Chapter 7


1. जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है?

उत्तर:
  1. जीवों की पहचान और अध्ययन में सुविधा: वर्गीकरण से जीवों को पहचानने और समझने में आसानी होती है। यह जीवों की समानताएँ और भिन्नताएँ स्पष्ट करता है, जिससे वैज्ञानिकों को उनके बारे में अध्ययन करना सरल होता है।

  2. विविधता को समझना: वर्गीकरण जीवों की विविधता को व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करता है, जिससे हमें विभिन्न प्रकार के जीवों के बीच के अंतर और समानताएँ समझने में मदद मिलती है।

  3. विकास और उत्पत्ति का अध्ययन: वर्गीकरण से हमें जीवों के विकासात्मक इतिहास और उनके उत्पत्ति संबंधी जानकारी प्राप्त होती है। इससे यह पता चलता है कि किस प्रकार से जीवों में समय के साथ बदलाव आया है।

  4. संरचनात्मक और कार्यात्मक समझ: जीवों के वर्गीकरण से उनकी संरचना, कार्य और पारिस्थितिकी तंत्र में उनका स्थान समझने में मदद मिलती है। इससे हम जान सकते हैं कि किस प्रकार से जीव अपने पर्यावरण के साथ मेल खाते हैं और किस प्रकार उनका कार्य और संरचना परस्पर जुड़े हुए हैं।

  5. स्वास्थ्य और चिकित्सा में सहारा: वर्गीकरण से जीवों के बीच की समानताओं और भिन्नताओं का पता चलता है, जो विशेष रूप से चिकित्सा विज्ञान में उपयोगी है। यह बीमारी के कारणों, उपचार के उपायों और दवाओं के विकास में मदद कर सकता है।

  6. संरक्षण और जैव विविधता: वर्गीकरण के जरिए जैव विविधता का मूल्यांकन किया जा सकता है, जिससे endangered या विलुप्त हो रहे जीवों की पहचान की जा सकती है और उनके संरक्षण के उपाय सुझाए जा सकते हैं।

इस प्रकार, वर्गीकरण जीवों के अध्ययन और उनके संरक्षण के लिए एक आवश्यक उपकरण है, जो विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में उपयोगी साबित होता है।

2. वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे?

उत्तर:
  1. आधारभूत अंतर: कोशिकीय संरचना (जैसे प्रोकैरियोटिक या यूकैरियोटिक) एक मूलभूत अंतर है जो सभी जीवों में पाया जाता है। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में नाभिक नहीं होता है, जबकि यूकैरियोटिक कोशिकाओं में नाभिक और अन्य संरचनाएँ जैसे माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट इत्यादि होते हैं। यह लक्षण जीवों की प्राथमिक श्रेणियों का निर्धारण करने में मदद करता है।

  2. विकासात्मक संबंध: कोशिकीय संरचना जीवों के विकासात्मक संबंधों को समझने में सहायक होती है। प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक जीवों के विकास में भारी अंतर है, और यह उनके वर्गीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  3. सार्वभौमिकता: कोशिकीय संरचना एक ऐसा लक्षण है जिसे सभी जीवों में देखा जा सकता है, चाहे वे एककोशिकीय हों या बहुकोशिकीय। इससे वर्गीकरण प्रक्रिया में निरंतरता और स्थिरता आती है।

इसलिए, कोशिकीय संरचना का चयन वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए करना उचित रहेगा, क्योंकि यह जीवों के बुनियादी गुण और उनके बीच के संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।

3. जीवों के पाँच जगत में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:जीवों के पाँच जगत में वर्गीकरण का आधार मुख्य रूप से जीवों की कोशिकीय संरचना, शरीर की जटिलता, और जीवों की जीवनशैली पर निर्भर करता है। यह वर्गीकरण जीवों की विविधता को स्पष्ट करने और उनकी पहचान में मदद करने के लिए किया जाता है। पाँच जगत में वर्गीकरण की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है:

1. मोनेरा:

  • कोशिकीय संरचना: मोनेरा में प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ होती हैं, जिनमें नाभिक नहीं होता।

  • उदाहरण: बैक्टीरिया और आर्किया।

  • विशेषताएँ: ये एककोशिकीय होते हैं और इन्हें स्वपोषण (autotrophic) या परपोषण (heterotrophic) दोनों प्रकार से जीवन जीने की क्षमता होती है।

