Chapter 2
मीराबाई
अभ्यास
(क) विषय-बोध
L निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) श्री कृष्ण ने कौन सा पर्वत धारण किया था ?
उत्तर: श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। यह घटना भगवान श्री कृष्ण के जीवन की एक प्रसिद्ध घटना है, जिसमें उन्होंने इन्द्रदेव के क्रोध को शांत करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाया और गोकुलवासियों को इन्द्रदेव की मूसलधार बारिश से बचाया।
(2) मीरा किसे अपने नयनों में बसाना चाहती है ?
उत्तर: मीरा अपने नयनों में नन्दलाल (श्री कृष्ण) को बसाना चाहती हैं। वह अपने प्रिय भगवान श्री कृष्ण के रूप को अपनी आँखों में संजोना चाहती हैं, जिनकी सुंदरता और आकर्षण का कोई मुकाबला नहीं है।
(3) श्री कृष्ण ने किस प्रकार का मुकुट और कुण्डल धारण किए हैं ?
श्री कृष्ण ने मोर के पंखों का मुकुट और मकर आकृति के कुण्डल धारण किए हैं। ये दोनों आभूषण उनके रूप को और भी आकर्षक और दिव्य बना देते हैं।
(4) मीरा किसे देखकर प्रसन्न हुई और किसे देखकर दुःखी हुई?
उत्तर: मीरा भगतों (भक्तों) को देखकर प्रसन्न हुईं और संसार (जगत) को देखकर दुःखी हुईं। उन्हें संसार का झमेला केवल दुख और आंसू ही देता हुआ दिखाई दिया, जबकि भक्तों की संगति में उन्हें सुख और शांति का अनुभव होता था।
(5) सन्तों की संगति में रहकर मीरा ने क्या छोड़ दिया ?
उत्तर: सन्तों की संगति में रहकर मीरा ने लोक लाज (सामाजिक प्रतिष्ठा और मान-अपमान) को छोड़ दिया। उन्होंने समाज की परवाह किए बिना श्री कृष्ण के प्रेम में खुद को समर्पित कर दिया।
(6) मीरा अपने आँसुओं के चल से किस बेल की सींच रही थी?
उत्तर: मीरा अपने आँसुओं के जल से प्रेम की बेल की सींच रही थीं। उन्होंने अपने गहरे प्रेम और भक्ति के साथ भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया, जिससे वह प्रेम की बेल खिल गई और उसमें भक्ति के मीठे फल लगे।
(7) पदावली के दूसरे पद में मीराबाई गिरिधर से क्या चाहती है
उत्तर: पदावली के दूसरे पद में मीराबाई गिरिधर (श्री कृष्ण) से अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं। वह कहती हैं कि वह उनकी दासी हैं और संसार रूपी समुद्र से उनका उद्धार करें। मीरा ने संसार की झूठी मर्यादाओं और परवाहों को छोड़ दिया है और अब केवल श्री कृष्ण के प्रेम और भक्ति में समर्पित हैं।
11. निम्नलिखित पढ्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(1) बसी मेरे नैनन में नन्द लाल।
मोहनि मूरति साँवरी सुरति नैना बनै विसाल। मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाल। अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माला। छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल। मौरा प्रभु सन्तन सुखदाई भक्त बछल गोपाल ।।
यह पद मीराबाई का प्रसिद्ध भक्ति गीत है, जिसमें उन्होंने श्री कृष्ण के रूप और उनकी सुंदरता का वर्णन किया है।
उत्तर: पद का अर्थ:
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बसी मेरे नैनन में नन्दलाल:
मीरा कह रही हैं कि उनके नैनों में नन्दलाल (श्री कृष्ण) बस जाएं, अर्थात् वह श्री कृष्ण के रूप को अपनी आँखों में संजोना चाहती हैं। -
मोहनि मूरति साँवरी सुरति नैना बनै विसाल:
श्री कृष्ण की रूप-मूर्ति इतनी आकर्षक और मोहक है कि मीरा के नयन (आँखें) उनकी छवि को देखकर विस्तृत हो जाते हैं, अर्थात् वह अपनी आँखों में कृष्ण के रूप को समाहित करना चाहती हैं। -
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाल:
श्री कृष्ण के सिर पर मोरपंखों से बना मुकुट और मकर आकृति के कुण्डल हैं। उनके माथे पर अरुण तिलक (लाल तिलक) है जो उनके रूप को और भी आकर्षक बनाता है। -
अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माला:
श्री कृष्ण के अधरों पर सुधारस मुरली है, जिसकी मीठी ध्वनि पूरे वातावरण में गूंजती है। उनके हृदय पर वैजन्ती माला सुशोभित है। -
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल:
उनके कटि (कमर) पर छोटी-छोटी घंटियाँ और पाँवों में नूपुर (घुँघरू) बंधे हैं, जिनकी ध्वनि मधुर रस पैदा करती है। -
मौरा प्रभु सन्तन सुखदाई भक्त बछल गोपाल:
मीरा कहती हैं कि उनका प्रभु सन्तों के लिए सुखदाई और भक्तों का रक्षक (वत्सल) है। श्री कृष्ण गोपाल (गोपियाँ, गायों के रक्षक) हैं।
