वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था | 



1. क्या आप मानते हैं कि फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है? क्यों?

उत्तर: जी हां, फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है। यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि फोर्ड मोटर्स का कारोबार केवल एक देश तक सीमित नहीं है। इसके उत्पादन संयंत्र और बिक्री केंद्र विभिन्न देशों में हैं, और यह दुनिया भर में अपनी कारों और अन्य वाहनों का निर्यात करती है। इस प्रकार, फोर्ड मोटर्स ने वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति बनाई है और विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं में योगदान किया है, जो इसे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी बनाता है।

2. विदेशी निवेश क्या है? फोर्ड मोटर्स ने भारत में कितना निवेश किया था?

उत्तर: विदेशी निवेश वह पूंजी है, जो एक देश के निवेशक दूसरे देश में व्यापारिक या औद्योगिक गतिविधियों के लिए निवेश करते हैं। इसे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) भी कहा जाता है। यह निवेश विदेशी कंपनियों को नए उत्पादन संयंत्र स्थापित करने, तकनीकी सहयोग या अन्य निवेश गतिविधियों के लिए किया जाता है।

फोर्ड मोटर्स ने भारत में लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया था। यह निवेश कंपनी के उत्पादन संयंत्र की स्थापना और विकास के लिए किया गया था, ताकि भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति बढ़ाई जा सके।

3. भारत में उत्पादन संयंत्र स्थापित करके फोर्ड मोटर्स जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ केवल भारत जैसे देशों के विशाल बाजार का ही लाभ नहीं उठाती हैं, बल्कि कम उत्पादन लागत का भी लाभ प्राप्त करती हैं। कथन की व्याख्या करें।

उत्तर: यह कथन सही है, क्योंकि भारत जैसे विकासशील देशों में श्रम लागत अपेक्षाकृत कम होती है। इसके अलावा, यहां पर उत्पादन की अन्य लागतें जैसे कच्चे माल, संसाधन और सुविधाएं भी सस्ती हो सकती हैं। इस तरह, फोर्ड मोटर्स जैसी कंपनियाँ, भारत में उत्पादन संयंत्र स्थापित करके न केवल भारतीय बाजार के विशाल आकार से लाभ उठाती हैं, बल्कि कम लागत में उत्पादों का निर्माण करके अपने लाभ को अधिकतम कर सकती हैं। भारत में उत्पादन संयंत्र स्थापित करने से कंपनी को उत्पाद की लागत में कमी आती है, जिससे वह प्रतिस्पर्धी कीमतों पर अपने उत्पादों को बेच सकती है।

4. आपके विचार से कंपनी अपने वैश्विक कारोबार के लिए कार के पुर्जी के विनिर्माण केन्द्र के रूप में भारत का विकास क्यों करना चाहती है? निम्न कारकों पर विचार करें:

उत्तर: (अ) भारत में श्रम और अन्य संसाधनों पर लागत: भारत में श्रम की लागत काफी कम है, जो किसी भी कंपनी के लिए एक आकर्षक अवसर होता है। इसके साथ ही, भारत में अन्य संसाधन भी अपेक्षाकृत सस्ते हैं, जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है।

(च) कई स्थानीय विनिर्माताओं की उपस्थिति, जो फोर्ड मोटर्स को कल पुर्जों की आपूर्ति करते हैं: भारत में कई स्थानीय कंपनियां हैं जो ऑटोमोबाइल के पुर्जों का उत्पादन करती हैं। फोर्ड मोटर्स के लिए इन स्थानीय कंपनियों से कल पुर्जे खरीदना सस्ता और सुविधाजनक होता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण होता है।

(स) भारत और चीन के ग्राहकों से निकटता: भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े वाहन बाजारों में से एक हैं। इन दोनों देशों के ग्राहकों के नजदीक उत्पादन केंद्र होने से, फोर्ड मोटर्स को अधिक बिक्री और वितरण में आसानी होती है, जिससे उसे वैश्विक स्तर पर अपने कारोबार को बढ़ाने का अवसर मिलता है।

5. भारत में फोर्ड मोटर्स द्वारा कारों के निर्माण से उत्पादन किस प्रकार परस्पर संबंधित होगा?

उत्तर: भारत में फोर्ड मोटर्स के कार निर्माण से उत्पादन प्रक्रिया में परस्पर संबंध होता है, क्योंकि भारत में मौजूद स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला और विनिर्माण कंपनियाँ फोर्ड को पुर्जों की आपूर्ति करती हैं। इसके अलावा, स्थानीय बाजार में बिक्री से कंपनी के उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला की मांग बढ़ती है। इससे स्थानीय उद्योगों को भी लाभ होता है और पूरे क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।

6. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अन्य कंपनियों से किस प्रकार अलग हैं?

उत्तर: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अन्य कंपनियों से इसलिए अलग होती हैं क्योंकि इनकी उपस्थिति और कार्यक्षेत्र कई देशों में फैले होते हैं। ये कंपनियाँ कई देशों में अपनी उत्पादन इकाइयाँ, सेवाएँ और व्यापारिक गतिविधियाँ संचालित करती हैं। इसके अलावा, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बड़े पैमाने पर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का हिस्सा होती हैं, जो उन्हें विभिन्न देशों से कच्चे माल और श्रम का लाभ उठाने में सक्षम बनाती हैं। ये कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और विभिन्न देशों में अपने उत्पादों की आपूर्ति और बिक्री करती हैं ||

5. भारत में फोर्ड मोटर्स द्वारा कारों के निर्माण से उत्पादन किस प्रकार परस्पर संबंधित होगा?

