आर्थिक विकास की समझ
1. विभिन्न क्षेत्रकों की परस्पर निर्भरता दिखाते हुए उपर्युक्त सारणी को भरना:
| आर्थिक क्षेत्रक | कार्य का स्वभाव | महत्वपूर्ण निष्कर्ष | समस्याएँ और समाधान |
|---|---|---|---|
| प्राथमिक | प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और उन्हें उत्पन्न करना | यह क्षेत्रक कृषि, खनन, मत्स्य पालन आदि पर आधारित है। इसे प्राथमिक क्षेत्रक कहा जाता है क्योंकि यह सीधे प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ा है। | प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, भूमि सुधार, कृषि उत्पादकता बढ़ाना। |
| द्वितीयक | कच्चे माल का प्रसंस्करण और विनिर्माण | इस क्षेत्रक में कच्चे माल को तैयार वस्तुओं में बदला जाता है, जैसे उद्योग और निर्माण कार्य। | निर्माण में लागत बढ़ने, कच्चे माल की कमी, और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा। |
| तृतीयक | सेवा आधारित गतिविधियाँ | तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ और अन्य सेवाएं शामिल हैं। | सेवा क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना, गुणवत्ता नियंत्रण, और किफायती सेवाएँ उपलब्ध कराना। |
2. प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों के अंतर को व्याख्या:
-
प्राथमिक क्षेत्रक में काम करने वाली गतिविधियाँ सीधे प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ी होती हैं। इसमें कृषि, खनन, वानिकी, मछली पालन आदि आते हैं। इन गतिविधियों में लोग प्राकृतिक संसाधनों को खींचकर उन्हें उपयोगी बनाने का काम करते हैं।
-
द्वितीयक क्षेत्रक में कच्चे माल को तैयार वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया होती है। जैसे कि कपड़ा मिल, स्टील उत्पादन, निर्माण उद्योग आदि। इसमें उत्पादन का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के लिए वस्तुओं का निर्माण करना है।
-
तृतीयक क्षेत्रक सेवाओं पर आधारित है। यह व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, वित्तीय सेवाएँ आदि प्रदान करता है। इसमें प्रत्यक्ष उत्पाद निर्माण नहीं होता, बल्कि ग्राहकों को सेवाएँ दी जाती हैं।
3. व्यवसायों का प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में विभाजन:
प्राथमिक क्षेत्रक:
- मधुमक्खी पालक
- फूल की खेती करने वाला
- मछुआरा
- कुम्हार
द्वितीयक क्षेत्रक:
- दियासलाई कारखाना में श्रमिक
- टोकरी बुनकर
तृतीयक क्षेत्रक:
- पुजारी
- कूरियर पहुँचाने वाला
- महाजन
- माली
- अंतरिक्ष यात्री
- दूध-विक्रेता
- कॉल सेंटर का कर्मचारी
4. विद्यालय में छात्रों को प्रायः प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन की कसौटी क्या है? क्या आप मानते हैं कि यह विभाजन उपयुक्त है? चर्चा करें:
- कसौटी: विद्यार्थियों का आयु, कक्षा में उनकी प्रगति, और उनके द्वारा सीखने जा रहे विषयों की जटिलता इस विभाजन का आधार होते हैं। प्राथमिक वर्ग में विद्यार्थियों को सामान्य और सरल पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाती है, जबकि द्वितीयक (या वरिष्ठ) वर्ग में जटिल और गहरे विषयों की पढ़ाई होती है।
-
क्या यह उपयुक्त है?:
-
यह विभाजन उपयुक्त है, क्योंकि हर कक्षा में छात्रों का विकास और समझ अलग-अलग होती है। छोटे बच्चों के लिए सरल और सामान्य शिक्षा आवश्यक होती है, जबकि वरिष्ठ कक्षाओं के विद्यार्थियों को अधिक विश्लेषणात्मक और उच्च-स्तरीय ज्ञान की आवश्यकता होती है। इस विभाजन से छात्रों को उनके आयु और शिक्षा स्तर के अनुसार सही सामग्री मिलती है, जो उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने में मदद करती है।
-
हालांकि, कुछ मामलों में बच्चों की व्यक्तिगत क्षमताओं और रुचियों को भी ध्यान में रखते हुए एक लचीला शिक्षा मॉडल अपनाना चाहिए, ताकि हर विद्यार्थी को अपनी पूरी क्षमता का विकास करने का अवसर मिल सके।
इसके बाद, जैसे-जैसे औद्योगिकीकरण और सेवाओं का क्षेत्र बढ़ा, अन्य क्षेत्रकों का योगदान बढ़ा, लेकिन 1973-74 में प्राथमिक क्षेत्र ही भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र था।
2.. 2013-14 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर: 2013-14 में भारत का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक तृतीयक क्षेत्र (Services sector) था।
इस समय, सेवाओं का क्षेत्र जैसे सूचना प्रौद्योगिकी (IT), वित्त, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, और पर्यटन ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तृतीयक क्षेत्र का योगदान लगातार बढ़ रहा था और इसने औद्योगिक (द्वितीयक) और कृषि (प्राथमिक) क्षेत्रों को पीछे छोड़ दिया।
इसके परिणामस्वरूप, 2013-14 तक तृतीयक क्षेत्र भारतीय जीडीपी (GDP) का सबसे बड़ा हिस्सा बन गया था।
3. क्या आप बता सकते हैं कि तीस वर्षों में किस क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई?
