Chapter 3 

अकाल और उसके बाद

 

1.चूल्हे का रोना और चक्की का उदास होना – इसका मतलब क्या है?

उत्तर: इसका अर्थ है कि कई दिनों तक खाना नहीं बना, क्योंकि घर में अन्न नहीं था।चूल्हा "रोया" – इसका भाव है कि वह जल नहीं पाया।चक्की "उदास" रही – क्योंकि वह गेहूँ या चावल पीसने के काम नहीं आई।

    यह भूख और अभाव की स्थिति को दर्शाता है।

 

2."कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त..." — ये पंक्तियाँ किस हालत की ओर इशारा करती हैं?

उत्तर: यह पंक्तियाँ घर की वीरानी और सन्नाटे को दिखाती हैं।

छिपकलियाँ दीवारों पर घूम रही थीं और

चूहे भी इतने कमजोर हो गए कि चलने की हालत में नहीं थे।

यह सब अकाल के कारण जीवन में आई स्थिरता और निराशा को दर्शाता है।


3. "दाने आए घर के अंदर..." – कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर: इन पंक्तियों से कवि बताना चाहते हैं कि

अकाल के बाद जब अन्न आया, तब जीवन में फिर से आशा और ऊर्जा लौटी।

धुआँ उठना — भोजन बनने का प्रतीक है।

घर की आँखों में चमक लौट आई,

पक्षी (कौए) भी फिर सामान्य हो गए।

यह जीवन की वापसी और खुशी का प्रतीक है।

 

4. कवि ने अकाल का चित्रण किस प्रकार किया है? चर्चा करें।

उत्तर: कवि नागार्जुन ने बहुत ही सजीव और मार्मिक चित्रण किया है।

उन्होंने चूल्हे, चक्की, जानवर, दीवारों और कौओं जैसे सामान्य प्रतीकों का प्रयोग कर

अकाल की पीड़ा और फिर उससे राहत मिलने के दृश्य को सरल भाषा में प्रस्तुत किया है।

यह कविता गरीबों के जीवन, उनकी भूख, और फिर थोड़ी सी खुशी मिलने की सच्ची झलक देती है।

 

5. "कवि ने अकाल के बाद की हालत का चित्रण किस प्रकार किया है?" इस प्रश्न का उत्तर सरल और भावपूर्ण तरीके से दिया गया है — विशेष रूप से "घर के अंदर दाने का आना" पंक्ति को केंद्र में रखकर:

उत्तर: नागार्जुन ने ‘अकाल और उसके बाद’ कविता में अकाल के समय की पीड़ा के साथ-साथ अकाल के बाद आई राहत और जीवन के पुनः जाग्रत होने का सुंदर चित्रण किया है।

    जब घर के अंदर दाने आए, तब जैसे मरा हुआ जीवन फिर से जाग उठा। कई दिनों बाद चूल्हा जला, आँगन से धुआँ उठा और पूरे घर की आँखों में खुशी की चमक लौट आई। पक्षियों की चहचहाहट और कौए की पाँखें खुजलाना — ये सब सामान्य जीवन की वापसी के प्रतीक हैं।

    इस प्रकार, कवि ने बहुत ही सरल शब्दों और जीवंत प्रतीकों के माध्यम से बताया कि कैसे अकाल के बाद थोड़ी-सी राहत भी लोगों के लिए बहुत बड़ी खुशी बन जाती है। यह कविता गरीबों के जीवन की सच्ची झलक देती है।

 

6.चर्चा करें:

कविता में 'कई दिनों तक' और 'कई दिनों के बाद' दुहराने का तात्पर्य क्या हो सकता है?

उत्तर: नागार्जुन ने कविता में 'कई दिनों तक' और 'कई दिनों के बाद' शब्दों को बार-बार दोहराकर अकाल के प्रभाव और फिर जीवन में आई राहत के बीच का गहरा विरोधाभास दिखाया है।

    'कई दिनों तक' — यह शब्द लंबे समय तक चले दुःख, भूख और खालीपन को दर्शाता है। इससे यह पता चलता है कि लोग कितनी लंबी अवधि तक अभाव, पीड़ा और बेबसी में जीते रहे।

    'कई दिनों के बाद' — यह शब्द उस आशा, राहत और जीवन की वापसी को दर्शाता है जो बहुत लंबे इंतज़ार के बाद आई।

इन दोनों वाक्यों की पुनरावृत्ति से कविता में एक भावनात्मक गहराई आती है। पाठक उस कष्ट और फिर मिली राहत को ज्यादा गहराई से महसूस कर पाता है।

    इस तरह की शैली कविता को सजीव, प्रभावशाली और स्मरणीय बनाती है।

 

7.अकाल के क्या-क्या कारण हो सकते हैं? चर्चा करें:

उत्तर: अकाल तब होता है जब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक वर्षा नहीं होती या प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। इसके अन्य कारण हो सकते हैं:

1. अनियमित मानसून – समय पर बारिश न होना या बहुत कम वर्षा होना।

2. सूखा – पानी की भारी कमी के कारण खेती का नष्ट हो जाना।

3. बाढ़ – अत्यधिक बारिश से खेत डूब जाना और फसलें बर्बाद होना।

4. कीट और रोग – फसलों पर कीड़ों या बीमारियों का प्रकोप।

5. मानवजनित कारण – जंगलों की कटाई, ज़मीन की अत्यधिक उपयोगिता, और जल स्रोतों का दूषित होना।

इन कारणों से अनाज की कमी हो जाती है, जिससे भूख, बेरोजगारी और गरीबी फैलती है।

 

8. कविता की प्रासंगिकता पर टिप्पणी:

उत्तर: ‘अकाल और उसके बाद’ केवल एक समय विशेष की बात नहीं करती, बल्कि आज भी कई हिस्सों में लोग भुखमरी और अभाव से जूझते हैं। यह कविता हमें याद दिलाती है कि:

गरीबों के लिए रोज़ का भोजन भी एक बड़ी बात होती है।

हमें प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करनी चाहिए और पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखना चाहिए।

सरकार और समाज को ऐसे लोगों के लिए सहायता के उपाय करने चाहिए।

आज के समय में जब जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं, यह कविता और भी अधिक प्रासंगिक और चेतावनी देने वाली बन जाती है।

 

8. ठाकुर के कुएँ पर कौन चढ़ने देगा? गंगी क्यों इस प्रकार सोचती है?

