Chapter 18
जाएँ तो जाएँ कहाँ
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प्रश्न: जात्र्याभाई मुंबई क्यों आए थे?
उत्तर: जात्र्याभाई अपने परिवार के साथ सिंदूरी गाँव से मुंबई रोज़गार की तलाश में आए थे। गाँव में उनके पास आजीविका का कोई ठोस साधन नहीं था।
प्रश्न: जात्र्याभाई और उनके परिवार की मुंबई में जिंदगी कैसी थी?
उत्तर: मुंबई में जात्र्याभाई की जिंदगी कठिन थी। वे मछली पकड़ने के कटे हुए जालों की मरम्मत करते थे, जिससे गुजारा मुश्किल से चलता था। सीडया को भी पढ़ाई के साथ-साथ मछली कारखाने में और अन्य छोटे-मोटे काम करने पड़ते थे। घर का किराया, दवाइयाँ, पानी, सब कुछ पैसों से खरीदना पड़ता था।
प्रश्न: सीडया दिनभर में क्या-क्या काम करता था?
उत्तर: सीडया सुबह चार से सात बजे तक मछली साफ़ करने और छाँटने का काम करता था। फिर घर आकर थोड़ा सोता, दोपहर में स्कूल जाता, और शाम को सब्जी मंडी या रेलवे स्टेशन पर काम ढूँढ़ता। वह थैलियाँ उठाने या बोतलें बेचने जैसे काम करता था।
प्रश्न: इस कहानी का शीर्षक "जाएँ तो जाएँ कहाँ" क्यों रखा गया है?
उत्तर: यह शीर्षक जात्र्याभाई के जीवन की मजबूरी को दर्शाता है। गाँव में रोज़गार नहीं था, इसलिए शहर आए। शहर में जीवन कठिन हो गया, लेकिन वापस जाने का भी कोई रास्ता नहीं था। इस दुविधा और बेबसी को यह शीर्षक स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।
प्रश्न: जात्र्या भीड़ में रहकर भी अकेला क्यों महसूस कर रहा था? क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है?
उत्तर: जात्र्या गाँव की शांति और अपनापन छोड़कर बड़े शहर की भागदौड़ और अनजानेपन में आ गया था। वहाँ के लोग, माहौल और जीवनशैली उसके लिए नई थी, इसलिए वह भीड़ में भी अकेला महसूस करता था। हाँ, कभी-कभी जब हम किसी नई जगह जाते हैं और वहाँ हमारे अपने लोग नहीं होते, तब हमें भी ऐसा ही महसूस होता है।
प्रश्न: अपनी जगह छोड़कर नई जगह पर जाकर रहना कैसा लगता होगा?
उत्तर: नई जगह पर रहना शुरू में कठिन लगता है। वहाँ की भाषा, रहन-सहन, लोग और माहौल अलग होते हैं। पहले डर, अकेलापन और घबराहट होती है, लेकिन धीरे-धीरे जब हम वहाँ के माहौल में घुलने-मिलने लगते हैं, तो कुछ सहज लगने लगता है।
प्रश्न: जात्र्या जैसे परिवार बड़े शहरों में क्यों आते हैं?
उत्तर: जात्र्या जैसे परिवार रोज़गार, शिक्षा, इलाज और बेहतर जीवन की तलाश में गाँव छोड़कर शहरों में आते हैं। गाँवों में सुविधाएँ कम होती हैं और रोजगार के अवसर भी सीमित होते हैं।
प्रश्न: क्या तुमने ऐसे बच्चों को देखा है जो पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करते हैं?
उत्तर: हाँ, कई बार ऐसे बच्चों को देखा है। वे पढ़ाई के बाद चाय की दुकान, होटल, सब्जी मंडी या किसी फैक्टरी में छोटे-मोटे काम करते हैं।
प्रश्न: ये बच्चे किस तरह के काम करते हैं और क्यों करने पड़ते होंगे?
