Chapter 4

 परमाणु की संरचना

 

1. इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना कीजिए 

उत्तर:  इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना:

गुणइलेक्ट्रॉनप्रोटॉनन्यूट्रॉन
आवेशऋणात्मक (−1)सकारात्मक (+1)अनावेशित (0)
द्रव्यमानबहुत कम (हाइड्रोजन के द्रव्यमान का 1/2000)लगभग 1 यूनिट (1u)लगभग 1 यूनिट (1u)
स्थितिपरमाणु के बाहर, नाभिक के चारों ओरपरमाणु के नाभिक मेंपरमाणु के नाभिक में
चालन क्षमताविद्युत चालकता में भागीदारी करता हैविद्युत चालकता में भागीदारी नहीं करताविद्युत चालकता में भागीदारी नहीं करता
निर्माणबोर की कक्षा में स्थितपरमाणु नाभिक में स्थितपरमाणु नाभिक में स्थित
स्थिरतापरमाणु के बाहर बहुत स्थिर नहीं हैस्थिर रहता हैस्थिर रहता है
संसर्गअन्य कणों के साथ प्रतिक्रिया करता हैअन्य कणों के साथ प्रतिक्रिया करता हैअन्य कणों के साथ प्रतिक्रिया करता है
कार्यरासायनिक गुणों में भूमिका निभाता हैपरमाणु की पहचान (परमाणु संख्या)परमाणु का द्रव्यमान निर्धारित करता है

सारांश:

  • इलेक्ट्रॉन परमाणु के बाहरी हिस्से में स्थित होते हैं और रासायनिक गुणों में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, इनका द्रव्यमान बहुत कम होता है।

  • प्रोटॉन नाभिक में होते हैं और परमाणु की पहचान (परमाणु संख्या) तय करते हैं। इनका द्रव्यमान न्यूट्रॉन के समान होता है।

  • न्यूट्रॉन भी नाभिक में होते हैं और परमाणु के द्रव्यमान को निर्धारित करते हैं, इनका कोई आवेश नहीं होता।

2. जे. जे. टॉमसन के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं?

उत्तर:  जे. जे. टॉमसन के परमाणु मॉडल की सीमाएँ:

जे. जे. टॉमसन का परमाणु मॉडल, जिसे "प्लम पुडिंग मॉडल" भी कहा जाता है, 1904 में प्रस्तुत किया गया था। इस मॉडल के अनुसार, परमाणु को एक सकारात्मक रूप से चार्ज किए गए गोल के रूप में माना गया था, जिसमें नकारात्मक (ऋणात्मक) इलेक्ट्रॉन "प्लम" (किशमिश) की तरह बिखरे हुए थे। हालांकि यह मॉडल कुछ पहलुओं में सही था, लेकिन इसकी कई सीमाएँ थीं।

सीमाएँ:

  1. केंद्रक का अभाव: टॉमसन के मॉडल में नाभिक (केंद्रक) का कोई उल्लेख नहीं था, जबकि बाद में रदरफोर्ड के प्रयोग से यह स्पष्ट हुआ कि परमाणु के भीतर एक छोटा सा और घना नाभिक होता है, जिसमें प्रोटॉन और न्यूट्रॉन स्थित होते हैं।

  2. स्थिरता की समस्या: टॉमसन के मॉडल में यह बताया गया था कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर एक सकारात्मक चार्ज वाले गोले में स्थित होते हैं, लेकिन यह मॉडल यह नहीं समझा सका कि इलेक्ट्रॉन स्थिर क्यों होते हैं। यदि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर गति कर रहे हैं, तो उन्हें ऊर्जा छोड़नी चाहिए और अंततः नाभिक में गिर जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बोर के मॉडल में इस समस्या का समाधान किया गया।