2. प्रोटिस्टा:

  • कोशिकीय संरचना: प्रोटिस्टा में यूकैरियोटिक कोशिकाएँ होती हैं, अर्थात इनके पास एक स्पष्ट नाभिक और अन्य अंग होते हैं।

  • उदाहरण: अमीबा, पैरामेशियम, ऐल्गी (शैवाल)।

  • विशेषताएँ: यह समूह मुख्यतः एककोशिकीय जीवों से बना है, हालांकि कुछ बहुकोशिकीय जीव भी होते हैं। ये विभिन्न प्रकार के पोषण प्रक्रियाओं का पालन करते हैं, जैसे स्वपोषण और परपोषण।

3. कवक (फ्रजाई):

  • कोशिकीय संरचना: कवक भी यूकैरियोटिक होते हैं, लेकिन इनकी कोशिकाओं में चिटिन नामक पदार्थ से बनी कोशिका भित्ति होती है।

  • उदाहरण: मोल्ड, शैम्पिन, यीस्ट (खमीर)।

  • विशेषताएँ: ये मुख्य रूप से परपोषक होते हैं और मृत कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं। इनका शरीर घना और फाइलेमेंटस होता है, जिसे हाइफ कहा जाता है।

4. प्लांटी (पौधे):

  • कोशिकीय संरचना: पौधों की कोशिकाएँ यूकैरियोटिक होती हैं और इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोज से बनी होती है।

  • उदाहरण: शैवाल, मूस, फर्न, पेड़-पौधे।

  • विशेषताएँ: ये स्वपोषक (autotrophic) होते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। पौधों में विविधता पाई जाती है, जैसे एककोशिकीय शैवाल से लेकर विशाल पेड़ तक।

5. एनीमेलिया (जंतु):

  • कोशिकीय संरचना: जंतु यूकैरियोटिक होते हैं और इनके शरीर में विभिन्न प्रकार के अंग होते हैं। इनकी कोशिका भित्ति नहीं होती।

  • उदाहरण: इंसान, कुत्ता, पक्षी, मछली, कीट।

  • विशेषताएँ: ये परपोषक होते हैं, जो भोजन प्राप्त करने के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं। जंतुओं का शरीर जटिल और बहुकोशिकीय होता है, और इनमें अंग प्रणालियाँ जैसे पाचन, संवेदी, और तंत्रिका तंत्र होते हैं।

निष्कर्ष:

जीवों के पाँच जगत में वर्गीकरण उनके कोशिकीय संरचना, शरीर की जटिलता (एककोशिकीय या बहुकोशिकीय), कोशिका भित्ति की उपस्थिति, और जीव की जीवनशैली (स्वपोषक या परपोषक) पर आधारित है। यह वर्गीकरण जीवों की विविधता और उनके विकासात्मक संबंधों को स्पष्ट करता है और वैज्ञानिक अध्ययन के लिए एक सरल और व्यवस्थित प्रणाली प्रदान करता है

4. पादप जगत के प्रमुख वर्ग कौन हैं? इस वर्गीकरण का क्या आधार है?

उत्तर:

1. शैवाल (Algae):

  • विशेषताएँ: शैवाल सरल, एककोशिकीय या बहुकोशिकीय पौधे होते हैं जो मुख्यतः जल में रहते हैं। इनमें न तो पत्तियाँ होती हैं, न तना और न ही जड़। ये स्वपोषक होते हैं, अर्थात प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करते हैं।

  • उदाहरण: ग्रीन ऐल्गी (स्पाइरोगायरा), रेड ऐल्गी (पोरफायरा), ब्राउन ऐल्गी (फुकोस)।

2. ब्रायोफाइटा (Bryophytes):

  • विशेषताएँ: ये छोटे और सामान्यतः नम स्थानों पर पाए जाते हैं। इनमें जड़, तना और पत्तियाँ तो होते हैं, लेकिन ये पौधे जल में निर्भर रहते हैं क्योंकि इनमें कायमीन (vascular tissues) की कमी होती है। इनका जीवन चक्र वॉटर-एम्ब्रियोनिक होता है।

  • उदाहरण: मूस (मूस), लीवरवॉर्ट (हंसी), हार्नवॉर्ट।

3. टेरिडोफ़ाइटा (Pteridophytes):

