जॉर्ज पंचम की नाक

1. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?
उत्तर:
यह चिंता सरकारी तंत्र की मानसिकता को दर्शाती है, जिसमें बाहरी दिखावे और प्रतीकवाद को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यह दर्शाता है कि सार्वजनिक छवि और प्रतिष्ठा को बचाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है, लेकिन असल मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जाता। सरकार का ध्यान देश की असली समस्याओं के बजाय छोटे प्रतीकों, जैसे कि जॉर्ज पंचम की नाक, पर केंद्रित था। यह दिखाता है कि राजनीति और सत्ता संरचनाएं अक्सर दिखावे और प्रतीकों पर ज्यादा जोर देती हैं, ताकि अपनी स्थिति को बनाए रख सकें।
2. रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर:
रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का कारण यह था कि वह एक ऐसे व्यक्ति के लिए कपड़े तैयार कर रहे थे, जिनकी स्थिति और प्रतिष्ठा को बहुत महत्व दिया जाता था। इस प्रकार के व्यक्ति के लिए कपड़े तैयार करते समय, बहुत सटीकता और समझ की आवश्यकता होती है। यह परेशानी इस बात से जुड़ी थी कि दरजी को यह सुनिश्चित करना था कि कपड़े ठीक से तैयार हों, ताकि रानी की छवि सही बनी रहे। इसका तर्कसंगत कारण यह है कि किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए तैयार किए गए कपड़े न सिर्फ उसके पहनावे का हिस्सा होते हैं, बल्कि यह उसकी छवि और प्रतिष्ठा से भी जुड़ा होता है।


3. 'और देखते ही देखते नयी दिल्ली का काया पलट होने लगा' नयी दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
नयी दिल्ली के काया पलट के लिए कई प्रकार के प्रयास किए गए होंगे, जैसे:
सड़कें और सार्वजनिक स्थल साफ किए गए होंगे, ताकि शहर अधिक सुंदर और आकर्षक लगे।
सजावट और शृंगार: इमारतों और सार्वजनिक स्थानों को सजाया गया होगा, ताकि वे रानी के आगमन के लिए तैयार हों।
सुरक्षा व्यवस्था: सुरक्षा को तगड़ा किया गया होगा ताकि रानी की यात्रा के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो।
संसाधनों का पुनर्निर्माण: इमारतों और अन्य ढांचों को नवीनीकरण किया गया होगा, ताकि वे और आकर्षक और उपयुक्त दिखें।
आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है-
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
उत्तर:
इस प्रकार की पत्रकारिता, जो केवल चर्चित हस्तियों के व्यक्तिगत जीवन पर आधारित है, समाज को सतही और उपभोक्तावादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है। यह पत्रकारिता मुख्य रूप से सनसनीखेज होती है और इसे अक्सर गॉसिप की श्रेणी में डाला जा सकता है। यह सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों से ध्यान हटाकर हल्के और मनोरंजन आधारित विषयों पर ज्यादा ध्यान देती है, जिससे समाज के असल मुद्दों पर ध्यान नहीं जाता।
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर:
इस प्रकार की पत्रकारिता युवा पीढ़ी को शारीरिक आकर्षण, शौकिया जीवन और व्यक्तिगत जीवन के दिखावे पर केंद्रित करती है, जिससे उन्हें वास्तविक जीवन के गंभीर मुद्दों से दूर कर दिया जाता है। यह युवाओं को भ्रामक मान्यताओं और उपभोक्तावादी सोच की ओर प्रवृत्त कर सकती है, जहां उन्हें अपने करियर, समाजिक जिम्मेदारियों और असल मुद्दों की बजाय, सेलिब्रिटीज़ की निजी ज़िंदगी में रुचि अधिक होती है।

जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए कई प्रयास किए:
पत्थर की खोज: मूर्तिकार ने देश के विभिन्न पहाड़ी क्षेत्रों में जाकर उस पत्थर को ढूंढ़ने की कोशिश की, जिससे लाट की नाक बनाई गई थी।
मूर्तियों का निरीक्षण: उसने भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थापित विभिन्न नेताओं और शख्सियतों की मूर्तियों का निरीक्षण किया और उनकी नाकों का नाप लिया, ताकि जॉर्ज पंचम की लाट की नाक का सही आकार मिल सके।
नई योजना: जब वह पत्थर नहीं ढूंढ़ पाया, तो उसने एक और योजना बनाई, जिसमें उसने सुझाव दिया कि यदि कोई जिंदा नाक मिल सके तो वह उसे लगा दी जाए।
जिंदा नाक का चयन: अंत में, मूर्तिकार ने यह योजना बनाई कि एक जिंदा नाक चुनकर उसे लाट पर लगाया जाए, और इस योजना के तहत उसने कमेटी से अनुमति ली।