उत्तर: ये बच्चे बर्तन धोना, मछली साफ़ करना, सब्जी बेचना, बोतलें बीनना जैसे काम करते हैं। उन्हें यह सब इसलिए करना पड़ता है क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है और उन्हें घर चलाने में मदद करनी होती है।
प्रश्न: खेड़ी गाँव में बच्चे क्या-क्या सीखते थे?
उत्तर: खेड़ी गाँव में बच्चे अपने बड़ों के साथ मिलकर खेती करना, जंगल से फल, कंद और पत्तियाँ लाना, मछली पकड़ना, बाँसुरी बजाना, ढोल बजाना, मिलकर नाचना, और मिट्टी तथा बाँस के बर्तन बनाना सीखते थे।
प्रश्न: तुम अपने बड़ों से क्या-क्या सीखते हो?
उत्तर: हम अपने बड़ों से अच्छे संस्कार, बोलचाल का तरीका, खाना बनाना, पढ़ाई में मदद, जिम्मेदारी निभाना, और जीवन से जुड़ी कई बातें सीखते हैं। साथ ही कुछ पारंपरिक हुनर भी उनसे सीखते हैं।
प्रश्न: जिन चीज़ों का ज्ञान जात्र्या को खेड़ी में हासिल हुआ, उनमें से कितना उन्हें मुंबई में काम आया होगा?
उत्तर: जात्र्या को खेड़ी में मेहनत करना, मछली पकड़ना और लोगों के साथ मिलकर काम करना जैसे कई गुण और हुनर मिले थे। मुंबई में उसने मछली पकड़ने के जाल मरम्मत का काम किया, जिससे उसके गाँव का अनुभव काम आया। साथ ही, कठिन परिस्थितियों में भी मेहनत करने का जज़्बा उसके गाँव में सीखा हुआ था, जो शहर में भी उसके बहुत काम आया।
प्रश्न: क्या तुम हर रोज पक्षियों की आवाजें सुनते हो? कौन-कौन से?
उत्तर: हाँ, मैं रोज सुबह तोते, कौवे, मैना, और कभी-कभी कोयल की आवाजें सुनता हूँ।
प्रश्न: क्या तुम किसी पक्षी की आवाज की नकल कर सकते हो? करके दिखाओ।
उत्तर: हाँ, मैं तोते की "टक-टक" और कौवे की "काँव-काँव" आवाज की नकल कर सकता हूँ।
प्रश्न: तुम रोज ऐसी कौन-सी आवाजें सुनते हो, जो खेड़ी के लोग नहीं सुनते होंगे?
उत्तर: मैं गाड़ियों के हॉर्न, बसों की आवाज, ट्रेन, मोबाइल की रिंगटोन और शहर की चहल-पहल जैसी आवाजें रोज सुनता हूँ, जो खेड़ी गाँव के लोग शायद नहीं सुनते होंगे।
प्रश्न: क्या तुमने सन्नाटा महसूस किया है? कब और कहाँ?
उत्तर: हाँ, मैंने सन्नाटा रात को बिजली चले जाने पर और परीक्षा के समय कक्षा में महसूस किया है। ऐसे समय में बहुत कम आवाजें होती हैं और सबकुछ शांत लगता है।
प्रश्न: जात्र्या टायरों के टुकड़े क्यों जलाता था?
उत्तर: जात्र्या टायरों के रबड़ के टुकड़े इसलिए जलाता था क्योंकि ये जल्दी आग पकड़ते थे और लकड़ी भी कम लगती थी। लेकिन इससे धुआँ और बू फैलती थी जिससे सभी लोग परेशान हो जाते थे।
प्रश्न: सिंदूरी गाँव में किस-किस चीज़ के लिए पैसे लगते थे?
उत्तर: सिंदूरी गाँव में दवाई, सब्ज़ी, अनाज, पशुओं की खुराक, लकड़ी और बिजली जैसी हर चीज़ के लिए पैसे देने पड़ते थे।
प्रश्न: जात्र्या की बीवी की क्या हालत थी और घर में क्या स्थिति थी?