  • विशेषताएँ: ये पौधे असली पत्तियों, तने और जड़ों के साथ होते हैं और इनमें कायमीन (vascular tissues) होते हैं। इनकी प्रजनन प्रक्रिया में स्पोर्स (spores) का उपयोग होता है, और ये सूखा सहन करने में सक्षम होते हैं।

  • उदाहरण: फर्न (Pteris), क्लब मॉस (Lycopodium), हर्सट (Equisetum)।

4. जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms):

  • विशेषताएँ: इन पौधों के बीज कवच (seed coat) में सुरक्षित होते हैं और ये बीजों को शंकु (cone) या अन्य संरचनाओं में उत्पन्न करते हैं। इनमें कायमीन (vascular tissues) और बीज (seeds) होते हैं, जो इन पौधों को जलवायु के विभिन्न परिस्थितियों में बढ़ने में सक्षम बनाते हैं।

  • उदाहरण: चीड़ (Pine), देवदार (Cedar), बाईरच (Fir), बगई (Spruce)।

5. एंजियोस्पर्म (Angiosperms):

  • विशेषताएँ: ये पौधे फूल और फल उत्पन्न करते हैं। एंजियोस्पर्म पौधों में बीज फूल के भीतर विकसित होते हैं। ये कायमीन (vascular tissues) के साथ-साथ फूलों और फल के निर्माण में सक्षम होते हैं। एंजियोस्पर्म दुनिया के सबसे विकसित और विविध प्रकार के पौधे होते हैं।

  • उदाहरण: आम (Mangifera indica), गुलाब (Rosa), मक्का (Zea mays), गेहूँ (Triticum).

वर्गीकरण का आधार:

पादप जगत का वर्गीकरण उनके शारीरिक संरचनात्मक लक्षणों और प्रजनन के आधार पर किया गया है। विशेष रूप से निम्नलिखित आधारों पर यह वर्गीकरण किया जाता है:

  1. कोशिकीय संरचना: जैसे कि शैवाल में केवल एक कोशिका होती है, जबकि अन्य वर्गों में बहुकोशिकीय संरचना पाई जाती है।

  2. पत्तियाँ, तने और जड़: शैवाल में ये अंग नहीं होते, जबकि अन्य वर्गों में ये अंग स्पष्ट रूप से मौजूद होते हैं।

  3. कायमीन (Vascular Tissues): यह संरचना केवल टेरिडोफ़ाइटा, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म में पाई जाती है, जो इन पौधों को जलवायु में फैलने और स्थिरता प्रदान करने में मदद करती है।

  4. प्रजनन पद्धति: जैसे कि शैवाल और ब्रायोफाइटा में जल पर निर्भर प्रजनन होता है, जबकि जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म में बीजों के माध्यम से प्रजनन होता है।

निष्कर्ष:

पादप जगत का वर्गीकरण उनके शारीरिक, संरचनात्मक, और प्रजनन लक्षणों के आधार पर किया जाता है। इसमें शैवाल, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफ़ाइटा, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म जैसे प्रमुख वर्ग शामिल हैं, जो उनके विकासात्मक चरणों और जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार विभाजित किए जाते हैं।

5. जंतुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अंतर क्या है?

उत्तर:

1. कोशिकीय संरचना:

  • पौधों: पौधों की कोशिकाओं में कोशिका भित्ति (cell wall) और क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) पाए जाते हैं, जो उन्हें प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) करने में सक्षम बनाते हैं। ये कोशिकाएं स्वपोषक होती हैं, अर्थात, वे अपने भोजन को स्वयं तैयार करती हैं।

  • जंतुओं: जंतुओं की कोशिकाओं में कोशिका भित्ति और क्लोरोप्लास्ट नहीं होते। वे हेतेरोट्रॉफिक (heterotrophic) होते हैं, यानी वे अपने भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं।

2. स्वपोषण की क्षमता:

  • पौधों: पौधे स्वपोषक होते हैं, अर्थात वे प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा सूर्य के प्रकाश का उपयोग करते हुए अपना भोजन तैयार करते हैं।

  • जंतुओं: जंतु स्वपोषक नहीं होते। ये अन्य जीवों को खाकर (हेटेरोट्रॉफिक पोषण) अपनी ऊर्जा प्राप्त करते हैं।

3. पदचिह्न और संरचना:

