Chapter 1
सूरदास
1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर:गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान (अति बड़भागी) कहने में व्यंग्य यह है कि वे उद्धव की निःसंग (निर्लिप्त) और निर्लिप्त प्रकृति पर कटाक्ष कर रही हैं। गोपियाँ यह कहना चाहती हैं कि उद्धव पर प्रेम और स्नेह का कोई असर नहीं होता, वे स्नेह के धागे (संबंध) से कभी बंधे ही नहीं, इसलिए उन्हें विरह की पीड़ा का कोई अनुभव नहीं है। गोपियों के अनुसार, अगर उद्धव ने कभी सच्चा प्रेम किया होता, तो वे उनकी विरह-वेदना को समझ पाते। इस व्यंग्य में गोपियों का अपने प्रेम पर गर्व और उद्धव के ज्ञान के प्रति उपेक्षा भाव छिपा है।
2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर:उद्धव के व्यवहार की तुलना गोपियाँ ने निम्नलिखित रूपों से की है:
जल और तेल की गागर - गोपियाँ कहती हैं कि जैसे जल में तेल की गागर का पानी से कोई संपर्क नहीं होता और तेल जल में नहीं मिल पाता, वैसे ही उद्धव का प्रेम और स्नेह गोपियों के प्रति निष्ठुर और असंवेदनशील है। वे कभी भी गोपियों की विरह की पीड़ा को महसूस नहीं कर सकते।
कड़वी ककड़ी - गोपियाँ उद्धव की योग साधना को कड़वी ककड़ी से तुलना करती हैं, यह बताने के लिए कि उनका ज्ञान और उपदेश (योग और निर्गुण ब्रह्म का उपदेश) अप्रिय और बेमानी है। गोपियों के लिए यह उनका एकनिष्ठ प्रेम और कृष्ण के प्रति अनुराग के मुकाबले अत्यधिक कड़ा और निरर्थक लगता है।
स्वप्न और भ्रम - गोपियाँ उद्धव के संदेश को "स्वप्न" और "भ्रम" के समान मानती हैं, यह दर्शाने के लिए कि उनका ज्ञान और उपदेश उनके लिए वास्तविकता से दूर, अवास्तविक और अप्रभावी हैं।
इन तुलना के माध्यम से गोपियाँ उद्धव के संदेश की अप्रियता और उनके साथ सच्चे प्रेम की अनुपस्थिति को व्यक्त करती हैं।
3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर:गोपियों ने उद्धव को उलाहने देने के लिए कई सुंदर और व्यंग्यपूर्ण उदाहरणों का प्रयोग किया है:
पुरइन (कमल) का पत्ता जल में रहकर भी गीला न होना — गोपियाँ कहती हैं कि जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी गीला नहीं होता, वैसे ही उद्धव स्नेह के वातावरण में रहकर भी प्रेम में भीगते नहीं, उनका हृदय कठोर और निर्लिप्त है।
जल में तेल की गागर (घड़ा) — जैसे जल में तेल की गागर रखी हो, और उसमें पानी की एक बूँद भी न लगे, उसी तरह उद्धव का मन प्रेम और विरह की पीड़ा से अछूता है।
कड़वी ककड़ी (करुई ककरी) — उद्धव के योग-संदेश को गोपियाँ कड़वी ककड़ी जैसा बताती हैं, जो स्वाद में खराब और अप्रिय होता है; इससे उनका आशय यह है कि योग और ज्ञान का उपदेश उनके प्रेम-विरह में कोई राहत नहीं दे सकता।
हरि ने राजनीति पढ़ ली है — गोपियाँ ताना मारती हैं कि कृष्ण ने अब राजनीति सीख ली है, इसलिए वे सीधे गोपियों से मिलने नहीं आए और उद्धव को संदेशवाहक बनाकर भेज दिया। यह व्यंग्य कृष्ण की चतुराई और उद्धव की भूमिका पर कटाक्ष है।राजधर्म की याद दिलाना — अंत में गोपियाँ उद्धव को याद दिलाती हैं कि सच्चा राजधर्म (शासक का धर्म) अपनी प्रजा को दुख न देना है, और कृष्ण अगर सच्चे राजकुमार हैं, तो वे गोपियों को इस तरह नहीं तड़पाते।