उत्तर: पिछले तीस वर्षों (1990-2020) में तृतीयक क्षेत्र (Services sector) में सबसे अधिक संवृद्धि (growth) हुई है।
भारत में तृतीयक क्षेत्र में सेवाओं की माँग में भारी वृद्धि हुई है, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी (IT), वित्तीय सेवाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, और संचार सेवाओं के क्षेत्र में।
इस अवधि में, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और सॉफ्टवेयर उद्योग ने वैश्विक स्तर पर भारत को एक प्रमुख तकनीकी केंद्र के रूप में स्थापित किया। इसके साथ ही, बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, और बीमा जैसे अन्य सेवाएँ भी तेजी से बढ़ी।
तृतीयक क्षेत्र का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार बढ़ रहा है और इसने कृषि और उद्योग (द्वितीयक क्षेत्र) को पीछे छोड़ दिया है। यह क्षेत्र अब भारतीय जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा है, और इसके विकास से लाखों रोजगार अवसर भी सृजित हुए हैं।
उत्तर: 2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) लगभग ₹121.88 लाख करोड़ (₹121.88 trillion) था, जो भारतीय रुपयों में था।
यह आंकड़ा भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को दर्शाता है, जो उस वर्ष में लगभग 4.7% के आसपास रही थी। 2013-14 में भारत की अर्थव्यवस्था कुछ स्थिरता की ओर बढ़ रही थी, जबकि वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभाव और घरेलू चुनौतियों के कारण वृद्धि दर अपेक्षाकृत धीमी थी।
तालिका 2.2
सकल घरेलू उत्पाद (स.घ.उ.) और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
| वर्ष | सघु में हिस्सेदारी (%) | रोजगार में हिस्सेदारी (%) |
|---|---|---|
| 1973-74 | लगभग 50% | लगभग 72% |
| 1977-78 | लगभग 45% | लगभग 70% |
| 2013-14 | लगभग 14% | लगभग 49% |
| 2017-18 | लगभग 15% | लगभग 42% |
(ये आंकड़े अनुमानित हैं; कृपया अपनी पाठ्यपुस्तक के अनुसार मिलान करना।)
प्रश्नों के उत्तर:
1. 40 वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में आप क्या परिवर्तन देखते हैं?
उत्तर: ➔ पिछले 40 वर्षों में प्राथमिक क्षेत्र (मुख्यतः कृषि) की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हिस्सेदारी बहुत कम हो गई है, लेकिन रोजगार में इसका योगदान अपेक्षाकृत धीमी गति से घटा है।
➔ इसका अर्थ है कि अब भी बड़ी संख्या में लोग कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं, जबकि उस क्षेत्र से देश की कुल आय में योगदान काफी घट गया है।
➔ इससे 'अल्प बेरोजगारी' जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं।
2. सही उत्तर का चयन करें:
➔ सही उत्तर है: (स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
(इसे 'अल्प बेरोजगारी' या 'Underemployment' कहते हैं।)
3. विकसित देशों में देखे गए लक्षणों की भारत में हुए परिवर्तनों से तुलना करें और वैषम्य बतायें। भारत में क्षेत्रकों के बीच किस प्रकार के परिवर्तन याचित थे, जो नहीं हुए?