उत्तर: जात्र्या की बीवी तेज बुखार से तप रही थी और उसकी बेटी झिमली अपने छोटे भाई सीडया को गोद में लेकर सुला रही थी। घर में कोई और बड़ा नहीं था।
प्रश्न: खेड़ी के बाकी गाँववाले कहाँ गए?
उत्तर: खेड़ी गाँव के बाकी लोग बिखर गए—जिसे जहाँ जमीन मिली, वह वहीं बस गया। जात्र्या के साथ उसके गाँव के केवल आठ-दस परिवार ही सिंदूरी में थे।
प्रश्न: सिंदूरी गाँव कैसा था?
उत्तर: जैसा सपना देखा था, वैसा नहीं था। वहाँ बिजली थी पर कभी रहती, कभी नहीं। पानी के नल थे पर पानी नहीं आता था। खेती के लिए जमीन पत्थरों और कंकड़ों से भरी थी। सारी सुविधाएँ पैसों से मिलती थीं।
प्रश्न: क्या सिंदूरी गाँव जात्र्या के सपनों के गाँव जैसा था?
उत्तर: नहीं, सिंदूरी गाँव जात्र्या के सपनों के गाँव जैसा बिल्कुल नहीं था। वहाँ बिजली और पानी की सही सुविधा नहीं थी, खेती की जमीन भी बंजर थी, इलाज मुश्किल था और बच्चों की पढ़ाई में भी बाधाएँ थीं।
प्रश्न: 'सिंदूरी' और 'अपने सपनों के गाँव' में जात्र्या को क्या अंतर मिला?
उत्तर: सिंदूरी में सुविधाएँ तो थीं पर ठीक से मिलती नहीं थीं। लोग वहाँ खेड़ी के लोगों को अपनाते नहीं थे। वहीं, अपने सपनों के गाँव में जात्र्या को उम्मीद थी कि सब मिल-जुलकर रहेंगे, शिक्षा, इलाज और काम के अच्छे मौके मिलेंगे। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग थी।
प्रश्न: क्या तुम कभी किसी के घर 'बिन बुलाए मेहमान' थे? कैसा लगा?
उत्तर: (यह प्रश्न आत्ममंथन का है—उत्तर छात्र अपने अनुभव के आधार पर लिखेगा। उदाहरण के लिए:) हाँ, एक बार मैं अचानक अपने दोस्त के घर गया था। पहले थोड़ी झिझक हुई, पर उनके परिवार ने अच्छे से स्वागत किया, जिससे अच्छा लगा।
प्रश्न: जब तुम्हारे यहाँ कुछ दिन मेहमान रहने आते हैं, तब तुम्हारे परिवार वाले क्या-क्या करते हैं?
उत्तर: जब हमारे यहाँ मेहमान आते हैं, तो हम उनका अच्छे से स्वागत करते हैं, उनके रहने और खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं, और उन्हें अच्छा महसूस कराने की कोशिश करते हैं।
प्रश्न: जात्र्याभाई ने क्या सोचकर मुंबई जाने की ठानी? क्या-क्या उन्हें मुंबई वैसा ही मिला?
उत्तर: जात्र्याभाई ने सोचा था कि मुंबई जैसे बड़े शहर में उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा, रोज़गार और जीवन की बेहतर सुविधाएँ मिलेंगी। लेकिन मुंबई आकर उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा—रहने की जगह छोटी और अस्थायी थी, काम बहुत कठिन था और आमदनी कम थी। उन्हें रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा।
प्रश्न: जात्र्याभाई के बच्चे मुंबई में किस तरह के स्कूल में जाते होंगे?