4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर:उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि (विरह की अग्नि) में घी का काम इसलिए किया, क्योंकि उनका संदेश गोपियों के लिए प्रेम के स्थान पर निर्गुण ब्रह्म, ज्ञान और वैराग्य की शिक्षा लेकर आया था, जो गोपियों की भावनाओं के बिल्कुल विपरीत था।
गोपियाँ कृष्ण के साकार, सजीव प्रेम में लीन थीं, उनके लिए प्रेम ही जीवन का सार था। उद्धव के निर्गुण, निरासक्त योग-संदेश ने उनके प्रेम की तीव्रता और पीड़ा को और भड़का दिया, क्योंकि उसे सुनकर गोपियों को लगा कि कृष्ण ने अब प्रेम का महत्व नहीं समझा और केवल ज्ञान और वैराग्य की बातें करने लगे हैं।
इसलिए उद्धव का संदेश गोपियों के लिए सांत्वना न बनकर, उलटे उनकी विरह-ज्वाला को और अधिक प्रज्वलित करने वाला (घी डालने जैसा) बन गया।
5. 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर:‘मरजादा न लही’ के माध्यम से गोपियाँ इस बात की ओर संकेत कर रही हैं कि उद्धव और कृष्ण ने प्रेम की मर्यादा का पालन नहीं किया।
गोपियों के अनुसार, प्रेम में यह मर्यादा होती है कि प्रेमी अपने प्रिय को कभी अकेला नहीं छोड़ता और उसके दुख-दर्द में सहभागी बनता है। लेकिन कृष्ण ने मथुरा जाकर गोपियों को विरह की अग्नि में छोड़ दिया और स्वयं न आकर उद्धव को संदेशवाहक बनाकर भेज दिया।
इसलिए गोपियाँ कहती हैं कि अब कोई मर्यादा (मरजादा) नहीं रह गई — न प्रेम की, न संबंधों की, और न ही कृष्ण के वचन की। उनका उलाहना यही है कि कृष्ण ने प्रेम की शाश्वत मर्यादा को भंग कर दिया, जिससे वे अपने दुःख और पीड़ा में अकेली रह गईं।
6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:गोपियों ने अपने कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम को अत्यंत मार्मिक और सजीव ढंग से अभिव्यक्त किया है। उन्होंने बताया कि:
मन, वचन और कर्म से केवल कृष्ण को अपनाया है — गोपियाँ कहती हैं कि उन्होंने अपने मन, बोल और कर्म में नंदनंदन (कृष्ण) को दृढ़ता से पकड़ रखा है, उनके जीवन का प्रत्येक क्षण कृष्णमय हो गया है।
जागते, सोते, स्वप्न में, दिन-रात बस कृष्ण ही स्मरण में रहते हैं — गोपियाँ बताती हैं कि चाहे जागृत अवस्था हो, निद्रा हो या स्वप्न, दिन हो या रात, हर समय उनका मन कृष्ण में ही रमा रहता है।
दूसरे किसी मार्ग या उपदेश में उन्हें रुचि नहीं — गोपियाँ उद्धव के योग-संदेश को अस्वीकार कर देती हैं और कहती हैं कि यह संदेश उनके लिए कड़वी ककड़ी जैसा है, क्योंकि उनका प्रेम सरल, निश्छल और एकनिष्ठ है, जो ज्ञान या वैराग्य के मार्ग में नहीं बंध सकता।
कृष्ण के बिना जीवन असह्य है — वे अपने दुख, विरह और पीड़ा को खुलकर व्यक्त करती हैं, जिससे उनके प्रेम की गहराई और निश्छलता झलकती है।
इन सभी बातों के माध्यम से गोपियाँ स्पष्ट करती हैं कि उनका प्रेम सांसारिक नहीं, बल्कि आत्मिक और पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।
