Chapter 2

तुलसीदास |

1 . परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?

उत्तर:परशुराम के क्रोध के कारण लक्ष्मण ने धनुष के टूटने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए:

किसी कारणवश टूटना: लक्ष्मण ने कहा कि धनुष के टूटने का कारण कोई जानबूझकर किया हुआ कार्य नहीं था, बल्कि यह एक अप्रत्याशित घटना थी, जिसे समय के साथ किसी कारणवश घटित होना पड़ा। उन्होंने इसे एक सामान्य घटना के रूप में प्रस्तुत किया, जैसे कि कोई भी चीज समय और परिस्थितियों के साथ टूट सकती है।

न्यायिक कारण: लक्ष्मण ने कहा कि परशुराम के क्रोध के कारण ही धनुष टूट गया, क्योंकि परशुराम का क्रोध बहुत तेज था और वह भयंकर शक्ति से धनुष को तोड़ने के लिए बाध्य हो गए थे। इस तर्क को लक्ष्मण ने न्याय के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें यह बताया कि परशुराम के क्रोध के सामने कोई भी साधारण वस्तु टिक नहीं सकती थी।

दृष्टिकोण का फर्क: लक्ष्मण ने यह भी कहा कि वे धनुष के टूटने के लिए जिम्मेदार नहीं थे, क्योंकि यह घटना न तो उनकी इच्छा से हुई थी, और न ही इसका कोई कदापि उनका दोष था। उन्होंने परशुराम के क्रोध को एक ऐसी स्थिति के रूप में बताया, जिसे किसी अन्य तरीके से टाला नहीं जा सकता था।

इन तर्कों के माध्यम से लक्ष्मण ने परशुराम से यह प्रकट किया कि धनुष का टूटना केवल एक आकस्मिक घटना थी और इसके पीछे कोई जानबूझकर की गई चेष्टा या किसी का दोष नहीं था।

 2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:परशुराम के क्रोध पर राम और लक्ष्मण की प्रतिक्रियाएँ दोनों के स्वभाव की महत्वपूर्ण विशेषताएँ उजागर करती हैं।

राम का स्वभाव:

राम की प्रतिक्रिया अत्यंत विनम्र और शांत थी। उन्होंने परशुराम के क्रोध का सामना धैर्य और सम्मान के साथ किया। राम ने परशुराम से कहा कि वे उनका आदर करते हैं और उन्होंने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के बजाय शांतिपूर्वक स्थिति को संभालने का प्रयास किया। राम का यह विनम्र और नम्र स्वभाव दर्शाता है कि वे हमेशा धैर्य और समझदारी से काम लेते थे, और किसी भी परिस्थिति में अहंकार नहीं दिखाते थे। उनके लिए दूसरों का सम्मान सबसे महत्वपूर्ण था, चाहे वह परशुराम जैसे महान ब्राह्मण ही क्यों न हों।

लक्ष्मण का स्वभाव:

लक्ष्मण की प्रतिक्रिया परशुराम के प्रति क्रोध और आक्रामकता की थी। जब परशुराम ने क्रोध में आकर कुछ कहा, तो लक्ष्मण ने अपनी भृकुटि चढ़ाई और उनकी बातों का जवाब दिया। लक्ष्मण का स्वभाव ज्यादा तेज और प्रतिक्रिया देने वाला था। वे अपने भाई राम के मुकाबले अधिक उत्तेजित थे और किसी भी प्रकार की आलोचना या अपमान को बर्दाश्त नहीं करना चाहते थे। लक्ष्मण का यह स्वभाव यह दर्शाता है कि वे रक्षात्मक और कभी-कभी अति संवेदनशील हो सकते थे, जबकि राम की तरह वे शांत और संयमित नहीं थे।

इस प्रकार, राम और लक्ष्मण की प्रतिक्रियाएँ उनके स्वभाव में अंतर को प्रकट करती हैं: राम शांत, संयमित और विनम्र थे, जबकि लक्ष्मण अधिक उत्तेजित और आक्रामक स्वभाव के थे। राम में धैर्य और विनय था, जबकि लक्ष्मण में तेज़ प्रतिक्रिया और संवेदनशीलता थी।

3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर:लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का एक अंश:

परशुराम:"तुम्हारी यह आँखें कितनी अकृतज्ञ हैं, लक्ष्मण! क्या तुम्हें नहीं मालूम कि मैं कौन हूँ और क्या करने का सामर्थ्य रखता हूँ? तुमने मेरा धनुष तोड़ दिया है, इसे सहन नहीं किया जाएगा!"