उत्तर: भारत में फोर्ड मोटर्स द्वारा कारों के निर्माण से उत्पादन प्रक्रिया में परस्पर संबंधित होने का मतलब है कि इसके विभिन्न चरणों में विभिन्न घटक और हिस्से अन्य कंपनियों से एकत्रित होते हैं। जैसे:

  • स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला: फोर्ड मोटर्स भारत में स्थानीय निर्माताओं से कल पुर्जे जैसे इंजन, बैटरियाँ, टायर और अन्य जरूरी घटक खरीद सकती है, जिससे दोनों के बीच परस्पर निर्भरता बनती है।

  • प्रवृत्तियाँ और कार्यप्रणाली: जब फोर्ड मोटर्स भारत में उत्पादन करती है, तो स्थानीय श्रमिकों को रोजगार मिलता है और उत्पादों का निर्माण शुरू होता है। इस प्रकार, उत्पादन प्रक्रिया की हर कड़ी एक दूसरे से जुड़ी रहती है, जिससे पूरे उत्पादन और आपूर्ति नेटवर्क को गति मिलती है।

  • नवाचार और प्रौद्योगिकी: फोर्ड मोटर्स द्वारा भारत में कारों के निर्माण से न केवल रोजगार मिलता है, बल्कि नई तकनीकों और अनुसंधान और विकास के लिए अवसर भी उत्पन्न होते हैं, जो उत्पादन प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाते हैं।

6. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, अन्य कंपनियों से किस प्रकार अलग हैं?

उत्तर: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अन्य कंपनियों से इसलिए अलग होती हैं क्योंकि:

  • वैश्विक कार्यक्षेत्र: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ एक से अधिक देशों में अपना कारोबार करती हैं, जबकि सामान्य कंपनियाँ एक विशिष्ट क्षेत्र या देश तक सीमित होती हैं। यह कंपनियाँ वैश्विक बाजार में अपने उत्पादों और सेवाओं की आपूर्ति करती हैं।

  • आपूर्ति श्रृंखला और उत्पादन: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विभिन्न देशों में उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करती हैं, जिससे उन्हें श्रम और उत्पादन लागत पर नियंत्रण मिलता है। वे कई देशों से कच्चा माल और संसाधन प्राप्त करती हैं और स्थानीय बाजारों में उत्पादों की आपूर्ति करती हैं।

  • वित्तीय संसाधन: इन कंपनियों के पास बड़े वित्तीय संसाधन होते हैं, जो उन्हें बड़े निवेश करने और अन्य देशों में व्यापार स्थापित करने की क्षमता देते हैं।

  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पादन और प्रौद्योगिकी में निरंतर नवाचार करती रहती हैं, ताकि वे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी रह सकें।

7. लगभग सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, अमेरिका, जापान या यूरोप की हैं जैसे, नोकिया, कोका-कोला, पेप्सी, होंडा, नाइकी। क्या आप अनुमान कर सकते हैं कि ऐसा क्यों है?

उत्तर: यह स्थिति मुख्य रूप से निम्नलिखित कारणों से है:

  • आर्थिक शक्ति और विकास: अमेरिका, जापान और यूरोप के देश पिछले कई दशकों से वैश्विक आर्थिक शक्ति रहे हैं। इन देशों के पास बड़े पैमाने पर पूंजी, संसाधन और तकनीकी विशेषज्ञता है, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विकास और विस्तार में सहायक होते हैं।

  • उद्योगिकरण और नवाचार: ये देश औद्योगिकीकरण के प्रमुख केंद्र रहे हैं, जहाँ उन्नत प्रौद्योगिकी और उत्पादन क्षमता का विकास हुआ। इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपनी तकनीकी श्रेष्ठता के साथ वैश्विक बाजार में प्रवेश कर सकीं।

  • बाजार और संसाधनों तक पहुंच: इन देशों के पास बड़ी घरेलू बाजारों और विभिन्न देशों से कच्चे माल और अन्य संसाधनों तक पहुंच है, जो उन्हें वैश्विक स्तर पर कारोबार स्थापित करने में मदद करते हैं।

  • वैश्विक व्यापार और निवेश: ये देश वैश्विक व्यापार में प्रमुख हैं और उनकी सरकारें व्यापारिक नीतियों के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा, इन देशों की कंपनियों को अन्य देशों में निवेश करने का अधिक अवसर प्राप्त है।