  3. रदरफोर्ड के प्रकीर्णन प्रयोग से असंगति: रदरफोर्ड ने 1909 में अल्फा कणों के प्रकीर्णन प्रयोग द्वारा यह दिखाया कि अधिकांश परमाणु का स्थान बड़ी मात्रा में खाली है और केवल एक बहुत छोटा भाग ही घना और सकारात्मक चार्ज से भरा होता है (नाभिक)। यह टॉमसन के मॉडल से भिन्न था, क्योंकि उसके मॉडल में पूरा परमाणु सकारात्मक चार्ज से भरा हुआ था और उसमें नाभिक का कोई स्थान नहीं था।

  4. रासायनिक गुणों की व्याख्या में असफलता: टॉमसन के मॉडल ने परमाणु के संरचनात्मक पहलुओं की व्याख्या करने का प्रयास किया, लेकिन उसने परमाणु के रासायनिक गुणों और संयोजन की प्रक्रिया को स्पष्ट नहीं किया। बाद में, नील बोर के मॉडल ने इस बिंदु पर अधिक सटीकता के साथ व्याख्या दी कि इलेक्ट्रॉन विशेष कक्षाओं में स्थित होते हैं, जो परमाणु के रासायनिक गुणों का निर्धारण करते हैं।

  5. इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा स्तरों का अभाव: टॉमसन के मॉडल में, इलेक्ट्रॉन की कोई विशेष ऊर्जा नहीं होती थी और उन्हें पूरी तरह से नाभिक में बिखरे हुए माना गया था। बाद में, बोर के मॉडल में यह बताया गया कि इलेक्ट्रॉन निश्चित ऊर्जा स्तरों पर रहते हैं और वे ऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन करते हुए एक स्तर से दूसरे स्तर पर जाते हैं।

निष्कर्ष: टॉमसन का मॉडल विज्ञान में महत्वपूर्ण था, लेकिन यह कई महत्वपूर्ण विशेषताओं को समझाने में असफल रहा, जैसे कि परमाणु का केंद्रक, स्थिरता, और ऊर्जा स्तर। इन सीमाओं के कारण इस मॉडल को बाद में सुधारित किया गया और रदरफोर्ड और बोर के मॉडलों द्वारा इसे बदल दिया गया।

3. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं?

उत्तर:

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की सीमाएँ:

रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल 1911 में प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने अपने प्रसिद्ध अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग से यह साबित किया कि परमाणु में एक बहुत छोटा और घना नाभिक होता है, जिसके चारों ओर नकारात्मक रूप से चार्ज किए हुए इलेक्ट्रॉन घूमते हैं। इस मॉडल ने परमाणु की संरचना को पूरी तरह से नया दृष्टिकोण दिया, लेकिन इसके कुछ महत्वपूर्ण सीमाएँ थीं।

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की प्रमुख सीमाएँ:

  1. स्थिरता की समस्या: रदरफोर्ड का मॉडल यह बताता है कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर एक वृत्ताकार पथ पर घूमते हैं। हालांकि, एक ऐसी समस्या थी, जिसे समझाया नहीं जा सका। यदि इलेक्ट्रॉन गति कर रहे हैं और नाभिक के चारों ओर घूमेंगे, तो वे विद्युतचुंबकीय विकिरण (radiation) उत्पन्न करेंगे और धीरे-धीरे ऊर्जा खो देंगे। इस कारण वे नाभिक की ओर गिर जाएंगे। लेकिन वास्तविकता में इलेक्ट्रॉन स्थिर रहते हैं और गिरते नहीं हैं। यह स्थिरता की समस्या को हल नहीं कर सका।

  2. क्वांटम सिद्धांत से असंगति: रदरफोर्ड का मॉडल क्लासिकल भौतिकी (क्लासिकल मेकेनिक्स) पर आधारित था, जो क्वांटम सिद्धांत से मेल नहीं खाता था। क्वांटम सिद्धांत ने दिखाया कि इलेक्ट्रॉन एक निश्चित ऊर्जा स्तरों पर रह सकते हैं, न कि किसी भी स्थान पर। रदरफोर्ड का मॉडल इस बात की व्याख्या नहीं करता था कि क्यों इलेक्ट्रॉन सिर्फ कुछ निश्चित ऊर्जा स्तरों पर रह सकते हैं। बाद में नील बोर ने इस समस्या का समाधान किया और कहा कि इलेक्ट्रॉन केवल विशिष्ट ऊर्जा स्तरों पर रह सकते हैं।

