Chapter 3

रहीम, बिहारी, वृन्द

क) विषय-बोध

 (1) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए-

(1) रहीम जी के अनुसार सच्चे मित्र की क्या पहचान है ?

उत्तर:जब सब साथ छोड़ दें, तब जो मित्र मदद करे, वही सच्चा मित्र होता है। रहीम कहते हैं कि जैसे कसौटी पर सोना परखा जाता है, वैसे ही सच्चे मित्र की पहचान भी संकट के समय होती है।

तुम चाहो तो मैं उस दोहे का अर्थ भी लिख दूँ?

(2) ज्ञानी व्यक्ति सम्पत्ति का संचय किस लिए करते हैं ?

उत्तर:रहीम जी कहते हैं कि बुद्धिमान लोग धन को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए रखते हैं। जब समय आए, तो उस धन का उपयोग अच्छे कार्यों में किया जाना चाहिए।

चाहो तो मैं इस दोहे का भी पूरा भावार्थ दे सकती हूँ?

(3) बिहारी जी के अनुसार किसका साथ शोभा देता है ?

उत्तर:वे कहते हैं कि केवल नाम से कोई महान नहीं हो जाता, जैसे "अर्क" (आक का पौधा) का एक नाम "सूर्य" भी है, लेकिन वह सूर्य के समान तेजस्वी या उपयोगी नहीं है। इसलिए शोभा केवल उसी की होती है जिसमें वास्तविक गुण हों।

क्या चाहो तो इसका दोहा भी जोड़ दूँ?

(4) बिहारी जी ने मानव को आशावादी होने का क्या संदेश दिया है ?

उत्तर:वे कहते हैं कि जैसे पेड़-पौधे पतझड़ में सूख जाते हैं, लेकिन वसंत ऋतु आने पर फिर से फूलों से भर जाते हैं, वैसे ही जीवन में कठिन समय के बाद अच्छे दिन अवश्य आते हैं। इसलिए हमें धैर्य और उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।

चाहो तो मैं इसका संबंधित दोहा भी लिख सकती हूँ?

(5) छल और कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चल सकता इसके लिए वृन्द जी ने क्या उदाहरण दिया है ?

उत्तर:वृन्द जी कहते हैं कि जैसे मिट्टी की हांड़ी एक बार आग में पक सकती है, लेकिन बार-बार नहीं, उसी प्रकार कोई व्यक्ति एक बार तो छल से किसी को धोखा दे सकता है, लेकिन बार-बार नहीं। आखिर में उसकी असलियत सामने आ ही जाती है।

चाहो तो इस दोहे का शुद्ध रूप और भावार्थ भी लिख दूँ?

(०) निरन्तर अभ्यास से व्यक्ति कैसे योग्य बन जाता है? वृन्द जी ने इसके लिए क्या

उदाहरण दिया है ?

उत्तर: वृन्द जी कहते हैं कि जैसे पत्थर पर लगातार प्रहार करने से वह नक्काशीदार और सुंदर बन जाता है, वैसे ही निरंतर अभ्यास से व्यक्ति अपनी योग्यताओं को निखार सकता है। बिना किसी अभ्यास के कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता, इसलिए निरंतर अभ्यास और परिश्रम से ही सफलता मिलती है।

चाहो तो मैं इसका शुद्ध रूप और भावार्थ भी लिख सकती हूँ!

(7) शत्रु को कमतोर या छोटा क्यों नहीं समझना चाहिए ?

उत्तर: वृन्द जी के अनुसार, जैसे दूध का कोई कचरा (अर्थात, दूषित पदार्थ) थोड़ी देर में ऊपर आ सकता है और उसे पहचान पाना कठिन हो सकता है, वैसे ही छोटे या कमज़ोर दिखने वाले शत्रु को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। वे अचानक समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। हमें हमेशा अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए, चाहे वे दिखने में कैसे भी हों।

चाहो तो मैं इस संदर्भ में शुद्ध रूप से दोहा भी लिख सकती हूँ!

(2) निम्नलिखित पद्‌द्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

(1) रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दौजिये डारि।

जहां काम आये सुई. का करे तरवारि ।।

उत्तर: भावार्थ:

रहीम जी कहते हैं कि हमें कभी भी बड़े या महत्त्वपूर्ण व्यक्ति को छोटा नहीं समझना चाहिए। किसी भी स्थिति में यह सही नहीं है। जैसे किसी छोटे कार्य के लिए सुई का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं बड़ी स्थिति में तलवार का उपयोग किया जाता है। दोनों का स्थान और उपयोग समय और आवश्यकता के अनुसार बदलता है। अतः हमें किसी की योग्यता या आवश्यकता का आकलन उसके आकार या रूप से नहीं करना चाहिए, बल्कि उस स्थिति के अनुसार उसका मूल्यांकन करना चाहिए।

इस दोहे का संदेश है कि हमें न तो किसी छोटे व्यक्ति को हल्के में लेना चाहिए, न ही किसी बड़े को। हर किसी की अपनी उपयोगिता होती है, जो संदर्भ पर निर्भर करती है।

(2) कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।

बह खाये बौरात है, यह पाये बौराय।।

उत्तर:भावार्थ:

बिहारी जी इस दोहे में कहते हैं कि सोने (कनक) की वास्तविक मूल्य या शक्ति केवल तभी समझी जा सकती है जब वह अच्छे से परखा जाए। जैसे सोने की शुद्धता और मादकता सौ गुना अधिक होती है, वैसे ही जब कोई व्यक्ति अधिक संपत्ति या शक्ति प्राप्त करता है, तो उसमें अधिक आकर्षण (मादकता) उत्पन्न होती है। परंतु, यह मादकता कुछ लोगों को भ्रमित भी कर सकती है, जैसे जो लोग ज्यादा धन या सत्ता का स्वाद लेते हैं, वे अक्सर भ्रमित और पागल हो जाते हैं।

इसलिए यह संदेश मिलता है कि संपत्ति और शक्ति को संभालने में विवेक और संतुलन बनाए रखना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अधिक संपत्ति या शक्ति व्यक्ति को आत्ममुग्धता और भ्रमित भी कर सकती है।

(3) मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान। तनिक सीत जल सॉ मिटे, जैसे दूध उफान ।।

उत्तर: भावार्थ:
इस दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि मीठे वचन और अच्छे व्यवहार से व्यक्ति का घमंड (अभिमान) समाप्त हो सकता है। जैसे ठंडी (सीत) जल की एक बूँद उफान मारते दूध को शांत कर देती है, वैसे ही मधुर वचन और सौम्यता से घमंड या अहंकार को शांति मिलती है।

अर्थात, अच्छे शब्दों और विनम्रता से किसी भी व्यक्ति का घमंड समाप्त किया जा सकता है। यह संदेश भी है कि विनम्रता और मधुर वचन से किसी भी स्थिति को शांत और सहज बनाया जा सकता है।