➔ विकसित देशों में:
- कृषि क्षेत्र से लोग तेजी से उद्योग और सेवा क्षेत्रों में चले गए।
- सेवा क्षेत्र में आय और रोजगार दोनों तेजी से बढ़े।
- औद्योगीकरण ने बड़ी संख्या में रोजगार सृजित किए।
➔ भारत में:
- कृषि में रोजगार की हिस्सेदारी धीमी गति से घट रही है।
- सेवा क्षेत्र का GDP में योगदान तो तेजी से बढ़ा, लेकिन रोजगार सृजन अपेक्षाकृत कम रहा।
- औद्योगिक क्षेत्र में भी अपेक्षित स्तर पर रोजगार नहीं बढ़े।
- इसके चलते "विकास के बिना रोजगार" (Jobless Growth) जैसी स्थिति उत्पन्न हुई है।
4. हमें अल्प बेरोजगारी के संबंध में क्यों विचार करना चाहिए?
उत्तर: ➔ अल्प बेरोजगारी से आर्थिक संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं होता।
➔ इससे व्यक्ति की आय कम रहती है, जीवन स्तर गिरा रहता है।
➔ देश की आर्थिक प्रगति बाधित होती है।
➔ अल्प बेरोजगारी को कम करने के लिए नीति बनानी और शिक्षा/कौशल विकास पर ध्यान देना जरूरी है।
5. अतिरिक्त रोजगार का सृजन कैसे हो?
उत्तर: ➔ कृषि में तकनीकी सुधार और आधुनिकरण कर।
➔ लघु एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देकर।
➔ सेवा क्षेत्र (जैसे IT, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन) में निवेश बढ़ाकर।
➔ स्वरोजगार को प्रोत्साहन देकर (स्टार्टअप्स, उद्यमिता)।
➔ कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित कर।
बहुत अच्छा, तुमने "आओ-इन पर विचार करें" के अगले हिस्से भेजे हैं।
मैं हर प्रश्न का सरल और स्पष्ट उत्तर क्रम से दे रही हूँ:
1. आपके विचार से म.गाँ.रा.ग्रा.रो.गा.अ. (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम - MGNREGA) को 'काम का अधिकार' क्यों कहा गया है?
उत्तर: ➔ क्योंकि इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को न्यूनतम 100 दिन का भुगतान वाला रोजगार कानूनी रूप से गारंटीकृत किया गया है।
➔ यदि सरकार रोजगार नहीं दे पाती है, तो बेरोजगारी भत्ता भी देना पड़ता है।
➔ इस तरह, हर व्यक्ति को काम पाने का अधिकार (Right to Work) मिलता है, जो कानून द्वारा सुरक्षित है।
➔ इससे गरीबों को आर्थिक सुरक्षा मिलती है और जीवन स्तर सुधरता है।
2. कल्पना कीजिए कि आप ग्राम के प्रधान हैं। उन क्रियाकलापों का सुझाव दीजिए जिससे आय में वृद्धि हो और जिन्हें अधिनियम के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए।
उत्तर: यदि मैं ग्राम प्रधान होती, तो ये काम सुझाती:
-
जल संरक्षण के कार्य: तालाबों, कुओं, नहरों की खुदाई और मरम्मत।
-
पशुपालन सुविधाएँ: गाय-भैंस पालन, मुर्गी पालन केंद्र बनाना।
-
बागवानी कार्य: फलदार वृक्ष लगाना (जैसे आम, अमरूद, नींबू)।
-
कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना: जैसे हस्तशिल्प, बुनाई, मधुमक्खी पालन।
-
ग्रामीण सड़कें और पुल बनाना: जिससे बाजारों से संपर्क सुधरे और उत्पादों की बिक्री बढ़े।
-
कृषि सुधार कार्य: खेतों का समतलीकरण, जैविक खाद उत्पादन।
-
डिजिटल साक्षरता अभियान: ताकि ग्रामीण नई तकनीकों से रोजगार पा सकें।
➔ इन सभी कार्यों से लोगों की आय में सीधी वृद्धि होगी, और दीर्घकाल में गांव का आर्थिक विकास होगा।
3. यदि किसानों को सिंचाई और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं तो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर: ➔ सिंचाई सुविधाएँ मिलने से:
- फसल की पैदावार बढ़ेगी।
- किसान साल में कई फसलें उगा सकेंगे (multi-cropping)।
- सूखे के समय भी खेती संभव होगी।
➔ विपणन सुविधाएँ (जैसे मंडी, गोदाम, बिक्री केंद्र) मिलने से:
- किसान अपनी फसलें उचित दाम पर बेच पाएंगे।
- बिचौलियों की भूमिका घटेगी, और किसानों को अधिक मुनाफा मिलेगा।
- इससे गाँवों में पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा और रोजगार के नए अवसर बनेंगे (जैसे फसल संग्रहण, प्रोसेसिंग यूनिट्स)।
4. शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर: ➔ उद्योगों का विस्तार करना: छोटे और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन देना।
➔ सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना: शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, होटल, IT सेक्टर में नौकरियाँ बढ़ाना।
➔ स्टार्टअप्स और नवाचार को समर्थन देना: युवाओं के लिए उद्यमिता के अवसर बढ़ाना।
➔ शहरी गरीबों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम: जैसे ड्राइविंग, सिलाई, कंप्यूटर प्रशिक्षण।
➔ बुनियादी ढाँचा सुधारना: सड़क, परिवहन, हाउसिंग प्रोजेक्ट्स से मजदूरी आधारित रोजगार सृजन।
संक्षेप में:
भारतीय अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रकों (प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक) में संतुलित विकास और रोजगार सृजन आवश्यक है।
बिना क्षेत्रीय असमानता घटाए हम समग्र आर्थिक विकास नहीं कर सकते।
1. आपके विचार से म.गाँ.रा.ग्रा.रो.गा.अ. (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम - MGNREGA) को 'काम का अधिकार' क्यों कहा गया है?