  3. रासायनिक गुणों की व्याख्या में असफलता: रदरफोर्ड के मॉडल ने परमाणु की संरचना के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी, लेकिन रासायनिक गुणों की व्याख्या में यह मॉडल सफल नहीं था। यह नहीं बता सका कि परमाणु के इलेक्ट्रॉनों के व्यवहार के आधार पर रासायनिक प्रतिक्रिया कैसे होती है। बाद में नील बोर के मॉडल ने यह स्पष्ट किया कि इलेक्ट्रॉन ऊर्जा स्तरों पर रहते हैं और वे इन स्तरों के बीच कूदते हैं, जो रासायनिक गुणों का निर्धारण करते हैं।

  4. नाभिकीय आकार और आकर्षण-बल का सवाल: रदरफोर्ड ने नाभिकीय संरचना का प्रस्ताव किया, लेकिन यह मॉडल यह स्पष्ट नहीं कर पाया कि नाभिक में सकारात्मक चार्ज वाले प्रोटॉन एक-दूसरे के साथ एक-दूसरे को क्यों नहीं धक्का देते, जबकि उन्हें एक-दूसरे के समान चार्ज वाले होने के कारण एक-दूसरे को धकेलना चाहिए था। इस सवाल का जवाब बाद में नील बोर के मॉडल ने दिया, जो इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा स्तरों और क्वांटम सिद्धांत पर आधारित था।

निष्कर्ष: रदरफोर्ड का मॉडल परमाणु की संरचना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है, विशेषकर नाभिक की उपस्थिति और इसके चारों ओर इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति। हालांकि, यह मॉडल स्थिरता, ऊर्जा स्तरों, रासायनिक गुणों और क्वांटम सिद्धांत के दृष्टिकोण से कुछ महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान नहीं कर सका। इसलिए इसे बोर के परमाणु मॉडल द्वारा और बेहतर तरीके से संशोधित किया गया।

4. बोर के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:   बोर के परमाणु मॉडल की व्याख्या:

नील बोर ने 1913 में रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में सुधार करते हुए अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया। बोर का मॉडल विशेष रूप से हाइड्रोजन परमाणु की संरचना पर आधारित था, और इस मॉडल ने रदरफोर्ड के मॉडल की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश की। बोर के मॉडल ने क्वांटम सिद्धांत के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों को भी शामिल किया, जो पहले रदरफोर्ड के मॉडल में नहीं थे।

बोर के परमाणु मॉडल के प्रमुख सिद्धांत:

  1. निर्धारित ऊर्जा स्तर (Quantized Orbits): बोर ने यह प्रस्तावित किया कि परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित और निर्धारित कक्षाओं (या ऊर्जा स्तरों) पर घूमते हैं। इन कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा स्थिर होती है और ये कक्षाएँ केवल विशिष्ट दूरी पर होती हैं। यह सिद्धांत क्लासिकल भौतिकी से भिन्न था, जिसमें माना जाता था कि इलेक्ट्रॉन किसी भी कक्षा में रह सकते हैं, और उनकी ऊर्जा निरंतर होती है। बोर ने दिखाया कि केवल कुछ विशेष कक्षाओं में ही इलेक्ट्रॉन स्थिरता से रह सकते हैं।

  2. कक्षा में ऊर्जा का उत्सर्जन और अवशोषण: बोर के मॉडल के अनुसार, जब इलेक्ट्रॉन किसी एक ऊर्जा स्तर से दूसरे ऊर्जा स्तर पर कूदते हैं, तो वे ऊर्जा को उत्सर्जित या अवशोषित करते हैं। अगर इलेक्ट्रॉन ऊँची ऊर्जा स्तर से निचले ऊर्जा स्तर पर कूदता है, तो वह ऊर्जा (फोटॉन) के रूप में उत्सर्जित करता है। इसी तरह, अगर इलेक्ट्रॉन निचले ऊर्जा स्तर से ऊँचे ऊर्जा स्तर पर जाता है, तो उसे ऊर्जा का अवशोषण करना होता है। यह सिद्धांत हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम को समझाने में सक्षम था, जो रदरफोर्ड के मॉडल से समझा नहीं जा सका था।