स्थिरता और राजनीति: अमेरिका, जापान और यूरोप के देशों में व्यापारिक नीतियाँ और आर्थिक स्थिरता ने कंपनियों को एक स्थिर वातावरण प्रदान किया है, जिससे ये बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्विक बाजारों में अपनी उपस्थिति मजबूत कर सकीं|
 1. अतीत में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्यम क्या था? अब यह अलग कैसे है?
उत्तर: अतीत में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्यम व्यापार और यात्रा था, जिसमें समुद्री मार्ग, रेलमार्ग और सड़क मार्गों के माध्यम से देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता था। व्यापारिक मार्ग जैसे सिल्क रोड और समुद्र मार्ग देशों के बीच संपर्क का मुख्य रास्ता थे।
अब यह परिदृश्य काफी बदल चुका है। वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति के कारण देशों को जोड़ने का माध्यम सूचना प्रौद्योगिकी, इंटरनेट, और वैश्विक व्यापार नेटवर्क बन चुका है। आधुनिक परिवहन और संचार प्रणालियाँ जैसे हवाई यात्रा, समुद्री परिवहन, और डिजिटल माध्यमों ने देशों के बीच संपर्क और व्यापार को तेज़ और प्रभावी बना दिया है। इसके अलावा, फाइनेंशियल मार्केट्स और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विस्तार ने देशों को अधिक कनेक्ट किया है, जिससे वैश्विक स्तर पर तेजी से कारोबार बढ़ रहा है।
2. विदेश व्यापार और विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर: विदेश व्यापार (Foreign Trade): यह व्यापारिक गतिविधि है, जिसमें एक देश अपने उत्पादों और सेवाओं को दूसरे देशों में निर्यात करता है और दूसरे देशों से आयात करता है। यह दो देशों के बीच वस्तु या सेवा के आदान-प्रदान को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिए, भारत से अमेरिका को वस्त्र निर्यात करना या चीन से भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स आयात करना।
विदेशी निवेश (Foreign Investment): यह एक देश के निवेशक द्वारा दूसरे देश के व्यापार या उद्योग में धन लगाना है। इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और पोर्टफोलियो निवेश (FPI) शामिल होते हैं। FDI में एक कंपनी दूसरे देश में उत्पादन इकाई स्थापित करती है, जबकि FPI में निवेशक दूसरे देश की कंपनी के शेयर खरीदते हैं। उदाहरण के लिए, फोर्ड मोटर्स का भारत में निवेश करना या जापान का भारत में निवेश करना।
3. हाल के वर्षों में चीन भारत से इस्पात आयात कर रहा है। व्याख्या करें कि चीन द्वारा इस्पात का आयात कैसे प्रभावित करेगा:
(क) चीन की इस्पात कंपनियों को:
चीन की इस्पात कंपनियों को इस्पात आयात करने से फायदा होगा क्योंकि उन्हें भारत से सस्ता या बेहतर गुणवत्ता वाला इस्पात मिल सकता है। यदि भारत की इस्पात कंपनियाँ प्रतिस्पर्धी मूल्य पर इस्पात प्रदान करती हैं, तो चीन की कंपनियाँ इसे अपने उत्पादन में उपयोग कर सकती हैं, जिससे उनकी लागत कम हो सकती है। इसके अलावा, यदि भारतीय उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले हैं, तो यह चीन के उद्योगों की गुणवत्ता में भी सुधार कर सकता है।
(ख) भारत की इस्पात कंपनियों को:
चीन से इस्पात के आयात से भारतीय इस्पात कंपनियों को कठिनाई हो सकती है, क्योंकि चीन की कंपनियाँ बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं और उनकी लागत भारत की तुलना में कम हो सकती है। इससे भारत की इस्पात कंपनियों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनकी बिक्री और मुनाफा प्रभावित हो सकता है। हालांकि, यदि भारतीय कंपनियाँ उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात का उत्पादन करती हैं, तो वे अपने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बना सकती हैं।
(ग) चीन में अन्य औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए इस्पात खरीदने वाले उद्योगों को:
चीन में जो उद्योग इस्पात का उपयोग करते हैं (जैसे, निर्माण, ऑटोमोबाइल, और मशीनरी उद्योग), उन्हें सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात मिलना फायदेमंद होगा। इससे उनकी उत्पादन लागत कम हो सकती है और उत्पादों की कीमतों में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिल सकता है। इसके परिणामस्वरूप, चीनी उद्योगों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ सकती है।
4. चीन के बाजारों में भारत से इस्पात का आयात किस प्रकार दोनों देशों के इस्पात बाजार के एकीकरण में सहायता करेगा? व्याख्या करें।
उत्तर: चीन के बाजारों में भारत से इस्पात का आयात दोनों देशों के इस्पात बाजार के एकीकरण में निम्नलिखित तरीकों से सहायता करेगा:
समान बाजार और प्रतिस्पर्धा: भारत और चीन दोनों ही बड़े उपभोक्ता बाजार हैं। यदि दोनों देशों के बीच इस्पात का आदान-प्रदान होता है, तो इससे दोनों देशों के बाजारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जो एकीकृत बाजार की दिशा में एक कदम होगा।
उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला का विकास: जब दोनों देशों के उद्योग एक-दूसरे के उत्पादों का आदान-प्रदान करते हैं, तो उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला परस्पर जुड़ी होती है। भारत से इस्पात का निर्यात चीन में उत्पादन प्रक्रियाओं को सुचारू बनाने में मदद करेगा, और इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते और मजबूत होंगे।
गुणवत्ता और नवाचार: दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और सहयोग बढ़ने से उत्पादन प्रक्रियाओं में सुधार होगा। भारतीय इस्पात कंपनियाँ चीन के बाजार में अपनी गुणवत्ता को सुधारने के लिए नवाचार पर ध्यान दे सकती हैं, और चीन को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक उत्पाद मिलेंगे।
व्यापारिक नियमों और नीति की समानता: दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ने से व्यापारिक नियमों और नीतियों में समानता स्थापित हो सकती है, जो दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को और मजबूती प्रदान करेगा।                   1. वैश्वीकरण प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की क्या भूमिका है?
उत्तर: वैश्वीकरण प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये कंपनियाँ विभिन्न देशों में अपने व्यापारिक कार्यों का संचालन करती हैं और विभिन्न देशों के बाजारों में उत्पादों और सेवाओं का आदान-प्रदान करती हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का हिस्सा बनती हैं, जिससे देशों के बीच उत्पादन, संसाधन और बाजार का एकीकरण होता है। इन कंपनियों द्वारा निवेश, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और नौकरियों के सृजन से देशों की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। इसके अतिरिक्त, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ नई तकनीकों, उत्पादों और प्रक्रियाओं को विभिन्न देशों में लाकर स्थानीय उद्योगों के विकास में मदद करती हैं।
2. वे कौन से विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा देशों को परस्पर संबंधित किया जा सकता है?
उत्तर: देशों को परस्पर संबंधित करने के कई तरीके हैं:
वैश्विक व्यापार: देशों के बीच वस्त्र, खाद्य पदार्थ, मशीनरी, और अन्य उत्पादों का आयात-निर्यात किया जाता है, जिससे देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत होते हैं।
विदेशी निवेश: बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा एक देश में निवेश करना और वहाँ उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करना, जिससे दोनों देशों के बाजारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं के बीच संबंध बनते हैं।
संवाद और सूचना प्रौद्योगिकी: इंटरनेट और डिजिटल नेटवर्क के माध्यम से देशों के बीच संवाद स्थापित होता है, जिससे व्यापार, शिक्षा, संस्कृति और अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ता है।
संविदाएँ और समझौते: देशों के बीच व्यापारिक समझौते, अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सदस्यता और संयुक्त कार्य (जैसे, संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन) के माध्यम से सहयोग बढ़ता है।
यात्रा और पर्यटन: लोगों का एक देश से दूसरे देश यात्रा करना, संस्कृति, पर्यटन और व्यापार में वृद्धि करता है, जिससे देशों के बीच संबंध और मजबूत होते हैं।
3. सही विकल्प का चयन करें-
देशों को जोड़ने से वैश्वीकरण के परिणाम होंगे:
(ख) उत्पादकों के बीच अधिक प्रतिस्पर्धा होगी
यह विकल्प सही है क्योंकि जब देशों के बीच व्यापार और निवेश बढ़ता है, तो उत्पादकों को एक वैश्विक बाजार में अपनी उत्पादकता और गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। वैश्वीकरण के कारण विदेशी कंपनियाँ स्थानीय बाजारों में प्रवेश करती हैं और स्थानीय उत्पादकों को उच्च गुणवत्ता, बेहतर मूल्य और नवाचार के साथ प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता होती है।                 
1. ऊपर दिए गए उदाहरण में, उत्पादन में प्रौद्योगिकी के प्रयोग का उल्लेख करने वाले शब्दों को रेखांकित करें।
उत्तर:आपके द्वारा बताए गए उदाहरण में, प्रौद्योगिकी के प्रयोग का उल्लेख करने वाले कुछ शब्द हो सकते हैं, जैसे:
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (technology transfer) – यह शब्द बताता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपनी उन्नत तकनीकें और प्रक्रियाएँ विभिन्न देशों में लाती हैं, जिससे वहां के उत्पादक और उद्योग विकास करते हैं।
नई तकनीक (new technologies) – यह शब्द बताता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विभिन्न देशों में नई और उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करती हैं, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता और क्षमता में वृद्धि होती है।
2. सूचना प्रौद्योगिकी वैश्वीकरण से कैसे जुड़ी हुई है? क्या सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार के बिना वैश्वीकरण संभव होता?
उत्तर: सूचना प्रौद्योगिकी (IT) वैश्वीकरण से गहरे तौर पर जुड़ी हुई है क्योंकि यह दुनिया भर के विभिन्न हिस्सों के बीच डेटा और सूचनाओं के आदान-प्रदान को आसान और तीव्र बनाती है। इंटरनेट, मोबाइल नेटवर्क, सॉफ़्टवेयर और क्लाउड सेवाएँ देशों और कंपनियों को त्वरित और प्रभावी तरीके से एक-दूसरे से जोड़ने में मदद करती हैं। इसके माध्यम से वैश्विक व्यापार, संचार, वित्तीय सेवाएं, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को आसानी से साझा किया जा सकता है।
सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार के बिना वैश्वीकरण संभव नहीं होता, क्योंकि यह वैश्विक व्यापार और सहयोग के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करती है। बिना IT के, देशों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान धीमा और सीमित होता, जिससे वैश्वीकरण की प्रक्रिया को गति मिलना और इसका प्रभावी कार्यान्वयन संभव नहीं होता। IT ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, बाजारों और वित्तीय प्रणालियों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो वैश्वीकरण के मूल तत्वों में से एक है।                             
 1. विदेश व्यापार के उदारीकरण से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:  विदेश व्यापार के उदारीकरण 
से तात्पर्य है उन नीतियों और प्रक्रियाओं में ढील देना जो व्यापार को नियंत्रित करती हैं, ताकि व्यापार के लिए अधिक खुला और स्वतंत्र वातावरण तैयार किया जा सके। इसमें आयात-निर्यात नियमों को सरल बनाना, शुल्कों (जैसे, कस्टम ड्यूटी) में कमी करना, व्यापार पर प्रतिबंधों को हटाना और विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक प्रतिबंधों को समाप्त करना शामिल है। इसका उद्देश्य वस्त्र, खाद्यान्न, तकनीकी उत्पाद, सेवाएँ, और अन्य वस्तुओं के वैश्विक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है। विदेश व्यापार के उदारीकरण से देशों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, नवाचार को बढ़ावा मिलता है और बाजार में कीमतों में कमी आती है, जिससे उपभोक्ताओं को फायदा होता है।
2. आयात पर कर एक प्रकार का व्यापार अवरोधक है। सरकार आयात होने वाली वस्तुओं की संख्या भी सीमित कर सकती है। इसे कोटा कहते हैं। क्या आप चीन के खिलौनों के उदाहरण से व्याख्या कर सकते हैं कि व्यापार अवरोधक के रूप में कोटा का प्रयोग कैसे किया जा सकता है? आपके विचार से क्या इसका प्रयोग किया जाना चाहिए? चर्चा करें।