उत्तर: ➔ क्योंकि इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को न्यूनतम 100 दिन का भुगतान वाला रोजगार कानूनी रूप से गारंटीकृत किया गया है।
➔ यदि सरकार रोजगार नहीं दे पाती है, तो बेरोजगारी भत्ता भी देना पड़ता है।
➔ इस तरह, हर व्यक्ति को काम पाने का अधिकार (Right to Work) मिलता है, जो कानून द्वारा सुरक्षित है।
➔ इससे गरीबों को आर्थिक सुरक्षा मिलती है और जीवन स्तर सुधरता है।
2. कल्पना कीजिए कि आप ग्राम के प्रधान हैं। उन क्रियाकलापों का सुझाव दीजिए जिससे आय में वृद्धि हो और जिन्हें अधिनियम के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए।
उत्तर: -यदि मैं ग्राम प्रधान होती, तो ये काम सुझाती:
- जल संरक्षण के कार्य: तालाबों, कुओं, नहरों की खुदाई और मरम्मत।
- पशुपालन सुविधाएँ: गाय-भैंस पालन, मुर्गी पालन केंद्र बनाना।
- बागवानी कार्य: फलदार वृक्ष लगाना (जैसे आम, अमरूद, नींबू)।
- कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना: जैसे हस्तशिल्प, बुनाई, मधुमक्खी पालन।
- ग्रामीण सड़कें और पुल बनाना: जिससे बाजारों से संपर्क सुधरे और उत्पादों की बिक्री बढ़े।
- कृषि सुधार कार्य: खेतों का समतलीकरण, जैविक खाद उत्पादन।
- डिजिटल साक्षरता अभियान: ताकि ग्रामीण नई तकनीकों से रोजगार पा सकें।
➔ इन सभी कार्यों से लोगों की आय में सीधी वृद्धि होगी, और दीर्घकाल में गांव का आर्थिक विकास होगा।
3. यदि किसानों को सिंचाई और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं तो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर: ➔ सिंचाई सुविधाएँ मिलने से:
-
फसल की पैदावार बढ़ेगी।
-
किसान साल में कई फसलें उगा सकेंगे (multi-cropping)।
-
सूखे के समय भी खेती संभव होगी।
➔ विपणन सुविधाएँ (जैसे मंडी, गोदाम, बिक्री केंद्र) मिलने से:
-
किसान अपनी फसलें उचित दाम पर बेच पाएंगे।
-
बिचौलियों की भूमिका घटेगी, और किसानों को अधिक मुनाफा मिलेगा।
-
इससे गाँवों में पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा और रोजगार के नए अवसर बनेंगे (जैसे फसल संग्रहण, प्रोसेसिंग यूनिट्स)।
4. शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर: ➔ उद्योगों का विस्तार करना: छोटे और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन देना।
➔ सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना: शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, होटल, IT सेक्टर में नौकरियाँ बढ़ाना।
➔ स्टार्टअप्स और नवाचार को समर्थन देना: युवाओं के लिए उद्यमिता के अवसर बढ़ाना।
➔ शहरी गरीबों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम: जैसे ड्राइविंग, सिलाई, कंप्यूटर प्रशिक्षण।
➔ बुनियादी ढाँचा सुधारना: सड़क, परिवहन, हाउसिंग प्रोजेक्ट्स से मजदूरी आधारित रोजगार सृजन।
संक्षेप में:
भारतीय अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रकों (प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक) में संतुलित विकास और रोजगार सृजन आवश्यक है।
बिना क्षेत्रीय असमानता घटाए हम समग्र आर्थिक विकास नहीं कर सकते।
1. निम्नलिखित में से कौन असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं?