7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर:गोपियों ने उद्धव से कहा कि योग की शिक्षा उन लोगों को देना चाहिए जिनके मन संसार में आसक्त (आटकी) हों, जिनका चित्त इधर-उधर भटकता हो। परंतु जो व्यक्ति भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में पूरी तरह डूब चुका है, उसके लिए योग की शिक्षा व्यर्थ है, क्योंकि उसका मन पहले से ही भगवान में एकाग्र हो चुका है। गोपियाँ स्वयं श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन थीं, इसलिए उन्होंने उद्धव से कहा कि वे योग की शिक्षा उन लोगों को दें, जिनका मन अभी संसार में भटक रहा है, न कि उन्हें, जो पहले ही प्रेम-योग में मग्न हैं।
8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर:प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण यह है कि वे योग साधना को उन लोगों के लिए आवश्यक मानती हैं जिनका मन संसार में आसक्त है और जिनका चित्त विषयों में भटकता रहता है। गोपियाँ स्वयं श्रीकृष्ण के प्रेम में पूरी तरह लीन थीं, उनका मन पहले से ही भगवान में स्थिर हो चुका था। इसलिए उनके लिए बाह्य योग साधना की आवश्यकता नहीं थी। उनके अनुसार, सच्चा योग वही है जिसमें जीव का मन पूर्ण रूप से ईश्वर में लीन हो जाए। इस प्रकार, गोपियों का दृष्टिकोण था कि योग का उद्देश्य ईश्वर में मन लगाना है, और जो पहले से ही प्रेम में मग्न हैं, उनके लिए योग की औपचारिक साधना अनावश्यक है।
9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर:गोपियों के अनुसार, राजा का धर्म यह होना चाहिए कि वह अपनी प्रजा की भलाई और रक्षा करे। राजा को न्यायप्रिय, दयालु और प्रजावत्सल होना चाहिए। उसे अपनी प्रजा के सुख-दुख का ध्यान रखना चाहिए और उनकी रक्षा के लिए हर समय तैयार रहना चाहिए। राजा को लोभ, अन्याय और अहंकार से दूर रहकर, धर्म और नीति के मार्ग पर चलना चाहिए। गोपियों का मानना था कि राजा केवल शासन करने के लिए नहीं, बल्कि प्रजा की सेवा करने और उन्हें सुखी रखने के लिए होता है।
10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर:गोपियों को कृष्ण में ऐसे कई परिवर्तन दिखाई दिए, जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं। पहले कृष्ण बालरूप में सरल, स्नेही और प्रेमपूर्ण थे, परंतु मथुरा जाने के बाद उनमें राजसी ठाट-बाट, वैभव और अधिकार का भाव आ गया। गोपियों को लगा कि कृष्ण अब पहले जैसे सहज, सरल और प्रेममय नहीं रहे। उनके हावभाव, वेशभूषा और व्यवहार में जो परिवर्तन आया, उससे गोपियों को यह अनुभव हुआ कि अब उनका निश्छल प्रेम कृष्ण तक नहीं पहुँच पा रहा। इसलिए वे कहती हैं कि यदि कृष्ण अब उनके प्रेम को नहीं समझते, तो वे अपना मन, जो उन्होंने कृष्ण को समर्पित किया था, वापस ले लेना चाहती हैं।
11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर:गोपियों के वाक्चातुर्य (बोलने की कुशलता) की विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
सरलता और निश्छलता — गोपियों की वाणी सरल, भावुक और निष्कपट थी, उसमें कोई बनावट या आडंबर नहीं था।
प्रेमपूर्ण भाव — उनके हर शब्द में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम झलकता था, जो उद्धव जैसे ज्ञानी को भी प्रभावित कर देता था।