लक्ष्मण:"मुनिवर, आपने मुझसे कुछ कहा है, लेकिन मैं इसके लिए जिम्मेदार नहीं हूँ। यह धनुष तो स्वयं टूट गया। यह एक घटना थी, जिसे रोका नहीं जा सकता था। मेरे दिल में आपके प्रति कोई बुरा भाव नहीं है।"

परशुराम:"तुम्हारे बोलने का तरीका बहुत ही जरा है, लक्ष्मण! तुम नहीं जानते कि मैं क्या कर सकता हूँ। तुमने हमारे जैसे महान साधु-मुनियों का अपमान किया है, इसलिये तुम्हें दंड मिलेगा।"

लक्ष्मण:"मुनिवर, आप भले ही श्रेष्ठ ब्राह्मण हैं, लेकिन मैंने जान-बूझकर आपको अपमानित नहीं किया। हम रघुकुल के वीर हैं और हमें अपनी वीरता का पूरा विश्वास है। यदि आप हमारी कठिनाई बढ़ाएंगे, तो हम भी शांतनहीं रहेंगे।"

राम (दूर से, शांत स्वर में):"लक्ष्मण, शांत हो जाओ। यह समय क्रोध का नहीं है। परशुराम जी, कृपया हमें क्षमा करें। यह केवल एक दुर्घटना थी।"

विवेचन:यह संवाद दर्शाता है कि लक्ष्मण में क्रोध और प्रतिरक्षा की तीव्र भावना थी, जबकि राम में शांति और संयम की भावना प्रबल थी। लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोध का सामना किया, जबकि राम ने इसे शांति से सुलझाने की कोशिश की।

 4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा,

उत्तर:परशुराम ने अपने विषय में सभा में निम्नलिखित बातें कही:

साधू और ब्राह्मण का सम्मान:परशुराम ने स्वयं को एक साधू और ब्राह्मण के रूप में प्रस्तुत किया, जोअपनी शक्ति का उपयोग अन्याय करने वालों को दंड देने के लिए करता है। उन्होंने बताया कि वे ब्राह्मणों और धर्म की रक्षा करने के लिए अत्यधिक तपस्या और परिश्रम करते आए हैं। वे अपने आपको धर्म के रक्षक और समाज के लिए एक आदर्श मानते थे।कृपाणधारी और युद्ध में निष्णात:

परशुराम ने सभा में यह भी कहा कि वे कृपाणधारी हैं और युद्ध में निष्णात हैं। उनका पूरा जीवन शस्त्रों का अभ्यास और रक्षात्मक कार्यों में बीता है। वे अपने अस्तित्व को समाज के रक्षकों के रूप में देखते थे, जो किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।

अपने शौर्य और कर्म का गौरव:उन्होंने अपने शौर्य और कर्म को भी उजागर किया, यह बताते हुए कि वे राघव जैसे महान राजकुमारों के लिए एक चुनौती रहे हैं और उन्होंने समय-समय पर अपने शौर्य से बड़ी-बड़ी शक्तियों और योद्धाओं को पराजित किया है। उन्होंने खुद को एक महान योद्धा और धर्म के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया।

क्रोध और शांति के बीच का संतुलन:परशुराम ने यह भी कहा कि वे क्रोधित होने पर बहुत भयंकर हो सकते हैं, लेकिन शांति और संतुलन की आवश्यकता भी महसूस करते हैं। उनका यह कहना था कि किसी भी प्रकार की अन्यायपूर्ण या अत्याचार की स्थिति में वे अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं, लेकिन अंततः वे शांति स्थापित करने का भी प्रयास करतेहैं।राम और लक्ष्मण के प्रति सम्मान:अंत में, परशुराम ने राम और लक्ष्मण के प्रति भी अपनी बात रखी और कहा कि वे रघुकुल के सबसे श्रेष्ठ और वीर पात्र हैं। उन्होंने यह भी माना कि राम के साथ विवाद में कहीं न कहीं उनकी अपनी गलतफहमियाँ थीं, लेकिन उन्हें अंततः राम के साथ सम्मानजनक संबंधों की आवश्यकता महसूस हुई।