उत्तर: ➔ असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं:
- बाजार में अपनी पीठ पर सीमेन्ट की बोरी ढोता हुआ एक श्रमिक
- अपने खेत की सिंचाई करता एक किसान
- एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक
- अपने घर में काम करता एक करघा बुनकर
(शिक्षक और डॉक्टर यदि सरकारी स्कूल या अस्पताल में काम कर रहे हैं, तो वे संगठित क्षेत्रक में आते हैं।)
2. संगठित क्षेत्रक में काम करने वाले और असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले व्यक्ति की कार्य स्थितियों की तुलना:
| विशेषता | संगठित क्षेत्रक | असंगठित क्षेत्रक |
|---|---|---|
| नौकरी की सुरक्षा | सुरक्षित (Written Contract) | असुरक्षित (कोई लिखित अनुबंध नहीं) |
| वेतन | नियमित और तय वेतन | अनिश्चित और कम वेतन |
| काम के घंटे | निश्चित समय (जैसे 8 घंटे) | काम के घंटे तय नहीं |
| सुविधाएँ | छुट्टी, बीमा, पेंशन, पीएफ आदि | सुविधाएँ नहीं मिलतीं या बहुत कम |
| अधिकार और नियम | श्रम कानूनों द्वारा संरक्षित | नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर |
3. असंगठित और संगठित क्षेत्रक के बीच विभेद:
➔ संगठित क्षेत्रक में कार्य करने वालों को तय वेतन, नौकरी की सुरक्षा, सरकारी नियमों का पालन, पेंशन, Provident Fund, स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएँ मिलती हैं।
➔ असंगठित क्षेत्रक में कार्य करने वालों के पास न तो निश्चित वेतन होता है, न नौकरी की सुरक्षा और न ही सामाजिक सुरक्षा सुविधाएँ। उनकी आजीविका नियोक्ता की इच्छा और बाजार की स्थिति पर निर्भर रहती है।
सरल भाषा में:
- संगठित क्षेत्रक = सुरक्षित, नियमों के तहत।
- असंगठित क्षेत्रक = असुरक्षित, नियमों का अभाव।
4. तालिका 2.2 — विभिन्न क्षेत्रकों में श्रमिकों की संख्या (पूर्ति करें):
| क्षेत्रक | संगठित (दस लाख में) | असंगठित (दस लाख में) | कुल (दस लाख में) |
|---|---|---|---|
| प्राथमिक | 1 | 231 | 232 |
| द्वितीयक | 41 | 74 | 115 |
| तृतीयक | 40 | 132 | 172 |
| कुल | 82 | 437 | 519 (100%) |
✅ (Note: 231, 74 और 132 के आंकड़े गणना से निकाले गए हैं।)
प्रश्नों के उत्तर:
(i) असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लगे लोगों का प्रतिशत क्या है?
-
असंगठित क्षेत्रक में कुल श्रमिक = 437 लाख।
तो, प्रतिशत = (231 ÷ 437) × 100 ≈ 52.85%
(ii) क्या आप सहमत हैं कि कृषि असंगठित क्षेत्रक की गतिविधि है? क्यों?