व्यंग्य और विनोद — गोपियाँ अपनी बातों में व्यंग्य और हल्के विनोद का प्रयोग करके गंभीर विषयों को सहजता से व्यक्त कर देती थीं।
गहन जीवनदर्शन — भले ही वे साधारण ग्वालन थीं, लेकिन उनके शब्दों में गहन भक्ति और अद्वैत प्रेम का दर्शन छुपा हुआ था, जिससे उद्धव जैसे विद्वान भी चकित हो गए।
निडरता और स्पष्टता — गोपियाँ निडर होकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करती थीं, उन्होंने उद्धव के सामने भी अपने मन की बात स्पष्टता से रखी।
प्रभावशाली तर्क — वे अपने अनुभवों और प्रेम के आधार पर ऐसे प्रभावशाली तर्क प्रस्तुत करती थीं कि उद्धव जैसे ज्ञानी भी निरुत्तर हो गए।
12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए? रचना और अभिव्यक्ति
उत्तर:सूरदास के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ रचना और अभिव्यक्ति के संदर्भ में इस प्रकार हैं:
✦ रचना की विशेषताएँ:सवैय्या, कुंडलिया, पद शैली में रचना — सूरदास ने भ्रमरगीत को पदों के रूप में रचा, जिनमें सवैय्या और कुंडलिया छंदों का भी प्रयोग हुआ है।
संकलन की कलात्मकता — इसमें छोटे-छोटे पदों में बड़े भावों को अत्यंत सुंदरता और कुशलता से पिरोया गया है।
लोकभाषा का प्रयोग — सूरदास ने ब्रज भाषा का प्रयोग किया है, जो सरल, मधुर और भावप्रधान है।
✦ अभिव्यक्ति की विशेषताएँ:
भक्ति और प्रेम का सुंदर समन्वय — इसमें गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम, विरह वेदना और भक्ति की भावनाएँ अत्यंत मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त हुई हैं।
वाक्चातुर्य और व्यंग्य — गोपियाँ उद्धव से व्यंग्यपूर्ण और चातुर्यपूर्ण संवाद करती हैं, जिससे रचना में हास्य और चतुराई का सुंदर मिश्रण आता है।
मानव स्वभाव का चित्रण — गोपियों की पीड़ा, उलाहने, अनुराग और सरलता के माध्यम से मानवीय स्वभाव का अत्यंत सजीव चित्रण हुआ है।
प्रकृति चित्रण — सूरदास ने प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया है, जिससे रचना में सौंदर्य और भावपूर्ण वातावरण उत्पन्न होता है।
सजीव संवाद शैली — गोपियों और उद्धव के संवाद इतने सजीव हैं कि पाठक/श्रोता को दृश्य प्रत्यक्ष अनुभूत होता है।
13. गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर:गोपियों ने उद्धव के सामने प्रेम, भक्ति और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी निष्ठा को लेकर कई तर्क दिए हैं, जो उनकी गहरी भावनाओं और प्रेम को व्यक्त करते हैं। अगर हम अपनी कल्पना से कुछ और तर्क दें, तो वे इस प्रकार हो सकते हैं:
प्रेम की शुद्धता — "हमारा प्रेम व्यावहारिकता से नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई से है। हम कृष्ण से अपनी आत्मा से जुड़े हैं, न कि किसी बाहरी कारण से। प्रेम में कोई तर्क नहीं होता, यह तो एक सहज प्रवृत्ति है।"
आध्यात्मिक योग — "जब हम कृष्ण के चरणों में ध्यान लगाते हैं, तो हमें हर स्थान और समय में कृष्ण ही दिखाई देते हैं। क्या इस प्रकार की दिव्य अनुभूति को कोई तर्क से समझ सकता है?"