  • पौधों: पौधों में शरीर के विभिन्न अंग होते हैं जैसे पत्तियाँ, तना, और जड़। इनके शरीर में वृक्षिका (vascular tissues) जैसे जाइलम और फ्लोएम होते हैं, जो पानी और पोषक तत्वों का परिवहन करते हैं।

  • जंतुओं: जंतुओं में शरीर के अंगों का जटिल संगठन होता है और इनके पास कशेरुकी या कशेरुकनिहीन संरचनाएं हो सकती हैं। जंतुओं में वृक्षिका की संरचना नहीं पाई जाती है, लेकिन इनमें विशिष्ट अंग और प्रणालियाँ (जैसे पाचन, श्वसन, संचारण आदि) होती हैं।

4. प्रजनन प्रक्रिया:

  • पौधों: पौधे दोनों प्रकार के प्रजनन के तरीके अपनाते हैं — लैंगिक प्रजनन (sexual reproduction) और अलैंगिक प्रजनन (asexual reproduction)। इनमें बीज या स्पोर्स द्वारा प्रजनन होता है।

  • जंतुओं: जंतु प्रायः लैंगिक प्रजनन (sexual reproduction) द्वारा प्रजनन करते हैं, हालांकि कुछ जंतु अलैंगिक प्रजनन भी कर सकते हैं, जैसे बाइनरी फिशन (binary fission) आदि।

5. आवश्यक पोषक तत्व:

  • पौधों: पौधे सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके अपनी ऊर्जा प्राप्त करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और जल (H₂O) से भोजन तैयार करते हैं।

  • जंतुओं: जंतु भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर होते हैं, चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी।

6. संवेदनशीलता और गति:

  • पौधों: पौधे निष्क्रिय होते हैं और इनकी गति विकसीय होती है (उदाहरण: सूरजमुखी का फूल सूरज की ओर झुकना)। पौधों में तंत्रिका तंत्र नहीं होता, इसलिए ये तात्कालिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं करते।

  • जंतुओं: जंतु गतिशील होते हैं और उनके पास तंत्रिका तंत्र होता है जो उन्हें उत्तेजनाओं का जवाब देने और गति करने में सक्षम बनाता है।

7. शरीर का संगठन:

  • पौधों: पौधे बहुकोशिकीय होते हैं और उनके शरीर में विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ (जैसे परिपक्व कोशिकाएँ, जड़ कोशिकाएँ, पत्तियाँ) पाई जाती हैं, जो एक विशेष कार्य करती हैं। इनकी संरचना अपेक्षाकृत सरल होती है।

  • जंतुओं: जंतु भी बहुकोशिकीय होते हैं, लेकिन उनके शरीर का संगठन अधिक जटिल और विशेषीकृत होता है। उनमें विभिन्न अंग प्रणालियाँ जैसे पाचन, श्वसन, परिसंचरण प्रणाली आदि होती हैं।

8. संचार प्रणाली:

  • पौधों: पौधों में तंत्रिका तंत्र नहीं होता है, लेकिन इनका संचार जड़ी-बूटियों और रासायनिक संकेतों के माध्यम से होता है।

  • जंतुओं: जंतुओं में तंत्रिका तंत्र होता है, जिससे वे तात्कालिक प्रतिक्रियाएँ और व्यवहार दर्शाते हैं।

निष्कर्ष:

इस प्रकार, पौधों और जंतुओं के वर्गीकरण के आधार में मुख्य अंतर उनके कोशिकीय संरचना, पोषण की विधि, शारीरिक संरचना और प्रजनन प्रक्रिया में है। जहां पौधों में स्वपोषण और स्थिरता होती है, वहीं जंतु हेटेरोट्रॉफिक होते हुए गतिशील और अधिक जटिल होते हैं।

6. वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणी) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:

1. कशेरुकी (Vertebral Column) की उपस्थिति:

  • कशेरुकी प्राणी में एक वास्तविक मेरुदंड (vertebral column) होता है, जो शरीर की संरचना को मजबूत और सहायक बनाए रखता है। यह प्राणी के पृष्ठ भाग (dorsal part) में स्थित होता है और तंत्रिका तंतु को रक्षा प्रदान करता है।

  • कशेरुकी प्राणियों में नोटोकॉर्ड (notochord) की उपस्थिति केवल विकास के प्रारंभिक चरणों में होती है, और बाद में यह मेरुदंड से प्रतिस्थापित हो जाती है।