1.उत्तर: व्यापार अवरोधक के रूप में कोटा का प्रयोग:
कोटा एक ऐसा प्रतिबंध है, जिसके तहत सरकार किसी विशेष उत्पाद के आयात को सीमित करती है और एक निश्चित सीमा तक ही उस उत्पाद को आयात करने की अनुमति देती है। उदाहरण के तौर पर, चीन के खिलौनों का आयात भारत में बड़े पैमाने पर होता है, क्योंकि चीन ने सस्ते और गुणवत्ता वाले खिलौने बनाकर वैश्विक बाजार में उन्हें उपलब्ध कराया। इससे भारत जैसे देशों में स्थानीय निर्माताओं के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है। यदि भारत सरकार चाहती है कि उसके स्थानीय खिलौना उद्योग को नुकसान न हो, तो वह कोटा प्रणाली का इस्तेमाल कर सकती है, ताकि चीन से आयातित खिलौनों की संख्या को सीमित किया जा सके।
यह उपाय यह सुनिश्चित करेगा कि स्थानीय उत्पादकों को अपनी उत्पाद क्षमता बढ़ाने का मौका मिले और वे प्रतिस्पर्धा में बने रहें। इसके अलावा, यह घरेलू उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ावा देने और स्थानीय उद्योग को सशक्त बनाने में मदद कर सकता है।
2. क्या कोटा का प्रयोग किया जाना चाहिए?
उत्तर: हाँ, कुछ मामलों में कोटा का प्रयोग करना उचित हो सकता है, खासकर उन उद्योगों में जहां घरेलू उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा हो और वे वैश्विक बाजार में मुकाबला करने के लिए तैयार न हों। यह स्थानीय उद्योगों को संरक्षण प्रदान करता है और रोजगार सृजन को बढ़ावा देता है।
हालांकि, नहीं, अगर कोटा बहुत अधिक सख्त हो, तो इससे वैश्विक व्यापार और नवाचार में रुकावट आ सकती है। यह उपभोक्ताओं के लिए विकल्पों को सीमित कर सकता है और उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं। इसलिए, कोटा को ध्यान से और संतुलित तरीके से लागू करना चाहिए, ताकि व्यापार में संतुलन बना रहे और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले।                                                                     1. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:
विश्व व्यापार संगठन (WTO) है कि जारी रखा है। देशों को व्यापार पहल पर शुरू हुआ था। विश्व व्यापार संगठन का ध्येय है वैश्विक व्यापार को सरल और निष्पक्ष बनाना। विश्व व्यापार संगठन सभी देशों के लिए व्यवहार में, देशों के बीच व्यापार से संबंधित नियम बनाता है और देखता है कि व्यापार निष्पक्ष रूप से हो। विकासशील देश, जैसे, भारत भी इसमें शामिल हैं, जबकि अधिकांश स्थितियों में विकसित देशों ने अपने उत्पादकों को संरक्षण देना प्राथमिकता दी है