उत्तर: ➔ हाँ, मैं सहमत हूँ।
क्योंकि कृषि क्षेत्र में अधिकांश किसान छोटे किसान हैं, जिनके पास नौकरी की सुरक्षा नहीं होती, कोई तय वेतन नहीं होता, और मजदूरी, मौसम, फसल की कीमत पर निर्भर रहती है। वे असंगठित तरीके से काम करते हैं।
(iii) सम्पूर्ण भारत में संगठित और असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की स्थिति:
उत्तर: ➔ भारत में अधिकांश श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम करते हैं।
➔ केवल लगभग 16% श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोजगार उपलब्ध है।
(जैसा कि कुल 519 में से 82 लाख संगठित क्षेत्रक में हैं।)
1. कोष्ठक में दिए गए सही विकल्प का प्रयोग कर रिक्त स्थानों की पूर्ति:
(क) सेवा क्षेत्रक में रोजगार में उत्पादन के समान अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है।
(ख) तृतीयक क्षेत्रक के श्रमिक वस्तुओं का उत्पादन नहीं करते हैं।
(ग) संगठित क्षेत्रक के अधिकांश श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त होती है।
(घ) भारत में छोटे अनुपात में श्रमिक संगठित क्षेत्रक में और बड़े अनुपात में असंगठित क्षेत्रक में काम कर रहे हैं।
(ङ) कपास एक प्राकृतिक उत्पाद है और कपड़ा एक विनिर्मित उत्पाद है।
(च) प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों की गतिविधियाँ परस्पर निर्भर हैं।
2. सही उत्तर का चयन:
(अ) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक आधार पर विभाजित हैं:
उत्तर: (ग) उद्यमों के स्वामित्व
(ब) एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया गतिविधि है:
उत्तर: (क) प्राथमिक
(स) किसी वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योग कहलाता है:
➔ (यह सवाल थोड़ा कट गया है) — लेकिन सही उत्तर होगा: सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
(द) भारत की GDP में तृतीयक क्षेत्रक का हिस्सा कितना है?
(विकल्प: 30 से 40%, 50 से 60%, 60 से 70%)
उत्तर: (घ) 60 से 70
3. निम्नलिखित का मेल कीजिए - कृषि क्षेत्रक की समस्याएँ:
| कृषि क्षेत्रक की समस्या | संभावित उपाय |
|---|---|
| 1. असिंचित भूमि | (द) सरकार द्वारा नहरों का निर्माण |
| 2. फसलों का कम मूल्य | (स) सरकार द्वारा खाद्यान्नों की वसूली |
| 3. कर्ज भार | (ग) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख |
| 4. मंदी काल में रोजगार का अभाव | (अ) कृषि आधारित मिलों की स्थापना |
| 5. कटाई के तुरन्त बाद अनाज बेचने की विवशता | (ब) सहकारी विपणन समितियाँ |
4. विषम की पहचान करें और कारण बताएँ:
(क) पर्यटन-निर्देशक, धोबी, दर्जी, कुम्हार ➔ पर्यटन-निर्देशक विषम है।
कारण: बाकी सब पारंपरिक सेवाएँ दे रहे हैं जबकि पर्यटन-निर्देशक का कार्य आधुनिक सेवा उद्योग से जुड़ा है।
(ख) शिक्षक, डॉक्टर, सब्जी विक्रेता, वकील ➔ सब्जी विक्रेता विषम है।
कारण: बाकी सभी पेशे विशेष प्रशिक्षण या डिग्री से जुड़े हैं जबकि सब्जी विक्रेता अनौपचारिक कार्य करते हैं।
(ग) डाकिया, मोची, सैनिक, पुलिस कांस्टेबल ➔ मोची विषम है।
कारण: डाकिया, सैनिक और कांस्टेबल सरकारी संगठित क्षेत्रक से जुड़े हैं जबकि मोची असंगठित निजी क्षेत्रक में है।
(घ) एम.टी.एन.एल., भारतीय रेल, एयर इंडिया, जेट एयरवेज ➔ जेट एयरवेज विषम है।
कारण: बाकी सभी सरकारी संस्थान हैं जबकि जेट एयरवेज निजी कंपनी है।
5. तालिका को पूरा करें — सूरत शहर के आँकड़े:
| कार्य स्थान | रोजगार की प्रकृति | श्रमिकों का प्रतिशत |
|---|---|---|
| सरकार द्वारा पंजीकृत कार्यालयों/कारखानों में | संगठित | 20% |
| बाजारों में अपनी दुकान, ऑफिस, क्लिनिक चलाने वाले | असंगठित | 36% |
| सड़कों पर काम करने वाले लोग | असंगठित | 12% |
| निर्माण श्रमिक, घरेलू श्रमिक आदि | असंगठित | 32% |
| कुल | 100% |
➔ इस शहर में असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की प्रतिशतता:
= 36% + 12% + 32% = 80%
6. क्या क्षेत्रीय विभाजन उपयोगी है?
उत्तर: हाँ, प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में आर्थिक गतिविधियों का विभाजन उपयोगी है क्योंकि:
- इससे पता चलता है कि किस क्षेत्र में कितने लोग काम कर रहे हैं।
- किस क्षेत्र में अधिक उत्पादन या रोजगार हो रहा है, इसका विश्लेषण आसान होता है।
- सरकार नीति बनाते समय प्रत्येक क्षेत्रक की अलग-अलग आवश्यकताओं को समझ सकती है।
➔ इससे समुचित आर्थिक विकास और योजनाबद्ध प्रगति संभव होती है।
7. रोजगार और सघउ पर केंद्र क्यों?
