Chapter 1
तुलसीदास
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) तुलसीदास जी के अनुसार राम जी के निर्मल यश का गान करने से कौन से चार फल मिलते हैं ?
उत्तर:तुलसीदास जी के अनुसार, श्री राम जी के निर्मल यश का गान करने से चार फल प्राप्त होते हैं:
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
ये चारों फल मनुष्य जीवन के चार प्रमुख पुरुषार्थ माने गए हैं। तुलसीदास जी पहले दोहे में कहते हैं कि—
"बरनौ रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि।।"
जिसका अर्थ है: मैं श्री राम के पवित्र यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—ये चारों फल प्रदान करता है।
अगर चाहो तो मैं इन चार फलों का अर्थ भी सरल भाषा में समझा सकता हूँ।
(2) मन के भीतर और बाहर उजाला करने के लिए तुलसी कौन सा दीपक हृदय में रखने की बात करते हैं ?
उत्तर:तुलसीदास जी कहते हैं कि मन के भीतर और बाहर उजाला करने के लिए राम-नाम रूपी मणियों से बने दीपक को हृदय में रखना चाहिए।
वे दूसरे दोहे में लिखते हैं:
"राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरु हूँ, जी चाहसि उजियार।।"
सरल अर्थ:
तुलसीदास कहते हैं कि अगर तू उजाला चाहता है, तो अपने मुख (जीभ) की देहरी पर राम नाम रूपी मणि दीपक रख ले। इससे तेरे मन और जीवन के भीतर-बाहर दोनों में प्रकाश हो जाएगा — यानी अज्ञानता और अंधकार दूर हो जाएंगे।
यह दोहा राम नाम की महिमा और जप की शक्ति को दर्शाता है।
अगर चाहो तो इसका एक छोटा-सा भावार्थ कविता रूप में भी बना सकता हूँ!
(3) संत किस की भाँति नीर-क्षीर विवेक करते हैं ?
उत्तर:संत की तुलना हंस (राजहंस) से की गई है, जो नीर-क्षीर विवेक करता है।
तुलसीदास जी तीसरे दोहे में कहते हैं:
"संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि बारि विकार।।"
सरल अर्थ:
जैसे हंस दूध और पानी को अलग करके केवल दूध (क्षीर) ही ग्रहण करता है और पानी (नीर) छोड़ देता है, वैसे ही संत इस संसार में रहकर केवल गुणों को अपनाते हैं और दोषों व विकारों को त्याग देते हैं।
संदेश:
सच्चे संत विवेकशील होते हैं — वे संसार की अच्छाई को अपनाते हैं और बुराई से दूर रहते हैं।
चाहो तो इसी दोहे का एक भावचित्र या पोस्टर भी बना सकता हूँ!
(4) तुलसीदास के अनुसार भव सागर को कैसे पार किया जा सकता है ?
उत्तर:तुलसीदास जी के अनुसार, भवसागर (इस संसार के जन्म-मरण के दुःख रूपी समुद्र) को पार करने का उपाय है:
राम से ममता रखना और समता (सबमें समान भाव) अपनाना।
वे पाँचवें दोहे में कहते हैं:
"तुलसी ममता राम सी, समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुःख, दास भए भव पार।।"
सरल अर्थ:
तुलसीदास कहते हैं कि जब मनुष्य की ममता केवल भगवान राम से होती है और वह सभी के प्रति समान भाव रखता है — न किसी से राग (अत्यधिक प्रेम), न रोष (क्रोध), न दोष देखने की आदत होती है, तब वह भक्ति रूपी मार्ग से भवसागर को पार कर लेता है।
संदेश:
राम भक्ति और समभाव से जीवन की सारी कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अगर चाहो तो मैं इस दोहे पर आधारित एक छोटा सा प्रेरणात्मक लेख या निबंध भी तैयार कर सकता हूँ।
(5) जो व्यक्ति दूसरों के सुख और समृद्धि को देखकर ईष्यों से जलता है, उसे भाग्य में क्या मिलता है ?
उत्तर:तुलसीदास जी के अनुसार, जो व्यक्ति दूसरों के सुख और समृद्धि को देखकर ईर्ष्या करता है और जलता है, उसे भाग्य में कभी भलाई नहीं मिलती।
वे सातवें दोहे में कहते हैं:
"पर सुख संपति देखि सुनि, जरहिं वे जड़ बिनु आगि।
तुलसी तिन के भाग ते, पलै भलाई भागि।।"
सरल अर्थ:
जो व्यक्ति दूसरों के सुख और संपत्ति को देखकर ईर्ष्या करता है, वह बिना आग के ही जलता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति के भाग्य में कभी भी भलाई नहीं होती, उनका भाग्य विपरीत होता है।
संदेश:
ईर्ष्या करने वाले का कभी कल्याण नहीं होता, बल्कि वह दुखों में ही फंसा रहता है। हमें हमेशा दूसरों के सुख में भागीदार बनना चाहिए और खुद में सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए।
अगर चाहें तो मैं इस पर आधारित एक प्रेरणादायक कहानी भी बना सकता हूँ!