2. आपके विचार से विभिन्न देशों के बीच अधिकाधिक न्यायसंगत व्यापार के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर: विभिन्न देशों के बीच अधिकाधिक न्यायसंगत व्यापार सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रमुख कदम उठाए जा सकते हैं:
व्यापार नीतियों में पारदर्शिता और समानता: देशों को व्यापारिक नियमों और प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए ताकि सभी देशों को समान अवसर मिल सकें।
विकसित और विकासशील देशों के बीच समान अवसर: वैश्विक व्यापार में शामिल देशों को एक समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, खासकर विकासशील देशों को उनके उत्पादों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा में लाने के लिए उचित अवसर देना चाहिए।
समान व्यापार नियम और शुल्क: विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक बाधाओं को कम करने के लिए शुल्क और टैक्स की समान प्रणाली होनी चाहिए।
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरण: व्यापार में शामिल देशों को पर्यावरण के बारे में भी जागरूक किया जाए, ताकि वह अपने व्यापारिक गतिविधियों में अधिक ध्यान दें और पर्यावरण की हानि न हो।
विकसित देशों द्वारा संरक्षणवाद को कम करना: विकसित देशों को अपने बाजारों में विकासशील देशों के उत्पादों के लिए अवसर बढ़ाने चाहिए, ताकि वैश्विक व्यापार में निष्पक्षता बनी रहे।

3. उपर्युक्त उदाहरण में, हमने देखा कि अमेरिकी सरकार किसानों को उत्पादन के लिए भारी धन राशि देती है। कभी-कभी सरकार कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं जैसे पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सहायता देती है। यह न्यायसंगत है या नहीं, चर्चा करें।
यह स्थिति न्यायसंगत या नहीं, इस पर विचार किया जा सकता है:
सहायता देने का उद्देश्य:
उत्तर: यदि सरकार विशेष वस्तुओं जैसे पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सहायता देती है, तो यह एक सकारात्मक कदम हो सकता है, क्योंकि इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होती है, बल्कि नये उद्योगों के लिए विकास के अवसर भी मिलते हैं। इससे दी जाने वाली सहायता का उद्देश्य समाज और पर्यावरण के लिए लाभकारी हो सकता है।
कृषि में सरकार का हस्तक्षेप: वहीं, जब सरकार किसानों को भारी धन राशि देती है, तो इससे घरेलू उत्पादक को संरक्षण मिलता है, लेकिन इस प्रकार की सहायता से वैश्विक व्यापार में असंतुलन भी पैदा हो सकता है। यह व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है और वैश्विक बाजारों में अन्य देशों के उत्पादों को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे अन्य देशों के किसानों को प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष: यह न्यायसंगत है जब सरकार का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देना हो, लेकिन यदि यह अन्य देशों के उत्पादकों के लिए अनुचित प्रतिस्पर्धा का कारण बनता है, तो यह न केवल न्यायसंगत नहीं होगा, बल्कि वैश्विक व्यापार के सिद्धांतों के खिलाफ भी हो सकता है। इसलिए, सरकारी सहायता को संतुलित तरीके से लागू करना चाहिए, ताकि वह स्थानीय और वैश्विक बाजारों के लिए समान अवसर सुनिश्चित कर सके।         1. प्रतिस्पर्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ है?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा ने भारत के लोगों को कई तरीके से लाभ पहुंचाया है:
सस्ते और बेहतर उत्पाद: प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनियों को अपनी उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना पड़ा है, जिससे उपभोक्ताओं को बेहतर गुणवत्ता और सस्ते उत्पाद मिलते हैं।
नवाचार और तकनीकी विकास: कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा ने नवाचार को बढ़ावा दिया है, जिससे नई तकनीक और उत्पादों का विकास हुआ है, जैसे स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि।
उपभोक्ता की पसंद और विकल्प: बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने बाजार में विभिन्न उत्पादों और सेवाओं के विकल्प दिए हैं, जिससे उपभोक्ताओं के पास अधिक पसंद होती है।
नौकरी के अवसर: जब कंपनियाँ बढ़ती हैं और प्रतिस्पर्धा में उभरती हैं, तो उन्हें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।