6. प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए 'फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।' 'सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ ताका।' पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
"अखबारों में सिर्फ़ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है।"
"कमेटी के सदस्यों की जान में जान आई।"
"देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं, अगर इजाजत हो और आप लोग ठीक समझें तो... मेरा मतलब है तो... जिसकी नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे उतार लाया जाए..."
"यह तो अपनी नाक कटाने वाली बात हुई।"
"वह पत्थर विदेशी है।"

ये कथन सरकार की अजीबो-गरीब प्राथमिकताओं और कार्यशैली को उजागर करते हैं, जो दिखाते हैं कि सरकारी तंत्र क्या चीज़ों पर ज्यादा ध्यान देता है—एक नाक, एक मूर्ति—लेकिन असल समस्याओं को नजरअंदाज करता है।
7. नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए।
उत्तर: व्यंग्य रचना में नाक को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का द्योतक है। जब जॉर्ज पंचम की लाट की नाक गायब हो जाती है, तो पूरे सरकारी तंत्र में इस नाक को पुनः स्थापित करने के लिए चिंता और हलचल मच जाती है। यह नाक केवल एक मूर्तिकला का हिस्सा नहीं, बल्कि एक सत्ता और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन जाती है। नाक का पुनर्निर्माण, ना केवल मूर्ति का, बल्कि ब्रिटिश शासन की प्रतिष्ठा का भी सवाल बन जाता है। व्यंग्य के माध्यम से लेखक यह दर्शाता है कि सरकारी तंत्र की प्राथमिकताएँ और चिंताएँ कितनी भ्रमित और अपव्ययपूर्ण हो सकती हैं।
8. जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है।
उत्तर: लेखक इस कथन से यह संकेत देना चाहता है कि ब्रिटिश शासन के तहत भारत की स्थिति ऐसी हो गई थी कि भारतीयों की किसी भी पहचान, उनके नेताओं या बच्चों की भी, ब्रिटिश सम्राट के प्रतीक के बराबर नहीं मानी जा रही थी। इस बात से यह साफ़ होता है कि भारतीयों का अपना कोई मान-सम्मान नहीं था, और उनकी कोई पहचान ब्रिटिश शासकों के प्रतीक के मुकाबले उपयुक्त नहीं मानी जाती थी। यह सांस्कृतिक और राजनीतिक दबावों को उजागर करता है, जिनका सामना भारतीय समाज ने किया।
9. अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर:अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को सनसनीखेज़ तरीके से प्रस्तुत किया, परंतु उन्होंने इसे केवल इस रूप में छापा कि "जॉर्ज पंचम की जिदा नाक लगाई गई है", यानी ऐसी नाक जो पत्थर की नहीं लगती। अखबारों ने इस खबर को इस तरह से प्रस्तुत किया कि वह केवल एक सामान्य घटना की तरह ही दिखे, और ज्यों ही यह खबर फैलती, समाज का ध्यान फिर से औरों के कपड़े, खानपान या जीवनशैली की ओर आकर्षित हो जाता।
10. "नयी दिल्ली में सब था... सिर्फ़ नाक नहीं थी।" इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इस कथन के माध्यम से लेखक यह दिखाना चाहता है कि दिल्ली में हर भव्यता और प्रशासनिक व्यवस्था मौजूद थी, लेकिन एक प्रतीकात्मक और बेमतलब बात—जॉर्ज पंचम की नाक—का न होना, सब कुछ अधूरा बना देता है। यह व्यंग्य है जो यह दर्शाता है कि व्यवस्था और विकास केवल दिखावा होता है, जब तक कि यह छोटे और प्रतीकात्मक मुद्दों से न जुड़ा हो। यह नाक सिर्फ़ एक प्रतीक है, लेकिन इसका न होना पूरी व्यवस्था की नाकामी को प्रदर्शित करता है।
11 .जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर: जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप थे क्योंकि देश में कोई नई, महत्वपूर्ण या सामाजिक बदलाव की खबर नहीं थी। उस दिन न तो कोई उद्घाटन था, न कोई अभिनंदन, न कोई मानपत्र भेंट करने का समारोह हुआ, और न ही कोई सार्वजनिक सभा हुई। यह दिखाता है कि जॉर्ज पंचम की नाक का लगाना एक प्रतीक था, जबकि असली मुद्दे जैसे समाजिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय परिवर्तन पर कोई चर्चा नहीं हो रही थी। यह स्थिति व्यंग्यात्मक रूप से दर्शाती है कि व्यवस्था की प्राथमिकताएँ कितनी भ्रमित और अनुपयुक्त हो सकती हैं।
                                                                                                            
                                                                                                    THANK YOU 
                                                                                                    AUTHOR- RUMI DEKA .