यह पद श्री कृष्ण के रूप का अत्यधिक सुंदर और मोहक चित्र प्रस्तुत करता है, जिसमें मीरा ने उनकी आकर्षक छवि को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है।
(2) मेरे ती गिरिधर गोपाल, दूसरी न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरी पति सोई। तात मात भ्रात बंधु, आपनी न कोई। छोड़ि दई कुल की कानि, कहा करें कोई। संतन डिग बैठि बैति, लोक लाज खोई। जैसुजन जत सीचि सीचि, प्रेम बेलि बोई। अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई। भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारी अब मोही।
उत्तर: यह पद मीराबाई का एक और प्रसिद्ध भक्ति गीत है, जिसमें उन्होंने श्री कृष्ण के प्रति अपनी पूर्ण समर्पण और भक्ति को व्यक्त किया है। इस पद में मीरा ने अपने प्रभु गिरिधर गोपाल के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा और प्रेम को प्रकट किया है।
पद का अर्थ:
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मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई:
मीरा कह रही हैं कि उनके जीवन में केवल गिरिधर गोपाल (श्री कृष्ण) हैं, और कोई दूसरा नहीं है। वह केवल कृष्ण को अपना सब कुछ मानती हैं। -
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई:
श्री कृष्ण के सिर पर मोर मुकुट है, और वही मेरे पति हैं। मीरा ने श्री कृष्ण को ही अपना जीवन साथी माना है और उन्हें अपना सर्वस्व सौंप दिया है। -
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई:
मीरा कहती हैं कि उनके लिए तात (पिता), मात (माता), भ्रात (भाई), और बंधु (रिश्तेदार) कोई नहीं हैं। उन्होंने अपने सभी पारिवारिक रिश्तों को छोड़ दिया है, क्योंकि उनका एकमात्र सम्बन्ध श्री कृष्ण से है। -
छोड़ि दई कुल की कानि, कहा करें कोई:
मीरा ने कुल की कानि (परिवार की इज्जत) को छोड़ दिया है, और अब वह इस परवाह नहीं करतीं कि समाज क्या कहेगा। उन्हें अब किसी भी समाजिक मर्यादा या प्रतिष्ठा की चिंता नहीं है। -
संतान डिग बैठि बैति, लोक लाज खोई:
मीरा ने सन्तान (संतोष) की संगति में बैठकर और उनकी भक्ति में लीन होकर लोक लाज (सामाजिक प्रतिष्ठा) को पूरी तरह से छोड़ दिया है। -
जैसुअन जल सीचि सौचि, प्रेम बेलि बोई:
जैसे कोई जल से प्रेम बेल को सींचता है, वैसे ही मीरा ने अपने प्रेम और भक्ति से श्री कृष्ण के प्रति अपने दिल में प्रेम की बेल बोई है। -
अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई:
अब वह प्रेम की बेल फैल चुकी है, और इस पर आनंद फल (आध्यात्मिक सुख और संतुष्टि) लगने लगे हैं। -
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई:
मीरा कहती हैं कि भक्तों को देखकर वह प्रसन्न होती हैं, जबकि संसार (जगत) को देखकर उसे दुःख होता है। -
दासी मीरा लाल गिरधर, तारी अब मोही:
मीरा ने खुद को गिरिधर (श्री कृष्ण) की दासी (सेविका) मान लिया है और उनकी कृपा से अपनी मुक्ति की प्रार्थना करती हैं।
यह पद मीरा के जीवन के उद्धारण, उनके भक्ति मार्ग और समाज की परवाह न करने की स्थिति को स्पष्ट रूप से दिखाता है।
(1) निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द:
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भाल
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माथा
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शिर
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जगत
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संसार
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दुनिया
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वन
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जंगल
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अरण्य
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(2) निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए:
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कुल (1)
अर्थ: परिवार, वंश
वाक्य: मेरे कुल में सभी लोग बहुत धार्मिक हैं। -
कुल (2)
अर्थ: योग, समग्र
वाक्य: इस गणना में कुल 50 विद्यार्थी शामिल हैं। -
कटि (1)
अर्थ: कमर
वाक्य: उसकी कटि पर सुंदर नुपूर बंधे थे। -
कटि (2)
अर्थ: काटना, समाप्त करना
वाक्य: उसने अपनी गलतियों को कटि कर लिया और नये रास्ते पर चल पड़ा।