इस प्रकार, परशुराम ने अपनी भूमिका को एक धर्माधिकारी और युद्धवीर के रूप में स्थापित किया, जो अपने कर्तव्यों और अपने स्वधर्म के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान थे।

निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-बाल ब्रह्मचारी अति कोही।

उत्तर:"बाल ब्रह्मचारी अति कोही" इस पद्यांश के माध्यम से संत तुलसीदास ने बालक के पवित्र और निष्कलंक जीवन का चित्रण किया है। वे इसे एक आदर्श जीवन के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

"बाल ब्रह्मचारी अति कोही" का तात्पर्य है कि बालक जब तक ब्रह्मचारी रहते हैं, उनका जीवन अति पवित्र और निष्कलंक होता है। बालक का मन इस समय निर्दोष और शुद्ध रहता है। यह अवस्था निर्मल और साधना की ओर उन्मुख होती है, क्योंकि इसमें कोई भी माया या वासना का बंधन नहीं होता। बालक का मन सच्चाई, भक्ति और प्रेम से अभिभूत रहता है।

इसमें यह भी संकेत किया गया है कि बालक की ब्रह्मचर्य अवस्था उसे प्राकृतिक पवित्रता और मानसिक शक्ति प्रदान करती है। इसे एक आदर्श जीवन के रूप में देखा जाता है, क्योंकि इस समय बालक का मन बिना किसी बाहरी प्रभाव के ईश्वर की भक्ति और धर्म की ओर आकर्षित होता है।

संत तुलसीदास द्वारा इस पद्यांश में बालक के शुद्ध और पवित्र स्वभाव को स्वीकार किया गया है, और यह हमें यह समझाने का प्रयास किया गया है कि बालक का जीवन जब तक निंदनीय और अभिमान से दूर रहता है, तब तक उसका जीवन सच्चे और उत्तम मार्ग की ओर अग्रसर होता है।

इसलिए यह पद्यांश बालक के जीवन को आदर्श रूप में प्रस्तुत करता है, जहाँ पवित्रता, शुद्धता और ब्रह्मचर्य की महत्ता को प्रमुखता से दर्शाया गया है।

 बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।

उत्तर:"बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही" इस पद्यांश का अर्थ है—

"सार्वभौमिक रूप से प्रसिद्ध (या सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध) वह व्यक्ति जो क्षत्रिय कुल का विरोधी है।"

यह पद्यांश परशुराम के गुस्से और क्रोध को व्यक्त करता है, जिसमें वे लक्ष्मण को यह ताना दे रहे हैं कि वह एक क्षत्रिय (राजपूत) कुल का विरोधी है, और उसने अपने कुल की मर्यादा का उल्लंघन किया है। परशुराम ने लक्ष्मण को यह आरोप लगाया कि उसने धनुष तोड़ने और अपनी नासमझी से एक बड़ा अपराध किया है, जो क्षत्रिय कुल के लिए लज्जाजनक है।

यह शब्द परशुराम द्वारा लक्ष्मण को उनकी वीरता और कुल मर्यादा को ठेस पहुंचाने के रूप में कहा गया था। परशुराम का यह कथन उन दिनों के कुल, प्रतिष्ठा, और आत्मसम्मान के प्रति उनकी गहरी भावना को भी प्रकट करता है, क्योंकि किसी भी व्यक्ति के कुल की निंदा करना या उसके विरुद्ध कुछ करना उस समाज में गंभीर अपराध माना जाता था।

सारांश:यह पद्यांश परशुराम के गुस्से और क्षत्रिय धर्म के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें वे लक्ष्मण के कृत्य को क्षत्रिय कुल का द्रोह मानते हैं और इस अपराध को दुनिया भर में प्रचारित करने की धमकी देते हैं।

 भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही।

उत्तर:"भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही" इस पद्यांश का अर्थ है—

"शरीर के बल और शक्ति के बिना पृथ्वी और राजाओं का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता।"यह शब्द परशुराम के शौर्य और वीरता को दर्शाता है, जो शस्त्र और शारीरिक बल के माध्यम से भूमि और राज्य प्राप्त करने में सक्षम थे। यहाँ पर "भुजबल" (शारीरिक बल) और "भूमि भूप" (पृथ्वी और राजाओं) का संदर्भ देते हुए यह बताया जा रहा है कि परशुराम ने अपने भुजबल (शक्तिशाली हाथों) से ही सम्पूर्ण पृथ्वी और राजाओं को जीतकर अपने नियंत्रण में किया।

यह वाक्य परशुराम के शक्तिशाली और युद्ध कौशल का प्रतीक है, जिसमें वे बताते हैं कि उन्होंने अपनी कड़ी तपस्या, शस्त्र विद्या और बल के द्वारा ही भूमि और राजाओं पर विजय प्राप्त की। इस तरह, परशुराम ने शारीरिक शक्ति का महत्व बताया, क्योंकि उनकी विजय का मुख्य कारण उनका शारीरिक बल और युद्ध कौशल था।

सारांश:यह वाक्य परशुराम की शक्ति और विजय को प्रदर्शित करता है, और यह भी दर्शाता है कि उन्होंने शरीरिक बल और शस्त्रों के माध्यम से अपने जीवन में राज्य और भूमि की प्राप्ति की थी।

 बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।

उत्तर:"बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही" इस पद्यांश का अर्थ है—

"बहुत बार महादेव (भगवान शिव) ने मुझे (परशुराम को) वरदान दिया है।"

यह वाक्य परशुराम के भगवान शिव से प्राप्त आशीर्वाद और शक्तियों का उल्लेख करता है। परशुराम ने भगवान शिव से बार-बार वरदान प्राप्त किए थे, जो उन्हें शस्त्रों का अद्वितीय ज्ञान और युद्ध कौशल प्रदान करने में सहायक बने।

यह वाक्य परशुराम के जीवन में धार्मिक बल और आध्यात्मिक सिद्धि को दर्शाता है। भगवान शिव से मिले वरदान के कारण ही परशुराम को अप्रतिम शक्ति और बल प्राप्त हुआ था, जिसने उन्हें अजेय योद्धा बना दिया था। परशुराम का शिव के साथ यह संबंध उनके जीवन की धार्मिक और युद्धकला में विशेष स्थान रखता था।

सारांश:यह पद्यांश परशुराम के भगवान शिव से मिले कई वरदानों का प्रतीक है, जिनसे उन्हें विशेष शक्ति, युद्ध कौशल और जीवन की कठिनाइयों से निपटने का साहस मिला।

 सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।

उत्तर:सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।" इस पद्यांश का अर्थ है—

"हजारों बाहुओं वाले (राक्षस) का वध करने वाला (परशुराम), जो अपने परशु (कुल्हाड़ी) को देखकर पृथ्वी के राजा को भयभीत कर देता है।"

यह वाक्य परशुराम के शक्ति और वीरता को व्यक्त करता है, जहाँ वे सहस्रबाहु (हजारों हाथ वाले राक्षस) का वध करने की क्षमता रखते हैं। यह वर्णन परशुराम के दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) के बारे में है, जिसे देखकर वे राजा (महिपकुमार) भी भयभीत हो जाते हैं।

यह चित्रण परशुराम की अद्वितीय शक्ति और युद्ध कौशल को दर्शाता है। उनके परशु की ताकत और उनके द्वारा किए गए कार्य इतने शक्तिशाली थे कि उनके सामने कोई भी योद्धा नहीं टिक सकता था। वे हजारों हाथों वाले राक्षसों का भी वध करने में सक्षम थे, जो उनके धार्मिक और शास्त्रबल को प्रमाणित करता है।सारांश:यह पद्यांश परशुराम की अत्यधिक शक्ति और शौर्य को दर्शाता है, जिसमें वे एक अद्वितीय योद्धा के रूप में सामने आते हैं, जो अपने परशु (कुल्हाड़ी) के द्वारा हजारों हाथों वाले राक्षसों का वध करने में सक्षम हैं।

 मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर । गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ।।

उत्तर:मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।"

इस पद्यांश का अर्थ है—

"माता-पिता के बारे में चिंता मत करो, क्योंकि मैं, महीस के कुमार (शिव के पुत्र) की तरह, गर्भ में स्थित शिशु का नाश करने के लिए अत्यंत भयंकर परशु (कुल्हाड़ी) का उपयोग करता हूँ।"

यह वाक्य परशुराम के कठोरता और वीरता को दर्शाता है। यहाँ पर वे अपने परशु (कुल्हाड़ी) के घोर (भयंकर) रूप को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि उनका हथियार इतना शक्तिशाली है कि वह गर्भ में पल रहे शिशु का भी वध कर सकता है।

इस वाक्य में परशुराम अपने कुल्हाड़ी के प्रभाव और शक्ति का उल्लेख कर रहे हैं, और यह भी कहते हैं कि माता-पिता की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह अपने परशु का उपयोग भयंकर तरीके से कर सकते हैं, जैसा कि वे गर्भवती के भ्रूण का नाश करने में सक्षम हैं।

यह वाक्य उनके राक्षसों या विरोधियों के प्रति उनके निर्दय और निष्ठुर दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहाँ वे दिखा रहे हैं कि उनका परशु किसी भी सीमा तक जा सकता है, चाहे वह गर्भवती स्त्री का भ्रूण ही क्यों न हो।

सारांश:यह पद्यांश परशुराम के कठोर और निर्दय स्वभाव को व्यक्त करता है, जिसमें वे अपने परशु की शक्ति का उल्लेख करते हुए किसी भी विरोधी को नष्ट करने की अपनी क्षमता को बताते हैं।

5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?

उत्तर:लक्ष्मण ने वीर योद्धा की जो विशेषताएँ बताई, वे निम्नलिखित हैं:

धैर्य और साहस: वीर योद्धा को कठिन परिस्थितियों में भी अपने धैर्य और साहस को बनाए रखना चाहिए। वह किसी भी चुनौती का सामना बिना डर और घबराहट के करता है।

शक्ति और युद्ध कौशल: वीर योद्धा को युद्ध में शक्ति और उत्कृष्ट कौशल होना चाहिए। उसे शस्त्रों का अच्छी तरह से अभ्यास और युद्ध की रणनीति का ज्ञान होना चाहिए।

न्याय और धर्म: वीर योद्धा हमेशा धर्म और न्याय का पालन करता है। वह अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाता है और कभी भी किसी निर्दोष को परेशान नहीं करता।

निरंतर संघर्ष: वीर योद्धा कभी भी संघर्ष से पीछे नहीं हटता। वह विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहता है।

स्मार्ट रणनीति: वीर योद्धा को केवल बल पर नहीं, बल्कि बुद्धिमानी और रणनीति से भी युद्ध जीतने का ज्ञान होता है। वह समय और स्थिति के अनुसार अपनी योजनाओं को बदलता है।

समर्पण और कर्तव्यबद्धता: वीर योद्धा अपने देश, धर्म और परिवार के प्रति पूरी तरह से समर्पित होता है। वह कभी भी अपने कर्तव्यों से विचलित नहीं होता।

लक्ष्मण के अनुसार, वीर योद्धा को सिर्फ शारीरिक बल ही नहीं, बल्कि मानसिक ताकत, उच्च नैतिक मूल्य और सही निर्णय लेने की क्षमता भी होनी चाहिए।

 6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए। 

उत्तर:साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है।" इस कथन पर मेरे विचार इस प्रकार हैं:

साहस और शक्ति, दोनों जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण गुण हैं। साहस किसी भी मुश्किल का सामना करने, निडर होकर कठिनाइयों से जूझने की क्षमता है, और शक्ति शरीर, मन और आत्मा की ताकत को दर्शाती है। ये दोनों गुण किसी भी व्यक्ति को जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए सक्षम बनाते हैं। लेकिन, जब यह साहस और शक्ति विनम्रता के साथ होते हैं, तो उनका प्रभाव और भी अधिक सकारात्मक हो जाता है।