(6) रामभक्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास किसकी आवश्यकता बतलाते हैं?
उत्तर:गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार, रामभक्ति के लिए विश्वास की आवश्यकता होती है।
वे दसवें दोहे में कहते हैं:
"बिनु विस्वास भगति नहि, तेहि विनु द्रवहिं न राम।
राम कृपा बिनु सपनेहूँ, जीवन लह बित्राम।।"
सरल अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं कि विश्वास के बिना भक्ति संभव नहीं है, और बिना भक्ति के राम (ईश्वर) भी अपने भक्तों पर कृपा नहीं करते। राम की कृपा के बिना तो सपने में भी जीवन का सही उद्देश्य प्राप्त नहीं होता।
संदेश:
राम भक्ति के लिए पूर्ण विश्वास और आस्था आवश्यक है। जब तक व्यक्ति में ईश्वर पर सच्चा विश्वास नहीं होता, तब तक भक्ति का मार्ग कठिन रहता है। राम की कृपा ही जीवन में सही दिशा और उद्देश्य देती है।
अगर चाहें तो इस पर आधारित एक निबंध या कविता भी तैयार कर सकता हूँ!
II. निम्नलिखित पट्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(1) प्रभु तस्तर कपि डार पर, ते किए आपु समान। तुलसी कहुँ न राम से, साहिब सील निधान।।
उत्तर: तुलसीदास जी के इस दोहे में उन्होंने भगवान राम की उदारता और विनम्रता को दर्शाया है।
यह दोहा इस प्रकार है:
"प्रभु तरुतर कपि डार पर, ते किए आपु समान।
तुलसी कहुँ न राम से, साहिब सील निधान।।"
सरल अर्थ:
प्रभु राम ने वृक्षों पर रहने वाले वानरों (हनुमान और उनके साथियों) को स्वयं के समान बना दिया। तुलसीदास जी कहते हैं कि राम जैसा विनम्र और उदार कोई नहीं है, और वे धन्य हैं, जिनकी भक्ति प्राप्त हो।
संदेश:
भगवान राम का प्रेम और उनके प्रति भक्ति से कोई भी साधारण व्यक्ति भी उच्च पद तक पहुँच सकता है। राम की कृपा में समानता और निष्ठा होती है, जो सभी जीवों को समान रूप से आशीर्वाद देती है।
यह दोहा हमें बताता है कि राम का प्रेम बिना किसी भेदभाव के सभी पर बरसता है, और भक्ति से सम्पूर्ण उद्धार प्राप्त होता है।
यदि चाहें, तो मैं इसके आधार पर एक विचारपूर्ण लेख भी तैयार कर सकता हूँ।
(2) सचिव, वैद, गुरु तीनि जओ, प्रिय बोलहिं भयु आस। राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिही नास
उत्तर: यह दोहा तुलसीदास जी ने राज़नीतिक और धार्मिक मार्गदर्शन पर लिखा है, और इसमें सचिव, वैद्य, और गुरु के महत्व पर ध्यान दिया गया है।
यह दोहा इस प्रकार है:
"सचिव वैद गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भयु आस।
राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिही नास।।"
सरल अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि सचिव, वैद्य और गुरु किसी भय या लोभ के कारण प्रिय वचन बोलते हैं और सच्ची सलाह नहीं देते, तो राज्य, धर्म और शरीर तीनों का नाश शीघ्र ही हो जाता है।
संदेश:
सचिव, वैद्य, और गुरु के द्वारा सच्ची सलाह और मार्गदर्शन का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि ये लोग अपनी निष्ठा और ईमानदारी से काम नहीं करते, तो व्यक्ति और समाज का पतन होना निश्चित है। यही संदेश हमें भ्रष्टाचार और बेईमानी के खतरों से बचने की प्रेरणा देता है।
यह दोहा यह भी दर्शाता है कि सच्चाई और ईमानदारी के बिना कोई भी व्यवस्था टिकाऊ नहीं रहती।
अगर चाहें तो इस पर एक विस्तृत व्याख्या या निबंध भी तैयार कर सकता हूँ।
(ख) भाषा-बोध
(1) यहाँ आपके द्वारा दिए गए शब्दों के विपरीत शब्द हैं:
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संपति - दीनता / दरिद्रता
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सेवक - स्वामी / मालिक
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भलाई - बुराई
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लाभ - हानि
अगर आपको और कोई शब्द के विपरीत शब्द चाहिए, तो बताइए!
(2) भाववाचक संज्ञाएँ:
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दास - दासता
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निज - निजता
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गुरु - गुरुता
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जह - जाह (यहाँ 'जह' का कोई सामान्य भाववाचक रूप नहीं है, परंतु 'जाह' को भाववाचक रूप में लिया जा सकता है)
(3) विशेषण शब्द:
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धर्म - धार्मिक
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मन - मानसिक
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भय - भयावह
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दोष - दोषपूर्ण
यदि और कोई शब्द या उदाहरण चाहिए हो तो आप मुझसे पूछ सकते हैं!