उत्तर: रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अर्थव्यवस्था के मुख्य संकेतक हैं:
- रोजगार से लोगों की आय और जीवन स्तर प्रभावित होता है।
- GDP से देश की आर्थिक समृद्धि मापी जाती है।
8. जीविका से जुड़े कार्यों की सूची और वर्गीकरण:
उदाहरण सूची:
- किसान, दुकानदार, शिक्षक, डॉक्टर, ऑटो ड्राइवर, इंजीनियर, मजदूर, कपड़े धोने वाला, फेरीवाला।
वर्गीकरण:
- प्राथमिक क्षेत्रक: किसान
- द्वितीयक क्षेत्रक: निर्माण श्रमिक, फैक्टरी वर्कर
- तृतीयक क्षेत्रक: शिक्षक, डॉक्टर, ऑटो चालक, दुकानदार
➔ कारण: इस आधार पर कि वे वस्तु का उत्पादन करते हैं या सेवा प्रदान करते हैं।
9. तृतीयक क्षेत्रक कैसे भिन्न है?
उत्तर:- तृतीयक क्षेत्रक सेवा आधारित है, जबकि प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक वस्तुएँ उत्पादन करते हैं।
- उदाहरण: शिक्षक बच्चों को शिक्षा देते हैं (सेवा), डॉक्टर मरीजों का इलाज करते हैं।
- इसके विपरीत किसान फसल उगाते हैं (वस्तु उत्पादन) और कारखाना श्रमिक वस्तुएँ बनाते हैं।
10. प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment):
उत्तर: जब एक से अधिक लोग किसी कार्य में लगे हों, जबकि कुछ लोग हटाए जाने पर भी उत्पादन में कोई कमी न आए, तो वह प्रच्छन्न बेरोजगारी है।
ग्रामीण उदाहरण: एक छोटे खेत पर पाँच लोग काम कर रहे हैं जबकि दो ही काफी हैं।
शहरी उदाहरण: एक छोटी दुकान में चार लोग काम करते हैं जबकि दो लोग ही पर्याप्त हैं।
11. खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी में भेद:
| आधार | खुली बेरोजगारी | प्रच्छन्न बेरोजगारी |
|---|---|---|
| परिभाषा | जब व्यक्ति के पास कोई काम नहीं होता है। | जब व्यक्ति कार्य में लगा है लेकिन उसकी आवश्यकता नहीं है। |
| पहचान | आसानी से दिखाई देती है। | छुपी हुई रहती है। |
| उदाहरण | बेरोजगार युवा शहरों में | ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में |
12. "भारतीय अर्थव्यवस्था में तृतीयक क्षेत्रक की भूमिका"
➔ मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ।
कारण:
- आज के समय में तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्र) सबसे तेजी से बढ़ रहा है।
- व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सेवाएँ अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य बन गई हैं।
- भारत की GDP में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान सबसे अधिक है।
- यह बड़े पैमाने पर रोजगार भी प्रदान कर रहा है।
13. भारत में सेवा क्षेत्र में नियोजित दो प्रकार के लोग:
-
उच्च कौशल वाले लोग — जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, शिक्षक।
-
कम कौशल वाले लोग — जैसे सफाईकर्मी, घरेलू कामगार, धोबी, मोची।
14. "असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण"
➔ हाँ, मैं सहमत हूँ।
कारण:
- मजदूरी बहुत कम दी जाती है।
- काम के घंटे अधिक होते हैं, पर सुविधाएँ नहीं मिलतीं।
- रोजगार स्थिर नहीं होता।
- सुरक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएँ भी नहीं होतीं।
15. रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर गतिविधियों का वर्गीकरण:
➔ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर दो क्षेत्रक होते हैं:
-
संगठित क्षेत्रक — निश्चित कार्य-समय, नियमित वेतन, सामाजिक सुरक्षा।
-
असंगठित क्षेत्रक — अनिश्चित कार्य-समय, अनियमित वेतन, कोई सुरक्षा नहीं।
16. संगठित और असंगठित क्षेत्रक की तुलना:
| संगठित क्षेत्रक | असंगठित क्षेत्रक |
|---|---|
| निश्चित वेतन और काम के घंटे। | अनिश्चित वेतन और काम के घंटे। |