विनम्रता एक ऐसा गुण है जो हमें अपने आत्मविश्वास को बनाए रखते हुए भी दूसरों के प्रति सम्मान और आदर बनाए रखने की प्रेरणा देता है। जब कोई व्यक्ति साहसी और शक्तिशाली होते हुए विनम्र होता है, तो वह न केवल दूसरों का आदर करता है, बल्कि खुद को भी संतुलित रखता है। ऐसे व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करते और उनका साहस किसी के अहित के लिए नहीं होता। वे अपनी शक्तियों का इस्तेमाल समाज और मानवता की भलाई के लिए करते हैं।

उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी ने शक्ति और साहस का परिचय दिया था, लेकिन उन्होंने हमेशा विनम्रता का पालन किया। वे शांतिपूर्ण संघर्ष के पक्षधर थे और अपनी शक्ति को कभी भी हिंसा के लिए नहीं इस्तेमाल किया। उनके साहस ने पूरे देश को एकजुट किया, और उनकी विनम्रता ने उन्हें सभी के दिलों में एक विशेष स्थान दिलवाया।

इसी तरह, एक वीर योद्धा जो युद्ध में साहस और शक्ति दिखाता है, अगर वह विनम्र होता है तो उसकी सफलता और भी अधिक सम्मानजनक होती है। वह अपनी शक्ति का उपयोग सही उद्देश्य के लिए करता है और कभी भी दूसरों को कमतर नहीं समझता।

इसलिए, जब साहस और शक्ति विनम्रता के साथ होते हैं, तो व्यक्ति न केवल अपनी स्थिति को मजबूती से बनाए रखता है, बल्कि वह समाज में भी एक आदर्श प्रस्तुत करता है। यह गुण व्यक्ति को आत्मनिर्भर, सम्मानित और सच्चे नेता बनाते हैं।

सारांश:साहस और शक्ति का महत्व तो निर्विवाद है, लेकिन यदि इन गुणों के साथ विनम्रता भी हो, तो वे समाज में बेहतर प्रभाव डालते हैं। विनम्रता हमें आत्म-नियंत्रण, दूसरों का आदर और सही दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देती है, जिससे हम अपने कार्यों से अधिक प्रभाव छोड़ते हैं।

7. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर:तुलसीदास के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ:

तुलसीदास की भाषा अवधी और ब्रज दोनों का संयोजन है, जो सरलता और सुंदरता का आदान-प्रदान करती है।

उनकी रचनाओं में प्रयोग की गई भाषा हर वर्ग और हर उम्र के पाठक को समझ में आती है, जिससे उनका काव्य व्यापक रूप से लोकप्रिय हुआ।

तुलसीदास के काव्य में शब्दों का चयन अत्यधिक सटीक और प्रभावशाली है, जो भावनाओं को सीधे हृदय में पहुँचा देते हैं।

उनका काव्य रचनात्मकता और सुंदरता से भरपूर है, जिसमें प्रत्येक शब्द और वाक्य में एक लय और ताल है।

तुलसीदास के द्वारा रचित "रामचरितमानस" की चौपाईयों में एक विशेष प्रकार की संगीतात्मकता देखने को मिलती है, जो पाठक को मंत्रमुग्ध कर देती है।

वे अपनी भाषा में सहजता और गहराई का अद्भुत संतुलन बनाते हैं, जिससे उनके काव्य का अर्थ सरल और गूढ़ दोनों होता है।

तुलसीदास की भाषा में लोक जीवन और धार्मिक भावनाओं का सम्मिलन है, जो उसे जन-जन के दिलों में बसी भाषा बनाता है।

उनकी कविता में अलंकारों का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है, जैसे रूपक, अनुप्रास, आदि, जो काव्य को और भी सुंदर बना देते हैं।

तुलसीदास ने अपनी भाषा में संस्कृत और प्राकृत का मिश्रण किया, जो उन्हें एक विशेष प्रकार की भाषिक ध्वनि और आकर्षण प्रदान करता है।