2. क्या भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभारना चाहिए? इससे देश की जनता को क्या लाभ होगा?
उत्तर: हां, भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभारने से देश की जनता को कई लाभ हो सकते हैं:
रोजगार के अवसर: जब भारतीय कंपनियाँ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में फैलती हैं, तो उन्हें नए उत्पादन संयंत्र, सेवाएं, और व्यापारिक नेटवर्क स्थापित करने की आवश्यकता होती है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
आर्थिक वृद्धि: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत के आर्थिक विकास में योगदान कर सकती हैं, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी और देशों के बीच व्यापार संबंध मजबूत होंगे।
नई तकनीकों और व्यवस्थाओं का प्रवेश: इन कंपनियों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए नई तकनीकों और व्यवस्थाओं को अपनाने की आवश्यकता होगी, जो भारतीय उद्योगों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं।
स्थिरता और समृद्धि: यदि भारतीय कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होती हैं, तो इससे देश की आर्थिक स्थिरता बढ़ेगी और समृद्धि की संभावना होगी।

3. सरकारें अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने का प्रयास क्यों करती हैं?
उत्तर: सरकारें विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए विभिन्न कारणों से प्रयास करती हैं:
आर्थिक विकास: विदेशी निवेश से देश में पूंजी का प्रवाह होता है, जिससे आर्थिक विकास होता है और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
नवाचार और तकनीकी विकास: विदेशी निवेश के साथ नई तकनीकों और व्यवस्थाओं का प्रवेश होता है, जो उद्योगों के विकास और उत्पादकता में सुधार कर सकता है।
संचालन की क्षमता में सुधार: विदेशी कंपनियाँ अक्सर उच्च गुणवत्ता की सेवाएं और प्रबंधकीय क्षमता लाती हैं, जिससे घरेलू उद्योगों को लाभ होता है।
वित्तीय समृद्धि: विदेशी निवेश से देश को धन और पूंजी मिलती है, जिससे देश के बुनियादी ढांचे और अन्य परियोजनाओं में निवेश संभव होता है।
वैश्विक संबंध: विदेशी निवेश से देशों के बीच वैश्विक व्यापारिक संबंध मजबूत होते हैं, जिससे विदेशों के साथ व्यापारिक भागीदारी में वृद्धि होती है।

4. अध्याय में हमने देखा कि एक का विकास दूसरे के लिए कैसे विध्वंसक हो सकता है। भारत के कुछ लोगों ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) की स्थापना का विरोध किया है। पता कीजिए, ये लोग कौन हैं और ये इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?
उत्तर: भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) की स्थापना का विरोध मुख्य रूप से निम्नलिखित कारणों से किया गया है:
कृषि भूमि का अधिग्रहण: SEZ के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर कृषि भूमि का अधिग्रहण किया है, जिससे किसानों और ग्रामीणों को अपनी ज़मीन से वंचित होने का डर है। इससे खेती और किसानों की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भूमि अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा नहीं: विरोध करने वाले लोग यह तर्क देते हैं कि किसानों को अपनी ज़मीन के बदले उचित मुआवजा नहीं मिल रहा है, और भूमि अधिग्रहण के दौरान कई बार जबरदस्ती की जाती है।
पर्यावरणीय नुकसान: SEZs के निर्माण से पर्यावरणीय प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे वनस्पति और जैव विविधता का नुकसान, जलवायु परिवर्तन की संभावना आदि।
स्थानीय उद्योगों पर प्रभाव: SEZ में आने वाली बड़ी कंपनियाँ अक्सर स्थानीय छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुंचाती हैं, क्योंकि वे बेहतर संसाधनों और पूंजी के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं।
किसानों और श्रमिकों की असुरक्षा: विरोध करने वाले लोग यह मानते हैं कि SEZ में काम करने वाले श्रमिकों को कम वेतन और कम सुरक्षा की स्थिति में रखा जाता है।
इन कारणों से कई लोग SEZ की स्थापना का विरोध करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह केवल बड़े निगमों को लाभ पहुंचाता है और आम आदमी, विशेषकर किसानों और श्रमिकों को नुकसान पहुंचाता है।                           1. रवि की लघु उत्पादन इकाई बढ़ती प्रतिस्पर्धा से किस प्रकार प्रभावित हुई?
उत्तर: रवि की लघु उत्पादन इकाई बढ़ती प्रतिस्पर्धा से कई तरीकों से प्रभावित हो सकती है:
मूल्य दबाव: बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण रवि को अपने उत्पादों की कीमतों में कटौती करनी पड़ सकती है, जिससे उसका मुनाफा घटेगा।
गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता: अन्य प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले अपने उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए रवि को निवेश करना पड़ सकता है।
नवीनतम प्रौद्योगिकी की आवश्यकता: प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए रवि को नई और बेहतर तकनीक अपनाने की आवश्यकता हो सकती है, जो उसे उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने में मदद करे।
संसाधनों की कमी: लघु उत्पादकों के पास संसाधन और पूंजी की कमी होती है, जिससे वे बड़े उत्पादकों के मुकाबले मुकाबला करने में संघर्ष कर सकते हैं।