| EPF, पेंशन, बीमा सुविधाएँ मिलती हैं। | कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं। |
| सरकार द्वारा नियमबद्ध। | सरकार द्वारा बहुत कम नियंत्रण। |
17. MGNREGA 2005 के उद्देश्य:
- ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिन का गारंटीकृत रोजगार देना।
- न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करना।
- महिलाओं को रोजगार के अवसर देना।
- जल संरक्षण, भूमि विकास जैसे कार्यों के माध्यम से विकास कार्य कराना।
18. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की तुलना (उदाहरण सहित):
| आधार | सार्वजनिक क्षेत्र (उदा: भारतीय रेल) | निजी क्षेत्र (उदा: टाटा स्टील) |
|---|---|---|
| स्वामित्व | सरकार का | निजी कंपनियों का |
| उद्देश्य | जनहित | लाभ कमाना |
| सेवा | कम लागत पर अधिक लोगों को सेवा | लाभ के अनुसार सेवा |
19. तालिका — सुव्यवस्थित और कुव्यवस्थित संगठन उदाहरण:
| क्षेत्रक | सुव्यवस्थित संगठन | कुव्यवस्थित संगठन |
|---|---|---|
| सार्वजनिक क्षेत्र | भारतीय रेल | नगर निगम की अस्थायी सफाई टीम |
| निजी क्षेत्र | टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) | सड़क किनारे चाय की दुकान |
20. सार्वजनिक क्षेत्र की गतिविधियाँ और सरकार द्वारा कार्यान्वयन:
उदाहरण: शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, सड़क निर्माण, बिजली आपूर्ति।
कारण:
- गरीबों के लिए सेवाएँ सुलभ बनाना।
- सामूहिक संसाधनों का विकास करना।
- राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
21. सार्वजनिक क्षेत्र का आर्थिक विकास में योगदान:
- बुनियादी ढाँचे का विकास (सड़क, बिजली, सिंचाई)।
- रोजगार सृजन।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना।
- गरीबी उन्मूलन में सहायक।
22. असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के संरक्षण की आवश्यकता:
मुद्दे:
- मजदूरी: न्यूनतम मजदूरी कानून लागू हो।
- सुरक्षा: दुर्घटना बीमा उपलब्ध कराया जाए।
- स्वास्थ्य: स्वास्थ्य बीमा और अस्पताल सुविधाएँ दी जाएँ।
- उदाहरण: निर्माण मजदूरों को बीमा योजना में शामिल करना।
23. अहमदाबाद अध्ययन — तालिका:
| क्षेत्रक | श्रमिकों की संख्या | नगर की आय (रुपये करोड़ में) |
|---|---|---|
| संगठित क्षेत्रक | 4,00,000 | 320 करोड़ |
| असंगठित क्षेत्रक | 11,00,000 | 280 करोड़ |
➔ अधिक रोजगार सृजन के उपाय:
- लघु उद्योगों को बढ़ावा देना।
- स्वरोजगार योजनाएँ लागू करना।
- कौशल विकास प्रशिक्षण देना।
24. तीनों क्षेत्रकों की GDP का विश्लेषण:
(क) हिस्सेदारी का गणना:
वर्ष 2000 में कुल सघउ = 52,000 + 48,500 + 1,33,500 = 2,34,000 करोड़
| क्षेत्रक | हिस्सेदारी (%) |
|---|---|
| प्राथमिक | (52000/234000)×100 = 22.22% |
| द्वितीयक | (48500/234000)×100 = 20.72% |
| तृतीयक | (133500/234000)×100 = 57.06% |
वर्ष 2013 में कुल सघउ = 8,00,500 + 10,74,000 + 38,68,000 = 57,42,500 करोड़
| क्षेत्रक | हिस्सेदारी (%) |
|---|---|
| प्राथमिक | (800500/5742500)×100 ≈ 13.94% |
| द्वितीयक | (1074000/5742500)×100 ≈ 18.7% |
| तृतीयक | (3868000/5742500)×100 ≈ 67.36% |
(ख) दण्ड आलेख (Bar Graph):
➔ यदि चाहो तो मैं इसका ग्राफिक चित्र भी बना सकती हूँ। बताओ?
(ग) निष्कर्ष:
- तृतीयक क्षेत्रक में तेज वृद्धि हुई है।
- प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी घटी है।
- द्वितीयक क्षेत्रक की वृद्धि मध्यम है।
➔ इससे पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था सेवा-आधारित बनती जा रही है।