उनकी भाषा में आत्मीयता और दिव्यता का अद्भुत संगम है, जो शुद्धता और सरलता के साथ साथ उच्चतम काव्य सौंदर्य को भी व्यक्त करता है।

8. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य:

तुलसीदास के काव्य में व्यंग्य का अत्यंत प्रभावशाली और अनूठा सौंदर्य देखने को मिलता है, जिसमें वे गंभीर विषयों को सशक्त रूप से व्यक्त करते हुए, पात्रों की कमजोरियों और मानसिकताओं को तीखे और मार्मिक रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनका व्यंग्य केवल हंसी-ठिठोली के लिए नहीं होता, बल्कि यह गहरे सामाजिक और धार्मिक संदेशों को प्रसारित करने का माध्यम बनता है।

उदाहरण के साथ स्पष्टता:

परशुराम और लक्ष्मण के संवाद में व्यंग्य: जब परशुराम लक्ष्मण से क्रोधित होते हैं, तो लक्ष्मण अपने कटु शब्दों में कहते हैं कि "बालकु बोलि बधौं नहि तोही।" यहां वे परशुराम के क्रोध को शिशु-like manner में निरूपित करते हैं। यह व्यंग्य इस बात को स्पष्ट करता है कि कोई बड़ा और क्रोधित व्यक्ति भी वास्तव में अपनी स्थितियों से परेशान और असहाय हो सकता है, जो एक तरह से उसकी कमजोरी को उजागर करता है।

परशुराम के अहंकार और विक्षिप्तता पर व्यंग्य: तुलसीदास परशुराम के अहंकार को उजागर करते हुए उन पर कटाक्ष करते हैं। "कुटिलु कालबस निज कुल घालकु" वाक्य में वे परशुराम के चरित्र में तिरस्कार और उनके परिवार को लेकर व्यंग्य करते हैं। यहां परशुराम का आक्रोश उस अहंकार को दिखाता है, जो अपने कुल के लिए भी नकारात्मक परिणाम लेकर आता है।

परशुराम का स्वयं के विषय में कहना: जब परशुराम खुद के विषय में सभा में बात करते हैं, तो उनके शब्दों में व्यंग्य छिपा होता है। वे कहते हैं "बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही", यानी वे स्वयं को महाकाल के समान शक्तिशाली मानते हैं। लेकिन उनके इस कथन में एक प्रकार का तंज है, जिसमें उनका स्वयं का अभिमान और खुद की शक्ति पर प्रश्न उठता है, क्योंकि एक सच्चा वीर कभी अपने बारे में इस तरह से दावा नहीं करता।

इस प्रकार, तुलसीदास के व्यंग्य में न केवल हंसी का पहलू है, बल्कि यह गंभीर और नीतिपूर्ण संदेश भी व्यक्त करता है। उनके व्यंग्य से यह पता चलता है कि वे दूसरों की कमजोरियों को उभारते हुए उन्हें सुधारने की प्रेरणा देते हैं। उनके व्यंग्य में एक गहरी शांति और संतुलन का तत्व है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है और उसे सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से जागरूक बनाता है।

 9. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-

उत्तर:आपने जिन पंक्तियों का उल्लेख किया है, उन्हें देखकर हम इसमें प्रयुक्त अलंकारों को पहचान सकते हैं। कृपया पंक्तियाँ साझा करें, ताकि मैं उनका विश्लेषण कर सकूं।

(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही। 

उत्तर:पंक्ति "बालकु बोलि बधौं नहि तोही" में निम्नलिखित अलंकार प्रयुक्त है:

1. अनुप्रास अलंकार (Alliteration):

यह अलंकार तब होता है जब एक ही ध्वनि या वर्ण का पुनरावृत्ति होती है। इस पंक्ति में "ब" ध्वनि का पुनरावृत्ति हो रही है: "बालकु बोलि बधौं". यह अनुप्रास अलंकार है, जो कविता में लय और संगीतात्मकता जोड़ता है।

2. रूपक अलंकार (Metaphor):