  3. क्वांटम स्थितियाँ और ऊर्जा का विश्लेषण: बोर के मॉडल में यह कहा गया था कि प्रत्येक कक्षा (या ऊर्जा स्तर) में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा एक निश्चित और निरंतर होती है। इस ऊर्जा का मान En=13.6n2E_n = -\frac{13.6}{n^2} इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) होता है, जहाँ nn कक्षा का संख्या है (1, 2, 3, आदि)। इसका मतलब है कि जैसे-जैसे nn की संख्या बढ़ती जाती है, इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा कम होती जाती है और वह अधिक दूरी पर नाभिक से स्थित होता है।

  4. कक्षा में स्थिरता: बोर ने यह भी कहा कि इलेक्ट्रॉन किसी निश्चित कक्षा में स्थिर रहते हैं और वहां किसी प्रकार का विकिरण (radiation) नहीं होता है। इसका मतलब यह है कि इलेक्ट्रॉन बिना ऊर्जा खोए अपनी कक्षा में घूमेंगे, जबकि क्लासिकल भौतिकी के अनुसार यह अपेक्षित था कि वे ऊर्जा खोकर नाभिक की ओर गिर जाएंगे। यह स्थिरता क्वांटम सिद्धांत के आधार पर समझाई गई थी।

बोर के मॉडल की प्रमुख विशेषताएँ:

  • निश्चित ऊर्जा स्तर: इलेक्ट्रॉन केवल कुछ विशेष और निश्चित ऊर्जा स्तरों पर रह सकते हैं। ऊर्जा स्तरों के बीच कूदने पर इलेक्ट्रॉन विकिरण उत्सर्जित या अवशोषित करते हैं।

  • स्पेक्ट्रल रेखाएँ: बोर के मॉडल ने हाइड्रोजन परमाणु के वर्णक्रम की सही व्याख्या की, जिसे रदरफोर्ड के मॉडल से समझा नहीं जा सका था। बोर के मॉडल से हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम की विश्लेषणात्मक व्याख्या संभव हुई, जैसे लायमैन, बाल्मर, और पैशेन श्रृंखलाएँ।

  • हाइड्रोजन का वर्णक्रम: बोर के मॉडल ने यह स्पष्ट किया कि हाइड्रोजन के विशिष्ट ऊर्जा स्तरों में बदलाव से ही परमाणु के स्पेक्ट्रल रेखाएँ उत्पन्न होती हैं।

बोर के मॉडल की सीमाएँ:

  1. केवल हाइड्रोजन के लिए: बोर का मॉडल केवल हाइड्रोजन परमाणु की संरचना को समझने में सक्षम था, और बहु-इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के लिए यह सही नहीं था। अन्य तत्वों के लिए इसे लागू करना कठिन था।

  2. नाभिकीय गुण: बोर के मॉडल में नाभिकीय गुणों का कोई विश्लेषण नहीं था। यह केवल इलेक्ट्रॉनों की कक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करता था, न कि नाभिकीय संरचना पर।

  3. संवेदनशीलता और अधिक सूक्ष्म गणना: बोर का मॉडल क्लासिकल भौतिकी के नियमों पर आधारित था, जो क्वांटम सिद्धांत के विकास के बाद कुछ सीमित हो गया। इससे एक समय के बाद इसे और उन्नत क्वांटम मॉडल की आवश्यकता महसूस हुई।

निष्कर्ष:

बोर का मॉडल परमाणु संरचना के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने हाइड्रोजन परमाणु के ऊर्जा स्तरों की सही व्याख्या की और स्पेक्ट्रल रेखाओं की भविष्यवाणी की। हालांकि, इसकी कुछ सीमाएँ थीं, विशेष रूप से बहु-इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं और क्वांटम सिद्धांत से संबंधित क्षेत्रों में। इसके बाद के शोधों में क्वांटम सिद्धांत को और विकसित किया गया और बोर का मॉडल आधुनिक परमाणु सिद्धांत का आधार बना।