2. श्वसन प्रणाली:

  • कशेरुकी प्राणी श्वसन के लिए फेफड़े (lungs) या गिल्स (gills) का उपयोग करते हैं, जो उनके जीवनकाल के दौरान विकास की अवस्था के अनुसार बदल सकते हैं।

  • उदाहरण: मछलियों में गिल्स होते हैं, जबकि पक्षियों, स्तनपायी और सरीसृपों में फेफड़े होते हैं।

3. हृदय की संरचना:

  • कशेरुकी प्राणियों में हृदय की संरचना विभिन्न वर्गों के अनुसार भिन्न होती है:

    • मछलियों में दो कक्षीय हृदय होता है।

    • सरीसृपों में आमतौर पर त्रिकक्षीय हृदय होता है (मगरमच्छों में चार कक्षीय हृदय पाया जाता है)।

    • पक्षियों और स्तनपायी प्राणियों में चार कक्षीय हृदय होता है, जो पूरी तरह से रक्त को पृथक करता है, जिससे शरीर को अधिक ऑक्सीजन मिलती है।

4. उत्पत्ति और विकास:

  • कशेरुकी प्राणी विकास के विभिन्न चरणों में द्विपार्श्वसममित (bilaterally symmetrical) होते हैं, यानी इनका शरीर दो समानांतर भागों में विभाजित होता है।

  • इनकी संरचना में अंगों का जटिल विभेदन पाया जाता है और ये उच्चतर विकासात्मक स्थिति में होते हैं।

5. पोषण और शारीरिक प्रणाली:

  • कशेरुकी प्राणी हेटेरोट्रॉफिक (heterotrophic) होते हैं, यानी वे अन्य जीवों से भोजन प्राप्त करते हैं।

  • इनकी शरीर संरचना में विभिन्न अंग प्रणालियाँ जैसे पाचन, परिसंचरण, श्वसन, तंत्रिका, प्रजनन आदि का जटिल संगठन पाया जाता है।

6. प्रजनन:

  • अधिकांश कशेरुकी प्राणी लैंगिक प्रजनन (sexual reproduction) करते हैं, और कुछ प्रजातियाँ अंडे देती हैं (जैसे पक्षी और सरीसृप) जबकि कुछ जीव शिशु को जन्म देते हैं (जैसे स्तनपायी)।

7. पाँच प्रमुख वर्ग:

कशेरुकी प्राणियों को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है, जिनमें निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं:

  1. सायक्लोस्टोमेटा (Cyclostomata) – ये जबड़ा रहित कशेरुकी होते हैं, जैसे लैम्प्रे और हैग मछली। इनकी विशेषता गोलाकार मुख और शल्क रहित चिकनी त्वचा है।

  2. चट्टान (Pisces) – ये मछलियाँ होती हैं, जिनमें गिल्स (gills) द्वारा श्वसन होता है और ये जल में रहते हैं। इनमें लकीरें, पंख, और पैरों के अनुरूप अंग होते हैं।

  3. सरीसृप (Reptilia) – जैसे कछुआ, सांप, छिपकली। इनका शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है और ये जल में और स्थल दोनों स्थानों पर रह सकते हैं। श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है और इनमें कठोर अंडे होते हैं।

  4. पक्षी (Aves) – पक्षियों का शरीर पंखों से ढका होता है, और इनका श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है। इनका हृदय चार कक्षीय होता है, और ये अंडे देते हैं।

  5. स्तनपायी (Mammalia) – इनमें शरीर पर बाल होते हैं, और ये शिशुओं को जन्म देने वाले होते हैं। इनकी श्वसन प्रणाली भी फेफड़ों द्वारा होती है और इनके पास विशेष दुग्ध ग्रंथियाँ होती हैं जो नवजात को दूध प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष:

कशेरुकी प्राणियों का वर्गीकरण उनके हृदय संरचना, श्वसन प्रणाली, कोशिकीय और शारीरिक संरचना, प्रजनन और आवास जैसे विभिन्न लक्षणों के आधार पर किया जाता है। इनमें हर वर्ग की विशिष्ट शारीरिक और शारीरिक प्रक्रियाएँ होती हैं, जो इनकी अलग-अलग जीवनशैली और विकासात्मक अवस्थाओं को दर्शाती हैं 1