कृष्ण का रूप और लीलाएँ — "कृष्ण का रूप ऐसा है कि उसमें ही सब कुछ समाहित है। जब भी हम उनके दर्शन करते हैं, हमें हमारी आत्मा का उद्देश्य और जीवन का मार्ग दिखाई देता है। उनकी लीलाएँ हमारी आत्मा को प्रसन्न और शुद्ध करती हैं, जिसे कोई तर्क नहीं समझ सकता।"
कृष्ण की महिमा का अनुभव — "हमारे लिए कृष्ण से बढ़कर कोई नहीं है, क्योंकि जब हम उनके साथ होते हैं, तो हर दुख, हर भटकाव दूर हो जाता है। क्या किसी तर्क से यह अनुभव किया जा सकता है?"
विरह और प्रेम का संबंध — "हमारे लिए कृष्ण का दूर होना भी हमारे प्रेम का हिस्सा है। जिस प्रकार फूल में कांटे होते हैं, उसी प्रकार कृष्ण के बिना हमारा प्रेम और भी गहरा होता है। क्या इस कष्ट और प्रेम को कोई तर्क में समझ सकता है?"
अनुशासन और भक्ति — "हमारे लिए कृष्ण का आदेश सर्वोपरि है। हमने अपनी जीविका, अपना समय और अपने सुख-दुख सब कृष्ण को समर्पित किया है। क्या यह कोई तर्क से बांधा जा सकता है, या यह हमारी निष्ठा और विश्वास का प्रतीक है?"
इन तर्कों से गोपियाँ उद्धव को यह समझाने का प्रयास करती हैं कि उनका प्रेम केवल भौतिक या साधारण नहीं है, बल्कि एक दिव्य और आत्मिक संबंध है, जिसे कोई तर्क और बुद्धि से नहीं समझ सकता। यह एक अद्वितीय और अनुभवात्मक अवस्था है, जिसे केवल भक्त ही समझ सकते हैं।
14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर:गोपियों के पास वह अद्वितीय प्रेम की शक्ति थी, जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी। यह शक्ति एक गहरी भक्ति और आत्मिक निष्ठा से उत्पन्न होती थी, जो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम में पूरी तरह से समर्पित किया था। उनका प्रेम न केवल शारीरिक आकर्षण था, बल्कि यह एक दिव्य, अप्रतिम और आत्मिक बंधन था, जो तर्क, नीति या ज्ञान से परे था। इस प्रेम की शक्ति ने उन्हें वाक्चातुर्य में अद्वितीय क्षमता प्रदान की, जिससे वे उद्धव जैसे ज्ञानी को भी परास्त करने में सक्षम हो गईं।
कुछ प्रमुख शक्तियाँ जो गोपियों के वाक्चातुर्य में व्यक्त हुईं, वे निम्नलिखित थीं:
अद्वितीय भक्ति और प्रेम — गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम के कारण पूर्ण रूप से समर्पित थीं। उनका प्रेम न केवल धार्मिक था, बल्कि वह उनके आत्मा का अंग बन चुका था। इस प्रेम ने उन्हें उच्चतम ज्ञान और तर्क से परे जाकर अपने विचार व्यक्त करने की शक्ति दी।
आत्मिक अनुभव — गोपियाँ अपने जीवन में भगवान के प्रति सीधे अनुभव और दिव्य साक्षात्कार से जुड़ी हुई थीं। उनका अनुभव बौद्धिक ज्ञान से कहीं अधिक गहरा था, और इसी कारण वे भावनाओं और अनुभवों को शब्दों में उतारने में सक्षम हो पाईं।
सहजता और निष्कलंकता — गोपियाँ अपनी बातों में न कोई बनावट, न कोई छल, और न ही कोई दिखावा करती थीं। उनकी वाणी सरल और सच्ची थी, जो उथले तर्कों को सहजता से नकार देती थी।
प्राकृतिक बुद्धिमत्ता — जबकि उद्धव एक ज्ञानी थे और नीति की बातें जानते थे, गोपियाँ अपनी सहज और प्राकृतिक बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण थीं। उनका तर्क केवल पुस्तक या शास्त्रों पर आधारित नहीं था, बल्कि यह उनके आत्मिक अनुभवों और कृष्ण के प्रति उनकी प्रेम-भावना पर आधारित था।