5. इस अध्याय में दिए गए सभी परमाणु मॉडलों की तुलना कीजिए।

उत्तर:    इस अध्याय में तीन प्रमुख परमाणु मॉडल दिए गए हैं: जे. जे. टॉमसन का मॉडल, रदरफोर्ड का मॉडल, और नील बोर का मॉडल। इन सभी मॉडलों ने परमाणु की संरचना को समझने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन प्रत्येक मॉडल की अपनी सीमाएँ और सुधार के लिए नए दृष्टिकोण थे। आइए इन तीनों परमाणु मॉडलों की तुलना करें:

1. जे. जे. टॉमसन का परमाणु मॉडल (प्लम-पडिंग मॉडल):

  • प्रस्तावना: जे. जे. टॉमसन ने 1897 में इलेक्ट्रॉन की खोज के बाद परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया। इस मॉडल को "प्लम-पडिंग मॉडल" कहा जाता है।

  • मूल विचार: टॉमसन ने प्रस्तावित किया कि परमाणु एक सकारात्मक चार्ज वाले 'पड' (गोल आकार का) की तरह होता है, जिसमें नकारात्मक चार्जित इलेक्ट्रॉन एक समान रूप से वितरित होते हैं, जैसे कि प्लम पाई में खिले हुए हों।

  • सारांश:

    • परमाणु में नकारात्मक इलेक्ट्रॉन और सकारात्मक चार्ज का संतुलन होता है।

    • इलेक्ट्रॉन पूरे परमाणु में फैलते हैं।

    • यह मॉडल परमाणु के समग्र चार्ज को संतुलित रखने का प्रयास करता है।

  • सीमाएँ:

    • यह मॉडल परमाणु के बारे में सही जानकारी नहीं दे पाया, जैसे कि इलेक्ट्रॉनों की विशिष्ट स्थिति और गति।

    • परमाणु के संरचनात्मक और स्थायित्व संबंधी प्रश्नों का समाधान नहीं किया।

2. रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल (नाभिकीय मॉडल):

  • प्रस्तावना: रदरफोर्ड ने 1911 में अपने प्रसिद्ध α-कण प्रकीर्णन प्रयोग के माध्यम से परमाणु की संरचना का पता लगाया।

  • मूल विचार: रदरफोर्ड ने प्रस्तावित किया कि परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान एक छोटे, घने, और सकारात्मक रूप से चार्ज किए हुए केंद्रक (नाभिक) में संकेंद्रित होता है, जबकि इलेक्ट्रॉन इसके चारों ओर घूमते हैं।

  • सारांश:

    • परमाणु के केंद्र में एक छोटा और सकारात्मक चार्जित नाभिक होता है।

    • इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर परिधीय क्षेत्र में घूमते हैं।

  • सीमाएँ:

    • यह मॉडल परमाणु की स्थिरता को समझाने में असमर्थ था, क्योंकि क्लासिकल भौतिकी के अनुसार इलेक्ट्रॉन को विकिरण छोड़ते हुए नाभिक की ओर गिरना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

    • परमाणु के इलेक्ट्रॉनों की गति और ऊर्जा को ठीक से समझाने में यह मॉडल सक्षम नहीं था।

3. नील बोर का परमाणु मॉडल (बोर मॉडल):

  • प्रस्तावना: नील बोर ने 1913 में रदरफोर्ड के मॉडल को सुधारते हुए एक नया मॉडल प्रस्तुत किया, जिसे बोर का परमाणु मॉडल कहा जाता है।

  • मूल विचार: बोर ने प्रस्तावित किया कि परमाणु के इलेक्ट्रॉन केवल निश्चित कक्षाओं में स्थित हो सकते हैं, और इन कक्षाओं में घूमते समय वे ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण नहीं करते। जब इलेक्ट्रॉन कक्षाओं के बीच कूदते हैं, तो ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण होता है।