2. दूसरे देशों के उत्पादकों की तुलना में उत्पादन लागत अधिक होने के कारण क्या रवि जैसे उत्पादकों को उत्पादन रोक देना चाहिए? आप क्या सोचते हैं?
उत्तर: रवि जैसे उत्पादकों को उत्पादन रोकने का कोई सही उपाय नहीं है, हालांकि उनके लिए कुछ रणनीतियाँ अपनाना फायदेमंद हो सकता है:
किफायती उत्पादन विधियाँ: रवि को उत्पादन लागत को कम करने के लिए किफायती तकनीकों और बेहतर प्रक्रियाओं का उपयोग करना चाहिए, ताकि वह प्रतिस्पर्धी मूल्य पर उत्पाद बेच सके।
नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल: रवि को अपनी तकनीक और प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण करना चाहिए, ताकि उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो सके।
विशिष्ट उत्पाद पर ध्यान केंद्रित: रवि को ऐसे उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनमें गुणवत्ता के मामले में वह अन्य उत्पादकों से बेहतर हो, ताकि वह अपनी विशिष्टता बनाए रख सके।
सरकारी सहायता: रवि सरकार से विभिन्न प्रकार की सहायता प्राप्त कर सकता है, जैसे सब्सिडी, कच्चे माल की सस्ती आपूर्ति और बेहतर विपणन नेटवर्क का निर्माण।
इसलिए, रवि को उत्पादन बंद करने के बजाय अपनी रणनीतियों में सुधार करना चाहिए ताकि वह प्रतिस्पर्धा का सामना कर सके।

3. नवीनतम अध्ययनों ने संकेत किया है कि भारत के लघु उत्पादकों की बातार में बेहतर प्रतिस्पर्धा के लिए तीन चीजों की आवश्यकता है:
(अ) बेहतर सड़कें, बिजली, पानी, कच्चा माल, विपणन और सूचना तंत्र:
उत्तर: बेहतर बुनियादी ढाँचा: अच्छी सड़कें, बिजली, पानी और कच्चा माल सही समय पर उपलब्ध होने से उत्पादकों की उत्पादन क्षमता में सुधार होगा और वे अपनी लागत को नियंत्रित कर पाएंगे।
विपणन और सूचना तंत्र: विपणन तंत्र और सूचना तंत्र के माध्यम से उत्पादक सही कीमतों पर अपने उत्पादों को बाजार में बेच पाएंगे। इससे उनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता में वृद्धि होगी और उपभोक्ता तक पहुंच आसान होगी।
(ब) प्रौद्योगिकी में सुधार एवं आधुनिकीकरण:
उत्तर: प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण: बेहतर प्रौद्योगिकी का उपयोग उत्पादकों को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने में मदद करेगा, साथ ही उत्पादन की गति और दक्षता को बढ़ाएगा, जिससे प्रतिस्पर्धा में बने रहना आसान होगा।
(स) उचित ब्याज दर पर साख की समय पर उपलब्धता:
उत्तर: सस्ती साख: यदि लघु उत्पादकों को उचित ब्याज दर पर ऋण मिलते हैं, तो वे अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकते हैं, नई तकनीकें खरीद सकते हैं और उत्पादन क्षमता बढ़ा सकते हैं।

क्या आप मानते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए इच्छुक होंगी? क्यों?
उत्तर: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए इच्छुक हो सकती हैं, क्योंकि:
बाजार का विस्तार: भारत जैसे बड़े बाजार में निवेश करने से उनके लिए लाभ का अवसर बढ़ सकता है, क्योंकि यहां की मांग और उपभोक्ता आधार विशाल है।
सस्ता श्रम और संसाधन: भारत में सस्ता श्रम और कच्चे माल की उपलब्धता है, जिससे लागत को कम किया जा सकता है।
सरकार की नीतियाँ: भारत सरकार द्वारा लघु उद्योगों और प्रौद्योगिकी में सुधार के लिए विभिन्न योजनाएं और सब्सिडी दी जा रही हैं, जो विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकती हैं।

क्या आप मानते हैं कि इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने में सरकार की भूमिका है? क्यों?
उत्तर: हां, सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि:
बुनियादी ढाँचे का विकास: सरकार को सड़कों, बिजली, पानी और कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निवेश करना चाहिए।
प्रौद्योगिकी और साख: सरकार को सस्ती साख उपलब्ध कराने और प्रौद्योगिकी में सुधार के लिए अनुदान और निवेश की योजनाएं बनानी चाहिए।
विपणन और सूचना तंत्र: सरकार को विपणन नेटवर्क को सशक्त बनाने और छोटे उत्पादकों को सूचना तंत्र से जोड़ने के लिए योजनाएं लागू करनी चाहिए।