उत्तर: गंगी एक दलित (नीची जाति) की महिला है, और ठाकुर उच्च जाति के हैं। गाँव में छुआछूत की भावना इतनी गहरी है कि ठाकुर अपने कुएँ से किसी दलित को पानी नहीं भरने देते।

    गंगी जानती है कि अगर वह ठाकुर के कुएँ से पानी भरने गई, तो उसे अपमानित किया जाएगा, मारपीट तक हो सकती है। इसी डर से वह सोच में पड़ जाती है और असमंजस में होती है — प्यासे पति को कैसे पानी दे और समाज का डर कैसे झेले।

 

9. पानी के खराब होने के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तर: कहानी के प्रसंग में पानी खराब होने के कुछ संभावित कारण हैं:

कुएँ में जानवर गिरकर मर गया होगा — जिससे पानी सड़ गया।

गर्मी और पुराना पानी — देर तक खुले बर्तन में रखा गया पानी गर्मी में सड़ने लगता है।

कुएँ की सफाई न होना — गाँव के कुएँ नियमित साफ न होने से उसमें गंदगी और सड़न हो जाती है।

गंगी को यह तो पता है कि पानी खराब है और बीमारी बढ़ सकती है, पर वह यह नहीं जानती कि पानी उबालकर भी पीया जा सकता है।

 

10.कहानी का मुख्य संदेश क्या है?

उत्तर: यह कहानी यह दिखाती है कि गरीबों और दलितों के साथ किस प्रकार अन्याय और अमानवीय व्यवहार किया जाता है।

प्यासे को पानी तक नहीं मिलता।

जाति के नाम पर अत्याचार और भेदभाव आम बात है।

और समाज के तथाकथित “उच्च वर्ग” को गरीबों की पीड़ा से कोई सरोकार नहीं।

 

11."मैदानी बहादुरी का तो अब न ज़माना रहा है, न मौका। कानूनी बहादुरी की बातें हो रही थीं।" इसका क्या मतलब है?

उत्तर: इस वाक्य में लेखक दिखा रहे हैं कि अब लोग सीधी और ईमानदार बहादुरी नहीं दिखाते — जैसे पहले की लड़ाइयाँ, संघर्ष, न्याय की लड़ाई।

    अब बहादुरी का मतलब बदल गया है। लोग अब कानूनी चालाकियाँ, धोखाधड़ी और रिश्वत देकर अपने काम निकालते हैं।

    यह एक व्यंग्य है उस समाज पर, जहाँ ताकत अब धन, चालाकी और सत्ता से आती है, न कि सच्चाई और हिम्मत से।

 

12. गंगी का विद्रोही दिल क्यों चोट खाने लगता है?

उत्तर: गंगी जब देखती है कि ठाकुर और उनके जैसे लोग:

रिश्वत देते हैं,

झूठे मुकदमे करते हैं,

चोरी, जालसाज़ी करते हैं,

    और फिर भी समाज में “ऊँच” माने जाते हैं, जबकि वो लोग जो ईमानदारी से मेहनत करते हैं, भूखे मरते हैं — उन्हें “नीच” कहा जाता है, तो उसका मन विद्रोह से भर उठता है।

 

गंगी सोचती है:

हम क्यों नीच हैं और ये क्यों ऊँच? क्या सिर्फ इसलिए कि ये तागा पहनते हैं?”

यह सवाल जातिवादी समाज की मूल मानसिकता पर सीधा प्रहार है।

 

13.मुख्य संदेश:

उत्तर: प्रेमचंद दिखाना चाहते हैं कि जाति और ऊँच-नीच की व्यवस्था नैतिकता या गुणों पर आधारित नहीं है, बल्कि यह ढोंग और सामाजिक पाखंड है।

जो सच में भ्रष्ट, झूठे और क्रूर हैं — वे सिर्फ जाति के नाम पर ऊँचे बन जाते हैं, और जो गरीब और मेहनती हैं, वो हमेशा दबाए जाते हैं।

 

14."मैदानी बहादुरी का तो अब न ज़माना रहा है, न मौका।" का मतलब है:

उत्तर: अब वह समय नहीं रहा जब लोग सीधी लड़ाई, ईमानदारी से सामना या सच के लिए डट जाना जैसी बहादुरी दिखाते थे।

"मैदानी बहादुरी" से आशय है —

युद्ध जैसी बहादुरी,

अन्याय के ख़िलाफ़ खुलकर लड़ना,

सच्चाई के लिए जोखिम उठाना।

लेकिन अब ऐसा न ज़माना रहा है, न मौका — यानी अब लोग ऐसे खुले संघर्ष नहीं करते।

आजकल लोग बहादुरी की जगह चालाकी, रिश्वत, और चालें चलकर काम निकालते हैं।

    यह एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी है कि आज का समाज बहादुर नहीं, बल्कि चतुर और स्वार्थी बन गया है।