  • सारांश:

    • इलेक्ट्रॉन केवल निश्चित कक्षाओं में रह सकते हैं, और कक्षाओं में कूदने पर ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण होता है।

    • यह मॉडल हाइड्रोजन के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) को अच्छी तरह से समझा सकता है।

  • सीमाएँ:

    • यह मॉडल केवल हाइड्रोजन जैसे एकल इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के लिए ही सटीक था, और बहु-इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के लिए इसे लागू नहीं किया जा सका।

    • बोर का मॉडल परमाणु के नाभिकीय गुणों और अधिक जटिल इंटरएक्शंस को नहीं समझा पाया।

सारांश:

मॉडलप्रस्तावकमुख्य विचारसीमाएँ
जे. जे. टॉमसन का मॉडलजे. जे. टॉमसनपरमाणु एक सकारात्मक चार्ज वाले 'पड' में नकारात्मक इलेक्ट्रॉन होते हैं।परमाणु के स्थायित्व और इलेक्ट्रॉनों की गति की व्याख्या नहीं कर पाया।
रदरफोर्ड का मॉडलअर्नेस्ट रदरफोर्डपरमाणु में एक छोटा, घना, और सकारात्मक चार्जित केंद्रक (नाभिक) होता है। इलेक्ट्रॉन इसके चारों ओर घूमते हैं।परमाणु की स्थिरता का समाधान नहीं हुआ, और इलेक्ट्रॉनों के व्यवहार की व्याख्या नहीं कर पाया।
नील बोर का मॉडलनील बोरइलेक्ट्रॉन केवल निश्चित कक्षाओं में रहते हैं और इन कक्षाओं के बीच कूदने पर ऊर्जा उत्सर्जित या अवशोषित होती है।केवल हाइड्रोजन जैसे एकल इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के लिए ही लागू होता है।

निष्कर्ष:

  • जे. जे. टॉमसन के मॉडल ने परमाणु में नकारात्मक और सकारात्मक चार्ज के वितरित होने का विचार प्रस्तुत किया, लेकिन यह परमाणु की संरचना की गहरी व्याख्या नहीं कर सका।

  • रदरफोर्ड ने परमाणु के केंद्रक (नाभिक) की अवधारणा दी, लेकिन इसके बाद भी परमाणु की स्थिरता की व्याख्या की कमी थी।

  • नील बोर ने परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक संरचना की बेहतर व्याख्या की, विशेष रूप से हाइड्रोजन के मामले में, लेकिन यह मॉडल बहु-इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के लिए अपर्याप्त था।

प्रत्येक मॉडल ने अपनी सीमा तक परमाणु संरचना को समझाने में योगदान दिया, और इनकी सीमाओं को पार करने के लिए बाद में क्वांटम सिद्धांत और मॉडर्न फिजिक्स ने और अधिक विस्तृत व्याख्या दी।


यहाँ कुछ प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं जो आपके द्वारा दिए गए पाठ के आधार पर हैं:

1. इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना कीजिए।

उत्तर:

  • इलेक्ट्रॉन: ऋणात्मक आवेश (Negative charge), अत्यंत हल्का द्रव्यमान, परमाणु के बाहर स्थित होते हैं।

  • प्रोटॉन: धनात्मक आवेश (Positive charge), अपेक्षाकृत भारी द्रव्यमान, परमाणु के नाभिक में स्थित होते हैं।

  • न्यूट्रॉन: कोई आवेश नहीं (Neutral charge), प्रोटॉन के समान द्रव्यमान, परमाणु के नाभिक में स्थित होते हैं।

2. जे. जे. टॉमसन के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं?