क्या आप कोई ऐसा उपाय सुझा सकते हैं जिसे सरकार अपना सके? चर्चा करें।
उत्तर: सरकार को निम्नलिखित उपायों पर विचार करना चाहिए:
लघु उत्पादकों के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) बनाना: SEZs से छोटे उत्पादकों को सस्ते कच्चे माल, प्रौद्योगिकी और बेहतर विपणन की सुविधाएं मिल सकती हैं।
कम ब्याज दर पर ऋण: सरकार को लघु उद्योगों के लिए विशेष ऋण योजनाएं लानी चाहिए ताकि वे अपनी कार्यप्रणाली में सुधार कर सकें।
आधुनिकीकरण के लिए प्रोत्साहन: छोटे उत्पादकों को नवीनतम तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहन देने के लिए सरकारी सब्सिडी और योजनाएं बनाई जा सकती हैं।
निर्यात में मदद: सरकार छोटे उत्पादकों को विदेशी बाजारों में प्रवेश करने के लिए सहायता प्रदान कर सकती है, ताकि वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सफल हो सकें।
इस प्रकार सरकार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और उसे लघु उत्पादकों के हितों की रक्षा करने के लिए कड़ी नीतियाँ बनानी चाहिए।  
1. वस्त्र उद्योग के श्रमिकों, भारतीय निर्यातकों और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
वस्त्र उद्योग के श्रमिकों: 
उत्तर: बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण, वस्त्र उद्योग के श्रमिकों को कई नकरात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ा है। अधिकांश श्रमिकों को अस्थायी रोजगार मिलता है और उन्हें काम के घंटों में वृद्धि और कम वेतन का सामना करना पड़ता है। फैक्ट्रियाँ काम की शर्तों में सुधार की बजाय श्रमिकों से अधिक कार्य लेने की कोशिश करती हैं, जिससे उनकी जीवनशैली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
भारतीय निर्यातक: भारतीय निर्यातकों को वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा से लाभ हुआ है, क्योंकि उन्होंने विदेशी बाजारों में प्रवेश किया है, लेकिन उन्हें लागत घटाने के लिए श्रमिकों की मजदूरी और श्रमिकों के रोजगार की शर्तों में कटौती करनी पड़ती है। इसके परिणामस्वरूप वे श्रमिकों से अधिक घंटे काम लेने के लिए मजबूर होते हैं, ताकि वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रह सकें।
विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ: विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्वीकरण से लाभ उठा रही हैं क्योंकि वे कम लागत वाले देशों से उत्पाद मंगवाकर ज्यादा मुनाफा कमा सकती हैं। वे भारतीय निर्यातकों से सस्ते उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं, जो भारतीय श्रमिकों और उद्योग के लिए दबाव का कारण बनता है। हालांकि, इन कंपनियों को उत्पादों की गुणवत्ता और समयबद्ध आपूर्ति पर ध्यान देना होता है, जिससे वे प्रतिस्पर्धा को सहन कर पाने के लिए निरंतर अपनी आपूर्ति श्रृंखला में सुधार करती हैं।

2. वैश्वीकरण से मिले लाभों में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा मिल सके, इसके लिए प्रत्येक निम्न वर्ग क्या कर सकता है?
उत्तर: (क) सरकार: सरकार को श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कानूनों और नीतियों को सख्ती से लागू करना चाहिए। इसके तहत श्रमिकों को स्थायी रोजगार, स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि और उचित मजदूरी सुनिश्चित करनी चाहिए। सरकार श्रमिकों के लिए काम के घंटों की सीमा तय कर सकती है और उनके लिए न्यूनतम वेतन की व्यवस्था कर सकती है।
(ख) निर्यातक फैक्ट्रियों के नियोक्ता: नियोक्ता को श्रमिकों को स्थायी रोजगार और समान वेतन देने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में बेहतर कार्य स्थितियाँ और सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करना चाहिए। नियोक्ता को श्रमिकों की भलाई के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ और बीमा प्रदान करनी चाहिए।
(ग) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ: बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने भारतीय निर्यातकों से सस्ते उत्पाद मांगने के बावजूद श्रमिकों के अधिकारों और उनके जीवन स्तर को ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें अपने आपूर्तिकर्ताओं से यह सुनिश्चित करने की मांग करनी चाहिए कि श्रमिकों को उचित मजदूरी, सुरक्षित कार्य स्थिति और स्थायी रोजगार मिलें।
(घ) श्रमिक: श्रमिकों को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना चाहिए और एकजुट होकर श्रम संगठनों में भाग लेना चाहिए ताकि उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके। उन्हें समान वेतन, उचित कार्य घंटे और सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों के लिए संघर्ष करना चाहिए।

3. वर्तमान समय में भारत में बहस है कि क्या कंपनियों को रोजगार नीतियों के मुद्दे पर लचीलापन चाहिए। इस अध्याय के आधार पर नियोक्ताओं और श्रमिकों के पक्षों का संक्षिप्त विवरण दें।
नियोक्ताओं का पक्ष:
उत्तर: नियोक्ता यह तर्क करते हैं कि लचीली रोजगार नीतियाँ उन्हें प्रतिस्पर्धा में बने रहने की अनुमति देती हैं। वे कहते हैं कि यदि श्रमिकों को स्थायी रोजगार नहीं दिया जाता और वे अस्थायी आधार पर काम करते हैं, तो कंपनियाँ अपनी लागतों को कम रख सकती हैं और उत्पादन प्रक्रिया को तेज कर सकती हैं। इसके अलावा, लचीले रोजगार से कंपनियों को आर्थ‍िक संकट के दौरान श्रमिकों की संख्या घटाने या बढ़ाने का अधिकार होता है, जिससे वे लागत पर नियंत्रण रख सकते हैं।
श्रमिकों का पक्ष: श्रमिक यह तर्क करते हैं कि लचीली रोजगार नीतियाँ उन्हें सुरक्षा और स्थिरता नहीं देतीं। अस्थायी रोजगार से श्रमिकों को न तो स्थायी वेतन मिलता है और न ही उनके अधिकारों की गारंटी होती है। इसके कारण उन्हें सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि और अन्य लाभों से वंचित होना पड़ता है। श्रमिकों का कहना है कि स्थायी रोजगार उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने और काम के घंटे निर्धारित करने में मदद करता है।
इस प्रकार, इस बहस में दोनों पक्षों के विचार हैं। नियोक्ता जहाँ लचीलापन चाहते हैं, वहीं श्रमिक स्थिरता और अधिकारों की मांग करते हैं।



                                                                                     THANK YOU - 
                                                                                      AUTHOR-RUMI DEKA.