। यह उसे अनुशासित बनाती है, अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित करती है और जीवन में स्थायी तथा सार्थक उपलब्धियों की ओर मार्गदर्शन प्रदान करती है। सही संगति व्यक्ति को नैतिक और बौद्धिक रूप से विकसित करती है।
39. प्रश्न: प्रारम्भ किये गये कार्य को बीच में छोड़ने के परिणाम क्या हैं?
उत्तर: यदि कोई कार्य अधूरा रह जाता है, तो उसके लिए किए गए प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। व्यक्ति का समय, ऊर्जा और संसाधन बर्बाद हो जाते हैं। किसी भी कार्य में निरंतरता और पूर्णता बनाए रखना ही सफलता और संतोषजनक परिणाम प्राप्त करने की कुंजी है।
40. प्रश्न: अल्पज्ञान का मनुष्य जीवन पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: अल्पज्ञान के कारण व्यक्ति अपने कार्यों और निर्णयों में भ्रम और असफलता का सामना करता है। उसका जीवन अधूरा और उद्देश्यहीन हो जाता है। ऐसे व्यक्ति न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी उचित योगदान नहीं दे पाता, और उसका जीवन स्थायी लाभ और सफलता से वंचित रह जाता है।
41. प्रश्न: शारीरिक और मानसिक अनुशासन का महत्व क्या है?
उत्तर: शारीरिक और मानसिक अनुशासन व्यक्ति को अपने इन्द्रियों और विचारों पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद करता है। यह उसे ज्ञान और विद्या का सही और प्रभावशाली उपयोग करने में सक्षम बनाता है तथा जीवन में स्थायी सफलता और संतुलन प्रदान करता है।
42. प्रश्न: “मृगाश्चरन्ति” का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस श्लोक का अर्थ है कि जिन लोगों में ज्ञान, गुण और धर्म का अभाव होता है, वे भले ही मनुष्य रूप में जन्म लें, फिर भी पशु समान व्यवहार करते हैं। उनका जीवन केवल भौतिक इच्छाओं और हानिकारक कार्यों में व्यतीत होता है, और उनके कर्म समाजोपयोगी नहीं होते।
43. प्रश्न: दिन के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध की उपमा मैत्री के लिए क्यों दी गई है?
उत्तर: यह उपमा इस बात को स्पष्ट करने के लिए दी गई है कि सच्ची मित्रता समय और परिस्थितियों के अनुसार भी स्थिर और भरोसेमंद रहती है। जैसे दिन का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध अलग होते हैं, वैसे ही सच्चा मित्र हर परिस्थिति में साथी बनकर समर्थन और सहयोग देता है।
44. प्रश्न: तेजस्वियों की आयु पर सिंह के बच्चे का उदाहरण कैसे लागू होता है?
उत्तर: यह उदाहरण यह बताने के लिए है कि केवल शक्ति और क्षमता होने से सफलता सुनिश्चित नहीं होती। तेजस्वियों को अपने गुणों और शक्तियों का विवेकपूर्ण और अनुशासित उपयोग करना आवश्यक है। जैसे सिंह का बच्चा अपनी शक्ति और स्वभाव के अनुसार सक्रिय रहता है, वैसे ही तेजस्वी व्यक्ति को भी अपने कार्यों में बुद्धिमत्ता और समझ का प्रयोग करना चाहिए।
45. प्रश्न: जाड्य और आलस्य का व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: जाड्य और आलस्य व्यक्ति की बुद्धि और विवेक को नष्ट कर देते हैं। ऐसा व्यक्ति सत्य और धर्म का पालन नहीं कर पाता, उसके विचार निष्फल रह जाते हैं और उसके प्रयासों का परिणाम असफलता की ओर जाता है। आलस्य उसके जीवन को अधूरा और निरुत्साहित बना देता है।
46. प्रश्न: “नीचैः विप्नभयेन प्रारभ्य” का क्या संदेश है?
उत्तर: इस श्लोक का संदेश यह है कि नीच और अज्ञ लोग भय या संकोच के कारण अपने कार्यों की शुरुआत नहीं कर पाते। उनकी निष्क्रियता और डर के कारण उनका जीवन स्थिर और सफल नहीं होता, और वे अपने प्रयासों में पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाते।
Answer by Mrinmoee