उत्तर:

  • जे. जे. टॉमसन का मॉडल यह बताता था कि परमाणु एक घना, धनात्मक रूप से चार्जित पदार्थ है जिसमें नकारात्मक रूप से चार्जित इलेक्ट्रॉन बिखरे हुए हैं। इस मॉडल में कोई निश्चित नाभिक नहीं था।

  • इसकी सीमा यह थी कि यह मॉडल परमाणु की संरचना और उसकी स्थिरता की पूरी व्याख्या नहीं कर सका। विशेष रूप से, यह रदरफोर्ड के अल्फा कणों के प्रकीर्णन प्रयोग के परिणामों के साथ मेल नहीं खाता था।

3. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं?

उत्तर:

  • रदरफोर्ड का मॉडल यह प्रस्तावित करता है कि परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान और धनात्मक आवेश नाभिक में केंद्रित होता है, जबकि इलेक्ट्रॉन इसके चारों ओर घूमते हैं।

  • इसकी सीमा यह थी कि यह मॉडल परमाणु की स्थिरता की पूरी व्याख्या नहीं कर सका। इलेक्ट्रॉन लगातार ऊर्जा विकिरित करते, जिससे उन्हें नाभिक की ओर गिरना चाहिए था, जिससे परमाणु अस्थिर हो जाता।

4. बोर के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:

  • बोर का मॉडल रदरफोर्ड के मॉडल से आगे बढ़ा। उन्होंने यह प्रस्तावित किया कि इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं (या ऊर्जा स्तरों) में चक्कर लगा सकते हैं, और जब वे इन कक्षाओं में रहते हैं, तो वे ऊर्जा का विकिरण नहीं करते।

  • बोर ने यह भी कहा कि जब इलेक्ट्रॉन एक कक्षा से दूसरी कक्षा में कूदते हैं, तो वे ऊर्जा विकिरण करते हैं या अवशोषित करते हैं, और यह प्रक्रिया परमाणु के स्पेक्ट्रम की व्याख्या करती है।

5. इस अध्याय में दिए गए सभी परमाणु मॉडलों की तुलना कीजिए।

उत्तर:

  • टॉमसन मॉडल: परमाणु को 'पुडिंग' की तरह माना गया जिसमें नकारात्मक इलेक्ट्रॉन धनात्मक 'पुडिंग' में बिखरे होते हैं।

  • रदरफोर्ड मॉडल: परमाणु में एक केंद्रक (नाभिक) होता है, जिसमें अधिकांश द्रव्यमान और धनात्मक आवेश केंद्रित होते हैं, और इलेक्ट्रॉन इसके चारों ओर घूमते हैं।

  • बोर मॉडल: इलेक्ट्रॉन केवल निश्चित कक्षाओं में घूमते हैं और इन कक्षाओं में ऊर्जा विकिरण नहीं करते, लेकिन एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाते समय वे ऊर्जा विकिरण करते हैं।

6. पहले अठारह तत्वों के विभिन्न कक्षों में इलेक्ट्रॉन वितरण के नियम को लिखिए।

उत्तर:

  • कक्षा K (पहली कक्षा): अधिकतम 2 इलेक्ट्रॉन।

  • कक्षा L (दूसरी कक्षा): अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉन।

  • कक्षा M (तीसरी कक्षा): अधिकतम 18 इलेक्ट्रॉन।

  • कक्षा N (चौथी कक्षा): अधिकतम 32 इलेक्ट्रॉन।

  • ये कक्षाएँ बोर-बरी स्कीम के अनुसार क्रम से भरती हैं, अर्थात पहले कक्षा K भरती है, फिर L, M, और N क्रमशः।

7. यदि किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 है और प्रोटॉनों की संख्या भी 8 है तब, (a) परमाणु की परमाणु संख्या क्या है? (b) परमाणु का क्या आवेश है?

उत्तर:

  • (a) परमाणु की परमाणु संख्या 8 होगी, क्योंकि परमाणु की परमाणु संख्या प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है।

  • (b) परमाणु का आवेश शून्य होगा, क्योंकि इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की संख्या बराबर है, जिससे उनका आवेश संतुलित होता है।

आपके द्वारा दिए गए पाठ के आधार पर, ये उत्तर हैं। यदि आपको और किसी जानकारी की आवश्यकता हो, तो कृपया बताएं!