Chapter 5

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया


 1. निम्नलिखित के कारण दें

(क) पुढच्लॉक प्रिंट या तती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।

उत्तर;हाँ, यह कथन सही है।

पुढच्लॉक प्रिंट या लकड़ी के ब्लॉक से छपाई (Block Printing) यूरोप में 1295 के बाद पहुँची। दरअसल, इसका आरंभ चीन में हुआ था और वहाँ से यह तकनीक यूरोप में मार्को पोलो जैसे यात्रियों के जरिये पहुँची। इसके बाद यूरोप में भी लकड़ी के ब्लॉकों से छपाई का इस्तेमाल शुरू हुआ।

(ख) मार्टिन लुबर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।

उत्तर;हाँ, यह कथन सत्य है।

मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की। वह मानता था कि छपाई की मदद से धार्मिक विचारों और सुधारों को तेजी से फैलाया जा सकता है। उसने कहा था कि "छापेखाना ईश्वर का सर्वोत्तम वरदान है," क्योंकि इससे बाइबिल और अन्य धार्मिक ग्रंथों को आम जनता तक पहुँचाया जा सका।

(ग) रोमन कैथलिक वर्ष ने सोलावी सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।

उत्तर;हाँ, यह कथन सत्य है।

रोमन कैथोलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की एक सूची (Index Librorum Prohibitorum) रखना शुरू किया। इसका उद्देश्य उन किताबों और लेखों को प्रतिबंधित करना था जो चर्च की धार्मिक शिक्षाओं या कलीसियाई सिद्धांतों के खिलाफ थे। यह सूची 1559 में प्रकाशित हुई और 1966 तक सक्रिय रही। इस सूची में शामिल किताबों को चर्च द्वारा खतरनाक माना जाता था, और इन्हें पढ़ने या वितरण करने पर सजा का प्रावधान था।


(घ) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लदाई है।

उत्तर; यह कथन सत्य है। महात्मा गांधी ने 1922 में कहा था कि "वाणी की स्वतंत्रता, प्रेस की आज़ादी, और सामूहिकता की आज़ादी स्वराज की लड़ाई के अभिन्न अंग हैं।" गांधीजी का मानना था कि यदि भारतीय जनता को स्वतंत्रता प्राप्त करनी है, तो उसे अपने विचारों और अभिव्यक्तियों की स्वतंत्रता भी मिलनी चाहिए। उनका यह विचार था कि प्रेस की स्वतंत्रता और जनमत की अभिव्यक्ति, स्वराज की ओर बढ़ने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

2. छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-

(क) गुटेन्वर्ग प्रेस

उत्तर;गुटेनबर्ग प्रेस (Gutenberg Press) 15वीं सदी में जोहान गुटेनबर्ग द्वारा आविष्कृत एक मुद्रण तकनीक थी। इसका सबसे प्रसिद्ध योगदान 1455 में बाइबिल के पहले प्रिंटेड संस्करण की छपाई थी, जिसे "गुटेनबर्ग बाइबिल" कहा जाता है। गुटेनबर्ग ने movable type (संचलनशील अक्षर) का उपयोग किया, जिससे प्रत्येक पत्र का पुनः उपयोग किया जा सकता था, और बड़े पैमाने पर सस्ते प्रिंटिंग का रास्ता खोला। इसने पश्चिमी दुनिया में ज्ञान और विचारों के प्रसार को व्यापक बनाया, जिससे यूरोप में पुनर्जागरण और सुधार की प्रक्रियाओं को गति मिली। गुटेनबर्ग प्रेस ने विश्वभर में मुद्रण क्रांति की नींव रखी और जानकारी के प्रसार के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव किया।

(ख) छपी किताब को लेकर इरस्मस के विचार

उत्तर;इरास्मस (Erasmus) एक प्रसिद्ध डच मानवतावादी और विचारक थे, जिन्होंने छपी किताबों के महत्व को लेकर विचार व्यक्त किए। उनका मानना था कि छपाई ने ज्ञान और विचारों के प्रसार में एक बड़ी भूमिका निभाई। इरस्मस ने इसे "ज्ञान का वितरण" और "धार्मिक सुधार" के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम माना। उन्होंने 16वीं सदी में मुद्रण के महत्व को इस रूप में व्यक्त किया कि छपी हुई किताबें न केवल शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देती हैं, बल्कि धर्म, दर्शन और नैतिकता की समझ को भी विस्तारित करती हैं।

इरस्मस के अनुसार, मुद्रित किताबों ने समाज के विभिन्न वर्गों में शिक्षा के स्तर को ऊँचा किया और उन्हें एक सामान्य आधार प्रदान किया, जिससे लोगों तक ज्ञान और विचारों की पहुँच अधिक हो सकी। वे यह भी मानते थे कि छपी किताबों के द्वारा विचारों की स्वतंत्रता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा मिलता है, जो सामाजिक और धार्मिक सुधारों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

इरस्मस का कहना था कि छपी किताबें ज्ञान के प्रसार के लिए एक सशक्त उपकरण हैं और इसने मानवता के विकास में योगदान दिया।

(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट

उत्तर;वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट (Vernacular Press Act) 1878 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को नियंत्रित करना था। इस एक्ट के तहत, सरकार को अधिकार दिया गया कि वह उन समाचार पत्रों को सेंसर कर सके या जब्त कर सके, जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लिखते थे।

यह एक्ट विशेष रूप से उन समाचार पत्रों को निशाना बनाता था जो हिंदी, बांग्ला, मराठी, उर्दू जैसी स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित होते थे और जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी विचारों को बढ़ावा देते थे। इस एक्ट ने सरकार को यह अधिकार दिया कि यदि किसी समाचार पत्र को "उकसाने" वाला माना जाता था, तो उसकी संपत्ति को जब्त किया जा सकता था और उसे बंद किया जा सकता था, और इसके साथ ही अखबार के संपादकों और पत्रकारों पर भी कानूनी कार्यवाही की जा सकती थी।

इस एक्ट का उद्देश्य भारतीय समाज में बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ बढ़ते विरोध को रोकना था। हालांकि, वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट के बावजूद, भारतीय भाषाओं में प्रकाशित अखबारों और पत्रिकाओं ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी लेखनी जारी रखी, और यह एक्ट भारतीय जनता के बीच औपनिवेशिक शासन के खिलाफ जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण कारण बना।

3. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

(क) महिलाएँ

उत्तर;

(ख) गरीब जनता

उत्तर;

(ग) सुधारकसंक्षेप में लिखेंचर्चा करें

उत्तर;

1. अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?

उत्तर;

2. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों घं? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समालाएँ।

उत्तर;

3. उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?

उत्तर;

4. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की?

उत्तर;