विरह की पीड़ा — गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में गहरी पीड़ा अनुभव कर रही थीं, और यह पीड़ा उनके वाक्य में एक शक्ति के रूप में अभिव्यक्त होती थी। यह विरह की पीड़ा उनके तर्कों को इतना प्रबल बना देती थी कि उद्धव जैसे ज्ञानी को भी चुप करवा देती थी।
15. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:गोपियों ने यह कहा कि "हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं" क्योंकि वे श्रीकृष्ण के व्यवहार में एक परिवर्तन महसूस कर रही थीं। पहले कृष्ण का रूप सरल, सहज, और प्रेममय था, वे गोपियों के बीच सहजता से घुल-मिल जाते थे। लेकिन मथुरा जाने के बाद, जब कृष्ण ने राजा और प्रशासन के कर्तव्यों को स्वीकार किया और राजसी ठाट-बाट में रहने लगे, तो गोपियों को यह महसूस हुआ कि कृष्ण का स्वभाव अब पहले जैसा नहीं रहा। उनका दृष्टिकोण और व्यवहार अब राजनीति और राजसी दायित्वों के प्रभाव में बदल चुका था। गोपियाँ इसे इस प्रकार देख रही थीं कि कृष्ण अब राजनीति के तौर-तरीकों को समझने लगे हैं, जो उनके प्रेमपूर्ण और निश्छल रूप से दूर हो जाने का संकेत था।
इस कथन का समकालीन राजनीति में विस्तार इस प्रकार समझा जा सकता है:
राजनीतिक मूल्य और नैतिकता का परिवर्तन: जब नेता अपने व्यक्तिगत और आध्यात्मिक आदर्शों से परे जाकर केवल सत्ता और राजनीतिक लाभ की ओर बढ़ते हैं, तो उनके कार्यों में बदलाव आता है। यह वही स्थिति है जो गोपियों ने कृष्ण में देखी। कृष्ण का जो प्रेममय रूप था, वह अब राजनीति के तर्कों और यथार्थ से प्रभावित होकर बदलने लगा।
राजनीति और प्रेम के बीच संतुलन: समकालीन राजनीति में, हम देखते हैं कि अक्सर नेताओं को अपने व्यक्तिगत आदर्शों और राजनीति के कड़े फैसलों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है। यह स्थिति अक्सर राजनीति के "कठोर" रूप में बदल जाती है, जहां तर्क, नीति और समझौते महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जबकि मूलभूत मानवीय भावनाओं या प्रेम का स्थान पीछे छूट जाता है। यही बात गोपियाँ कृष्ण के बारे में कह रही थीं।
सत्ता और निष्ठा का संघर्ष: समकालीन राजनीति में अक्सर देखा जाता है कि नेता अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए अपनी निष्ठाओं और आदर्शों से समझौता करते हैं। यह वही स्थिति है जिसे गोपियाँ कृष्ण में देख रही थीं – जहां कृष्ण का प्रेम अब उनके शासन और राजनीतिक दायित्वों से दबने लगा था।
गोपियों का यह कथन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे श्रीकृष्ण के रूप में एक दिव्य और प्रेममय व्यक्तित्व देख रही थीं, जो अब एक राजनीतिज्ञ की भूमिका में दिखने लगा था। इसका समकालीन राजनीति में भी यह संदेश है कि जब नेता अपनी मानवता, प्रेम और नैतिकता को छोड़कर केवल राजनीतिक और दायित्वपूर्ण दृष्टिकोण से काम करने लगते हैं, तो उनका व्यक्तित्व और कार्यक्षेत्र बदल जाता है।