यहां "बालकु" शब्द का प्रयोग परशुराम को उनके बचपने और नादानी को प्रकट करने के लिए किया गया है। "बालकु" का रूपक रूप में प्रयोग किया गया है, जिससे परशुराम की विक्षिप्त अवस्था को बालक के समान निरूपित किया गया है, जो एक अप्रत्यक्ष अर्थ है।

इन अलंकारों का प्रयोग पंक्ति को प्रभावशाली और अर्थपूर्ण बनाता है।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

उत्तर:पंक्ति "कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा" में प्रयुक्त अलंकार हैं:

1. रूपक अलंकार (Metaphor):

यह पंक्ति एक रूपक अलंकार का उदाहरण है, जहां "कोटि कुलिस सम" का प्रयोग किया गया है। यहां "कुलिस" (जो एक प्रकार का हथियार है) से तुलना करके परशुराम के शब्दों को तीव्र, प्रचंड और नष्ट करने वाली शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसे रूपक के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि यहां कुलिस के अर्थ को सीधे शब्दों के बजाय उसकी विशेषता (प्रचंडता और नष्ट करने की क्षमता) के माध्यम से व्यक्त किया गया है।

2. अनुप्रास अलंकार (Alliteration):

"कोटि" और "कुलिस" शब्दों में "क" ध्वनि का पुनरावृत्ति हो रही है, जिससे यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण बनता है।

इस प्रकार, इस पंक्ति में रूपक और अनुप्रास दोनों अलंकार प्रयुक्त हैं, जो शब्दों को और अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।

 (ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।

उत्तर:पंक्ति "तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।" में प्रयुक्त अलंकार हैं:

1. रूपक अलंकार (Metaphor):

यह पंक्ति रूपक अलंकार का उदाहरण है, जहां "कालु हाँक जनु लावा" शब्दों में "काल" (समय या मृत्यु का रूप) का प्रयोग एक प्रतीक के रूप में किया गया है। यहां परशुराम के द्वारा लक्ष्मण से की जा रही तीव्र और निरंतर चुनौती को "काल की हाँक" के रूप में व्यक्त किया गया है, जो उसकी प्रचंडता और विनाशकारी शक्ति को दर्शाता है।

2. अनुप्रास अलंकार (Alliteration):

"बार बार" में "ब" ध्वनि का पुनरावृत्ति हो रही है, जिससे यह अनुप्रास अलंकार बनता है। यह कविता की लय को और आकर्षक बना देता है और शब्दों की ध्वनियों के मेल से प्रभाव बढ़ाता है।

इस प्रकार, इस पंक्ति में रूपक और अनुप्रास अलंकार दोनों का उपयोग हुआ है, जो इसे और भी प्रभावशाली बनाते हैं।

 (घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु । बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

उत्तर:पंक्ति "लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।" में प्रयुक्त अलंकार हैं:

1. रूपक अलंकार (Metaphor):यहां "आहुति सरिस" और "जल सम" का प्रयोग रूपक अलंकार के रूप में किया गया है।

"आहुति सरिस" का अर्थ है कि लक्ष्मण का क्रोध जैसे आहुति (बलि) की तरह था, जो क्रोध के प्रचंड रूप को दर्शाता है।

"जल सम" का अर्थ है, जैसे जल फैलता है, वैसे ही लक्ष्मण के शब्द भी बढ़ रहे थे। यह एक रूपक है, जिसमें शब्दों की फैलाव को जल की तरह प्रस्तुत किया गया है, जो उनके प्रभाव को स्पष्ट करता है।

2. अनुप्रास अलंकार (Alliteration):"बढ़त" और "बचन" में "ब" ध्वनि का पुनरावृत्ति हो रही है, जिससे यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण बनता है।

3. उपमेय अलंकार (Simile):

"जल सम" में जल के समान बढ़ने की स्थिति का प्रयोग उपमेय अलंकार के रूप में किया गया है। यहाँ जल के समान फैलने का रूपक लक्ष्मण के शब्दों की तीव्रता और प्रभाव को स्पष्ट करता है।

इन अलंकारों का उपयोग पंक्ति को और अधिक प्रभावशाली बनाता है और लक्ष्मण के क्रोध एवं शब्दों की तीव्रता को खूबसूरती से व्यक्त करता है।