उत्तर: जात्र्याभाई के बच्चे संभवतः ऐसे सरकारी स्कूलों में जाते होंगे जहाँ पढ़ाई का स्तर सीमित होता है और भीड़ ज्यादा होती है। साथ ही, उन्हें नए माहौल, भाषा और संस्कृतिक भिन्नताओं का भी सामना करना पड़ता होगा।
प्रश्न: क्या तुम किसी बच्चे या परिवार को जानते हो, जो अपनी जगह से हटाए गए हों? उनसे बात करो।
(यह एक गतिविधि आधारित प्रश्न है — छात्र को किसी ऐसे परिवार से बात करके लिखना होगा। नीचे एक उदाहरण उत्तर दिया गया है:)
उत्तर: हाँ, मैंने एक परिवार से बात की जो बिहार से आया था। वे पहले गाँव में रहते थे जहाँ खेत थे और लोग आपस में मिल-जुलकर रहते थे। लेकिन बाढ़ और काम की कमी के कारण उन्हें शहर आना पड़ा। नई जगह पर सब कुछ नया था—भाषा, खाना, रहन-सहन। वे हिंदी बोलते हैं लेकिन उनकी बोली थोड़ी अलग है। मैंने उनसे 'चउर' (चावल), 'भोजन' (खाना), 'बबुआ' (बेटा) जैसे शब्द सीखे। वे मिट्टी के खिलौने बनाना जानते हैं, जो मैंने कभी नहीं बनाए।
प्रश्न: तुमने शहर की किसी बस्ती को हटाने के बारे में सुना या पढ़ा है? तुम्हें इसके बारे में कैसा लगता है?
उत्तर: हाँ, मैंने टीवी और अखबार में पढ़ा है कि कई बार झुग्गी बस्तियों को हटाया जाता है। यह बहुत दुखद लगता है क्योंकि वहाँ रहने वाले गरीब लोग अपनी रोज़ की मेहनत से जो घर बनाते हैं, वो एक झटके में उजड़ जाते हैं। उनके पास कोई और ठिकाना नहीं होता, बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है, और रोज़गार भी छिन जाता है।
प्रश्न: नौकरी में तबादला होने पर भी अपने रहने की जगह से दूर जाना पड़ता है। तब कैसा लगता है?
उत्तर: तबादले के कारण जगह बदलनी पड़ती है तो दुख भी होता है क्योंकि पुराने दोस्त, पड़ोसी और माहौल छूट जाता है। नए स्थान पर फिर से सब कुछ शुरू करना पड़ता है, मगर अगर साथ में परिवार हो, तो धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है।
प्रश्न: कुछ लोग सोचते हैं "शहरी लोग गंदगी नहीं फैलाते। शहर का गंद तो झुग्गी-झोंपड़ियों से है।"
उत्तर: यह बात पूरी तरह सही नहीं है। गंदगी सभी जगह हो सकती है। बड़े-बड़े लोग भी सार्वजनिक जगहों पर कचरा फेंकते हैं, थूकते हैं, और नियमों का पालन नहीं करते। झुग्गी में लोग मजबूरी में रहते हैं, जहाँ साफ-सफाई की सुविधा नहीं होती। गंदगी की जिम्मेदारी केवल गरीबों पर डालना सही नहीं है, यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है।
प्रश्न: जात्र्या के परिवार जैसे लाखों परिवार अलग-अलग कारणों से बड़े शहरों में रहने के लिए जाते हैं। मगर इन बड़े शहरों में उनकी जिंदगी क्या पहले से अच्छी होती है? बड़े शहरों में उन्हें किस तरह के अनुभव होते होंगे?
उत्तर: बड़े शहरों में जाने के बाद जात्र्या जैसे परिवारों की ज़िंदगी अक्सर और कठिन हो जाती है। उन्हें छोटी-सी जगह में रहना पड़ता है, रोज़गार अस्थायी होता है, और बच्चों की पढ़ाई में भी बाधाएँ आती हैं। नए माहौल, भाषा और सामाजिक भेदभाव की वजह से उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन वे उम्मीद करते हैं कि मेहनत और समय से चीज़ें सुधरेंगी।
Priyanka Das